भारत पर्वो का देश है। प्रत्येक पर्व विशेष खगोलीय घटना से बनते हैं। जब सूर्य चन्द्रमा एवं पृथ्वी किसी विशेष अंशात्मक स्थिति में आकर कोण बनाते हैं तो कोई पर्व बनाते हैं। भारतीय जनमानस इन पर्वो को भक्तिरस में डूबकर मनाता है। जब सूर्य कुम्भ राशि में एवं चन्द्रमा सिंह राशि में होकर 180 पर आमने-सामने पड़ते हैं तो होली मनायी जाती है। यह पर्व चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस प्रकार भारत में प्रत्येक पर्व के कारण में `खगोल विज्ञान´ एवं अभिव्यक्ति में धर्मनिहित होता है।
वैदिक काल से ही होली भारत में मनायी जाती रही है। यह इकलौता पर्व है जिसे पूरा विश्व मनाता है। इस नवान्नेष्टि यज्ञ या मदनोत्सव कहा जाता था। लिंग पुराण में इसे फाल्गुनिका एवं भविष्योत्तर पुराण में होली का सम्बंध होम एवं लोगों के साथ बताया गया है। पश्चिमी जर्मनी में इसे मूर्ख दिवस कहा जाता है। अमेरिका में होलोबीन नाम के उत्सव पर लोग हंसी मजाक करते हैं। ग्रीस में फेमिना का पूजन करते हैं। थाईलैण्ड में सुगंधित जल छिड़कते हैं। ब्रजभूमि एवं भरतपुर में एक दूसरे पर पत्थर मारते हैं। मेहसाना में लट्ठमार होली विश्वविख्यात है। गुजरात के विसनगर में एक दूसरे पर जूते फेंकते हैं।
होली में पलाश (ढाक, टेशू) के फूल के अर्क को निकालकर उसे शरीर पर डाला जाता था। पलाश के पुष्प का अर्क चर्मरोगों के लिए औषधि होता है। जाड़े की समाप्ति के समय शरीर में अनेक चर्मरोगों का प्रकोप हो जाता है। इससे मुक्ति के लिए पलाश के पुष्प के लाल अर्क को शरीर पर डालते थे एवं सरसो के उबटन से शरीर को मालिश करते थे यह शरीर को निरोग एवं हष्ट पुष्ट रखता है। इस प्रकार होली शरीर को निरोग रखने का अच्छा माध्यम था परन्तु अब लोग ढाक पुष्प के अकया सरसों के उबटन की जगह रासायनिक रंगों को शरीर पर डालते हैं जो स्वास्थ्य के लिए बड़ा हानिकारक होता है। लोग पारस्परिक वैमनस्य मिटाकर एक दूसरे के साथ फाग गाया करते थे।
इस बार होली 1 मार्च 2010 सोमवार को हो रही है। होलिका दहन 28 फरवरी रविवार को रात्रि 10.30 से पूर्व करे। 21 फरवरी से होलाष्टक लग रहा है। यह 1 मार्च तक 8 दिन रहेगा। इसमें जम्मू कश्मीर राजस्थान, पंजाब, हिमाचल एवं दिल्ली में विवाहादिशुभकार्य विर्णत होता है परन्तु शेष भारत में इस होलाष्टक का प्रभाव नहीं होगा।
सत्य की खोज विज्ञान है, सत्य की अनुभूति धर्म है एवं सत्य की अभिव्यक्ति कला है। भारतीय पर्व विज्ञान धर्म एवं कला के सामंजस्य हुआ करते है। होली में अपने आसपास के कूडे कचडे को जलाने से हानिकारक जीव एवं कीट पतंगो को जलाकर नष्ट करते है। होलिकादहन में होलिका को जलाकर भक्त प्रहलाद के बच जाने की चमत्कारिक घटना धर्म की विजय का प्रतीक है। होलिका दहन की परिक्रमा में 150-200 डिग्री तापक्रम के चारों ओर पंच परिक्रमा से शरीर में अधिक ऊष्मा प्रवेश करती है और प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। आजकल होली के दिन मदिरा पीकर एवं भाग खाकर लोग अपने को भ्रमित करते है आज इस कुरीति को दूर करने की आवश्यकता है। होली की आप सबको शुभ प्रार्थनाएं। (लेखक लखनऊ विश्वविद्यालय के ज्योतिर्विज्ञान विभाग में प्रवक्ता हैं)
विपिन पाण्डेय
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