ब्ंाधक तरूणाई ने घोंटा वैकल्पिक राजनीति का दम
देष बचेगा पर पुस्तैनी नेताओं नहीं असली तरूणों के दम पर
पूंजी के गिरफ्त में मौजूदा युवा भारत इतना उलझ गया जो भौतिकता की चकाचैंध और वर्तमान में जीने की तालीम से प्रेरित हो अंतहीन हर्डलरेस का महज भागीदार बन कर रह गया है।देष की तरूणाई पहले मोबाइल,फिर रेस्तरां,डिस्कोथेक और अब फेसबुक ट्वीटर के हाथ का खिलौना भर बन कर रह गयी लगती है। भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, महंगाई, अपराध के रावण राज में अब डर सताने लगा है कि अब न रावण मरेगा, न तो कंुभकरण, न ही धर्म - अधर्म का भेद समझाया पढाया जायेगा क्योंकि अब तरूणाई के माथे पर जवानी के चरमोत्कर्ष में प्रोफेषनैलिज्म का ठप्पा होना सबसे अहम् है क्योकि यह मौजूदा भारत का तथाकथित स्टेटस सिंबल है। स्टेटस सिंबल बांटने की दुकाने भी खूब हैं जाहिर है खरीददारों की संख्या ने इस बाजार को भी बल दिया है।
हालात कुछ ऐसे हैं कि इुजिनियरिंग,प्रबंधन,व अन्य कमाउ कहे जाने वाले डिग्री डिप्लोमा जैसे ठप्पों को सरलता से पाने की असीम संभावनाये हैं। यह इस क्षेत्र का विकास ही है जिससे केवल उत्तर प्रदेष में हर साल अब 1 लाख के आस पास तो इंजीनियर, डिप्लोमाधारी, आई टी आई,प्रषिक्षित स्नातक व प्रबंधक निकलेंगे ही, बाकी देष की हालत तो आसानी से समझी जा सकती है। ऐसा होना भी चाहिए था क्योंकि तरूणाई को इस तथाकथित कैरियर ओरियेन्टेड (कैरियर उन्मुख) माया जाल में फांसने के भारतीय नीति निर्माताओं के अपने मायने और फायदे हैं। तभी तो कैंपसों में खुले मन से समाज और देष के प्रति जुझारू तेवर के साथ सार्थक सोच को प्रतिबद्ध छात्र राजनीति का गला नीति निर्माताओं ने घोंट दिया।
यूं ही नहीं कैंपस से राजनीति को उखाड फेंकने की पहल करते हुए मौजूदा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वर्ष 2000 में विकासषील देषों में उच्च षिक्षा नाम से विष्वबैंक की टास्क फोर्स द्वारा जारी रिपोर्ट तैयार कराने में अपनी सक्रिय सहभागिता दर्ज कराई थी। कैंपस की राजनीति की सक्रियता होने से जो अघोषित भय इन नियंताओं के मन में था वह आज चरम पर पहुची महंगाई आईपीएल से काॅमनवेल्थ तक के घोटालों,टू जी स्पेक्ट्म् से आदर्ष सोसाईटी जैसे बंदरबांट और देष की संपत्ति को गटक जाने की घटनाओं से ज्यादा साफ पता चलता है।
कितना दुःखद है संसद में गुंडो को ले जाने से लेकर विधानसभाओं, परिषदों में माफियाओं की दखल को यह देष कैंपस में भविष्य के नता पैदा करने से ज्यादा बेहतर समझता है,दुःख तो सबको होता है जब अपने देष में कांगेस के राज में केवल अलगाववादियों को पुष्ट रखने के लिए कष्मीर के लाल चैक पर गणतंत्र दिवस पर भारत का तिरंगा नहीं लहराया जा सकता है। 90 के दषक में षिक्षा को बेचने की शुरूआत करने से पूर्व ही इन नीति निर्माताओं ने इसलिए भी छात्रसंघों व छात्र राजनीति का विरोध किया होगा क्योंकि मान्यता देने से लेकर, कालेज खुलवाने, डीम्ड - प्राइवेट वि0 वि0 बनाने में इनकी मोटी कमाई नहीं हो पाती क्योंकि तरूणाई खुलकर आज राजनीतिक हस्तक्षेप के ताकत में होती।
कैंपसों में चल रहे मुनाफाखोरी के धंधें से शायद इस देष को छात्रसंघों की मौजूदगी से कम क्षति हो रही है। युवा राजनीति का दम घोंटने वाले यह बखूबी जानते हैं कि विभेद,शोषण, विरोध सहित तमाम सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक परिवर्तनों का एकमात्र सूत्रधार तरूणाई होती है तभी तो इन्होंने छात्र राजनीति को लेकर पूर्व नियोजित तरीके से राजनीति की नर्सरी की ऐसी पटकथा लिखी जिससे छात्र राजनीति का चेहरा ही विद्रूप हो गया और लिंगदोह जैसे साहबों ने देष के अंदर एक पवित्र संस्था पर जमकर थू-थू कराया।
नीति निर्माताओं ने देष को समझाया कि षिक्षा परिसर नेता पैदा करने के कारखाने नहीं है। ऐसा उनके लिए इसलिए भी करना जरूरी था क्योकि नेता पैदा करने का केन्द्र तो अरबों हिन्दुस्तानियों के घर के बजाय इंदिरा-नेहरू खानदान को ही बने रहना था। ये कुछ ऐसा ही है जैसा पुरानी सल्तनतों के वारिसों के साथ होता रहा। युवा कहलाने का हक केवल नेहरू परिवार के नौजवानों के पास हो और बाकी मुल्क युवा नेता के प्रषंसक और पिछलग्गू रहें तो सब ठीक है।
नोट के बदले संसद में सवाल पूछने वाले, पैसा देकर बहुमत जुटाने वाले , लाखों करोडों रूपये का घोटाला कर खुद को बारंबार अच्छा साबित का कोषिष करने वाले वस्तुतः इस बात से सदैव डरते रहे हैं कि उनके राजनैतिक व्यापार का अगर कोई सबल,समर्थ और सही प्रतिद्वंदी रहा है तो वह है हिन्दुस्तान की तरूणषक्ति।
विसंगति है कांगे्रसी घरानों के राजकुमार राहुल,सचिन पायलट सरीख्ेा नेता देष के युवा प्रतिनिधि हैं जिन्होने अपने दम पर सिर्फ विरासत मेें मिली नाव की सवारी की है। इनकी नजर में देष की आबादी के 70 फीसदी युवा महज पिछलग्गू बनकर इनकी नुमाइंदगी को सलाम करते रहें तो ही प्रगति होगी। इनको कैसे नहीं डर लगेगा जब ये ही नहीं पूरा देष जानता है कि महज 50-60 करोड के बोफोर्स घोटाले पर राजीव गांधी की सरकार गिरी,इंदिरा की तानाषाही को देष की तरूणाई ने गजब की पटखनी दी,वैसे ये अब छात्र युवा राजनीति का पर कुतर आराम से 176000 के स्पेक्ट्म घोटाले सहित कलमाडी सरीखे लोगों के कंधे पर बंदूक रख अपनी जेबें भर रहे हैं, इन्हें पता है दो चार हफतो बाद चाहे शुृगलू कमीषन रिपोर्ट हो या कोई अन्य आयोग की जांच सब कुछ देष का आम मतदाता भूल जायेगा क्योंकि उसे तो दाल भात के पीछे लगना है,अपनी रोजी रोटी देखनी है,इन्हें बखूबी पता है कि कैरियर ओरियेन्टेड युवा इन लफडों में नही आने वाले। इनकी सोच यही लगती है कियही परिवर्तन लाना इन लोकतांत्रिक डमरूओं का लक्ष्य था जिसे ये छात्र संघों की तालाबंदी से ला चुके हैं।
अब देष बाबा रामदेव तो कभी सुब्रहमण्यम् स्वामी तो कभी टी0एन0षेषन तो कभी किरन बेदी की ओर टुकुर टुकुर ताक रहा है फिर भी उसे ये संतोष नहीं कि आसिर क्या होगा इस देष का । सच तो ये है कि अब राषन कार्ड बनवाने से लेकर विधवा पेंषन पाने तक में कुछ ले दे के तेज काम कराने के खेल,सत्ता के दम पर किसी को कभी भी आबाद या बर्बाद करने के खेल,विधायको के बलात्कार जैसे मामलों से देष उकता सा गया है। समूचे भारत में अब सरकारी बाबुओं से लेकर भ्रष्ट नेताओं के बारे में एक ही राय है जिसे हम आप कोई अच्छा नहीं साबित कर सकते।कहीं न कहीं समूचा भारत निगाह गडाये बैठा है उस चमत्कार की ओर जो अबाध गति से तूफान की तरह आये और पूरी व्यवस्था को एकबारगी गंगा स्नान करा दे।
यही सही वक्त है देष की तरूणाई को उस अहम् जिम्मेदारी के बारे में सोचने का जो पूरे देष में उस विद्युत का संचार करे जो फरेबी यूथ आइकाॅनों,मायावी बुद्धिजीवियों, तथाकथित जनवादियों की पहचान कर लोगों के बीच ला सके। हमको इन फरेबियों के मकडजाल से निकल कर उस आबादी के बारे में सोचने की जरूरत है जो देष केे खेतों मेे,फुटपाथों पर,झोपडों में,मनरेगा में खटते हुए,एक अदद नौकरी के लिए कर्ज लेकर प्रोफेषनल कालेजों में पढते हुए अपनी आंखों मंे सीना तानकर चलने का सुनहरा सपना पाले हुए है।
आज की तरूणाई को अब सोचना ही होगा उन ढकोसलेबाज नेताओं के बारे में जिन्होंने असल नेताओं की फौज को टकराव के भय से पराजय की आषंका से पनपने से रोक दिया है। पूरे देष को यदि वास्तव में अपनी माटी पर लूट मचाकर जनता का धन हडपने वालों को दंडित करने की रंचमात्र भी कामना है तो जागकर सबसे पहले देष में छात्र-युवा राजनीति को पुर्नस्थापित कराने के लिए व्यापक देषव्यापी जनमत तैयार करना होगा क्योंकि खुद को दिलासा देने के लिए सपनों में भविष्य और उज्जवल अतीत में खोने से बेहतर है,बंधी हुई बेडियों को काटकर अपनी चेतना हासिल कर देष को परम् वैभव पर ले जाया जाये।
आनन्द शाही ’’नौतन’’ (प्रदेष सह-म्ीडिया प्रभारी,,भाजपा-युवा मोर्चा,उ0प्र)
(लेखक भाजपा-युवा मोर्चा,उ0प्र0 के प्रदेष सह मीडिया प्रभारी व सामाजिक शोध एजेंसी डी-वोटर्स के वरिष्ठ शोध अधिषाषी हैं)
संपर्क-9454721176,9598939235
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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