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एक मन्दिर जहां जमकर लाठियां से होती है पूजा

Posted on 17 March 2010 by admin

दिल्ली-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर उत्तर प्रदेश के मथुरा से करीब 30 किमी दूर स्थित एक ऐसा मन्दिर है मथुरा जनपद में नरी सेमरी गांव के काली मन्दिर में जमकर लाठियां चलती हैं  जहां देवी के दर्शन करने के लिए चैत्र शुक्ल नवमी के दिन सैकड़ों श्रद्धालु तलवार, भाले, बल्लम, लाठी आदि हथियार लेकर आते हैं और जबरन दर्शन कर प्रसाद लूटने का प्रयास करते हैं।

सदियों पूर्व शुरू हुई इस परंपरा अब भी निभाई जाती है। इस मन्दिर की स्थापना का इतिहास भी बड़ा रोचक है। इस मन्दिर का निर्माण एक क्षत्रिय ने कराया और आज तक सेवापूजा भी उसके वंशज ही करते हैं जो आसपास के चार गांवों में बसे हुए हैं। कहा जाता है कि आगरा का ध्यानू भगत नगरकोट स्थित देवी का बहुत बड़ा भक्त था। वह हर साल देवी के दर्शन करने के लिए वहां जाता था।  देवी ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर कोई वरदान मांगने को कहा।  उसने देवी को ही मांग लिया। देवी ने भी एक शर्त रख दी कि वह रास्ते भर पीछे मुड़कर नहीं देखेगा।  अगर ऐसा किया तो देवी अन्तर्ध्यान हो जाएगी।

शर्त मानकर ध्यानू आगे-आगे और देवी पीछे-पीछे चलने लगीं।  सेमरी गांव की सीमा में पहुंचकर स्वयं को आश्वस्त करने के लिए ध्यानू ने एक बार जो पीछे मुड़कर देखा तो देवी गायब हो गईं और उसे मायूस होकर खाली हाथ घर लौटना पड़ा।

कुछ समय पश्चात सेमरी गांव के बाबा अजीत सिंह उर्फ अजीता को स्वप्न में भान हुआ कि मां माली की एक प्रतिमा गांव के बाहर अमुक स्थान पर दबी पड़ी है। उन्होंने उस स्थान की खुदाई कर देवी की उक्त प्रतिमा निकाली और संवत 1313 में धूमधाम से उसकी स्थापना करा दी।

ध्यानू भगत को जब यह समाचार मिला तो वह प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन देवी की पूजा अर्चना करने के लिए वहां पहुंचने लगा । लोगों ने देखा कि जब वह मां की आरती करता है तो बड़े-बड़े थालों में रखे दीपकों की लौ आरपार हो जाने के बाद भी उन पर बिछाया गया कपड़ा नहीं जलता।

धीरे-धीरे इस चमत्कार का समाचार लोगों में फैलता गया और श्रद्धालुओं की संख्या में प्रतिवर्ष सैकड़ों का इजाफा होता गया। अब स्थिति यह हो जाती है कि उस दिन मन्दिर में तो क्या पूरे मेला परिसर में पैर रखने के लिए जगह नसीब नहीं होती। नवमी के दिन लट्ठ पूजा के  कारण आम श्रद्धालु आसपास तक नहीं फटकते।

लट्ठ पूजा करने वाले लोगों के चले जाने के बाद ही वे पूजा करने आते हैं। लट्ठ पूजा की परंपरा भी बड़े ही अजीबोगरीब अन्दाज में चालू हुई। हुआ यह कि एक बार सूर्यवंशी ठाकुर मन्दिर पर हमला कर देवी की प्रतिमा उठा ले गए। उनसे प्रतिमा वापस लाने में चन्द्रवंशी होने के कारण नरीए साखीए रहेड़ा और अरवाई के ठाकुरों ने सेमरी नगला देवीसिंहए नगला बिरजी और दद्दीगढ़ी के ठाकुरों की खासी मदद की।

बस इसी बात पर वे लोग भी देवी की सेवा.पूजा पर अपना हक जताने लगे। चैत्र शुक्ल नवमी को होने वाली मुख्य पूजा में शामिल होने का उन्होंने कई बार प्रयास किया और उनका यही प्रयास परंपरा बन गया। अब वे प्रतिवर्ष दोपहर से शाम तक एक-एक कर सेमरी गांव में स्थित मन्दिर पर मय हथियारों के चढ़ाई करते हैं और लट्ठपूजा की परंपरा निभाकर चले जाते हैं।


Vikas Sharma
bundelkhandlive.com
E-mail :editor@bundelkhandlive.com
Ph-09415060119

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