शिव पुराण के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग की उत्पत्ति हुई थी, इसीलिए इस दिन किया गया शिव पूजन, व्रत और उपवास अनंत फल दायी होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार श्रध्दालु भक्त अपनी राशि के अनुसार भी भगवान शिव की आराधना और पूजन कर मनोवांछित फल प्राप्त कर सकते हैं । महाशिव रात्रि के दिन किसी भी राशि का जातक पंचामृत से शिवलिंग का अभिषेक कर सफेद अर्क के फूल चढ़ाकर चंदन से प्रणव (ॐ) बनाकर भी उपासना कर सकते हैं ।
तिल स्नान कर करें शिव पूजा- फागुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को महाशिव रात्रि महोत्सव मनाया जाता है । त्रयोदशी को एक बार भोजन करके चतुर्दशी को दिन भर अनन नहीं ग्रहण करना चाहिए । इसके अलावा यह भी मान्यता है कि काले तिलों से स्नान करके रात्रि में विधिवत शिव पूजन करना चाहिए । भगवान शिव के सबसे प्रिय पुष्पों में कनेर, बेल पत्र तथा मौलसिरी है । लेकिन पूजन विधान में बेलपत्र सबसे प्रमुख है । शिवजी पर पका आम चढ़ाने से विशेष फल प्राप्त होता है ।
लोक मंगलकारी है रूद्र शिव- शिवलिंग पर चढ़ाए गए पुष्प, फल तथा जल को नहीं ग्रहण करना चाहिए । भघवान ब्रह्मा जी की तीन शक्तियों में ब्रह्मा, विष्णु, महेश का नाम उल्लेखनीय है। इन्हीं शक्तियों मे ंएक रूलाने के कारम रूद्र तथा दूसरा जगत कल्याण करने के कारण शिवके नाम से जाना जाता है। सामान्यत: देखने में दोनों नाम परस्पर विरोधी लगते हैं मगर सृष्टिक्रम के अनुसार लोक मंगलकारी है ।
मेष - गुड़ के जल से अभिषेक करे । मीठी रोटी का भोग चढ़ाएं लाल चंदन व कनेर की फूल से पूजा करें ।
वृष- दही से अभिषेत करे। शक्कर, चांवल, सफेद चंदन सफेद फूल से पूजा करे ।
मिथुन - गन्ने के रस से भगवान का अभिषेक करें. मुंग , दूब और कुशा से पूजा करे ।
कर्क - घी से अभिषेत कर चावल, कच्चा दूध, सफेद आक व शखपुष्पी से शिवलिंग की पूजा करें ।
सिंह - गुड़ के जल से अभिषेक कर गुड़ व चावल से बनी खीर का भोग लाकर गेहूं के चूरे और मंदार के फूल से पूजा करें ।
कन्या - गन्ने के रस से शिवलिंग का अभिषेत करे । भगवान शंकर को भांग, दूब व पान अर्पित करे ।
तुला - सुगंधित तेल या इत्र से भगवान का अभिषेक कर दही, मधुरस व श्रीखंड का भोग लगाएं । सफेद फूल से भगवान की पूजा करें ।
वृश्चिक - पंचामृत से अभिषेत करे । लाल गोझिया फूल से भगवान की पूजा करें ।
धनु - हल्दी युक्त दूध से अभिषेत कर केश्री और बेसन से बनी मिठाई से भगवान का भोग लगाएं । गेंदे के फूल से उनकी पूजा करें ।
मकर - नारियल पानी से अभिषेक कर उड़द से बनी मिठआई का भगवान को भोग लगाएं । नीलकमल के फूल उनकी पूजा करे ।
कूंभ - तिल के तेल से अभिषेक कर उड़द से बनी मिठआई का भोग लगाए । शमी के फूल से भगवान की पूजा करे ।
मीन - केसरयुक्त दूध से भगवान का अभिषेक कर दही भात का भोग लगाएं । पीली सरसों और नागकेसर से भगवान की पूजा करें ।
‘स्मृत्यंतर’ में कहा गया है कि शिवरात्रि में चतुर्दशी प्रदोषव्यापिनी ग्रहण करें। यहां प्रदोष शब्द से मतलब ‘रात्रि का ग्रहण’ है। अत: रात्रि में जागरण करें और उसमें उपवास करें। उत्तरार्ध में उसका कारण बताया गया है। ‘कामिक’ में भी कहा गया है कि सूर्य के अस्त समय यदि चतुर्दशी हो, तो उस रात्रि को ‘शिवरात्रि’ कहते हैं। यह उत्तमोत्तम होती है। आधी रात के पहले और आधी रात के बाद यदि चतुर्दशी युक्त न हो, तो व्रत को न करें, क्योंकि ऐसे समय में व्रत करने से आयु और ऐश्वर्य की हानि होती है। माधव मत से ‘ईशान संहिता’ में कहा गया है कि जिस तिथि में आधी रात को चतुर्दशी की प्राप्ति होती है, उसी तिथि में मेरी प्रसन्नता से मनुष्य अपनी कामनाओं के लिए व्रत करें।
विधि-विधान
महाशिवरात्रि का व्रत सभी वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) और प्रत्येक समुदाय के स्त्री-पुरुष, बच्चे, युवा, वृद्ध के लिए मान्य है। अत: आवश्यक नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति मंत्रों और पूजा विधि का ज्ञान रखता हो। अपने भक्ति भाव और श्रद्धा के अनुसार शिव पूजन कर सकते हैं। धन का सार्मथ्य हो, तो किसी ब्राह्मण से विधि-विधान से पूजन कराएं। रुद्राभिषेक, रुदी पाठ, पंचाक्षर मंत्र का जाप आदि कराएं। व्रत करने वाली स्त्री को इस दिन प्रात: स्नानादि के बाद दिनभर शिव का स्मरण करना चाहिए। सायंकाल में पुन: स्नान करके भस्म का त्रिपुंड और रुदाक्ष की माला धारण करें। इसके बाद धूप, पुष्पादि व अन्य पूजन सामग्री सहित शिव के समीप पूर्व या उत्तर की तरफ मुख करके बैठें। शिवजी का यथाविधि पूजन करें। रात्रि के प्रथम प्रहर में संकल्प करके दूध से स्नान तथा ‘ओम हीं ईशानाय नम:’ का जाप करें। द्वितीय प्रहर में दधि स्नान करके ‘ओम् हीं अधोराय नम:’ का जाप करें। तृतीय प्रहर में घृत स्नान एवं मंत्र ‘ओम हीं वामदेवाय नम:’ तथा चतुर्थ प्रहर में मधु स्नान एवं ‘ओम् हीं सद्योजाताय नम:’ मंत्र का जाप करें।
सम्पूर्ण पूजा विधि के दौरान ‘ओम नम: शिवाय’ एवं ‘शिवाय नम:’ मंत्र का जाप करना चाहिए। ध्यान, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, पय: स्नान, दधि स्नान, घृत स्नान, गंधोदक स्नान, शर्करा स्नान, पंचामृत स्नान, गंधोदक स्नान, शुद्धोदक स्नान, अभिषेक, वस्त्र, यज्ञोपवीत, उवपसत्र, बिल्व पत्र, नाना परिमल दव्य, धूप दीप नैवेद्य करोद्वर्तन (चंदन का लेप) ऋतुफल, तांबूल-पुंगीफल, दक्षिणा उपर्युक्त उपचार कर ‘समर्पयामि’ कहकर पूजा संपन्न करें। कपूर आदि से आरती पूर्ण कर प्रदक्षिणा, पुष्पांजलि, शाष्टांग प्रणाम कर पूजन कर्म शिवार्पण करें। चारों प्रहर का पूजन अवश्य करें।
शिवरात्रि के व्रत की विशेषता है कि इस व्रत का पारण चतुर्दशी में ही करना चाहिए। यह पूर्वाद्धि (प्रदोषनिशीथी) चतुर्दशी होने से ही हो सकता है, जो महाशिवरात्रि पर होती है। जो व्यक्ति संपूर्ण विधि से व्रत करने में असमर्थ हों, वे रात्रि के आरंभ में तथा अर्द्धरात्रि में भगवान शिव का पूजन करके व्रत पूर्ण कर सकते हैं। यदि इस विधि से भी व्रत नहीं कर सकें, तो पूरे दिन व्रत करके सायंकाल में भगवान शंकर की यथाशक्ति पूजा-अर्चना करके भी व्रत पूर्ण कर सकते हैं। इस तरह भी भगवान शिव की कृपा से जीवन में सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ।
कथा और मान्यताएं
नैमिषारण्य तीर्थ में शौनकादि ऋषियों ने सूत जी को प्रणाम कर शिवरात्रि व्रत के संबंध में प्रश्न किया, ‘हे सूत जी! पूर्व काल में किसने इस उत्तम शिवरात्रि व्रत का पालन किया था और अनजान में भी इस व्रत का पालन करके किसने कौन-सा फल प्राप्त किया था? इसका उत्तर उन्हें ऐसे मिला -’एक धनवान मनुष्य शिवरात्रि के दिन शिव मंदिर में गया। एक सौभाग्यवती स्त्री वहां पूजन में लीन थी। धनिक ने उसके आभूषण चुरा लिए। लोगों ने उसके कृत्य से क्षुब्ध होकर उसे मार डाला, किंतु चोरी करने के लिए धनिक आठों प्रहर भूखा-प्यासा जागता रहा था, इसी कारण स्वत: व्रत हो जाने से शिवजी ने उसे सद्गति दी।
फल
‘स्कन्दपुराण’ में कहा गया है, ‘हे देवी, मेरा जो भक्त शिवरात्रि में उपवास करता है, उसे क्षय न होने वाला दिव्य गण बनाता हूं। वह सब महाभोगों को भोगकर अंत में मोक्ष पाता है।’
‘ईशान संहिता’ के अनुसार, यह व्रत सब पापों का शमन करने वाला है। यह 12 से 24 वर्ष के पापों का नाश करता है। यह मनुष्यों को भक्ति-मुक्ति देने वाला है। जो मनुष्य शिवरात्रि पर अखंडित व्रत करता है, उसकी सारी इच्छाएं पूर्ण होती हैं तथा वह शिव के साथ आनंद करता है। जो पुरुष व्रत से हीन होकर भी किसी विशेष उद्देश्य से शिवरात्रि में जागरण करता है, वह रुद्र के बराबर होता है।
सम्पूर्ण शास्त्रों में शिवरात्रि व्रत को सबसे उत्तम बताया गया है। कहा गया है कि यह व्रत परम मंगलमय और दिव्यतापूर्ण है। इससे सदा सर्वदा भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में यह व्रत ‘व्रतराज’ के नाम से विख्यात है और चारों पुरुषार्थों को देने वाला है। संभव हो, तो उक्त व्रत को जीवन पर्यंत करें, अन्यथा 14 वर्ष के बाद पूर्ण विधि-विधान के साथ इसका उद्यापन कर दें।
यह व्रत प्राप्त काल से चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यन्त करना चाहिए। रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करने से जागरण, पूजा और उपवास तीनों पुण्य कर्मों का एक साथ पालन हो जाता है और भगवान शिव की विशेष अनुकम्पा और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
–
Vikas Sharma
bundelkhandlive.com
E-mail :editor@bundelkhandlive.com
Ph-09415060119