Archive | September 21st, 2018

संघ की दस्तक सुनें - ललित गर्ग

Posted on 21 September 2018 by admin

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का तीन का ‘भविष्य का भारत’ विषयक विचार अनुष्ठान अनेक दृष्टियों से उपयोगी एवं प्रासंगिक बना। दिल्ली के विज्ञान भवन में देश के प्रमुख बुद्धिजीवियों और लगभग सभी दलों के प्रमुख नेताओं को आमंत्रित कर उन्हें न केवल संघ के दृष्टिकोण से अवगत कराया गया बल्कि एक सशक्त भारत के निर्माण में संघ की सकारात्मक भूमिका को भी प्रभावी ढ़ंग से प्रस्तुत किया। यह एक दस्तक है, एक आह्वान है जिससे न केवल सशक्त भारत का निर्माण होगा, बल्कि इस अनूठे काम में लगे संघ को लेकर बनी भ्रांतियांे एवं गलतफहमियों के निराकरण का वातावरण भी बनेगा। प्रश्न है कि संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत को आखिर क्या जरूरत आ पड़ी कि उन्हें समाज के प्रबुद्ध लोगों के बीच संघ का एजेंडा रखना पड़ा? मोहन भागवत ने इस विचार अनुष्ठान से संघ की छवि सुधारने का साहसपूर्ण प्रयास किया गया है, जिससे राष्ट्रीयता एवं भारतीयता की शुभता की आहत सुनाई दी है।
संघ ने भारत के भविष्य को लेकर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के साथ ही अपनी नीतियों, अपने क्रियाकलापों और उद्देश्यों के बारे में जिस तरह विस्तार से प्रकाश डाला उसके बाद कम से कम उन लोगों की उसके प्रति सोच बदलनी चाहिए जो उसे बिना जाने-समझे एवं तथाकथित पूर्वाग्रहों-दुराग्रहों के चलते एक खास खांचे में फिट करके देखते रहते हैं। एक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन के रूप में संघ किस तरह बदलते समय के साथ खुद को बदल रहा है, इसका एक प्रमाण तो यही है कि उसने औरों और यहां तक कि अपने विरोधियों और आलोचकों को अपने ढंग के इस अनूठे कार्यक्रम में आमंत्रित किया। देश और शायद दुनिया के इस सबसे विशाल संगठन के नेतृत्व ने इन आमंत्रित लोगों के सवालों के जवाब भी दिए, उनकी जिज्ञासाओं का समाधान किया। उन्होंने जो भाषण दिए, वे सचमुच नई लकीर खींचते हैं, एक नई सुबह का अहसास कराते हैं। उन्होंने हिंदुत्व और भारतीयता को एक ही सिक्के के दो पहलू बताया है। उनके इस कथन ने उसे और अधिक स्पष्ट कर दिया कि मुसलमान लोग भी हिंदुत्व के दायरे के बाहर नहीं हैं। संघ के हिंदुत्व का अर्थ है, विविधता में एकता, उदारता, सहनशीलता, सह-जीवन आदि। उन्होंने हिंदुत्व को नए ढंग से परिभाषित करने की कोशिश की है।
यह एक सुखद अनुभूति है कि संघ सबको साथ लेकर आगे बढ़ना चाहता है, पूर्ण समाज को जोड़ना चाहता है, इसलिए संघ के लिए कोई पराया नहीं, जो आज विरोध करते हैं, वे भी नहीं। संघ केवल यह चिंता करता है कि उनके विरोध से कोई क्षति नहीं हो। संघ शोषण और स्वार्थ रहित समाज चाहता है। संघ ऐसा समाज चाहता है जिसमें सभी लोग समान हों। समाज में कोई भेदभाव न हो। दूसरों के अस्तित्व के प्रति संवेदनशीलता आदर्श जीवनशैली का आधार तत्व है और संघ इसे प्रश्रय देता है। इसके बिना अखण्ड राष्ट्रीयता एवं समतामूलक समाज की स्थापना संभव ही नहीं है। जब तक व्यक्ति अपने अस्तित्व की तरह दूसरे के अस्तित्व को अपनी सहमति नहीं देगा, तब तक वह उसके प्रति संवेदनशील नहीं बन पाएगा। जिस देश और संस्कृति में संवेदनशीलता का स्रोत सूख जाता है, वहाँ मानवीय रिश्तों में लिजलिजापन आने लगता है। अपने अंग-प्रत्यंग पर कहीं प्रहार होता है तो आत्मा आहत होती है। किंतु दूसरों के साथ ऐसी घटना घटित होने पर मन का एक कोना भी प्रभावित नहीं होता। यह असंवेदनशीलता की निष्पत्ति है। संघ सबके अस्तित्व को स्वीकारता है, सबका विकास चाहता है। सहअस्तित्व की भावना संघ का दूसरा आधार तत्व है। भगवान महावीर ने वैचारिक और व्यावहारिक भेद में अभेद की स्थापना कर अनेकांत दर्शन का प्रतिपादन किया। अनेकांत के अनुसार अनेक विरोधी युगलों का सहअस्तित्व संभव है। अविरोधी विचारों वाले व्यक्ति एक साथ रहे, यह कोई आश्चर्य का विषय नहीं है। विरोधी विचारों, नीतियों और लक्ष्यों वाले लोग भी साथ-साथ मिलें, बैठें, चिंतन करें और रहें, यह सह-अस्तित्व का फलित है और इसी बात को इस तीन दिन के विचार अनुष्ठान का फलित मान सकते हैं, संघ की सार्थक पहल के रूप में उसे स्वीकृति दे सकते हैं।
संघ को राष्ट्र की चिंता है, उसके अनुरूप उसकी मानसिकता को दर्शाने वाले इस विचार-अनुष्ठान से निश्चित ही भारत के भविष्य की दिशाएं तय होगी। भारतीय जनता आजादी का सुख नहीं भोग सकी, आजाद कहलाने पर भी उसका लाभ नहीं उठा सकी, इसके लिए दोषी किसे ठहराया जाए? लोकतांत्रिक देश की जनता के महान आदर्शों को सीख नहीं पायी और इस बात को पहचान ही नहीं पायी कि राष्ट्रीयता के स्थान पर व्यक्तिवादिता एवं दलगत स्वार्थ उसके मन के किस हिस्से पर हस्ताक्षर कर रही है। जो संगठन आरएसएस को पानी पी-पीकर कोसते हैं, उन्होंने तो कभी यह बताने की जहमत मोल नहीं ली कि देश के विकास को लेकर, संसाधनों के बंटवारे को लेकर, अवसरों की समानता को लेकर उनकी अपनी क्या दृष्टि है? बेहतर होगा कि संघ की इस पहल से प्रेरणा लेकर अन्य दल और संगठन भी अपनी बुनियादी दृष्टि के बारे में आम देशवासियों की समझ साफ करें ताकि उनके समर्थकों और विरोधियों को ऐसी कसौटियां उपलब्ध हों, जिन पर उनके कामकाज को परखा जा सके। संघ ने सामूहिकता यानी संगठन का शंखनाद किया है तो इसका अर्थ संघ की सदस्यता वृद्धि नहीं है बल्कि भारत के निर्माण में रचनात्मक एवं सृजनात्मक शक्तियों को संगठित करना है।
किसी व्यक्ति, वर्ग या संगठन पर दोषारोपण करने से कुछ होने वाला नहीं है। पर यह जरूर विचारणीय है कि एक स्वतंत्र राष्ट्र के नागरिक इतने निस्तेज, इतने निराश और इतने कुंठित क्यों हो गए, जो अपने विश्वास और अपनी आस्थाओं को भी जिन्दा नहीं रख पाते? इस संदर्भ में सबसे पहली बात यह है कि स्वप्न वैसा ही देखना चाहिए जो पूरा हो सके। स्वप्न वैसा ही देखना चाहिए, जिसके अनुरूप पुरुषार्थ किया जा सके। कल्पना और आशा का अतिरंजन आदमी को भटकाने के सिवाय उसे क्या दे सकता है? संघप्रमुख ने राष्ट्रीयता, भारतीयता के साथ समाज एवं राष्ट्र निर्माण की आवश्यकता पर जिस तरह अपने विचार व्यक्त किए उससे यह स्पष्ट है कि इस संगठन की दिलचस्पी राजनीति में कम और राष्ट्रनीति में अधिक है। उन्होंने समाज निर्माण को अपना एक मात्र लक्ष्य बताया। इस क्रम में उन्होंने हिंदू और हिंदुत्व पर जोर देने के कारणों का भी उल्लेख किया। क्योंकि हिंदुत्व सब को जोड़ता है और संघ एक पद्धति है जो व्यक्ति निर्माण का काम करती है। प्रत्येक गांव और गली में ऐसे स्वयंसेवक खड़े करना संघ का काम है, जो सबको समान नजर से देखता हो। उन्होंने कहा कि विविधताओं से डरने की बात नहीं है, बल्कि सबका उत्सव मनाने की जरूरत है। निश्चित ही इससे संघ और हिंदुत्व को लेकर व्याप्त तमाम भ्रांतियां दूर होंगी, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि अभी भी कुछ भ्रांतियां और संदेह बरकरार रहेंगे। यह सही है कि संघ के इस कार्यक्रम का प्रयोजन लोगों को अपनी बातों से सहमत करना नहीं, बल्कि अपने बारे में आग्रह, पूर्वाग्रह एवं दुराग्रह को दूर करना एवं संघ के यथार्थ की जानकारी देना था, लेकिन उचित यही होगा कि वह इस तरह के आयोजन आगे भी करता रहे। निःसंदेह संघ को जानने-समझने का यह मतलब नहीं कि उसका अनुसरण किया जाए, लेकिन इसका भी कोई मतलब नहीं कि उसकी नीतियों को समाज एवं राष्ट्रविरोधी करार देकर उसे अवांछित संगठन की तरह से देखा जाए या फिर उसका हौवा खड़ा किया जाए।
भारत को स्वतंत्र हुए काल का एक बड़ा खंड पूरा हो रहा है। इतने वर्षों बाद भी यह सवाल उसी मुद्रा में उपस्थित है कि एक स्वतंत्र राष्ट्र के नागरिकों के अरमान पूरे क्यों नहीं हुए? इस अनुत्तरित प्रश्न का समाधान न आंदोलनों में है, न नारेबाजी में है और न अपनी-अपनी डफली पर अपना-अपना राग अलापने में है। इसके लिए तो एक सामूहिक प्रयोग की अपेक्षा है, जो जनता के चिंतन को बदल सके, लक्ष्य को बदल सके और कार्यपद्धति को बदल सके। इसी बड़ी सोच एवं दृष्टि को लेकर संघ आगे बढ़ रहा है तो यह स्वागत योग्य है।
आज देश की जो दशा है, भ्रष्टाचार का जो बोलबाला है, महंगाई बढ़ रही है, पडौसी देश सदैव डराने-धमकाने का दुस्साहस करते रहते हैं, कालेधन और राजनीति का गठबंधन अनेक समस्याओं का कारण बन रहा है, इन सब सन्दर्भों में देश के नेतृ-वर्ग से एक प्रश्न है। वह चाणक्य के जीवन से शिक्षा कब लेगा? कब साहस एवं शक्तिशाली होने की हुंकार भरेगा? संघ केवल हिन्दुत्व की बात नहीं करता, बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्रीयता की बात करता है।
संघ शुचिता एवं ईमानदारी की संरचना भी चाहता है। इसी से हमारी स्वतंत्रता सफल और सार्थक बन सकती है। अन्यथा स्वतंत्रता के गीत गाते रहें और उसी पुराने ढर्रे पर चलते रहें, इससे देश की नीतियों में बदलाव कैसे आएगा? मन्त्रिमंडल में जो लोग आते हैं, उनका यह नैतिक दायित्व है कि वे अपने इस्पाती चरित्र से देश को नयी दिशा दें। जनता की चारित्रिक शुचिता बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि नेतृवर्ग का चरित्र उज्ज्वल रहे। संघ ने इन बुनियादी बातों पर बल दिया है। इसके लिए आज से ही, अब से ही नये संकल्प के साथ काम शुरू किये जाने की आवश्यकता व्यक्त की है। उस संकल्प के साथ कृत्रिम प्रलोभन या हवाई कल्पनाएं नहीं होनी चाहिए। यथार्थ के ठोस धरातल पर कदम रखने वाला ही अपनी मंजिल तक पहुंच सकता है। इसके लिए भगवान् बनने की धुन छोड़कर मनुष्य बनने का लक्ष्य सामने रहना चाहिए। मनुष्य, मनुष्य बनें, इसके लिए बहुत बड़े बलिदान की भी अपेक्षा नहीं है।
संघ के विरोधी एवं उससे दूरी रखने वाले इस विचार-अनुष्ठान का जिस तरह बहिष्कार करते हुए उसे सगर्व सार्वजनिक भी किया उससे यही स्पष्ट हुआ कि जब संघ खुद में बदलाव लाने की तैयारी दिखा रहा तब उसके आलोचक और विरोधी जहां के तहां खड़े रहने में ही खुद की भलाई देख रहे हैं। वे ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन समझदारी तो इसी में है जो खुद को देश, काल और परिस्थितियों के हिसाब से बदलता है। सतत संवाद-संपर्क तमाम समस्याओं के समाधान की राह दिखाता है। जब संघ हिंदुत्व को भारतीयता का पर्याय मानकर यह कह रहा है कि वह अन्य मत-पंथ-विचार से जुड़े लोगों को साथ लेकर चलना चाहता है तब फिर कोशिश यही होनी चाहिए कि इस राष्ट्र निर्माण में ऐसे लोगों का एक समवाय बने और उनकी शक्ति भारत को सशक्त बनाने में लगे। जब संघ यह चाह रहा है कि वह राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य की ओर तेजी से बढ़ना चाहता है तो फिर कोशिश होनी चाहिए कि समाज का हर वर्ग उसके साथ जुड़े, क्योंकि सबल और समरस समाज के जरिये राष्ट्र निर्माण का काम कहीं अधिक आसानी से किया जा सकता है। भागवतजी ने स्पष्ट किया कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है और रहेगा। हिंदुत्व समाज को एकजुट रखता है, लेकिन हम समाज में संघ का वर्चस्व नहीं चाहते, बल्कि समाज के हर व्यक्ति का वर्चस्व चाहते हैं। यहां भी उनका संदेश साफ था- सबका साथ- सबका विकास। जब ऐसी ही निर्माण की आवाज उठेगी, पौरुष की मशाल जगेगी, सत्य की आंख खुलेगी तब हम, हमारा वो सब कुछ, जिससे हम जुड़े हैं, हमारे लिये कीमती तौहफा होगा।

प्रेषक
(ललित गर्ग)

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मुख्यमंत्री ने एन0बी0टी0 समाचार पत्र के चीफ काॅपी एडिटर श्री अभिषेक शुक्ल के निधन पर शोक व्यक्त किया

Posted on 21 September 2018 by admin

लखनऊ: 21 सितम्बर, 2018

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने नवभारत टाइम्स (एन0बी0टी0) समाचार पत्र के चीफ काॅपी एडिटर श्री अभिषेक शुक्ल के निधन पर शोक व्यक्त किया है।
मुख्यमंत्री जी ने दिवंगत आत्मा की शांति की कामना करते हुए शोकग्रस्त परिजनों के प्रति गहरी संवेदना भी व्यक्त की है।

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प्रवास कार्यक्रम - भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डा. महेन्द्र नाथ पाण्डेय

Posted on 21 September 2018 by admin

लखनऊ 21 सितम्बर 2018, भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डा. महेन्द्र नाथ पाण्डेय कल 22 सितम्बर को देवरिया में रहेंगे। डा. पाण्डेय धनराज वाटिका, कसया रोड, देवरिया में पार्टी की देवरिया व कुशीनगर के पार्टी संगठन के पदाधिकारियों की बैठक में सम्मलित होगें एवं सायं काल वाराणसी जाएगें।

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‘यूज एंड थ्रो’ की राजनीति के अगुआ हैं अखिलेश जी - डा0 चन्द्रमोहन

Posted on 21 September 2018 by admin

लखनऊ 21 सितम्बर 2018, भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता डा. चन्द्रमोहन ने पार्टी के प्रदेश मुख्यालय पर पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि समाजवादी पार्टी सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव अभी भी पिछले विधानसभा में अपनी पार्टी की बुरी हार के सदमे से उबर नहीं पा रहे हैं। इसीलिए उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि वह क्या बोलें और क्या न बोलें? जनता का विश्वास खो चुके अखिलेश जी अब जनता के बीच जाने का साहस ही नहीं जुटा पा रहे हैं, इसीलिए उन्हें आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस पर अपनी साइकिल यात्रा को घोषणा करने के बाद रद करना पड़ा। यही वजह है कि वे अब अपना खाली समय सोशल मीडिया पर भाजपा के खिलाफ भ्रड़ास निकाल कर बिता रहे हैं।
प्रदेश प्रवक्ता डां चन्द्रमोहन ने कहा कि दो दिन पहले उन्होंने ‘प्रधानमंत्री मातृवंदन वय योजना’ (पीएमएमवीवाई) से जुड़ा एक गलत ट्वीट किया था। श्री अखिलेश जी की जानकारी की पोल नीति आयोग के सलाहकार आलोक कुमार ने तथ्यात्मक कमियां उजागर करके सरेआम खोल दी। इससे यह एक बार फिर साबित हो गया कि श्री अखिलेश को न तो सरकार की किसी योजना की जानकारी ही है और न ही राजनीति की। पीठ में छुरा भोंक कर अपनी राजनीति हसरत को परवान चढ़ाना श्री अखिलेश जी को बखूबी आता है। जिन पिता और चाचा ने उन्हें नाकाबिल होते हुए भी मेहनत करके राजनीति में खड़ा किया, चुनाव जितवाया, श्री अखिलेश ने उन्हीं की पीठ में छुरा भोंककर पार्टी पर कब्जा कर लिया।
प्रदेश प्रवक्ता ंडा. चन्द्रमोहन ने बताया कि श्री अखिलेश यादव की यही ‘यूज एंड थ्रो’ की राजनीति का शिकार सपा के सैकडों वरिष्ठ नेता भी हुए हैं जिन्होंने अपने खून पसीने से पार्टी को सींचा था। अखिलेश जी ने एक कमजोर और डरपोक नेता की तरह व्यवहार करके निष्ठावान और जनाधार वाले नेताओं को हाशिए पर डाल दिया और चापलूसों को अपनी गोद में बिठा लिया है। इसी ‘यूज एंड थ्रो’ की राजनीति के चलते ही उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन किया और अब वह कांग्रेस का मुंह नहीं देखना चाहते।
डा. चन्द्रमोहन कहा कि अब वह बसपा की तरफ हाथ जोड़े खड़े हैं ताकि अगले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी को कुछ वोट मिल जाएं। श्री अखिलेश यादव जी ने कांग्रेस, बसपा जैसी कई पार्टियों को ‘टिशू पेपर’ समझ लिया है कि इनमें हाथ पोछकर निकल जाएंगे लेकिन जनता सब देख रही है। अगले लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सम्मानित जनता इन्हें विधानसभा चुनाव से भी कड़ा दंड देगी।

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शोक संदेश

Posted on 21 September 2018 by admin

लखनऊ 21 सितम्बर 2018, भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डा. महेन्द्र नाथ पाण्डेय एव प्रदेश महामंत्री (संगठन) सुनील बंसल ने दैनिक समाचार पत्र नवभारत टाइम्स के मुख्य उपसम्पादक श्री अभिषेक शुक्ल के असामयिक निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डा. महेन्द्र नाथ पाण्डेय ने श्री शुक्ल के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि एक युवा एवं होनहार पत्रकार के असामयिक निधन से पत्रकारिता क्षेत्र में एक बड़ी क्षति हुई है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने ईश्वर से मृत आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना करते हुए शोकाकुल परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त की है।
पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष जेपीएस राठौर, उपेन्द्र शुक्ला, डा. राकेश त्रिवेदी, दयाशंकर सिंह, सुधीर हलवासिया, प्रदेश महामंत्री अशोक कटारिया, विजय बहादुर पाठक, पंकज सिंह, विद्यासागर सोनकर, सलिल विश्नोई, गोबिन्द नारायण शुक्ला, नीलिमा कटियार, प्रदेश मंत्री अमर पाल मौर्य, अनूप गुप्ता, संतोष सिंह, त्रयम्बक नाथ त्रिपाठी, प्रदेश प्रवक्ता डाॅ0 चन्द्रमोहन, हरिरचन्द्र श्रीवास्तव, शलभ मणि त्रिपाठी, डाॅ. समीर सिंह, डाॅ. मनोज मिश्र, मनीष शुक्ला, हीरो बाजपेयी, संजय राय, अनीला सिंह, अशोक पाण्डेय, जुगल किशोर, प्रदेश मीडिया प्रभारी मनीष दीक्षित मीडिया सम्पर्क विभाग के प्रदेश संयोजक डाॅ. तरूण कान्त त्रिपाठी, प्रदेश मीडिया सहप्रभारी आलोक अवस्थी, हिमाशु दूबे, मीडिया सम्पर्क विभाग के सहसंयोजक नवीन श्रीवास्तव, राकेश त्रिपाठी, सुधाकर सिंह कुशवाहा, अभय प्रताप सिंह, प्रदेश मुख्यालय प्रभारी भारत दीक्षित, सहप्रभारी चैधरी लक्ष्मण सिंह, अतुल अवस्थी व अशोक तिवारी ने भी श्री अभिषेक शुक्ल के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए मृत आत्मा की शान्ति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की।

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