अंग्रेजी की अनिवार्यता को बिना समाप्त किये देश में सर्वशिक्षा अभियान अधूरा
जातिगत आधार पर सही जनगणना भारत में सभव नहीं। उच्च न्यायालय ने भी आर्थिक आधार पर पिछडे़ लोगों को आरक्षण देने की बात कही है। जनमना जाति जड़ता का प्रतीक है। शिक्षा में जाति के आधार पर नहीं बल्कि जरूरत के आधार पर आरक्षण दिया जाय। उक्त बातें पीटीआई के पूर्व सपादक व चिन्तक डॉ. वेद प्रताप वैदिक ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए व्यक्त की।
गनपत सहाय महाविद्यालय में बाबू गनपत सहाय जयन्ती में मुय अतिथि के पधारे डॉ. वैदिक ने सुलतानपुर में पत्रकारों से बातचीत करते हुए आगे कहा कि भारत में वैज्ञानिक आधार पर जाति के आधार पर जनगणना नहीं हो सकती। क्योंकि एक जिले में 2 लोग सूद्र हैं, दूसरे जिले में यही लोग अपने को वैश्य बताते हैं तो तीसरे जिले में उन्हीं के वंशज अपने को राजपूत कहलाते हैं। एक प्रान्त में जो लोग ब्राह्मणों की तरह जाने जाते हैं, वहीं दूसरे जगह सूद्र हैं। एक ही जाति में रोटी और बेटी का व्यवहार नहीं है। जाति व्यवस्था का प्राण है ऊंच-नीच का भाव। मैं ऊंचा और तू नींचा, इसके बिना जाति व्यवस्था की कल्पना नहीं की जा सकती। इसीलिए जे.एच. हट्टन ने का है कि जाति जनगणना कभी भी वैज्ञानिक ढंग से नहीं हो सकती। जनगणना पर 40 अरब रूपया खर्च किया जा रहा है। यह सब राजनेताओं का खेल है। नेता लोग अन्दर से यह समर्थन करते हैं कि जातिगत आधार पर जनगणना न हो किन्तु वोट की राजनीति के आगे वह मजबूर हैं। जाति के आधार पर वोट मांगे और योग्यता को नज़रअन्दाज किया गया तो इसका विरोध होगा। समाज में प्रेम बढ़े यह मैं चाहता हंू। यह तभी होगा जब देश से जातिवाद का उन्मूलन हो।
डॉ. वैदिक से अंग्रेजी हटाओ आन्दोलन के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि मैं समझता हूं अंग्रेजी की अनिवार्यता हटाये बिना सर्वशिक्षा अçायान बिलकुल विफल हो जायेगा। किसी भी विदेशी भाषा को बच्चों पर थोपने वाली सरकार यदि सर्वशिक्षा की बात कहती है, तो इससे बड़ी पाखण्ड क्या होगा। जिस देश में बीस करोड़ बच्चे प्राथमिक शालाओं में भतीü होते हैं और उनमें से साढ़े उन्नीस करोड़ बच्चे अंग्रेजी के कारण बीए तक नहीं पहुंच पाते। उस देश में सर्वशिक्षा कैसे हो सकती है। किसी विषय में अगर बच्चे सबसे अधिक फेल होते हैं तो वह अंग्रेजी है।
उन्होंने कहा कि अंग्रेजी का रट्टा लगाने में उनकी ताकत सबसे अधिक खर्च होती है। उनमें हीनता का भाव भी पनपता है। अंग्रेजी की अनिवार्यता के कारण गरीबों व वंचितों के बच्चे आगे नहीं बढ़ पाते। इसीलिए देश में चल रही अंग्रेजी की अनिवार्य शिक्षा पर पूर्ण प्रतिबन्ध होना चाहिए। प्रत्येक विषय की पढ़ाई उच्चतम स्तर तक मातृ भाषा के माध्यम से होनी चाहिए। डॉ. वैदिक ने आगे कहा कि मैं विदेशी भाषाओं के पढ़ने-पढ़ाने का विरोधी नहीं हूं। मैं स्वयं विदेशी भाषाओं का जानकार हूं और उसका प्रयोग भी करता हंू। विदेशी ज्ञान विज्ञान का लाभ उठाने के लिए विदेशी भाषाओं का जमकर प्रयोग होना चाहिए, किन्तु छात्रों पर अनिवार्य रूप से थोपना वैसे ही है जैसे हिरन की पीठ पर घास लादना। हिन्दुस्तान की सरकारें व नेतागण इस मुद्दे पर बिलकुल मौन हैं। दुभाüग्य है इस मुद्दे पर उनका ध्यान ही नहीं जाता है। इस विषय पर देश में जबरदस्त आन्दोलन चलना चाहिए। अंग्रेजी की अनिवार्यता एक प्रकार का निष्कृष्ट जातिवाद है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com