कार्यशाला के उद्घाटन के अवसर पर श्री अमित कुमार घोष, मिशन निदेशक, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, उत्तर प्रदेश ने अपने सम्बोधन में कहा कि ‘‘मातृ एवं बाल स्वास्थ्य वर्ष 2015-16’’ जैसे अभियान की शुरूआत करने के एक दिन बाद इस समस्या का हल निकालने के लिए हम सब एकत्रित हुये हैं। समुदाय स्तर पर समेकित प्रयासों से निमोनिया एवं डायरिया की रोकथाम एवं इससे होने वाली बच्चों की मृत्यु को रोका जा सकेगा तथा उचित देखभाल कर बच्चों के स्वास्थ्य स्तर में सुधार आयेगा इस दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन परिवार कल्याण महानिदेशालय, राज्य कार्यक्रम प्रबन्धन इकाई, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, उत्तर प्रदेश, डब्लू.एच.ओ., यूनीसेफ, टी.एस.यू. की ओर से संयुक्त रूप से होटल गोल्डन ट्यूलिप, स्टेशन रोड लखनऊ में किया गया।
इस कार्यशाला में 25 उच्च प्राथमिकता वाले जनपदों के मुख्य चिकित्सा अधिकारी, अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी, (आर0सी0एच0) जिला कार्यक्रम अधिकारी (आई0सी0डी0 एस0) जिला कार्यक्रम प्रबन्धक, (राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन) के अधिकारियों द्वारा प्रतिभाग किया गया।
श्री अमित कुमार घोष, मिशन निदेशक, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, उत्तर प्रदेश ने अवगत कराया कि मातृ एवं बाल स्वास्थ्य पर ध्यान देने देने वाले अभियान के लिये निमोनिया एवं डायरिया से रोकथाम भी बेहद जरूरी है क्यांेकि इससे हाने वाली अधिकांश मौतों को रोकना सम्भव है। उन्होने कहा कि इस कार्यशाला का उद्देश्य है कि स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग, आई0सी0डी0एस0, पंचायती राज विभाग के जनपद स्तर के अधिकारियों को निमोनिया एवं डायरिया की रोकथाम एवं इलाज से सम्बन्धित इन्टीग्रेटेड फ्रेमवर्क के अन्तर्गत बुनियादी बातों को समझाना है।
इस मौके पर बोलते हुये विश्व स्वास्थ्य संगठन ;डब्लू.एच.ओ.़ के राष्ट्रीय स्तर के अधिकारी सुश्री अन्जु पुरी ने अवगत कराया कि निमोनिया एवं डायरिया की समस्या स्वास्थ्य से सम्बन्धित सहयोगी विभागों के इन्टरसैक्टोरल इशूज से सम्बन्धित है। जिसकी रोकथाम के लिये 16 कारणों जैसे पी0सी0बी0 रोटावाइरस जैसे, टीके, पोषक तत्व, स्तनपान, सुरक्षित पेयजल के उपयोग तथा साफ-सफाई आदि जैसी बातें शामिल हैं। सुश्री अन्जु पुरी ने अवगत कराया कि हमे समझना होगा कि निमोनिया एवं डायरिया से होने वाली मौतों में से 88 प्रतिशत मामलों को सस्ते इलाज से बचाया जा सकता है। इसी वजह से हमें इन्टीग्रेटेड एप्रोच अपनाने की जरूरत है।
श्री प्रवीण खोबडागडे, हैल्थ स्पेशलिस्ट, यूनिसेफ, ने बताया कि निमोनिया एवं डायरिया मुख्यतः गरीब बस्तियों में फैलते है। यहाॅं रहने वाले परिवारों को शुद्धपेय जल अच्छी साफ-सफाई न होना तथा कुपोषण से भी निमोनिया एवं डायरिया खतरा बढ जाता है। इस कार्यशाला में हर पहलूओं पर चर्चा हो रही है ताकि योजनाओं को सही ढगं से लागू किया जा सके इसे जरूरत मंद लोगों तक पहुचाने की जरूरत है। निमोनिया से होने वाली 50 प्रतिशत मौतें घरेलू प्रदूषण से होती है अकेले स्वास्थ्य विभाग द्वारा इन समस्याओं का निराकरण सम्भव नहीं है इसके लिये अन्य विभागों के साथ समन्वय स्थापित कर कार्य करने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त ऐसी अन्य समस्यायें हैं जिसके लिये एकीकृत माॅडल की जरूरत है।
डा0 अनिल कुमार वर्मा, महाप्रबन्धक, बाल स्वास्थ्य, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, उत्तर प्रदेश ने अवगत कराया कि 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौतों के मामले में 13 प्रतिशत मौतें निमोनिया के कारण होती है तथा 11 प्रतिशत मौतें डायरिया के कारण होती है। निमोनिया एवं डायरिया के कारण बच्चों में कुपोषण, और कुपोषित बच्चों में डायरिया एवं निमोनियां की सम्भावना एक चक्र के रूप में रहती है। अगर समय से इनका इलाज नहीं किया गया तो बच्चें के असमय मृत्यु की सम्भावना बनी रहती है। इन घटनाओं को कम करने हेतु आई0सी0डी0एस0, पंचायती राज, शिक्षा, महिला एवं बाल विकास विभाग आदि को समुदाय स्तर पर आपस मे समन्वय स्थापित कर कार्य करने की रणनीति बनाने की आवयश्कता है।
उन्होने बताया कि पूरे देश में उत्तर प्रदेश तीसरा ऐसा राज्य है जहां पर यह कार्यशाला आयोजित की जा रही है। पूरे देश में 5 वर्ष से कम जितने भी बच्चों की मौतें होती है। उनमें 50 प्रतिशत मौतें मध्य प्रदेश विहार, उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान में होती है, उसमें से 25 प्रतिशत मौतों केवल उत्तर प्रदेश में होती है। सरकार द्वारा इस स्थिति को बदलने के लिये हर सम्भव प्रयास किये जा रहे हैं। इसी के क्रम में सरकार द्वारा वर्ष 2015-16 को ‘‘मातृ एवं बाल स्वास्थ्य वर्ष 2015-16’’ के रूप में मनाने की धोषणा की गयी है।
डा0 यू0के0 वर्मा, मुख्य चिकित्सा अधिकारी जनपद बलरामपुर ने वताया कि ‘‘हर बच्चा अपने परिवार और समाज के लिये महत्वपूर्ण है। अगर हम सब मिलकर कार्य करें तो इन बच्चों को बचाया जा सकता है। तथा अन्य विभागों के साथ समन्वय स्थापित करके कार्य किया जा सकता है। अगले चरण में इस कार्यक्रम को समस्त जनपदों में लागू करने हेतु 2 अन्य कार्यशालाओं के माध्यम से शेष जनपदों को सम्मलित किया जायेगा। उत्तर प्रदेश की बाल मृत्युदर 64 प्रति 1000 हजार बच्चे हंै ( एस.आर.एस.2013 )। इनमें से 5 वर्ष से कम आयु 1000 बच्चों में से 64 बच्चे अपना 5 वाॅं जन्म दिन नहीं मना पाते है। इनसे से 13 प्रतिशत बच्चे निमोनिया एवं 11 प्रतिशत बच्चे डायरिया के शिकार होते हैं।कार्यशाला में सम्मलित प्रतिनिधियों द्वारा अपने-अपने जनपदों में जाकर जिला स्वास्थ्य समिति के सहयोग से जनपदीय कार्य योजना 15 दिनों के अन्दर तैयार करेंगे जिसमें वे अपने-अपने जनपदों से सम्बन्धित लक्ष्य निर्धारण, रणनीति और समय सीमा का आंकलन कर कार्य करेंगे।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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