- किसान महापंचायत की रैली में टिकटार्थियों की संख्या लगभग 80 प्रतिशत तथा 20 प्रतिशत ही किसान उपस्थित थे
- टिकटार्थियों के नाम पर किसानों के साथ धोखा
- किसानों की भूमि अधिग्रहण एवं अन्य समस्याओं का समाधान 05 मिनट में नहीं हो सकता, यह कहने वाले कांग्रेस के युवराज बताये कि आजादी के बाद केन्द्र में लगभग 50 वर्ष तथा प्रदेश में 38 वर्ष की अवधि कांग्रेस के लिए क्या कम थी ?
- कांग्रेस के युवराज का कहना है कि भूमि अधिग्रहण को लेकर आवास तथा विकास के लिए अलग-अलग नीति होनी चाहिए, जबकि उत्तर प्रदेश सरकार दोनों पर ही नीति बना चुकी है, इस पर व अन्य कार्यों को लेकर कांग्रेस को बी0एस0पी0 सरकार की प्रशंसा करनी चाहिए
- कांग्रेस पार्टी बी0एस0पी0 को इसका क्रेडिट भले ही न दे, पर बी0एस0पी0 की भूमि अधिग्रहण नीति की नकल करके उसे लागू तो कराये
बहुजन समाज पार्टी के प्रवक्ता ने कांग्रेस पार्टी द्वारा आज अलीगढ़ में आयोजित किसान महापंचायत को पूरी तरह फ्लाप बताते हुए कहा है कि इस महा पंचायत में कांग्रेस से टिकट चाहने वालों की संख्या लगभग 80 प्रतिशत थी और सिर्फ 20 प्रतिशत ही किसान मौजूद थे। उन्हांेने कहा कि कांग्रेस के नेताओं ने टिकट देने का लालच देकर लोगों को इकट्ठा किया और इस तरह रैली के नाम पर किसानों के साथ धोखा किया गया।
प्रवक्ता ने कहा कि कांग्रेस पार्टी के युवराज अनाप-शनाप बयानबाजी कर अक्सर किसानों को गुमराह करते रहते हैं। उन्होंने कहा कि 03 दिन तक पद यात्रा के दौरान किसानों को सब्जबाग दिखाने के बाद श्री गांधी का यह कहना कि 05 मिनट में भूमि अधिग्रहण का कानून नहीं बनाया जा सकता, जबकि वह शायद यह भूल गये कि इस देश में उनकी पार्टी लगभग 50 वर्ष तक केन्द्र में तथा लगभग 38 वर्ष तक उत्तर प्रदेश में शासन करती रही और लगभग यही स्थिति ज्यादातर राज्यों में भी बनी हुई है। लेकिन इस दौरान कांग्रेस पार्टी के नेताओं को किसानों के दुःख-दर्द का एहसास नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेताओं को बताना चाहिए कि क्या इतनी लम्बी अवधि किसानों की समस्याओं का समाधान करने के लिए पर्याप्त नहीं था।
प्रवक्ता ने कहा कि कांग्रेस के युवराज का यह कहना कि भूमि अधिग्रहण को लेकर आवास के लिए और विकास के लिए दो अलग-अलग नीति होनी चाहिए। शायद उन्हें मालूम नहीं है कि उत्तर प्रदेश की बी0एस0पी0 सरकार इन दोनों मुद्दो पर एक प्रगतिशील तथा किसान हितैषी नीति बना चुकी है। युवराज को बी0एस0पी0 की इस पहल की प्रशंसा करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कंाग्रेस के युवराज उत्तर प्रदेश की सरकार की प्रशंसा भले ही न करें, लेकिन यह देखकर उन्हें शर्म अवश्य आयेगी। उन्होंने कहा कि यदि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यू0पी0ए0 की सरकार भूमि अधिग्रहण पर अपनी कोई नीति नहीं बना पा रही है, तो उसे उत्तर प्रदेश सरकार की भूमि अधिग्रहण नीति की नकल कर लेनी चाहिए।
प्रवक्ता ने राज्य सरकार पर लगाये गये सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि कांग्रेस के नेताओं को उत्तर प्रदेश में नाटकबाजी करने की बजाय कांग्रेस शासित राज्यों में किसानों को दुर्दशा की ओर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि कांग्रेस के युवराज किसानों की समस्याओं को लेकर ज्यादा ही संवेदनशील है तो उन्हे उत्तर प्रदेश की भांति पूरे देश के लिये एक सर्वमान्य भूमि अधिग्रहण नीति बनाने पर जोर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेता किसान महापंचायत के नाम पर प्रदेश की कानून-व्यवस्था को खराब करने का प्रयास कर रहे हंै।
प्रवक्ता ने कहा कि किसान महापंचायत में किसानों की मौजूदगी कम होने से कांग्रेस के ड्रामा की पूरी हवा निकल गयी और बौखलाये हुए कांग्रेस के नेता राज्य सरकार पर अनाप-शनाप आरोप लगाने पर उतारू हो गये। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेताओं को महाराष्ट्र के विदर्भ तथा आन्ध्र प्रदेश में किसानों की बदहाली नजर नहीं आ रही है और सिर्फ राजनीतिक रोटी सेंकने के लिये उत्तर प्रदेश में घूम-घूमकर किसानों को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि केन्द्र में लगभग 50 वर्ष तथा प्रदेश की सत्ता में लगभग 38 वर्ष तक शासन करने के बाद भी किसानों की स्थिति यदि दयनीय बनी हुई है तो इसके लिये कौन जिम्मेदार है ? इसका उत्तर कांग्रेस पार्टी को देना चाहिए।
पार्टी प्रवक्ता ने कांग्रेस के युवराज द्वारा मनरेगा को लेकर उठाये गये सवाल पर कहा कि उत्तर प्रदेश की बी0एस0पी0 सरकार ने गरीबों को स्थायी रोजगार देने तथा मजदूरों का पलायन रोकने के लिए यू0पी0ए0 सरकार द्वारा ठोस कदम उठाये जाने के लिए कई बार अनुरोध भी किया। लेकिन केन्द्र सरकार द्वारा इस दिशा में कोई पहल नहीं की गयी। जहां तक उत्तर प्रदेश में मनरेगा के क्रियान्वयन का सवाल है इस सम्बन्ध में स्पष्ट करना है कि मनरेगा में भारत सरकार से 7700 करोड़ रु0 मांगे गये थे, किन्तु केन्द्र द्वारा मजदूरी बजट के रूप में वित्तीय वर्ष 2009-10 में केन्द्रांश के रूप में 7084 करोड़ रु0 अनुमोदित किये गये, जिसके विरूद्ध मात्र 5318.7 करोड़ रु0 की धनराशि उपलब्ध करायी गयी। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश उन चुनिन्दा राज्यों में हैं जहां मनरेगा की धनराशि के त्वरित हस्तान्तरण की व्यवस्था सुनिश्चित की गयी है। उन्होंने कहा कि ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर रखे आंकड़ों में स्पष्ट है कि इस योजना के क्रियान्वयन में उत्तर प्रदेश प्रथम स्थान पर रहा है।
प्रवक्ता ने कहा कि उत्तर प्रदेश की बी0एस0पी0 सरकार किसानों के हितों के प्रति पूरी तरह सजग एवं संवेदनशील है। इसी को दृष्टिगत रखते हुए देश की पहली किसान हितैषी एवं प्रगतिशील भू-अधिग्रहण नीति घोषित की गयी है। यदि कांग्रेस के लोग चाहते तो उन्हें भू-अधिग्रहण कानून-1894 में बदलाव करने तथा किसानों के लिए और उपयोगी बनाने से किसने रोका था। सच्चाई यह है कि कांग्रेस के लोग भू-अधिग्रहण के मामले पर किसानों को गुमराह करकेे राजनीतिक रोटी सेंकने के प्रयास में जुटे हुए हैं। उन्होंने कहा कि बी0एस0पी0 ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि देश में भू-अधिग्रहण पर एक समान राष्ट्रीय नीति बनायी जाए अन्यथा बी0एस0पी0 मानसून सत्र के दौरान संसद को नहीं चलने देगी।
प्रवक्ता ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा राज्य सरकार के साथ असहयोगपूर्ण रवैये तथा सौतेला व्यवहार के बावजूद राज्य सरकार अपने सीमित संसाधनों से किसानों को समय से बिजली, सिंचाई के साधन, खाद एवं बीज की सुविधाएं सुलभ कराया है, जिसके फलस्वरूप उत्तर प्रदेश को पूरे देश में खाद्यान्न उत्पादन के लिए बेस्ट परफार्मेंस स्टेट घोषित किया गया है। उत्तर प्रदेश की माननीया मुख्यमंत्री सुश्री मायावती जी ने किसानों की समृद्धि व उनके उत्पादों का लाभकारी मूल्य दिलवाने के लिए भी अनेकों नीतिगत फैसले लिये। जिसके परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश में खाद्यान्न उत्पादन में लगातार बढ़ोत्तरी हुई है। राज्य सरकार ने अपने सीमित संसाधनों के बलबूते पर ऐसे कई महत्वपूर्ण बुनियादी कार्य किये हैं, जो पिछली सरकारें अपने शासनकाल के दौरान कभी नहीं कर पायीं।
प्रवक्ता ने किसान पंचायत में कांग्रेस के नेताओं द्वारा भूमि अधिग्रहण तथा किसानों की उपेक्षा को लेकर लगाये गये सभी आरोपों को आधारहीन बताते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश की माननीया मुख्यमंत्री सुश्री मायावती जी ने विगत् 02 जून को लखनऊ में किसान पंचायत आयोजित करके किसानों से सीधा संवाद किया और उनकी समस्याओं को सुनकर उनके सुझावों के अनुरूप एक नई प्रगतिशील भूमि अधिग्रहण नीति घोषित की और उसे तुरन्त लागू करने का ऐलान किया। इसके तहत निजी क्षेत्र में विकासकर्ता को कम से कम 80 प्रतिशत प्रभावित किसानों से आपसी सहमति पैकेज के आधार पर जमीन सीधे प्राप्त करनी होगी और यदि 80 प्रतिशत किसान सहमत न हों तो परियोजना पर पुनर्विचार किया जायेगा।
प्रवक्ता ने कहा कि नई नीति के तहत जिला प्रशासन इसमें मात्र फेैसिलिटेटर की भूमिका निभायेगा। पैकेज के तहत किसानों को दो विकल्प उपलब्ध होंगे, या तो वे प्रतिशत विकसित भूमि लें जिसके साथ 23 हजार रूपये प्रति एकड़ की वार्षिकी भी 33 साल तक मिलेगी, अथवा 16 प्रतिशत भूमि में से कुछ भूमि के बदले नकद प्रतिकर ले सकते हैं। उन्होंने कहा कि किसानों को दी जाने वाली विकसित भूमि निःशुल्क मिलेगी और उस पर कोई स्टैम्प ड्यूटी व रजिस्टेªशन शुल्क नहीं लगेगा।
प्रवक्ता ने कहा कि यदि नकद मुआवजे की रकम से, एक वर्ष के भीतर प्रदेश में कहीं भी कृषि भूमि खरीदी जाती है तो उसमें भी स्टैम्प ड्यूटी से पूरी छूट मिलेगी। इसके तहत 80 प्रतिशत किसानों से समझौते के बाद ही अवशेष भूमि पर अधिग्रहण के लिए धारा 6 इत्यादि की कार्यवाही की जायेगी। यदि भूमि नगर विकास प्राधिकरणों, औद्योगिक विकास प्राधिकरणों आदि द्वारा ली जाती है जिनका मास्टर प्लान बनाया जाता है तो ऐसी भूमि भी राज्य सरकार की करार नियमावली के तहत आपसी समझौते से ही ली जायेगी।
प्रवक्ता ने कहा कि भूमि अधिग्रहण नीति में अधिग्रहीत भूमि के बदले किसानों को दो विकल्प प्रदान किये गये हैं। पहले विकल्प के अनुसार प्रतिकर की धनराशि करार नियमावली के तहत सम्बन्धित सार्वजनिक उपक्रम द्वारा उदार रवैया अपनाते हुए आपसी समझौते से निर्धारित की जायेगी। इसके अलावा प्रभावित किसानों को पुनर्वास एवं पुनस्र्थापना नीति के सभी लाभ भी उपलब्ध कराये जायेंगे। दूसरे विकल्प के तहत अधिग्रहीत भूमि के कुल क्षेत्रफल का 16 प्रतिशत विकसित करके निःशुल्क दिया जायेगा।
प्रवक्ता ने कहा कि नीति में 23 हजार रूपये प्रति एकड़ की वार्षिकी भी 33 साल तक मिलेगी। किसान यदि चाहें तो 16 प्रतिशत भूमि में से कुछ भूमि के बदले नकद प्रतिकर भी ले सकते हैं। इन मामलों में भी स्टैम्प ड्यूटी की छूट वैसे ही मिलेगी जैसे कि निजी क्षेत्र द्वारा भूमि अधिग्रहण के मामलों में दी गयी है। यदि नकद मुआवजे से एक वर्ष के भीतर किसान द्वारा प्रदेश में कहीं भी कृषि भूमि खरीदी जाती है तो उसमें भी स्टैम्प ड्यूटी से पूरी छूट मिलेगी।
प्रवक्ता ने कहा कि यदि भूमि का अधिग्रहण अथवा अंतरण किसी कम्पनी के प्रयोजन हेतु होगा तो किसानों को पुनर्वास अनुदान की एकमुश्त धनराशि में से 25 प्रतिशत के समतुल्य कम्पनी शेयर लेने का विकल्प उपलब्ध होगा। परियोजना क्षेत्र में कृषि भूमि वाले ऐसे प्रत्येक प्रभावित परिवार, जिनकी पूरी भूमि अर्जित अथवा अंतरित की जायेगी, उन्हें आजीविका में हुए नुकसान की भरपाई के लिए पांच वर्षों की न्यूनतम कृषि मजदूरी के बराबर एकमुश्त धनराशि वित्तीय सहायता के तौर पर दी जायेगी।
प्रवक्ता ने यह भी बताया कि नई नीति के तहत ऐसे प्रभावित परिवार जो भूमि अर्जन अथवा अंतरण के परिणाम स्वरूप सीमान्त किसान हो जायेंगे, उन्हें पांच सौ दिन की न्यूनतम कृषि मजदूरी के बराबर एकमुश्त वित्तीय सहायता दी जायेगी। इसी तरह जो प्रभावित परिवार छोटे किसान बन जायेंगे, उन्हें 375 दिनों की न्यूनतम कृषि मजदूरी के बराबर एकमुश्त वित्तीय सहायता दी जायेगी। यदि परियोजना प्रभावित परिवार खेतिहर मजदूर अथवा गैर-खेतिहर मजदूर की श्रेणी का होगा तो उसे 625 दिनों की न्यूनतम कृषि मजदूरी के तौर पर एकमुश्त वित्तीय सहायता दी जायेगी।
प्रवक्ता ने कहा कि इसी तरह प्रत्येक विस्थापित परिवार को 250 दिनों की न्यूनतम कृषि मजदूरी के बराबर एकमुश्त धनराशि का अतिरिक्त रूप में भुगतान किया जायेगा। औद्योगिक विकास प्राधिकरण में पुश्तैनी किसानों को अधिग्रहीत की गयी कुल भूमि के 7 प्रतिशत के बराबर आबादी पूर्व निर्धारित शर्तों पर यथावत दी जाती रहेगी।भूमि अधिग्रहण से प्रभावित प्रत्येक ग्राम में विकासकर्ता संस्था द्वारा एक किसान भवन का निर्माण अपने खर्च पर कराया जायेगा।
प्रवक्ता ने बताया कि विकासकर्ता संस्था द्वारा परियोजना क्षेत्र में कम से कम कक्षा आठ तक एक माडल स्कूल खेल के मैदान सहित संचालित किया जायेगा, जिसके भवन का निर्माण परियोजना विकासकर्ता द्वारा किया जायेगा। निजी क्षेत्र की यदि किसी परियोजना से प्रभावित किसानों में से 80 प्रतिशत से कम किसान सहमति देते हैं, तो परियोजना पर पुनर्विचार किया जायेगा। इस प्रकार अधिग्रहीत की गयी भूमि के कुल क्षेत्रफल की 16 प्रतिशत भूमि को विकसित करके प्रभावित किसान को निःशुल्क देने की जो ऐतिहासिक व्यवस्था की गयी है, उससे किसान अब विकास का समुचित लाभ प्राप्त कर सकेंगे।
प्रवक्ता ने बताया कि माननीया मुख्यमंत्री जी ने 11 जून, 2011 को माननीय प्रधानमंत्री जी को पत्र लिखकर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा घोषित इस नई भूमि अधिग्रहण नीति के प्राविधानों को केन्द्र सरकार के विभिन्न उपक्रमों, विभागों तथा प्रतिष्ठानों जैसे रेल, राष्ट्रीय राजमार्ग, गैस अथाॅरिटी आफ इण्डिया लिमिटेड, एन0टी0पी0सी0 आदि द्वारा किये जा रहे भूमि अधिग्रहण में इस नीति के प्राविधानों को लागू करने का अनुरोध किया है। जिससे उत्तर प्रदेश में भूमि अधिग्रहण के सम्बन्ध में एकरूपता बनी रहे।
प्रवक्ता ने कहा कि राज्य सरकार के प्रयासों के चलते वर्ष 2010-11 में प्रदेश में 471.38 लाख टन खाद्यान्न का उत्पादन करके उत्तर प्रदेश ने अनाज के उत्पादन में पंजाब व हरियाणा राज्य को पीछे छोड़ते हुए देश का सबसे बड़ा अन्न उत्पादक राज्य बन गया है। इस उपलब्धि के लिए भारत सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश को आगामी 16 जुलाई को पुरस्कृत किया जायेगा। राज्य सरकार ने जहां एक ओर पिछले चार वर्षाें में किसानों की आय दोगुना करने के उद्देश्य से कृषि, उद्यान, पशुपालन, दुग्ध विकास, मत्स्य कृषि विपणन आदि कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक संचालित किया है, वहीं दूसरी ओर किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए पूरी गम्भीरता से प्रयास किया है।
प्रवक्ता ने कहा कि प्रदेश के किसानों की बेहतरी के लिए राज्य सरकार द्वारा विभिन्न कदम उठाये गये हैं। जिसके तहत बुन्देलखण्ड क्षेत्र की खुशहाली के लिए ड्रिप एवं स्पिं्रकलर इरीगेशन पद्धति को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके लिए लघु एवं सीमान्त कृषकों तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सभी कृषकों के लिए यह पद्धति निःशुल्क उपलब्ध करायी गयी तथा अन्य श्रेणी के कृषकों को 75 प्रतिशत अनुदान पर उपलब्ध कराया जा रहा है। वर्ष 2010-11 में 3550 स्पिं्रकलर इरीगेशन प्रणाली का वितरण किया गया।
प्रवक्ता ने बताया कि प्रदेश के बागपत, औरैया एवं जौनपुर में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में खरीफ से मौसम आधारित फसल बीमा योजना प्रारम्भ की गयी। रबी 2010-11 में 300.08 लाख मै0टन गेहॅूं की पैदावार का अनुमान है तथा 31.13 कु0 प्रति हे0 गेहॅूं की उत्पादकता का अनुमान है, जोकि गत वर्षाें की अपेक्षा सर्वाधिक है। खरीफ 2010-11 में प्रदेश में मौसम की विपरीत परिस्थितियों के बावजूद 119.40 लाख मै0टन चावल का उत्पादन हुआ तथा 151.16 लाख मै0टन कुल खाद्यान्न का उत्पादन हुआ। वर्ष 2010-11 में 218.15 लाख हे0 क्षेत्र में रबी एवं खरीफ फसलों का आच्छादन किया गया जबकि गत वर्ष 194.86 लाख हे0 क्षेत्र में आच्छादन हुआ था।
प्रवक्ता ने बताया कि वर्ष 2010-11 में 55.32 लाख कु0 उन्नत श्रेणी के बीजों का वितरण किया गया जो गत वर्ष की तुलना में 7.13 लाख कु0 अधिक है। उन्होंने बताया कि उर्वरक वितरण कार्यक्रम के अन्तर्गत वर्ष 2010-11 में 83.43 लाख मै0टन उर्वरकों का वितरण किया गया जो गत वर्ष के वितरण से 9.89 लाख मै0टन अधिक है। कृषकों को रबी में फास्फेटिक उर्वरकों की उपलब्धता समय से कराने के लिए 2010-11 में 6.83 लाख मै0टन फास्फेटिक उर्वरकों की प्री-पोजीशनिंग करायी गयी तथा वर्ष 2011-12 में 10 लाख मै0टन प्री-पोजीशनिंग की व्यवस्था सुनिश्चित की जायेगी। उन्होंने कहा कि यू0पी0ए0 सरकार ने अप्रैल, 2011 से यूरिया पर 289 रूपये प्रति मै0टन अतिरिक्त कर लागू किया है। इसके अलावा रासायनिक उर्वरकों पर भी 1.03 प्रतिशत सेन्ट्रल एक्साइज कर लगाया है। इससे किसानों को अन्य प्रदेशों की तुलना में ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है। इसके अलावा उर्वरकों की आपूर्ति आवश्यकतानुसार प्रदेश को नहीं की जा रही है।
प्रवक्ता ने बताया कि वर्ष 2010-11 में कुल 30.16 लाख किसान क्रेडिट कार्ड कृषकों के मध्य वितरित किये गये जबकि गत वर्ष से 5.59 लाख किसान के्रडिट कार्ड अधिक वितरित किये गये। चावल, गेहॅूं, मक्का एवं गन्ना की फसलों की उत्पादकता एवं उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से पूर्वी उत्तर प्रदेश के 27 जनपदों में उत्तर प्रदेश में हरित क्रांति के विस्तार की रणनीतिक योजना प्रारम्भ की गयी। प्रदेश के तीन जनपदों- बागपत, औरैया एवं जौनपुर में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इस वर्ष खरीफ से मौसम आधारित फसल बीमा योजना प्रारम्भ की गयी।
प्रवक्ता ने बताया कि राज्य सरकार गन्ना किसानों की आर्थिक स्थिति और अधिक मजबूत करने के लिए वर्ष 2008-09 में 15 रूपया प्रति कुन्टल, 2009-10 मंे 25 रूपया प्रति कुन्टल तथा वर्ष 2010-11 में एकमुश्त 40 रूपया प्रति कुन्टल गन्ना मूल्य में अभूतपूर्व वृद्धि की गयी है। इसके साथ ही पेराई सत्र 2010-11 में राज्य परामर्शित गन्ना मूल्य आधार पर कुल 13031.11 करोड़ रूपया गन्ना मूल्य के रूप में देय हुआ, जिसके सापेक्ष रू0 12791.36 करोड़ का भुगतान किया जा चुका है। इस पेराई सत्र 2010-11में शासन की सर्वोच्च प्राथमिकता के अनुरूप चीनी मिलों से गत पेराई सत्र 2009-10 के अवशेष गन्ना मूल्य का ब्याज भी वसूल कर किसानों को रू0 1475.68 लाख का ब्याज वितरित किया गया। गन्ना घटतौली पर अर्थदण्ड 5000 रूपये से बढ़ाकर 50,000 रूपये तथा पुनरावृत्ति होने पर 1000 रूपये के स्थान पर 5,000 रूपये प्रतिदिन के जुर्माने का प्राविधान किया गया है।
प्रवक्ता ने बताया कि खेती-किसानी में सिंचाई की भूमिका अतिमहत्वपूर्ण होने के कारण राज्य सरकार ने लगभग 73,926 किलोमीटर लम्बी नहरों से सृजित 123 लाख हैक्टेयर सिंचन क्षमता के उपयोग के लिए कार्य योजना तैयार की। जिसके फलस्वरूप वर्ष 2010-11 में अब तक की सर्वाधिक 9007 नहरों की टेल खरीफ फसल में तथा 9134 नहरों की टेल तक रबी फसल में पानी पहुॅचाकर कीर्तिमान स्थापित किया गया है। इसके अलावा वर्ष 2010-11 में 28,287 किलोमीटर लम्बाई में नहरों की सिल्ट सफाई कराई गई जो अभी तक का अधिकतम है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2010-11 में नहरों एवं नलकूपों द्वारा रबी तथा खरीफ फसल में 58.22 लाख हैक्टेयर कृषि क्षेत्र में सिंचाई की गयी जो पिछले 15 वर्षो में अधिकतम है।
प्रवक्ता ने बताया कि किसानों को शोषण से मुक्ति दिलाने हेतु ”सींच नहीं तो कर नहीं “ की नीति लागू की गयी। इसी प्रकार किसानों के हित में ”शामिल बरहा“ कानून समाप्त किया गया जिससे किसानों को अपना पानी सिंचाई विभाग की गूल से ले जाने पर कोई सिंचाई शुल्क नहीं देना पडेगा। इसके साथ ही नहरों के निर्माण के लिए अधिग्रहित की गयी भूमि का प्रतिकर देने के पश्चात ही निर्माण कार्य आरम्भ करने की व्यवस्था लागू की गयी। ऐसे छोटे-छोटे एवं गरीब लघु एवं सीमान्त कृृषक जो अपने लघु सिंचाई संसाधनों का विकास करने हेतु सक्षम नहीं थे के समूहों के लिये डा0 भीमराव अम्बेडकर नलकूप योजना तथा डा0 अम्बेडकर सामूहिक नलकूप योजना वर्ष 2007-08 से प्रारम्भ की गयी।
प्रवक्ता ने बताया कि प्रदेश के किसानों को बिजली के क्षेत्र में काफी राहत दी गयी है। किसानों को खेती-बारी हेतु जुलाई माह से 14 घण्टे विद्युत आपूर्ति करायी जा रही है। इस तरह प्रदेश के इतिहास में इतनी बिजली पहले कभी उपलब्ध नहीं करायी गयी। इसके साथ ही वर्ष 2010-11 के सभी लम्बित बी.एण्ड एल. फार्म के अधीन निजी नलकूप ऊर्जीकृत करने का लक्ष्य रखा गया है। इस वर्ष 50,000 निजी नलकूपों को ऊर्जीकृत किया जायेगा, जो पिछले वर्ष की संख्या से दुगुनी है। ओ0टी0एस0 की सुविधा प्रत्येक वर्ष दी जा रही है, इस वर्ष जुलाई से सितम्बर माह तक ओ0टी0एस0 की सुविधा दी गयी है, जिसमें 100 प्रतिशत सरचार्ज माफ किया गया है। किसानों को किश्तों की भी सुविधा दी गयी है।
प्रवक्ता ने बताया कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में किसानों को निर्वाध विद्युत आपूर्ति देने तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 24 घंटे विद्युत आपूर्ति उपलब्ध कराने के उद्देश्य से कृषि के फीडर अलग करने हेतु डा0 अम्बेडकर ऊर्जा कृषि सुधार योजना लागू की गयी है। इसी तरह लगभग 1800 रू0 करोड़ खर्च कर पश्चिमांचल उ0प्र0 के किसानों के फीडर अलग कर बेहतर विद्युत व्यवस्था दी जायेगी। उन्होंने बताया कि किसानों को आवश्यकतानुसार 7.5 हार्स पावर से कम के0वी0ए0 के कनेक्शन पम्पसेट के ऊर्जीकरण के लिए निर्देश निर्गत किये जा चुके हैं। इसी के साथ ही पम्पसेट कनेक्शन पर लगने वाले कैपिस्टिर चार्ज के बजाय केपिस्टर की लागत किश्तों में वसूल करने की प्रक्रिया प्रारम्भ की जा रही है।
प्रवक्ता ने बताया कि किसानों द्वारा एक वर्ष का बिल अग्रिम भुगतान किये जाने पर 10 प्रतिशत का डिस्काउन्ट देने हेतु याचिका विद्युत नियामक आयोग में दाखिल की जा चुकी है तथा बिना मीटर की विद्युत आपूर्ति वाले ग्रामीण उपभोक्ताओं केा विद्युत देय के भुगतान के लिए पासबुक उपलब्ध कराने हेतुं तथा पोस्ट आफिस में बिल जमा करने की सुविधा उपलब्ध कराने हेतु निर्देश निर्गत किये जा चुके हैं।
प्रवक्ता ने बताया कि लम्बे समय से कृषि क्षेत्र के उपभोक्ताओं की मृत्यु की दशा में कनेक्शन उनके वारिस के नाम हस्तान्तरित करने की सरल व्यवस्था करने की मांग की जाती रही है। राज्य सरकार ने इस समस्या का समाधान करने के लिए आवश्यक आदेश जारी कर दिया है। इसके साथ ही अवैध कनेक्शन को नियमित करने के लिए देय धनराशि बी.पी.एल. श्रेणी के लिए 250.00 रूपये एवं ए.पी.एल. श्रेणी के लिए रू0 500.00 प्रति कनेक्शन के निर्देश निर्गत किये जा चुके हैं।
पार्टी प्रवक्ता ने बताया कि वर्ष 2010-11 में धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1000 रूपये प्रति कुन्टल की दर से घोषित करते हुए 14.46 लाख मी0टन धान की खरीद सीधे किसानों से की गई। इसी तरह रबी विपणन वर्ष 2011-12 में गेहूं का समर्थन मूल्य 1120 रूपये प्रति कुन्टल घोषित करते हुए 50 रूपये प्रति कुन्टल का अतिरिक्त बोनस प्रदान करके 34.59 लाख मी0टन गेहूं की रिकार्ड खरीद की गयी। इसके बावजूद भी भारतीय खाद्य निगम द्वारा 15 जून, 2011 के बाद भण्डार डिपो में भेजे गये गेहूं का भुगतान धनाभाव के कारण पूरी तरह रोक दिया गया है। जिसके कारण प्रदेश की विभिन्न क्रय एजेन्सियों का लगभग 1120 करोड़ रूपये का भुगतान अवशेष है। जिसकी वजह से क्रय एजेन्सियों को न केवल ब्याज के रूप में अत्यधिक हानि हो रही है, बल्कि उनकी आर्थिक स्थिति पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के अन्तर्गत गेहूं क्रय में भारतीय खाद्य निगम असहयोग कर रहा है।
पार्टी प्रवक्ता ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2006-07 में विभिन्न मण्डियों में कृषकों की कुल आवक 339 लाख मी0टन थी जो वर्ष 2010-11 में बढ़कर 442 लाख मी0 टन हो गयी। इस प्रकार चार वर्षों में मण्डी समितियों में कृषकों की आवक में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई। किसान भाइयों को उनकी उपज का उचित एवं लाभकारी मूल्य दिलाने हेतु 100 वर्ग कि0मी0 के क्षेत्र में एक मण्डी स्थापित किये जाने की योजना है जिसके अंतर्गत चार वर्षों में 2105 मण्डियों की स्थापना किया जाना है जिससे किसानों को अपनी उपज बेचने हेतु दूर नहीं जाना पड़ेगा। प्रथम चरण में वित्तीय वर्ष 2011-12 में 526 मण्डी के निर्माण की कार्यवाही प्रगति पर है।
संक्षेप में यही कहना है कि उत्तर प्रदेश में बी0एस0पी0 की सरकार ने हर मामले में किसानों के हित में जमीनी व ठोस कार्य किये हैं।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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