चेतना साहित्य परिषद के तत्वाधान में डा. नवाब शाहाबादी की अध्यक्षता एवं श्री राम औतार पंकज के कुशल संचालन में वसन्त ऋतु केनिद्रत एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। दिल्ली से आये प्रख्यात दोहाकार डा. नरेश शानिडल्य ने गोष्ठी के मुख्य अतिथि पद को सुशोभित किया।
गोष्ठी का शुभारम्भ डा0 आशुतोष वाजपेयी ने स्वरचित मातृ स्तवन के छन्दों से किया।
काव्य संध्या में प्रथम पुष्प के रुप में श्री धीरज मिश्र ने दोहे और छन्द सुनाकर श्रोताओं को रससिक्त किया।
यौवन की पीड़ा यही, दूर देश मे कंत। व्यर्थ हुए श्रृंगार सब कैसे मने वसंत।।
श्री क्षितिज श्रीवास्तव ने कम उम्र में ही सुन्दर कलाम पेश कर श्रोताओं को चकित कर दिया।
जब तक सर है घुटनों मे बड़ी गनीमत है यारों, बाहर आया एक पाँव चादर से जाने क्या होगा।
डा. आशुतोष वाजपेयी ने वसन्त के अप्रतिम छन्द सुनाकर श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध कर दिया-
ऋतुराज पधार गये धरती पर, स्वर्ण प्रभामय चूनर डाली।
उपहास उड़ा अलिगुंजन का फिर, कूक उठी वह कोयल काली।।
श्री सरवर लखनवी ने अपने कलाम में कहा-
बाद मरने के ये ख़याल आया, ज़ख़्म दिल का बहुत हरा है अभी।
श्री जगदीश शुक्ल ने अपने छन्दों मे वसन्त की अदभुत छटा बिखेरी-
अल्हड़ सी चाल कटि करती कदम ताल, बेमिसाल रुप राशि वाली मन भा गर्इ।
ऐसी है नवेली अलबेली मदमस्त बड़ी, धरा पे उतर के वसन्त ऋतु आ गर्इ।
मुख्य अतिथि डा. नरेश शानिडल्य ने अपने दोहों मे जीवन दर्शन को प्रमुखता देते हुए काव्य पाठ किया-
बेशक़ होगा शाह वो, मैं अलमस्त फ़़क़ीर। उसका पीर कुबेर है, मेरा पीर कबीर।।
गोष्ठी के समापन मे समारोह अध्यक्ष डा. नवाब शाहाबादी ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन मे मुख्य अतिथि महोदय को गोष्ठी में समिमलित होने के लिए आभार प्रकट करते हुए समस्त रचनाकारों को उत्कृष्ट काव्यपाठ के लिए साधुवाद दिया।
हुबहु चेहरा किसी का अब उभरता ही नहीं, झूठ के साये ने जब से आइनों को छू लिया।
गोष्ठी में, श्री अशोक कुमार शुक्ल, श्री नवीन बैसवारी, श्री राज किशोर नमन, श्री संदीप कुमार सिंह, श्री आशिक रायबरेलवी, श्री सुभाष चन्द्र रसिया, श्री कृष्णकान्त झा, श्री अरविन्द कुमार झा, डा. मृदुल शर्मा, डा. शिवभजन कमलेश आदि कवियों ने अपने अदभुत काव्य पाठ से समस्त श्रोताओं को रससिक्त किया।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com