Posted on 16 April 2010 by admin
राजमिस्त्री व मजदूर समर्थन मे करेंगे काम बन्द
• काम चोर व लापरवाह कर्मचारियों को पहनायेंगी महिलायें चूड़िया
सुल्तानपुर 16 अपै्रल। हिन्दू मूस्लिम एकता सेवा समिति की महिला साखा आज तहसील से पात्रों का आय, जाति, निवास प्रमाण पत्र न बनने तथा जिला नगरीय अभिकरण “डूडा,, के द्वारा गरीबों की अपेक्षा तथा चयन में चहेतो को आवास का वितरण करने के विरोध में हिन्दू मुस्लिम एकता सेवा समिति की महिला शाखा, गरीब कामगार महिलाओं के द्वार तिकोनिया पार्क में प्रर्दशन किया जायेगा। महिलाओं की टोली डूडा व तहसील में डेरा डालेगी।
महिलाओं के इस प्रर्दशन को मजदूरो ंव राजगीरेा का पूरा समर्थन मिल रहा है।
कामगार महिलाओं की इस लडाई में मजदूर व राजगीर आज काम पर नही जायेगे। उक्त आश्य की जानकारी जिलाध्यक्ष इसरार हुसैन ने दी।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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Posted on 16 April 2010 by admin
लूट खसोट वसूली का नाम है आंगनबाड़ी केन्द्र
दूबेपुर आगंनबाड़ी कार्य कत्रियों की मिटिंग परियोजना कार्यालय पर न होकर सीडीपीओ आवास पर
बाल विकास परियोजना यानी छोटे बच्चों के शारीरिक मानसिक विकास और शैक्षिक विकास के लिए सरकार करोड़ो खर्च कर प्रदेश में उन नौ निहालो को योग्य बनाने में प्रारिम्भक प्रिशक्षण परन्तु ये दूबेपुर परियोजना पर नही होता दूबेपुर बाल विकास परियोजना अधिकारी मुख्य सेविका से परमोट होकर इस पद पर पहुंची है, सीडीपीओ ने अपनी नौकरी का अधिक समय मुख्य सेविका के पद पर रहकर कार्य करने के कारण आज सीडीपिओ के पद पर आसीन होने का बाद भी कार्य शैली मुख्य सेविका की तरह नही है। सायद यही कारण है कि बाल विकास परियोजना अधिकारी दूबेपुर कार्य कम सीडीपीओ के आव भाव में फोकस बनाने में अधिक खर्च करती है, आज दूबेपुर परियेाजना के 182 केन्द्रो का ओ हाल है जो जनपद के किसी परियेाजना का नही र्षोर्षो फिर भी परियोजना के सम्बन्ध में बात करने पर लच्छे दार बात करके तथ्यो को भटकाने के अलाव सही जबाब न देना आदत है, 182 केन्द्रों मे लगभग 40 केन्द्रो पर पत्रकारों की टीम पहुंची, स्थिती देख कर यही लग रहा था कि कि परियोजना का संंचालन बाल विकास अधिकारी न चलाकर कोई मुख्य सेविका चला रही है, तथा जिला अधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी, मुख्य राजस्व अधिकारी व जिला कार्यक्रम अधिकारी को दूबेपुर परियोना में हो रही लापरवाही केा सज्ञांन में लेकर एक जांच टीम न्यूक्त कर चलने दूबेपुर परियोजना में चलने वाल 182 केन्द्रो तथा सी0डी0पी0ओ0 के कार्य शैली की जांच होनी चाहिए, वर्ना यदि दूबेपुर की ं लापरवाही कही अन्य परियेाजना पर वायरस की तरह लग गया तो जनपद से बाल विकास परियेाजना का जो सन्देश प्रदेश को जायेगा, उससे प्रदेश सरकार को छवि धूमिल होगी। और आने वाले निकाय चुनाव में इसका खामियाजा प्रदेश सरकार को उठाना पड़ेगा।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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Posted on 16 April 2010 by admin
1975 की क्रान्ति प्रशासन को याद दिलवा दूंगा 19 अपै्रल को असरोगा में होगा राश्ट्रीय राज्य मार्ग जाम निकाय चुनाव की सुगबुगाहट को भांपते हुए नेताओ ने तेवर मे गर्मी पैदा करते हुए मीड़िया के माध्यम से जनता में जाने की शुरूआत कर दी है। किसी समय वगावती तेवर अपनाते हुए विधान सभा का चुनाव तक लड़ने वाले नेता अबरार अहमद खां ने एक बार फिर जनता की समस्याओं को लेकर प्रशासन से हाथ करने का मन बना दिया है, जिसकी सही शुरूआत 19 अपै्रल को लखनउ वाराणासी राश्टीय राज्य मार्ग जाम कर करेंगें। आज शहर के एक होटल में पत्रकारो से वार्ता करते हुए कहा कि कुड़वार विकास खण्ड के असरोगा फीड़र पर मात्र 4 से 6 धण्टे बिजली दी जा रही है, जिससे जनता पीड़ित है। इसी के साथ अपात्रों को बीपीएल कार्ड पकड़ा दिया गया है, जबकि पात्र व्यक्ति इस लाभ से वंचित है। गरीबो को न तो खाद्यान मिल रहा है और न ही आवास मिल रहा है। श्री खंा ने कहा कि सर्व वितरण प्रणाली फेल हो गई है। जिलाध्यक्ष राश्टीय लोकदल अबरार अहमद खां ने कहा कि गरीबों को चावल, चीनाी, गेहूं , मिट्टी का तेल विलकुल नही मिल पा रहा है। इन तमाम समस्याओ को लेकर यह आन्दोलन छेड़ा जायेगा। शासन और प्रशासन को 1975 की क्रान्ति याद दिला दूगांर्षोर्षो राश्टीय लोकदल के अध्यक्ष श्री खां ने कहा कि बगावत की चिंगारी हर घर से निकलेगी।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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Posted on 16 April 2010 by admin
पत्रकारों के अधिकारों की लड़ाई लडने वाली सुल्तानपुर जर्नलिस्ट एशोसिएशन आगामी 30 मई को पत्रकारिता दिवस के मौके पर प्रेस क्लब में पत्रकारो के सम्मेलन तथा जनपद के गौरवमयी इतिहास व देश की महान विभूतियों के जीवन परिचय त्याग व बलिदान पर एक पत्रिका का विमोचन भी किया जायेगा। उक्त जानकारी एशोसिएशन के अध्यक्ष डा0 अवधेश शुक्ला ने दी।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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Posted on 16 April 2010 by admin
सपा नेता पूर्व विधायक सफदर रजा के साथ भाई गांव में पार्टी कार्यकर्ताओं व गणमान्य बुद्विजीवियों तथा क्षेत्रीय जनता द्वारा पूर्व एम0एल0सी0 शैलेन्द्र प्रताप सिंह का नागरिक अभिनन्दन एंव स्वागत किया गया तथा क्षेत्र के विकास के लिए पन्द्रह सूत्रीय एक मांग पत्र सदर विधायक अनूप सण्डंा की अनुपस्थिति में सपा के जिलाध्यक्ष रघुवीर को प्रस्तुत किया गया।
अपने सम्बोधन में श्री रजा ने कहा कि 18 साल तक एम0एल0सी0 के पद पर रहते हुए जिस तरह सादा जीवन उच्च विचार की मिसाल शैलेन्द्र प्रताप सिंह ने पेश की, उससे नेताओं को िशक्षा लेने की जरूरत है। श्री र्जा ने कहा कि आम लोंगो की सेवा मे ंहमेशा तत्पर रहने वाले श्री सिंह पर चरित्र हीनता एवं भ्रश्टाचार का कोई आरोप नही लगा, जिसकी भूरि-भूरि प्रशन्सा होनी चाहिए। उन्होनें सभा में श्री रधुबीर यादव सपा जिलाध्यक्ष का स्वागत करते हुए पार्टी को मजबूत करने में उनके प्रयासों की सराहना की
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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Posted on 16 April 2010 by admin
नई दिल्ली, शुक्रवार, 16 अप्रैल, 2010
देश भर के 13 स्कूली बच्चों को बाल भारती निबंध प्रतियोगिता-2009 के पुरस्कार दिए गए। प्रथम पुरस्कार के लिए दिल्ली की संस्कृति रावत, दूसरे पुरस्कार के लिए वर्धा, महाराष्ट्र के ओम कन्हैया बजाज और तीसरे पुरस्कार के लिए जोधपुर, राजस्थान की निधि शुक्ला के निबंध को चुना गया। इस मौके पर अन्य 10 को सांत्वना पुरस्कार भी दिए गए। तेरह विजेता बच्चों में से दस दिल्ली से बाहर के हैं। इनमें वर्धा, जोधपुर, नरसिंहपुर (म.प्र.), बड़वानी (म.प्र.), जयपुर, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड), सिरसा (हरियाणा), कानपुर (उ.प्र.), हैदराबाद (आ.प्र.), जमशेदपुर (झारखंड) जैसे दूर शहरों के प्रतियोगी शामिल हैं। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि तमन्ना फाउंडेशन की अध्यक्ष और शिक्षाविद श्रीमती श्यामा चोना ने विजेताओं को पुरस्कार बांटे।
वर्ष 2006 से हर वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित हो रही इस प्रतियोगिता में इस बार करीब एक हजार बच्चों ने भाग लिया। इस प्रतयोगता में ‘टीवी कार्यक्रमों में बच्चों की भूमिका- उचित या अनुचित’ विषय पर देश भर के छात्रों ने अपने रचनात्मक निबंध भेजे। उनका मूल्यांकन चयन समिति ने किया।
इस मौके पर गणित जैसे विषय पर हिंदी में रोचक पुस्तकें लिखने वाले श्री आइवर यूशिएल की पुस्तक ‘खेल है गणित’ का विमोचन भी किया गया। बाल मनोविज्ञान को समझते हुए बच्चों के लिए गणित को रोचक बनाने के तरीके इस पुस्तक में हैं। लेखक ने अनेक कठिन लगने वाले प्रश्नों के हल ढूंढने की तरकीबें भी पुस्तक में बताई हैं जो न केवल रोचक हैं बल्कि खेल-खेल में बच्चों के मन से गणित का डर दूर करती है।
पिछले 62 वर्षों से लगातार प्रकाशित हो रही बाल भारती सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत प्रकाशन विभाग की एक उत्कृष्ट मासिक पत्रिका है। मनोरंजक और ज्ञानवर्धक होने के साथ ही यह बच्चों और किशोरों की प्रतिभा के विकास के लिए रचनात्मक अभियान भी चलाती रही है। वार्षिक निबंध और चित्रकला प्रतयोगिताएं और दूसरी गतिविधियां इसी अभियान का हिस्सा हैं जो बच्चों को राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भागीदारी की प्रेरणा देती हैं। इसमें पाठकों को सक्रिय रूप से शामिल करने की कोशिश लगातार जारी है। बदलते समय के साथ पत्रिका का कलेवर, प्रस्तुतीकरण बदला है। फिर भी पत्रिका की कीमत सिर्फ आठ रुपए है। संभवतः देश की सबसे पुरानी हिंदी की लोकप्रिय बाल पत्रिका बाल भारती की प्रसार संख्या डेढ़ लाख से ज्यादा है।
कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत प्रकाशन विभाग की अपर महानिदेशक श्रीमती वीना जैन ने किया। हर वर्ग और और भाषा-भाषी के लिए किफायती दरों पर पठनीय सामग्री उपलब्ध कराने के उद्देश्य के साथ प्रकाशन विभाग हर माह 13 भारतीय भाषाओं में राष्ट्रीय विकास को दर्शाती ‘योजना’ पत्रिका छापता है। इसके अलावा विभाग हिंदी और अंग्रेजी में ग्रामीण विकास की पत्रिका ‘कुरुक्षेत्र’, तथा हिंदी, और उर्दू में साहित्यिक पत्रिका ‘आजकल’ का प्रकाशन भी करता है।
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Vikas Sharma
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Posted on 16 April 2010 by admin
शिरीष खरे
वैसे तो देश के असंख्य सुभागलालों का सपना सच नहीं होता है। मगर घोरवाल के सुभागलाल का सपना सच हो गया। उसके गांव के सारे बच्चे अब स्कूल जाते हैं। जब वह छोटा था तब ऐसा कतई नहीं था।
ग्राम घोरवाल, उत्तरप्रदेश के सोनभद्र जिले में हैं, जहां बेहतरीन कलीनों को बनाने का काम चलता है। यहां के सुभागलाल जब बच्चे थे तो अपने जैसे बहुत सारे आदिवासी बच्चों की तरह बुनाई के फंदो में उलझे थे। उन दिनों सुभागलाल अपने बचपन को बहुत सस्ते दामों में बेचते थे। गरीबी के चलते, उनके जैसे बहुत सारे बच्चे मानो अपने पिताओं का कर्ज चुकाने के लिए पैदा हुए हो। कारखानों में स्थाई भाव से काम करते रहना मानो उनकी नियति में हो। बकौल सुभागलाल तब से अब में अंतर है, अब इसी घोरवाल में पहली से पांचवीं तक के 98 बच्चे हैं, सारे के सारे स्कूल जाते हैं। यही बच्चे आसपास के 12 गांवों के प्राथमिक स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था को भी तंदुरूस्त बनाए रखना चाहते हैं।
सुभागलाल ग्रेजुएट हैं और घोरवाल गांव के प्रधान भी चुने गए हैं। इलाके में पहली बार ऐसा हुआ है कि जो कभी बंधुआ मजदूर था, वो आज ग्रामप्रधान है। यकीकन बंधुआ मजदूर से (वाया ग्रेजुएशन) ग्रामप्रधान बनने तक की उनकी यह कहानी अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है। मगर उससे भी महत्वपूर्ण उनका वह सपना है, जो सच में बदल गया है।
सुभागलाल ने आज अपने आसपास के 12 गांवों के बच्चों को इकट्ठा करके इतना ताकतवर बना दिया है कि यहां के बच्चे जब-तब अपने हकों के लिए इकट्ठा होते हैं, आपस में बतियाते हैं और कई सवाल खड़े किया करते हैं। यह स्लेट, कापी, पेन, पट्टी, ब्लेकबोर्ड, साईकिल, होमवर्क से लेकर मास्टर साहब की छोटी-बड़ी बातों का पूरा ख्याल रखते हैं। यह हिन्दी और अंग्रेजी भी पढ़ते हैं और अपने-अपने, अलग-अलग सपनों का पीछा भी किया करते हैं।
जैसे कि यहां की उर्मिला कुमारी जब आठवीं की ओपेन स्कूल परीक्षा में बैठी तो उसकी बड़ी उम्र उसके सामने बड़ी बाधा थी। उसके लिए पास होना एक चमत्कार जैसा था। मगर उर्मिला ने यह चमत्कार कर दिखाया है। ग्यारह साल पहले, उर्मिला भी और लड़कियों के तरह कालीन कारखाने को जाती थी। तब उसकी बंधी बंधाई जिंदगी के आगे भी अगर आशा की जरा सी भी लौ बची थी तो वह उसकी पढ़ाई में ही थी। आज यह अपनी भलाई के बहुत सारे अध्याय खुलके पढ़ती है। एक गरीब घर की बेटी अपने खुले-खुले से दिनों के पीछे अपनी, माता-पिता और बाल कल्याण समिति की मेहनत को खास बताती है। असल में यह खासियत सालों की लगन, धीरज, दिलचस्पी और जूनून का मिलाजुला असर है।
बाल कल्याण समिति, क्राई के सहयोग से स्थानीय स्तर पर संचालित एक गैर-सरकारी संस्था है। यह संस्था कालीन कारखानों में काम करने वाले बच्चों की पहचान करती है, उनकी मजदूरी के पीछे छिपी मजबूरी को समझती है, फिर उनकी मजदूरी को दूर करने के हरसंभव उपाय ढ़ूढ़ती है। इस तरह से यह संस्था कालीन कारखानों के बाल-मजदूरों को शिक्षा के रास्ते पर ले जाने का काम करती है। जब यह संस्था नहीं थी तब यहां स्कूल का भवन तो था, नहीं था तो बच्चों में स्कूल जाने का जज्बा।
यह बच्चे भी अपने माता-पिताओं की तरह बंधुआ मजदूर जो थे। बंधुआ इसलिए क्योंकि खेती के लिए उनके पास खुद के खेत नहीं थे और न रोजगार के कोई स्थायी साधन ही। तभी तो उनके घर की गृहस्थी चलाने के लिए उनके बच्चे कारखानों की ओर जाया करते थे।
ऐसे में उन्हें स्कूल की ओर मोड़ना चुनौतियों से भरा काम था। इसलिए सबसे पहले तो यहां सुभागलाल जैसे कामकाजी बच्चों के लिए अनौपरिक शिक्षण केन्द्र खोले गए। इसकी कक्षाओं को कामकाजी बच्चों के समय और सहूलियतों के मुताबिक लगाया जाता। इससे यहां के बच्चों को पहली बार पढ़ाई-लिखाई से जुड़ने का मौका मिला। पहले-पहल बच्चे ऊंघते रहते। मगर धीरे-धीरे जब उनका रूझान पढ़ाई की तरफ बढ़ा तो इधर-उधर भागने की बजाय कई-कई घण्टे पढ़ते-पढ़ाते, हँसते और खेलते।
इसी के सामानांतर, कामकाजी बच्चों के माता-पिताओं की आमदनी में बढ़ोतरी के लिए कई स्तरों पर प्रयास शुरू किये गए। पहला तो यह कि, इसके लिए गांव के आसपास की सार्वजनिक जमीनों पर स्थानीय लोगों के कब्जों को पहचाना गया और फिर इन कब्जों को हटाने की मुहिम चालू हुई। जहां-जहां से कब्जे हटाये गए, वहां-वहां की जमीनों पर सामूहिक खेती को बढ़ावा दिया गया। हालांकि इन बंजर जमीनों से अनाज उगाना कोई आसान काम नहीं था। मगर सबके अपने-अपने समय, धन, ज्ञान और मेहनत के बराबर लगने से जो बड़ी कठिनाई थी वो भी कई हिस्सों में टूटकर हल हो गई। इसके बाद खेतों में जो पैदावार लहलहाई उसे भी सामूहिक तौर से बाजारों में लाया गया और बेचा गया। आखिरी में जो नफा हुआ वो बराबर हिस्सों में बट गया। इस तरह आजीविका का स्थाई हल मिलने से उनकी आमदनी में पहले से सुधार आया। दूसरा यह कि, यहां के ऐसे परिवारों को नरेगा जैसे योजनाओं का फायदा पहुंचाने के लिए जागरूकता अभियान चलाया गया। तीसरा यह कि, उनकी रोजमर्रा की बुनियादी जरूरतों का ख्याल रखते हुए उन्हें ग्राम-सभा और पंचायत की गतिविधियों में हिस्सेदार बनाया गया। चौथा यह कि, उनके बीच पहले तो महिलाओं के स्वयं-सहायता समूह बनाए गए और उसके बाद लघु ऋण समितियां गठित हुईं। इन सबसे यहां की आर्थिक-सामाजिक स्थितियां जैसे-जैसे पलटने लगीं, वैसे-वैसे उनके बच्चों के कंधों से काम के बोझ भी हटने लगे। इसीलिए तो जिस पुरानी पीढ़ी ने पढ़ने-लिखने की कभी नहीं सोची थी, वो आज की पीढ़ी को पढ़ाने-लिखाने के बारे में सोचती है। आलम यह है कि बच्चे तो बच्चे बड़े-बुर्जग भी वर्णमाला के आकार, प्रकार और मायने बाखूबी जान रहे हैं। बड़े गर्व की बात है कि यह अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा से ही अपनी बेहाली को काट देना चाहते हैं। जहां यह कहते हैं कि काफी कुछ बदला है, वहीं सुभागलाल कहते हैं ‘‘अभी काफी कुछ बदलना बाकी है। शिक्षा का स्तर अपने लड़कपन में है, जिसे अपने समय पर जवान भी तो होना है।’’
चलते-चलते
इसी तरह से क्राई देश के 6,700 गांवों और मलिन बस्तियों के साथ मिलकर काम कर रहा है। क्राई मानता है कि हर समुदाय के बच्चों को जो अधिकार देने जरूरी हैं, उनमें खास हैं - जीने के अधिकार, विकास के अधिकार, विभिन्न शोषणों के खिलाफ सुरक्षा के अधिकार और उनके भविष्य को प्रभावित करने वाली गतिविधियों में भागीदारी होने और फैसले लेने के अधिकार।
क्राई का असर (2008-09)
1,376 सरकारी प्राथमिक स्कूलों को दोबारा चालू किया जा सका है।
38,169 वंचित समुदाय के बच्चों को सरकारी प्राथमिक स्कूलों में दाखिल किया जा सका है।
558 सरकारी प्राथमिक स्कूलों में छात्र उपस्थिति को शत-प्रतिशत तक बनाया जा सका है।
380 पंचायतों की ग्राम शिक्षण समितियों को सक्रिय बनाया जा सका है।
762 पंचायतों की ग्राम स्वास्थ्य समितियों को सक्रिय बनाया जा सका है।
481 गांवों में एक भी बाल मजदूर नहीं है।
1,641 बाल समूह बनाये गए हैं।
76,1167 भारतीय बच्चे विभिन्न गतिविधियों के भागीदार बने हैं।
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शिरीष खरे ‘चाईल्ड राईटस एण्ड यू’ के ‘संचार-विभाग’ से जुड़े हैं।
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Vikas Sharma
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Posted on 16 April 2010 by admin
कानपुर में दो दिन पहले वकीलों और पुलिस के बीच हुए संघर्ष के बाद वकीलों ने जिला कचहरी में अपनी हड़ताल जारी रखी। उधर इस मामले में पुलिस ने उन वकीलों की पहचान का काम शुरू कर दिया है, जिनके द्वारा कथित तौर पर किए गए पथराव के बाद हंगामा हुआ। इस बीच वकीलों और पुलिस प्रशासन के बीच समक्षौते के प्रयास भी शुरू हो गये हैं।कानपुर के डीआईजी प्रेम प्रकाश ने संवाददाताओं को बताया कि जिन वकीलों ने पथराव और हंगामा किया था, उनकी पहचान का काम शुरू हो गया है। इसके लिये हंगामे के दौरान बनाई गई वीडियो फिल्म की सहायता ली जा रही है।उन्होंने बताया कि जिन वकीलों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं, उनकी सूची भी तैयार कराई जा रही है। ऐसे कुछ वकीलों के नाम पुलिस के पास पहुंच गये है, जो इस पथराव और हंगामे में शामिल थे।प्रकाश ने बताया कि आज वरिष्ठ वकीलों का एक दल पुलिस के अधिकारियों से मिलने आया था और उन्होंने शांति बनाये रखने के लिये पुलिस को हर तरह से सहयोग देने की बात कही। उन्होंने कहा कि इसके बाद एक शांति समिति का भी गठन किया गया है, जिसमें करीब 20 वकील तथा पुलिस अधिकारी शामिल होंगे।इस मामले के विरोध में वकीलों ने कल अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा की थी, इस लिये आज कचहरी परिसर में पूरी तरह से सन्नाटा छाया रहा और चारों तरफ केवल पुलिसकर्मी ही नजर आये।
अवनीश अग्निहोत्री
Posted on 16 April 2010 by admin
पुलिस वकील संघर्ष के बाद वकीलों के अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाने के बाद अब इस मुद्दे पर राजनीति शुरू हो गयी है। सभी राजनीतिक पार्टियों के नेता वकीलों से मिल कर सहानुभूति जता रहे हैं और उनपर हुए लाठी चार्ज की निंदा कर रहे हैं।उधर, दूसरी ओर महीने का दूसरा शनिवार होने के कारण जिला कोर्ट वैसे भी बंद है और उसपर वकीलों ने अनिश्चितकालीन हड़ताल कर रखी है इस लिये जिला कचहरी में सन्नाटा छाया हुआ है केवल पुलिस के अधिकारी और सुरक्षाकर्मी ही कचहरी और उसके आस पास दिख रहे हैं।वकीलों पर हुये पुलिसिया लाठीचार्ज की निंदा करने में कोई भी राजनीतिक दल पीछे नहीं है और वह वकीलों से मिल कर उन्हें समर्थन देने की बात कह रहे है। केन्द्रीय कोयला राज्य मंत्री और कानपुर के सांसद श्रीप्रकाश जायसवाल भी उर्सला अस्पताल में भर्ती घायल वकीलों को देखने गये और उन्होंने इस लाठीचार्ज की निंदा की। जायसवाल अस्पताल में भर्ती बार एसोसिएशन के घायल महामंत्री नरेश त्रिपाठी से भी मिले और उनका हाल चाल जाना।समाजवादी पार्टी के नेताओं के अनुसार शनिवार शाम पार्टी के वरिष्ठ नेता शिवपाल यादव भी कानपुर पहुंच रहे हैं और वह घायल वकीलों से अस्पताल में मुलाकात करेंगे।कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी सहित सभी पार्टियों के नेता रोजाना अखबारों के दफ्तरों में वकीलों पर लाठी चार्ज की निंदा के बयान भेज रहे है और अस्पताल में जाकर वकीलों से मिल रहे हैं तथा उन्हें आश्वासन दे रहे है कि उनकी पार्टियां वकीलों के साथ उनकी हर लड़ाई में उनके साथ है।
अवनीश अग्निहोत्री
Posted on 16 April 2010 by admin
शिरीष खरे
यह सच है कि सरदार सरोवर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध है, जो 800 मीटर नदी में बनी अहम परियोजना है। सरकार कहती है कि वह इससे पर्याप्त पानी और बिजली मुहैया कराएगी। मगर सवाल है कि भारी समय और धन की बर्बादी के बाद वह अब तक कुल कितना पानी और कितनी बिजली पैदा कर सकी है और क्या जिन शर्तों के आधार पर बांध को मंजूरी दी गई थी वह शर्तें भी अब तक पूरी हो सकी हैं ?
साल 2000 और 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा है कि सरदार सरोवर की ऊंचाई बढ़ाने के छह महीने पहले सभी प्रभावित परिवारों को ठीक जगह और ठीक सुविधाओं के साथ बसाया जाए। मगर 8 मार्च, 2006 को ही बांध की ऊंचाई 110 मीटर से बढ़ाकर 121 मीटर के फैसले के साथ प्रभावित परिवारों की ठीक व्यवस्था की कोई सुध नही ली गई। हांलाकि 1993 में, जब इसकी ऊंचाई 40 मीटर ही थी तभी बडे पैमाने पर बहुत सारे गांव डूबना शुरू हो गए थे। फिर यह ऊंचाई 40 मीटर से 110 मीटर की गई और प्रभावित परिवारों को ठीक से बसाया नहीं गया। तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार ने भी स्वीकारा था कि वह इतने बड़े पैमाने पर लोगों का पुनर्वास नहीं कर सकती। इसीलिए 1994 को राज्य सरकार ने एक सर्वदलीय बैठक में बांध की ऊंचाई कम करने की मांग की थी ताकि होने वाले आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक और पर्यावरणीय नुकसान को कम किया जा सके। 1993 को विश्व बैंक भी इस परियोजना से हट गया था। इसी साल `केन्द्रीय वन और पर्यावरण मन्त्रालय´ के विशेषज्ञ दल ने अपनी रिपोर्ट में कार्य के दौरान पर्यावरण की भारी अनदेखी पर सभी का ध्यान खींचा था। इन सबके बावजूद बांध का कार्य प्रगति पर चलता रहा और जो कुल 245 गांव, कम से कम 45 हजार परिवार, लगभग 2 लाख 50 हजार लोगों को विस्थापित करेगा। अब तक 12 हजार से ज्यादा परिवारों के घर और खेत डूब चुके हैं। बांध में 13,700 हेक्टेयर जंगल डूबना है और करीब इतनी ही उपजाऊ खेती की जमीन भी। मुख्य नहर के कारण गुजरात के 1 लाख 57 हजार किसान अपनी जमीन खो देंगे।
अगर सरदार सरोवर परियोजना में लाभ और लागत का आंकलन किया जाए तो बीते 20 सालों में यह परियोजना 42000 करोड़ रूपए से बढ़कर 45000 करोड़ रूपए हो चुकी है। इसमें से अबतक 2500 करोड़ रूपए खर्च भी हो चुके हैं। अनुमान है कि आने वाले समय में यह लागत 70000 करोड़ रूपए पहुंचेगी। गौर करने वाली बात है कि साल 2010-11 के आम बजट में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने सरदार सरोवर परियोजना के लिए 3000 करोड़ रूपए से ज्यादा की रकम आंवटित करने की घोषणा की है। इसके अलावा सरकार के मुताबिक परियोजना की पूरी लागत गुजरात के सिंचाई बजट का 80% हिस्सा है। इसके बावजूद अकेले गुजरात में ही पानी का लाभ 10% से भी कम हासिल हुआ है। जबकि मध्यप्रदेश को भी अनुमान से कम बिजली मिलने वाली है। ऐसे में पूरी परियोजना की समीक्षा होना जरूरी है।
पर्याप्त मुआवजा न मिलना, मकानों व जमीनों का सर्वे नहीं होना, या तो केवल मकानों को मुआवजा देना या फिर केवल खेती लायक जमीन को ही मुआवजा देना, पुनर्वास स्थलों पर बुनियादी सुविधाओं का अभाव, कई प्रभावित परिवार को पुनर्वास स्थल पर भूखण्ड न देने आदि के चलते हजारों डूब प्रभावित अपना गांव छोड़ने को तैयार नहीं हैं। जहां-जहां गांव का पुर्नवास स्थल बनाया गया है वहां-वहां पूरे गांव के प्रभावित परिवारों को एक साथ बसाने की व्यवस्था भी नहीं है। गांव में लोगों की खेती की सिंचित जमीन के बदले सिंचित जमीन कहां देंगे, यह उचित तौर पर बताया नहीं जा रहा है।
कुछेक लोगों को बंजर जमीन दी है और कुछेक को गुजरात में उनकी इच्छा के विरूद्ध प्लाट दिये गए। गुजरात में जहां कुछ परिवारों को बसाने का दावा किया गया है वहां भी स्थिति डूब से अलग नहीं है। करनेट, थुवावी, बरोली आदि पुनर्वास स्थल जलमग्न हो जाते हैं, उनके पहुंच के रास्ते बन्द हो जाते हैं। यदि किसी व्यक्ति की जीविका का आधार यानी उसकी खेती लायक जमीन बांध से प्रभावित है और उसका घर पास के गांव में है तो उसे बाहरी बताकर पुनर्वास लाभ से वंचित किया जा रहा है।
डूब प्रभावितों के अनुसार आवल्दा, भादल, तुअरखेड़ा, घोघला आदि गांवों के तो पुर्नवास ही नहीं बनाये गए हैं। गांव भीलखेड़ा साल 1967 और 1970 में दो बार नर्मदा नदी में आई भारी बाढ़ से उजड़कर बसा है। बांध की ऊंचाई बढ़ाने से यह तीसरी बार उजड़ने की कगार पर है। भादल का राहत केम्प 7 किमी दूर ग्राम सेमलेट में बनाया गया है। भादल से सेमलेट सिर्फ पहाड़ी रास्तों से पैदल ही पहुंचा जा सकता है। एकलरा के प्राथमिक स्कूल को गांव से करीब ढ़ाई किलोमीटर दूर पुनर्वास करने से 53 में से केवल 8-10 बच्चे ही पहुंच पा रहे हैं। शिक्षकों को रिकार्ड रखने में परेशानी हो रही है और मध्यान्ह भोजन योजना का उचित संचालन नहीं हो पा रहा है।
यह तो महज एक सरदार सरोवर परियोजना के चलते इतने बड़े पैमाने पर चल रहे विनाशलीला का हाल है। मगर 1200 किलोमीटर लंबी नर्मदा नदी पर छोटे, मझोले और बड़े करीब 3200 बांध बनाना तय हुआ है। यहां से आप सोचिए कि नर्मदा नदी को छोटे-छोटे तालाबों में बांटकर किस तरह से पूरी घाटी को असन्तुलित विकास, विस्थापन और अनियमितताओं की तरफ धकेला जा रहा है।
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लेखक शिरीष खरे `चाईल्ड राईटस एण्ड यू’ के `संचार विभाग´ से जुड़े हैं।