मीडिया बन्धुओं, मैंने आज की यह प्रेस कान्फ्रेंस केन्द्र में बीजेपी के नेतृत्व में चल रही एन.डी.ए. सरकार की, खासकर ‘‘भूमि अधिग्रहण से सम्बन्धित किसान विरोधी नीतियों’’ और साथ ही उत्तर प्रदेश सहित देश के अन्य और राज्यों में भी हुई बेमौसम बरसात व ओले आदि पड़ने की मार से पीडि़त किसानों की आर्थिक मदद करने के मामले में केन्द्र के साथ-साथ राज्य सरकारों द्वारा भी उनकी की जा रही उपेक्षा तथा केन्द्र व राज्य सरकारों की भी अधिकांश चल रही उनकी ‘‘जन-विरोधी नीतियों व कार्य-प्रणाली’’ आदि के विरोध में बहुजन समाज पार्टी द्वारा आज घोषित किये जा रहे ‘‘देश-व्यापी आन्दोलन’’ के सम्बन्ध में जानकारी देने के लिये बुलायी है।
और अब सर्वप्रथम ‘‘भूमि अधिग्रहण कानून’’ की पृष्ठभूमि के सम्बन्ध में यह कहना चाहूँगी कि अपने भारत देश में अंगे्रजों की सरकार द्वारा यहाँ सन् 1894 में भूमि अधिग्रहण से सम्बन्धित पहला कानून बनाया गया था, जो आजादी के बाद भी काफी लम्बे अर्सें तक लगातार यहाँ लागू होता रहा है और इस कानून में ना केवल काफी ज्यादा कमियाँ थीं बल्कि उसमें किसानों के ‘‘शोषण’’ की भी बहुत ज्यादा गुंजाइश थी, जिसको लेकर देश के किसी ना किसी राज्य में वहाँ की राज्य सरकार व किसानों के बीच में आयेदिन ’’टकराव’’ की स्थिति पैदा होती रही है, उससे यहाँ अधिकांश राज्य सरकारों को किसानों के असन्तोष का भी सामना करना पड़ा है, जिसका काफी बुरा असर सम्बन्धित क्षेत्र की ‘‘कानून-व्यवस्था’‘ पर भी पड़ा है और इस मामले में इस ख़राब दौर से उत्तर प्रदेश में हमारी पार्टी की सरकार को भी गुजरना पड़ा है। इसलिये ऐसी स्थिति में उस वर्षों पुराने भूमि अधिग्रहण कानून-1894 में बदलाव करके, व उसमें आवश्यक सुधार लाने के लिये, हमारी पार्टी व सरकार ने कई बार केन्द्र की सरकार से एक ’नई राष्ट्रीय भूमि अधिग्रहण नीति’ बनाने का भी लिखित अनुरोध किया। लेकिन इस मामले में जब केन्द्र की पिछली कांग्रेसी सरकार ने हमारी इस बात पर ध्यान नहीं दिया तब फिर यहाँ प्रदेश में हमारी पार्टी की सरकार ने अपने अनुभव के आधार पर यह निर्णय लिया कि किसानों की समस्याओं का सही समाधान तभी सम्भव हो सकता है जब उनसे सीधे बातचीत करके उनकी सहमति से कोई उचित सुधारवादी निर्णय लिया जाये और फिर इस सम्बन्ध में ’’एक नई सकारात्मक पहल’’ करते हुये, उत्तर प्रदेश में, हमारी पार्टी की पहली बार बनी, पिछली पूर्ण बहुमत की सरकार ने ’’दिनाँक 02 जून सन् 2011’ को देश के इतिहास में, पहली बार किसान प्रतिनिधियों की ऐतिहासिक किसान पंचायत आयोजित करके व इनके हितों के संरक्षण के लिये एक किसान-हितैषी ’’नई प्रगतिशील भूमि अधिग्रहण नीति’’ बनाकर, उसे फिर उत्तर प्रदेश में यहाँ तत्काल प्रभाव से लागू भी कर दिया, और हमारी सरकार की इस ‘‘नई प्रगतिशील भूमि अधिग्रहण नीति’’ में किसानों के हितों को लेकर, जिन मुख्य बातों को शामिल किया गया है। उसकी काफी कुछ जानकारी, आज हमारी पार्टी द्वारा जारी किये जा रहे इस लिखित ‘‘फोल्डर’’ के जरिये, आज ही आप लोगों को भी जरूर दे दी जायेगी। यह फोल्डर पूरे देश में पार्टी के लोगों को भी आन्दोलन के दौरान् दिया जायेगा, ताकि उन्हें इस मामले में सही तथ्यों की जानकारी प्राप्त हो सके।
इतना ही नहीं बल्कि उस समय हमारी पार्टी की सरकार ने उत्तर प्रदेश की इस नई प्रगतिशील भूमि अधिग्रहण नीति की ही तरह एक ’’नई राष्ट्रीय भूमि अधिग्रहण नीति’’ बनाने का भी लिखित अनुरोध केन्द्र की सरकार से किया था ताकि उत्तर प्रदेश की तरह देश के अन्य राज्यों में भी भूमि अधिग्रहण से सम्बन्धित समस्या का समाधान हो जाये, और फिर आगे चलकर ‘‘सन् 2013’’ में केन्द्र की यू.पी.ए. सरकार ने सभी मुख्यमंत्रियों व सभी दलों एवं विभिन्न किसान संगठनों आदि की आम सहमति से यहाँ वर्षों पहले सन् 1894 में, अंग्रेजों द्वारा भूमि अधिग्रहण के निर्मित किये गये कानून के स्थान पर एक ‘‘नया राष्ट्रीय भूमि अधिग्रहण’’ कानून बना दिया और इसके साथ ही, इस कानून में, हमारी सरकार की भूमि अधिग्रहण से सम्बन्धित काफी कुछ नीतियों को भी इसमें शामिल कर लिया गया जिसमें 70 (सŸार) प्रतिशत किसानों की सहमति व भूमि अधिग्रहण के बाद पाँच साल तक उद्योग स्थापित नहीं करने पर भूमि स्वामित्व की समाप्ति का प्रावधान भी शामिल था। परन्तु अब भाजपा के नेतृत्व की मौजूदा केन्द्र की एन.डी.ए. सरकार ने इन सब बातों की बिल्कुल भी परवाह नहीं करते हुये, केवल यहाँ ‘‘कुछ मुट्ठी भर बड़े-बड़े पूँजीपतियों व धन्नासेठों आदि के हितों के समर्थन में व उन्हें अनुचित लाभ’’ पहुँचाने के लिये ही ‘‘सन् 2013’’ में बने इस नये भूमि अधिग्रहण कानून में, घोर किसान-विरोधी संशोधन लाने का अपना ‘मनमाना व एकतरफा‘ फैसला ले लिया और इसके लिये इन्होंने केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में दिनांक 29 दिसम्बर सन् 2014 को ’’भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास, पुनस्र्थापना में पारदर्शिता और उचित मुआवज़े का अधिकार कानून-2013 में संशोधन को मंजूरी देकर’’ उसे संसद में ’’विधेयक’’ के रूप में लाकर क़ानून बनाने के बजाये, ‘’अध्यादेश’‘ लाने के अन्तिम विकल्प को ही आनन-फ़ानन में इस्तेमाल करने की जल्दबाजी भी कर डाली।
और अब इस भूमि अधिग्रहण के संशोधन के सम्बन्ध में भाजपा व प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के ‘‘तर्क’’ सभी को काफी गलत लग रहे हैं। अर्थात् इनके सभी तर्क पहली नज़र में ही ‘‘किसान-विरोधी व पूँजीपतियों के हित में उठाये गये घोर अनुचित कदम लगते हैं।’’ जैसेकि भूमि अधिग्रहण होने पर, इसके असर से होने वाले सामाजिक प्रभाव के आंकलन, भूमि अधिग्रहण के बाद पाँच साल तक उद्योग स्थापित नहीं करने पर भूमि स्वामित्व की समाप्ति, अधिग्रहण से पहले 70 प्रतिशत किसानों की मंजूरी लेना, क़ानून का सही अनुपालन नहीं करने वाले सरकारी कर्मचारियों पर कार्यवाही आदि के इन जरूरी प्रावधानों को इस संशोधित कानून से पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है। साथ ही, अब भूमि अधिग्रहण से प्रभावित होने वाले परिवार की परिभाषा को भी बदला जा रहा है, जो कि उचित नहीं है।
इसके साथ-साथ जहाँ तक ‘‘बड़े-बड़े औद्यौगिक घरानों व पूँजीपतियों‘‘ आदि को उनकी आवश्यकता से कहीं अधिक ज़मीन उपलब्ध कराने व उसका सही इस्तेमाल नहीं करके केवल ’’बैंकों‘‘ से कर्जा आदि लेकर उस धन का दूसरे कार्याें में इस्तेमाल करके अनुचित लाभ कमाने का जो आरोप है। तो यह आरोप बिल्कुल 100 फीसदी सही है और इससे हमारी पार्टी पूर्णतयाः सहमत है और इस सन्दर्भ में वैसे आप लोगों को भी यह मालूम है कि पहले केन्द्र की कांग्रेसी यू.पी.ए. सरकार ने किसानों की ज़मीन का अधिग्रहण करके, कम्पनियों को देने के लिये हर हथकण्डे का इस्तेमाल किया है जिसके तहत् ही इस सरकार के दस सालों के कार्यकाल में एस.ई.जेड. (स्पेशल इकोनोमिक ज़ोन) के नाम पर, किसानों की हज़ारों हेक्टेयर ज़मीन अधिग्रहन कर उद्योगों को दे दी गई है और इसके सम्बन्ध में संसद की स्थाई समिति की रिपोर्ट ने और सी.ए.जी. ने भी इस बात का यह ख़ुलासा किया है कि एस.ई.जेड. के नाम पर किसानों की जो अत्यन्त कीमती ज़मीन केन्द्र में कांग्रेस की यू.पी.ए. सरकार के समय में अधिग्रहन की गयी है, उसमें से लगभग आधी ज़मीन का ही इस्तेमाल हुआ है, जबकि आधी ज़मीन उद्योग जगत दबाकर ही बैठ गये हंै।
वास्तव में इसी ही प्रकार की अनेकों और ‘‘किसान-विरोधी साजि़शों व बड़े-बड़े पूँजीपतियों की घोर समर्थक मंसूबो’’ के परिणामस्वरूप ही, फिर ‘‘सन् 2013’’ में, लगभग सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने व सभी राजनैतिक दलों एवं किसान संगठनों आदि ने भी कांग्रेस पार्टी की यू.पी.ए. सरकार को ‘‘नया सख़्त भूमि अधिग्रहण क़ानून’’ बनाने के लिये मजबूर किया जिसको अधिकांश मिले समर्थन को देखते हुये फिर उस समय भाजपा ने भी अपना पाला बदलकर, संसद में इस विधेयक को अपना पूरा समर्थन दे दिया था। और तब इनके कुछ संशोधनों को मंजूर भी कर लिया गया था। परन्तु आज जब भाजपा के नेतृत्व में एन.डी.ए. की केन्द्र में सरकार है, तो उसे अब उसी भूमि अधिग्रहण क़ानून में काफी ज्यादा ‘‘ख़राबी व कमियाँ’’ नज़र आने लगी है। और अब उसमें वर्तमान केन्द्र की सरकार ने ‘‘राज्यों के मुख्यमंत्रियों व सभी राजनैतिक दलों एवं किसान संगठनों आदि से विचार-विमर्श‘‘ किये बिना ही अर्थात इनकी बिना ¬आम सहमति के ही ‘‘सन् 2013’’ के बने ‘‘राष्ट्रीय भूमि अधिग्रहण कानून’’ में, अनेकों किसान विरोधी संशोधन कर दिये हैं, जिसको लेकर पूरे देश का किसान इस समय ‘‘काफी ज्यादा गुस्से में है व आन्दोलित भी है’’ जिसकी वजह से अब श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार, इस व्यापक जन-दबाव में आकर, जिन ‘‘9 संशोधनों’’ की बात करने लगी है वे बहुत ही मामूली व कम प्रभाव वाले संशोधन है। ऐसी स्थिति में इनके इस तानाशाही वाले रवैये से दुःखी होकर अब देश के कई बड़े किसान संगठनों को अपने इन्साफ के लिए ‘‘माननीय सुप्रीम कोर्ट‘‘ में भी जाना पड़ा है।
इसके अलावा पिछले महीने ‘‘दिनांक 22 मार्च सन् 2015‘‘ को, अपनी ‘‘मन की बात‘‘ के कार्यक्रम में किसानों की समस्याओं व खासकर ‘भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक’’ को लेकर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने, अपनी ‘‘मन की बात‘‘ तो एकतरफा जरूर कह दी है। लेकिन इसके साथ-साथ श्री मोदी को विशेषतौर से भूमि अधिग्रहण के मामले में ‘‘किसानों के मन‘‘ की भी बात को समझकर उस पर भी इनको जरूर अमल करना चाहिये। अर्थात ‘‘भूमि-अधिग्रहण’’ के मामले में यहाँ देश का किसान अपने मन से क्या चाहता है? उसे भी इनको जरूर स्वीकार कर लेना चाहिये। वर्ना इनका यह ‘‘मन की बात’’ का कार्यक्रम फिर यह केवल इनकी सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का व साथ ही, देश की जनता को भी गुमराह आदि करने का ही यह एक माध्यम माना जायेगा।
इतना ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश सहित देश के कुछ अन्य और राज्यों में भी ‘‘बेमौसमी बरसात व ओले आदि पड़ने‘‘ की मार से पीडि़त किसानों की आर्थिक मदद करने के मामले में भी केन्द्र के साथ-साथ राज्य सरकारों ने भी अभी तक जो भी ‘‘घोषणायें‘‘ की है तो उनके जल्दी व समय से लागू कराने की तरफ भी इन्होंने पूरे ठीक ढंग से ध्यान नहीं दिया है। जबकि इस मामले में हमारी पार्टी का यह कहना है कि इसके लिए सबसे पहले केन्द्र व राज्य सरकारों को, वर्तमान में ‘‘मुआवजा‘‘ तय करने की जो इस समय प्रक्रिया व सिस्टम चल रहा है तो उसे इनको तुरन्त ही बदलना होगा। वरना यहाँ पीडि़त किसानों को, इनकी आयेदिन नई-नई घोषित की जा रही योजनाओं व घोषणाओं आदि का कोई विशेष आर्थिक लाभ मिलने वाला नहीं है। और खासकर उत्तर प्रदेश में तो सपा सरकार द्वारा किसानों की आर्थिक मदद को लेकर अभी तक अधिकांश यहाँ ‘‘कोरी कागजी घोषणायें‘‘ ही की जा रही हैं जिसके कारण प्रदेश का किसान काफी ज्यादा दुःखी व परेशान भी हैं और इससे अब यहाँ काफी किसानों की मृत्यु तक भी हो गई है।
इसके साथ ही हमारी पार्टी का यह भी कहना है कि देश के प्रभावित राज्यांे में जिन किसानों ने अपनी खेती के लिए, ‘‘बैंकों व साहूकारों‘‘ आदि से कर्जा लिया है तो उसे माफ करने के लिए भी केन्द्र व राज्य सरकारों को अलग से कुछ ना कुछ ठोस कदम जरूर उठाने होंगे। और इस मामले में यहाँ उत्तर प्रदेश सपा सरकार को भी इनकी मदद के लिए जरूर आगे आना चाहिये। इसके साथ-साथ यहाँ हमारी पार्टी का यह भी कहना है कि इस संकट की घड़ी में पीडि़त किसानों के साथ में केन्द्र व राज्य सरकारों को, किसी भी प्रकार से ‘‘जातिगत व राजनैतिक द्वेष‘‘ की भावना से कार्य नहीं करना चाहिये।
संक्षेप में अब हमारी पार्टी का खासकर केन्द्र की भाजपा के नेतृत्व में चल रही एन.डी.ए. सरकार के बारे में यही मानना है कि वर्तमान में केन्द्र में कुल मिलाकर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार व उनकी पार्टी का जो चाल चरित्र व चेहरा है, अर्थात् नीतियां व कार्यशैली है, वह कहीं से भी गरीब व किसान-हितैषी नहीं लगता है, बल्कि यह पूर्ण रुप से गरीब व किसान एवं आमजन-विरोधी तथा हर प्रकार से बड़े-बड़े पूँजीपतियों व धन्नासेठों आदि का ही हितैषी लगता है, जिनका ’’पर्दाफाश’’ करने के लिये ही अब हमारी पार्टी ने पूरे देशभर में देश-व्यापी आन्दोलन करने का फैसला लिया हैं, और इस देश-व्यापी आन्दोलन के पहले चरण के तहत् सर्वप्रथम हमारी पार्टी द्वारा उत्तर प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों पर दिनांक 27 अप्रैल सन् 2015 को, प्रातः 11 बजे से विशाल धरना-प्रदर्शन किया जायेगा। इस धरना-प्रदर्शन के तीन मुख्य मुद्दे होंगे। पहला मुद्दा-केन्द्र की वर्तमान सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण कानून में किसानों के हितों की अनदेखी करके, किये गये संशोधन व दूसरा मुद्दा-उत्तर प्रदेश में ‘‘बेमौसमी बरसात एवं ओले‘‘ आदि पड़ने की हुई इस कुदरती मार से पीडि़त किसानों की आर्थिक मदद करने के मामले में केन्द्र के साथ-साथ यहाँ उत्तर प्रदेश की सपा सरकार द्वारा भी इनकी अधिकांश की जा रही उपेक्षा तथा तीसरा मुद्दा-पिछले 3 वर्षों से यहाँ उत्तर प्रदेश की सपा सरकार में आयेदिन ‘‘खराब व दयनीय‘‘ होती जा रही ‘‘कानून-व्यवस्था‘‘ एवं विकास के नाम पर अधिकांश की जा रही ‘‘हवाई घोषणायें‘‘ आदि के विरोध में यह ‘‘विशाल धरना-प्रदर्शन‘‘ आयोजित किया जायेगा।
इसके साथ-साथ देश के अन्य राज्यों में भी, इस आन्दोलन के प्रथम चरण में इसी ही पैटर्न पर चलकर दिनांक 02 मई सन् 2015 को प्रातः 11 बजे से विशाल धरना-प्रदर्शन का आयोजन किया जायेगा। इसके बाद फिर इस देशव्यापी आन्दोलन के दूसरे चरण की ‘‘रूपरेखा‘‘ इसी ही महीने 20 अप्रैल से फिर से शुरू हो रहे ‘‘संसद सत्र‘‘ के दौरान खासकर भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल पर केन्द्र की सरकार के ‘‘स्टैण्ड व रूख‘‘ को देखकर ही तैयार की जायेगी। और अब मैं पूरे देश में व खासकर उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी के लोगांे से यह पुरजोर अपील है कि वे किसान हित में व साथ ही अपने प्रदेश के लोगांे के हितों में भी अपनी पार्टी के प्रथम चरण के इस ‘‘देश-व्यापी आन्दोलन‘‘ को तन, मन, धन से सहयोग देकर, इसे जरूर सफल बनायें। इसके साथ ही, इस आन्दोलन की विस्तार से जानकारी देने व इसकी तैयारी एवं इसे पूर्णरूप से कामयाब बनाने के लिए आज ही मैंने उत्तर प्रदेश के पार्टी के सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों की, पार्टी प्रदेश कार्यालय लखनऊ में सायं 3 बजे से, एक अति महत्वपूर्ण बैठक भी बुलायी हुई हूँ और इसके बाद फिर मैंने कल 16 अप्रैल को भी उत्तर प्रदेश को छोड़कर बाकी अन्य सभी राज्यों के पार्टी के सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों की भी लखनऊ में ही पार्टी प्रदेश कार्यालय में प्रातः 11 बजे से बैठक बुलायी हुई हूँ और इन दोनों खास बैठकों को मैं खुद ही लेने वाली हूँ, ताकि इस आन्दोलन की जरूरत व इसके महत्व को भी हमारी पार्टी के लोग ठीक ढंग से समझ सके।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com