‘‘उत्तर पूर्व के कुछ जनजातीय इलाकों में ऐसी दुर्लभ औषधियाँ मौजूद हैं जो भविष्य में तमाम रोगों से निजात में काम आ सकती हैं। इन पर शोध किये जाने की आवश्यकता है।’’ यह जानकारी आज डाॅ0 एस के बारिक, निदेशक, नेशनल बाॅटेनिकल रिसर्च इंस्टीच्यूट ने प्राचीन भारत में विज्ञान विषय औषधीय पौधों के महत्त्व को रेखांकित करते हुए राज्य स्तरीय गोष्ठी में बोलते हुए दी। पूर्वोत्तर के कुछ जनजातीय इलाकों में ऐसी दुर्लभ औषधियाँ मौजूद हैं जो भविष्य में तमाम रोगों से निजात में काम आ सकती हैं। इन पर शोध किये जाने की आवश्यकता है।
ब्रेकथ्रू साइंस सोसाइटी, लखनऊ व आंचलिक विज्ञान नगरी, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘‘प्राचीन भारत में विज्ञान’’ विषय पर बोलते हुए पद्मश्री डाॅ0 नित्यानन्द ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मानव जीवन में विज्ञान की महत्ता पर व्यापक रूप से प्रकाश डाला।
बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डाॅ0 राणा प्रताप सिंह ने पुरातन भारत के पर्यावरण प्रबंधन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज पर्यावरण के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु हमें प्राचीन पद्धतियों से सीखने की आवश्यकता है।
सेण्टर फाॅर पाॅलिशी रिसर्च के वैज्ञानिक डाॅ0 विवेक के मौर्य ने पुरातन विज्ञान प्रौद्योगिकी द्वारा सिल्क रोड द्वारा वैश्विक व्यापार के महत्त्व पर प्रकाश डाला। एन.बी.आर.आई. के पूर्व वैज्ञानिक डाॅक्टर ए.के.एस. रावत ने पश्चिम हिमालय के औषधीय पौधों के प्राचीन एवं आधुनिक उपयोगों पर अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कि अभी भी तमाम किस्म की औषधियों का मूल्यांकन एवं मानव जीवन में उनकी उपयोगिकता पर शोध करने की जरूरत है। भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण के पूर्व वैज्ञानिक डाॅ0 बी.एस.रावत ने कहा कि पुरातन दौर के भूगर्भीय प्रमाणों के आधार पर आधुनिक विज्ञान में क्रांतिकारी शोध किये जा सकते हैं।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता भटनागर पुरस्कार से सम्मानित विशिष्ट वैज्ञानिक डाॅ0 सौमित्रो बनर्जी, भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (प्प्ैम्त्) कोलकाता के प्रोफेसर और ब्रेकथ्रू साइंस सोसाइटी के अखिल भारतीय महासचिव ने वैदिक और उत्तर वैदिक (सैध्दान्तिक) युग, ईसा पूर्व छठीं शताब्दी से लेकर ग्यारहवीं शताब्दी (लगभग सत्रह सौ साल) के दौरान विज्ञान और गणित- शून्य की खोज, चरक एवं सुश्रुत के हाथों आर्युवेद एवं शल्य चिकित्सा, पाणिनी के हाथों संस्कृत व्याकरण, आर्यभट, ब्रह्मगुप्त और भास्कराचार्य द्वारा बीजगणित, त्रिकोणमित और खगोलविज्ञान- के क्षेत्र में असाधारण प्रगति की चर्चा की। डाॅ0 बनर्जी ने भौतिकीय गणित के साथ भाषा विज्ञान में पुरातन भारत के गणितज्ञों व भौतिक शास्त्रियों के अवदान की चर्चा करते हुए ग्यारहवीं शताब्दी के बाद भारतीय विज्ञान में गिरावट की भी व्यापक चर्चा की।
ब्रेकथ्रू साइंस सोसाइटी के राज्य अध्यक्ष डाॅ0 पी.के.श्रीवास्तव, आंचलिक विज्ञान नगरी, लखनऊ के संयोजक डाॅ0 राज मेहरोत्रा, बायोटेक पार्क के पूर्व सी.ई.ओ. डाॅ0 पी.के.सेठ, आई.आई.टी.आर. के वरिष्ठ वैज्ञानिक डाॅ0 वी.पी.शर्मा, लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डाॅ0 सरजित सेनसर्मा, जियोलाॅजी विभाग व डाॅ0 मधु त्रिपाठी, जूलाॅजी विभाग आदि जैसे तमाम गणमान्य उपस्थित रहे।
कार्यक्रम की शुरुआत व समापन प्रख्यात संगीत शिक्षक श्री असीम सरकार के द्वारा गाये गीतों के जरिये हुई। कार्यक्रम का संचालन बीरबल साहनी पुरातत्व विज्ञान संस्थान के पूर्व वैज्ञानिक डाॅ0 सी.एम. नौटियाल ने व अंत में धन्यवाद ज्ञापन संगठन के राज्य सचिव इं0 जय प्रकाश मौर्य ने किया।