प्रत्येक भारतीय बचपन से पढ़ता चला आ रहा है कि पांडव नैतिक स्तर पर विलक्षण थे तथा अन्याय के शिकार हुये थे, जबकि कौरव चालाक, छली एवं दुष्ट प्रवृतित के थे। मालनाड मंदिर, केरल की यात्रा करने पर असुर के राष्ट्रीय बेस्टसेलर लेखक आनंद नीलकांतन ने मंदिर के आराध्य देव को दुर्योधन के रुप में चिनिहत किया है, जो महाभारत का खलनायक था। इस आश्चर्यजनक खोज ने उन्हें हसितनापुर के परास्त युवराज एवं कौरव वंश के आख्यान को गहरार्इ से छिद्रान्वेषित करने के लिये प्रेरित किया। अजय ने पूर्वस्थापित दृषिटकोणों को चुनौती दी है तथा हमें एक बार पुन: सोचने के लिये विवश किया है। यह पुस्तक ज्ञान की शकित को रेखांकित करती है। यह पारंपरिक महाकाव्य में दुर्योधन (दिया गया नाम : सूयोधन) की छवि से इतर एक नवीन तथ्यपरकता की ओर संकेत करता है।
आधुनिक समय की चिंतन धारा से उदभूत प्रश्न :
इतिहास विजेताओं द्वारा लिखा गया है तथा जय (महाभारत) पांडवों के पक्ष में लिखी गयी कृति है। यह लेखन विजेताओं को लेकर पूर्वाग्रहों से ग्रसित है तथा कौरवों की पूरी तरह से नकारात्मक तस्वीर प्रस्तुत करता है। कुछ अन्तदर्ृषिटयां तथा आधुनिक मेधा से उदभूत चुनौतियां इस प्रकार के प्रश्नों एवं संशयों को जन्म देती हैं:
• आखिर क्यों एक पिता (एक ज्ञानी राजा) ने अपने बच्चों का नाम खलनायकों जैसा रखा? उदाहरणार्थ, दुर्योधन (धन एवं शकित का दुरुपयोग करने वाला), दुस्साशन (गलत-प्रशासक)? इनके नाम बदले गये प्रतीत होते हैं।
• सूयोधन (दुर्योधन का असली नाम) की वंशावली एक न्यायवादी राजा की थी, उसने अपने पुत्र के पैतृक अधिकार को अपने भार्इ के बच्चों को दे दिया था और उसकी मां ने र्इश्वर द्वारा प्रदत्त मनुष्यों के लिये सबसे बड़े वरदान (नेत्र ज्योति) को अपने पति की नेत्रहीनता को देखते हुये न्योछावर कर दिया था। इसकी तुलना में जहां तक पांडवों की बात है, तो ये सभी भार्इ ऐसे लोगों से जन्में थे, जो उनके पिता नहीं थे। उन्होंने एक पत्नी को साझा किया, जुए में अपनी पत्नी को दांव पर लगाया, इस प्रकार के कुछ प्रश्न अवश्य खड़े होते हैं।
‘अजय नाम क्यों?
इसके दो कारण हैं, प्रथम - जय (महाभारत) पांडवों के नजरिये से कही गयी कथा है, जबकि कहानी का दूसरा पक्ष कौरवों का है, जिन्हें हमने ‘अजय कहा है। इसके अतिरिक्त संस्कृत में ‘अजय का अर्थ अपराजेय है, जो कौरव वंश के लिये बिलकुल सटीक है, क्योंकि उन्होंने युद्ध के अंत तक आत्म-समर्पण नहीं किया और अंतिम सांस तक लड़ते रहे।
कुछ आकर्षक विवरण :
• इस पुस्तक के चार प्रमुख नायक दुर्योधन, कर्ण, अश्वत्थामा एवं एकलव्य हैं। इस कहानी में सभी चार महारथियों को समान महत्ता प्रदान की गयी है, लेकिन इस पूरी कथा में दुर्योधन बिना किसी खलनायकी प्रवृतित के मुख्य नायक बना रहा है।
• निर्वासन की अवधि में पांडवों की खोज में दुर्योधन सुदूर दक्षिण के जंगलों में
भटकते हुये मालनाड पहुंचा। थकान और प्यास की अवस्था में उसने जल का आग्रह किया। उसे एक अधेड़ अछूत महिला ने ताड़ी पीने के लिये दिया। उसने जल ग्रहण किया तथा उसे तथा उस स्थान को अपने आशीर्वचनो से अभिसिंचित किया।
• राजधर्म के अपने सिद्धान्त पर कायम रहते हुये, दुर्योधन ने इन पर्वतों पर शिव की आराधना प्रारंभ कर दी और वंचितों की सुरक्षा की प्रार्थना की। उसने देवस्थानम के निर्माण हेतु सैकड़ों एकड़ कृषि भूमि को दान स्वरुप प्रदान किया। आज भी इस संपतित पर दुर्योधन के नाम पर भूमि कर लिया जाता है।
• दुर्योधन ने यह भी सुनिशिचत किया कि गांधारी (उसकी मां), दुशाला (उसकी बहन), कर्ण (उसका मित्र), द्रोण (उसके गुरु) तथा अन्य को मंदिर के पास सम्मानजनक स्थान प्राप्त हो। कौरव जाति के सदस्य आज भी मंदिर के पुजारी हंै।
• पुस्तक यह भी अनुसंघानित करती है कि आखिर क्यों भीष्म, द्रोण जैसे महान आदर्शवादी एवं भगवान कृष्ण की संपूर्ण सेना दुर्योधन के पक्ष में लड़ी।
लेखक का कथन :
आनंद नीलकांतन : यह आधुनिक नजरिये के साथ हमारी पौराणिक कथा के पुन: अन्वेषण का एक प्रयास है तथा इसमें देखने वाली बात यह है कि इस कथा के वही घटनाक्रम कैसे लगते हैं, जब उन्हें पराजितों के पक्ष में देखा जाता है। क्या इन लोगों को पैदाइशी खलनायक के रूप में पेश किया जाता रहा है, क्योंकि ये अपने समय से बहुत आगे थे? पांडवों, कर्ण, द्रौपदी, कुंती तथा महाभारत के अन्य नाटकीय व्यकितत्वों के विषय में अनेक पुस्तकें हैं। लेकिन दुर्योधन के विषय में कौन बात करता है।
प्रकाशक का कथन : इस असाधारण पुस्तक के प्रकाशन का अवसर प्राप्त करने पर टिप्पणी करते हुये श्री स्वरूप नंदा, सीर्इओ, लीड स्टार्ट पबिलशिंग ने कहा, ”हम आनंद नीलकांतन के ‘अजय’ को प्रकाशित कर काफी प्रफुलिलत महसूस कर रहे हैं। अधिकांश संख्या में पुस्तक प्रेमियों तक अपनी पहुंच का विस्तार करने के संदर्भ में हम पहली बार इस पुस्तक को अखिल भारतीय स्तर पर 10 विभिन्न भाषाओं में लान्च कर रहे हैं। यह कार्य अंग्रेजी संस्करण के लान्च के 90 दिनों के बाद किया गया है। मैं व्यकितगत रूप से इस पुस्तक से अत्यंत प्रभावित हुआ हूं, क्योंकि इसने महाभारत को एक पूर्णत: नवीन नजरिया प्रदान किया है। यह एक ऐसी कहानी है, जिसे हम सभी बचपन से सुनते आ रहे हैं। ‘अजय’ को पढ़ना एक जानी पहचानी कथा को नये नजरिये से समझने का प्रयास है। यह मसितष्क को एक संभावनाओं के परिदृश्य में ले जाता है, जिसे हमने कभी भी स्वीकार नहीं किया।
पुस्तक के पिछले कवर का परिचय :
महाभारत, भारत के महान काव्य में शामिल है। लेकिन जहां जय पांडवों की कहानी है, जिसे कुरूक्षेत्र के विजेताओं के नजरिये से वर्णित किया गया है, वहीं अजय अपराजेय कौरवों की कहानी है, जिन्होंने आखिरी सांस तक मुकाबला किया।
भारत के अत्यंत शकितशाली साम्राज्य के âदय स्थल में एक क्रांति का उदभव हुआ। हसितनापुर के नम्र पितृसत्तात्मक पुरूष भीष्म अपने साम्राज्य की एकता को बरकरार रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सिंहासन पर धृतराष्ट्र आसीन हैं, जो एक नेत्रहीन शासक हैं तथा उनकी पत्नी गांधारी विदेशी मूल की हैं। सिंहासन के साये में कुंती विराजमान है, जो एक विधवा रानी है। जिनकी महत्वाकांक्षा है कि उनका प्रथम पुत्र शासक बने तथा सभी उसका सम्मान करें तथा इसकी अन्य पाश्र्व कथाओं में निम्न उल्लेखनीय हैं :
• शकितशाली दक्षिणी संघ के रहस्यमय गुरू परशुराम पर्वत से लेकर सागर तट तक अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहते हैं तथा अपनी इच्छा के सम्मुख सभी को नतमस्तक करना चाहते हैं।
• एक युवा निषाद एकलव्य जातिगत विडंबनाओं से उबर कर एक योद्धा बनना चाहता है।
• एक निर्धन सारथी का पुत्र कर्ण दक्षिण की यात्रा कर अपने समय के सबसे प्रतिषिठत गुरू से शिक्षा ग्रहण करता है तथा इस धरती का सबसे बड़ा धनुर्धर बनता है।
• यदुवंश के चमत्कारिक नेता बलराम समुद्र में एक समग्र नगर के निर्माण का स्वरूप देखते हैं और अपने लोगों को समृद्ध और गौरवशाली देखने के इच्छुक हैं।
• नागों के गुरिल्ला नेता तक्षक पददलितों द्वारा उदभूत एक क्रांति को प्रोत्साहित करते हैं, जो भारत के जंगलों में पूरी आशा के साथ प्रतीक्षारत हैं, जहां पर उत्तरजीविता एक मात्र धर्म है।
• भिक्षुक जर एवं उसका नेत्रहीन कुत्ता धर्म भारत के धूल-धूसरित पथ पर विचरण करते हैं तथा स्वयं से भव्य लोगों एवं घटनाओं के साक्षी बनते हैं, जिसमें पांडव और कौरव अपनी कठोर नियति से जूझ रहे होते हैं।
इस भयावह अराजकता के बीच हसितनापुर का उत्तराधिकारी राजकुमार सुयोधन पूरी दिव्यता के साथ अपने जन्मसिद्ध अधिकार का दावा करता है तथा अपने अंतरात्मा के अनुसार निर्णय लेता है। वह अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है अथवा ऐसा उसका विश्वास है। इसी दौरान हसितनापुर के राजमहल के गलियारों में एक विदेशी राजकुमार भारत को बर्बाद करने का षड़यंत्र रचता है। और पासा फेंका जाता है….
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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