स्थानीय तहसील का जनवारीनाथ धाम और शाहपुर स्थित गौरीशंकर के धाम पर क्षेत्रवासी भोले बाबा त्रिपुरारी सदा शिवशंकर को प्रसन्न करने के लिए आस्था के साथ जल चढाते है।
इस पवित्र मास जिसे शिव भक्त सावन या शिवमास भी कहते है उनकी पसंदीदा चीजे भी उन्हे जल के साथ अर्पित करते है । मन्दार पुष्प, धतूरा, भांग की डाली, बिल्वपत्र भगवान भोले भण्डारी को अति प्रिय बताया गया है ।
बिल्वपत्र के विषय मे भोलेभक्तो की जनश्रुति है कि इसको माता लक्ष्मी ने उत्पन्न किया किम्बदन्ती है कि जगत के पालन हार भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी ने सावन मास मे संकल्प लिया कि प्रतिदिन एक हजार एक श्श्व्ेत कमल पुष्प शिवबाबा को अर्पित करुंगी।
जब उन्होने स्वर्णपात्र मे श्वेत कमल पुष्प को गिनकर रखा और मंदिर पहुंची तो उन्होने देखा उसमे से तीन पुष्प कम थे। वे संकल्प को पूर्ण करने के लिये परेशान हो उठी और बचे कमल पुष्पो पर जल का छीटा मारा पात्र व पुष्प पर जल पडते ही कमलो से एक पौधे का प्रादुर्भाव हुआ और इस पौधे मे त्रिदल की तरह अनगिनत पत्त्ते थे।
इन्ही पत्त्तो को तोडकर माता लक्ष्मी ने शिवलिंग पर चढाया तब से ये त्रिदल पत्त्ते माता लक्ष्मी की शिव की भक्ति की आस्था के कारण भोले भण्डारी गौरी शंकर को प्रिय हो गये यह पौधा बिल्व वृक्ष स्थानीय भाषा मे बेल का पेड व पत्त्ते बिल्वपत्र कहलाये।
एक मान्यता और भी है कि माता लक्ष्मी को लोग सदा जागृत मानते है इसलिये उनकी कृपा से उत्पन्न बिल्व वृक्ष व बिल्वपत्र भी हमेशा जागृत रहता है। यह एक दिन तोड़कर कई दिन शिव को अर्पित किया जा सकता है ।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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