लखनऊ - उत्तर प्रदेश की मुख्यमन्त्री सुश्री मायावती की अध्यक्षता में आज यहां सम्पन्न मन्त्रि-परिषद की बैठक में निम्न प्रकार महत्वपूर्ण निर्णय लिये गये हैं।
बाह्य सहायतित परियोजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु मुख्य सचिव की अध्यक्षता में इम्पावर्ड कार्यकारी समिति का गठन
मन्त्रिपरिषद ने बाह्य सहायतित परियोजनाओं के समय से प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए इम्पावर्ड कार्यकारी समिति के गठन सम्बन्धी प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान कर दी है।
मन्त्रिपरिषद द्वारा लिये गये निर्णय के अनुसार प्रदेश में चल रही बाह्य सहायतित परियोजनाओं के समय से सफल कार्यान्वयन के लिए विभिन्न प्रकार की स्वीकृतियों में होने वाले विलम्ब को समाप्त करने के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय “इम्पावर्ड कार्यकारी समिति´´ गठित होगी। इस समिति में अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास आयुक्त, प्रमुख सचिव वित्त, नियोजन न्याय, कार्मिक, परियोजना के प्रशासकीय विभाग के प्रमुख सचिव/सचिव, सदस्य होंगे। समिति में प्रमुख सचिव/सचिव बाह्य सहायतित परियोजना सदस्य सचिव तथा परियोजना के निदेशक सदस्य सह सचिव होंगे।
ज्ञातव्य है कि वर्तमान में प्रदेश में विश्व बैंक तथा जायका (जापान इण्टरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी) आदि संस्थाओं की वित्तीय सहायता से उत्तर प्रदेश वाटर सेक्टर रिस्ट्रक्चरिंग परियोजना-।, उ0प्र0 स्टेट रोड परियोजना-।।, उ0प्र0 सोडिक लैण्ड रिक्लेमेशन परियोजना-।।।, उ0प्र0 सहभागी वन प्रबन्ध एवं निर्धनता उन्मूलन परियोजना एवं आगरा जल सम्पूर्ति (गंगाजल) परियोजना चलाई जा रही हैं। इनके अलावा प्रदेश में बाह्य संस्था द्वारा वित्त पोषण हेतु उत्तर प्रदेश वाटर सेक्टर रिस्ट्रक्चरिंग परियोजना-।।, उ0प्र0 स्टेट रोड परियोजना-।।, उ0प्र0 हेल्थ डेवलपमेन्ट सिस्टम परियोजना-।। तथा बौद्ध परिपथ-।। परियोजना प्रस्तावित है।
वृहत्तर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण सेवा विनियमावली में संशोधन का प्रस्ताव मंजूर
मन्त्रिपरिषद ने वृहत्तर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण सेवा विनियमावली 1993 के नियम - 19(1) में संशोधन करने की स्वीकृति प्रदान कर दी है।
मन्त्रिपरिषद द्वारा लिये गये निर्णय के अनुसार अब सेवा में किसी पद पर मौलिक रिक्ति में या उसके प्रतिनियुक्ति किये जाने पर प्रत्येक व्यक्ति को एक वर्ष की अवधि के लिए परिवीक्षा पर रखा जाएगा।
ज्ञातव्य है कि अभी तक सेवा में किसी पद पर मौलिक रिक्ति में या उसके प्रतिनियुक्ति किये जाने पर प्रत्येक व्यक्ति को दो वर्ष की अवधि के लिए परिवीक्षा पर रखे जाने का नियम है।
उ0 प्र0 वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1976 के धारा 5(4) के तहत अनुज्ञा शुल्क आरोपित करने व धारा 15(1) के तहत अपराधों के प्रशमन हेतु निर्धारित अधिकतम धनराशि को बढ़ाने सम्बन्धी प्रस्ताव मंजूर
मन्त्रिपरिषद ने उ0 प्र0 वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1976 के धारा 5(4) में उल्लिखित प्राविधान के अन्तर्गत अनुज्ञा शुल्क आरोपित किये जाने तथा धारा 15(1) में उल्लिखित प्राविधान के अन्तर्गत अपराधों के प्रशमन हेतु निर्धारित अधिकतम धनराशि को बढ़ाये जाने सम्बन्धी प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान कर दी है।
मन्त्रिपरिषद द्वारा लिये गये निर्णय के अनुसार उ0 प्र0 वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1976 की धारा 5(4) के तहत दी जाने वाली प्रत्येक अनुज्ञा इस शर्त के साथ प्रदान की जाएगी कि अनुज्ञा प्राप्त करने वाले व्यक्ति/संस्था/आवेदक द्वारा पातन अनुज्ञा शुल्क प्रति वृक्ष 100 रूपये जमा की जाएगी।
ज्ञातव्य है कि उ0प्र0 वृक्ष संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत वृक्षों के पातन अनुज्ञा जारी करने के समय कोई भी अनुज्ञा शुल्क लेने का प्राविधान नहीं था।
इसके अलावा मन्त्रिपरिषद ने उ0 प्र0 वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1976 की धारा 15(1) में उल्लिखित प्राविधान के अन्तर्गत अपराधों के प्रशमन हेतु निर्धारित अधिकतम धनराशि को बढ़ाने का भी फैसला किया है। निर्णय के अनुसार राज्य सरकार अधिसूचना के माध्यम से किसी अधिकारी को, किसी ऐसे व्यक्ति से, जिसके विरूद्ध यह विश्वास करने का कारण है कि उसमें किसी वन, बाग या सार्वजनिक भू-ग्रहादि में स्थित वृक्ष से भिन्न किसी वृक्ष के सम्बन्ध में उ0 प्र0 वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1976 की धारा 15(1) के अधीन अपराध किया है। इसके लिए पूर्व में निर्धारित प्रशमन शुल्क की धनराशि को पॉच हजार रूपये से बढ़ाकर दस हजार रूपये कर दिया है।
यह भी उल्लेखनीय है कि वर्ष 1976 से वर्तमान तक प्रशमन की धनराशि में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। विभिन्न प्रकाष्ठ की मूल्य में वर्ष 1976 से अप्रत्याशित वृद्धि होने से अवैध कटान में लिप्त अपराधी प्रशमन की अधिकतम् धनराशि पांच हजार रूपये होने से अपराध की पुनरावृत्ति हेतु हतोत्साहित नहीं होते हैं। अतएव यह आवश्यक हो गया है कि गैर वन भूमि पर स्थित वृक्षों के कटान को इस प्रकार नियन्त्रित किया जाये कि वे सक्षम स्तर से अनुमति लेकर ही वृक्षों का पातन करें, ताकि बिना अनुमति के वृक्ष काटने की प्रक्रिया को प्रश्रय न मिले। इससे एक ओर वृक्षावरण को बढ़ाने में सहायता मिलेगी तथा वृक्ष स्वामियों द्वारा आवश्यकतानुसार ही पातन किया जा सकेगा।
मन्त्रिपरिषद द्वारा माल वाहनों के नेशनल परमिट हेतु कर सम्बन्धी अधिसूचना में संशोधन का प्रस्ताव अनुमोदित
मन्त्रिपरिषद ने माल वाहनों के नेशनल परमिट से सम्बन्धित नई कम्पोजिट फीस योजना के कार्यान्वयन हेतु पूर्व में जारी अधिसूचना दिनांक 28 अक्टूबर, 2009 में संशोधन करने सम्बन्धी प्रस्ताव को अनुमोदित कर दिया है।
मन्त्रिपरिषद द्वारा लिये गये निर्णय के अनुसार अब नेशनल परमिट से आच्छादित माल वाहनों से अन्य राज्यों के लिए कर का संग्रह राज्य स्तर पर नहीं किया जाएगा, बल्कि इस प्रकार के वाहनों के लिए पन्द्रह हजार रूपये प्रति वर्ष कम्पोजिट (एक मुश्त) कर का संग्रह करके भारत सरकार को भेजा जाएगा, जहॉं से वह एक निश्चित फार्मूले के आधार पर राज्यों को बटेगा। अखिल भारतीय स्तर पर इस प्रकार संग्रहीत हुए कर में से 10.497 प्रतिशत उत्तर प्रदेश राज्य को प्राप्त होगा।
ज्ञातव्य है कि वर्ष 2007-08 में उत्तर प्रदेश राज्य को राष्ट्रीय परमिट फीस मद में कुल 98.35 करोड़ रूपये़, वर्ष 2008-09 में 104.36 करोड़ रूपये एवं वर्ष 2009-10 में कुल 115.70 करोड़ रूपये की प्राप्ति हुई है। जबकि इन्हीं वर्षो में अखिल भारतीय स्तर पर क्रमश: 974.57 रूपये, 1056.58 रूपये एवं 1186.56 करोड़ रूपये की प्राप्ति हुई है। उक्त फार्मूले के अनुसार राष्ट्रीय परमिट पर समेकित शुल्क में से 10.497 प्रतिशत उत्तर प्रदेश को प्राप्त होगा।
मन्त्रिपरिषद ने उ0प्र0 अनुसूचित वस्तु वितरण आदेश 2004 में संशोधन सम्बंधी प्रस्ताव को मंजूरी दी
मन्त्रिपरिषद द्वारा उत्तर प्रदेश अनुसूचित वस्तु वितरण आदेश 2004 की धारा 28(1) में संशोधन सम्बंधी प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान कर दी गई।
ज्ञातव्य है कि प्रदेश में खाद्यानों एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं का सम्भरण बनाये रखने, उनका समान वितरण एवं उचित मूल्य पर उपलब्धता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने उत्तर प्रदेश अनुसूचित वस्तु वितरण आदेश 2004 निर्गत किया गया है। यह आदेश केन्द्र सरकार के सार्वजनिक वितरण प्रणाली (नियन्त्रण) आदेश 2001 के परिपे्रक्ष्य में जारी किया गया है।
अनुसूचित वस्तु वितरण आदेश की धारा 28(1) में यह प्राविधानित है कि उचित दर दुकानों से सम्बन्धित सभी अपीलें मण्डलायुक्त को की जायेंगी जो उनकी सुनवाई या निपटारा करेगा अथवा वह अपनी शक्ति को आदेश द्वारा सहायक खाद्य आयुक्त को प्रत्योजित कर सकता है। मण्डलायुक्त के पास कार्य की अधिकता के कारण प्राय: उनके लिये यह सम्भव नहीं होता कि वे स्वयं इन अपीलों की सुनवाई/निपटारा कर सके। ज्ञातव्य है कि मण्डलायुक्त कार्यालय में प्रशासनिक सेवा के अपर आयुक्त भी तैनात होते हैं जिन्हें विभिन्न प्रकार के न्यायिक कार्यो का पूर्व अनुभव भी होता है। इसे दृष्टिगत रखते हुए धारा 28(1) में यह संशोधन किये जाने का निर्णय लिया गया कि मण्डलायुक्त अपीलों की सुनवाई/निपटारा करने की अपनी शक्ति को उपायुक्त खाद्य (सहायक खाद्य आयुक्त का परिवर्तित पदनाम) के साथ-साथ अपर आयुक्त को भी प्रत्योजित कर सकता है।
क्षेत्र पंचायतों के प्रमुख पदों एवं स्थानों (वार्ड) तथा जिला पंचायतों के अध्यक्ष पदों एवं स्थानों (वार्ड) के आरक्षण एवं आवंटन नियमावली में संशोधन
उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश में क्षेत्र पंचायतों के प्रमुख पदों एवं स्थानों (वार्ड) तथा जिला पंचायतों के अध्यक्ष पदों एवं स्थानों (वार्ड) के आरक्षण एवं आवंटन नियमावली में संशोधन कर दिया है। इस आशय के प्रस्ताव को उत्तर प्रदेश की मुख्यमन्त्री सुश्री मायावती की अध्यक्षता में आज यहां सम्पन्न हुई मन्त्रिपरिषद की बैठक में मंजूरी प्रदान कर दी गई।
मन्त्रिपरिषद् ने पंचायतों के आगामी सामान्य निर्वाचन के लिए आरक्षण व चक्रानुक्रम की व्यवस्था अपनाए जाने सम्बन्धी प्रस्ताव एवं तदनुसार उत्तर प्रदेश क्षेत्र पंचायत तथा जिला पंचायत (स्थानों और पदों का आरक्षण और आवंटन) नियमावली 1994 के नियम-4 के उपनियम (4) तथा उपनियम (6), नियम-5 के उपनियम (2), उपनियम (4), उपनियम (5), उपनियम (6), उपनियम (7) तथा उपनियम (8) में संशोधन करने, उपनियम (9) को उपनियम (10) के रूप में क्रमांकित करने और एक नया उपनियम, उपनियम (9) के रूप में जोड़ने हेतु उत्तर प्रदेश क्षेत्र पंचायत तथा जिला पंचायत (स्थानों और पदों का आरक्षण और आवंटन) (आठवां संशोधन) नियमावली-2010 के आलेख को भी अनुमोदित कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि पंचायतों के निर्वाचन हेतु वर्ष 2005 में अपनायी गई आरक्षण व चक्रानुक्रम की व्यवस्था में विसंगतियां थीं। इसके तहत ऐसी क्षेत्र पंचायत, जिनमें अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति तथा पिछड़े वर्ग की जनसंख्या 50 प्रतिशत से अधिक है, उनमें प्रमुख के पद को उसी जाति/वर्ग के लिए आरक्षित किया जायेगा और चक्रानुक्रम उसी जाति/वर्ग के पुरूष तथ स्त्री के मध्य करने की व्यवस्था की गई थी।
इस व्यवस्था से प्राय: ऐसी सभी क्षेत्र पंचायतें, जिनमें अनुसूचित जाति की जनसंख्या 50 प्रतिशत से अधिक थी, सदा के लिए अनुसूचित जाति के लिए तथा वह क्षेत्र पंचायतें जिनमें पिछड़े वर्ग की जनसंख्या 50 प्रतिशत से अधिक थी, सदा के लिए पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित हो गईं एवं अनारक्षित क्षेत्र पंचायतें भी सदा के लिए अनारक्षित की स्थिति में आ गईं, जिसके फलस्वरूप यह व्यवस्था आगामी निर्वाचन में अपनाने पर संविधान की भावना के अनुरूप क्षेत्र पंचायत के प्रमुख के पदों में चक्रानुक्रम से आरक्षण करना सम्भव नहीं है।
वर्ष 2005 में अपनायी गई व्यवस्था के अनुसार ऐसी जिला पंचायत जिनमें अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति तथा पिछड़े वर्ग की जनसंख्या 50 प्रतिशत से अधिक है, उनमें अध्यक्ष के पद को उसी जाति/वर्ग के लिए आरक्षित किया जायेगा चक्रानुक्रम उसी जाति/वर्ग के पुरूष तथा स्त्री के मध्य होगा।
इस व्यवस्था से प्राय: ऐसी सभी जिला पंचायतों, जिनमें पिछड़े वर्ग की जनसंख्या 50 प्रतिशत से अधिक थी, सदा के लिए पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित हो गईं, जिसके फलस्वरूप इस व्यवस्था को आगामी निर्वाचन में अपनाने पर संविधान की भावना के अनुरूप जिला पंचायत के अध्यक्ष के पदों में चक्रानुक्रम आरक्षण करना सम्भव नहीं होगा।
सम्प्रति नियमावली में चक्र चलाने हेतु मात्र पूर्ववर्ती निर्वाचन में किये गये आरक्षण को ही संज्ञान में लेने की व्यवस्था है, किन्तु संविधान में निहित भावना के अनुसार आरक्षण हेतु चलाये जाने वाले चक्र को इस प्रकार चलाया जाना है कि जहां तक सम्भव हो पूर्ववर्ती निर्वाचनों में आरक्षित पद/स्थान आगामी निर्वाचन में पुन: उसी जाति/वर्ग के लिए आरक्षित न हो।
जिला पंचायत के अध्यक्ष पदों में अनुसूचित जनजाति के लिए अवधारित पदों को आवंटित करने की प्रक्रिया का प्रावधान नियमावली में नहीं है। जिला पंचायत के अध्यक्ष पदों को स्त्रियों के लिए आरक्षित किये जाने हेतु सामान्य जनसंख्या के आधार पर तैयार किये जाने वाले अवरोही क्रम में जनसंख्या के आकलन हेतु जिला पंचायत की कुल जनसंख्या में से आरक्षित वर्गो की जनसंख्या को निकाला जाता है, किन्तु नियमावली में अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या को निकालने के प्राविधान का उल्लेख नहीं है।
इसी प्रकार अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग की स्त्रियों के लिए आरक्षित किये जाने वाले एक तिहाई से अन्यून पदों से सम्बन्धित नियम-5 के उपनियम (6) के स्थान पर सम्प्रति नियमावली में त्रुटिवश उपनियम (5) अंकित है। जिला पंचायत के अध्यक्ष पदों के आवंटन हेतु नियमावली में दी गई क्रमावली में अनुसूचित जनजाति की स्त्रियों तथा अनुसूचित जनजाति का उल्लेख नहीं है तथा प्रमुख के पदों के आवंटन हेतु नियमावली में क्रमावली नहीं है।
इन उपरोक्त विसंगतियों को समाप्त करने हेतु आगामी सामान्य निर्वाचनों में आरक्षण व चक्रानुक्रम के लिए वर्ष 1995 की व्यवस्था को अपनाये जाने के प्रस्ताव को मन्त्रिपरिषद् ने अनुमोदित कर दिया है। इसके तहत अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति तथा पिछड़ा वर्ग के लिए क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत के क्रमश: प्रमुख पदों और अध्यक्ष पदों को सम्बन्धित पंचायत क्षेत्र में उनके प्रतिशत जनसंख्या के अवरोही क्रम में इस प्रकार से आरक्षित किया जायेगा कि जहां तक हो सके वह उसी श्रेणी के लिए पुन: आरक्षित न हो, जिसके लिए वह पूर्व के चुनावों में आरक्षित थे।
इसी प्रकार क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायतों के स्थानों (वार्ड) के आरक्षण में चक्रानुक्रम (रोटेशन) करने के लिए पूर्ववर्ती निर्वाचनों में किये गये आरक्षणों को भी संज्ञान में लिया जाने की व्यवस्था की गई है। जिला पंचायत के अध्यक्ष पदों में अनुसूचित जनजाति के लिए अवधारित पदों के आवंटन की प्रक्रिया का प्राविधान किया जायेगा। स्त्रियों के लिए जिला पंचायत के अध्यक्ष पद आरक्षित करने हेतु सामान्य जनसंख्या के आकलन में जिला पंचायत की कुल जनसंख्या से में सम्प्रति प्राविधानित अनुसूचित जाति तथा पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या के साथ-साथ अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या को भी घटाया जाने का प्राविधान किया गया है।
जिला पंचायत के अध्यक्ष पदों के आवंटन हेतु क्रमावली में सर्वप्रथम अनुसूचित जनजाति की स्त्रियों और उसके पश्चात् अनुसूचित जनजातियों का उल्लेख किया जाये। जिला पंचायत के अध्यक्ष पदों के आवंटन की क्रमावली के अनुरूप ही प्रमुख के पदों के आवंटन में भी यथावश्यक संशोधन के साथ लागू किया जायेगा।
ग्राम पंचायत प्रधान के पदों में चक्रानुक्रम से आरक्षण के लिए की गई व्यवस्था के अनुरूप क्षेत्र पंचायतों और जिला पंचायतों के आगामी निर्वाचनों में उत्तर प्रदेश क्षेत्र पंचायत तथा जिला पंचायत (स्थानों और पदों का आरक्षण और आवंटन) नियमावली-1994 में क्षेत्र पंचायतों के प्रमुख के पद व स्थानों तथा जिला पंचायतों के अध्यक्ष के पदों व स्थानों के आरक्षण व चक्रानुक्रम के सम्बन्ध में वर्ष 2005 में अपनायी गई व्यवस्था से पूर्व वर्ष 1995 तथा 2000 में अपनायी गई व्यवस्था और जनपदवार प्रमुख के पदों के वितरण सम्बन्धी वर्ष 2000 की व्यवस्था को अपनाने के लिए नियमावली में तदनुसार आवश्यक संशोधन किया गया है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com