बच्चे जो 6 से 14 साल के हैं, वे शायद इस अधिनियम के बारे में नहीं जानते। बस, कोई एक मास्टर या शिक्षामित्र उन्हें मर्जी-बेमर्जी घेरकर स्कूल ले जायेगा। लेकिन वे वहां क्या करेंगे, कैसे पढ़ेंगे? ये बड़े सवाल हैं क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में अगर शिक्षामित्रों के भरोसे किसी तरह स्कूल चल रहे हैं तो नगर क्षेत्र में एक स्कूल में एक शिक्षक का भी औसत नहीं है। प्रदेश में सरकारी प्राथमिक व जूनियर स्कूलों में लगभग पौने तीन लाख पद खाली हैं। शिक्षा अधिकार अधिनियम में दिये गये शिक्षक व छात्र अनुपात की अनिवार्यता पर अधिकांश जिले खरे नहीं उतरते। इकलौते शिक्षक को एक साथ पांच कक्षाओं के लिए ही चपरासी, शिक्षक व प्रधानाध्यापक की ड्यूटी निभानी पड़ती है। मिड डे मील वितरण, चखकर उसकी रिपोर्ट देने, पुस्तकों का वितरण व भवन निर्माण जैसे भी काम करने पड़ते हैं। कानपुर शहर में पंजीकृत 432 स्कूलों में 105 शिक्षकों की कमी में बंद हो चुके हैं। शेष 327 स्कूलों के लिए 327 शिक्षक-शिक्षिकाएं हैं। 30 स्कूल एक-एक शिक्षामित्र के हवाले हैं। 295 स्कूल एकल शिक्षक हैं। जूनियर के 49 स्कूलों में मात्र 60 शिक्षक हैं। इस तरह गायब हुए शिक्षक कानपुर, इलाहाबाद, आगरा, वाराणसी, लखनऊ, अलीगढ़ जैसे बड़े शहरों में बीते 20 सालों से शिक्षक-शिक्षिकाएं सेवानिवृत्त तो हो रहे हैं, परंतु नियुक्तियां नहीं हुई। इन जनपदों को विशिष्ट बीटीसी के शिक्षक भी नहीं मिले, न ही ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों से शिक्षकों का स्थानांतरण या समायोजन हुआ।
अधिनियम में व्यवस्था
प्राथमिक :
बच्चों की संख्या : शिक्षकों की संख्या
60 तक : 2
61 से 90 : 3
91 से 120 : 4
101 से 150 : 5 व प्रधानाध्यापक (विशेष : शिक्षक-छात्र अनुपात 1: 40)
जूनियर : प्रति कक्षा एक शिक्षक
शिक्षक छात्र अनुपात - 1: 35
नगर की तस्वीर
प्राथमिक स्कूल
पंजीकृत : 432
कुल संचालित : 327
बंद हो गये : 105
शिक्षक : 327
शिक्षा मित्र : 200
प्रति स्कूल शिक्षक : 01
छात्र-शिक्षक औसत : अनियमित
प्रधानाध्यापक : स्थायी कहीं नहीं
जूनियर स्कूल
स्कूलों की संख्या : 49
शिक्षकों की संख्या : 60
प्रति स्कूल औसत : 2 से भी कम
प्रधानाध्यापक : कहीं नहीं
बड़ी कमी : विज्ञान, गणित के शिक्षक नहीं
post by-Ashok Agnihotri