Posted on 22 December 2020 by admin
Posted on 17 December 2020 by admin
Posted on 13 August 2017 by admin
वह न रूकता है न थकता है न अलोचनाओ से डिगता है। उद्देश्य सेवा राष्ट्र की पथ से कभी भटकता नहीं है। सत्तत निर्विधनम बढता चला जा रहा है। वह कौन है, जो जाड़ा, गर्मी, सर्दी, बरसात साल के 365 दिन अनवरत राष्ट्र प्रेम से ओत प्रोत देश ही नही दुनिया में भारत का डंका बजवा रहे है। दुनिया का महाशक्तिशाली सर्वशाक्तिशाली मुल्क उसके लिए पलक पावडे बिछा कर स्वागत करता है। अमेंरिका उसे महान नेता बताता है। इजराइल ने सच्चा दोस्त कहा है। रूस, फ्रांस, कनाडा, आस्ट्रेलिया व जमर्नी आदि उसके लिए क्रान्तकारी विकास पुरूष की संज्ञा देते है। जी हाॅ हम माॅ भारती के सच्चे सपूत हीराबेन के बेटे भारत के सफलतम् प्रधानमंत्री कर्मयोगी राष्ट्रसतं नरेन्द्र दामोदर दास मोदी की बात कर रहे है। देश ने आजादी से लेकर अब तक अनेक नेता देखे कई पार्टियां की सरकारे, प्रधानमंत्री देखे परन्तु नरेन्द भाई का कोई सानी नही है। अपने साहासिक निर्णयो के कारण दुनिया के नेता उनको अपना आदर्श मानते है। उनकी एक अपील पर लोगों ने अपनी गैस सब्सीडी छोड़ दी । बिना कोई पैसे लिए मुफ्त में 05 करोड़ से अधिक गरीबों को सब्सीडी गैस सिलेण्डर दिला दिए। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट़ªपं उनको महान राष्ट्रवादी नेता बताते है। वाह नरेन्द्र भाई आपने जो तीन वर्ष में देश को सम्मान दिलाया सफलता दिलाई उसे देश कभी भूल नही पायेगा। भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव दादा उनको कुशल नेता व मार्गदर्शक बतातें है।
भारत के एक ओर लोकप्रिय महान प्रधानमंत्री हुए लाल बहादुर शात्र.ी जी जिन्होने देशवासियों से एक दिन उपवास रहने की अपील की थी तो उस समय अन्न का सकंट दूर हो गया था। जय जवान जय किसान का नारा उन्होने दिया था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी ने इस नारे के साथ जय विज्ञान भी जोड़ दिया था। नरेन्द्र भाई की एक अपील पर देश ही नही दुनिया ने योग को अपनाया और विश्वयोग दिवस मनाया जाने लगा यानि योग को नया आयाम दिया मोदी जी ने। मोदी का यह नारा अबकी बार मोदी सरकार अमेरिका चुनाव में डोनाल्ड ट्रप ने यूं दिया अबकी बार टंªप सरकार यह नारा रोनाल्ड ट्रंप ने दिया और वह जीते भी। नरेन्द्र भाई मोदी के बारे में संत कहते है फूल की खुशबूु हवा के कारण दूर तक फैलती है परन्तु मानवीय गुणों की खुशबूु चारों ओर बिना हवा के कारण भी फैलती है। नरेन्द्र भाई के मानवीय गुणों की खुशबू आज पूरी दुनिया में फैल गई है। पुरूष नहीं यह महापुरूष है, नेता नहीं यह महान नेता है। यह मानव नहीं देवता है। रात दिन अपने देश व देशवासियों के बारे में सोचता है तथा कठोर परिश्रम कर रहा है। जिस भारत में घोटाला की बाढ़ आ गई थी जैसे 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हआ तब से अब तक देश ने क्या खोया क्या पाया इस पर एक नजर डाल तो काग्रेस राज में देश को लूटा गया एक नजर कागं्रेस शासन के घपले घोटालों पर डाले तो सन् 1987 में बोफोर्स तोप घोटाला - 960 करोड़, 1992 में शेयर-तोप घोटाला-5000 करोड़, 1994 में चीनी घोटाला 650 करोड़, 1995 में प्रेफेशल अलाॅटमेंट घोटाला 5000 करोड़, 1995 में कस्टम टैक्स घोटाला 43 करोड़, 1995 में काबरलर घोटाला 1000 करोड़, 1995 हवाला घोटाला 400 करोड़, 1995 मेघालय में वन घोटाला 300 करोड़, 1996 उर्वरक आयात घोटाला 1300 करोड़, 1996 चारा घोटाला 950 करोड़, 1996 यूरिया घोटाला 133 करोड़, 1997 भूमि घोटाला 400 करोड़, 1997 में म्यूच्यूअल फन्ड घोटाला 1200 करोड़, 1997 सुखराम टेलिकाम घोटाला 1500 करोड़, 1977 एसएनसी पावर प्रोजेक्ट घोटाला 374 करोड़,1998 उदय गोयल कृषि उपज घोटाला 210 करोड़, 1998 में टीक पौधा घोटाला 8000 करोड़, 2001 में डालमिया शेयर घोटाला 595 करोड़, 2001 केनत पाररिख प्रतिभूति घोटाला 1000 करोड़, 2002 में संजय अग्रवाल ग्रह निवेश घोटाला 600 करोड़, 2002 में कलकत्ता स्टाफ एक्सचंेज 120 करोड़, 2003 मंे स्टाम्प घोटाला 20000 करोड़ घोटाला, 2005 में आई पीओ कारिडोर घोटाला 1000 करोड़, 2005में बाढ़ आपदा घोटाला 17 करोड़, 2005 में सौरपियन पनडूब्बी घोटाला 175 करोड़, 2006 में पंजाब सिटी सेंटर घोटाला 1500 करोड़, 2008 में कालाधन घोटाला 210000 करोड़, 2008 में सत्यम घोटाला 8000 करोड़, 2008 में सैन्य राशन घोटाला 5000 करोड़, 2008 में स्टेट बैंक आॅफ सौराष्ट्र घोटाला 95 करोड़, 2008 में हसन अली हवाला घोटाला 39120 करोड़, 2008 में उडीसा खाद्यन घोटाला 4000 करोड़, 2009 में झारखण्ड में मेडिकल उपकरण घोटाला 130 करोड़, 2010 में आदर्श सोसाइटी 900 करोड़, 2010 में खाद्यान घोटाला 35000 करोड़, 2010 में बैंड स्पेक्ट्रम घोटाला 200000 करोड़, 2011 में 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला 176000 करोड़, 2011 कामनवेल्थ घोटाला 70000 करोड़,
ये तो वे प्रमुख घोटाले है जो उजागर हुए बाकी देश का बंटाधार करने में इन लोगों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। मोदी जी ने जिस दिन शपथ ली थी उसी दिन देश की की जनता से वायदा किया था वह देश के धन के चैकीदार है। एक नया पैसा भी किसी को लूटने नहीं दूंगा। आजतक वह अपने वादे पर कायम है और हमेशा रहेगें। उन्होने देश को आगे बढाने में कोई कोर कसर नहीं छोडी, गरीबो को मुफ्त रसोई गैस दी। 7.5 करोड लोगो को बैंक से ऋण दिलाकर स्वावलम्बी बनाया। करोडो घरों मे शौचालय बनवा दिये। सैनिको को वन रैंक वन पेंशन दी। कैंसर-बीपी शुगर जैसी मंहगी दवाईयों को 85 प्रतिशत तक सस्ता किया। स्वच्छ भारत अभियान चला रहे है। प्रतिवर्ष लाखों नवयुवक को सीधे नौकरियां दे रहे है। सतत् देश को आगे बढा रहे हैं।
भ्रष्टाचार पर बेरहम प्रहार कर उसको रोकर समृद्ध भारत, सुदृढ भारत स्वावलम्बी भारत बन रहे हैं। उनका कोई विकल्प नहीं हैं
विष्णु भगवान की आरती की वह लाईन नरेन्द भाई पर आज सही लगती है। तन-मन धन सब तेरा, तेरा तुझ को अपर्ण, क्या लागे मोरा। सार्वजानिक जीवन में लोग गुण-दोष तो ढूढते ही रहेगें लेकिन सूरज पर थूकने वालो पर थूक पलट कर गिरता है। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए उन पर विरोधियों ने तरह-तरह के आरोप लगाए लेकिन उन्होने मुंह की खायी। अब देश के प्रधानमंत्री पर जो झूठे आरोप लगा रहे है भविष्य में मुंह की ही खायेगें। एक शेर उस समय जब यूपीए सरकार थी तब किसी ने लिखा था कि देश के हालात जो गिनने लगेगें तो पत्थर भी आंसू बहाने लगगे अगर खो गई कही इन्सानियत तो ढूढने में जमाने लगेगंे वे पारसमणि है। लोहा भी जिसका स्पर्श पाकर सोना बन जाता है उसे पारस कहते है। मणि का सहज गुण है वह अपना प्रकाश 24 घंटे देती है। सांप का ससंर्ग पाकर भी मणि उसके विष को ग्रहण नही करती बल्कि अपने सहजगुण प्रकाश को नही छोड़ती। इसी भांति वह अजेय योद्धा भारत में 70 सालों से हो रहे भ्रष्टाचार से बिना विचलित हुए अपने ईमानदारी के महानगुण से देश को महका रहे है। सोने के टुकडे-टुकडे हो जाने पर भी वह अपना मूल्य कम नही होने देता। हीरा तो हीरा है। हंस व बगुुला दोनो सफेद रंग होता है एक रंग के होने के बावजूद दोनो के गुणांे में भारी अन्तर हैं। हंस का गुण हैं वह मोती चुगता हैं दुध से जल को निकाल कर अपने नीरक्षीर विवेक का परिचय देता है। जबकि बगुले का आहार झील के कीडे़ होते है। यशस्वी प्रधानमंत्री जी हंस की भांति है जबकि उनके विरोधी बगुलो की भांति है। मोदी जी का पूरा जीवन आदर्श जीवन हैं। संघ की ये विचार पंक्तियां जैसे उनके लिए ही लिखी गई है। तेरा वैभव अमर रहे मां, हम दिन चार रहे न हरे
हम जियेगंे और और मरेगें ए वतन तेरे लिए। उनकी छाप भारत के नौजवानों में स्पष्ट रूप से दिखती है। बाबा राम देव उनको राष्ट्रसंत की उपाधि दिये है। संत समाज जिसकी प्रशंसा करता है वही सच्चे अर्थों में मानव कहलाता है। मोदी जी के कुशल नेतृत्व व सुदृढहाथों में भारत को देख यहां के नौजवान, व्यापारी, महिलायें, गरीब-अमीर सभी खुश है तथा उनकी राष्ट्रभगती राष्ट्रप्रेम, राष्ट्र अराधाना से प्रेरणा प्राप्त कर रहे है। नरेन्द्र भाई की स्वस्थ लम्बी आयु के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहे है।
(नरेन्द्र सिंह राणा)
प्रदेश प्रवक्ता भाजपा
Posted on 30 December 2012 by admin
परमात्मा को पाना आसान है परन्तु इंसान बनना मुश्किल है
आध्यात्म से जुड़कर ही मानवता में असली निखार आता है। सांसारिक प्राणी आध्यात्मिकता से जुड़कर ही सच्चा इंसान बनने की दिशा में अग्रसर होता है। भौतिकता लोगों की मानसिकता में शुद्धता के विचार नहीं आने देती। जबकि आध्यात्मिकता से जुड़कर हर प्राणी मानवता के लिए ही समर्पित होता है। भौतिकता से घबराकर आज बहुत से लोगों ने स्वयं ही सतगुरु के पास जाने हेतु कदम उठाया है। समाज बदलता है परन्तु अकेले एक व्यक्ति के करने से कुछ नहीं होगा। यह सभी का अनुभव है कि कानून बनाने से असली परिवर्तन नहीं हो पाता है। असली परिवर्तन के लिए समाज के मनोभाव और चिन्तन को बदलना जरूरी है। यह बातें माँ जसजीत जी ने आज मानव कल्याण आश्रम, बन्थरा में आयोजित पत्रकारवार्ता में कही।
उन्होंने आगे बताया कि 01 जनवरी को सरोजनी नगर यू.पी. सहकारी समिति ग्राउण्ड (सैनिक स्कूल के सामने) कानपुर रोड, लखनऊ में प्रकाशोत्सव दिवस मनाया जाएगा क्योंकि इसी दिन वर्ष 1993 में उन्हें ईश्वर से साक्षात्कार हुआ था और यह हुक्म हुआ था कि लोगों को आशीर्वाद देकर उनकी तकलीफें दूर कर मानवता की सेवा करें। हम लोगों के कष्टों के बारे में ं भगवान से प्रार्थना करते हैं और यह प्रार्थना स्वीकार की जाती है। उन्होंने कहा कि वह जहां भी जाती हैं, जीवन जीने की सही कला और दिशा देने का प्रयत्न करती हैं।
माँ जसजीत जी ने बताया कि इस बार 01 जनवरी को 18वें प्रकाशोत्सव में एक विशेष प्रवचन होगा। इस बार के प्रवचन में चिन्ता विषय पर विशेष व्याख्यान दिया जाएगा। माँ की ओर से सभी भक्तों को शुभकामनाएं दी जाएंगी। सतगुरु की वाणी की सत्यता क्या है, समय की कीमत और महत्ता का अनुभव उपस्थित जनसमुदाय स्वंय करेगा। प्रकाशोत्सव में आने के बाद भौतिक जीवन के नकारात्मक पक्षों के साथ जीना कितना मुश्किल है, इसका अंदाजा भी लोगों को होगा। हम सतगुरु के पास इसलिए जाते हैं क्योंकि इससे हमें ऊर्जा मिलती है। हम दीक्षा नहीं देते हैं। इस पर हमारा अधिकार नहीं है। हम तो केवल शिक्षा दे सकते हैं।
आश्रम में प्रत्येक मंगलवार और गुरुवार को हम भक्तों से मिलते हैं। पूरे भारत से लोग शारीरिक, पारिवारिक, मानसिक तथा आर्थिक समस्याओं के निराकरण के लिए यहां आते हैं। प्रत्येक सोमवार को माँ की बगिया में प्रवचन तथा शुक्रवार को विशेष ध्यान का आयोजन किया जाता है। आश्रम सामाजिक गतिविधियों में भी अपनी भूमिका निभाता है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि बुरे ख्याल में डूबे लोगों अथवा नकारात्मक कार्यों में लगे लोगों को अपने समान के लोगों से डर नहीं लगता बल्कि उन्हें सच्चे लोगों से/सतगुरु से या अध्यात्म मार्ग पर चलने वाले लोगों से डर लगता है। कायनात ने सृष्टि संचालन के नियम बनाए हैं, जिसके लिए लोगों को सच्चाई, ईमानदारी, मिलनसारिता से रहना चाहिए और सत्याचरण लोगों के विचार, वाणी और आचरण में भी दिखना चाहिए। धोखा, छल, प्रपंच करने का प्रतिफल ही लोगों को कष्ट के रूप में प्राप्त होता है। आज इंसान अपने कर्मों से भटक गया है। शाॅर्टकट रास्ता ज्यादा आसान लगता है। आज के लोग सच सुनना ही नहीं चाहते हैं।
उन्होंने बताया कि लोगों को सत्य मार्ग दिखाने के लिए ही आश्रम द्वारा साल में 05 उत्सव, 01 जनवरी को प्रकाश पर्व, 10 अप्रैल को एकता दिवस, गुरु पूर्णिमा पर्व, दिव्य दृष्टि समारोह तथा संकल्प दिवस का आयोजन किया जाता है।
उनकी पृष्ठभूमि के बारे में किए गए सवाल पर उन्होंने कहा कि बचपन से ही हमें सच्ची बातें अच्छी लगती थी। हमने हर शिक्षा को जीवन में स्वीकार किया है तथा उसे आचरण में उतारने का कार्य किया है। प्राइमरी स्कूल में पहली बार जब गए तब शिक्षक ने गांधी जी के तीन बंदर दिखाकर कहा था कि बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलों, बुरा मत देखो। यह बात घर कर गई और ताजीवन हमें ईश्वर और सत्य के प्रति आग्रही बनाती आ रही है। उन्होंने कहा कि ससुराल में जब पहली बार गुरुद्वारे बहु को ले जाने की परम्परा के अनुसार उन्हें वहां ले जाया गया तो गुरु ग्रन्थ साहब से यही प्रकाश मिला कि संसार कीचड़ है, यहां आपको कमल बनकर खिलना है। हमें सांसारिक चीज़ों की जगह भगवान से डरना चाहिए। परमात्मा को पाना आसान है, मगर इंसान बनना उतना ही मुश्किल है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com
Posted on 09 December 2012 by admin
उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष श्री माता प्रसाद पाण्डेय ने सिटी माॅन्टेसरी स्कूल द्वारा आयोजित मुख्य न्यायाधीशों के 13वें अन्तर्राष्ट्रीय वार्षिक सम्मेलन की सराहना करते हुए कहा कि समाजवादी चिंतक डाॅ0 राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि विश्व में शांति के लिए विश्व संसद होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में सभी के सुखी, निरोगी एवं कल्याणमय जीवन की कल्पना की गई है।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने कहा कि भारत हमेशा विश्व बन्धुत्व का पक्षधर रहा है। उन्होंने कहा कि विभिन्न देशों की आपसी समस्याओं को मिल-बैठ कर शांतिपूर्वक सुलझाने से बेहतर और कोई दूसरा तरीका नहीं हो सकता।
मुख्यमंत्री आज मुख्य न्यायाधीशों के 13वें अन्तर्राष्ट्रीय वार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि सम्मेलन से विभिन्न देशों के बीच में एकता एवं भाईचारा बढ़ेगा। उन्होंने श्री जगदीश गांधी के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि सी.एम.एस. द्वारा आयोजित कार्यक्रम से जहां एक तरफ समाज और देश को लाभ होगा वहीं उत्तर प्रदेश को अन्तर्राष्ट्रीय पहचान भी मिलेगी।
श्री यादव ने कहा कि भारत शुरू से अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं को प्रोत्साहित करने का प्रयास करता रहा है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ का एक सदस्य होने के नाते भारत हमेशा सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति एवं शांतिपूर्ण माहौल बनाने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि हमारा देश एक उदार, प्रजातांत्रिक राष्ट्र है। हम संसदीय व्यवस्था के तहत कार्य करते हैं। उन्होंने देश की सशक्त एवं स्वतंत्र न्यायिक संस्था का हवाला देते हुए कहा कि देश की व्यवस्था चलाने के लिए बनाई गई प्रत्येक स्वायत्त संस्था बाखूबी काम कर रही है।
इस अवसर पर अफगानिस्तान, अर्जेन्टीना, अजरबैजान सहित लगभग 60 देशों के मुख्य न्यायाधीश/न्यायाधीश, गणमान्य व्यक्ति, अध्यापक, छात्र उपस्थित थे।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com
Posted on 01 December 2012 by admin
रूद्रक्ष सभी लोगों के मन और मस्तिष्क में एक विशिष्ट स्थान रखता है क्योंकि इसका संबन्ध पीढि़यों से शक्तिशाली शिव के साथ है। यह निर्भयता, आत्मविश्वास, अच्छे स्वास्थ्य, रक्तचाप नियन्त्रण, तनाव और चिंता नियंत्रण की पेशकश करने के लिए माना जाता है। किस्मत, सफलता, विकास, आध्यात्मिकता, वैवाहिक/पारिवारिक आनंद, भौतिक लाभ और सुरक्षा, कम लोगों को पता है कि इन मोतियां में विद्युतचुम्बकीय, पैसमैग्नेटिक और आगमनात्मक गुण है जो वैज्ञानिकता से मापे गये और अपने आप पर एक सकारात्मक प्रभाव अनुभव होता है जब इन मोतियों को त्वचा से छूता हुआ पहना जाता है। सच्चे ज्ञान और अद्भुत मोती के आसपास के रहस्यों के द्वारा लोकप्रिय होने के बाद रूद्रालाइफ, तनय सीता द्वारा 2001 में अपने शानदार पिता कमल नारायण सीता के मार्गदर्शन के तहत सेमिनारों और प्रदर्शनियों के माध्यम से जनता को शिक्षित करने के लिए एक मिशन की शुरूआत की। रूद्रालाइफ 500 के बारे मंें आज तक भारत में और विदेशों में प्रदर्शनियों का आयोजन किया गया है। कई टीवी शो, साथ ही प्रिंट और इलेक्ट्राॅनिक मीडिया में विभिन्न लेख और प्रस्तुतियों के रुप अच्छी तरह से पता चलता है कि रूद्राक्ष पर बनाया गया जागरूकता के विशेषज्ञों ने दुनिया भर के लोगों से मुलाकात की है और उनके अनुभवों का अध्ययन, अंकज्योतिष/ज्योतिष पर आधारित संयोजन की सिफारिश की एक अनूठी रणनीति विकसित कर रहे है। इस रूद्रालाइफ से सिफारिशों का लाभ हुआ है कि दुयिा भर में लोगों को और रूद्रालाइफ के बहुत सारे असंख्य प्रशंसापत्र प्राप्त हुए है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com
Posted on 03 October 2012 by admin
इन दिनों जैसी मारा मारी एफ.डी.आई. पर मीडिया में-विपक्षी राजनीतिज्ञों में, मची हुई है उससे लग रहा है कि आजादी दिलाने वाली काॅंग्रेस कोई कथित इस्ट इण्डिया कम्पनी बुलाकर तुरन्त देष को गुलाम बनाने पर ही उतारु है और कतिपय विपक्षी दल ही केवल जनता के हिमायती बचे हैं ? कोई यह सोचने- समझने तक को तैयार नहीं है कि आखिर यह है क्या? दरअसल इसे देखने के दो पहलू हैं एक आर्थिक और दूसरा राजनैतिक। हमारे अर्थषास्त्री प्रधानमंत्री ने पहले भी भारत को आर्थिकरुप से सुद्रढ किया है जिसका जवर्दस्त असर भारतीय समाज के रहन सहन और हमारे आर्थिक विकास पर स्पष्ट दिख रहा है।हाथ कंगन केा आरसी क्या?…और अब फिर एक नई दिषा देकर उन्होंने देष की दषा बदलने का साहस किया है।साहस इसलिये कि एक तो केवल एक दल की सत्ता नहीं है,दूसरे विपक्ष को कुछ करना नहीं केवल ऋणात्मक हल्ला बोलना है जो बहुत आसान होता है। वस्तुतः बिना पूॅजी के देष में विकास कार्य आगे बढ़ नहीं सकते। देषी पूॅजी तो सीमित है अतःविदेषी पूॅजी आने से निष्चितरुप से ‘ग्रोथ’ बढ़ेगी और रुपया मजबूत होगा तो मॅंहगाई कम होगी जिसका लाभ आम आदमी को ही पहुॅंचेगा। इसलिये सरकार ने देष में आर्थिक सुधारों के तहत विदेषी निवेष बढ़ाने के लिये अन्य देषों की तरह , 51प्रतिषत मल्टीब्राण्ड रिटेल में,49प्रति.एयरलाइन्स में,74प्रति.सूचना प्रसारण में और 49प्रतिषत पाॅवर एकसचेंज में विदेषी कम्पनियों को भारत में कार्य करने की, कुछ षर्तों पर अनुमति दी है। क्योकि हमारे पास तो अपनी बुनियादी आवष्यकताओं की पूर्ति के लिये ही पर्याप्त धन नहीं है यथा सड़क, पानी, बिजली आादि.., तो एयर लाइन्स, पावर, तकनीकी सूचना आदि के लिये पूॅजी कहीं से तो लाना ही पड़ेगी या ऐसे ही वैष्वीकरण के,आर्थिक सुधार के वर्तमान युग में हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे? तो क्या सरकार के इस कदम पर, .निर्णय जनता को या देष के तटस्थ अर्थषास्त्रियों को विचार करने का अधिकार नहीं है कि सरकार का यह कदम उनके लिये हितकर है या अहितकर? पर राजनैतिक द्रष्टि से केवल वे विरोधी राजनैतिक दल कुछ ज्यादा हल्ला मचा रहे हैं जो अपनी सत्ता होने के दौरान इस कार्यक्रम को देष में लाना चाहते थे पर नहीं ला पाये थे।एक तरफ गुजरात में विदेषी पूॅजी लाने के लिये नरेन्द्र मोदी का सम्मान किया जा रहा है। बिहार में नीतीष विदेषी पूॅजी के लिये लालायित बैठे हैं क्योंकि बिना इसके इन्फ्रास्ट्क्चर खड़ा ही नहीं किया जा सकता। इसलिये विरोध के लिये विरोध केवल चंद विरोधी राजनीतिज्ञ ही कर रहे हैं या वे व्यवसायी जिनकी दलाली पर रोक लगेगी, या वे जो किराने में 50 से 70प्रतिषत तक अनियन्त्रित मुनाफाखोरी कर रहे हैं या जिन्होंने अपने यहाॅ पहले से ही विदेषी ऐसे ही षोरुम खोल रखे हैं पर चिल्लाने से नहीं चूकते कि एफ.डी.आई. से देष लुट जायेगा।अभी कल ही एक चैनल बता रहा था कि किस तरह 5रु किलो किसान को देकर 25रु किलो टमाटर उपभोक्ताओं को बिचैलियों द्वारा बेचे जाते हैं? वे जानते हैं कि एफ.डी.आइ.से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और दलालों की मनमानी नहीं चलेगी।एफ.डी.आइ. से किसानों को ने केवल एक किलो टमाटर का दस रु मिलेगा वरन् उपभोक्ता केा पन्द्रह रु किलो टमाटर मिलेगा, नुकसान होगा तो केवल दलालों को। अब इन्ही से पूॅछो कि भैया भोपाल,इन्दोर में विदेषी ‘वेस्ट प्राइज’ का करोंद वाला षोरुम कितने सालों से चल रहा है?उ.प्र. में वालमार्ट कयों ?अगर वह लूट रहा है तो पहले उसे निकालो न ? पर हिप्पोक्रेसी यही तो है कि करना कुछ और कहना कुछ और। कौन जानता था कि राम से लेकर गाॅंधी तक के इस देष में एक ऐसी लोकतांत्रिक मिली जुली सरकारी व्यवस्था आयेगी जब जनहित के कार्यों का निर्णय भी, बिना किसी बहस के भीड़तंत्र में मनमसोस कर लागू करने में सरकार को दाॅंतों पसीना आयेगा? इसीलिये इन दिनों यह चर्चा ही जोरों पर है कि खुदरा बिक्रेताओं को बेराजगार कर विदेषी व्यापारियों को अपना पैसा सीधे इस व्यवसाय में लगाने की अनुमति देना भारत सरकार का अत्यंत घातक कदम है ं? बिना जाने, केवल अपनी राजनीति चमकाने के लिये चिल्लपौं मची है। एफ.डी.आइ.,विपक्ष ने गत वर्ष स्थगित करा दिया था,षासन को झुका दिया था और दूसरी ओर यह आरोप लगने लगा था कि सरकार काम नहीं करती? ,इतने दिन संसद को नहीं चलने दी और अब वे डिवेट की माॅंग करते हैं।सरकार ने संसद चलने देने के लिये यदि कोई प्रकरण कभी स्थगित कर दिया तो विपक्ष अपनी जीत समझने लगा।पर प्रष्न यह है कि एफ.डी.आइ.पर एक तो बहस हो ही नहीं सकी। न ही कोयले पर संसद का उपयोग बहस के लिये हुआ। संसद बंद कर क्या विपक्ष ने एक अच्छे अवसर को देष से नहीं छीन लिया ? वे कैसे बिना बहस के कह सकते हैं कि कोयला में किसी एजेंसी का अनुमानित कथ्य, सही में घपला है?,एफ.डी.आइ.जन हित में नहीं है? अब एक तरफ भारत सरकार भारी धन व्यय कर बड़े बड़े विज्ञापन अखबारों में छपवाकर, किसान सम्मेलन कर एफ.डी.आइ.के लाभ गिनायेगी, बहसें आयोजित कर सत्य समझाने के प्रयास होंगे तो दूसरी ओर बाजार बंद कराये जायेंगे ,मुनाफाखोर व्यापारी दबाव बनाने को आमादा होंगे और अनेक विपक्षी दल संसद को नहीं चलने देकर बाहर यह बताने में अपनी पूरीऋणात्मक उर्जा लगायेगे कि ख्ुादरा क्षेत्र में विदेषी निवेष की अनुमति दी गई तो इस क्षेत्र में काम कर रहे करोड़ों लोग बेरोजगार हो जायेंगे,देष रसातल मंे चला जायेगा। जिस कार्य को, विरोधी कभी खुद सत्ता में रहते लागू कराना चाहते थे अब वही बाहर रह कर जनता विरोधी कह ,इसे हटाना चाह रहे हैं। विरोध विषय का नहीं ,षासन को एक अच्छे कार्य का श्रेय न मिल जाये इसका विरोध है या बदनाम कर षासन गिर जाये ?।हल्ले से ऐसे लग रहा है कि एक बार फिर ईस्ट इ्रण्डिया कम्पनी भारत में आकर हमें गुलाम बनाने बाली है। यह कटु सत्य है कि आज वैष्वीकरण और उदारबाद की आर्थिक सुधार की परिस्थितियों में बिना विदेषी निवेष के ,केवल आतरिक पॅूजी प्रवाह से हम विकास के उत्कृष्ट लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते। बेंक,इंष्योरेंस,टेलीकाॅम में पहले एफ.डी.आई आई थी,तब भी एसी आषंकायें बताई जा रहीं थीं पर उससे भारत के बेंक बेहतर ही हुये हैं ,आदि आदि। पर बहस अगर मुद्दों पर हो तो कुछ समझने की बात भी बने और तस्वीर साफ हो क्योंकि जिन देषों में यह अनुंमति दी गई है न तो वे गुलाम हुये हैं न लुट गए हैं। पर बहस हो कहाॅं ? संसद तो चलने नहीं दी जायेगी।जिदबाजी पर दोनों पक्ष अडे़ रहंेगे तो जनता केवल भावनात्मक रुप से भ्रमित होगी और देष को लाभ की बजाय क्षति अधिक होगी। क्योंकि देषी बनाम विदेषी का संवेदनात्मक मामला बनाकर लोग बिना एफ.डी.आई समझे विरोध करने के आदी हैं या फिर भले इसे मात्र 53 षहरों में पहले लागू करना हो,हाॅं है तो नीतिगत फैसला। दूसरी ओर विपक्षी बिना मनन किये तरह तरह के काल्पनिक आरोप लगाने लगे हैं।सरकार को अल्टीमेटम देकर झुकाना चाहते हैं।इतना ही नहीं षासन के सहयोगी एक दो घटक तक रंग बदल चुके हैं। हालाॅंकि अगर केन्द्र ने निर्णय कर ही लिया है तो प्रदेष सरकारें अपना हानि-लाभ विचार कर इसके कार्यान्वयन करने के लिये स्वतंत्र हैं इसलिये विरोध करने का तो कोई औचित्य ही नहीं रहा।केन्द्र किसी पर यह थोप नहीं रहा है। विकल्प आपके हाथों में है ,परेषान नहीं हों।इसलिये बिना विचारे अनाप षनाप वक्तव्य देना कहाॅं तक उचित है?पर विरोध मानें विरोध? एक मुख्यमंत्री जो अपनी मूर्ति स्वयं लगवाकर स्वंय को माला पहना कर, दलितों का कथित हित साधने में लगी रहीं और राहुल गाॅंधी के दौरों से बेहद परेषान थीं, ने तो यहाॅं तक कह दिया था कि विदेषी कम्पनियों के मालिक राहुल गाॅंधी के दोस्त हैं इसलिये उन्हें लाभ पहुॅंचाने के लिये केन्द्र सरकार यह कार्य कर रही है। जब कि अभी यही नहीं मालूम कि कितनी और कौन कम्पनियाॅं भारत में निवेष करेंगीं?एक और मुख्यमंत्री ने कहा कि अपने प्रदेष में वे विदेषियों को घुसने नहीं देंगे जब कि वही मुख्यमंत्री बहुत पहले ही अपनी राजधानी में विदेषी ‘षाॅपिंग माॅल’ खुलवा चुके है। एक पूर्व असफल मुख्य मंत्री ने घोषणा की थी कि यदि उक्त बालमार्ट का माॅल खुला तो वह स्वंय आग लगायेंगे।अब.बताइये इस माहौल में जनता कैसे वास्तविकता.समझे ? प्रथम द्रष्टया यह तो समझ में आता है कि खुदरा व्यवसाय में करोड़ों लोग रोजगार कर,अपनी रोजी रोटी चला रहे हैं। अब जब विदेषी कम्पनियाॅं यहाॅं उक्त कार्य करेंगी तो देषी व्यवसायी उनके सामने इसलिये नहीं टिक पायेंगे कि न तो विदेषियों की भाॅंति भारी पूॅजी लगाकर भारतीय छोटे व्यवसायी कच्चामाल या उत्पादों का संग्रहण अधिक दिनों के लिये खरीद कर रख सकेंगे,न बड़े बड़े विज्ञापनों का प्रदर्षन कर सकंेग,े न ही रंग विरंगी आकर्षक पैकिंग से नई पीढि़यों को आकर्षित कर पायेंगे,न ही विदेषी कन्याओं को उॅची तनख्वाहें देकर ग्राहकों को खींच सकेगे और न ही एकड़ों भूखण्डों में षानदार बिल्डिंगें बनाकर लिफ्टों में,स्वमेव सरकती सीढि़यों में, लेागों को आधुनिक गिफ्टें दे सकेंगे। यह भी सही है कि प्रारंभ में विदेषी माॅल सस्तें में ग्राहकों को सामग्री उपलब्ध करायेंगे,रिलायंष फ्रेष जैसे,.. और इनका अभ्यस्त होने पर अपना रंग दिखाना षुरु कर उपभोक्ताओं से अधिक लाभ लेना प्रारंभ करेंगे,किसानों की उपज का मनमाना रेट देंगे ही,क्योंकि एक तो वे यहाॅं लाभ कमाने के लिये भारी पूॅंजी लगा कर धंधा करने आ रहे हैं सेवा करने नहीं।दूसरे विज्ञापनों, पैकिगों, सैल्समेनों की उॅंची तनख्वाहों,माॅंल के लिये मंहंगी जमीनें खरीदने आदि आदि का पैसा निकालेंगे तो क्रेता की,यानी हमारी ही जेब से। फिर अनुमान है कि यही सामान हमें इतना मंहगा पड़ेगा कि जिसकी कल्पना आज नहीं की जा सकती यह भी सही है कि एक करोड़ों लोगों को नौकरियाॅं मिलेंगी पर चार करोड़ से अधिक उन छोटे दुकानदारों को बेरोजगार करके जेा न तो तकनीकी कुषल हैं और न बिना पूॅंजी के अकुषल होने के कारण, अन्य कोई कार्य कर सकते हैं।प्रभावितों की संख्या लगभग बीस करोड़ तक हो सकती है तब बेरोजगारी से इस देष का जो हाॅल होगा वह भी अकल्पनीय है। आखिर अमेरिका में बेरोजगारी 15प्रतिषत बढ़ने का एक कारण यह भी है कि वहाॅं विदेषी कम्पनियों को खुली छूट दी गई। तो हमें कुछ तो अन्य देषों से सीखना चाहिये।थाईलेण्ड में तो सुना है कि विदेषियों को निकालने तक का निर्णय लेना पड़ा।कमोवेष यही हाल अन्य देषों का हो रहा है।अब चूॅकि बराक ओबामा गत भारत यात्रा में कह गये थे कि जिन्हें हमने अपनी अर्थव्यवस्था खुली छोड़ी है वे बाजार हमें भी खुलना चाहिये तो क्या इसीलिये हम आधुनिक होने के लिये भारतीयों को बेरोजगारी की आग में झोंक दें ?षासन द्वारा समझाया जा रहा है कि कृषि एवं फलों की उपजों/ उत्पादों का बहुत भाग नष्ट होने या सड़ने से बचाया जा सकेगा। बिचैलिये समाप्त होंगे जिससे उपभोक्ता को लाभ होगा। नई तकनीक आयेगी। षीतग्रह बढ़ेंगे। प्रष्न केवल यही है तो क्या यह कार्य अपने देष के लोगों से नहीं कराया जा सकता?यह सही है कि 2009 की तुलना में हमारे यहाॅं विदेषी निवेष इन दिनों कम हुआ है।विदेषी कम्पनियाॅं हमारी सरकार को सैकड़ों करोड़ रु के निवेष का प्रलोभन दे रहीं हैं तो क्या यह निवेष बिना लघु व्यापारियों के बेराजगार किये बिना, अन्य तकनीकी क्षेत्रों में निवेष से नहीं किया जा सकता? भारत की प्राचीन परम्परा हाट बजारों की रही है उन्हें बीमार करके फिर बुनकरों आदि जैसा पेकेज देना पड़े या हमारे उत्पादों की जगह विदेषी उत्पाद यहाॅं भर जाये ंतो हमारे कुटीर उद्योगों का क्या होगा? एक बहुत पुराना उदाहरण हमारे पूर्वज सुनाया करते थे कि पहले भारतीयों में चाय पीने की आदत नहीं थी,तब अंग्रेजों ने मुफ्त में चाय पिला पिला कर हमें इसका आदी बनाया था। अब हम विष्व के सबसे बड़े चाय उपभोक्ता बन गये हैं। जिस चाय के पीने से स्वास्थ को हानि ही होती है,कोई फायदा नहीं, अब हम उसके बिना रह नहीं सकते और जिसके निर्यात से जो हमें भारी विदेषी मुद्रा मिलती,वह हानि तो हो ही रही वरन् अब वही चाय पाॅंचसौ रु किलो लेकर हमें पीनी पड़ रही है। यही स्थिति कोल्ड ड्ंिक्स की है।जब से दूध ब्राण्डेड हुआ है भले देषी लोगों ने किया हो तो न केवल मंहगा होता जा रहा है वरन् पालतू पषु के सारे लाभों से हम वंचित हो षुद्ध़,सस्ते और स्वास्थवर्धक दूध,दही,घी के लाले पड़ गये। कृषि और चमड़ा का कुटीर उद्योग सब ठप्प हो गया है।विज्ञापनों की चमक दमक ने हमें भौतिकवादी विकास के नाम पर, षहरीकरण ने गाॅंव निर्जन कर ,हमें पेट्ोल पर आश्रित कर कारों से स्टेटस बनाने का प्रदर्षनकारी बना ,तेल के देषों का गुलाम बना दिया है। इत्यादि… समय रहते हमें चेतना चाहिये।दरअसल भारत की पारम्परिक स्थितियाॅं अन्य देषों से निताॅंत भिन्न हैं। यहाॅं का सोच केवल अर्थ केन्द्रित न होकर परस्पर समभाव का है।इसलिये विकसित बनने के नाम पर , आधुनिक प्रतिस्पर्धा में हम पाष्चात्य की तरह दिवालिये बनने की ओर कहीं न मुड़ने लगें ?अपने पाॅंवों पर खुद कुल्हाड़ी न मारें? अतः सतर्क रहने की आष्यकता है।विदेषी निवेष अवष्य हो पर देषवासियों को बेरोजगार करने की षर्त पर नहीं।हम अपने सांस्कृतिक धरातल पर ही सबको साथ लेकर आगे बढ़ें और सषक्त बनें तो बेहतर होगा। हाॅलाकि हम इतने बड़े देष में अपने श्रोतों से सड़क,बिजली,पानी जैसी प्राथमिक समस्यायें ही पहले सुलझा लें तब अन्य मुद्दों पर विचार करें। इसलिये किसानों की जिन्सों को सुरक्षित,संरक्षित और विकसित,कोल्ड स्टोरेज,प्रोसेसंिग यूनिट डालने आादि एवं उपभोक्ता को सस्ते में सामग्री मिलने,विचैलिया हटाने के निये एफ.डी.आई. आवष्यक प्रतीत होता है।
कैलाष मड़बैया,वरिष्ठ साहित्यकार
75 चित्रगुप्त नगर,कोटरा,भोपाल-3 ,
9826015643
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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Posted on 02 October 2012 by admin
घरेलू हिंसा विरोधी अधिनियम 2005 के सन्दर्भ में एक दिवसीय राज्य स्तरीय संवाद्शाला का ऑक्सफेम इण्डिया (लखनऊ) द्वारा होटल गोमती में आयोजित किया गया! इस संवादशाला में एस. के मिश्रा (डी. सी. पी. ओ. महिला एवं बाल कल्याण निदेशालय), अरविन्द जैन (वरिष्ठ अधिवक्ता उच्चतम न्यायालय), रूपरेखा वर्मा (सामाजिक कार्यकत्री एवं पूर्व कुलपति ल वि वि),डॉ मंजू अग्रवाल (विभागाध्यक्ष मानविकी विभाग एमिटी विश्वविद्यालय एवं पूर्व निदेशक महिला समाख्या ऊ. प्र) तथा सीमा राना (जनवादी महिला समिति -AIDWA) मुख्य रूप शामिल थी! संवाद्शाला में महिला हिंसा मुद्दे पर प्रदेश में कार्यरत स्वैच्छिक संगठनों , अधिवक्ताओं,महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों ने भाग लिया और घरेलू हिंसा कानून को प्रभावी ढंग से लागू करवाने के लिये साझी रणनीति पर चर्चा की ! संवाद्शाला में प्रोटेक्शन आफिसर की नियुक्ति सपोर्ट सेंटर के स्थापना एवं कानून के व्यापक प्रचार प्रसार हेतु आवश्यक धनराशी उपलब्ध कराने के सरकार से मांग की गई! इस संवादशाला का संचालन ऑक्सफेम इण्डिया की प्रोग्राम ऑफिसर डॉ स्मृति सिंह द्वारा किया गया
इस संवादशाला के प्रथम सत्र में डी. सी. पी. ओ. महिला एवं बाल कल्याण निदेशालय श्री एस. के. मिश्रा ने कहा कि राज्य सरकार ने केंद्र सरकार के बजट आवंटन ७५:२५ के आधार पर बजट व प्रस्ताव भेजा जा चुका है जिसमे हर जिले में २ प्रोटेक्शन आफिसर व ३ सेवा प्रदाता का प्रावधान है डॉ. मंजू अग्रवाल ने कहा कि एक्ट बनाने में महत्वपूर्ण बात है कि महिला को उसी घर में क़ानूनी राहत है इसके साथ साथ परिवारों में सकारात्मक व्यवहार बनाने कि ज़रूरत है! ऑक्सफेम इण्डिया लखनऊ के क्षेत्रीय प्रबंधक नंदकिशोर सिंह ने कहा कि ऑक्सफेम इण्डिया के लिये जेंडर अति महत्वपूर्ण मुद्दा है इसके हर पहलुओ पर पर कार्य करने के लिये कटिबद्ध है ! ऑक्सफेम इण्डिया लखनऊ के कार्यक्रम समन्यवक फहरुख रहमान खान ने कहा कि इस कानून के सफल क्रियान्वन के लिये ज़रुरी है कि सरकार एवं स्वयंसेवी संस्थाओ के बीच समन्वयन हो ! ऑक्सफेम एवं आली के सहयोग से बनी विस्तृत स्टेटस रिपोर्ट २०१० का प्रस्तुतिकरण आली की रेनू ने करते हुए कहा कि रिपोर्ट कहती है कि अभी तक प्रोटेक्शन आफिसर नियुक्त नहीं किये गए है और नहीं सेवा प्रदाताओं कि सूची जारी की गई है!
इस संवाद्शाला के दूसरे सत्र में सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अरविन्द जैन ने कहा के बदलाव के लिये व्यापक रूप से काम करने कि ज़रूरत है हमें छात्र-छात्राओ के बीच भी इन बातो को ले जाना होगा! AIDWA की सीमा राना ने कहा कि हमें सरकार को विकल्प नहीं देना बल्कि उनकी जबाबदेही सुनिश्चित करानी होगी! सुश्री रूपरेखा वर्मा ने कहा कि हमें रणनीति में विशेष रूप से समय सीमा में निर्णय आये इसके लिये दबाव बनाना होगा
संवादशाला में उपस्थित सभी प्रतिनिधियों ने सरकार,मीडिया तथा स्वंय की ज़िम्मेदारी और रणनीति पर बात की और भविष्य में घरेलू महिला हिंसा पर व्यापक स्तर पर मिलजुल कर काम करना होगा जिससे समाज और सरकार पर इस बात का दबाव बने कि महिलाओ पर हो रही हिसा कि घटनाओ को गंभीरता से ले !
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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Posted on 02 October 2012 by admin
गांधी जी और शास्त्री जी के विचार और बातें आज के समय में भी उतने ही लाभदायक और सार्थक है जितने उनके समय में थे। इन दोनो महापुरुषों द्वारा बताई
गई बातों को अपने जीवन में ढ़ाल कर देश का भविष्य सुधारा जा सकता जैसे इन्होंने अपने समय में देश को सुधारा था। यह बातेगं भारतीय संवैधानिक पार्टी
के राष्टï्रीय अध्यक्ष सरदार जसपाल सिंह ने यहां कार्यालय पर आयोजित गांधी जी और शास्त्री जी की जयन्ती की पूर्व संघ्या पर आयोजित श्रद्घांजलि सभा में
कहीं। उन्होने कहा कि आज देश की स्थिति राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक रुप से उतनी मजबूत नहीं जितनी आजाद भारत की होनी चाहिए थी। उन्होने वहां उपस्थित लोगो से गांधी जी व शास्त्री जी के आर्दशों पर चल देश की उन्नति में भागीदार बनने की बात कहीं। इस श्रंद्घाजलि सभा में इन दोनो महापुरुषों के चित्रों पर माला डाल सभी ने अपने श्रद्घा सुमन अर्पित किये। इस श्रद्घांजलि सभा में महासचिव सुभाष सिंह, राष्ट्रीय सचिव रविन्द्र साही, प्रदेश अध्यक्ष व्यापार प्रकोष्ठ प्रवीण कुमार सिंह, प्रदेश उपाध्यक्ष व्यापार प्रकोष्ठ यू. के. कश्यप, अल्पसं यक प्रकोष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष यासीर जमाल सिददीकी, महिला प्रकोष्ठ अध्यक्ष गुडिय़ा सिंह, राष्टï्रीय सचिव कस्ट्रीना जॉन, जिला अध्यक्ष अजना सिंह, कानपुर महिला जिलाध्यक्ष गीता सिंह प्रदेश मीडिया प्रभारी सीमा सहित पार्टी के समस्त पदाधिकारी व कार्यकर्ता मौजूद थे।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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Posted on 29 September 2012 by admin
‘क्षमा’ जीवन का सहज सत्य
एक वास्तविकता है कि जहाॅं अन्य धर्मों के मनाते समय किसी न किसी इष्ट/ईष्वर की आराधना, धार्मिक उत्सवों में की जाती है संभवतः जैन धर्म का पर्युषण पर्व ही ऐसा दस दिवसीय धर्मोत्सव है जिसमें किसी भगवान की साधना नहीं,स्वर्ग की कामना नहीं, मानव में उत्तम मानव धर्म को जीवन में उतारने के लिये क्षमा,मार्दव,आर्जव,षौच, सत्य,संयम,तप,त्याग, आकिंचन्य,ब्रम्हचर्य, आदि आत्मा के दस लक्षणों/गुणों की साधना/आराधना की जाती है। कदाचित् इसीलिये इसे पर्व नहीं ,महापर्व कहा जाता है क्योंकि इसमें भोग नहीं लगाते, त्याग अपनाते हैं। क्षमा वाणी धर्म ,पर्युषण/ दषलक्षण पर्व, दस दिनों में दस ब्रतों की साधना के उपरान्त, समापन पर, दीर्घ काल से मनाये जाने की परमपरा है। विषेषतौर से श्रमण समाज या जैन समाज में ,क्षमापना अब एक पर्व का स्वरुप धारण कर चुका है। जैसे मुस्लिम समाज में रोजों़ के बाद ईद में परस्पर गले मिल कर मुबारकब़ाद देते हैं। या दषहरे के बाद रावण के निधन उपरान्त विजयपर्व मनाया जाता है ,या अंधेरे पर ज्योति की विजय उपरान्त दीवाली की षुभ कामनायें दी जातीं हैं।ऐसे ही दषलक्षण पर्व के समापन पर विकारों को जीत कर, परस्पर क्षमायाचना से मनोमालिन्य दूर कर यह मनाया जाता है। कहते हैं इन दसलक्षण ब्रतों की साधनाओें के आत्म विजय से ही प्रत्येक जीवात्मा परम आत्मा बनने की ओर अग्रसर होती है। श् दूसरे क्षमावाणी/दषलक्षण पर्व ठीक ठीक वैसे भी नहीं है कि उत्तम क्षमा कह दिया और हो गया। क्योंकि जहाॅं अन्य पर्वों में रुचिकर.पकवान ग्रहण कर मनाये जाते हैं,दषलक्षण पर्व–,उपवास/एकासन कर, पकवान के साथ कोई न कोई व्यसन /कषाय भी, त्याग कर मनाये जाते हैं। दरअसल क्षमावाणी, अंग्रेजी के ‘साॅरी’ या ‘एक्सक्यूज’ का अनुवाद भी नहीं है कि ‘दिल मिलें न मिलें हाथ मिलाते रहिये’-यह उत्तम क्षमा में नहीं चलता. यह अलग बात है कि स्वयं जैन समाज ने आज इस आत्म धर्म को इतना औपचारिक और बाजारु बना दिया है कि वे ही असलियत से बहुत दूर होते चले जा रहे हैं कि जिससे ‘वैज्ञानिक जन धर्म’को, उन्होंने जैनियों तक सीमित एक सम्प्रदाय बना दिया है। जन धर्म का प्रमाण यह है कि हिन्दुस्तान के हर प्रान्त के सुदूर अंचलों में प्राचीन जैन मंदिर हैं।भले वहाॅं अब जैन हों या नहीं। इतना ही नहीं पुरातत्वविद बताते हैं कि कहीं भी जमीन की खुदाई कीजिये एक न एक जैन मूर्ति अवष्य मिल जायेगी। हजारों साल पुराने जैन षास्त्र प्राचीन मंदिरों में धूल भले खा रहे हों पर प्रचुर मात्रा में षोधपरक जैन साहित्य यत्र तत्र सर्वत्र विद्यमान है जो यह दर्षाने के लिये पर्याप्त है कि विज्ञान की कसौटी पर आज भी खरा उतरने वाला जैनधर्म कभी इस देष में जन जन का धर्म अवष्य रहा होगा।वैदिक संस्कृति में वेद सबसे प्राचीन माने जाते हैं पर प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव का ़ऋग्वेद में ससम्मान उल्लेख मिलता है-देखें ऋचा /10/ 102/ 6 जो यह सि़द्ध करता है कि वेदों के पूर्व भी जैन तीर्थंकर रहे हैं।तभी न पं.जवाहर लाल नेहरु ने ‘डिस्कवरी आॅफ इण्डिया’में जैनधर्म को भारत के सबसे प्राचीन धर्माे में एक कहा है। डाॅ.राधाकष्णन ने अपनी पुस्तक ‘इण्डियन फिलास्फी’के पृष्ठ 287 पर लिखा है कि ईसा पूर्व प्रथम षताब्दी तक लोग तीर्थंकर ऋषभदेव की पूजन किया करते थे ,आदि.।कहने का आषय यह कि जैनधर्म ने ही इस महादेष में अहिंसा की नींव रखी और‘जियो और जीने दो’ का बहुमूल्य मंत्र दिया। अवतारबाद से हटकर कर्म से महान बनने का मार्ग प्रषस्त किया इत्यादि,तो दषलक्षणपर्व के बाद क्षमावाणी पर्व हम उसी गहरी पृष्ठभूमि में समझें कि क्षमावाणी मात्र षिष्टाचार नहीं अपितु आत्मा का मौलिक धर्म है जो तभी अंतस में गहराई से उतर सकता है जब किसी प्राणी ने धर्म के दष ब्रत-क्षमा,मार्दव,आर्जव, षौच,सत्य,संयम,तप, त्याग, अकिंचन,ब्रह्मचर्य का पालन किया हो, इतना ही नहीं वरन् अपनी आत्मा में इन्हें गहरे उतार लिया हो,तभी क्षमाब्रत को धारण करने की क्षमता आ सकती है,विषेषतौर से उत्तमक्षमा मनाने की। केवल रंगविरंगे कार्ड छपाकर अपना ऐष्वर्य दिखाते हुये क्षमा लिखने से नहीं, उत्सव मनाकर भी नहीं,औपचारिकता पूर्ण करने से नहीं ,मित्रों या रिष्तेदारों से क्षमा कहने से बाहरी क्षमा का प्रदर्षन भले हो जाये पर अंतरंग क्षमा का भाव तो नहीं आ सकता। इसीलिये हम देखते हैं कि क्षमा अपने दुष्मनों से माॅगने कोई नहीं जाता। उन अपनों से क्षमा माॅंगने का फिर भला क्या औचित्य जिनके प्रति कोई गल्ती कभी की ही नहीं?दरअसल यह वाणी तक सीमित रखने की चीज है भी नहीं वरन् कषाय रहित सरल हृदय की भावनाओं से ओतप्रोत एक ऐसी आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसके बाद कोई न अपराधी रहता है न दुष्मन। यह मनुष्योंश्तक भी सीमित नहीं वरन् प्राणी मात्र का धर्म है- खम्ममि सव्व जीवाणामं, सव्वे जीवा खमन्तु मे । मित्ती में सव्वभूएसु ,वैरं मंज्झं ण केण वि ।
अर्थात् मैं सब जीवों को क्षमा करता हॅूं और सभी जीव मुझे क्षमा करें। जगत में सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्री भाव है और मेरा किसी से भी बैर भाव नहीं है। अब प्रायः कोई यह कहते नहीं देखा जाता कि मैं सभी को क्षमा करता हॅॅॅॅॅॅू। इसके कहने का आषय यह है कि अब कोई मेरा दुष्मन नहीं रहा। अगर यह गले उतर जाये तो फिर जिससे आपकी दुष्मनी है उसके घर जाकर विनयपूर्वक हाथ जोड़ कर क्षमा माॅंगने में किंचित भी संकोच नहीं रहेगा।क्या यह वीरता आप में वास्तव में है? तभी क्षमा वीरस्य भूषणम् सार्थक होगा। सच्ची वीरता पर को जीतने से नहीं अपने अन्तः को जीतने से आती है। एक पौराणिक गाथा में मिलता है कि किसी संत ने अपने दुष्मन को उसके अपराध के लिये सौ बार क्षमा किया पर जब एक सौ एक वीं बार दुष्मन ने आक्रमण किया तो संत ने
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अपने दुष्मन का बध कर दिया। तब कथित संत ने कहा कि यदि 101वीं बार भी वह अपने दुष्मन को सह लेता तो यह उसकी कायरता होती क्योंकि क्षमा वीरस्य भूषणम्।….क्षमा तो वीर ही धारण करते हैं,कायर नहीं। क्या यह वीरता ,वीरता कही जायेगी ??….नहीं,क्योंकि यदि संत ने अंतस से क्षमा कर दिया होता तो 101वीं बार क्या, कितनी भी बार दुष्मन आक्रमण करता, संत उसे पलटकर मार ही नहीं सकता था।दरअसल क्षमा धर्म में बाहरी दुष्मन मारने को वीरों का भूषण नही अंतरंग कषायों को मारना वीरों का भूषण कहा जाता है। क्रोध विभाव है और क्षमा आत्मा का सहज स्वभाव होता है।क्रोध का अभाव ही उत्तम क्षमा है।दषलक्षण पूजन में क्षमा/बैर के बारे में कहा गया है-
‘‘….गाली सुन मन खेद न आनौ,गुन कौ औगुन कहै बखानौ कहि है बखानौ वस्तु छीनें, बाॅंध कर बहुविधि करै घर सें निकारै तन विदारै ,बैर जो न तहाॅं धरै ।….’’
अर्थात् आपको कोई गाली दे तो मन में खेद नहीं लाओ,तुम्हारे गुणों को वह अवगुण बताये और तुम्हारा सर्वस्य भी छीन ले तो भी क्षमा करो। इतना ही नहीं वह तुम्हें बाॅंध कर बहुप्रकार पीड़ा भी पहुॅचाये। इससे भी आगे तुम्हारे अंग भंग करदे और उसके बाद तुम्हारे घर से भी तुम्हें निकाल दे तो भी तुम उसके प्रति क्षमा भाव बनाये रखो,मन में खेद नहीं उपजने दो तभी ‘बैर नहीं’ मानना हेागा और आप उत्तम क्षमा का धर्म धारण करने के अधिकारी होंगे। एक और बात यह कि क्षमा धर्म व्यक्तिगत/निजी धर्म है,दो प्राणियों की सम्मिलित क्रिया नहीं।स्वाधीन क्रिया है। इसमें पर की स्वीकृति आवष्यक नहीं। अर्थात् आप कहें कि पहले सामने बाला क्षमा माॅंगे या मैं क्षमा माॅंगू तो क्या वह क्षमा कर देगा? दरअसल सामने बाला क्या करेगा वह वो जानें आपने क्षमा धर्म धारण कर लिया तो आप अपना काम करें। जमाने की चिंता नहीं। विकल्प को उत्तमक्षमा धर्म में कोई जगह नहीं है। दूसरे ,व्यक्ति को क्षमावाणी पर स्वंय से भी क्षमा माॅंगना चाहिये। क्योंकि हम निरंतर अपनी आत्मा के साथ गल्तियाॅं करते हैं। आत्मा को दबा कर कितने काम करते हैं।पीड़ा पहॅुचाते हैं इसलिये अब अपनी आत्मा के साथ अन्याय नहीं करेंगे-ऐसे समता भाव भी अपने मन में लाना चाहिये।‘अज्ञेय’ ने एक कविता में कहा है- साॅप तुम वस्ती में रहे नहीं, गाॅंवों में बसे नहीं, एक बात पूॅछूॅ इतना जहर कहाॅं से आया? मतलब आदमी में स्थित जहर यानी विकार ज्यादा घातक होता है जिसका निदान आवष्यक है जो आत्म आकलन के बाद आत्म तप से ही संभव है। यह भी कि जिन गल्तियों के लिये क्षमा माॅंगी है उनकी पुनरावृत्ति नहीं होना चाहिये अन्यथा यह‘गज-स्नान’जैसा होगा कि तालाब में डूब कर नहाये और बाहर निकलकर सूॅड से सड़क पर एक फूॅक मारी और फिर धूल धूसरित। इस पर्व पर प्रकृति से भी हमें क्षमा माॅंगना चाहिये जिसके प्रति हम अपने विकारों से प्रदूषण फैलाते हैं जिससे संतुलन बिगड़ रहा है।पेड़-पौधों को तोड़ना ,जैनधर्म में आदि से ही हिंसा माना गया है। वैज्ञानिक जगदीष चंद बसु ने तो बहुत बाद में वनस्पति में प्राणों की उपस्थिति बताई। जैन धर्म तो आदि से, वनस्पति में जीव की उपस्थिति मानता आ रहा है।पानी का अपव्यय नहीं करें,संचित करें। अतः सम्पूर्ण
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प्राकृतिक पर्यावरण के प्रति मनुष्य को उत्तरदायी होना चाहिये- दषकूपसमो वापी,कषवापिसमो हृदः। दषहृदसमो पुत्रः,दषपुत्रसमो द्रुमः ।। जैन साहित्य में अनेकों ऐसे उदाहरण हैं जब उत्तमक्षमा के जीवंत दर्षन हुये है। यथा पाष्र्वनाथ पर कमठ का उपसर्ग व धरणेन्द्र द्वारा उपसर्ग निवारण। कभी राजा श्रेणिक ने एक तपस्यारत जैन मुनि के गले में मरा हुआ साॅंप उनको परेषान या परीक्षा के लिये डाल दिया था,उनकी रानी चेलना ने जब सुना तो दुःखी होकर मुनि सेवा में गईं और साॅंप को गले से बाहर निकाला। मुनिवर ने ध्यान स,ेजब आॅंखें खेालीं तो रानी चेलना व राजा श्रेणिक को समान भाव से आषीर्वाद दिया। मुनिवर के मन में राजा के प्रति कोई क्षोभ नहीं था।ं यह है उत्तम क्षमा। आधुनिक युग में महात्मा गाॅंधी ने ऐसी ही अहिंसा और क्षमा का उदाहरण राजनीति में प्रस्तुत किया। यह केवल गाॅंधी ही कह सकते थे कि कोई तुम्हारे बाॅंयें गाल पर चाॅंटा मारे तो दाॅंया गाल भी उसके सामने कर दो। इसीलिये षायद दुनिया में एक मात्र उदाहरण है कि दक्षिण अफ्रीका ने 105 वर्ष बाद 1999 में वहाॅं की वैधानिक संस्था ने मोहनदास करम चंद गाॅंधी से अपनी तत्कालीन गल्तियों के लिये भारत से क्षमा माॅंगी थी। आग कभी आग से नहीं बुझती।खून के दाग खून से साफ नहीं होते।नफरत से नहीं प्रेम से षाॅति आ सकती है।दुनिया को यदि वास्तव में रहने लायक बनाना है तो उत्तम क्षमा का धर्म ही मानवता के लिये एक मात्र विकल्प है।
कैलाष मड़बैया, 75 चित्रगुप्त नगर,कोटरा, भोपाल 462003 ,मोबा. 09826015643
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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