मीडिया बन्धुओं, आज की यह प्रेस कान्फ्रेेंस खासतौर से उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार के तीन वर्ष पूरे होने पर और साथ ही केन्द्र में बीजेपी व श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चल रही एन.डी.ए. सरकार के भी लगभग दस महीने पूरे होने पर इनकी अब तक रही ‘‘नीतियों व कार्यकलापों’‘ के सम्बन्ध में अपनी पार्टी की प्रतिक्रिया ज़ाहिर करने के लिए बुलायी गई है और इस सम्बन्ध में सबसे पहले मैं उत्तर प्रदेश के बारे में यह कहना चाहूँगी कि उत्तर प्रदेश की वर्तमान सपा सरकार ने अभी पिछले महीने ही अपने कार्यकाल के तीन वर्ष पूरे किये हैं और इस मौक़े पर आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में सपा सरकार के मुखिया ने अपनी घोर ‘‘विफलताओं’’ को छिपाने की कोशिश में एक हवाई दावा यह किया है कि सपा सरकार द्वारा सारी की सारी चुनावी घोषणायें तीन वर्ष में ही पूरी कर ली गयी हैं जबकि इस मामले में हकीकत यह है कि ’’उत्तर प्रदेश की सपा सरकार के पिछले 3 वर्षों का कार्यकाल हर मामले में व हर स्तर पर बहुत ही ज्यादा खराब, दुःखदायक व कष्टदायक एवं अति चिन्ताजनक’’ रहा है और खासतौर से प्रदेश में अपराध नियन्त्रण एवं कानून-व्यवस्था के मामले में वर्तमान सपा सरकार अपने सभी पुराने रिकार्ड को तोड़ते हुये इस बार इतनी ज्यादा ‘‘लचर सरकार‘‘ साबित हो रही है कि अब यहाँ आम लोगों का विश्वास ‘‘कानून-व्यवस्था एवं इस सरकार‘‘ से काफी हद तक उठ चुका है।
इसके साथ ही, प्रदेश में ‘‘शासन-प्रशासन‘‘ व्यवस्था लगभग यहाँ ध्वस्त हो चुकी है। प्रदेश में हर तरफ सपा के ‘‘गुण्डों, बदमाशों, माफियाओं एवं अराजक व भ्रष्ट‘‘ तत्वों का बोलबाला है। साथ ही यहाँ ‘‘कानून-व्यवस्था व अपराध नियन्त्रण‘‘ के मामले में इस सरकार के मुखिया की ‘‘लाचारी‘‘ इस बात से भी साफ झलकती है कि जब प्रदेश का मुख्यमंत्री यह कहे कि प्रदेश की कानून-व्यवस्था को ठीक करने के लिए क्या मैं खुद पुलिस की वर्दी पहन लूँ। इस प्रकार से कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश केे मुख्यमंत्री के मुँह से दिया गया यह बयान यहाँ प्रदेश की ‘‘शर्मनाक‘‘ कानून-व्यवस्था की स्थिति को स्वयं दर्शाता है और साथ ही यह बयान सरकार की ‘‘लाचारी‘‘ को भी दर्शाता है, जो कि अत्यन्त ही दुर्भाग्यपूर्ण है। इतना ही नहीं बल्कि पिछले 3 वर्षों में पूरे प्रदेश में चोरी, डकैती, हत्या, लूटमार, फिरौती, अपहरण, बलात्कार, साम्प्रदायिक दंगे व तनाव आदि की वारदातें भी यहाँ काफी ज्यादा चरमसीमा पर पहुँच चुकी है। इसलिए अधिकांश लोग अब यहाँ इस प्रदेश को उत्तर प्रदेश नहीं बल्कि ‘‘क्राईम प्रदेश‘‘ ही कहने लगे हैं।
इसके साथ-साथ इस सरकार में विकास के कार्य जमीन पर बहुत कम और मीडिया में ही ज्यादा प्रचारित किये जा रहे हैं। इसके अलावा इस सरकार के मुखिया ने अभी तक प्रदेश में ‘‘विकास व जनहित’’ के जिन भी कार्याें के ‘उद्घाटन’ आदि किये है, तो उनमें से ज्यादातर कार्य ‘‘बी.एस.पी.‘‘ की सरकार में ही शुरू कर दिये गये थे। इसी क्रम में नोएडा व गाजियाबाद में ‘‘मेट्रो-ट्रेन’’ चलाने के बाद, राजधानी लखनऊ में भी ‘‘मेट्रो-ट्रेन व मोनो रेल’’ के संचालन हेतु अन्तिम रूपरेखा भी बी.एस.पी. की ही सरकार में तैयार कर दी गयी थी। इसके साथ ही कुछ और भी ऐसे कार्य हैं, जिनकी भी शुरूवात बी.एस.पी. की ही सरकार में की गयी थी। जिनका पूरा ‘‘श्रेय‘‘ अब यह सपा सरकार खुद ही लेने की कोशिश में लगी हुई है। लेकिन प्रदेश की जनता इससे पूरी तरह से वाकिफ है। इतना ही नहीं बल्कि यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि वर्तमान सपा सरकार प्रदेश की आमजनता के ‘‘हित व कल्याण‘‘ पर बराबर ध्यान देने के बजाये, अपना ज़्यादातर ‘‘ध्यान व धन’’ अपने पैतृक गांव सैफई पर ही लगाने की इस गलत परम्परा को अभी तक भी लगातार जारी रखे हुये हैं। इस प्रकार की अनेकों और गलत ‘‘कार्य-प्रणाली‘‘ का ही परिणाम है कि उत्तर प्रदेश में सभी वर्गों एवं विभिन्न क्षेत्रों में लगे लोग और उसमें भी इस समय सबसे ज्यादा यहाँ ‘‘लाखों गन्ना किसान’’ अभी तक भी, काफी ज्यादा बदहाल व परेशान हैं।
साथ ही प्रदेश में अभी हाल की हुई ‘‘बेमौसम बारिश व ओलावृष्टि’’ आदि से काफी भयानक तरीके से संकट में फंसे लाखों किसानों की आर्थिक मदद की मांग का भी इस सरकार पर फिलहाल अभी तक भी कोई खास असर नहीं पड़ रहा है। इनके साथ-साथ इस सरकार में खासकर दलित वर्ग के लोगों का और उसमें भी विशेषतौर से सरकारी कर्मचारियों का ‘‘जातिगत व राजनैतिक द्वेष‘‘ की भावना से इनका काफी ज्यादा शोषण किया जा रहा है। और इसी ही मानसिकता के तहत् चलकर अभी हाल ही में इस सरकार ने सिंचाई विभाग के दलित कर्मचारियों को बड़े-पैमाने पर ‘‘रिवर्ट‘‘ ;त्मअमतजद्ध करने का भी फैसला लिया है। जिसकी हमारी पार्टी कड़े शब्दों में निन्दा भी करती है। हालांकि लगभग यही रवैया इस सरकार में अति पिछड़े वर्ग के लोगों के साथ भी अपनाया जा रहा है। इनके इलावा इस सरकार में ‘‘धार्मिक अल्पसंख्यक‘‘ समाज में से खासकर मुसलमानों व अपरकास्ट समाज में से गरीब लोगों की भी कोई खास अच्छी हालत नहीं रही है। और इन सब कारणों से ही पूरे प्रदेश की आमजनता में हर स्तर पर काफी ज़्यादा निराशा व्याप्त है। जिनकी तरफ से ध्यान हटाने के लिए ही अब यह सपा सरकार ‘‘अधिकांश विज्ञापनों व होर्डिंगों’’ आदि पर करोड़ों रूपये ख़र्च करके, कोरी हवाई, प्रचार-प्रसार का ही सहारा लेने का प्रयास कर रही है। ऐसी स्थिति में अब यहाँ सपा सरकार की ‘‘इमेज’‘ लगातार गिरती जा रही है।
किन्तु इसके बावजूद भी यदि सपा सरकार का यह विश्वास व दावा है कि उसने अपने सभी चुनावी वायदांे को अब पूरा करके दिखा दिया है, तो निश्चय ही इसकी अच्छी फसल काटने के लिए फिर समाजवादी पार्टी को बिना कोई देरी किये हुये तत्काल ही इन्हें विधानसभा भंग करके, व मध्यावधि चुनाव कराकर, यहाँ नया जनादेश प्राप्त कर लेने की घोषणा कर देनी चाहिए। परन्तु हवाई बातें करने वाली यह पार्टी कदापि ऐसा कुछ करने वाली नहीं है।
और अब मैं केन्द्र सरकार की ‘‘नीतियों व कार्य-कलापों’’ के बारे में भी यह कहना चाहूँगी कि केन्द्र में बीजेपी व श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली एन.डी.ए. की सरकार को भी बने हुये अब ‘‘लगभग दस महीने’’ पूरे हो चुके हैं। और इस अवधि में इन्होंने ‘देश व जनहित’ में किये गये, अपने चुनावी वायदों को निभाने की तरफ बहुत कम और यहाँ ‘‘बड़े-बड़े पूँजीपतियों व धन्नासेठों’’ आदि के हितों को ही साधने की तरफ ज्यादा अपना ध्यान दिया है। इसके साथ ही इन ‘‘दस महीनों’’ के अन्दर इनको ज्यादा से ज्यादा लाभ पहुँचाने के लिये इस सरकार ने अभी तक अनेकों ‘‘नियम व कानूनों’ में काफी ज्यादा संशोधन भी कर दिये हैं। और खासकर ‘‘भूमि अधिग्रहण संशोधन कानून’’ इस बात का जीता-जागता उदाहरण है। जिसको लेकर, पूरे देश के ‘‘किसान लोग’’ काफी ज्यादा ‘‘गुस्से‘‘ में हैं व ‘‘आन्दोलित‘‘ भी हैं। इसके साथ ही बी.एस.पी. सहित, लगभग सभी विपक्ष की पार्टियाँ भी, इस ‘‘भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक‘‘ के खुलकर विरोध में हैं। हालांकि इसके विरोध में अभी कुछ दिन पहले ‘‘संसद सत्र’’ के दौरान् ही जब विपक्ष ने मिलकर कांग्रेस पार्टी की ‘‘अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गाँधी’‘ की अगुवाई में माननीय राष्ट्रपति जी से मिलने के लिये एक ‘‘पैदल-मार्च’’ निकालने का कार्यक्रम आयोजित किया था तब उसमें हमारी पार्टी के सांसदों ने अपने पूर्व के कई खराब अनुभवों को ध्यान में रखकर व पार्टी हित में, इस मार्च में शामिल नहीं होने का फैसला लिया था। और इस सन्दर्भ में, वैसे आप लोगों को भी यह मालूम है कि जब आज से कुछ वर्ष पहले ‘‘श्रीमती सोनिया गाँधी‘‘ मेरे खुद के जन्म-दिन के मौके पर, मुझे जन्म-दिन की बधाई देने के लिये, दिल्ली के बी.एस.पी. केन्द्रीय कार्यालय में पहुँची थी तो तब उसके बाद, इसकी आड़ में खासकर, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के लोगों ने, इसका यहाँ कुछ समय के बाद होने वाले विधानसभा के आमचुनाव में बी.एस.पी. के साथ मिलकर, चुनाव लड़ने का जानबूझ कर यह गलत प्रचार करके, फिर इसका राजनैतिक लाभ उठाने का भी पूरा-पूरा प्रयास किया था और इनका यह गलत प्रचार, उस समय तब थमा था, जब हमारी पार्टी के उम्मीदवारों को, सभी सीटों पर पार्टी का चुनाव-चिन्ह आवंटित हो गया था। लेकिन फिर भी उस चुनाव में हमारी पार्टी को इसका काफी कुछ नुकसान हुआ था, जिसे मध्यनजर रखते हुये अब हमारी पार्टी आगे ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाना चाहती है जिससे पूर्व की तरह, फिर से हमारी पार्टी को खासकर यहाँ उत्तर प्रदेश में राजनैतिक नुकसान पहुँचे। इसीलिये हमने खासतौर से उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी के हित को ध्यान में रखकर इनके इस पैदल मार्च में शामिल नहीं होने का फैसला लिया था।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमारी पार्टी, वर्तमान केन्द्र की सरकार के ‘‘भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक‘‘ के खिलाफ नहीं है, अर्थात हमारी पार्टी इसके पूरेतौर से विरोध में है। जबकि किसानों के हित में मैंने ‘‘दिनांक 19 मार्च’’ को राज्यसभा के अन्दर स्पष्टतौर से यह कहा था कि वर्तमान केन्द्र की भाजपा की एन.डी.ए. सरकार का भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक किसानों के हित में नहीं है बल्किी यह पूर्णरूप से किसान विरोधी है। ऐसी स्थिति में केन्द्र की वर्तमान सरकार को इस संशोधित विधेयक को वापिस लेकर व इसके स्थान पर ‘‘सन् 2013’’ में बने भूमि अधिग्रहण कानून को ही लागू कर देना चाहिये।
हालांकि इसके साथ ही, उसी ही दिन मैंने उत्तर प्रदेश सहित देश के अधिकांश राज्यों में, पिछले कुछ समय से ‘‘बेमौसमी बारिश (बरसात) व ओलावृष्टि’’ आदि की हुई इस कुदरती मार से पीडि़त किसानों को भी, राज्यों के साथ-साथ केन्द्र की सरकार से भी समय से उन्हें ‘‘उचित मुआवजा’’ देने की भी जबरदस्त गुजारिश की थी। लेकिन अभी तक भी ऐसा नहीं किया जा रहा है। इसके अलावा आज पूरे देश में, इस सच्चाई से भी कौन इन्कार कर सकता है कि भारतीय जनता पार्टी व श्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा आमचुनाव के दौरान् देश के ‘‘सभी वर्गों व धर्मांे’’ के खासकर गरीब एवं बेरोजगार लोगों के हितों में और साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में लगे लोगों के हितों में भी जो इन्हें किस्म-किस्म के अनेकों ‘‘प्रलोभन-भरे’‘ चुनावी वायदे किये थे उन्हें पूरा करने के मामले में अब यह सरकार अपने लगभग दस महीने के कार्यकाल में हमें कभी भी गम्भीर प्रयास करती हुई नजर नहीं आयी है।बल्किी इसके ठीक विपरीत इस सरकार की ‘‘कार्यशैली व सोच एवं तत्परता‘‘ केवल उन मुठ्ठी भर बड़े-बड़े पूँजीपतियों व धन्नासेठों आदि को ही अधिकांश फ़ायदा पहुँचाने में ही लगी रही है। जिनके ‘‘धन-बल’’ के सहयोग से यह पार्टी केन्द्र की सत्ता में आयी है और अब इस सरकार की निगाह में ‘‘पूँजीपतियों का विकास‘‘ ही देश का विकास है। गरीब जनता चाहे भूखी मरते रहे, किसान चाहे आत्महत्या करते रहें, या हजारों लोग स्वाइन फ्लू जैसे रोग से मरते रहें। या फिर हमारे सैनिक अपने देश की रक्षा के लिये आयेदिन यहाँ सीमाओं पर शहीद होते रहे। किन्तु फिर भी केन्द्र की मौजूदा सरकार इस प्रकार की ‘‘राष्ट्रीय चिन्ताओं‘‘ से अधिकांश हमें मुक्त ही नज़र आती है।
इसके साथ ही वर्तमान केन्द्र की सरकार की कार्यशैली व सोच जनहित के खास मुद्दों व सामाजिक न्याय एवं सामाजिक सुरक्षा जैसे मामलों के प्रति भी अधिकांश ठीक नहीं है और खासकर ‘‘दलितों एवं अन्य पिछड़े वर्गांे‘‘ को मिलने वाली ‘‘आरक्षण‘‘ की सुविधा को भी इस सरकार में जिस प्रकार से एकदम ‘‘निष्प्रभावी‘‘ बना दिया गया है। उससे यह भी साबित होता है कि यह सरकार अपनी वास्तविक संवैधानिक जिम्मेदारियों से मुँह मोड़कर अब पूँजीपतियों के हाथों में ही खेलती हुई एक लाचार व मजबूर सरकार बन गयी है। इतना ही नहीं बल्कि इन वर्गों के अर्थात् दलितों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के ‘‘सन्तों, गुरूओं व महापुरूषों‘‘ को आदर-सम्मान देने के मामले में भी मौजूदा केन्द्र की सरकार का भी रवैया अधिकांश हमें जातिगत द्वेष की भावना से ‘‘पक्षपात‘‘ वाला ही नजर आया है। और इस मामले में वैसे आप लोगों को यह मालूम है कि अभी हाल ही में केन्द्र की सरकार द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री ‘‘श्री अटल बिहारी वाजपेयी व पण्डित मदन मोहन मालवीय‘‘ को जो ‘‘भारत रत्न‘‘ की उपाधि से सम्मानित किया गया हैे, इसके हमारी पार्टी कतई भी खिलाफ नहीं है अर्थात् इसका हमारी पार्टी स्वागत भी करती है, किन्तु इनके साथ-साथ यहाँ हमारी पार्टी का यह भी कहना है कि बहुजन नायक ‘‘मान्यवर श्री कांशीराम जी व अन्य और हमारे महापुरूषों‘‘ का भी खासकर यहाँ ‘‘सामाजिक परिवर्तन व आर्थिक मुक्ति‘‘ के लिए, किये गये उनके कार्यों का, कोई कम योगदान नहीं रहा है। लेकिन दुःख की बात यह है कि पूर्व की कांग्रेसी सरकार की तरह ही अब वर्तमान केन्द्र की भाजपा सरकार भी हमारे इन महापुरूषों को ‘‘भारत रत्न‘‘ की उपाधि से सम्मानित करने के मामले में अभी तक भी पूरेतौर से चुप्पी साधे हुये हैं। इससे इनकी इन वर्गों के प्रति आज भी ‘‘हीन व जातिवादी मानसिकता‘‘ साफ झलकती है।
इसके साथ ही देशहित के सबसे बड़े मुद्दे अर्थात ‘‘भ्रष्टाचार के अभिशाप से मुक्ति‘‘ के मामले में भी देश की आमजनता को अब तक केवल ‘‘उपदेश व कोरी बयानबाज़ी‘‘ ही सुनने को मिली है। और इस सम्बन्ध में देश की जनता को ठोस व गम्भीर प्रयास कुछ भी होते हुये अभी तक भी नज़र नहीं आ रहे हंै। इसके अलावा, केन्द्र की वर्तमान सरकार द्वारा अभी हाल ही में पेश किया गया पहला पूर्ण ’’बजट’’ भी यह साबित करता है कि सामाजिक सुरक्षा से सम्बन्धित मामलों में यह सरकार काफी ज्यादा उदासीन है। और इससे जुड़े बजट में इस बार बीस प्रतिशत अर्थात् 2,200 करोड़ रूपयों की कटौती कर दी गयी है, जिससे अब शिक्षा, स्वास्थ्य व महिला उत्थान (सशक्तीकरण) आदि से सम्बन्धित क्षेत्र की कल्याणकारी योजनायें प्रभावित होंगी। और लाखों लोगों को इसका नुकसान भी होगा। इसके साथ ही इस सरकार द्वारा ’’खाद्यान्न, खाद व पेट्रोलियम पदार्थों’’ आदि पर मिलने वाली रियायत (सब्सिडी-छूट) को भी घटाकर ग़रीब व आमजनता के हितों के खि़लाफ काम किया गया है। जबकि ‘‘धन्नासेठों व कारपोरेट जगत’’ के लाभ के लिये कारपोरेट टैक्स पाँच प्रतिशत घटाकर अब इसे 25 प्रतिशत कर दिया गया है। इस प्रकार केन्द्र सरकार के इस पहले बजट से ही ‘‘पूँजीपतियों व कारपोरेट, जगत‘‘ को हर प्रकार से ख़ुश करने का प्रयास किया गया है। कुल मिलाकर वर्तमान केन्द्र की सरकार का बजट भी, उनकी जनविरोधी गलत सोच को, पक्का करके, गरीबों और अमीरों के बीच की गैर-बराबरी को और ज्यादा बढ़ाने वाला प्रतीत होता है।
जहाँ तक देश के खासकर ‘‘दलितों एवं अन्य पिछड़े वर्गों‘‘ की स्थिति का मामला है तो इन वर्गों के लोगों के प्रति भी श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार का रवैया प्रारम्भ से ही हर मामले में उन्हें मायूस करने वाला रहा है। और इन दबे-कुचले लोगों के ‘‘हित व कल्याण’’ में कुछ ठोस काम करना तो बहुत दूर की बात है, बल्कि इस सम्बन्ध में कुछ सही व सहानुभूतिपूर्ण बोलना भी यह सरकार उचित नहीं समझती है। और इतना ही नहीं बल्किी राष्ट्रपति जी के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान् जब हमारी पार्टी ने इन वर्गों के हितों को लेकर राज्यसभा में बोलते हुये केन्द्र सरकार का ध्यान आकर्षित कराया तो प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी व इनकी सरकार ने इस मामले में कुछ भी कहना मुनासिब नहीं समझा, इससे इनकी इन वर्गों के प्रति ‘‘हीन व जातिवादी’’ मानसिकता साफ झलकती है। और इसी ही प्रकार जबसे केन्द्र में बीजेपी के नेतृत्व में एन.डी.ए. की सरकार बनी है तबसे लेकर अभी तक भी, पूरे देश में ‘‘धार्मिक-अल्पसंख्यक’’ समाज के लोग और उसमें भी खासकर मुस्लिम व ईसाई समुदाय के लोग, हमें हर मामले में काफी ज्यादा ‘‘दुःखी व असुरक्षित’‘ नजर आते हैं। क्योंकि आयेदिन बीजेपी व इनके सभी हिन्दूवादी संगठन, किसी ना किसी मुद्दे की आड़ में, अक्सर इन पर हमला ही बोलते रहते हैं। साथ ही, देश में साम्प्रदायिक सौहार्द को भी बिगाड़ने का हर सम्भव प्रयास करते रहते हैं जिससे बचने के लिये, पहले अमेरिका के राष्ट्रपति ने और अब सुप्रीम-कोर्ट के एक जज ने भी, श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार को इसकी हिदायत दी है। लेकिन दुःख की बात यह है कि, इनका इस सरकार पर, अभी तक भी कोई खास ’’असर’’ होता हुआ नजर नहीं आ रहा है। यह भी अपने देश के लिए बहुत ही चिन्ता की बात है। और इसके साथ ही इससे इस सरकार के मूलमन्त्र अर्थात् ‘‘सबका साथ, सबका विकास‘‘ की भी हवा निकलती है।
इसके साथ ही, बीजेपी व इनके सहयोगी संगठनों द्वारा अपने विरोधी दलों के नेताओं के ऊपर भी अब आयेदिन ऐसी आपत्तिजनक टिप्पणी की जा रही है जिससे देश में ‘‘कानून-व्यवस्था‘‘ की स्थिति कभी भी बिगड़ सकती है इसके अलावा लोगांे को ‘‘बेहतर शासन-व्यवस्था व विकास‘‘ के अवसर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से, देश के बड़े राज्यों ख़ासकर ’उत्तर प्रदेश का विभाजन’ करने व लोगों को सस्ता एवं सुगम न्याय उपलब्ध कराने हेतु ’’पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट की एक बेंच’’ स्थापित करने की जनहित से जुड़ी इन जरूरी मांगों पर भी केन्द्र की यह सरकार अभी तक भी कोई कदम नहीं उठा पा रही है।
जहाँ तक देश को खाद्यान्न के मामले में आत्म-निर्भर बनाने वाले ’किसान समाज’ की बात है। तो यह सरकार देश के ‘‘सकल घरेलू उत्पाद’’ अर्थात् जी.डी.पी. में 18 प्रतिशत अंशदान करने वाले किसानों के हितों पर भी कुठाराघात करती हुई, नजर आती है। साथ ही किसानों की ज़मीन एक प्रकार से उनकी मजऱ्ी के खि़लाफ, उनसे छीनकर बड़े-बड़े पूँजीपतियों को देने की ग़लत नीति अपनाने के मामले में भी यह सरकार हमें एक नया रिकार्ड बनाती हुई प्रतीत होती है। इस प्रकार से हर मामले में व हर स्तर पर ‘‘बड़े-बड़े पूँजीपतियों व धन्नासेठांे‘‘ को लाभ पहुँचाने के मामले में वर्तमान केन्द्र की यह सरकार कांग्रेस पार्टी की सरकारों से भी चार क़दम आगे निकल जाने का अनुचित प्रयास कर रही है, जिसके खि़लाफ आज अकेले बी.एस.पी. ही नहीं बल्किी पूरा देश खड़ा नज़र आ रहा है, और इन सब कारणों से ही अपने खिसकते हुये जनाधार को देखकर अब इस पार्टी को कर्नाटक स्टेट के बैंगलोर में हुई ‘‘अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी‘‘ की बैठक में भी इन सब मामलों को लेकर ‘‘मंथन‘‘ करने के लिए कुछ हद तक जरूर मजबूर होना पड़ा है। संक्षेप में अब मेरा यही कहना है कि उत्तर प्रदेश में सपा सरकार का पिछले 3 वर्षों का कार्यकाल व केन्द्र की वर्तमान सरकार का भी लगभग 10 महीनों का कार्यकाल ज्यादातर मामलों में ‘‘विफल व निराशाजनक‘‘ ही रहा है।
एक सवाल के जवाब में सुश्री मायावती जी ने कहाकि दलितों का वोट हासिल करने के इरादे से विभिन्न विरोधी पार्टियां हमेशा ही अनेकों प्रकार की नाटकबाजी करती रहती हैं, परन्तु दलित समाज के लोग ना तो पहले कभी इनके बहकावे में आये हैं और नहीं आगे आने वाले हैं, क्यांेकि दलित समाज के लोगों को मालूम है कि उनकी असली हितैषी कौन है और किस पार्टी ने बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर के कारवां को मुस्तैदी से आगे बढ़ाने का काम किया है। उन्होंने कहाकि भाजपा का ढोंग दलितों को गुमराह नहीं कर सकता है। लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी की हवा में भी दलित समाज अपने बी.एसपी. से तिल भर नहीं खिसका और ना केवल उत्तर प्रदेश में बल्कि पूरे देश में मजबूत पत्थर की तरह बी.एस.पी. मूवमेन्ट से जुड़ा रहा है।
उन्होंनें कहाकि दिनांक 6 दिसम्बर सन् 1956 को बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर के देहान्त के बाद लम्बे समय तक केन्द्र में कांग्रेस पार्टी की सरकार रही, जिस दौरान बाबा साहेब को आदर-सम्मान देते हुये ’भारतरत्न’ देने की मांग लगातार की जाती रही, परन्तु कांग्रेस ने इस पर ध्यान नहीं दिया। इसके बाद सन् 1977 में गैर-कांग्रेसी सरकार केन्द्र में बनी, जिसके मुख्य घटक में भाजपा (तब जनसंघ) के लोग भी थे। तब भी बाबा साहेब को आदर-सम्मान देने के मामले केन्द्र सरकार का रवैया नकारात्मक बना रहा। अन्ततः सन 1989 में जब श्री वी.पी. सिंह के नेतृत्व में केन्द्र में जनता दल की सरकार बनी तो बी.एस.पी. ने तीन शर्तों के आधार पर उसे अपना बाहर से समर्थन दिया। पहली शर्त भी बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर को भारतरत्न से सम्मानित करना। दूसरी शर्त थी मण्डल आयोग की सिफारिश को लागू करना व तीसरी शर्त थी श्री आडवाणी की रथयात्रा को उत्तर प्रदेश में आने से पहले रोकना। बी.एस.पी. की इन तीनों शर्तों को श्री वी.पी. सिंह की सरकार ने मान लिया, परन्तु भाजपा ने इनका विरोध किया और अपना समर्थन वापस लेकर श्री वीपी. सिंह की सरकार को गिरा दिया। इसके बाद सन् 1996 से 2004 तक श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केन्द्र में भाजपा की सरकार रही। परन्तु इस दौरान भी बार-बार मांग करने के बावजूद भी दिल्ली के अलीपुर रोड स्थित उस मकान को जहाँ बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर ने आखिरी सांस ली थी, ’’राष्ट्रीय स्मारक’’ घोषित नहीं किया गया और ना ही बाबा साहेब के अनुयायी मान्यवर श्री कांशीराम जी को पहले कांग्रेस व अब भाजपा द्वारा जातिवादी मानसिकता के तहत चलते हुये मरणोपरान्त भी ’’भारतरत्न’’ से सम्मानित किया गया है।
इस प्रकार, खासकर भाजपा द्वारा 14 अप्रैल को बाबा साहेब डा. अम्बेडकर जयन्ती मनाने की घोषणा से दलित समाज के लोग गुमराह होने वाले नहीं हैं। वे जानते है कि कांग्रेस व भाजपा दोनों ही पार्टियां इस प्रकार की नाटकबाजी पहले भी करती रही हैं व साथ ही साथ वे यह भी जानते है कि खासकर उनके मसीहा परमपूज्य डा. भीमराव अम्बेडकर व उनके कारवां को आगे बढ़ाने वाले मान्यवर श्री कांशीराम जी को आदर-सम्मान देने के मामले में कांग्रेस व भाजपा दोनों का ही रवैया हमेशा ही ’’कितना अधिक नकारात्मक व विषैला’’ रहा है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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