Posted on 17 March 2010 by admin
ललितपुर - बच्चों के पेट का निबाला छीनने वाले नौ ग्राम पंचायत के प्रधानों पर प्रशासन का शिकंजा कसता जा रहा है। नौ में से एक ग्राम पंचायत पर एफआईआर दर्ज करवाकर प्रशासन ने जता दिया कि शासन की योजना से खिलवाड़ करना अब आसान नहीं होगा। इस कार्यवाही के बाद अब शेष आठ ग्राम पंचायतों पर कार्यवाही होना शेष है।
जिलाधिकारी के तेवरों को देखते हुये लग रहा है कि उन पर भी जल्द ही गाज गिरने वाली है। एफआईआर के डर से कुछ प्रधान तो अपने आकाओं की शरण में पहुंच गये तो कुछ लखनऊ जाकर साठगाठ बिठाने में मशगूल हो गये, लेकिन इस बार लगता नहीं कि वे कार्यवाही से बच पायेंगे। यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो इस माह के अन्त तक सभी दोशी ग्राम प्रधानों पर एफआईआर की कर्यवाही हो जायेगी।
उल्लेखनीय है कि परिषदीय विद्यालयों के बच्चों को कुपोषण और उनका विद्यालय में अधिक से अधिक ठहराव हो, इसलिये सरकार द्वारा मध्यान्ह भोजन योजना लागू की गई । योजना का लाभ बच्चों को अपने कब्जे में कर लिया। बच्चों के हिस्से का निबाला छीनकर खाने वाले ग्राम प्रधानों की करतूतों की जानकारी जब जिलाधिकारी रणवीर प्रसाद को हुई तो उन्होनें इस मामले को गम्भीरता से लिया और ऐसी ग्राम पंचायतों की सूची मागी, जहा पर मध्यान्ह भोजन योजना में भारी गड़बड़ी हुई। शिक्षा विभाग द्वारा ऐसी नौ ग्राम पंचायतों की सूची जिलाधिकारी को उपलब्ध करा दी, जिन पर मध्यान्ह भोजन योजना का लाखों रूपया बकाया था। जिलाधिकारी ने इस मामले को जिला पंचायत राज अधिकारी को सौपते हुये जांच के पश्चात दोषी ग्राम प्रधानों के खिलाफ कठोर कार्यवाही के निर्देश दिये।
जिलाधिकारी से निर्देश मिलने के लगभग एक पखवाड़े तक जिला पंचायत राज अधिकारी और जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी एक - दूसरे को जानकारियों का आदान-प्रदान किया गया। इस बीच कुछ क्षण ऐसे भी आये जब दोनों अधिकारियों के बीच आपसी सामंजस्य नहीं बैठा, लेकिन तमाम जांच करने के बाद जिला पंचायत राज अधिकारी द्वारा मड़ावरा ब्लाक की कारीटोरन ग्राम पंचायत की महिला प्रधान को मध्यान्ह भोजन योजना में दोषी ठहराया और पुलिस थाने में उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी। इस पंचायत के 2 विद्यालयों पर 1 लाख 6 हजार 162 रूपया बकाया होने के बावजूद मध्यान्ह भोजन नहीं बनाया जा रहा था। प्रधान के खिलाफ हुई इस कार्यवाही से हड़कम्प मच गया है। इससे एक ओर जहां अनेक विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन की स्थिति में मामूली सुधार आया है, वहीं अन्य दोशी ग्राम प्रधान अपने आकाओं से नजदीकिया बढ़ाने में जुट ये है। देखना दिलचस्प होगा कि शेष आठ ग्राम प्रधानों के खिलाफ क्या कार्यवाही होती है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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upnewslive.com
Posted on 17 March 2010 by admin
दिल्ली-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर उत्तर प्रदेश के मथुरा से करीब 30 किमी दूर स्थित एक ऐसा मन्दिर है मथुरा जनपद में नरी सेमरी गांव के काली मन्दिर में जमकर लाठियां चलती हैं जहां देवी के दर्शन करने के लिए चैत्र शुक्ल नवमी के दिन सैकड़ों श्रद्धालु तलवार, भाले, बल्लम, लाठी आदि हथियार लेकर आते हैं और जबरन दर्शन कर प्रसाद लूटने का प्रयास करते हैं।
सदियों पूर्व शुरू हुई इस परंपरा अब भी निभाई जाती है। इस मन्दिर की स्थापना का इतिहास भी बड़ा रोचक है। इस मन्दिर का निर्माण एक क्षत्रिय ने कराया और आज तक सेवापूजा भी उसके वंशज ही करते हैं जो आसपास के चार गांवों में बसे हुए हैं। कहा जाता है कि आगरा का ध्यानू भगत नगरकोट स्थित देवी का बहुत बड़ा भक्त था। वह हर साल देवी के दर्शन करने के लिए वहां जाता था। देवी ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर कोई वरदान मांगने को कहा। उसने देवी को ही मांग लिया। देवी ने भी एक शर्त रख दी कि वह रास्ते भर पीछे मुड़कर नहीं देखेगा। अगर ऐसा किया तो देवी अन्तर्ध्यान हो जाएगी।
शर्त मानकर ध्यानू आगे-आगे और देवी पीछे-पीछे चलने लगीं। सेमरी गांव की सीमा में पहुंचकर स्वयं को आश्वस्त करने के लिए ध्यानू ने एक बार जो पीछे मुड़कर देखा तो देवी गायब हो गईं और उसे मायूस होकर खाली हाथ घर लौटना पड़ा।
कुछ समय पश्चात सेमरी गांव के बाबा अजीत सिंह उर्फ अजीता को स्वप्न में भान हुआ कि मां माली की एक प्रतिमा गांव के बाहर अमुक स्थान पर दबी पड़ी है। उन्होंने उस स्थान की खुदाई कर देवी की उक्त प्रतिमा निकाली और संवत 1313 में धूमधाम से उसकी स्थापना करा दी।
ध्यानू भगत को जब यह समाचार मिला तो वह प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन देवी की पूजा अर्चना करने के लिए वहां पहुंचने लगा । लोगों ने देखा कि जब वह मां की आरती करता है तो बड़े-बड़े थालों में रखे दीपकों की लौ आरपार हो जाने के बाद भी उन पर बिछाया गया कपड़ा नहीं जलता।
धीरे-धीरे इस चमत्कार का समाचार लोगों में फैलता गया और श्रद्धालुओं की संख्या में प्रतिवर्ष सैकड़ों का इजाफा होता गया। अब स्थिति यह हो जाती है कि उस दिन मन्दिर में तो क्या पूरे मेला परिसर में पैर रखने के लिए जगह नसीब नहीं होती। नवमी के दिन लट्ठ पूजा के कारण आम श्रद्धालु आसपास तक नहीं फटकते।
लट्ठ पूजा करने वाले लोगों के चले जाने के बाद ही वे पूजा करने आते हैं। लट्ठ पूजा की परंपरा भी बड़े ही अजीबोगरीब अन्दाज में चालू हुई। हुआ यह कि एक बार सूर्यवंशी ठाकुर मन्दिर पर हमला कर देवी की प्रतिमा उठा ले गए। उनसे प्रतिमा वापस लाने में चन्द्रवंशी होने के कारण नरीए साखीए रहेड़ा और अरवाई के ठाकुरों ने सेमरी नगला देवीसिंहए नगला बिरजी और दद्दीगढ़ी के ठाकुरों की खासी मदद की।
बस इसी बात पर वे लोग भी देवी की सेवा.पूजा पर अपना हक जताने लगे। चैत्र शुक्ल नवमी को होने वाली मुख्य पूजा में शामिल होने का उन्होंने कई बार प्रयास किया और उनका यही प्रयास परंपरा बन गया। अब वे प्रतिवर्ष दोपहर से शाम तक एक-एक कर सेमरी गांव में स्थित मन्दिर पर मय हथियारों के चढ़ाई करते हैं और लट्ठपूजा की परंपरा निभाकर चले जाते हैं।
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Vikas Sharma
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