27 मई, 2013
पं0 दीनदयाल उपाध्याय, राज्य ग्राम्य विकास संस्थान, लखनऊ के महानिदेशक श्री एन0एस0रवि, ने आज एक प्रेस वार्ता के माध्यम से बताया कि शासन की ज्ञात प्रणालियों में लोकतंत्र ही कदाचित् ऐसी शासन प्रणाली है जिसे अधिकतम नागरिकों का विश्वास व सम्मान प्राप्त है। मूल रूप से जनभागीदारी, प्रत्यक्ष एवं परोक्ष एवं जन स्वीकार्यता एवं कानून के शासन की अवधारणा पर आधारित होने के कारण सैद्धान्तिक रूप से सर्वाधिक वस्तुनिष्ठ शासन प्रणाली कही जा सकती है। शासन के क्रियाकलापों में जनसाधारण की भागीदारी लोकतांत्रिक शासन का मूल आधार है और इसकी सफलता इसी बात पर निर्भर करती है कि वह अपने अधिकांश नागरिकों की अपने अधिकतम क्रियाकलापों में किस प्रकार अधिकतम भागीदारी सुनिश्चित कर पाती है। बड़े एवं अधिक आबादी वाले राष्ट्रों में जनसाधारण की प्रत्यक्ष भागीदारी की सीमाएं हैं और यह अप्रत्यक्ष ही हो सकती हैं, किन्तु प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों ही भागीदारी हेतु राज्य के क्रियाकलापों व निर्णयों में समुचित पारदर्शिता एवं खुलापन आवश्यक है।
श्री एन0एस0रवि ने बताया कि पिछले कुछ समय से यह देखने में आ रहा है कि केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों के क्रियाकलापों, निर्णयों, आदेशों, निर्देशों व प्रक्रियाओं में समुचित पारदर्शिता नहीं रही है, चाहे वह प्राकृतिक एवं अन्य संसाधनों का आवंटन रहा हो, अथवा विभिन्न प्रकार के लाइसेंस, कन्सेशन आदि की स्वीकृति रही हो अथवा विभिन्न संवैधानिक एवं महत्वपूर्ण पदों पर नियिुक्तियां व नामांकन रहा हो, या फिर राज्य पुरस्कार/सम्मान दिये जाने की बात रही हो। राज्य के क्रियाकलापों में गोपनीयता व पारदर्शिता की कमी के कारण देश में कई बार जनमानस उद्द्वेलित भी हुआ व न्यायालयों में कई मामले खासे विवाद का विषय बने।
श्री रवि ने बताया कि मानवाधिकारों का संरक्षण, उपभोक्ता संरक्षण, मानवीय संवेदनाओं आधारित विकास, सस्ती व सुलभ न्यायिक व्यवस्था, सामाजिक न्याय एवं समता तथा जनमानस में व्यवस्था के प्रति विश्वास व सम्मान हेतु यह आवश्यक है कि राज्य एवं काॅरपोरेट घरानों के क्रियाकलापों में सार्थक एवं समुचित पारदर्शिता व खुलापन हो ताकि जनसाधारण विभिन्न मुद्दों एवं विषयों के बारे में अपनी इच्छा के अनुरूप निर्णय ले सके। उन्होंने बताया कि इसी परिप्रेक्ष्य में दीनदयाल उपाध्याय राज्य ग्राम्य विकास संस्थान, लखनऊ द्वारा ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार के वित्तीय सहयोग से दिनांक 29-30 मई, 2013 को ज्त्।छैच्।त्म्छब्ल् ।छक् क्प्ैब्स्व्ैन्त्म् विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया जा रहा है। इस सेमिनार में निम्न विषयों पर व्याख्यान एवं शोध पत्रों का प्रस्तुतिकरण एवं विषय-विशेषज्ञों द्वारा पैनल डिस्कशन किया जायेगाः-पारदर्शिता एवं प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली, पारदर्शिता एवं प्रशासनिक व्यवस्था, पारदर्शिता एवं मानवाधिकार, पारदर्शिता एवं विकास, पारदर्शिता एवं सामाजिक न्याय/समता, पारदर्शिता एवं न्यायिक प्रणाली, पारदर्शिता एवं उपभोक्ता संरक्षण एवं पारदर्शिता में तकनीकी का योगदान विषयों पर विचार किया जायेगा।
सेमिनार में देश के सभी राज्यों के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों, प्रशिक्षण संस्थान शोध संस्थान, एन0जी0ओ0, पूर्व एवं वर्तमान प्रशासनिक अधिकारी एवं नीति निर्माण, न्यायविद्, शिक्षाविद् एवं विशेषज्ञों (लगभग 120) को आमंत्रित किया गया है, जिनमें से अभी तक लगभग 50 प्रतिभागियों द्वारा सेमिनार में भाग लेने की पुष्टि कर दी गयी है।
सेमिनार में प्रस्तुत किये गये शोध पत्रों एवं व्याख्यानों तथा पैनल डिस्कशन में उभर कर आये महत्वपूर्ण विचारों एवं संस्तुतियों को संकलित कर भारत सरकार सभी राज्य सरकारों, विश्वविद्यालयों, प्रशिक्षण एवं शोध संस्थानों आदि को प्रेषित किया जायेगा।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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