उत्तर प्रदेश की मुख्यमन्त्री सुश्री मायावती ने प्रधानमन्त्री डॉ0 मनमोहन सिंह को आज लिखे एक पत्र में कहा है कि भारतीय संविधान के निर्माता परम पूज्य बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने शिक्षा को अत्यधिक महत्व दिया था। उनका सपना था कि समाज के प्रत्येक वर्ग के, खासतौर से दलित, पिछड़ों में निर्धन तथा अन्य वंचित वर्गों के बच्चों को शिक्षा मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का यह सपना बहुत पहले ही पूरा हो जाना चाहिए था, क्योंकि इससे समाज में व्याप्त हर प्रकार की गैर-बराबरी को दूर करने में सहायता मिलती। उन्होंने कहा कि देश को आजाद हुए लगभग 63 वषोZं और संविधान को लागू हुए 60 वषोZं के बाद भी बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का सपना आज भी अधूरा है, जिसका सर्वाधिक दुष्प्रभाव समाज के दलित और पिछड़े वर्ग के निर्धन एवं अल्पसंख्यक वर्गों के गरीबों पर पड़ा है।
सुश्री मायावती ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम के परिप्रेक्ष्य में प्रेषित पत्र में यह भी कहा है कि भारतीय संविधान की व्यवस्था के अनुसार शिक्षा को समवर्ती सूची में शामिल किया गया है। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक था कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के सम्बन्ध में केन्द्र द्वारा राज्यों से औपचारिक विचार-विमर्श किये जाने के साथ ही, इसके क्रियान्वयन की समुचित वित्तीय व्यवस्था भी की जानी चाहिए थी, लेकिन केन्द्र ने ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की। उन्होंने कहा कि यह उचित नहीं है कि भारत सरकार इस अधिनियम के सम्बन्ध में मात्र नीतियां बनाकर निर्देश जारी करे और क्रियान्वयन की पूरी जिम्मेदारी राज्यों की हो।
मुख्यमन्त्री ने कहा कि भारत सरकार ने शिक्षा के अधिकार का अधिनियम तो बना दिया है, परन्तु इस अधिनियम के क्रियान्वयन हेतु आवश्यक आर्थिक व्यवस्था नहीं की गई है। अधिनियम को लागू करने में 45 प्रतिशत धनराशि की व्यवस्था राज्य सरकार को करनी होगी। अधिनियम के क्रियान्वयन हेतु राज्य सरकार द्वारा लगभग 8000 करोड़ रूपयों की व्यवस्था कर पाना प्रदेश की वर्तमान आर्थिक स्थिति को देखते हुए सम्भव नहीं हो सकेगा। उन्होंने इन तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में केन्द्र सरकार से अनुरोध किया है कि यदि भारत सरकार शिक्षा का अधिकार अधिनियम को गम्भीरतापूर्वक लागू करना चाहती है, तो उसे उत्तर प्रदेश सरकार को सम्पूर्ण धनराशि उपलब्ध करानी चाहिए। उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर केन्द्र सरकार गम्भीरतापूर्वक विचार कर सकारात्मक निर्णय लेगी।
इसके अलावा, सुश्री मायावती ने केन्द्र सरकार द्वारा लागू किए गए शिक्षा का अधिकार अधिनियम के सम्बन्ध में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में इस अधिनियम को अमली जामा पहनाने के लिए एक वर्ष में लगभग 18,000 करोड़ रूपये की जरूरत पड़ेगी, जिसमें से राज्य को 45 प्रतिशत अर्थात 08 हजार करोड़ रूपये की धनराशि की व्यवस्था करनी होगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा विगत 05 नवम्बर, 2009 को पत्र भेजते हुए भारत सरकार से धनराशि की व्यवस्था करने का अनुरोध पहले ही किया जा चुका है।
मुख्यमन्त्री ने कहा कि केन्द्र सरकार इस अधिनियम को लेकर गम्भीर नहीं है। यही कारण है कि केन्द्र ने अधिनियम को लागू करने से पहले इसके व्यवहारिक पहलुओं पर गौर नहीं किया और अपने बजट में भी अधिनियम के सम्बन्ध में मामूली धनराशि की व्यवस्था की। उन्होंने कहा कि आबादी के हिसाब से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में शिक्षा का अधिकार अधिनियम को जमीनी धरातल पर उतारने के लिए लगभग 4596 नये प्राथमिक विद्यालय, 2349 नये अपर प्राथमिक विद्यालय व अन्य अवस्थापना सुविधाओं का विकास करना होगा, जिसके लिए 3800 करोड़ रूपये का व्यय अनुमानित है। इसी प्रकार 06-14 आयु वर्ग के सभी बच्चों को शिक्षा की अनिवार्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए तीन लाख पच्चीस हजार नये शिक्षकों को प्राथमिक विद्यालय स्तर पर तैनात करना होगा। जबकि, अपर प्राथमिक विद्यालयों के लिए 67,000 नये नियमित शिक्षक तथा 44,000 पार्ट टाइम शिक्षकों की जरूरत होगी। इसके अतिरिक्त वेतन एवं अन्य मदों को जोड़ते हुए लगभग 10,000 करोड़ रूपये प्रति वर्ष व्यय भार आयेगा। उन्होंने कहा कि निजी विद्यालयों में 25 फीसदी सीटों पर आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के नामांकन के बदले निजी विद्यालयों को दी जाने वाली प्रतिपूर्ति पर लगभग 3,000 करोड़ रूपये का खर्च आयेगा। इस प्रकार प्रदेश में समस्त अवस्थापना सुविधाओं के विकास पर अनुमानित तौर पर 18,000 करोड़ रूपये की आवश्यकता होगी।
सुश्री मायावती ने कहा कि शिक्षा ही वह माध्यम है, जिससे गरीबों, वंचितों एवं दलितों की तकदीर एवं तस्वीर बदली जा सकती है। उन्होंने कहा कि यदि भारत सरकार सही मायनों में शिक्षा का अधिकार अधिनियम को जनता की भलाई के लिए लागू कराना चाहती है तो उसे इस अधिनियम के लागू करने के सम्बन्ध में राज्यों पर आने वाले पूरे वित्तीय भार को वहन करना चाहिए।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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