शिक्षा का बजट बढाया जाय. परिषदीय/सरकारी स्कूलों में उच्च स्तर के संसाधन उपलब्ध कराये जांय
देश में प्रत्येक बच्चे को समान शिक्षा के अवसर मिलने चाहिए, चाहे वह अमीर की संतान हो अथवा गरीब की. संविधान के अनुच्छेद 21A के अनुसार शिक्षा का अधिकार 6-14 वर्ष के बच्चों का मौलिक अधिकार है और मौलिक अधिकार सभी के लिए समान होता है. शिक्षा प्राप्त करने के अवसर में बालक/बालिका, गरीब/अमीर, हिन्दू/ मुसलमान, सिख/ ईसाई, दलित / पिछड़ा, बहुसंख्यक / अल्पसंख्यक जैसे भेद नही होने चाहिए. समता, समानता और समान अवसर संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 की मूल भावना है । यदि अनुच्छेद 21A को अनुच्छेद 14, 15, 16 के साथ पढ़ा जाये तो स्पस्ट है कि 6-14 वर्ष के सभी बच्चों को समान शिक्षा मिलनी चाहिए अर्थात कक्षा 1-8 के सभी बच्चों को एक जैसी शिक्षा मिलनी चाहिए.
शिक्षा के बढ़ते बाजारीकरण के कारण आज समाज का एक बड़ा हिस्सा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित हो रहा है, कोई स्पष्ट नीति न होने के कारण सरकारी विद्यालयों की स्थिति क्रमशः दयनीय होती जा रही है. इस संदर्भ में उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के दृष्टिगत उच्च न्यायालय इलाहाबाद के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल के 18 अगस्त 2015 को दिए गए ऐतिहासिक फैसले का महत्व बहुत ही अधिक है (WRIT - A No. - 57476 of 2013) जिसमे कोर्ट ने सभी नौकरशाहों, सरकारी कर्मचारियों और जन प्रतिनिधियों के लिए उनके बच्चों को सरकारी प्राथमिक विद्यालय में पढ़वाना अनिवार्य किये जाने का निर्देश राज्य सरकार को दिया था. उक्त आदेश से परिषदीय स्कूलों में शिक्षा के स्तर में सुधार की चर्चा समाज के हर स्तर पर प्रारंभ हुयी थी लेकिन इसे सार्थक और व्यावहारिक स्तर तक ले जाने के लिए सरकार की कोई इच्छाशक्ति नही रही है.
1Nation1Education Campaign (एक राष्ट्र एक शिक्षा प्रणाली अभियान) का मानना है कि देश में सभी को एक जैसी शिक्षा का अवसर मिलना चाहिए चाहे वह राष्ट्रपति की संतान हो अथवा किसान की. सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता बढ़ाने से ही यह संभव हो सकेगा. जब सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों, जन प्रतिनिधियों व न्यायाधीशों के बच्चे सरकारी विद्यालय में पढ़ने जाएंगे तो सरकारी विद्यालयों की गुणवत्ता में रातों-रात सुधार होगा जिसका फायदा गरीब जनता को भी मिलेगा, उसका बच्चा भी अच्छी शिक्षा पाएगा । इसका लाभ उन मध्यम वर्गीय परिवारों को भी मिलेगा जो अभी अपने बच्चों को मनमाना शुल्क वसूल करने वाले निजी विद्यालयों में भेजने के लिए मजबूर हैं क्योंकि तब ये लोग भी अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों में ही पढ़ाएंगे । जिस प्रकार नवोदय विद्यालयों और केन्द्रीय विद्यालयों में प्रवेश के लिए अभिभावक उत्सुकता दिखाते हैं उसी प्रकार सरकारी प्राथमिक स्कूलों की भी गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार होने पर बच्चों के प्रवेश के लिए लोगों का झुकाव होगा.
इस जन अभियान के माध्यम से हमारी मांग है :-
1. इंटर तक की शिक्षा का पूर्ण सरकारीकरण किया जाये तथा निजी शिक्षण संस्थाओं पर पूरी तरह से रोक लगाई जाये.
2. माननीय उच्च न्यायालय के दिनांक 18 अगस्त 2015 का अनुपालन सुनिश्चित कराया जाय और इसे देश के स्तर तक लागू किया जाय.
3. शिक्षा का बजट बढाया जाय. परिषदीय/सरकारी स्कूलों में उच्च स्तर के संसाधन उपलब्ध कराये जांय.
4. सभी सांसद एवं विधायक अपनी निधि से अनिवार्य रूप से कम से कम 30 प्रतिशत धनराशि अपने क्षेत्र के परिषदीय/सरकारी विद्यालयों के संसाधन को उच्च स्तरीय बनाने में व्यय करें.
5. स्कूलों में शिक्षकों की कमी दूर की जाय, शिक्षकों से किसी भी प्रकार का गैर शैक्षणिक कार्य न कराया जाय तथा प्रत्येक सरकारी विद्यालय पर अनिवार्य रूप से लिपिक, परिचारक, चौकीदार और सफाई कर्मी की नियुक्ति हो.
6. सभी के लिए समान शिक्षा की नीति पूरे देश में व्यवहारिक रूप से लागू की जाय.
हम इस अभियान को समान विचार वाले संगठनों, संस्थाओं, विचारकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ मिल कर देश स्तर पर संचालित करने का प्रयास कर रहे हैं, इसके लिए विभिन्न स्थानों पर बैठक, प्रशिक्षण और कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा. सरकारी स्कूल के बच्चों से राष्ट्रपति के नाम पोस्टकार्ड सन्देश भेजा जाएगा और समय आने पर न्यायालय में भी जनहित याचिका के माध्यम से गुहार लगाई जायेगी.
पत्रकार वार्ता को अभियान के संयोजक वल्लभाचार्य पाण्डेय, साझा संस्कृति मंच के डा. आनंद प्रकाश तिवारी और जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के अरविन्द मूर्ति से संबोधित किया. इस अवसर पर सतीश सिंह, विनय सिंह, दिवाकर, प्रदीप सिंह, सूरज पाण्डेय, अजय पटेल, ओम प्रकाश मिश्र आदि उपस्थित रहे.