Archive | June 12th, 2010

मुलायम सिंह यादव श्री राजेन्द्र सिंह यादव की मूर्ति का अनावरण करेगें

Posted on 12 June 2010 by admin

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमन्त्री, उत्तर प्रदेश श्री मुलायम सिंह यादव (सदस्य-लोकसभा) सोमवार दिनांक 14 जून,2010 को पूर्वान्ह 11 बजे थाना भरथना के कस्बा नगला धना में श्री राजेन्द्र सिंह यादव उर्फ छोटे सिंह यादव की मूर्ति का अनावरण करेगें। श्री यादव आज शनिवार, 12 जून,2010 को नई दिल्ली से प्रात: चलकर इटावा पहुंचे। यहां वे महेन्द्र धाम, उसराहार रोड, भरथना, जनपद इटावा में श्री श्रीकृष्ण यादव आढती के सुपुत्र के तिलकोत्सव में सम्मिलित हुये।

दिनांक 13 जून ,2010 रविवार को श्री मुलायम सिंह यादव 10Û00 बजे दिन में ग्राम रामनगर थाना निधौलीकलां,एटा में स्व0 अनिल कुमार सिंह (विधायक) की श्रद्धांजलि सभा में भाग लेगें। इसके उपरान्त 11Û30 बजे वे राजमैरिज हाल, स्टेशन रोड, मैनपुरी में श्री राजेश चक के शुभ विवाह में भाग लेकर पुन: इटावा आ जाएगें।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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मुख्यमन्त्री के नए प्रयास

Posted on 12 June 2010 by admin

समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता श्री राजेन्द्र चौधरी ने प्रेस वक्तव्य में कहा है कि जनता के बीच बढ़ते आक्रोश को भांप कर मुख्यमन्त्री अब नए-नए शिगूफे छेड़कर जन सामान्य को बरगलाने का प्रयास करने लगी है। अब तक वे दलित महापुरूषों के बहाने अपने वसूली एवं कमीशन अभियान को आगे बढ़ाते हुए पाकोZ, स्मारकों और अपनी प्रतिमाओं पर पत्थरों के ढेर खड़ी कर रही थी। जहॉ नज़र आए वही  जमीन कब्जाओ की नीति पर अमल कर रही थीं। सरकारी खजाना लुटाकर चहेतों को निगमों, आयोगों, कमेटियों में अधाधुंध पदों की रेवडी बांटने का काम कर रही है। अब वे कह रही है कि वे सीधे विकास कार्यो पर नज़र रखेगी क्योंकि जो काम अभी हो रहे हैं उनकी प्रगति से वे सन्तुष्ट नहीं है।16

श्री चौधरी ने कहा यह कितनी हास्यास्पद बात है कि तीन सालों से सत्ता में रहते हुए सुश्री मायावती को अब पता चला है कि विकास कार्यो की प्रगति रिपोर्ट असन्तोषप्रद है। सवाल यह है कि वे कौन से विकास कार्य कर रही थी जिसके बारे में जनता को बयान देकर अपनी चिन्ता जता रही हैं। तीन सालों के उनके कार्यकाल में एक भी नया बिजली घर नहीं लगा। इन तीन सालों में कानून व्यवस्था की स्थिति लगातार बिगड़ने से उद्यमियों ने पूंजीनिवेश नहीं किया। उद्योगधंधे बिजली न मिलने से बैठ गए है। अम्बेडकर गांव आज भी दुर्दशा के शिकार हैं। कांशीराम योजना के आवास बनने के दिन से ही जर्जर दिखाई देने लगते हैं। सड़के जनपदो की छोड़िए, राजधानी में भी टूटी फूटी हैं। बिजली पानी की किल्लत से आए दिन जनता सड़क पर जाम लगाने को मजबूर होती है। महामाया आवास जैसी गरीबों के लिए चलाई जानेवाली योजना में हर जगह काम सुस्त चल रहा है।

समाजवादी पार्टी प्रवक्ता ने कहा कि सच बात तो यह है कि मुख्यमन्त्री को प्रदेश के विकास की नहीं अब अपने साम्राज्य को बचाने की चिन्ता सता रही हैं। सर्वजन को सुखों से दूर रखकर अब वे बहुजन को फिर लुभाने पटाने में लग गई है। यह उनकी पुराने एजेन्डे में वापसी है। दलित बस्तियों में रहने वाले अपनी दुर्दशा से क्षुब्ध हैं। नालों के किनारे रहने वाले दलित तथा मुस्लिम लगातार उजाड़े जा रहे है। उनके सिर पर से छत भी छीनी जा रही है।
श्री चौधरी ने आरोप लगाया कि मुख्यमन्त्री ने विकास की जगह प्रदेश को विनाश के रास्ते पर ढकेला है। उनकी संकीर्ण परिभाषा में अपने लिए करोड़ों के नोटो की माला हासिल करना ही सच्चा विकास है। वे इसी रास्ते पर चल रही है। अब विकास के निरीक्षण के नाम पर वे अपनी कमीशन की दरें और भी बढ़ा दें तो आश्चर्य नहीं होगा। जनता ही उनसे पूरा हिसाब लेगी।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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किसान मेला 14 जून को

Posted on 12 June 2010 by admin

सपोर्ट टू स्टेट एक्सटेंशन प्रोग्राम फार एक्सटेशन रिफाम्र्स योजनान्तर्गत किसान मेंला तथा खरीफ गोष्ठी का आयासेजन 14 जून को पं0 रामनरेश त्रिपाठी सभागार में होगा। उक्त जानकारी जिलाधिकारी शंकर लाल पाण्डेय के तरफ से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से दी गई । जिलाधिकारी ने कृषि विभाग व अन्य विभागों को निदेंर्शित किया है कि किसान मेंला व खरीफ गोष्ठी पर उक्त मेले का प्रचार प्रसार करवाना सुनििश्चत किया जाए। तथा मेले में कृषि विभाग व अन्य विभागों के समस्त अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित होंंं  तथा अधिक से अधिक किसानों को मेले में  साथ लायें एवं साथ ही विभागों के द्वारा किसानोें को क्या क्या लाभ दिया जा रहा है उसका रामनरश त्रिपाठी सभागार के प्रंागण में स्टाल लगवाया जाए।किसान मेला व खरीफ गोष्ठी में कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञों की उपस्थिति रहेगी जिससे किसानों को नवीनतम तकनीकी की जानकारी उपलब्ध करायी जायेगी तथा किसानों के द्वारा उठाई गई समस्याओं का निदान भी किया जाएगा। उक्त किसान मेले में खरीफ की फसलों के लिए किसानों को दिए जाने वाले कृषि निवेश भी अनुदान पर वितरित किये जाएंगे और कृषि सम्बन्धित पुस्तकें नि:शुल्क वितरित की जाएगी।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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सभासदों के सम्मान के लिए मुख्यमन्त्री को बधाई

Posted on 12 June 2010 by admin

नगर निेकाय सभासद महासंघ उ0 प्र0 के संयोजक संजय कप्तान ने एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से बताया कि पंचायत राज्य व्यवस्था के अन्तर्गत सत्ता का केन्द्रीयकरण किया जाना पूर्व प्रदेश मन्त्री लालजी टण्डन के निजी लोगों को स्वार्थ के लिए किया गया था जिसे प्रदेश सरकार ने उस काला कानूून को समाप्त कर लोकतन्त्र के लिए अच्छा काम किया और सभासदों का सम्मान वापस दिलाया। जिसके लिए प्रदेश की मुख्यमन्त्री बधाई की पात्र है। उ0 प्र0 निकाय चुनाव में लोकतन्त्र की बहाली पर नगर निकाय सभासद महासंघ उ0 प्र0 मुख्यमन्त्री मायावती को कोटि-कोटि बधाई भेजा। आगे श्री कप्तान ने बताया कि पंचायती राज व्यवस्था के अन्तर्गत सदस्यों द्वारा एक मुखिया चुनकर व्यवस्था सम्पादित किया जाता है। मुख्यमन्त्री के इस फैसले से पंूजी पती लोग जो धनबल/ बाहुबल के सहारे चुनाव जीतते थे जनता उनको अब सबक सिखाएगी। अब उन्हें भी जनता के बीच जाना पड़ेगा।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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अधिकारियों के लिये सूचना देना केाई मायने नही

Posted on 12 June 2010 by admin

समाज सेबी आयूशी श्रीवास्तव ने अधिकारियो पर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार द्वारा बनाये गये जनता का अधिकार, अधिकारियो के लिये महत्वपूर्ण कार्य नही है शायद इसी लिये इन कानूनों पर कोई खास दिलचस्पी अधिकारियो को नही रहती क्यूं की भ्रश्टाचार में संलिप्तता साफ नज़र आ रही है यह जानकारी आयूशी ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी मसिहुज्जमा सिद्दीकी से सूचना के अधिकार के तहत जानकारी चाही है कि सर्व शिक्षा अभियान में कोआर्डिनेटर पद पर तैनाद जामवन्त मौर्या के बारे मे, जो उन्हे नही मिली।

इसी क्रम मे नगर पालिका सुल्तानपुर से कुछ महत्वपूर्ण जानकारी अधिशाशी अधिकारी के असेसमेन्ट रजिस्टर में विना किसी सूचना के नाम काटे जाने का कारण पूछा था, और मो0 रियाज अहमद के सन्दर्भ में अपने ही जनपद मे एक ही पद पर विगत कई वर्षो से किस नियम के अन्तर्गत जमे हुए है जिसका जबाब न देने पर समाज सेवी श्रीमती श्रीवास्तव ने अक्रोश व्यक्त किया कि अधिकारी भी  भ्रश्टाचार में लिप्त है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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YCL intertenment corporation द्वारा गोमतीनगर के edilco green orkid club में लखनऊ brand 2010 faishon show में फीता काटकर सुभारम्भ करती Dr Smt A K Sagar

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बी0एड0 संयुक्त प्रवेश परीक्षा

Posted on 12 June 2010 by admin

उ0प्र0 के राज्य विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध/सहयुक्त बी0एड0 महाविद्यालयों/संस्थानों की समस्त सीटों को विगत वर्ष की भान्ति इस सत्र में भी बी0एड0 संयुक्त प्रवेश परीक्षा में सम्मिलित एवं काउिन्सलिंग के माध्यम से आंवटित अभ्यर्थियों द्वारा ही भरा जायेगा

उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध/सहयुक्त बी0एड0 महाविद्यालयों/संस्थानों की समस्त सीटों को विगत वर्ष की भान्ति इस सत्र में भी बी0एड0 संयुक्त प्रवेश परीक्षा में सम्मिलित एवं काउिन्सलिंग के माध्यम से आंवटित अभ्यर्थियों द्वारा ही भरे जाने का निर्णय लिया है।

सरकार के इस निर्णय से प्रदेश के राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों/कुल सचिवों तथा उच्च शिक्षा विभाग के निदेशक को अवगत कराते हुए यह अपेक्षा की गई है कि राज्य विश्वविद्यालय अपने क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले सभी सम्बद्ध/सहयुक्त बी0एड0 महाविद्यालयों/संस्थानों में बी0एड0 पाठ्यक्रम में समस्त सीटों को संयुक्त प्रवेश परीक्षा में सम्मलित एवं काउिन्सलिंग के माध्यम से आंवटित अभ्यर्थियों द्वारा ही भरा जाना सुनििश्चत करें। इस व्यवस्था से सभी बी0एड0 महाविद्यालयों/संस्थानों को अवगत कराने की भी अपेक्षा की गई है।\

उल्लेखनीय है कि मा0 उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुपालन में बी0एड0 पाठ्यक्रम सत्र 2007-2008 से सिंगल विण्डो सिस्टम के अन्तर्गत बी0एड0 पाठ्यक्रम में छात्रों के प्रवेश के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा कराये जाने की व्यवस्था की गई। मा0 उच्चतम न्यायालय के ही आदेशों के अनुपालन में सत्र 2007-08 में स्ववित्त पोशित संस्थानों/महाविद्यालयों में अप्रवासी भारतीय (एन0आर0आई0) हेतु प्रबन्धकीय कोटा 15 प्रतिशत निर्धारित किया गया, परन्तु बी0एड0 सत्र 2007-08 की तीन चरणों की काउिन्सलिंग के पश्चात् एन0आर0आई0 सहित 15,430 सीटें रिक्त रह गईं।

सत्र 2007-08 की रिक्त इन सीटों को भरे जाने हेतु शासनादेश दिनंाक 12 अगस्त, 2008 द्वारा विश्वविद्यालय स्तर पर समिति गठित की गई, परन्तु इसी दौरान दाखिल रिट पिटीशनों के क्रम में मा0 उच्च न्यायालय ने अपने आदेश दिनांक 04 सितम्बर, 2008 द्वारा शासन के उक्त आदेश को स्थगित कर बी0एड0 सत्र 2007-08 में एन0आर0आई0 सहित समस्त रिक्त सीटों को काउिन्सलिंग के माध्यम से भरे जाने के आदेश पारित किये। सत्र 2008-09 की बी0एड0 संयुक्त प्रवेश परीक्षा में भी 15 प्रतिशत सीटों को छोड़कर काउिन्सलिंग सम्पन्न करायी गई, परन्तु एक रिट याचिका में सुनवाई के दौरान मा0 उच्च न्यायालय ने अपने आदेश दिनंाक 14 मई, 2009 द्वारा सत्र 2008-09 में भी समस्त सीटें काउिन्सलिंग के माध्यम से भरे जाने के आदेश पारित किये। बी0एड0 सत्र 2007-08 तथा 2008-09 की रिक्त सीटों को भरे जाने के सम्बन्ध में अनेक चरणों में करायी गई काउिन्सलिंग के कारण उक्त दोनों सत्र विलिम्बत रहे और बी0एड0 सत्र 2009-10 शून्य रहा।

यह भी उल्लेखनीय है कि बी0एड0 पाठ्यक्रम में जहां एक ओर सामान्यतया अप्रवासी भारतीय (एन0आर0आई0) अभ्यर्थी उपलब्ध नहीं होते हैं, वहीं राज्य विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध/सहयुक्त बी0एड0 महाविद्यालयों/संस्थानों के प्रबन्ध तन्त्रों द्वारा शासनादेशों में निहित प्राविधानों के विपरीत बी0एड0 संयुक्त प्रवेश में सम्मिलित एवं काउिन्सलिंग के माध्यम से आवंटित अभ्यर्थियों को प्रवेश देने के बजाय अनियमित रूप से अन्य स्रोत से छात्र/छात्राओं का प्रवेश कर लिया जाता है। अनियमित रूप से प्रवेश होने के कारण उनकी परीक्षायें नहीं हो पाती है, और अनियमित रूप से प्रवेिशत छात्र/ छात्राओं का भविश्य अन्धकारमय हो जाता है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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नौकरशाहों ने जनगणना की बारीकियों को ताक में रखा और नाम की समानता केआधार पर सूचियां तैयार कर दीं

Posted on 12 June 2010 by admin

अब इस बार फिर  स्वतंत्रता संग्राम में तेजी लाने के लिए जिन दो दुखती रगों को खंगाला गया वे थीं गरीबी और जाति। स्वतंत्रता प्राप्ति का ध्येय था गरीबी हटाना और जाति मिटाना। एक चतुर चिकित्सक की भांति अंग्रेज हमारी पीडा को पहचान तो गए, पर गलत दवाई का नुस्खा दे गए। जाति के जरिए गरीबी मिटाने का नुस्खा। परिणाम सामने है: साठ से ज्यादा की आयु होने पर भी स्वतंत्र भारत में न जाति मिटी है और न ही गरीबी। मगर नुस्खा बरकरार है। यह सच है कि भारत की सामाजिक रचना की आसान पहचान जाति से है। जनगणना में आखरी बार जातियों की गणना सन् 1931 में की गई। तब की गणना से आज तक कई जातियों ने अपने नाम बदले और उस माध्यम में आदिवासियों (ट्राइब्स) के कई समूह कुछ क्षेत्रों में जाति बन गए।

 बाहर से आने वाले समूह भी जातियां बन कर इस संरचना के अंग हो गए और तथाकथित जाति-व्यवस्था के वर्ग में कुछ ऊपर उठे एवं कुछ ऊपर उठने की चेष्टा करते रहे। 1931 की जनगणना में आदिवासी समाजों को भी धर्म के आधार पर विभाजित कर दिया गया। केवल उन्हें ही ‘आदिवासी’ की संज्ञा दी गई जो धर्म-परिवर्तन से दूर रहे। एक नाम होते हुए भी वे धर्म के आधार पर श्रेणियों में विभक्त हो गए। भील, मीणा, गोंड, मुंडा सहित सभी आदिवासी समाजों में वे ही आदिवासी की श्रेणी में रखे गए जो 1931 की जनगणना के शीर्ष अधिकारी हटन के शब्दों में ‘हिन्दुओं के मंदिर से अभी दूर हैं।’

स्वतंत्र भारत के संविधान में दी गई अनुसूची के प्रावधान ने इस प्रक्रिया को पीछे धकेल दिया। अनुसूची में सम्मिलित करने के लिए उत्साही नौकरशाहों ने जनगणना की बारीकियों को ताक में रखा और नाम की समानता केआधार पर सूचियां तैयार कर दीं और इस प्रकार जाति कहे जाने वाले समूहों के बदलाव की प्रक्रिया को स्तब्ध कर दिया। जो समूह अपनी पहचान तजकर ऊंचा उठना चाहते थे, वे अब फिर से पुरानी पहचान को जीवित करने की होड में लग गए। बदलती हुई जाति फिर पीछे लौटने लगी। समाजशाçस्त्रयों ने 1950 के दशक से बराबर यह बात कही कि जाति में जबर्दस्त लोचनीयता है। समय के प्रहारों को झेलने की उसमें क्षमता है। उनकी यह धारणा गलत नहीं थी। जाति आज भी जीवित है। पर यह ‘जाति’ है क्या ‘जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी’ की उक्ति को जाति चरितार्थ करती है।

ऎसी स्थिति में प्रश्न उठता है कि क्या जनगणना जातियों की गणना कर पाएगी। ‘जाति’ के बारे में पढाते समय सन् 1960 में मैंने अपनी कक्षा के छात्रों से उनका नाम और जाति एक प्रश्नावली के माध्यम से पूछा। जाति के स्थान पर किसी ने लिखा-भारद्वाज, किसी ने ब्राह्मण, किसी ने पंजाबी, किसी ने केडिया, किसी ने कोठारी, किसी ने जैन ये सब उनके उपनाम थे: कोई गोत्र था, तो कोई परिवार को मिली पदवी का सूचक, कोई धर्म का बोध कराता था तो कोई वर्ण का। और ये सब जाति के पर्याय थे एम.ए. की कक्षा में, और वह भी समाजशास्त्र की कक्षा में पढने वालों के।

इतनी गलतफहमी जब पढे लिखों में है तो फिर निरक्षरों का क्या जनगणना के लिए भेजे जाने वाले क्लर्को और स्कूल अध्यापकों से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वे जाति और अन्य जाति-समझे जाने वाले संबोधनों में भेद कर सकें। जाति के सम्बन्ध में ये जो विसंगतियां हैं, वे इस बात की सूचक हैं कि जिस जाति नामक संस्था को हम खंडित करना चाहते हैं, उस दिशा में यह सही चरण है। इसी कारण आज ढेरों अंतरजातीय विवाह होने लगे हैं। किन्तु जिस स्तर पर जाति को प्रबल करने की चेष्टा है वह जाति के ऊपर का स्तर है- वर्ण का या वर्ण जैसे संकुल का। ब्राह्मण एक वर्ण है, जाति नहीं। इसी प्रकार यादव, गुजर, मीणा कई जातियों के संकुल हैं। इस स्तर पर उनका एकीकरण संख्या की अभिवृद्धि का माध्यम है। वोट की राजनीति के लिए उपयोगी माना जाने वाला कदम है। पर समाजशास्त्रीय दृष्टि से देखे तो जाति का ऎसा राजनीतिकरण न तो नेताओं के अभीष्ट को पूरा करता है और न ही विकास के उद्देश्य को। यह नियम है कि ज्यों-ज्यों किसी समूह की संख्या बढती है, त्यों-त्यों उस समूह में गुटबंदियां बढती हैं जो लोगों को जोडती नहीं, तोडती हैं।

किसी जाति के धनवान अपनी सम्पदा को जाति के समस्त सदस्यों में नहीं बांटते। दलित कही जाने वाली जातियों में भी लोग ‘मक्खन की परत’ की बात करते हैं और तथाकथित ऊंची जातियों में भी कई दीन-हीन परिवार हैं। पीडा की पहचान एक बात है, उपचार दूसरी बात। आज की स्थिति यह है: दर्द बढता गया ज्यों-ज्यों दवा की। बात कडवी है, पर कहने का समय आ गया है।

Vikas Sharma
bundelkhandlive.com
E-mail :editor@bundelkhandlive.com
Ph-09415060119

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