Archive | May 16th, 2015

मुख्यमंत्री को हकीकत में नहीं, प्रचार में भरोसा-डा0 चन्द्रमोहन

Posted on 16 May 2015 by admin

भारतीय जनता पार्टी ने कहा कि प्रधानमंत्री की नकल कर सुर्खियों में बने रहने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की हकीकत सबके सामने आ रही है। कानपुर समेत राज्य के कई क्षेत्र में उद्योग लगाने और उसके लिए तमाम रियायतों की घोषणा अब छलावा सिद्ध होे लगी है। राज्य के उद्यमी अब खुद को ठगे हुए महसूस कर रहे हैं और समाजवादी सरकार पर धोखा देने का आरोप भी लगा रहे हैं।
प्रदेश मुख्यालाय पर पत्रकारों से चर्चा करते हुए प्रदेश प्रवक्ता डा0 चन्द्रमोहन ने कहा कि मुख्यमंत्री ने मेक इन इंडिया के तर्ज पर मेक इन यूपी का जुमला तो उछाल दिया, लेकिन वास्तव में उद्यमियों को न तो बिजली मिल रही है, ना सीवर कनेक्शन मिल रहा है और ना समय पर उनकी कागजी कार्रवाई पूरी हो रही है। प्रदेश के अधिकारी हमेशा की तरह बहानेबाजी, लेटलतीफी और टाल मटोल में लगे हैं। भाजपा प्रवक्ता डाॅ0 चन्द्रमोहन ने आरोप लगाया है कि बिना किसी तैयारी, इंतजाम और नेकनीयती के मुख्यमंत्री सिर्फ प्रचार के जरिए सपने बेचने में लगे है।
प्रदेश प्रवक्ता डा0 चन्द्रमोहन ने कहा कि मालूम हो कि अखिलेश यादव ने बड़े जोर शोर से कानपुर में एक नया औद्योगिक सेक्टर बनाने का ऐलान किया था। मुख्यमंत्री ने बड़बोलेपन का परिचय देते हुए यह भी दावा किया था कि जब तक मेक इन यूपी नहीं होगा तब तक प्रधानमत्री श्री नरेन्द्र मोदी क्षरा घोषित मेक इन इंडिया का कार्यक्रम सफल नहीं होगा। उन्होंने यूपीएसआईडीसी के जरिए स्कीम की घोषणा भी करवा दी। लेकिन पहले से भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा यह विभाग इस स्कीम को सफल बनाने में पूरी तरह विफल रहा। अब प्रदेश के उद्यमी ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। लाखों करोड़ों खर्च करने के बावजूद ना तो उन्हें अपनी इकाई चलाने के लिए आवश्यक सुविधाएं मिल रही है और ना अधिकारियों का सहयोग। अभी तक ना तो बिजली की व्यवस्था दुरूस्त हुई है और ना ही सीवर आदि के कनेक्शन मिले हैं। उद्यमी लाचार घूम रहे हैं। उनकी सुनवाई कहीं नहीं हो रही है।
प्रदेश प्रवक्ता डा0 चन्द्रमोहन ने कहा कि मुख्यमंत्री ने उद्यमियों के साथ नाइंसाफी की है। उन्होंने कहा कि सिर्फ प्रचार के जरिए ही समाजवादी पार्टी विकास का ख्याली खाका खींच रही है, जबकि हकीकत है कि ना तो प्रदेश में कानून व्यवस्था उद्योगों के अनुरूप है और ना ढ़ाचागत सुविधाएं। अधिकारी भी मुख्यमंत्री की घोषणाओं को गंभीरता से नही ले रहे हैं जिसका परिणाम यह मिल रहा है कि प्रदेश में ना कोई निवेश आ रहा है और ना रोजगार के अवसर बन रहे हैं। भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव न सिर्फ वादाखिलाफी कर रहे है, बल्कि अपने कारनामों से उत्तर प्रदेश की विश्वसनीयता पर बेवजह प्रश्न चिन्ह खड़ा कर रहे हैं।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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नेपाल को भेजी जाने वाली राहत सामग्री में भूकम्प पीडि़तों की जरूरत के अनुसार वस्तुओं को वरीयता दी जाए: मुख्यमंत्री

Posted on 16 May 2015 by admin

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने कहा है कि नेपाल को भेजी जाने वाली राहत सामग्री में भूकम्प पीडि़तों की जरूरत के अनुसार वस्तुओं को वरीयता पर उपलब्ध कराया जाए। इस क्रम में टेण्ट, गद्दे, तिरपाल, कम्बल, पानी शुद्धिकरण की दवाइयां, स्वच्छता किट, बर्तन एवं अन्य इसी प्रकार की सामग्रियों को वरीयता देते हुए राहत सामग्री भेजी जा रही है।
प्रवक्ता ने बताया कि नेपाल में आए भूकम्प के मद्देनजर राहत सामग्री के रूप में अब तक सोनौली इण्डो-नेपाल बार्डर होते हुए कुल 1064 ट्रक राहत सामग्री भेजी गयी है, जिसमें 681 ट्रक में खाद्य सामग्री (चावल, दाल, आटा, आलू, प्याज, नमक इत्यादि), 219 ट्रक बिस्कुट एवं अन्य ड्राई फूड, 103 ट्रक मिनरल वाटर, 12 ट्रक मैगी/नूडल्स इत्यादि, 29 ट्रक दवाइयां/क्लीनिकल सामग्री, 145 ट्रक कम्बल/तिरपाल/टेण्ट, 10 ट्रक बर्तन, 07 ट्रक गद्दे, 05 ट्रक कपड़े तथा 84 ट्रक जिनमें ट्रांसफार्मर/इलेक्ट्रिकल उपकरण शामिल हैं। इसके साथ ही, 60,814 कम्बल, 55,620 तिरपाल/प्लास्टिक शीट्स, 8,583 तौलिया, 9,495 चटाई, 2,931 टार्च, 2,850 सोलर लालटेन तथा 11 कुन्तल रस्सी भी भेजी गयी है।
प्रवक्ता के अनुसार परिवहन निगम की बसों से काठमाण्डू एवं भैरहवा/सोनौली से अब तक 12,316 भूकम्प पीडि़तों को गोरखपुर लाया गया है। अन्य साधनों से सोनौली 8,327 भूकम्प पीडि़तों को शामिल करते हुए लगभग 20,643 भूकम्प पीडि़त विभिन्न साधनों से अपने गंतव्य को प्रस्थान कर चुके हैं।
राज्य सरकार द्वारा सीमावर्ती जनपदों-बहराइच (रुपईडीहा), सिद्धार्थनगर (बढ़नी), महराजगंज (सोनौली), बलरामपुर-नेपाल सीमा (कोइलाबासा-नेपाल) स्थित सीमा चैकियों पर राहत शिविर स्थापित किए गए थे। नेपाल से आ रहे भूकम्प पीडि़त शरणार्थियों एवं राहत सामग्री के अनुश्रवण एवं समन्वयन हेतु राहत शिविर वर्तमान में मुख्यतः सोनौली (महराजगंज) में संचालित है।
गोरखपुर विश्वविद्यालय परिसर में स्थापित राहत शिविर में नेपाल से आने वाले भूकम्प पीडि़तों के सहायतार्थ स्थापित शिविर में कुल 11,238 भूकम्प पीडि़तों को भोजन, चिकित्सा, विदेशी मुद्रा परिवर्तन तथा परिवहन सुविधाएं उपलब्ध करायी गयी थीं। यात्रियों का आगमन बन्द हो जाने पर शिविर की आवश्यकता न होने के कारण इसे अब बन्द कर दिया गया है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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मुख्यमंत्री ने किसानों को सहायता राशि त्वरित और पारदर्शी ढंग से वितरित किए जाने के निर्देश दिए

Posted on 16 May 2015 by admin

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि/अतिवृष्टि से प्रभावित किसानों को सहायता राशि त्वरित और पारदर्शी ढंग से वितरित किए जाने के निर्देश दिए हैं। उनके निर्देशों के क्रम में अब तक 34 लाख 11 हजार 417 किसानों को 1524.73 करोड़ रुपए की धनराशि का वितरण किया जा चुका है। ओलावृष्टि से किसानों को राहत प्रदान करने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा कुल 1954.55 करोड़ रुपए की धनराशि प्रभावित जनपदों को स्वीकृत की जा चुकी है। प्रदेश में हुई ओलावृष्टि से किसानों को हुई क्षति का मुख्यमंत्री द्वारा निरन्तर अनुश्रवण किया जा रहा है।
यह जानकारी देते हुए राज्य सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि प्रदेश के 73 जनपदों में बोई गई 127.34 लाख हेक्टेयर कृषि फसल में ओलावृष्टि/अतिवृष्टि से 89.46 लाख हेक्टेयर फसल प्रभावित हुई है। प्रभावित कृषि फसल में 58.92 लाख हेक्टेयर कृषि फसल में 33 प्रतिशत या इससे अधिक की क्षति हुई है।
प्रवक्ता ने बताया कि जनपद बलरामपुर एवं बिजनौर को छोड़कर प्रदेश के 73 जनपदों द्वारा ओलावृष्टि मेमोरेण्डम हेतु कृषि क्षति एवं जन-धन हानि की सूचना के आधार पर 75 अरब 43 करोड़ 14 लाख रुपए का संशोधित मेमोरेण्डम भारत सरकार को भेजकर क्षति के सापेक्ष धनराशि स्वीकृत किए जाने का अनुरोध किया गया है। इसके पूर्व प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से किसानों की राहत के लिए 1000 करोड़ रुपए की धनराशि अग्रिम रूप से स्वीकृत किए जाने के लिए भी अनुरोध किया जा चुका है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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विकास का झूठा ढंढोरा पिटने में जुटी सरकार

Posted on 16 May 2015 by admin

त्यूनी से धारचूला पदयात्राः उत्तराखण्ड बचाओ आंदोलन का शंखनाद  रुउत्तराखण्ड में  सभी पार्टियों ने जनता को केवल गुमराह ही किया रु सरकार अपनी कल्याणकारी भूमिका से पीछे  ६७ साल बाद भी उत्तराखण्ड के गाँव एक अच्छी सुबह देखने से वंचित  रुसाढे ६ लाख गाँव स्वतन्त्रता का दम नही भर सकते रुगाँव की पहचान चुनावों में मतदाता से ज्यादा नही रुउत्तराखण्ड राज्य गठन के १५ वर्ष  रुउत्तराखण्ड राज्य से जुडी आशाएं ध्वस्तरुलोगों के सपने ढेर  रुआन्दोलनकारी ताकतें हताश व निराश रुसब खुद को ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं  रु उत्तराखण्डियों को आशा थी कि रु नीतियां उनके अनुरूप बनेंगी रु जलए जंगलए जमीन पर लोगों के हक हकूक बनें रहेंगे रु शिक्षा स्वास्थ्य तक आम आदमी की पहुंच होगी रु गांवों में रोजगार के अवसर पैदा होने से पलायन रूकेगा। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ रुराज्य में प्राकृतिक संसाधनों की लूट  रुशिक्षा.स्वास्थ्य की स्थिति बदहाल   रु बेरोजगारी के हालात बदस्तूर  रु रोजगार के अवसर समाप्त कर नियुक्तियां ठेके पर  रुन पंचायत नियमावली में संशोधन कर उन्हें वन विभाग के नियंत्रण में दे दिया   रु तराई की वेशकीमती जमीनें कौडयों के भाव उद्योगपतियों को दी रु  उर्जा प्रदेश के नाम पर ५५६ से अधिक बांध बनाकर उपजाउ जमीनों को डुबोने की तैयारी  रु पीण्पीण्पीण्मोड के जरिये आम जनता को शिक्षा व स्वास्थ्य जैसी बुनियादी अधिकारों से वंचित रु  उत्तराखण्ड में १६ सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पीण्पीण्पीण्मोड में  रु १८०० राजकीय प्राथमिक विद्यालय कम छात्रों की संख्या होने के कारण बंदी के कगार पर  रु अल्मोडा तथा पौडी जैसे समृद्ध जिलों में राज्य बनने के बाद आबादी का घटना सरकार के विकास के दावों की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है। लगभग ३६०० गाँव वीरानी की ओर अग्रसर हैं। रु चन्‍द्रशेखर जोशी सम्‍पादक द्वारा प्रस्‍तुत एक्‍सक्‍लूसिव रिपोर्ट. लॉग ऑन करें. ूूूण्ीपउंसंलंनाण्वतह ;न्ज्ञ स्मंकपदह छमूेचवतजंसद्ध  उत्‍तराखण्‍ड के सामाजिक सरोकारों के लिए प्रतिबद्व वेब पोर्टल
प्रख्यात समाजसेवी तथा पदमश्री डा० अनिल प्रकाश जोशी के नेतृत्व में त्यूनी से धारचूला: गांव बचाओ आंदोलन का शंखनांद शुरू होने जा रहा हैए इसके लिए २४ मई २०१५ को राज्य के गांवों से सन्दर्भित एक गोष्‍ठी का आयोजन देहरादूनए उत्तराखण्ड में किया गया है। आज आवश्‍यकता महसूस की जाने लगी है कि उत्तराखण्ड बनने के १५ वर्षो में गांव का दमखम लगातार बिगडता चला गया। वहीं दूसरी तरफ सरकारें विकास का झूठा ढंढोरा पिटने में जुटी रही। इन्हीं गांवों ने उत्तराखण्ड के सृजन में कई तरह की बलि दी हैं पर आज वे हताश और भौचक्कें है। गांव के बिगडते हालातों व सरकारों का नकारापन एक नयी चुनौती के रूप में फिर से हमारे बीच में हैं। इन तमाम मुददों पर बातचीत करने के लिए व अगामी गांव बचाओं आन्दोलन की रणनीति पर चर्चा के लिए आम जन सहभागिता की अपील की गयी है। डा० अनिल जोशी ने आह्वान किया है कि
भाई बहनों
स्वतन्त्रता के ६७ साल बाद भी उत्तराखण्ड के गाँव एक अच्छी सुबह देखने से वंचित हैं। यह कहानी सारे देश की है। आज देश की पहचान ८००० शहर और २२००० कस्बे तक ही सीमित है। साढे ६ लाख गाँव आज भी देश की स्वतन्त्रता का दम नही भर सकते। देश की प्रगति एक पक्षीय दिखाई देती है। सरकारों की मंशा गाँव से अलग विकास के चारों तरफ केन्द्रित है। गाँवों में रोशनी और निराशा को कभी भी स्वतन्त्रता के बाद मुहांसा नही मिला गाँव की आज बडी पहचान चुनावों में मतदाता से ज्यादा नही समझी जाती।
नवोदित उत्तराखण्ड राज्य इस कडी का एक बडा उदाहरण है। राज्य की कल्पना के पीछे इसके गाँव की व्यथा राज्य की मांग का बडा हिस्सा रही है। इस आन्दोलन में उत्तराखण्ड के हर गाँव की उपस्थिति प्रमुख रूप से दर्ज थी। इसके पीछे एक बडी आशा थी कि राज्य मिलने के बाद गाँव के हालात बहुरेंगें।
उत्तराखण्ड राज्य गठन के १५ वर्ष होने जा रहे हैं। इन वर्षो में उत्तराखण्ड राज्य से जुडी आशाएं ध्वस्त हो गयी हैं। नये राज्य को लेकर लोगों के सपने ढेर हो गये हैं। आन्दोलनकारी ताकतें हताश व निराश हैं। सब खुद को ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं।
उत्तराखण्डियों को आशा थी कि राज्य बनने के बाद इस हिमालयी राज्य में उनकी अपनी सरकार होगीए जो यहां के घर बाहर के मुद्दों को भलिभांति समझेगी। नीतियां उनके अनुरूप बनेंगी। जलए जंगलए जमीन पर लोगों के हक हकूक बनें रहेंगे। शिक्षा स्वास्थ्य तक आम आदमी की पहुंच होगी। गांवों में रोजगार के अवसर पैदा होने से पलायन रूकेगा। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। इसके विपरीत राज्य में प्राकृतिक संसाधनों की लूट तेज हो गयी। शिक्षा.स्वास्थ्य की स्थिति बदहाल हुई। महंगाई से आम आदमी त्रस्त हुआ। बेरोजगारी के हालात बदस्तूर हैं। रोजगार के अवसर समाप्त कर नियुक्तियां ठेके पर चल पडी हैं। उद्योगों में रोजगार के नाम पर युवाओं का अत्यधिक शोषण हो रहा है। सरकार पहाड पर चढने में असमर्थ हुई है। गैरसैंण राजधानी के मसले पर अब तक सत्ता में काबिज रही सभी पार्टियों ने जनता को केवल गुमराह ही किया है।
राज्य बनने के तत्काल बाद २००१ में वन पंचायत नियमावली में संशोधन कर उन्हें वन विभाग के नियंत्रण में दे दिया गया। उसी वर्श वन अधिनियम में संशोधन कर आरक्षित वनों तक वनोत्पाद को लाना अपराध की श्रेणी में डाल दिया गया। तराई की वेशकीमती जमीनें कौडयों के भाव उद्योगपतियों को दी गयी हैं। लचीले भू कानूनों के चलते समूचे राज्य में काश्‍तकारों की जमीनों की बडे पैमाने पर खरीद फरोख्त हुई है। उर्जा प्रदेश के नाम पर ५५६ से अधिक बांध बनाकर उपजाउ जमीनों को डुबोने की तैयारी की जा रही हैए जबकि इसका कोई लाभ यहां की जनता के पक्ष में नही पडने वाला।
सरकार अपनी कल्याणकारी भूमिका से पीछे हट चुकी है। पीण्पीण्पीण्मोड के जरिये आम जनता को शिक्षा व स्वास्थ्य जैसी बुनियादी अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। उत्तराखण्ड में १६ सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पीण्पीण्पीण्मोड में दिये जा चुके हैं। इन अस्पतालों में की जा रही लूट के खिलाफ जनता आन्दोलित हैए लेकिन सरकार के कान में जूं नही रेंगती। स्वास्थ्य केन्द्र रैफरल सेन्टर बनकर रह गये हैं। और शिक्षा के हालात भी इतने ही दयनीय हैं। राज्य में १८०० राजकीय प्राथमिक विद्यालय कम छात्रों की संख्या होने के कारण बंदी के कगार पर हैं।
भूमि बंदोबस्त व चकबंदी के सवाल पर सभी सरकारें मौन हैं। समय पर भूमि बन्दोबस्त ना होने से गाँवों में पलायन बढा है। हमारी युवा षक्ति श्रमषील है। लेकिन भूमि के अभाव में बैरोजगार है। भूमि बन्दोबस्त व साथ में चकबन्दी भी एक बडा मुद्दा है। कठोर वन एवं भू कानूनों के चलते ग्रामीणों के कृशि एवं पषुपालन जैसे पुष्तैनी व्यवसायों पर सीधा हमला हुआ है। रही.सही कसर जंगली जानवरों ने पूरी कर दी है। आज उत्तराखण्ड के गाँवों की पहली समस्या वन्य जीवों से खेती व जान को बचाना है। इनके संरक्षण के नाम पर नये सिरे से इकोसेन्सीइटव जोन बनाने के प्रयास जारी है। उत्तराखण्ड में वन्य जीवों की तुलना में आदमी को बोना कर दिया गया है। अब संरक्षित क्षेत्रों की सीमा से लगे १० किलोमीटर के दायरे को इको सेंसटिव जोन बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं। दूसरी तरफ लम्बे संघर्श के बाद २००६ में अस्तित्व में आये वनाधिकार कानून को लागू करने में सरकार नाकाम रही हैं।
पहाडों में घटती जनसंख्या और षहरों में बढता दबाव राजनैतिक असन्तुलन पैदा करने की कगार पर आ चुका है।पलायन की गति सुविधाओं के अभाव में तेजी से बढने वाली है। जनसंख्या के आधार पर किये गये परिसीमन ने पर्वतीय राज्य की अवधारणा पर गहरी चोट पहुंचाई है। अब विधानसभा में पहाडों का प्रतिनिधित्व नये समीकरणों से घटता जायेगा। अल्मोडा तथा पौडी जैसे समृद्ध जिलों में राज्य बनने के बाद आबादी का घटना सरकार के विकास के दावों की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है। लगभग ३६०० गाँव वीरानी की ओर अग्रसर हैं।
इन परिस्थितियों में उत्तराखण्ड के तमाम सामाजिक संगठनों ने गहन विचार मंथन के बाद गांव बचाओं आंदोलन करने की ठानी है। इसके लिए सितम्बर २०१५ में संपूर्ण उत्तराखण्ड में यात्रा करने के बाद देहरादून में विशाल प्रदर्शन कर आगे की रणनीति बनाना तय किया गया है। त्यूनी से धारचूला की यह यात्रा पहाड के सामाजिकए राजनैतिक व आर्थिक प्रश्नों को लोगों के बीच में उतारेगी। हमारा जनपक्षीय उत्तराखण्ड निर्माण की पक्षधर जनता से अनुरोध है कि आम जन की अपेक्षा के अनुरूप राज्य निर्माण हेतु गांव बचाओ आंदोलन में भागीदारी कर अपनी जागरूकता व कर्तव्य का परिचय दें।

चन्‍द्रशेखर जोशी

सम्‍पादक

द्वारा प्रस्‍तुत एक्‍सक्‍लूसिव रिपोर्ट

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भारतीय राष्ट्रिय छात्र संगठन ; ( NSUI ) द्वारा सूचनाधिकार सहायता शिविर के बहाने असंतुलित BHU परिसर में रचनात्मक राजनीती का सन्देश।

Posted on 16 May 2015 by admin

आज दिनांक 14 ध् 05 ध्2015 को लंका स्थित टंडन टी स्टाल के पास भारतीय राष्ट्रिय छात्र संगठन ;छैन्प्द्ध द्वारा सुचना का अधिकार सहायता शिविर लगाया गया। शिविर के माध्यम से कई जरुरतमंदों को जरुरी जानकारी आदि दी जा रही हैए ज्यादातर केस पेंशन ए निधि और सामाजिक कल्याण जैसे वृद्धा समाजवादी पेंशन आदि से सम्बंधित आ रहे हैए लंका आसपास के ठेला पटरी व्यवसायी भी अपने केंद्रीय कानून जिसके अनुसार उन्हें ठेला की दुकान लगाने का विधिक रूप से अधिकार प्राप्त है ए के बाबत भी नगर निगम और जिला प्रशासन से लगातार पत्राचार कर जानकारी और अधिकार प्राप्त कर रहे है।
आजमगढ़ से पेंशन के बाबत पत्र लेखन हेतु सहायता लेने आए एक वृद्ध सज्जन अशोक सिंह ने कार्यकर्ता छात्रों को आशीर्वाद देते हुए कहा की बेटा हम कल से ही आए हुए है अस्पताल में दवा लिए और फिर शाम के बाद परिसर में दर्शनपूजा किये और परिवार के साथ मालवीय जी के आँगन में टहल रहे थेए कल कुछ लड़के कुलपति आवास के पास धरना प्रदर्शन कर रहे थे और सुरक्षाकर्मियों के साथ भी बदतमीजी से पेश आ रहे थेए आज सुबह समाचार देखा तो पता चला की गुंडागर्दी के आरोप में निकाले गए छात्र रहे शायदए बहुत दुखद है एक ओर आप लोग शताब्दी वर्ष मना रहे हैं देश विदेश के लोग बनारस आ रहे है और मालवीय जी की कर्मभूमि से ऊर्जाआशीर्वाद ले रहे है और दूसरी ओर ऐसे लड़के भी है जो परिसर को अराजक और अनुशासनहीन बनाना चाह रहे हैं शायद ए आपलोग जरूरतमंदों को सहायता कर रहे है ए बहुत बहुत आशीर्वाद आप लोगो को।
शिविर के बाद छात्रों की एक बैठक में उक्त अराजक स्थिति के लिए वि वि प्रशासन को ही जिम्मेवार बताया गया है और कहा गया की परिसर में सुरक्षाकर्मी केवल तन्खवाह उठा रहे है और आम छात्र मार खा रहा है अपना मोबाइल लैपटॉप आदि छिनैती में खो रहा है और प्रशासनिक अधिकारी ध् शिक्षक ऐसे कुछेक अराजक छात्रों और कुछ बाहरी गुंडों पर अंकुश लगाने की जगह अपने रूम में बैठाकर चाय पान करवा रही थी तो ये स्थिति तो आनी ही थीए हम छैन्प् के सदस्य प्रशासन से माँग करते है की शताब्दी वर्ष की गरिमा को देखते हुए परिसर के वातावरण को ततकाल शांत करने के लिए समुचित कदम उठाये और हम छात्रों के लायक कोई जिम्मेवारी हो तो वो भी बतायेए छैन्प् हर संभव मदद के लिए तैयार है।
शिविर में प्रमुख रूप से चिंतामणि सेठए धनञ्जय त्रिपाठीए अमित कुमार राय ; प्रदेश उपाध्यक्ष द्धए ओम शंकर शुक्ल ; पूर्व जिलाध्यक्ष द्धएअस्पताली सोनकरए श्रीकांत सिंहए विनोद टंडनए कल्पजीत दीक्षितए बाबू सोनकरए डॉ प्रवीण शुक्ल आदि मौजूद रहे।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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