सुलतानपुर - इधर गोमती नदी के तराई क्षेत्रों में कच्ची देशी शराब बनाने के धंधें काफी फैलने फूलने का समाचार प्रकाशित हो रहा है। जिस पर पुलिस प्रशासन व आबकारी विभाग रोक नहीं लगा वा रहा है। इसमें स्थानीय पुलिस व प्रभावशाली लोगों की मिली भगत होती है। जिसका समय आने पर लोग उपयोग करते हैं। यही कारण है कि सामाजिक संगठन चाहे जितना शराब सहित अन्य दुर्गणों को त्यागने तथा भलमानस की जीवन जीने का प्रयास करें इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। शराब बनाने के समाचार का इशारा वैसे मल्लाहों की ओर ज्यादा होता ळे, जब कि इधर अन्य क्षेत्रों में भी अर्थोपार्जन की द्रष्टि से लम्बा कारों बार चलता है।
अभी तक गोमती वासी मल्लाह शराब बनाने व पीने के नाम पर कुछ ज्यादा कुख्यात हैं, इसमें कुछ वास्तविकता भी है। यह अवैध धंधा पुराना है। इससे समाज काफी बदनाम है, जबकि शराब बनाना व पीना समाज व स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक है पर ऐसे लोगो की कोई सकारात्मक सोच नही हैं आए दिन शराब पी कर मार-पीट करने का प्रकरण थाने तक आता रहता है। इस धंधें तथा पेय पर अंकुश लगना चाहिए। इसका एक पहलू यह है कि ऐसा उ0 प्र0 कश्यप निशाद सभा के प्रान्तीय बध्यक्ष खेमई खुमई प्रसाद निशाद का कहना है। श्री निशाद ने शराब बनाने व पीने के देसरे पहलू पर भी विचार करते हुए कहा कि यह अवैध धंधा काफी पुराना है, घंधा अपरािधेक है, पकड़े जाने पर मार खानी पड़ेगी और जेल भी जाना होगा यह जानते हुए भी तराई के लोग क्यों करते ? इसकी तह में जाने का प्रयास न प्रशासन ने किया और न अखबार वाले। क्या मजबूरी ह र्षोर्षो इसके सोचने समझने का का का कोई प्रयास नहीं हुआ। देखा यही जा रहा है, जो भी इस धंधे में लिप्त हैं उनके पास न तो कृशि योग्य भूमि है न और कोई धंधा है। कुछ ऐसे लोग भी इस धंधें को करते हैं, जो शारीरिक रूप अक्षम है। अपने परिवार का भरण - पोशण करना है। इस लिए शराब बनाते हैं ।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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