आजादी के बाद के इन 64 वर्षों में कई बार मुट्ठी भर लोगों ने विभिन्न बिन्दुओं पर क्रांतिकारी कीर्तिमान स्थापित किये हैं। इसी क्रम में भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने की संकल्पना में इंडिया अगेंस्ट करप्शन के मुट्ठी भर लोगों ने संत अन्ना हजारे के नेतृत्व में देश के करोड़ों लोगों के नैराश्य को दूरकर आशा से लवरेज ‘भाव’ उद्वेलित कर दिये। आक्रोश का लावा धधकने लगा। जन भावनायें ‘आर पार की लड़ाई’ चाहती है इसे जानकर सदाचारी व ईमानदार नेता बिल्कुल शांत हैं उनकी अंतरात्मा जन भावना को परख रही है इनमें कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह प्रमुख हैं। सोनिया जी ने अन्ना हजारे के पत्र का जिस भाषा शैली में जवाब दिया है, उससे सिद्ध हो गया कि वे दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ ‘जनभावना’ का सम्मान कर रही है। प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह भी स्वीकार नेता मौन हैं, ‘‘मौनं स्वीकृति लक्षणम्’’ यानी सभी जन भावना के साथ हैं। ‘जन’ को आज जनतंत्र में स्वयं शक्तिमान सिद्ध करने का मौका मिला है।
इस जनभावना में सेंध लगाने में मुट्ठी भर ‘महाभ्रष्ट्र’ लगे हैं। इनमें कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह और सपा व कांग्रेस के बीच त्रिशंकु बनकर लटके अमर सिंह शामिल हैं। इनका उद्देश्य है शांतिभंग करना। निशाने पर शांति इसलिए हैं, क्योंकि वे न्यायपालिका के सर्वश्रेष्ठ प्रहरी (अधिवक्ता) है जिनकी फीस कल्पना से परे हैं। शांति भूषण इटावा में पिछले कई वर्षों से न्यायमूर्ति प्रेमशंकर गुप्त के आमंत्रण पर इटावा हिन्दी सेवा निधि के सारस्वत सम्मान समारोह में आ रहे हैं, जिनके सम्मान में स्वयं जस्टिस गुप्त कहते रहे हैं ‘‘शांति भूषण जी वरिष्ठ अधिवक्ता हैें, जिनके एक-एक मिनट की कीमत लाखों रूपये है, वे इटावा के लोगों के प्यार से लाखों का घाटा उठाकर आये हैं।’’ पूरा देश जानता है उनकी ऊंची फीस। ऐसे में समाजवादी पार्टी के किसी केस के लिए 50 लाख रूपये बतौर फीस दिये तो बवंडर क्यो? सीडी की सत्यता पर जो माथा पच्ची चल रही है तो यह उसी शांति भंग का हिस्सा है। वकील का नैतिक धर्म है, अपने क्लाइंट को जिताना। सबूतों के आधार पर झूठ को सच और सच को झूठ बनाकर पेश करना। सीडी की वार्ता इसी ‘धर्म’ का हिस्सा है।
‘भ्रष्टाचार’ के दायरे में शांतिभूषण व प्रशांत भूषण कहीं भी नहीं आते हैं। भूमि आवंटन मुद्दा हो या सीडी प्रकरण। यह सब कुछ मुट्ठी भर लोगों का अनीति पोषक ‘क्रांतिकारी’ कुपथगामी कदम है। अकर्मण्यता, कामचोरी तथा लोभ, लालच में पक्षपात आदि बहुत कुछ भ्रष्टाचार की परिधि में आते हैं। जब कोई वेतन भोगी शिक्षक प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाता है तो वह भ्रष्ट है, वहीं दूसरी ओर अंशकालिक प्राइवेट शिक्षक का ट्यूशन पढ़ाना सदाचार है। उसी तरह कोचिंग का पंजीयन उसी का होता है जो कहीं सरकारी वेतन भोगी न हो। जहां तक न्याय क्षेत्र का सवाल है तो रिश्वत लेकर निर्णय पलटना, पक्षपात करना भ्रष्टता है, पेशकार द्वारा हर काम के लिए पैसे मांगना भ्रष्टाचार है, मगर वकील का कलम चलाने के लिए फीस लेना कतई वैध है। अधिवक्ता की क्षमता व अनुभव उसकी दर निर्धारित करते हैं। कुछ तो खासियत होगी ही ‘भूषण वंश’ में, जो सपा ने अपने केस की पैरवी के लिए 50 लाख रूपये दिये थे। उस भूषणवंश को लेकर भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को रोकने का षडयंत्र जनभावना को पलटने की बजाय इन षडयंत्रकारी मुट्ठी भर लोगों को छिन्न-भिन्न कर देगी जनता।
देवेष षास्त्री
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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