Archive | October, 2018

तीन दिवसीय हड़ताल पर अडिग कर्मचारी, शिक्षक, अधिकारी

Posted on 20 October 2018 by admin

सरकार का दमनात्क रूख, कर्मचारी, शिक्षक, अधिकारी हड़ताल को हवा मिली
मंच की बैठक में सरकार के खिलाफ भड़के कर्मचारी, शिक्षक, अधिकारी
लखनऊ20अक्टूम्बर 18। कर्मचारी, शिक्षक, अधिकारी-पुरानी पेंशन बहाली मंच की तीन दिवसीय हड़ताल के परिपेक्ष्य में मुख्य सचिव स्तर पर डीएम और मण्डलायुक्तों केा भेजे गए दमनात्मक आदेश ने कर्मचारियों की हड़ताल को हवा दे दी है।कर्मचारी, शिक्षक, अधिकारी-पुरानी पेंशन बहाली मंच की महाबैठक में वक्ताओं और उपस्थिति पदाधिकारियों का आक्रोश स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था। हड़ताल की तैयारी बैठक में मंच के नेताओं ने आठ अक्टूबर की महारैली के दौरान लगभग चार से पाॅच लाख कर्मचारी, शिक्षक, अधिकारी अनुशासन में रहे। हम उसी तरह अनुशासन में रहकर हड़ताल कर अपना विरोध दर्ज करायेगे। वक्ताओं ने कर्मचारी शिक्षक और अधिकारियों की एकता का हवाला देते हुए इस बाॅत पर जोर दिया की हमारी हड़ताल होकर रहेगी। हम शान्ति पूर्ण तरीके से हड़ताल पर जा रहे है। सरकार ने अगर दमनात्मक रूख अपनाया तो इसके परिणाम स्वरूप किसी भी स्थिति की जिम्मेदारी सरकार की होगी। मंच के नेताओं ने स्पष्ट किया कि मुख्य सचिव स्तर पर हुई वार्ता में तथ्यात्मक आधारों रखी गई नई पेंशन योजना की खामियों को आला अफसरों ने स्वीकार भी किया लेकिन जबाब सकारात्मक नही रहा। परिणाम स्वरूप तीन दिवसीय हड़ताल अपनी तय तिथि पर होगी। हड़ताल के तीसरे दिन 27 अक्टूबर को प्रान्तीय बैठक कर अनिश्चितकालीन हड़ताल का निर्णय लिया जा सकता है।
कर्मचारी, शिक्षक, अधिकारी पुरानी पेंशन बहाली मंच की प्रस्तावित हड़ताल की तैयारी बैठक मंच के अध्यक्ष डा. दिनेश चन्द शर्मा की अध्यक्षता में डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ लोक निर्माण विभाग के प्रेक्षागृह में हुई। बैठक में पुरानी पेंशन बहाली पर सरकार की ‘‘ नानकुर ’’ पर कर्मचारी, शिक्षक, अधिकारी आक्रोषित दिखे। 25,26 और 27 अकटूबर 2018 हड़ताल के लिए बुलाई गई बैठक का संचालन करते हुए राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के महामंत्री शिवबरन सिंह यादव ने बताया कि प्रदेश के मुख्य सचिव की ओर से जिला प्रशासन के लिए जारी दिशा निर्देशों को लेकर मंच के प्रान्तीय पदाधिकारियों ने कड़ी निन्दा की है। आलोचना करते हुए वक्ताओं ने कहा कि सेवा संघों द्वारा पहले भी अपनी मांगों को लेकर हड़ताल की गई पर हड़ताल से पूर्व शासन द्वारा ऐसा रवैया कभी नही अपनाया गया। मंच द्वारा आठ अक्टूबर को विशाल रैली में कर्मचारी, शिक्षक, अधिकारी की भीड़ पूरी कानून व्यवस्था बनाए रखकर अपना विरोध दर्ज करा चुका है। वक्ताओं ने इस बाॅत का पुरजोर तरीके से रखा कि कर्मचारी, शिक्षक, अधिकारी शान्तिपूण्र्र तरीके से हड़ताल पर जा रहे है इस दबाने या कुचलने और उत्पीड़न और उकसाने का प्रयास सरकार या शासन तंत्र ने किया तो इसके परिणाम स्वरूप जो स्थिति उत्पन्न होगी उसके लिए सरकार और शासन ही जिम्मेदार होगा। भारत के संविधान में अपने उत्पीड़न, हक पर डाके के खिलाफ प्रदर्शन का पूरा अधिकार है। सरकार प्रदेश के कर्मचारी, शिक्षक, अधिकारी को उनके हक और अधिकार से वंचित नही कर सकती। वक्ताओं ने कहा कि देश के लगभग 2.50 करोड राज्य कर्मचारी और 36 लाख केन्द्रीय कर्मचारियों की नई पेंशन योजना के तहत अब तक लगभग दस हजार करोड़ रूपये नई पेंशन के नाम पर केन्द्र और राज्य कर्मचारियों के नाम से लिए गए लेकिन इस बड़ी धनराशि का कोई लेखा जोखा सरकारों के पास नही है।सरकार को केन्द्र और राज्य कर्मचारियों को उनका हक ‘‘ पेंशन’’ तो देनी ही पड़ेगी। सरकार की इस योजना से छोटे से लेकर बड़े स्तर तक के कर्मचारी नाराज है, लेकिन आला अफसर डर के मारे विरोध नही कर पा रहे है लेकिन अन्दर से वे भी हमारे साथ है। नई पेंशन योजना सीधे सीेधे धोखा है। सरकार ऐसा नही कर सकती एक वर्ग को पेंशन मिलेगी और दूसरे को नही मिलेगी यह दोहरी नीति और कर्मचारी शिक्षक बर्दाश्त नही करेगें। मंच संयोजक हरिकिशोर तिवारी ने कहा कि लम्बे अरसे से हम राज्य सरकार को पुरानी पेंशन बहाली के लिए शांति पूर्ण तरीके से अनुरोध कर चुके है। पुरानी पेंशन बहाली के लिए वर्ष 2013 में साइकिल रैली के माध्यम से भी सरकार को आगह किया गया है। लगातार मंच के माध्यम से नई पेंशन योजनाओं की खमियोओ और कर्मचारी, शिक्षक, अधिकारी को होने वाली आर्थिक हानि से अवगत करा चुके है। सरकार अब हमें टकराव के लिए मंजबूर कर रही है। मंच पूरे देश में भ्रमण कर चुका है, पुरानी पेंशन बहाली के लिए महौल बन चुका है अब फैसला सरकार को लेना है। अगर सरकार फैसला नही लेती तो परिणाम ठीक नही होगें। सरकार को चेतावनी दी कि अब कर्मचारी अकेला नही शिक्षक और अधिकारी भी उसके साथ है। बैठक को अधिकारी महापरिषद के पूर्व अध्यक्ष बाबा हरदेव सिंह, इन्द्रासन सिंह, डिप्लोमा इंजीनियर्स महासंघ के अध्यक्ष इं. राकेश त्यागी, डी.एन.सिंह, राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के पूर्व अध्यक्ष अमरनाथ यादव, कामरेड़ आर.के. पाण्डेय, जे.पी. सिंह इनकम टैक्स, वीरेन्द्र तिवारी पोस्टल,एच.एन मिश्रा, शिक्षक संघ के संजय सिंह, शिवशंकर पाण्डेय, देवेन्द्र श्रीवास्तव, वंदना श्रीवास्तव, कांति सिंह,सुधीर पावर, हरिनाम सिंह, भूपेश अवस्थी पूर्व वरिष्ठ उपाध्यक्ष संयुक्त परिषद, बलराम सिंह, निखिल शुक्ला, अनुज शुक्ला,आईएन त्रिपाठी, ,यादवेन्द्र मिश्रा, ओंकार नाथ तिवारी, आनंद वर्मा, रामअचल, अर्जुन यादव,रामफेर पाण्डेय,मिठाई लाल,संतोष तिवारी, जे.पी. यादव, सत्यप्रकाश तिवारी, अमित सिंह प्रातींय चिकित्सक सेवा संघ, एच.एन. मिश्रा, रामराज दुबे, संजीव गुप्ता, अमिता त्रिपाठी, अविनाश चंद श्रीवास्तव, वी.एस. डोलिया, कमलेश वर्मा, बलराम सिंह, नरेन्द्र सिह नेगी, रामनगीना सिंह, अमरजीत मिश्रा, गौतम त्रिपाठी, अवधेश मिश्र, प्रेम कुमार सिंह, डा. वी.एस. चैहान, सुनील यादव, गंगेश कुमार शुक्ल, एन.पी. त्रिपाठी, अजय ंिसह वित्त विहीन शिक्षक संघ, विवेक द्विवेदी, इं. एन.डी. द्विवेदी, इं. करन पटेल, इं. दिवाकर राय, किरन कुमारी दुबे इं. एस.पी. गुप्ता, इं. एस.डी. द्विवेदी, डा. वी.एस. चैहान, नरेन्द्र नेगी, रामनागीना,राममूरत यादव, गौतम त्रिपाठी,प्रेम कुमार सिंह, सत्यप्रकाश मिश्रा,सुरेश सिंह यादव, नीवन सिंह, खादी बोर्ड के ब्रजेश मिश्रा, हरिगेन्द सिंह , अवधेश कुमार, राकेश पाण्डेय, रतन लाल, कामत प्रसाद, शिवराम, रमेश कटियार, दिनेश श्रीवास्तव, अतुल टण्डन, कमलेश मिश्र, उर्मिला राय,इं. देशराज, सुनीता गौतम,सहित लगभग सौ से अधिक महासंघ, परिषद, एसोसिएशन के पदाधिकारियो ने इस महाबैठक में भाग लिया।

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ऐसे बड़े नेता का जाना प्रदेशवासियों के लिए बेहद दुख का क्षण है

Posted on 20 October 2018 by admin

लखनऊ 20 अक्टूबर 2018, भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डा0 महेन्द्र नाथ पाण्डेय ने वरिष्ठ राजनेता उ.प्र. और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री पंडित नारायण दत्त तिवारी जी के पार्थिव शरीर पर पुष्पांजलि देकर उनको अपने श्रद्धासुमन अर्पित किये। पत्रकारों के सवाल का जबाव देते हुए डा0 पाण्डेय ने कहा कि पंडित नारायण दत्त तिवारी राजनीति में उच्च मापदंड स्थापित करने वाले नेता थे, वे विकास पुरूष के रूप में जाने जाते थे। ऐसे बड़े नेता का जाना प्रदेशवासियों के लिए बेहद दुख का क्षण है।

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गन्ना किसानों के लिए हुए ऐतिहासिक फैसलों का नतीजा, चीनी उत्पादन में नंबर बन बना यूपी, देश के कुल उत्पादन का 38 फीसदी चीनी उत्पादन यूपी में, चैधरी चरण सिंह जी की कर्मभूमि को भी योगी सरकार ने दिया बड़ा तोहफा - शलभ मणि त्रिपाठी

Posted on 20 October 2018 by admin

लखनऊ 20 अक्टूबर 2018, भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता शलभ मणि त्रिपाठी ने कहा है कि योगी आदित्यनाथ जी की सरकार गन्ना किसानों के हित में शानदार फैसले रही हैं। महज 18 महीनों की सरकार में उत्तर प्रदेश सरकार ने बंद पड़ी तमाम चीनी मिलों को दुबारा शुरू कराने के साथ ही तमाम पुरानी मिलों की क्षमता बढाने का भी काम किया है। खास बात ये भी है कि इसमें चैधरी चरण सिंह के कर्मक्षेत्र रमाला की शुगर मिल भी शामिल है। इस शुगर मिल की क्षमता बढाने और इसे अत्याधुनिक बनाने की मांग पिछले 35 साल से किसान भाई कर रहे थे, परंतु योगी आदित्यनाथ जी की सरकार ने इसे संवेदनशीलता से लेते हुए लगभग 400 करोड़ रूपए देकर शुगर मिल का कायाकल्प कराया है और चैधरी चरण सिंह जी की कर्मभूमि को बड़ा तोहफा दिया है।
शलभ मणि त्रिपाठी ने कहा है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की अगुवाई में योगी आदित्यनाथ जी और गन्ना मंत्री श्री सुरेश राणा जी की कोशिशों का ही नतीजा है कि यूपी ने इस बार देश में चीनी के कुल उत्पादन की 38 फीसदी चीनी का उत्पादन कर रिकार्ड कायम किया है। उत्तर प्रदेश ने इस बार अकेले 120 लाख टन चीनी का उत्पादन किया है जो पहली बार कभी नहीं हुआ। इतना ही नहीं, योगी आदित्यनाथ जी की सरकार ने अखिलेश सरकार के दौरान बकाया गन्ना भुगतान तो किया ही, इस सत्र में भी गन्ना किसानों को तेजी से भुगतान किया जा रहा है। कुछ चीनी मिलें जिनकी आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं है, उनको गन्ना किसानों के भुगतान के लिए सरकार ने साफ्ट लोन की सुविधा मुहैया कराई है। ताकी गन्ना किसानों के भुगतान में किसी तरह की परेशानी ना हो। यह भी सुनिश्चित कराया गया है कि साफ्ट लोन का पैसा चीनी मिलों के खाते में ना जाकर सीधे गन्ना किसानों के खाते में भेजा जाएगा।
शलभ मणि त्रिपाठी ने कहा कि इन्ही प्रयासों से योगी आदित्यनाथ जी की सरकार अब तक गन्ना किसानों को 27 हजार 486 करोड़ का भुगतान कर चुकी है। इतना ही नहीं अखिलेश यादव जी की सरकार के दौरान गन्ना किसानों का बकाया रहा 44 सौ 43 करोड़ रूपए का भी योगी जी की सरकार ने भुगतान करा दिया है। शलभ मणि त्रिपाठी ने कहा कि पिछली मायावती जी और अखिलेश जी की सरकारों के दौरान चीनी मिलें बर्बाद कर औने पौने दामों में बेंच दी गईं। शुगर का कटोरा कहा जाने वाला पूर्वांचल चीनी उत्पादन के क्षेत्र में पूरी तरह तबाह हो गया। नतीजा गन्ना किसानों की हालत भी दिन पर दिन खराब होती चली गई। योगी आदित्यनाथ जी की सरकार ने शपथ लेने के फौरन बाद से ही गन्ना किसानों की बेहतरी के कदम उठाने शुरू कर दिए। गन्ना किसानों ने गन्ने की पैदावार कम कर दी। इसी का नतीजा है कि महज 18 महीनों में योगी सरकार ने सालों से बंद पड़ी पिपराइच चीनी मिल, मुंडेरवा चीनी मिल, बुलंदशहर चीनी मिल, सहारनपुर चीनी मिल, चंदौसी चीनी मिल दुबारा से शुरू करा दी है। इसका सीधा लाभ गन्ना किसानों को मिलने लगा है। गन्ना किसानों के हित में किए जा रहे कामों के लिए मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी और गन्ना मंत्री श्री सुरेश राणा जी बधाई के पात्र हैं।

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शारदीय नवरात्र का धार्मिक अनुष्ठान श्रीगोरक्षनाथ मन्दिर में परम्परागत रूप से सम्पन्न हुआ

Posted on 18 October 2018 by admin

गोरखपुर, 18 अक्टूबर। सनातन हिन्दू धर्म में कुमारी कन्याओं का पूजन एवं सत्कार आदि शक्ति मॉ भगवती दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों का पूजन है। जो समाज आदिशक्ति मॉ भगवती के विभिन्न स्वरूपों का उपासक रहा हो, उसमें कन्या भ्रूण हत्या तथा मातृ शक्ति के साथ होने वाले अपराध गम्भीर चिन्ता का विषय तो है ही साथ ही आध्यात्मिक शक्तियों को नकारने जैसा भी है।
14शारदीय नवरात्र के नवमी को कुमारी कन्या पूजन के उपरान्त उक्त बातें गोरक्षपीठाधीश्वर महन्त योगी आदित्यनाथ जी महाराज, मा0 मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश ने कहीं। उन्होंने कहा कि सनातन हिन्दू धर्म में कुमारी कन्याओं का पूजन शक्ति की अधिष्ठात्री देवी मॉ भगवती के प्रति श्रद्धा निवेदित करने का एक अवसर तो होता ही है साथ ही ज्ञान, शक्ति, ऐश्वर्य आदि की कामनाओं के लिए भी कुमारी कन्या का पूजन शास्त्र विहित है। इसमें किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं है। चारो वर्णो की कन्याओं का पूजन जब हिन्दू धर्मावलम्बी सम्पन्न करता है तो वह चारो वर्णो की एकता से उत्पन्न शक्ति का प्रतीक भी बनता है। नवरात्रि का अनुष्ठान आध्यात्मिक शक्ति संचय के साथ-साथ सामाजिक एकता के माध्यम से राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने का पर्व है। 34
शारदीय नवरात्र का धार्मिक अनुष्ठान श्रीगोरक्षनाथ मन्दिर में परम्परागत रूप से सम्पन्न हुआ। ब्रह्ममुहूर्त में प्रातः काल 4.00 बजे से 7.00 बजे तक श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ एवं भव्य आरती सम्पन्न हुई।
मध्याह्न 12.00 बजे नौ देवी स्वरूपा कुमारी कन्याओं का पूजन एवं आरती विधि विधान से सम्पन्न करने के उपरान्त उन्हे भोजन, प्रसाद तथा दान-दक्षिणा देकर विदा किया गया।
विजयादशमी कार्यक्रम के बारें में जानकारी देते हुए गोरखनाथ मन्दिर कार्यालय सचिव श्री द्वारिका तिवारी ने बताया कि श्री गोरक्षपीठाधीश्वर योगी जी महाराज विजयादशमी के दिन 9.00 बजे श्रीनाथ जी के मन्दिर में अपने योगियो, सन्तो की टोली के साथ जायेंगे। श्रीनाथ जी का विशेष अनुष्ठान व पूजन उनके द्वारा सम्पन्न होगा। अपराह्न 1.00 बजे से 3.00 बजे तक स्थानीय भक्तों द्वारा श्री गोरक्षपीठाधीश्वर योगी जी महाराज का तिलकोत्सव सम्पन्न होगा। अपराह्न 4.00 बजे श्री गोरक्षपीठाधीश्वर पूज्य महन्त योगी जी महाराज की भव्य विजय शोभा-यात्रा के रूप में पुराना गोरखपुर स्थित मानसरोवर मन्दिर के लिए प्रस्थान करेंगी। वहॉ पर भगवान शंकर सहित सभी देव-विग्रहों का पूजन, आरती के उपरान्त सवारी श्रीरामलीला मैदान पहुॅचेगी। वहॉ पर श्रीगोरक्षपीठाधीश्वर द्वारा भगवान श्रीराम का राजतिलक सम्पन्न होगा। तदुपरान्त शोभा-यात्रा गोरखनाथ मन्दिर में वापस आयेगी। सायंकाल 7.00 बजे श्री गोरखनाथ मन्दिर में सन्तो, ब्राह्मणों, निर्धन-नारायण एवं सामान्यजन का सहभोज भण्डारा आयोजित होगा।

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प.पू. सरसंघचालक डॉ. श्री मोहन जी भागवत के श्री विजयादषमी उत्सव 2018 (गुरुवार दिनांक 18 अक्तूबर 2018) के अवसर पर दिये गये उद्बोधन का सारांष

Posted on 18 October 2018 by admin

प्रास्ताविक :
इस वर्ष की विजयादषमी के पावन अवसर को संपन्न करने के लिये हम सब आज यहाँ पर एकत्रित है। यह वर्ष श्रीगुरुनानक देव जी के प्रकाश का 550 वाँ वर्ष है। अपने भारतवर्ष की प्राचीन परम्परा से प्राप्त सत्य को भूलकर, आत्मविस्मृत होकर जब अपना सारा समाज दम्भ, मिथ्याचार, स्वार्थ तथा भेद की दलदल में आकण्ठ फँस गया था और दुर्बल, पराजित व विघटित होकर लगातार सीमा पार से आने वाले क्रूर विदेशी असहिष्णु आक्रामकों की बर्बर प्रताड़नाओं को झेलकर तार-तार हो रहा था, तब श्रीगुरुनानक देव जी ने अपने जीवन की ज्योति जलाकर समाज को अध्यात्म के युगानुकूल आचरण से आत्मोद्धार का नया मार्ग दिखाया, भटकी हुई परम्परा का शोधन कर समाज को एकात्मता व नवचैतन्य का संजीवन दिया। उन्हीं की परम्परा ने हमको देश की दीन-हीन अवस्था को दूर करने वाले दस गुरुआें की सुन्दर व तेजस्वी मालिका दी।
उसी सत्य व प्रेम पर स्थापित सर्वसमावेशी संस्कृति के, देश में विभिन्न महापुरुषों के द्वारा समय-समय पर पुरस्कृत व प्रवर्तित, देश काल परिस्थिति के अनुरूप प्रबोधन के सातत्य का परिणाम है कि जिनके जन्म का यह 150वाँ वर्ष है ऐसे महात्मा गाँधी जी ने इस देश के स्वतंत्रता आन्दोलन को सत्य व अहिंसा पर आधारित राजनीतिक अधिष्ठान पर खड़ा किया। ऐसे सभी प्रयासों के कारण देश की सामान्य जनता स्वराज्य के लिए घर के बाहर आकर, मुखर होकर अंग्रेजी दमनचक्र के आगे नैतिक बल लेकर खड़ी हो गयी। एक सौ वर्ष पहले अमृतसर के जलियाँवाला बाग में स्वराज्य के लिये तथा ”रौलेट कानून“ के अन्याय व दमन के विरुद्ध संकल्पबद्ध, चारों ओर से घेरकर जनरल डायर के नेतृत्व में जिन्हें गोलीबारी का शिकार बनाया गया, उन हमारे सैकड़ों निहत्थे देशबांधवों के त्याग, बलिदान व समर्पण का स्मरण भी इस नैतिक बल को हम में जागृत करता है।
इस वर्ष के इन औचित्यपूर्ण संस्मरणों का उल्लेख इसलिए आवश्यक है कि स्वतंत्रता के 71 वर्षों में हमारे देश ने उन्नति के कई आयामों में एक अच्छा स्तर प्राप्त कर लिया है, परन्तु सर्वांगपरिपूर्ण राष्ट्रीय जीवन के और भी कई आयामों में अभी हमें बढ़ना है। हमारे देश के विश्व में सुसंगठित, समर्थ व वैभव-सम्पन्न बन कर आगे आने से जिन शक्तियों के स्वार्थ-साधन का खेल समाप्त या अवरुद्ध हो जाता है, वे शक्तियाँ तरह-तरह के कुचक्र चलाकर देश की राह में रोड़े अटकाने से बाज नहीं आयी हैं। कई चुनौतियों को हमें अभी पार करना है। हमारे पूर्वज महापुरुषों द्वारा स्वयं के जीवन के उदाहरण से, उपदेश से जो सत्यनिष्ठा, प्रेम, त्याग, पवित्रता व तपस् के आदर्श समाज में स्थापित व आचरण में प्रवर्तित किये गये, उन्हीं पर चलकर हम इस कार्य को कर सकेंगे। देश के परिदृश्य पर थोड़ा गौर करने पर वहाँ चले हुए धूप-छाँव के खेल में यही बोध दृष्टिगत होता है।

देश की सुरक्षा
किसी भी देश के लिए उस देश की सीमाओं की सुरक्षा तथा अंतर्गत सुरक्षा की स्थिति विचार का विषय पहला रहता है क्योंकि इनके ठीक रहने से ही देश की समृद्धि व विकास के लिए प्रयास करने हेतु अवकाश व अवसर उपलब्ध होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के तानों-बानों को ठीक से समझकर अपने देश की सुरक्षा-चिन्ताओं से उनको अवगत कराना व उनका सहयोग समर्थन प्राप्त करना यह भी सफल प्रयास हुआ है। पड़ोसी देशों सहित सब देशों से शांतिपूर्ण व सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बनाने बढ़ाने की अपनी इच्छा, वाणी व कृति को कायम रखते हुए, देश के सुरक्षा संदर्भ में जहाँ आवश्यक वहाँ दृढ़ता से खड़े व अड़े रहना तथा साहसपूर्ण पहल करके अपने सामर्थ्य का विवेकी उपयोग करना यह भी अपना रुख सेना, शासन व प्रशासन ने स्पष्ट दिखाया है। इस दृष्टि से अपनी सेना तथा रक्षक बलों का नीति धैर्य बढ़ाना, उनको साधन-सम्पन्न बनाना, नयी तकनीक उपलब्ध कराना आदि बातों का प्रारम्भ होकर उनकी गति बढ़ रही है। दुनिया के देशों में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ने का यह भी एक कारण है।
साथ-साथ ही सुरक्षा बलों, रक्षक बलों तथा उनके परिवारों के योगक्षेम की व्यवस्था पर ध्यान बढ़ाना आवश्यक है। इस दिशा में कुछ अच्छे प्रयास शासन के द्वारा हुए हैं। उन को लागू करने की गति कैसे बढ़ सकती है इस पर विचार करना आवष्यक है। सैनिक अधिकारी व नागरिक प्रशासकीय अधिकारी, गृहमंत्रालय, सुरक्षा मंत्रालय, अर्थ मंत्रालय आदि अनेक विभागों में से इन योजनाओं का विचार व अमल होना प्रषासकीय दृष्टि से अनिवार्य है। इन बलों के कार्य का तथा उस कार्य के लिए प्राणों तक की बाजी लगा देने की तैयारी का इन विभागों के सब व्यक्तियों के मन में समान सम्मान व संवेदना रहे यह स्वाभाविक अपेक्षा चर्चा में सुनाई देती है। यह अपेक्षा जितनी शासन से व प्रशासन से है उतनी ही समाज से भी है, यह प्रत्येक देशवासी को ध्यान में रखना चाहिए। सीमा पार तथा आवश्यकतानुसार देश के अंदर भी समाज की सुरक्षा के लिए जूझनेवाले अपने बंधु अपने परिवार की सुव्यवस्था व सुरक्षा के बारे में निश्चिन्त होकर अपना काम कर सकें यह आवश्यक है। अभी पश्चिम सीमापार के देश में हुए सत्तापरिवर्तन से हमारे सीमा पर तथा पंजाब, जम्मू व कश्मीर जैसे राज्यों में चली उसकी प्रकट अथवा छुपी उकसाऊ गतिविधियों में कोई कमी आने की न अपेक्षा थी, न वैसा हुआ है।
अंतर्राष्ट्रीय घटनाचक्र के परिप्रेक्ष्य में सागरी सीमा की सुरक्षा एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण विषय बना है। मुख्यभूमि से लगे सागरी क्षेत्र में कम अधिक दूरी पर भारत में अंतर्भूत सैकड़ों द्वीप हैं। अन्दमान निकोबार द्वीप समूह सहित ये सभी द्वीप सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थानों पर स्थित हैं। उनकी निगरानी व्यवस्था तथा सुरक्षा की दृष्टि से वहाँ की व्यवस्था का सबलीकरण यह अतिशीघ्रता से ध्यान देकर पूर्ण करने का विषय है। सागरी सीमा व द्वीपों पर ध्यान देनेवाली नौसेना तथा अन्य बल इन में आपसी तालमेल, सहयोग व साधनसंपन्नता पर शीघ्र अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। भू तथा सागरी सीमावर्ती क्षेत्र में रहनेवाले अपने बंधु कई सीमाविशिष्ट परिस्थितियों का सामना करते हुए भी धैर्यपूर्वक डटे रहते आये हैं। उनकी वहाँ व्यवस्था ठीक रहे तो आतंकी घुसपैठ, तस्करी आदि समस्याओं को कम करने में वे सहायक भी हो सकते हैं। उनको समय-समय पर उचित राहत मिले, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि की व्यवस्था उन तक पहुँचती रहे तथा उनमें साहस, संस्कार व देशभक्ति की उत्कटता बनी रहे, इसके लिए शासन व समाज दोनों के प्रयास अधिक बढ़ाने की आवश्यकता है।
सुरक्षा उत्पादों के मामले में देश की संपूर्ण आत्मनिर्भरता को - अन्य देशों के साथ आपसी आदान-प्रदान की उचित मात्रा रखते हुए भी - साधे बिना हम देश की सुरक्षा के प्रति आश्वस्त नहीं हो सकते। इस दिशा में देश में प्रयासों की गति बहुत अधिक होनी पड़ेगी।

आन्तरिक सुरक्षा
देश की सीमाओं की सुरक्षा के साथ ही देश में अंतर्गत सुरक्षा का विषय भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। उसके उपायों का एक पहलू केन्द्र व राज्य शासनों तथा प्रशासन के द्वारा कड़ाई के साथ कानून, संविधान तथा देश की सार्वभौम संप्रभुता को चुनौती देने वाली, हिंसक गतिविधियाँ करने वाली, देश के अन्दर तथा बाहर से प्रेरित अथवा प्रेषित मंडलियों का बंदोबस्त करना है। इसमें केन्द्र व राज्य सरकारों की तथा पुलिस व अर्धसैनिक बलों की कार्यवाई सफलतापूर्वक चली है। निरन्तर सजगता के साथ उन्हें उसको जारी रखना पड़ेगा। परन्तु ऐसी हिंसक तथा सीधे तौर पर गैरकानूनी गतिविधियों में भाग लेनेवाले लोग अपने ही समाज में से मिल जाते हैं यह वस्तुस्थिति है। उसके मूल में अपने समाज में व्याप्त अज्ञान, विकास तथा सुविधाओं का अभाव, बेरोजगारी, अन्याय, शोषण, विषमता का व्यवहार तथा स्वतंत्र देश में आवश्यक विवेक व संवेदना का समाज बड़ी मात्रा में अभाव है। उसे दूर करने में शासन-प्रशासन की भूमिका अवश्य है। परन्तु उससे बड़ी समाज की भूमिका है। समाज में इन सब त्रुटियों को दूर कर उसके शिकार हुए समाज के अपने इन बंधुओं को स्नेह व सम्मान से गले लगाकर समाज में सद्भावपूर्ण व आत्मीय व्यवहार का प्रचलन बढ़ाना पड़ेगा। समाजजीवन के इस परिष्कार का प्रारम्भ पहले स्वयं के मन मस्तिष्क के परिष्कार तथा अपने आचरण से करना होगा। समाज के सब प्रकार के वर्गों से आत्मीय व नित्य संपर्क स्थापित कर उनके सुखःदुख का भागी बनना पड़ेगा।
अनुसूचित जाति व जनजाति वर्गों के लिए बनी हुई योजनाएँ, उपयोजनाएँ ;ैनइचसंदेद्ध व कई प्रकार के प्रावधान समय पर तथा ठीक से लागू करना इस बारे में केन्द्र व राज्य शासनों को अधिक तत्परता व संवेदना का परिचय देने की व अधिक पारदर्शिता बरतने की आवश्यकता है ऐसा प्रतीत होता है। अंतर्गत सुरक्षा व्यवस्था का पहला प्रहरी देश का पुलिस बल है। उनकी व्यवस्था के सुधार की अनुशंसा भी ”पुलिस आयोग“ ने की है। अनेक वर्षों से लंबित उस अनुषंसा पर विचार व सुधार के प्रयास की आवश्यकता है।

चिंताजनक प्रवृत्तियाँ
देश को चलानेवाला व्यवस्थातंत्र तथा देश-समाज के द्वारा समाज के दुर्बल घटकों के साथ, उनके उन्नति के प्रयासों में तत्परता, संवेदनशील आत्मीयता तथा पारदर्शिता व आदरसम्मान का व्यवहार बरतने में त्रुटियाँ रह जाने से अभाव, उपेक्षा व अन्याय की मार से जर्जर ऐसे वर्गों के मन में संशय, अलगाव, अविवेक, विद्रोह व द्वेष तथा हिंसा के बीज बोना व पनपाना आसानी से संभव हो जाता है। इसी का लाभ लेकर उनको अपने स्वार्थप्रेरित उद्देश्य के लिए, देशविरोधी कृत्यों के लिए, आपराधिक गतिविधियों के लिए गोला बारूद ;ब्ंददवद विककमतद्ध के रूप में उपयोग करना चाहनेवाली शक्तियाँ उनमें अपने छल-कपट के खेल खेलती है। गत 4 वर्षों में समाज में घटी कुछ अवांछित घटनाएँ, समाज के विभिन्न वर्गों में व्याप्त नई-पुरानी समस्याएँ, विभिन्न नयी-पुरानी माँगें आदि को लेकर आन्दोलनों को एक विशिष्ट रूप देने का जो लगातार प्रयास हुआ, उससे यह बात सभी के ध्यान में आती है। आनेवाले चुनाव के वोटों पर ध्यान रखकर, सामाजिक एकात्मता, कानून संविधान का अनुशासन आदि की नितांत उपेक्षा करके चलने वाली स्वार्थी, सत्तालोलुप राजनीति तो ऐसे हथकण्डों के पीछे स्पष्ट दिखती रही है। परन्तु इस बार इन सब निमित्तों को लेकर समाज में भटकाव का, अलगाव का, हिंसा का, अत्यंत विषाक्त द्वेष का तथा देश विरोधिता तक का भी वातावरण खड़ा करने का प्रयास हो रहा है। ”भारत तेरे टुकड़े होंगे“ आदि घोषणाएँ जिन समूहों से उठीं उन समूहों के कुछ प्रमुख चेहरे कहीं-कहीं इन घटनाओं में प्रमुखता से अपने भड़काऊ भाषणों के साथ सामने आये। दृढ़ता से वन प्रदेशों में अथवा अन्य सुदूर क्षेत्रों में दबाये गये हिंसात्मक गतिविधियों के कर्ता-धर्ता व पृष्ठपोषण करनेवाले अब शहरी माओवाद ;न्तइंद छंगंसपेउद्ध के पुरोधा बनकर ऐसे आन्दोलनों में अग्रपंक्ति में दिखाई दिये। पहले छोटे-छोटे अनेक संगठनों के जाल फैलाकर तथा छात्रावास आदि में लगातार संपर्क के माध्यम से एक वैचारिक अनुयायी वर्ग खड़ा किया जाता है। फिर उग्र व हिंसक कार्यवाईयों को छोटे-बड़े आन्दोलनों में घुसाकर, अराजकता का अनुभव देकर, उन अनुयायियों में प्रशासन व कानून का डर तथा नागरिक अनुशासन का डर समाप्त किया जाता है। दूसरी ओर समाज में आपस में व स्थापित व्यवस्था व नेतृत्व के बारे में तिरस्कार व द्वेष उत्पन्न किया जाता है। ऐसी अचानक उग्र रूप लेनेवाली घटनाओं के माध्यम से समाज के सब अंगों में प्रस्थापित सभी विचारों का नेतृत्व, जो समाज व्यवस्था व नागरिक व्यवहार की भद्रता के अनुशासन से कम अधिक मात्रा में ही सही बंधा रहता है, अचानक ध्वस्त किया जाता है। नया अपरिचित, अनियंत्रित, केवल नक्सली नेतृत्व से ही बँधा हुआ अंधानुयायी व खुला पक्षपाती नेतृत्व स्थापित करना, यह इन शहरी माओवादियों की ही नव वामपंथी कार्यपद्धति है। ैवबपंस उमकपंए अन्य माध्यम तथा बुद्धिजीवियों व अन्य संस्थाओं में पहले से तथा बाद तक स्थापित इनके हस्तक ऐसी घटनाओं में, इनसे संबद्ध भ्रमपूर्ण प्रचार अभियान में, बौद्धिक व अन्य सभी प्रकार का समर्थन आदि में, सुरक्षित अंतर पर व तथाकथित कृत्रिम प्रतिष्ठा के कवच में रहकर संलग्न रहते हैं। उनके प्रचार का विषैलापन अधिक प्रभावी करने के लिए उन्हें असत्य तथा जहरीली भड़काऊ भाषा का उपयोग स्वछन्दतापूर्वक करना भी आता है। देश के शत्रुपक्ष से सहायता लेकर स्वदेशद्रोह करना तो अतिरिक्त कौशल्य माना जाता है। ैवबपंस डमकपं के इनके आशय (ब्वदजमदजद्ध व कथ्य (छंततंजपवदद्ध का उद्गम कहाँ से है यह जाँच-पड़ताल की जाय तो यह बात सामने आती है। जिहादी व अन्य कट्टरपंथी व्यक्तियों की कहीं न कहीं प्रत्यक्ष उपस्थिति भी इन सभी घटनाओं में समान बात है। इसलिए यह सारा घटनाक्रम केवल प्रतिपक्ष की सत्ताप्राप्ति की राजनीति मात्र न रहकर देशी-विदेशी भारतविरोधी ताकतों की सांठगांठ से धूर्ततापूर्वक चलाया गया कोई बड़ा षड्यंत्र है; जिसमें राजनीतिक महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति अथवा समूह जाने-अनजाने तथा अभाव व उपेक्षा में पिसने वाला समाज का दुर्बल वर्ग अनजाने व अनचाहे गोलाबारूद के रूप में उपयोग में लाये जाने के लिए खींचा जा रहा है, इस निष्कर्ष पर आना पड़ता है। सारा विषाक्त व विद्वेषी वातावरण बनाकर देश की अंतर्गत सुरक्षा का मुख्य आधार समाज के सामरस्य को ही जर्जर बनाकर ढहा देनेवाला मानसशास्त्रीय युद्ध, जिसको अपनी राजनीति-शास्त्र की परम्परा में ”मंत्रयुद्ध“ कहा गया, उसी की सृष्टि की जा रही है।
इसके निरस्तीकरण के लिए शासन-प्रशासन को सजग होकर, समाज में एक ओर ऐसी घटनाएँ न घट पायें जिनका लाभ उपद्रवी शक्तियाँ ले पावें; तथा दूसरी ओर ऐसी उपद्रवी शक्तियों व व्यक्तियों पर चौकस नजर रखकर वे उपद्रवी कार्यवाई न कर पायें यह करना पड़ेगा। धीरे-धीरे समाज का लेशमात्र भी प्रश्रय न मिलने से यह उपद्रवी तत्त्व पूर्ण शमित हो जायेंगे। प्रशासन को अपने सूचना तंत्र को भी व्यापक व सजग बनना पड़ेगा। जनहित की योजनाओं का तत्पर क्रियान्वयन करते हुए समाज के अंतिम पंक्ति तक उन योजनाओं को पहुँचाना पड़ेगा। कानून सुव्यवस्था का पालन करवाने के लिए दक्ष व कुशल होकर काम करना पड़ेगा।
परन्तु इस परिस्थिति का संपूर्ण व अचूक उपाय तभी हो सकता है जब समाज के सभी वर्गों में, बुद्धि व भावना सहित आचरण में, आपस में सद्भावना व अपनेपन का व्यवहार हो। पंथ-सम्प्रदाय, जाति-उपजाति, भाषा, प्रान्त आदि की विविधता को हम एकता की दृष्टि से देखें। वर्गविशेष की समस्या व परिस्थिति को अपना दायित्व मानकर सारा समाज मिल-बैठकर उसका न्याय व सद्भावनापूर्वक हल ढूँढे। इसलिए आपस में निरंतर आत्मीय संवाद हो सके ऐसा वातावरण अपने संपर्क व संबंधों को बढ़ाकर उत्पन्न करें। अपने जीवन व्यवहार में नागरिक अनुशासन व कानून व्यवस्था की मर्यादा का आचरण करें। इस सम्बन्ध में हमारे राजनेताओं सहित समाज के प्रत्येक व्यक्ति को पू. डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर का (25 नवम्बर 1949 का) वह प्रसिद्ध भाषण नित्य स्मरण में रखना चाहिए जिसमें वे परामर्श देते हैं कि न्याय, समता व स्वातंत्र्य की दिशा में देश का बढ़ना, राजनीतिक व आर्थिक प्रजातंत्र के साथ सामाजिक प्रजातंत्र की ओर बढ़ना, समाज में बंधुभाव के व्यापक प्रसार के बिना संभव नहीं। बिना उसके इन प्रजातांत्रिक मूल्यों की व अपनी स्वतंत्रता की भी सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। पारतंत्र्य में हमने अपनी मांगों की आवाज उठाने के लिए जो पद्धतियाँ अपनायीं वे स्वातंत्र्य की स्थिति में छोड़ देनी पडं़ेगी। हमें लोकतंत्र के अनुशासन में बैठ सकने वाली पूर्णतः संवैधानिक पद्धतियों का ही अवलम्बन करना पड़ेगा।
भगिनी निवेदिता ने भी नागरिकता की समझदारी ;बपअपब बवदेबपवनेदमेद्ध को ही स्वतंत्र देश में देशभक्ति की दैनन्दिन जीवन में अभिव्यक्ति माना है।

परिवार में संस्कार आवश्यक :
देश की राजनीति, कार्यपालिका, न्यायपालिका, स्थानीय प्रशासन, संगठन, संस्थाएँ, विशेष व्यक्ति व जनता इन सबकी इसके बारे में एक व पक्की सहमति तथा समाज की आत्मीय एकात्मता की भावना ही देश में स्थिरता, विकास व सुरक्षा की गारण्टी है। यह संस्कार नई पीढ़ी को भी शैशवकाल से ही घर में, शिक्षा में तथा समाज के क्रियाकलापों में से प्राप्त होने चाहिए। घर से नई पीढ़ी में मनुष्य के मनुष्यत्व व सच्चारित्र्य की नींवरूप सुसंस्कारों का मिलना आज के समय में बहुत अधिक महत्त्व का हो गया है। समाज के वातावरण तथा शिक्षा के पाठ्यक्रमों में आजकल इन बातों का अभाव सा हो गया है। शिक्षा की नयी नीति प्रत्यक्ष लागू होने की प्रतीक्षा में समय हाथ से निकलता जा रहा है। यद्यपि इन दोनों परिवर्तनों के लिए अनेक व्यक्ति व संगठनों के प्रयास शासकीय व सामाजिक ऐसे दोनों स्तरों पर बढ़ रहे हैं, तथापि हमारे हाथ में सर्वथा हमारा अपना घर व हमारा अपना परिवार तो है ही। उसमें हमारी स्वाभाविक आत्मीयता, पारिवारिक व सामाजिक दायित्वबोध, स्वविवेक का निर्माण आदि संस्कारों को अंकित करनेवाला अनौपचारिक शुचितामय प्रसन्न वातावरण अपने उदाहरण सहित देते रहने का अपना नई पीढ़ी के प्रति दायित्व ठीक से निभा रहे हैं यह सजगता से देखने की आवश्यकता है। बदला हुआ समय, उसमें बढ़ा हुआ प्रसार माध्यमों का व्यापक प्रसार व प्रभाव, नई तकनीकी के माध्यम से व्यक्ति को अधिक आत्मकेन्द्रित बनानेवाले तथा व्यक्ति के विवेकबुद्धि को समझे बिना विश्व की सारी सही-गलत सूचनाओं व ज्ञान को उससे साक्षात् करानेवाले साधन इसमें बहुत सावधानी बरतने की आवश्यकता विश्व में सभी को प्रतीत हो रही है। ऐसे समय में परिवार की स्वपरंपरा के सुसंस्कार मिलते रहे। नई दुनिया में जो भद्र है उसे खुले मन से आत्मसात करते हुए भी अपने मूल्यबोध के आधार पर अभद्र से बचने-बचाने का नीर-क्षीर विवेक, उदाहरण व आत्मीयता से नयी पीढ़ी में भरना ही होगा।
देष में पारिवारिक क्लेष, ऋणग्रस्तता, निकट के ही व्यक्तियों द्वारा बलात्कार-व्यभिचार, आत्महत्यायें तथा जातीय संघर्ष व भेदभाव की घटनाओं के समाचार निष्चित ही पीड़ादायक व चिंताजनक है। इन समस्याओं का समाधान भी अंततोगत्वा स्नेह व आत्मीयपूर्ण पारिवारिक वातावरण एवं सामाजिक सद्भाव निर्माण करने में ही है। इस दृष्टि से समाज के सुधी वर्ग एवं प्रमुख प्रबुद्धजनों सहित संपूर्ण समाज को इस दिषा में कर्तव्यरत होना पडेगा।

चिन्तन में समग्रता :
हमारी प्रत्येक कृति, उक्ति व मन से भी व्यक्ति, परिवार, समाज, मानवता व सृष्टि, सभी का सुपोषण हो, यह विशेषकर विविध अंगों में समाज का दिग्दर्शन करने वाले सभी को ध्यान में रखना चाहिए। विश्व में कहीं भी समाज का स्वस्थ व शांतिपूर्ण जीवन केवल विधिव्यवस्था व दंड के भय से न चला है न चल सकता है। समाज के द्वारा कानून का पालन समाज के नीतिबोध का परिणाम है न कि कारण। और समाज का नीतिबोध उसके परंपरागत मूल्यबोध से बनता है। मूल्यों के आधार पर पक्का रहकर ही समयानुकूल आचारधर्म अपनाने के लिए नीतिकल्पना व नियम बदलने चाहिए। समाज के आचरण के कारण बननेवाली प्रकृतिगत काम व अर्थ की प्रवृत्ति, उसको मर्यादित कर, उपयोगी व सुख के साथ संतोष व आनंद देने वाली बनाने का काम करनेवाली नीति, नीतिबंधन के अनुशासन से समाज व परिवार एकात्म होकर चलते रहे यह देखनेवाला विधि तथा इन सबका निर्णायक मूल्यबोध यह सब जहाँ परस्परानुकूल सुसंगति से चलते हैं वहाँ वास्तविक व संपूर्ण न्याय होता है। समग्रतापूर्वक विचार तथा धैर्यपूर्वक मन बनाये बिना निर्णयों का समाज के आचरण में स्वीकार तथा उससे देशकाल परिस्थितिनुरुप समाज की नवरचना का निर्माण नहीं होगा। हाल ही में दिये गये शबरीमलै देवस्थान के सम्बंध में निर्णय से उत्पन्न स्थिति भी यही दर्शाति है। सैकड़ों वर्षों से चलती आयी परम्परा, जो समाज में अपनी स्वीकार्यता बना चुकी है, उसके स्वरूप व कारणों के मूल का विचार नहीं किया गया। धार्मिक परम्पराओं के प्रमुख कर्ताधर्ताओं का पक्ष, करोड़ों भक्तों की श्रद्धा को परामर्श में नहीं लिया। महिलाओं में भी बहुत बड़ा वर्ग जो इन नियमों को मानकर चलता है, उनकी बात नहीं सुनी गयी। कानूनी निर्णय से समाज में शांति, सुस्थिरता व समानता के स्थान पर अशांति, अस्थिरता व भेदों का सृजन हुआ। क्यों, हिन्दू समाज की श्रद्धाओं पर ही ऐसे आघात लगातार व बिना संकोच किये जाते हैं, ऐसे प्रष्न समाज मन में उठते हैं व असंतोष की स्थिति बनती चली जाती है। यह स्थिति समाज जीवन की स्वस्थता व शांति के लिये कतई ठीक नहीं है।

स्वतंत्र देश का ”स्व“ आधारित तंत्र
भारत के जीवन के सभी अंगों के नवनिर्माण में भारत के मूल्यबोध के शाश्वत आधार पर पक्का रहकर ही प्रगति करनी पड़ेगी। अपने देश में जो है उसको देश-काल-परिस्थिति-अनुरुप सुधार कर, परिवर्तित कर अथवा आवश्यक है तो कुछ बातों को पूर्णतः त्यागकर भी युगानुकूल बनाना तथा विश्व में जो भद्र है, अच्छा है उसको देशानुकूल बनाना इन दोनों के निर्णय का आधार यही मूल्यबोध है। यही अपने देश का प्रकृतिस्वभाव है। यही हिन्दुत्व है। अपने प्रकृतिस्वभाव पर पक्का व स्थिर रहकर ही कोई देश उन्नत होता है। अंधानुकरण से नहीं।
शासन की अच्छी नीतियों के परिणाम समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति तक अनुभव में आयें, इसलिए प्रशासन के द्वारा उनकी तत्परता, संवेदनशीलता, पारदर्शिता व संपूर्णता के साथ जो कार्यवाही होनी चाहिए, उस प्रमाण में अभी भी नहीं हो रही है। अंग्रेजों का परकीय राज्य व प्रशासन हमारे भूमि व राज्यों पर केवल सत्ता चलाने का काम करता था। अब स्वतंत्र भारत में हमारे अपने शासक हमारे अपने प्रशासन को प्रजापालक प्रशासन बनाएँ यह अपेक्षा है।
केवल राजनैतिक स्वतंत्रता अपने आप में पूर्ण नहीं होती। राष्ट्र के जीवन व्यवहार के सभी पहलुओं की पुनर्रचना उसी ‘स्व’ तथा स्वगौरव के आधार पर खड़ी करनी पड़ती है, जिनसे हमें स्वतंत्रता के संघर्ष के लिए एक जन के नाते प्राणवान बनाकर प्रेरित किया। स्वतंत्र भारत की जनाकांक्षा हमारे संविधान की प्रस्तावना, मूल अधिकार, मार्गदर्शकतत्त्व, व मूलभूत कर्तव्य इन चारों प्रकरणों में परिभाषित हैं। उनके प्रकाश में हमें राष्ट्र के जीवन व्यवहार की, राष्ट्र के विकास की लक्ष्यदृष्टि, दिशा व तद्नुरूप जीवन के अर्थायाम सहित सभी अंगों के विकास का अपना विशिष्ट भारतीय प्रतिमान खड़ा करना पड़ेगा। तब हमारे सारे प्रयास, नीतियाँ पूर्णतः क्रियान्वित व प्रतिफलित होती दिखेंगी।
विश्वभर की अच्छी बातें लेकर भी हम अपने तत्त्वदृष्टि के नींव पर अपना विशिष्ट विकास प्रतिमान व तद्नुरुप व्यवस्था खड़ी करें यह अपने देष के विकास की अनिवार्य आवश्यकता है।

श्रीराम जन्मभूमि
राष्ट्र के ‘स्व’ के गौरव के ही संदर्भ में अपने करोड़ों देशवासियों के साथ श्रीराम जन्मभूमि पर राष्ट्र के प्राणस्वरूप धर्ममर्यादा के विग्रहरूप श्रीरामचन्द्र का भव्य राममंदिर बनाने के प्रयास में संघ सहयोगी है। सब प्रकार के साक्ष्य वहाँ कभी मंदिर था, यह बता रहे हैं; फिर भी मंदिर निर्माण के लिए जन्मभूमि का स्थान उपलब्ध होना बाकी है। न्यायिक प्रक्रिया में तरह-तरह की नई बातें उपस्थित कर निर्णय न होने देने का स्पष्ट खेल कतिपय शक्तियों द्वारा चल रहा है। समाज के धैर्य की बिनाकारण परीक्षा यह किसी के हित में नहीं है। मंदिर का बनना स्वगौरव की दृष्टि से आवश्यक है ही, मंदिर बनने से देश में सद्भावना व एकात्मता का वातावरण बनना प्रारम्भ होगा। देशहित की इस बात में कुछ कट्टरपंथी व सांप्रदायिक राजनीति को उभारकर अपना स्वार्थसाधन करनेवाली शक्तियाँ बाधाएँ खड़ी कर रही हैं। ऐसे छलकपट के बावजूद शीघ्रतापूर्वक उस भूमि के स्वामित्व के संबंध में निर्णय हो तथा शासन के द्वारा उचित व आवष्यक कानून बनाकर भव्य मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रषस्त किया जाना चाहिये।

निर्वाचन
देश का नेतृत्व कौन करें? जो नीतियाँ चली हैं वह सही हैं अथवा गलत? इन सब बातों का निर्णय प्रजातंत्र की अपने देश की व्यवस्था में पाँच वर्षों में एक बार सामान्य मतदाता करें, यह कर्तव्य उसी का माना जाता है। वह पंचवर्षीय निर्वाचन अपने सामने है। एक प्रकार से इस अधिकार से हम भारत के लोग, सामान्य जनता ही भारत की परिस्थिति का निर्णय व नियंत्रण करनेवाले हो जाते हैं। परन्तु हम यह भी जानते हैं कि उस एक दिन के मतदान से हम जो निर्णय करते हैं, उसके अच्छे-बुरे तात्कालिक परिणाम भोगना; व दीर्घकालीन नफा-नुकसान को झेलने का काम आगे बहुत वर्षों तक अथवा जीवनभर करते रहना; बस! उस एक दिन के पश्चात् हमारे हाथ में इस से अधिक कुछ नहीं रह जाता। पछताना न पड़े ऐसा निर्णय मतदाताओं के द्वारा प्राप्त होना है तो, मतदाताओं को राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानकर; स्वार्थ, संकुचित भावनाएँ व अपने भाषा, प्रान्त, जाति आदि छोटे दायरों के अभिनिवेश से ऊपर उठकर विचार करना पड़ेगा। उम्मीदवार की प्रामाणिकता व क्षमता, दल के नीति की राष्ट्रहित व राष्ट्र की एकात्मता के साथ प्रतिबद्धता तथा इन दोनों के पहले के तथा वर्तमान के क्रियाकलापों के अनुभव; इनका स्वतंत्र बुद्धि से मतदाताओं को विचार करना पड़ेगा।
प्रजातंत्र की राजनीति का चरित्र ऐसा रहता आया है कि संपूर्णतया योग्य अथवा संपूर्णतया अयोग्य किसी को नहीं मान सकते। ऐसी स्थिति में मतदान न करना अथवा छव्ज्। के अधिकार का उपयोग करना, मतदाता की दृष्टि में जो सबसे अयोग्य है उसी के पक्ष में जाता है। इसलिए सभी तरफ के प्रचार को सुनकर, उसके जाल में न फंसते हुए राष्ट्रहित सर्वोपरि रखकर 100 प्रतिशत मतदान आवश्यक है। भारत का चुनाव आयोग भी इसी प्रकार से 100 प्रतिशत मतदान व विचारपूर्वक मतदान का आग्रह करता है। इस नागरिक कर्तव्य की अनुपालना संघ के स्वयंसेवक भी करते आये हैं; व सदा की भाँति इस बार भी करेंगे।
दलगत राजनीति, जातिसम्प्रदायों के प्रभाव की राजनीति आदि से संघ अपने जन्म से सोच-समझकर अलग रहता आया है, रहेगा। परन्तु सम्पूर्ण देश में व्याप्त स्वयंसेवकों की संख्या नागरिक के नाते अपने कर्तव्यों को पूर्ण करे तथा समग्र व सम्यक् राष्ट्रहित के पक्ष में अपनी शक्ति को खड़ा करे, यह देशहित के लिए आवश्यक कार्य है।

आवाहन
देशहित की मूलभूत अनिवार्य आवश्यकता है कि भारत के ‘स्व’ की पहचान के सुस्पष्ट अधिष्ठान पर खड़ा हुआ सामर्थ्यसंपन्न व गुणवत्तावाला संगठित समाज इस देश में बने। वह हमारी पहचान हिन्दू पहचान है जो हमें सबका आदर, सबका स्वीकार, सबका मेलमिलाप व सबका भला करना सिखाती है। इसलिए संघ हिन्दू समाज को संगठित व अजेय सामर्थ्यसंपन्न बनाना चाहता है और इस कार्य को सम्पूर्ण संपन्न करके रहेगा। अपने-अपने सम्प्रदाय, परंपरा व रहन-सहन को लेकर अपने आप को अलग माननेवाले अथवा ”हिन्दू“ शब्द से भयभीत होनेवाले समाज के वर्गों को यह समझने की आवश्यकता है कि हिन्दुत्व तो इस देश के सनातन मूल्यबोध को ही कहते हैं। उसके इस सत्य व शाश्वत अंतरंग को कायम रखकर ही उसमें देश-काल-परिस्थति-अनुरुप स्वरूप व व्यवहार के परिवर्तन आये हैं व आगे भी आवश्यकतानुरूप हो सकते है। हिमालय से समुद्रपर्यन्त अखंड भारतभूमि के साथ हिन्दुत्व का तादात्म्य है। उस मूल्यबोध से अनुप्राणित भारत की एक संस्कृति के रंग में सभी भारतीय रंग लें, यह संघ की इच्छा हैं। भारत के सभी पंथ-सम्प्रदायों का आचार धर्म उसी को आधार बनाकर चलता है। इस हिन्दू संस्कृति व समाज की सुरक्षा तथा संवर्धना के लिए प्रखर परिश्रम करनेवाले, प्राणोत्सर्ग करनेवाले महापुरुष हम सबके पूर्वज, हम सबके गौरव हैं। संपूर्ण विश्व को, उसकी विशिष्ट विविधताओं का स्वागत व स्वीकार करते हुए हृदय से अपनाने की क्षमता भारत में इस हिन्दुत्व के कारण है। इसलिए भारत हिन्दुराष्ट्र है। संगठित हिन्दू समाज ही देश की अखण्डता, एकात्मता व निरन्तर उन्नति का आधार है। सारी दुनिया में कट्टरपन, संकुचित स्वार्थ व आत्यंतिक जड़वादिता के कारण मर्यादारहित उपभोग वृत्ति तथा संवेदनहीनता को समाप्त करने का एकमात्र उपाय हिन्दुत्व के शाश्वत मूल्यबोध का स्वीकार यही है। हिन्दू संगठन का कार्य इसीलिए विश्वहितैषी, भारतकल्याणकारी एवं लोकमंगल का कार्य है।
आप सबको आवाहन है कि संघ के स्वयंसेवकों के साथ इस पवित्र ईश्वरीय कार्य में सहयोगी व सहभागी बनते हुए हम सब मिलकर भारतमाता को विश्वगुरु पद पर स्थापन करने के लिए भारत के भाग्यरथ को अग्रसर करें।

नहीं है अब समय कोई, गहन निद्रा में सोने का,
समय है एक होने का, न मतभेदों में खोने का।
बढ़े बल राष्ट्र का जिससे, वो करना मेल है अपना,
स्वयं अब जागकर हमको, जगाना देश है अपना।।
।। भारत माता की जय।।

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12 नवम्बर से होगी लखनऊ में ‘‘आॅल इण्डिया जू डायरेक्टर्स कान्फ्रेन्स’’ -श्री आर.के. सिंह

Posted on 18 October 2018 by admin

लखनऊ: दिनांक 18 अक्टूबर, 2018
उत्तर प्रदेश के वन एवं पर्यावरण, जन्तु उद्यान एवं उद्यान मंत्री श्री दारा सिंह चैहान के नेतृत्व में 12 नवम्बर, 2018 से 15 नवम्बर, 2018 तक लखनऊ में 04 दिवसीय ‘‘आॅल इण्डिया जू डायरेक्टर्स कान्फ्रेन्स’’ कराने का निर्णय लिया गया है। यह जानकारी निदेशक नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान श्री आर.के. सिंह ने आज यहां देते हुए बताया कि उन्हें यह सूचना श्री डी0एन0 सिंह, सदस्य सचिव, केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण, नई दिल्ली ने दी।
श्री सिंह ने बताया कि यह कान्फ्रेन्स नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान लखनऊ द्वारा आयोजित करायी जा रही है। उन्होंने कहा कि लखनऊ में आॅल इण्डिया जू डायरेक्टर्स कान्फ्रेन्स प्रथम बार आयोजित की जा रही है, जिसमें देष के प्रमुख चिड़ियाघरों के निदेषकांे द्वारा प्रतिभाग किया जायेगा। साथ ही चिड़ियाघरों में उत्पन्न समस्याआंे, उनके समाधान तथा अन्य प्राणि उद्यानों में नई तकनीक एवं नये कार्यों पर चर्चा व उनका प्रस्तुतीकरण किया जायेगा। इस कान्फ्रेन्स में 02 अन्तर्राश्ट्रीय एवं 08 राश्ट्रीय स्तर के रिसोर्स पर्सन भी प्रतिभाग कर रहे हैं।

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मंत्रि परिषद् के सदस्यों ने विजयदशमी के पर्व पर प्रदेशवासियों को बधाई दी

Posted on 18 October 2018 by admin

लखनऊ: दिनांक 18 अक्टूबर, 2018
उत्तर प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री श्री सिद्धार्थ नाथ सिंह, आबकारी एवं मद्यनिषेध मंत्री श्री जय प्रताप सिंह, पशुधन, मत्स्य एवं लघु सिंचाई मंत्री श्री एस0पी0 सिंह बघेल, चिकित्सा शिक्षा मंत्री श्री आशुतोष टंडन, वन एवं पर्यावरण मंत्री श्री दारा सिंह चैहान, ग्राम्य विकास राज्यमंत्रंी (स्वतंत्र प्रभार) तथा चिकित्सा एवं स्वास्थ्य राज्यमंत्री डा0 महेन्द्र सिंह, राज्यमंत्री पशुधन, मत्स्य एवं लघु सिंचाई श्री जय प्रताप निषाद तथा राज्यमंत्री आवास एवं शहरी नियोजन श्री सुरेश पासी ने दशहरा के पावन पर्व पर प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दी हैं।
एक बधाई संदेश में मंत्रिमण्डल के इन सदस्यों ने कहा है कि सभी त्योहार हमारी प्राचीन संस्कृति तथा सभ्यता के प्रतीक हैं। विजयदशमी का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का स्मरण दिलाता है। इस पर्व को पूरी श्रद्धा एवं शांति के वातावरण में बनाए जाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के आदर्श जीवन से प्रेरणा लेने का अवसर भी है।

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प्रदेश के कृषि मंत्री एवं ग्रामीण अभियंत्रण मंत्री ने पूर्व मुख्यमंत्री श्री नारायण दत्त तिवारी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया

Posted on 18 October 2018 by admin

लखनऊ: दिनांक 18 अक्टूबर, 2018

उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री श्री नारायण दत्त तिवारी के निधन पर प्रदेश के कृषि मंत्री श्री सूर्य प्रताप शाही तथा ग्रामीण अभियंत्रण मंत्री श्री राजेन्द्र प्रताप सिंह श्मोती सिंहश् ने गहरा दुःख एवं संवेदना व्यक्त की है। मंत्री द्वय ने दिवगंत आत्मा की शांति की प्रार्थना करते हुए परिजनों के प्रति हार्दिक सहानुभूति व्यक्त की है।

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गहरा शोक व्यक्त

Posted on 18 October 2018 by admin

उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखण्ड प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, पूर्व राज्यपाल
एवं केन्द्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में मंत्री रहे, विपक्ष के नेता
रहे वयोवृद्ध नेता पं0 नारायण दत्त तिवारी जी(लगभग 93 वर्षीय) के
स्वर्गवास हो जाने पर उ0प्र0 कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष श्री राजबब्बर जी
सांसद ने गहरा शोक व्यक्त करते हुए दिवंगत आत्मा की शांति एवं शोक संतप्त
परिजनों केा इस असह्य दुःख को सहन करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की है।
स्व0 तिवारी के निधन का दुःखद समाचार मिलते ही प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय
में शोक की लहर दौड़ गयी तथा मुख्यालय में शोकसभा आयोजित की गयी एवं शोक
प्रस्ताव पारित कर स्व0 तिवारी जी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गयी।
शोक प्रस्ताव में कहा गया है कि स्व0 तिवारी जी का निधन भारतीय राजनीति
एवं सार्वजनिक जीवन की अपूर्णीय क्षति है। उन्होने उ0प्र0, उत्तराखण्ड के
मुख्यमंत्री रहते जो जनकल्याणकारी एवं विकास के लिए ठोस कदम उठाये वह
सदैव याद किया जायेगा। इतना ही नहीं स्व0 तिवारी ने राजनीतिक में शुचिता
और पारदर्शिता एवं सामाजिक सामन्जस्य के साथ समाज और देश को आगे ले जाने
में जो योगदान किया है उसे कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता। उनके निधन से
भारतीय राजनीति के एक युग का अन्त हो गया है।
शोक प्रस्ताव में आगे कहा गया है कि स्व0 तिवारी युग दृष्टा और महान
स्वप्नदर्शी राजनेता थे। उनके द्वारा देश और प्रदेश में विकास का जो
मार्ग प्रशस्त किया गया और विशेषकर उ0प्र0 एवं उत्तराखण्ड में उच्च
तकनीकी के माध्यम से चाहे मजबूत सड़कों का निर्माण हो, या बड़े-बड़े शहरों
का नियोजित विकास या शिक्षा, विद्युत एवं औद्योगिक क्षेत्र में तीव्र गति
से विकास हो या किसानों के लिए महत्वाकांक्षी योजनाएं हों, या राजनीति
पक्ष एवं विपक्ष को सबको साथ लेकर चलने की महान योग्यता हो, तिवारी जी ने
अपने युग में सबसे अलग पहचान दी।
प्रदेश कांग्रेस के मीडिया कोआर्डिनेटर राजीव बख्शी ने बताया कि शोकसभा
में प्रमुख रूप से पूर्व मंत्री श्री रामकृष्ण द्विवेदी, प्रदेश कांग्रेस
के उपाध्यक्ष एवं प्रभारी प्रशासन डाॅ0 आर0पी0 त्रिपाठी, प्रदेश कांग्रेस
के कोषाध्यक्ष श्री नईम सिद्दीकी, श्री ओंकारनाथ सिंह, श्री अशोक सिंह,
श्री सम्पूर्णानन्द, श्री शिव पाण्डेय, श्री ब्रजेन्द्र कुमार सिंह, श्री
पीयूष मिश्रा, श्री पंकज तिवारी, श्री मुकेश सिंह चैहान, श्री शैलेन्द्र
सिंह, श्री यशवन्त सिंह, श्री अनूप पटेल, श्री बी0डी0 सिंह, श्री नीरज
तिवारी, श्री चन्द्रशेखर मिश्रा, मो0 नासिर, श्री आकाश तिवारी, श्री
रविन्द्र सिंह, श्री विवेक श्रीवास्तव सहित सैंकड़ों कांग्रेसजनों ने
भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की है।

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विजयदशमी के पावन पर्व पर हार्दिक बधाई

Posted on 18 October 2018 by admin

नवरात्रि, दुर्गापूजा एवं विजयदशमी के पावन पर्व पर उ0प्र0 कांग्रेस
कमेटी के अध्यक्ष श्री राजबब्बर जी सांसद ने प्रदेशवासियों को हार्दिक
बधाई देते हुए उनके सुख, समृद्धि एवं उन्नति की कामना की है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने अपने शुभकामना संदेश में कहा है कि यह पर्व
असत्य पर सत्य की विजय एवं अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। यह पर्व
हम सभी को सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता हैं।

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