गोडफ्रे फिलिप्स इण्डिया द्वारा अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को निभाने के लिए शुरू किए गए, गोडफ्रे बहादुरी पुरस्कारों के अन्तर्गत आज उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और दिल्ली के 12 बहादुरों को सम्मानित किया गया। उत्तर प्रदेश के माननीय राज्यपाल, श्री बी.एल. जोशी ने उन्हें लखनऊ में आयोजित समारोह में ये पुरस्कार प्रदान किए।
इस अवसर पर अपने सम्बोधन में गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों के महासचिव, श्री हरमनजीत सिंह ने बताया, ‘‘गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार 1990 में आम आदमी द्वारा किए गए बहादुरी के कारनामों का सम्मान करने के लिए शुरू किए गए थे। आज 20 साल बाद यह अभियान सभी आयु, धर्म, जाति के लोगों को बहादुरी की मशाल जलाते रहने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। 20 वर्ष की इस सफल यात्रा के इस वर्ष हम आज 20 राज्यों में पदार्पण कर रहे हैं और चार अन्य राज्य, जम्मू-कश्मीर, झारखण्ड, तमिलनाडु और केरल इस अभियान से जोड़े जा रहे हैं।’’
उन्होंने कहा कि गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों और अमोदिनी, अपनी दो पहल से हम साहसिक भावना और समाज के सशक्तिकरण को बढ़ावा दे रहे हैं। हमें गर्व है कि हमने 1,200 बहादुरों को सम्मानित किया है और 7,600 महिलाओं को सीधे सशक्त बनाया है।
उत्तर प्रदेश के श्री मोहम्मद शरीफ को अस्पतालों में ऐसे गरीब मरीजों की सेवा करने के लिए सामाजिक बहादुरी विषेष पुरस्कार से सम्मानित किया गया है जिनकी देख-रेख के लिए परिवार का कोई सदस्य उपस्थित नहीं होता। उत्तराखण्ड की गैर-सरकारी संस्था, पहल को गरीब औरतों के सशक्तिकरण की दिशा में अनुकरणीय कार्यों के लिए अमोदिनी पुरस्कार प्रदान किया गया है। पहल ने महिलाओं को आत्म-निर्भर बनाने के लिए छोटे ऋणों का मार्ग चुना और सबसे अधिक संख्या में स्वयं सहायता समूहों का गठन किया है।
सामाजिक बहादुरी पुरस्कार दिल्ली के श्री दीपक कुमार, उत्तराखण्ड के प्रोफेसर अजय सिंह रावत तथा उत्तर प्रदेश की कुमारी नीरज को दिया गया। दीपक ने 15 वर्ष की छोटी सी आयु में रक्तदान करना शुरू किया और सबसे कम आयु के स्वेच्छा से रक्तदान करने वाले बने। बाद में कई संस्थाओं से भी जुड़े। प्रोफेसर रावत ने बिल्डर माफिया, खनन माफिया और लकड़ी की तिजारत करने वाले माफिया के खिलाफ निरन्तर अभियान चलाया और पर्यावरण की रक्षा की। कुमारी नीरज ने एक ऐसे स्कूल में पढ़ाने का बीड़ा उठाया जहाँ कोई सुविधा, कोई अध्यापक नहीं था और जिसे ‘अनाथ स्कूल’ के नाम से जाना जाता था।
शारीरिक बहादुरी पुरस्कार दिल्ली के श्री पवन कुमार (जो मुम्बई-दिल्ली राजधानी में पैन्ट्री इन्चार्ज थे) को प्रदान किया गया। इन्होंने एक बड़ी दुर्घटना टाल कर जलती ट्रेन के 150 से अधिक लोगों की जान बचाई। श्री सलीम अहमद को भी शारीरिक बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन्होंने सशक्त बदमाशों और उनके आग उगलते हथियारों की परवाह न करते हुए अनेक पर्यटकों को बदमाशों के शैतानी इरादों से बचाया। श्री रईस अहमद, श्री शमशाद और उनकी बहन, सुश्री शहनाज को भी अद्वितीय साहस तथा दूसरों के लिए अपनी जान जोखिम में डालने के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया गया है।
उत्तराखण्ड के श्री संतोष सिंह नेगी को माइण्ड आॅफ स्टील पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहस और शक्ति की प्रतिमूर्ति, श्री संतोष के अंग बचपन से ही छोटे थे। संघर्ष के बावजूद उन्होंने अपनी जिन्दगी शान से बिताई है और पढ़ाई में हमेशा आगे ही रहे। वे छोटे ही थे कि माता का देहान्त हो गया और पिता सेवा निवृत्त हो गए। किसी प्रकार की नियमित आय न होने पर उन्होंने बच्चों को ट्यूशन देना शुरू किया और अपने भाई-बहन को पढ़ाया व अपनी पढ़ाई का इन्तजाम किया। श्री नेगी इस समय एम.ए. (अर्थशास्त्र) और एम.बी.ए. की पढ़ाई के साथ-साथ आई.ए.एस. की तैयारी भी कर रहे हैं।
गोडफ्रे फिलिप्स इण्डिया ने गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार 1990 में शुरू किए थे। ये पुरस्कार आम आदमी में एक अनूठी भावना का प्रवाह करते हैं और शारीरिक बहादुरी, समाज सेवा व मानवीय भावना को सम्मानित करते हैं। गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों का उद्देश्य जनता में निःस्वार्थ सेवा भाव का प्रवाह करना है। इन दो पहल - गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार और अमोदिनी पुरस्कारों के अन्तर्गत 1,200 से अधिक बहादुरों को सम्मानित किया गया है और 7,000 महिलाओं को सशक्त बनाया गया है।
1990 में शुरू होने के बाद से ये पुरस्कार 20 राज्यों - उड़ीसा, छत्तीसगढ़, उत्तराखण्ड, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, गोवा, हिमाचल प्रदेश में दिय जा रहे हैं। हाल ही में इस सूची में जम्मू-कश्मीर, झारखण्ड, तमिलनाडु और केरल शामिल हो गए हैं।
क्षेत्रीय स्तर पर पाँच समारोहों के बाद नवम्बर में दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों की घोषणा की जाएगी।
गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार
क्षेत्र ः दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी ः शारीरिक बहादुरी
बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:
बहादुर आमंत्रण के मोहताज नहीं होते। 26-वर्षीय शमषाद और उनकी बहन, शहनाज ने 10 मई, 2009 को अपहरण की एक कोशिश को नाकाम कर यह साबित कर दिया है।
शमशाद अपने घर बैठे चाय पी रहे थे, कि उन्होंने मदद के लिए गुहार सुनी। कुछ लोगों एक व्यक्ति को जबरन कार में खींच रहे थे।
छरअसल, एक व्यापारी, श्री अजय गुप्ता का अपहरण करने का प्रयास किया जा रहा था। अपनी सुरक्षा की परवाह न करते हुए, वह तेजी से कार की तरफ दौड़े और एक अपहरणकर्ता को धर-दबोचा। उनकी बहन व दादी भी उनके पीछे दौड़ पड़ीं।
भाई-बहन अपहरणकर्ताओं से भिड़ चुके थे। अजय गुप्ता ने स्वयं को अपहरणकर्ताओं से छुड़ाया और जान बचाने के लिए एक मंदिर में जा घुसे।
इस दौरान एक अपहरणकर्ता ने रिवाल्वर निकाली और शमशाद को धमकाने लगा। फिर भी, शमशाद ने उसे अपने गिरफ्त से जाने नहीं दिया। अपहरणकर्ता ने गोली चला दी, जो शमशाद के सिर में लगी। वे गिर पड़े तथा अपहरणकर्ता भाग खड़े हुए।
शमशाद को अस्पताल ले जाया गया। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल और एक मंत्री ने अस्पताल जा कर बहादुरी के लिए शमशाद शमशाद को बधाई दी।
उत्तर प्रदेष के श्री शमषाद और शहनाज को अदम्य साहस तथा बहादुरी के लिए गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की शारीरिक बहादुरी श्रेणी में पुरस्कृत किया जाता है।
गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार
क्षेत्र ः दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी ः शारीरिक बहादुरी
बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:
शान्त और समझदार, ऐसे दो गुण हैं जो बहादुरों को आम लोगों से अलग करते हैं। रईस अहमद देहरादून से कोटद्वार की बस चला रहे थे। बस में 37 यात्री सवार थे। जैसे ही बस लच्छीवाला मोड़ पर पहुंची उसके बे्रक और गियर बाॅक्स ने काम करना बंद कर दिया।
गाड़ी ढलान पर थी। बस पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो रहा था। बस रोकने का कोई तरीका दिखाई नहीं दे रहा था।
बस 80 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही थी। सभी यात्रियों में भय छा गया और वे शोर मचाने लगे। लेकिन, रईस अहमद शान्त थे और उनका ध्यान स्थिति का मुकाबला करने पर केन्द्रित था। वे बस को घुमावदार सड़कों पर चलाते रहे तथा सामने सड़क पर आने वाले लोगों को सामने से हटने की हिदायत देते रहे।
उन्होंने सभी यात्रियों से गाड़ी में पीछे की ओर जमा होने का अनुरोध किया और बस को वन विभाग के कार्यालय की ओर ले गए। उन्होंने बस को विभाग की चारदीवारी से जा टकराया। बस रुक गई और यात्री बिना किसी गम्भीर चोट के सुरक्षित बाहर आ गए।
उत्तराखण्ड के श्री रईस अहमद को अदम्य साहस, सूझबूझ तथा बहादुरी के लिए गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की शारीरिक बहादुरी श्रेणी में पुरस्कृत किया जाता है।
गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार
क्षेत्र ः दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड
श्रेणी ः शारीरिक बहादुरी
बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:
रिक्शा चालक, सलीम अहमद की बहादुरी देशवासियों द्वारा लम्बे समय तक याद रखी जाएगी। सशस्त्र आतंकवादियों और उनके आग उगलते हथियारों की परवाह न करते हुए सलीम अहमद ने आतंकवादियों का पीछा किया तथा अनेक पर्यटकों को उनके शैतानी इरादों से बचाया।
19 सितम्बर, 2010 की वह भयावह सुबह। सलीम अहमद रोज की तरह लोगों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के अपने काम में लगे हुए थे। अचानक उन्होंने दो अज्ञात मोटरसाइकिल सवारों को पर्यटकों के एक दल पर गोली चलाते देखा। ये पर्यटक जामा मस्जिद देख कर वापस लौट रहे थे। आतंकवादियों ने 12 गोलियां चलाईं।
अदम्य साहस का परिचय देते हुए वे तुरन्त अपनी रिक्शा से उतर गए। उन्होंने जमीन पर पड़ी एक ईंट उठाई तथा आतंकवादियों की तरफ फैंकी। उन्होंने आतंकवादियों का पीछा भी किया। इस बहादुर का साहस देखकर आतंकवादी घबरा गए और अपना हथियार छोड़ भाग खड़े हुए।
सलीम अहमद की बीमार बीबी और दो बच्चे हैं। वे अपनी बहादुरी के कारण अनेक दिलों में छा गए हैं। कुछ कंपनियों और व्यक्तियों ने आगे आकर उनकी बीबी के इलाज का खर्च उठाने का वायदा किया है। दिल्ली पुलिस ने भी उनके लिए 25 हजार रुपये के पुरस्कार की घोषणा की है।
दिल्ली के श्री सलीम अहमद को अदम्य साहस, निर्भीकता तथा बहादुरी के लिए गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की शारीरिक बहादुरी श्रेणी में विषेष पुरस्कार से पुरस्कृत किया जाता है।
गोडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड्स
क्षेत्र: दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी: शारीरिक बहादुरी
बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:
उस दुखद घटना की याद आते ही बहादुर अंजुम की आँखों में आँसू आ जाते हैं। वे अपनी केवल एक साथी को ही बचा पाईं और अपनी बाकी पाँच साथियों के लिए कुछ नहीं कर पाईं।
उस दिन अंजुम अपनी छह साथियों के साथ स्कूल से वापस आ रहीं थी। वे और उनकी सहेलियाँ रेलवे ट्रैक पार कर रहीं थी कि अचानक सामने से एक ट्रेन आती नजर आई। ट्रेन बिलकुल पास पहुँच चुकी थी। अंजुम तो ट्रैक पार कर चुकी थी पर सहेलियाँ पीछे थीं।
अंजुम खतरा साफ देख रही थी। वे झपट कर पीछे मुड़ी और उन्हें बचने की चेतावनी देते हुए एक सहेली को पकड़ कर पीछे खींच लिया। ट्रेन पास से गुजर गयी और बाकी पाँच सहेलियाँ उसकी चपेट में आ गयी। एक पल की भी देर होने पर वह और उसकी सहेली भी शिकार बन जाती।
अंजुम के पिता भारत इलेक्ट्राॅनिक्स लिमिटेड में काम करते हैं। उनकी इस बहादुरी के लिए भारत इलेक्ट्रोनिक्स आॅफिसर्स क्लब और उसकी महिला शाखा ने अंजुम को पुरस्कृत किया है।
आसाधारण साहस और बहादुरी के लिए उत्तर प्रदेष की कुमारी अंजुम को
गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की विषेष शारीरिक बहादुरी श्रेणी में पुरस्कृत किया जाता है।
गोडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड्स
क्षेत्र: दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी: शारीरिक बहादुरी
बहादुरी का संक्षिप्त विवरणः
मुम्बई-दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस में रसोई इन्चार्ज और आईआरसीटीसी के कर्मचारी, श्री पवन कुमार की सूझबूझ, तुरन्त और बहादुरी भरी कार्यवाही ने 18 अप्रैल 2011 को 150 यात्रियों को मौत के मुँह से सुरक्षित निकाल लिया।
राजधानी एक्सप्रेस के तीन डिब्बों में तड़के भीषण आग लग गयी। आग रसोई घर से शुरू हुई थी। ट्रेन तेज गति से दौड़ी जा रही थी। यात्री दिन के पहले पहर में आराम से सो रहे थे। तभी श्री पवन कुमार को धुएँ का आभास हुआ। वे चैंक कर उठ बैठे, ट्रेन रोकने के लिए चैन खींची और फौरन अग्निशमन उपकरण की ओर हो लिए।
साथ ही, उन्होंने अपने साथियों को लोगों को उठाने के लिए कहा। जैसे ही ट्रेन रूकी वे रसोईघर की ओर हो लिए और आगे बुझाने में लग गए। उनका आत्म-विश्वास देखकर कुछ और लोग भी साथ हो लिए। आग बुझा दी गयी और सभी लोगों को सुरक्षित नीचे उतार लिया गया। इस आग में ट्रेन के 3 डिब्बे जल कर पूरी तरह तबाह हो गए।
अपनी जान की परवाह न कर अद्वितीय सूझबूझ और बहादुरी का परिचय देते हुए 150 से अधिक यात्रियों को सुरक्षित बचाने के लिए दिल्ली के श्री पवन कुमार को गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की शारीरिक श्रेणी में विशेष पुरस्कार प्रदान किया जाता है।
गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार
क्षेत्र ः दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी ः सामाजिक बहादुरी
सामाजिक कार्यों का संक्षिप्त विवरण:
मोहम्मद शरीफ गरीब और जरूरतमंद लोगों के मसीहा हैं। उन्होंने अपना जीवन अस्पतालों में गरीब मरीजों की सेवा में समर्पित कर दिया है। पेशे से साइकिल मैकेनिकल, मोहम्मद शरीफ ने दुःख को करीब से महसूस किया है। उनका बेटा मृत्यु से एक माह पूर्व गायब हो गया था। अतः वह उसका अंतिम संस्कार तक नहीं कर सके।
इस दुखद घटना ने उन्हें और अधिक शक्ति दी। उन्होंने फैसला किया कि अब कोई गुमनामी की मौत नहीं मरेगा।
वे अपने काम और लोगों की सेवा में जुट गए। मोहम्मद शरीफ रोज प्रातः 5 बजे उठते हैं और नगर अस्पताल जाकर उन सभी मरीजों को नहलाते हैं जिनकी देखरेख करने के लिए उनके परिवार का कोई सदस्य उपस्थित नहीं होता है। वे इन मरीजों को दवाई आदि देने में नर्स की पूरी सहायता करते हैं। मोहम्मद शरीफ अस्पताल के कर्मचारियों का एक भाग बन चुके हैं।
अस्पताल से निकल कर वे साइकिलों की मरम्मत करने का अपना कार्य करते हैं और अपनी दुकान बंद करने के बाद फिर अस्पताल वापस लौट आते हैं तथा देर रात तक मरीजों की सेवा करते हैं।
मोहम्मद शरीफ ने शहर में ऐसी सभी लाशों का अंतिम संस्कार करने का उत्तरदायित्व भी लिया है जिनका कोई दावेदार नहीं है। उनके लिए मृतक के का धर्म का कोई मतलब नहीं है।
वे अपने इस सामाजिक कार्य के लिए लोगों से चन्दा इकट्ठा करते हैं। रमज़ान महीने में तो वह ज़कात जमा करने के लिए विशेष प्रयास करते हैं।
उत्तर प्रदेष के मोहम्मद शरीफ को गरीब तथा जरूरतमंद रोगियों की निःस्वार्थ सेवा के लिए गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की सामाजिक बहादुरी श्रेणी में पुरस्कृत किया जाता है।
गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार
क्षेत्र ः दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी ः सामाजिक बहादुरी
सामाजिक कार्यों का संक्षिप्त विवरण:
प्रो. अजय सिंह रावत सदा से न्याय के लिए लड़ाई करते रहे हैं। उन्होंने पर्यावरण सुरक्षा के उद्देश्य से भवन निर्माण, खनन और वन माफिया से भी टक्कर ली है।
शिक्षाविद तथा सामाजिक कार्यकर्ता, श्री रावत ने नैनीताल तथा नैनी झील को पर्यावरण की दृष्टि से बर्बाद होने से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
उन्होंने उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की, जिसके परिणामस्वरूप नैनीताल में बहुमंजिली इमारतें बनाने पर रोक लगा दी गई और 499 लोगों को इसके लिए दण्डित भी किया गया। प्रो. रावत के सतत प्रयासों के परिणामस्वरूप नैनी झील की सफाई की गई और ठण्डी सड़क को पैदल चलने वालों के मार्ग के रूप में तैयार किया गया। यही नहीं, निहाल नदी के पास गैर-कानूनी खनन कार्यों पर भी रोक लगाई गई।
वे अपने लेखों से पर्यावरण सुरक्षा के संबंध में लोगों में निरन्तर जागरूकता लाते रहे हैं। उन्हें वन इतिहास के क्षेत्र में दो राष्ट्रीय फैलोशिप भी प्रदान की गई हैं। श्री रावत अपने छात्रों, वन विभाग, पुलिस और जिला प्रशासन के सहयोग से वृक्षारोपण के क्षेत्र में भी आगे रहे हैं।
उत्तराखण्ड के प्रो. अजय सिंह रावत को पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनकी निष्ठा के लिए गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की सामाजिक बहादुरी श्रेणी में पुरस्कृत किया जाता है।
गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार
क्षेत्र ः दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी ः सामाजिक बहादुरी
सामाजिक कार्यों का संक्षिप्त विवरण:
इन्हें उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के रोठा गांव में मदर टेरेसा के नाम से जाना जाता है। मृदु भाषी, कुमारी नीरज ने एक ऐसे स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया है जहां न तो कोई अध्यापक था, न ही किसी प्रकार की सुविधा। इस स्कूल को लोग ”अनाथ स्कूल“ के तौर पर जानते थे।
वे गांव की उन गिनी-चुनी लड़कियों में से एक हैं जो कभी स्कूल गईं थीं। गांव वालों की लगातार मांग पर दो वर्ष पूर्व उनके गांव में एक स्कूल खोला गया लेकिन कोई अध्यापक वहां तक नहीं पहुंचा। स्कूल में ताला लगा रहा।
सुश्री नीरज ने कुछ कर गुजरने का फैसला किया। वे आगे बढ़ीं और ताला खोल स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया। इस कार्य में मदद के लिए न तो किसी गैर-सरकारी संगठन और न ही सरकार ने उनका हाथ थामा। फिर भी, नीरज अपने मिशन में आगे बढ़ती रहीं। वे हर रोज जल्दी स्कूल पहुंचती हैं और बच्चों के आने से पहले खुद साफ-सफाई भी करती हैं।
बच्चे खुश हैं। वे उन्हें खुशी से मदर टेरेसा कहते हैं। दरअसल, उन्होंने ही तो बच्चों को मदर टेरेसा के बारे में बताया है।
उत्तर प्रदेष की सुश्री नीरज को शिक्षा के प्रसार के लिए किए जा रहे कार्यों तथा उनकी निःस्वार्थ सेवा भावना के लिए गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की सामाजिक बहादुरी श्रेणी में विषेष पुरस्कार से पुरस्कृत किया जाता है।
गोडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड्स
क्षेत्र: दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी: सामाजिक बहादुरी
बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:
समाज सेवा ही दीपक कुमार का धर्म है। वे स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया में स्थायी कर्मचारी हैं और नियमित रूप से रक्त दान कर समाज की सेवा कर रहे हैं। श्री दीपक कुमार 31 अगस्त 1979 से 01 जनवरी 2011 तक 113 बार रक्त दान कर चुके हैं।
श्री दीपक 15 साल की उम्र से ही रक्त दान करते रहे हैं। कहा जाता है कि वे सबसे कम उम्र के रक्त दाता हैं।
वे कई संस्थाओं के सदस्य और लिमका बुक आॅफ रिकाॅर्ड्स, 2004 के राष्ट्रीय रिकाॅर्ड होल्डर भी हैं।
वे अपनी समाज सेवा के लिए कई पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं।
रक्तदान द्वारा मानव जाति के प्रति उनकी सेवाओं का सम्मान करते हुए दिल्ली के श्री दीपक कुमार को गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की सामाजिक बहादुरी श्रेणी में पुरस्कृत किया जाता है।
गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार
क्षेत्र ः दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी ः माइण्ड आॅफ स्टील
बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:
संतोष सिंह नेगी के जन्म से ही अंग छोटे तथा कमजोर थे। उनका जीवन संघर्षों से भरा है। उन्होंने स्वयं को किसी से कम नहीं माना और उच्च शिक्षा प्राप्त कर सम्मान से अपना जीवन व्यतीत किया।
वे 10 वर्ष के थे कि उन्हें अपने परिवार के मुखिया की भूमिका निभानी पड़ी। उनके पिता सेना की ड्यूटी में उनसे बहुत दूर थे और बीमार मां बिस्तर पर थी। उनका एक छोटा भाई भी था।
दो वर्ष पश्चात उनकी माता का देहान्त हो गया और पिता भी सेवानिवृत्त हो गए। नियमित आय का कोई साधन न था, अतः श्री नेगी ने अपने परिवार का पालन करने तथा अपनी तथा अपने भाई की शिक्षा पूरी करने के लिए ट्यूशन देना शुरू किया।
वे बारहवीं कक्षा में ही थे कि उन्होंने उत्तर प्रदेश राज्य इंजीनियरी परीक्षा पास की। लेकिन पैसे के अभाव में इंजीनियरी की शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके और बीएससी पाठ्यक्रम में प्रवेश पा लिया। इस दौरान वे अपने परिवार का पोषण करने के लिए ट्यूशन देते रहे।
उन्होंने भौतिकी शास्त्र में एमएससी और फिर बीएड की उपाधि प्राप्त की तथा आकाशवाणी, नजीबाबाद में कार्यक्रम देने लगे। वे राजीव गांधी स्नातकोत्तर छात्रवृत्ति के लिए भी चुने गए।
आज वे राॅयल इंटर काॅलेज, भैराकुण्ड में विज्ञान के प्रोफेसर हैं। उनके छात्रों के परीक्षा परिणाम उनकी योग्यता का प्रमाण है।
उनका भाई पीएचडी कर रहा है। श्री नेगी का सफर अभी समाप्त नहीं हुआ है। वे अर्थशास्त्र में एमए और एमबीए के पाठ्यक्रम में भाग ले रहे हैं तथा आईएएस की तैयारी कर रहे हैं।
उत्तराखण्ड के श्री संतोष सिंह नेगी को अपनी सभी शारीरिक कमजोरियों और कठिनाइयों के बावजूद शान से अपने पैरों पर खड़े होने के लिए गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों के अन्तर्गत माइण्ड आॅफ स्टील पुरस्कार प्रदान किया जाता है।
गोडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड्स
क्षेत्र: दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी: अमोदिनी पुरस्कार
बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:
गैर-सरकारी संगठन, पहल ने उत्तराखण्ड ने स्वयं सहायता समूह के गठन के क्षेत्र में अपार सफलता प्राप्त करने के साथ-साथ महिलाओं को आत्म-निर्भर बनाने के लिए छोटे-छोटे ऋणों की व्यवस्था करने में भी अपार सफलता प्राप्त की है।
1974-75 में गठित इस गैर-सरकारी संस्था ने शुरू में गदी बस्ती की 10 महिलाओं को 8000 रुपये के ऋण दिलवा कर अपना काम शुरू किया। समय बीतता गया और पहल सफलता की नई-नई सीढ़ीयाँ चढ़ती गयी। इस समय यह छोटी बचत के क्षेत्र में राज्य की सबसे बड़ी संस्था है।
इसके अन्तर्गत 537 स्वयं सेवा समूह काम कर रहे हैं और इसने 6000 महिलाओं को 5 करोड़ से भी अधिक के ऋण दिलवाए हैं।
पहल के अध्यक्ष श्री इस्लाम हुसैन ने यह संस्था पर्यावरण संबंधी मामलों के लिए शुरू की थी। 1994 में इसने महिलाओं के जीवन-यापन पर ध्यान देना शुरू किया और 25 महिलाओं को एचएमटी में नौकरी दिलाई गयी। यह कामयाबी से उत्साहित हो संस्था ने गन्दी बस्तियों की 10-10 महिलाओं के स्वयं सहायता समूह बनाने शुरू किए। इस समय पहल अपने स्वयं सेवा समूहों की संख्या बढ़ाकर अगले 2 सालों में 10,000 करने की योजना पर काम कर रही है।
महिलाआ सशक्तिकरण की दिशा में किए जा रहे कार्यों के लिए उत्तराखण्ड की गैर-सरकारी संस्था, पहल को गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों का अमोदिनी पुरस्कार प्रदान किया जाता है।
गोडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड्स
क्षेत्र: दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी: अमोदिनी विषेष पुरस्कार
बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:
गुलाबी गैंग उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में महिलाओं को न्याय दिलाने, घरेलू हिंसा से बचाने और समाज की कुरीतियों को दूर करने में महत्त्वपूर्ण योगदान कर रहा है।
गत अनेक वर्षों से यह गैर-सरकारी संस्था रूढ़ीवादी परम्पराओं, जातिवाद, महिला निरक्षरता, घरेलू हिंसा, बाल श्रम, बाल-विवाह व दहेह प्रथा के खिलाफ आवाज उठा रही है।
संस्था की स्थापना पुरुष उत्पीड़न से औरतों को बचाने के लिए की गयी थी। लेकिन अब यह संस्था घर-घर जा कर परिवारों से अपनी लड़कियों को स्कूल भेजने को कहती है और औरतों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
आज गुलाबी गैंग की हजारों महिला सदस्य है। संस्था के उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए अनेक पुरूष भी अभियान में शामिल हो गए हैं। बात चाहे सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की हो या वृद्ध महिलाओं को पेंशन की, गुलाबी गैंग को आप सदा आगे पायेंगे।
जहाँ भी किसी पुरूष द्वारा किसी महिला के शोषण की बात सामने आती है, गैंग के सदस्य सामने आकर समझाते-बुझाते हैं और जरूरत पड़ने पर पुरुष की जग हँसाई करने से भी नहीं चूकते।
महिला सशक्तिकरण तथा महिलाओं को अपने अधिकार दिलवाने के लिए चलाये जा रहे अभियान के लिए उत्तर प्रदेश की गैर-सरकारी संस्था, गुलाबी गैंग को गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों का विषेष अमोदिनी पुरस्कार प्रदान किया जाता है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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