सिविल न्यायालय प्रक्रिया जैसी सुनवाई की व्यवस्था
जनता को राजस्व, नगर विकास, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य तथा खाद्य रसद विभाग सम्बंधी सेवाओं की गारंटी मिली
250 रूपये से 5000 तक दण्ड का प्राविधान तथा आचरण नियमावली के तहत भी कार्यवाही की व्यवस्था
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा समाज के कमजोर और गरीब वर्गों की दिन-प्रतिदिन की कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुये उत्तर प्रदेश जनहित गारण्टी अध्यादेश 15 जनवरी से लागू किया गया है, अब इस पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद-200 में प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करते हुए श्री राज्यपाल द्वारा अनुमति प्रदान कर दी गई है। इस लिए यह राज्य का अधिनियम बन गया है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य सरकार द्वारा विभिन्न विभागों द्वारा प्रदान की जाने वाली लोक सेवाओं के लिए समय सीमा निर्धारित करना है। इस अधिनियम में कुल 11 धाराएं हैं तथा सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के तहत इसको सिविल न्यायालय का अधिकार प्राप्त है। जिसके तहत आमजन को प्रथम चरण में चििन्हत सेवाएं निर्धारित समय में हासिल करने की गारण्टी मिल गई है। उत्तर प्रदेश जनहित गारण्टी अधिनियम के लागू हो जाने से प्रदेश की जनता को चििन्हत सेवाओं को प्राप्त करने के लिये अब न तो किसी इच्छा पर निर्भर रहना होगा और न ही किसी से कोई सिफारिश की ही जरूरत होगी।
जनहित गारण्टी अधिनियम के तहत प्रथम चरण में राजस्व, नगर विकास, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य तथा खाद्य व रसद विभाग की सेवाओं को सम्मिलित किया गया है। इस कानून में समय सीमा निर्धारित करते हुये समयावधि में सेवा न उपलब्ध कराने वाले अधिकारियों की जवाबदेही स्पष्ट रूप से तय कर दी गई है। इन विभागों की सेवाओं के पदधारित अधिकारियों को प्रथम व द्वितीय अपीलीय प्राधिकारी के रूप में सेवाओं सम्बंधी अपील का निस्तारण समय सीमा के अन्दर करना होगा।
जनहित गारण्टी अधिनियम के तहत राजस्व विभाग में जाति प्रमाण-पत्र, आय-प्रमाण पत्र, भूमि का अविवादित नामान्तरण, किसान बही सम्बंधी सेवा के लिए तहसीलदार को पदधारित अधिकारी नामित करते हुए उन्हें 20 कार्य दिवस का समय दिया गया है। उपजिलाधिकारी को प्रथम अपील अधिकारी के रूप में 30 कार्य दिवस का समय दिया गया है। इसी प्रकार जिलाधिकारी को द्वितीय अपील अधिकारी बनाया गया है। निवास प्रमाण पत्र के लिये उप जिलाधिकारी को पदधारित अधिकारी नामित करते हुए उन्हें 20 कार्यदिवस तथा जिलाधिकारी को प्रथम अपील अधिकारी नामित करते हुए उन्हें 30 कार्य दिवस का समय दिया गया है। मण्डलायुक्त को द्वितीय अपील अधिकारी बनाया गया है।
इसी तरह नगर विकास विभाग में नगर निगम क्षेत्र में सम्पत्ति का अविवादित नामान्तरण, नवीन जल आपूर्ति संयोजन, जन्म-मृत्यु प्रमाण-पत्र के लिये क्रमश: जोनल अधिकारी, क्षेत्रीय अभियन्ता तथा अधिशासी अधिकारी/स्वास्थ्य अधिकारी को पदधारित अधिकारी नामित करते हुए उन्हें 45 कार्य दिवस का समय दिया गया है। नगर आयुक्त, महाप्रबंधक, जल संस्थान तथा उप जिलाधिकारी/अपर नगर आयुक्त को प्रथम अपील अधिकारी बनाया गया है और उन्हें 30 दिन के कार्य दिवस का समय दिया गया है। द्वितीप अपील अधिकारी के रूप में क्रमश: मण्डलायुक्त, नगर आयुक्त, जिलाधिकारी/नगर आयुक्त को नामित किया गया है।
जनहित गारण्टी अधिनियम के तहत चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में विकलांगता प्रमाण पत्र के लिये मुख्य चिकित्सा अधिकारी को पदधारित अधिकारी नामित किया गया है और उन्हें 60 कार्य दिवस का समय दिया गया है। प्रथम, मण्डलीय अपर निदेशक अपील अधिकारी बनाते हुये उन्हें 90 कार्य दिवस की समय सीमा दी गई है।
खाद्य एवं रसद विभाग में नया ए0पी0एल0 कार्ड जारी करने के लिये नगरीय क्षेत्र में लिए क्षेत्रीय खाद्य अधिकारी/जिला पूर्ति अधिकारी तथा ग्रामीण क्षेत्र में बी0डी0ओ0 को पदधारित अधिकारी बनाया गया है और उन्हें 30 कार्य दिवस का समय दिया गया है। जिलाधिकारी एवं उप जिलाधिकारी को प्रथम अलीप अधिकारी बनाया गया है और उन्हें 30 कार्य दिवस की समय सीमा दी गई है। मण्डलायुक्त तथा जिलाधिकारी को द्वितीय अपील अधिकारी बनाया गया है।
इस अधिनियम के लागू होने से किसी भी आवेदक निर्धारित अवधि के अन्दर सम्बंधित सेवा उपलब्ध कराना सम्बंधित अधिकारी की जिम्मेदारी होगी। आवेदन/मांग अस्वीकृत होने की दशा में प्रथम अपील अधिकारी को 30 दिन के अन्दर अपील करनी होगी। यदि किसी कारण वश सम्बंधित अपील अधिकारी द्वारा भी न्याय नहीं मिल पाता है तो आवेदक को प्रथम अपील के निर्णय से 60 दिन के अन्दर द्वितीय अपील अधिकारी को अपील करनी होगी। निर्धारित अवधि में आवेदक को अपील अधिकारी सम्बंधित सेवा उपलब्ध कराने का आदेश दे सकता है या अपील अस्वीकार भी कर सकता है। इसमें द्वितीय अपील अधिकारी भी सम्बंधित पदाधिकारी अधिकारी को सेवा प्रदान करने का अधिकार दे सकता है या उसे अस्वीकार कर सकता है।
जनहित गारण्टी अधिनियम के अन्तर्गत प्रथम तथा द्वितीय अपील अधिकारियों को सिविल प्रक्रिया संहिता-1908 के तहत सिविल न्यायालय के अधिकार दिये गये हैं। ऐसे मामलों का निस्तारण सिविल प्रक्रिया के अनुसार किया जायेगा एवं द्वितीय अपील अधिकारी को दण्ड आरोपित करने, पक्षकारों को सम्मन जारी करने, दस्तावेजों को प्रकटीकरण तथा निरीक्षण करने का अधिकार होगा। अधिनियम के अन्तर्गत द्वितीय अपील अधिकारी को दण्ड का अधिकारी दिया गया है। अधिनियम के अन्तर्गत यदि यह सिद्ध हो जाये कि पदधारित अधिकारी बिना पर्याप्त एवं युक्तियुक्त कारण से सेवा प्रदान करने में विफल रहता है तो उस अधिकारी को 250 रूपये प्रतिदिन अधिकतम 5000 रूपये तक का अर्थ दण्ड का आदेश दे सकता है। इसमें पदधारित अधिकारी को सुनवाई का पूरा-पूरा अधिकार दिया गया है तथा प्रथम अपील अधिकारी पर कम से कम 500 रूपये तथा अधिकतम 5000 रूपये के आर्थिक दण्ड की व्यवस्था है।
इस अधिनियम में यह भी व्यवस्था की गई है कि यदि पदधारित अधिकारी अधिनियम के अधीन सौंपे गये कर्तव्यों का पालन करने में विफल रह रहें हैं तो उनके खिलाफ प्रचलित सेवा नियमों के अधीन अनुशासनात्मक कार्यवाही के आदेश दे सकते हैं।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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