परमात्मा को पाना आसान है परन्तु इंसान बनना मुश्किल है
आध्यात्म से जुड़कर ही मानवता में असली निखार आता है। सांसारिक प्राणी आध्यात्मिकता से जुड़कर ही सच्चा इंसान बनने की दिशा में अग्रसर होता है। भौतिकता लोगों की मानसिकता में शुद्धता के विचार नहीं आने देती। जबकि आध्यात्मिकता से जुड़कर हर प्राणी मानवता के लिए ही समर्पित होता है। भौतिकता से घबराकर आज बहुत से लोगों ने स्वयं ही सतगुरु के पास जाने हेतु कदम उठाया है। समाज बदलता है परन्तु अकेले एक व्यक्ति के करने से कुछ नहीं होगा। यह सभी का अनुभव है कि कानून बनाने से असली परिवर्तन नहीं हो पाता है। असली परिवर्तन के लिए समाज के मनोभाव और चिन्तन को बदलना जरूरी है। यह बातें माँ जसजीत जी ने आज मानव कल्याण आश्रम, बन्थरा में आयोजित पत्रकारवार्ता में कही।
उन्होंने आगे बताया कि 01 जनवरी को सरोजनी नगर यू.पी. सहकारी समिति ग्राउण्ड (सैनिक स्कूल के सामने) कानपुर रोड, लखनऊ में प्रकाशोत्सव दिवस मनाया जाएगा क्योंकि इसी दिन वर्ष 1993 में उन्हें ईश्वर से साक्षात्कार हुआ था और यह हुक्म हुआ था कि लोगों को आशीर्वाद देकर उनकी तकलीफें दूर कर मानवता की सेवा करें। हम लोगों के कष्टों के बारे में ं भगवान से प्रार्थना करते हैं और यह प्रार्थना स्वीकार की जाती है। उन्होंने कहा कि वह जहां भी जाती हैं, जीवन जीने की सही कला और दिशा देने का प्रयत्न करती हैं।
माँ जसजीत जी ने बताया कि इस बार 01 जनवरी को 18वें प्रकाशोत्सव में एक विशेष प्रवचन होगा। इस बार के प्रवचन में चिन्ता विषय पर विशेष व्याख्यान दिया जाएगा। माँ की ओर से सभी भक्तों को शुभकामनाएं दी जाएंगी। सतगुरु की वाणी की सत्यता क्या है, समय की कीमत और महत्ता का अनुभव उपस्थित जनसमुदाय स्वंय करेगा। प्रकाशोत्सव में आने के बाद भौतिक जीवन के नकारात्मक पक्षों के साथ जीना कितना मुश्किल है, इसका अंदाजा भी लोगों को होगा। हम सतगुरु के पास इसलिए जाते हैं क्योंकि इससे हमें ऊर्जा मिलती है। हम दीक्षा नहीं देते हैं। इस पर हमारा अधिकार नहीं है। हम तो केवल शिक्षा दे सकते हैं।
आश्रम में प्रत्येक मंगलवार और गुरुवार को हम भक्तों से मिलते हैं। पूरे भारत से लोग शारीरिक, पारिवारिक, मानसिक तथा आर्थिक समस्याओं के निराकरण के लिए यहां आते हैं। प्रत्येक सोमवार को माँ की बगिया में प्रवचन तथा शुक्रवार को विशेष ध्यान का आयोजन किया जाता है। आश्रम सामाजिक गतिविधियों में भी अपनी भूमिका निभाता है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि बुरे ख्याल में डूबे लोगों अथवा नकारात्मक कार्यों में लगे लोगों को अपने समान के लोगों से डर नहीं लगता बल्कि उन्हें सच्चे लोगों से/सतगुरु से या अध्यात्म मार्ग पर चलने वाले लोगों से डर लगता है। कायनात ने सृष्टि संचालन के नियम बनाए हैं, जिसके लिए लोगों को सच्चाई, ईमानदारी, मिलनसारिता से रहना चाहिए और सत्याचरण लोगों के विचार, वाणी और आचरण में भी दिखना चाहिए। धोखा, छल, प्रपंच करने का प्रतिफल ही लोगों को कष्ट के रूप में प्राप्त होता है। आज इंसान अपने कर्मों से भटक गया है। शाॅर्टकट रास्ता ज्यादा आसान लगता है। आज के लोग सच सुनना ही नहीं चाहते हैं।
उन्होंने बताया कि लोगों को सत्य मार्ग दिखाने के लिए ही आश्रम द्वारा साल में 05 उत्सव, 01 जनवरी को प्रकाश पर्व, 10 अप्रैल को एकता दिवस, गुरु पूर्णिमा पर्व, दिव्य दृष्टि समारोह तथा संकल्प दिवस का आयोजन किया जाता है।
उनकी पृष्ठभूमि के बारे में किए गए सवाल पर उन्होंने कहा कि बचपन से ही हमें सच्ची बातें अच्छी लगती थी। हमने हर शिक्षा को जीवन में स्वीकार किया है तथा उसे आचरण में उतारने का कार्य किया है। प्राइमरी स्कूल में पहली बार जब गए तब शिक्षक ने गांधी जी के तीन बंदर दिखाकर कहा था कि बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलों, बुरा मत देखो। यह बात घर कर गई और ताजीवन हमें ईश्वर और सत्य के प्रति आग्रही बनाती आ रही है। उन्होंने कहा कि ससुराल में जब पहली बार गुरुद्वारे बहु को ले जाने की परम्परा के अनुसार उन्हें वहां ले जाया गया तो गुरु ग्रन्थ साहब से यही प्रकाश मिला कि संसार कीचड़ है, यहां आपको कमल बनकर खिलना है। हमें सांसारिक चीज़ों की जगह भगवान से डरना चाहिए। परमात्मा को पाना आसान है, मगर इंसान बनना उतना ही मुश्किल है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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