Posted on 24 April 2011 by admin
कभी पढ़ा था-‘‘एक चोर राजा के सामने पेश हुआ, उसे मृत्युदंड दिया गया। उसने अपने बचाव के लिए एक युक्ति सोची और कहा कि मेरे पास एक हुनर है जो मेरे मरने के साथ लुप्त हो जायेगा। वह हुनर है ‘सोने की खेती’ सोने के छोटे-छोटे टुकड़े खेत में बोये जायें, तो फिर फसल होगी और सोने की हजार गुनी फसल प्राप्त हो सकती है। सवाल उठा- कौन करे, बुबाई? जिसने कभी चोरी न की हो। अब वहां मौजूद मंत्री से लेकर संतरी तक सभी अपने अतीत में खो गये। किसी ने कहा कि मैंने मां से छिपकर बचपन में लड्डू चुराये थे। किसी ने कुछ, तो किसी ने कुछ। पूरे राज्य में कोई ऐसा नहीं मिला जो ‘चोर’ न हो। राजा ने भी अपने बचपन की ढिठाई व चोरी की बात स्वीकार की। जब सब चोर हैं तो मुझ अकेले को फांसी क्यों?’’ इस कथानक की साम्यता आज भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम में देखने को मिल रही है। रिश्वत लेना व देना दोनों भ्रष्टाचार के दायरे में है। ऐसी स्थिति में इस मुहिम में ऐसा व्यक्ति आये जिसने कभी ‘लिया-दिया’ न हो। यह बात उठा रहे हैं आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे राजनेता। इस तरह जनलोकपाल विधेयक की ‘साझा मसौदा समिति’ के सिविल सदस्यों पर कीचड़ उछालकर दलदल में उलझाकर ये नेता देश की जनता को भ्रमित कर रहे हैं। वास्तव में किसी भी तरह की व्यवस्था से जो सर्वाधिक पीड़ित या त्रस्त रहता है वही आवाज उठाता है। आज समूचा देश पीड़ित और त्रस्त है, इसलिए आवाज बुलंद कर रहा है।
महंगाई, आतंकवाद, नक्सलवाद, व्यभिचार राजनीति- नौकरीशाही के आचरण, जनमानस में काम की जल्दबाजी व भौतिकवादी सोच की बुनियाद ‘भ्रष्टाचार’ है। यानी आचरण की विकृति ही भ्रष्टाचार कहलाती है। वास्तव में आचरण की शुद्धता ही सदाचार है, इसीलिए विचारों की पवित्रता पर जोर दिया जाता रहा है, क्योंकि विचार ही आचरण की आधारशिला है, जो वैचारिक रूप से शुद्ध और पिवत्र है वही सदाचारी है, भले ही उसने देश-काल और परिस्थिति वश कभी कभार समझौता किया हो।
कुल मिलाकर यह प्रश्न महत्वहीन है, कि आंदोलन में जुड़े अथवा समर्थन करने वालों का नैतिक आचरण कैसा था? अतीत को बदलना ही परिवर्तन है। महर्षि बाल्मीकी और दस्युराज अंगुलिमाल इसके उदाहरण है। गड़ी ईंटें उखाड़ने की प्रवृत्ति छोड़कर समूचे देशवासियों को एक जुट होने की दृढ़ इच्छाशक्ति जगानी है, जो संकेत सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के आमरण अनशन में ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’ के लिए समूचे देशवासियों ने दिये थे। यदि मुट्ठी भर राजनेताओं के बहकावे में हमने मुहिम को कमजोर कर लिया तो फिर हम अपने सपनों को कभी साकार नहीं कर पायेंगे। जरूरत इस बात की है कि इन मुट्ठी भर भ्रष्टता पोषकों को सन्मार्ग पर लाने का प्रयास करें न कि उनका रंग हम पर चढ़ जाये। हमें स्वयं सदाचारी रहते हुए सदाचार की लहर बनाये रखनी होगी तभी जंग-ए-ईमान में हमारा परचम फहरेगा।
देवेष षास्त्री
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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Posted on 24 April 2011 by admin
आजादी के बाद के इन 64 वर्षों में कई बार मुट्ठी भर लोगों ने विभिन्न बिन्दुओं पर क्रांतिकारी कीर्तिमान स्थापित किये हैं। इसी क्रम में भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने की संकल्पना में इंडिया अगेंस्ट करप्शन के मुट्ठी भर लोगों ने संत अन्ना हजारे के नेतृत्व में देश के करोड़ों लोगों के नैराश्य को दूरकर आशा से लवरेज ‘भाव’ उद्वेलित कर दिये। आक्रोश का लावा धधकने लगा। जन भावनायें ‘आर पार की लड़ाई’ चाहती है इसे जानकर सदाचारी व ईमानदार नेता बिल्कुल शांत हैं उनकी अंतरात्मा जन भावना को परख रही है इनमें कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह प्रमुख हैं। सोनिया जी ने अन्ना हजारे के पत्र का जिस भाषा शैली में जवाब दिया है, उससे सिद्ध हो गया कि वे दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ ‘जनभावना’ का सम्मान कर रही है। प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह भी स्वीकार नेता मौन हैं, ‘‘मौनं स्वीकृति लक्षणम्’’ यानी सभी जन भावना के साथ हैं। ‘जन’ को आज जनतंत्र में स्वयं शक्तिमान सिद्ध करने का मौका मिला है।
इस जनभावना में सेंध लगाने में मुट्ठी भर ‘महाभ्रष्ट्र’ लगे हैं। इनमें कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह और सपा व कांग्रेस के बीच त्रिशंकु बनकर लटके अमर सिंह शामिल हैं। इनका उद्देश्य है शांतिभंग करना। निशाने पर शांति इसलिए हैं, क्योंकि वे न्यायपालिका के सर्वश्रेष्ठ प्रहरी (अधिवक्ता) है जिनकी फीस कल्पना से परे हैं। शांति भूषण इटावा में पिछले कई वर्षों से न्यायमूर्ति प्रेमशंकर गुप्त के आमंत्रण पर इटावा हिन्दी सेवा निधि के सारस्वत सम्मान समारोह में आ रहे हैं, जिनके सम्मान में स्वयं जस्टिस गुप्त कहते रहे हैं ‘‘शांति भूषण जी वरिष्ठ अधिवक्ता हैें, जिनके एक-एक मिनट की कीमत लाखों रूपये है, वे इटावा के लोगों के प्यार से लाखों का घाटा उठाकर आये हैं।’’ पूरा देश जानता है उनकी ऊंची फीस। ऐसे में समाजवादी पार्टी के किसी केस के लिए 50 लाख रूपये बतौर फीस दिये तो बवंडर क्यो? सीडी की सत्यता पर जो माथा पच्ची चल रही है तो यह उसी शांति भंग का हिस्सा है। वकील का नैतिक धर्म है, अपने क्लाइंट को जिताना। सबूतों के आधार पर झूठ को सच और सच को झूठ बनाकर पेश करना। सीडी की वार्ता इसी ‘धर्म’ का हिस्सा है।
‘भ्रष्टाचार’ के दायरे में शांतिभूषण व प्रशांत भूषण कहीं भी नहीं आते हैं। भूमि आवंटन मुद्दा हो या सीडी प्रकरण। यह सब कुछ मुट्ठी भर लोगों का अनीति पोषक ‘क्रांतिकारी’ कुपथगामी कदम है। अकर्मण्यता, कामचोरी तथा लोभ, लालच में पक्षपात आदि बहुत कुछ भ्रष्टाचार की परिधि में आते हैं। जब कोई वेतन भोगी शिक्षक प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाता है तो वह भ्रष्ट है, वहीं दूसरी ओर अंशकालिक प्राइवेट शिक्षक का ट्यूशन पढ़ाना सदाचार है। उसी तरह कोचिंग का पंजीयन उसी का होता है जो कहीं सरकारी वेतन भोगी न हो। जहां तक न्याय क्षेत्र का सवाल है तो रिश्वत लेकर निर्णय पलटना, पक्षपात करना भ्रष्टता है, पेशकार द्वारा हर काम के लिए पैसे मांगना भ्रष्टाचार है, मगर वकील का कलम चलाने के लिए फीस लेना कतई वैध है। अधिवक्ता की क्षमता व अनुभव उसकी दर निर्धारित करते हैं। कुछ तो खासियत होगी ही ‘भूषण वंश’ में, जो सपा ने अपने केस की पैरवी के लिए 50 लाख रूपये दिये थे। उस भूषणवंश को लेकर भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को रोकने का षडयंत्र जनभावना को पलटने की बजाय इन षडयंत्रकारी मुट्ठी भर लोगों को छिन्न-भिन्न कर देगी जनता।
देवेष षास्त्री
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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Posted on 24 April 2011 by admin
बार कौसिंल आॅफ उत्तर प्रदेश के चुनाव मत प्रतिशत लगभग 41 फीसदी रहा। जिला जज ओपी वर्मा की निगरानी में मतदान पूरी तरह शांति पूर्वक निपट गया। दीवानी कचेहरी के न्याय भवन में दस बजे से मतदान शुरू हुआ शाज पांच बजे तक लगातार चलता रहा। जिला जज ने अपर जिला जज रामनाथ दिनकर को चुनाव अधिकारी बनाया। दिनकर साहब ने पूरी मतदान प्रक्रिया पर अपनी पैनी नजर रखी। मतदान प्रक्रिया को व्यवस्थित ढंग से संपन्न कराया। बीच बीच में जिला जज ओपी वर्मा ने आकर व्यवस्था का स्वयं जायजा लिया। मतदान स्थल पर गैर मतदाता या बगैर पहचान पत्र के प्रवेश नही करने दिया गया। यहां तक की बसपबा सांसद और महासचिव नरेश अग्रवाल को बगैर पहचान पत्र के प्रवेश नही दिया गया। पुनः परिचय पत्र के साथ आने पर मतदान का प्रयोग कर पाएं। बार कौसिंल का चुनाव सर्वाधिक बुद्धिजीवी वर्ग से होता हैं। बसपा सरकार में राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त गोपालनारायण मिश्र के बडे़ परेश मिश्र भी प्रत्याशी थंे। इस लिए बसपा ने पूरी ताकत जिताने में लगायी। उनके पक्ष में बसपा विधायक आसिफ खाॅ बब्बूं ने प्रचार प्रसार में पूरी ताकत लगा दी। सांसद एवं महासचिव नरेश अग्रवाल भी उनके पक्ष में अपने लाव लस्कर समेत पूरे समय उपस्थित रहे और अधिवक्ताओं से श्री मिश्र के पक्ष में वोट डालने की अपील की।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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Posted on 24 April 2011 by admin
सवायजपुर तहसील में जिलाधिकारी एके सिंह राठौर ने मातहतों का आदेश दिया कि शिकायतें शीघ्र शीघ्र दूर की जाएं पीड़ित पक्ष को बार बार न आना पड़े। पर दूर कौन करेगा यह सवाल आज का प्रश्न है। जनपद वासियों की लोकवाणी में लंबित 4200 शिकायतें इनकी पोल खोल रही है। हर विभाग की सूची में पहले नंबर पर जिला विद्यालय निरीक्षक की 513 शिकायतें शिखर पर है दूसरे पर समाज कल्याण विभाग 396 शहर कोतवाली पुलिस 300 शिकायतों पर स्थित है। तो बेसिक शिक्षा 225 जिला निर्वाचन विभाग 221 पर है। शायद यही संतोष समय काट रहे है हम तो इनके बाद है। हमसे भी बड़े बडे़ शिकायत कर्ता विभाग है। प्रथम स्थान पर आने डीआईओएस का यही कहना है कि अधिकतर शिकायतें हमारी ज्वाइंनिग से पहले की है। मैं बोर्ड परीक्षाओं में व्यस्त था अब शीघ्रता पूर्वक निस्तारण करूंगा। पूरे जनपद में जनता की शिकयतों का विभागों द्वारा कार्य न होेने की लंबी सूची है स्वयं जिलाधिकारी महोदय ने मातहत अफसरों का निस्तारण का आदेश दिया। लोकवाणी शिकायतों को सर्वप्रिय बनाने वाले तत्कालीन जिलाधिकारी अभिषेक सिंह की यह योजना काफी लोकप्रिय हुई थी जनता को इससे बड़ी उम्मीदें थी। मगर वही अब अफसरशाही की भेंट चढ़ चुकी है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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Posted on 24 April 2011 by admin
जहां पर चाह है रास्ता अपने आप बन जाते है। लगन और मेहनत से इंसान क्या नही कर सकता। जनपद की मजदूर महिला सीमा उर्फ गुड़िया संडीला के बेंहदर ग्राम की सुरेंद्र वर्मा की पत्नी है। मात्र कक्षा आठवीं पास उसका पति सुरेंद्र बंबई में मजदूरी करता है जो कुछ कमाता वह कर्जा साहूकारों का अदा कर देती थी। सीमा उर्फ गुड़िया परिवार का आमदनी का जरिया निकाला। पड़ोस की महिलाओं का इकट्ठा करके स्वयं सहायता समूह गठन किया। और सहकारी सहायता की जानकारी ली। पंजीकरण कराने के बाद बैंक आॅफ इंडिया बेंहदर शाखा से पच्चीस हजार रूपये का कर्जा लिया लगन और समर्पण की भावना से हर बाधा को पार करते गुड़िया खिलौना बनाकर प्रसिद्धि पाई। आस पास के गांवों, तहसील और जिले की सीमा पार करके लखनऊ भोपाल दिल्ली आगरा मैनपुरी में अपना गुड़िया की सप्लाई करके पहचान बनाई। सीमा ने बताया अब वह पांच समूहों का संचालित कर रही है। दिल्ली मंे उद्योग की नीव डाल चुकी है शालीमार बाग के हैदरगंज में उद्योग प्रारम्भ करने वाली है। अब दिल्ली के कारखानें में बांड बनाने का गुड़िया प्रयास कर रही है। चाइनीच खिलौनों का मात देने के लिए प्रतिस्पर्धा हेतु तकनीक का सहारा उसे लेना पडे़गा। जनपद के छोटे से गांव से शुरू यह उद्योग दिल्ली तक फैल चुका है। इसमें काम करने वाली प्रत्येक महिला प्रत्येक महीनें में तीन हजार तक कमा लेती है। हर समूह में तीन चार सौ महिलाएं काम कर रही है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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