धर्म संस्कृति संगम काशी सारनाथ एवं बौद्ध दर्शन विभाग सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के संयुक्त तत्वावधान में छात्रवृत्ति वितरण समारोह एवं एक दिवसीय ‘‘मानव जीवन मूल्य चुनौती और समाधान’’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के पाणिनी भवन प्रेक्षागृह में समारोह के मुख्य वक्ता श्री इन्द्रेश कुमार (सदस्य, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अ.भा.कार्यकारिणी) ने कहा कि ‘भारत भू’ विविधताओं से भरा है। समय-समय पर अनेकानेक पूजा पद्धतियों के रूप में इस भारत भूमि पर फला-फूला है। समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करते हुए प्राणी मात्र में नवीन प्राण व उर्जा भरने का काम अवतारी महापुरूषों ने किया है। जाति, भाषा, पंथ का अहंकार टकराव निर्माण करता है। अपने-अपने पंथ, जाति एवं भाषा पर चलते हुए अन्य सभी का सम्मान एकता-एकात्मता, समता-समरसता को विकसित करता है। कुछ मत पंथ भारत से बाहर जन्मे हैं उन्हें भी यह साक्षात्कार करवाना आवश्यक है ताकि मतान्तरण व आतंक से उत्पन्न विनाश को रोका जा सके।
उन्होंने कहा कि जीवन मूल्य केन्द्रित शिक्षा आवश्यक है, यदि ये नहीं होगा तो विनाश निश्चित है। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में गुरू-शिष्य सम्बन्ध लगभग समाप्त हो गये हैं। शिक्षक का पूरा ध्यान पाठ्यक्रम पर केन्द्रित होने के कारण शिक्षार्थियों के व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया धूमिल हो गयी है।
उन्होंने कहा कि चाहे आई.टी. का क्षेत्र हो अथवा मैनेजमेंट या मेडिकल का, सभी में सन्तोषजनक प्रगति हुई है, परन्तु युवाओं के व्यक्तित्व निर्माण की समस्या जस की तस दिखाई दे रही है। पूरे देश में विश्वविद्यालयों का जाल, विदेशी विश्वविद्यालयों की स्थापना, केन्द्र सरकार के मानव संसाधन विकास मन्त्रालय द्वारा अनेक क्रान्तिकारी कदम उठाये जा रहे हैं, जिनमें उच्च शिक्षा तथा माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम, शिक्षण पद्धति, प्रशिक्षण कार्यक्रम सम्मिलित हैं।
उन्होंने कहा कि देश की स्वतंत्रता के पश्चात् शिक्षा में सुधार हेतु अनेक आयोगों का गठन किया गया। मुदालियर आयोग, कोठारी आयोग, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, आचार्य राममूर्ति समिति इत्यादि ने शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन हेतु अनेक महत्वपूर्ण सुझाव भी प्रस्तुत किये किन्तु अमल के रूप में परिणाम शून्य ही रहे। शिक्षा को संचालित करने वाले केन्द्र सरकार के विभाग का नाम परिवर्तित करके मानव संसाधन विकास मंत्रालय रखा गया किन्तु मानव संसाधन के विकास का विषय शायद अन्तिम पायदान तक सिमट कर रह गया। मानव को मानव बनाने वाली शिक्षा, दानव बनाने की ओर धकेलती ही नजर आयी। युवाओं की क्षमताओं का उपयोग करने के लिए प्रयास नगण्य प्रतीत हुए। युवाओं के जीवन निर्माण के स्थान पर अनुशासनहीनता, अराजकता, व्यक्तिवादिता का पलड़ा भारी दिखाई दिया। यहां भी भौतिकवाद-अध्यात्मवाद पर भारी पड़ गया। बाजारीकरण प्रभावी हो गया। शिक्षा को अर्थ की भौतिक तुला पर तोला जाने लगा।
श्री इन्द्रेश कुमार ने कहा कि नैतिकता के मूल्य तिरोहित होने लगे। विकासशील भारत में आदमी की जिंदगी और औरत की इज्जत सबसे सस्ती हो गई है। हमें चरित्रवान भारत चाहिए। हमने सरकार को हमारी सुरक्षा का अधिकार दिया था, राजा का नहीं। निजीकरण की अंधी आंधी ने शिक्षा को गुणवत्ता परिपूर्ण शिक्षा से विलग कर दिया। ज्ञान तथा मेधा की उपेक्षा हुई, आर्थिक सम्पन्नता को अधिक तरजीह दी जाने लगी। ज्ञानवान, तेजस्वी तथा यशस्वी युवा विद्यार्थी अर्थाभाव के शिकार हुए। सरकारी तन्त्र द्वारा निजी क्षेत्र को अधिक महत्व दिया जाने लगा। परिणामतः शिक्षा में गुणवत्ता का भी ह्मास होना प्रारम्भ हो गया।
श्री इन्द्रेश कुमार ने कहा कि हमें भारत की आजादी में अपनी जान की बाजी लगाने वाले क्रांतिकारियों को अपने समक्ष आदर्श के रूप में रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि हम आज स्वदेशी के प्रयोग का संकल्प कर लें तो 10 साल बाद हम अमरीका से आगे हो जाएंगे।
विषय प्रस्तावना करते हुए प्रोफेसर यदुनाथ दुबे ने कहा कि शिक्षक, शिक्षार्थी एवं पाठ्यक्रम तीन आधार इस प्रक्रिया में हैं। शिक्षक का पुनीत कार्य शिक्षार्थी को पघना है, पाठ्यक्रम इसका माध्यम है। स्पष्ट है कि शिक्षक के लिए साध्य शिक्षार्थी है न कि पाठ्यक्रम। पाठ्यक्रम तो शिक्षक के लिए साधन के रूप में उपयोग में लाया जाता है। समय परिवर्तन के साथ साधन, साध्य के रूप में परिवर्तित हो गया है। शिक्षक का केन्द्रीकरण पाठ्यक्रम तक सीमित रह गया है, शिक्षार्थी द्वितीय वरीयता क्रम में आ गया है।
मुख्य अतिथि प्रो. वी. एम. शुक्ल (पूर्व कुलपति गोरखपुर विश्वविद्यालय) ने कहा कि शाश्वत मूल्य में गहरा हरास हुआ है। मानव मूल्य को घरों में लोग अपने माता-पिता और बुजुर्ग से सिखते थे। आज कौन सीख रहा है। आज के विद्यार्थी को भारत के स्वर्णिम इतिहास का पता नही है। आज घरों में जीवन मूल्य का वातावरण बनाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में शिक्षक-शिक्षार्थी सम्बन्ध लगभग समाप्त हो गये हैं। शिक्षक का पूरा ध्यान पाठ्यक्रम पर केन्द्रित होने के कारण शिक्षार्थियों के व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया धूमिल हो गयी है। प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा अथवा विश्वविद्यालयी शिक्षा में शिक्षक अपने शिक्षार्थी के व्यक्तित्व के आकलन के लिए प्रयासरत नहीं हैं। विद्यार्थी में अन्तर्निहित गुण क्या हैं, उनकी जांच, परख, तत्पश्चात् उनमें निखार लाने के लिए शिक्षकों का पास न सोच है न ही चिन्तन। यही कारण है कि शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य विद्यार्थी का व्यक्तित्व विकास उनकी योजना का अनिवार्य अंग नहीं बन पाता है।
विशिष्ट अतिथि प्रो. पी. नागजी (कुलपति महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ) ने कहा कि तकनीकि का विकास समाज के लिए कितना ठीक है, इसपर विचार होना चाहिए। आज विश्व को आठ बार नष्ट करने का परमाणु बम बना है। मानव कल्याण के लिए धर्म, संस्कृति और विज्ञान में समन्वय जरूरी है। सभी धर्मों में नैमिक मूल्य और सांस्कृतिक मूल्य मिलता है बस जरूरत हैं इनको संगठित करने की। भारत को शक्ति सम्पन्न बनने के लिए सभी धर्मों के लोगों की क्षमता को समझना होगा।
प्रो. रमेशचन्द्र नेगी ने कहा कि प्राचीन भारत की संस्कृति और परम्परा मानव मूल्य का बोध कराती थी। आज उसमे गिरावट आयी है। इसीलिए अनेक प्रकार की समस्याएं पैदा हो रही है।
अध्यक्षीय सम्बोधन करते हुए प्रो. राम किशोर त्रिपाठी (सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय) ने कहा कि सभी धर्मो का उद्देश्य मानव का कल्याण है। भारत प्रकाश से युक्त देश है। ‘धर्म’ मानव मूल्य है। मानव शरीर त्याग के लिए है। शिष्य गुरू का आचरण करते है अतः गुरू का आचरण अनुकरणीय होना चाहिए। हिन्दू धर्म में जीवन का उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष है, यही जीवन मूल्य है।
कार्यक्रम का शुभारम्भ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलन से हुआ। बौद्ध भिक्षु वृन्द द्वारा पाली मंगलाचरण, पाणिनी कन्या महाविद्यालय की छात्राओं द्वारा वैदिक मंगलाचरण एवं कुमारी मालविका तिवारी ने पौराणिक मंगलाचरण प्रस्तुत किया। स्वागत भाषण श्रीहर्ष सिंह ने किया। इस कार्यक्रम में कुल 15 छात्र-छात्राओं श्री सरला आर्या, प्रियंका आर्या, संजीवनी आर्या, सोनम दोर्जे, गुलाब सिंह नेगी, सुनील दत्त, कृष्णकांत त्रिपाठी, ठाकुर भगत, विनित कुमार पाण्डये, विनित कुमार शर्मा, प्रवेश कुमार आदि छात्रों को नगद तीन-तीन हजार रूपये छात्रवृत्ति दी गयी।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से प्रो. नागेन्द्र पाण्डेय, डाॅ. अन्नपूर्णाशुक्ल, प्रो. परमात्मा दूबे, प्रो. मुकुल मेहता, डाॅ. हरिप्रसाद अधिकारी, दीनदयाल पाण्डेय, दिनेश जी, नागेन्द्र दूबे, डाॅ. हरेन्द्र कुमार राय, अजय परमार आदि लोग उपस्थित थे।
कार्यक्रम का संचालन प्रो. रमेश कुमार द्विवेदी (आचार्य एवं अध्यक्ष- बौद्ध दर्शन विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी) एवं धन्यवाद ज्ञापन डाॅ. माधवी तिवारी ( सचिव, धर्म संस्कृति संगम काशी सारनाथ) ने ज्ञापित किया। प्रस्तुति: 63, विष्व संवाद केन्द्र काषी, लंका, वाराणसी-221005
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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