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राष्ट्रपति पर बने आम सहमति - डा0ॅ दिलीप अग्निहोत्री

Posted on 09 May 2012 by admin

भारत में संसदीय प्रजातन्त्र है। इसमें राष्ट्राध्यक्ष और शासनाध्यक्ष की अलग व्यवस्था होती है। राष्ट्राध्यक्ष अर्थात् राष्ट्रपति को नाममात्र का प्रधान माना जाता है। शासनाध्यक्ष अर्थात प्रधानमंत्री वास्तविक प्रधान माना जाता है। राष्ट्रपति से मंत्रिमण्डल की सलाह पर काम करने की अपेक्षा की गयी । यह संसदीय व्यवस्था के संविधान की महत्वपूर्ण विशेषता होती है। भारतीय संविधान के वर्तमान प्रावधान के अनुसार राष्ट्रपति मंत्रिमण्डल की सलाह को एक बार पुर्नविचार हेतु वापस कर सकता है। दुबारा वह मंत्रिमण्डल की सलाह के अनुरूप काम करेगा लेकिन देश की सबसे बड़ी  पार्टी काग्रेस की समस्या यह नही है। वह  जानती है कि इस संबंध में राष्ट्रपति का अधिकार क्षेत्र सीमित है। सलाह या प्रस्ताव को एक बार लौटाने के अलावा वह कुछ नही कर सकता। ये बात अलग है कि राष्ट्रपति द्वारा पुनर्विचार का निर्देश नैतिक रूप से महत्वपूर्ण हो सकता हैं। मंत्रिमण्डल या संसद पर नैतिक दबाव बन सकता है। लेकिन इससे महत्वपूर्ण यह है कि सभी संबंधित पक्ष नैतिकता को कितना महत्व देते है। वर्तमान परिवेश में इसको लेकर अधिक परेशानी नही हो सकती। नैतिकता का पक्ष न रूकावट है ना समस्या । समस्या गठबन्धन दौर से संबंधित है। किसी एक दल या निर्धारित गठबन्धन को स्पष्ट बहुमत हासिल होने पर राष्ट्रपति के समक्ष विकल्प नही रह जाता । वह बहुमत प्राप्त दल या गठबन्धन के नेता को प्रधानमंत्री बनाने के किए आमंत्रित करेगा । यह संवैधनिक बध्यता है। किन्तु त्रिशुंक लोकसभा की स्थ्तिि में वह अपने विवेक का प्रयोग कर सकता हैं। इस समय सत्ता पक्ष के सामने यही बड़ी समस्या हैं। पूर्ण बहुमत की गारण्टी नही है। ऐसे मे कंाग्रेस अपने किसी शुभचिन्तक को इस पद पर पहुँचाने का प्रयास करेगी । लेकिन राष्ट्रपति चुनाव के निर्वाचक -मण्डल में अपेक्षित बहुमत का अभाव है। कंाग्रेस चाह कर भी अपनी दम पर ऐसा नही कर सकती। उसे संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन के अलावा अन्य पार्टियो का भी समर्थन हासिल करना होगा । अनेक महत्वपूर्ण क्षेत्रिय दल भी अन्ततः यही चाहेगे। इससे कई क्षेत्रिय दलों को संतुष्टि मिल सकती हैं। संसदीय शासन व्यवस्था का  तकाजा है कि सर्वाधिक सक्षम व्यक्ति प्रधानमंत्री बने । राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी अलग तरह की है लेकिन सोनिया गाँधी के नेतृत्व वाली कंाग्रेस अलग ढंग का प्रयोग करने को तत्पर दिखायी दे रही हैं। राष्ट्रपति पद के लिए प्रणव मुखर्जी का नाम अवश्य अप्रत्याशित कहा जायेगा। संप्रग सरकार मे प्रधानमंत्री से भी अधिक सक्रिय नेता को राष्ट्रपति बनाना विचित्र होगा । प्रणव को सरकार का संकटमोचक माना जाता रहा । मनमोहन सिंह का अपना कोई राजनीतिक आधार नही है। प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर होने के बावजूद उनकी निष्क्रियता ,उनका मौन ,चर्चा में आ जाता है। उनकी निर्णय क्षमता पर भी प्रश्न चिन्ह लगते रहें है। कैसी विडम्बना है  कि वह प्रधनमंत्री बने रहेगें । जबकि प्रणव मुखर्जी का नाम राष्ट्रपति पद के लिए चल रहा है। यदि काग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के मन मे यही चल रहा है, तब भविष्य मे उन्हे जवाबदेह होना पडे़गा । राष्ट्रपति बनने के प्रणव दलगत राजनीति से औपचारिक तौर पर ऊपर होगें। सरकार के समक्ष उत्पन्न होने वाली समस्याओं के समाधान में उनकी सक्रिय भूमिका का अभाव कंागे्रस को खटकेगा। मनमोहन ,चिदम्बरम ,एंटोनी आदि के लिए स्थ्तिि को सम्भालना कठिन होगा। देश के संवैधनिक इतिहास मे पहली बार केन्द्रीय मंत्रिमंडल के सर्वाधिक सक्रिय व प्रभावशाली मंत्री का नाम भावी राष्ट्रपति के रूप मे चला है। वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी का नाम चर्चा में सबसे आगे है। यह अनायास ही नही है। कांगे्रस हाईकमान को भी प्रणव के नाम पर अधिकतम सहमति बनने की उम्मीद है। वैसे कंाग्रेस या संप्रग अपने संख्याबल  के आधार पर उन्हे निर्वाचित नही कर सकता । इसलिए भीतर -बाहर अनेक प्रकार के प्रयास चल  रहे हैं। कंागे्रस का प्रयास इसी दिशा मे होगाा कि वह किसी ‘अपने‘ को राष्ट्रपति बनाये। कलाम ,हामिद ,कुरैशी के नाम भी दौड मे है, लेकिन कंागे्रस के लिए ये उस लिहाज से ‘अपने’ नही हो सकते। कुछ छेत्रीय दलो के नेताओ ने मुस्लिम उम्मीदवार का नाम अपने वोटबैंक समीकरण को ध्यान में रखकर चलाया । उनका मकसद यही तक सीमित है लेकिन वह एक हद से अधिक नही जा सकते। क्योकि वह जानते है कि ‘मोर्चा’ बनाकर भी वह अपनी पसन्द के व्यक्ति को राष्ट्रपति -भवन नही पहुचाँ सकते । ऐसा करने के लिए उन्हे भाजपा या राजग का सहयोग लेना होगा, जो भविष्य के समीकरण पर भारी पड़ेगा। ऐसे मे उन्हे संप्रग के साथ ही समझौते का रास्ता निकालना होगा। कलाम बेहतर विकल्प हो सकते थे । उन पर सहमति बनाई जा सकती है। लेकिन कंागे्रस का उनके साथ अनुभव ठीक नही रहा। वस्तुतः त्रिश्ंाकु लोकसभा की संभावना को ध्यान मे रखकर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का चयन अनुचित है। राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च संवैधनिक पद हैं इस पद पर पहुॅंचने के बाद वह दलगत सीमाओ से ऊपर हो जाता है। त्रिशंकु लोकसभा में भी उससे संविधान की भावना के अनुसार निर्णय लेंने की अपेक्षा की गयी है। ऐसा करके वह अपनें पद की गरिमा कायम रख सकता है। कांग्रेस को चहिए कि वह वर्तमान राजनीतिक स्थिति को ध्यान में रखकर आम सहमति से राष्ट्रपति के चयन का प्रयास करें।
केन्द्र में सक्षम सरकार चलाना और राष्ट्रपति पद हेतु सर्वमान्य चेहरे की तलाश कांग्रेस का दायित्व है। लेकिन अब तक की कवायद से लगता नहीं कि कांग्रेस दोंनो मसलों पर गम्भीर है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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नव संवत्सर का प्रथम दिवस ही वर्ष का राजा: डाॅ0 पाण्डेय

Posted on 29 March 2012 by admin

लखनऊ विश्वविवद्यालय के ज्योतिष विभाग के प्रोफेसर डा० बिपिन पाण्डेय ने एक छोटी सी भेट में नवरात्रि एवं नव संवत्सर के विषय मे कई आवश्यक जानकारियां दी । उन्होने बताया कि जब सूर्य, चन्द्रमा व लग्न मेष राशि में प्रवेश करते है तब नवंसवत्सर का प्रारंभ होता है ।
नवसंवत्सर के प्रथम दिन जो भी दिन रहता है उस वर्ष का राजा वही होता है । शुक्रवार को प्रतिपदा तिथि से इस संवत्सर का प्रारंभ हुआ है इसलिये इस वर्ष का राजा भी शुव्रहृ है । शुव्रहृाचार्य दैत्यों के गुरु थे और बीते युगों में शुव्रहृाचार्य के संरक्षण में ही दैत्य जाति देवताओं और ऋषियों पर अत्याचार करती थी । शुव्रहृ जल एवं विलासिता का प्रतीक है । इसे मुस्लिम एवं स्स्त्रत शक्ति का समर्थक भी माना जाता है।
शुव्रहृ के प्रभाव के कारण पूरे वर्ष कही अतिवृष्टि एवं कही कही अल्प वृष्टि की संभावना बनी रहेगी । भौतिकवाद का विकास होगा । श्री पाण्डेय ने नवरात्रि के विषय में बताते हुए कहा कि नौ दिनों के नवरात्र मे नौ शक्तियां समाहित होती है । नवरात्र नौ ग्रहो का आधार है इसमे मात्र शक्तियां मौजूद रहती है ।
नवरात्र के पहले दिन शैलपुत्री की पूजा होती है । शैलपुत्री नवजात कन्या को कहा जाता है । दूसरे दिन की आराधना ब्र्रहमचारिणी के रुप की होती है । ब्र्रहमचारिणी का मतलब लगभग ६-७ वर्ष की कन्या से होता है । तीसरे दिन की पूजा चंद्रघंटा देवी की पूजा की जाती है । चंद्रघंटा देवी को १२-१३ वर्ष की कन्या के रुप मे माना जाता है । नवरात्रि के चैथे कूष्मांडा देवी की आराधना की जाती है । यह देवी का वह रुप है जब उनकी आयु लगभग १६-१७ वर्ष की होती है । पांचवें दिन स्कंदमाता की आराधना भक्त करते है यह वह रुप है जब स्स्त्रत शक्ति मां बनने के लायक होती है ।
षष्टम दिन मां कात्यायनी की आराधना की जाती है । यह देवी जी का वह रुप है जब वह मां बनकर संर्पूण जगत का पालन करती है । नवरात्रि के सातवें दिन कालरात्रि देवी की आराधना की जाती है । कालरात्रि देवी इस संसार को मोह के अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का कार्य करती है । आठवां रुप मां गौरी का है जो सबका हमेशा कल्याण करती है । नवरात्रि के नवें दिन मां सिद्धदात्री की आराधना की जाती है जो संपूर्ण जगत को सब प्र्रकार से तृप्ति दिलाने में समर्थ है ।
नव संवत्सर का प्रारंभ नवरात्रि से होता है जिसमें संपूर्ण जगत ९ दिन तक पूजा पाठ व आराधना कर उर्जा व शक्ति का संचय करता है । ज्योतिषी श्री पाण्डेय ने कहा कि कलश स्थापना में बोये हुए जौ के अर्क का यदि पान किया जाय तो वह कई प्रकार की बीमारियों से छुटकारा दिलाता है । उन्होने बताया कि पंचमी तिथि दो दिन की होने के कारण इस बार का नवरात्रि दस दिन का माना गया है जिसमे आगामी १ अपै्रल को नवमी तिथि है जिसमें हवन का मुहूर्त सुबह ९ बजकर २१ मिनट तक एवं सूर्यास्त के समय ज्यादा उपयुक्त है ।
दशमी तिथि सोमवार को पारायण हल्का भोजन के साथ करें । ज्योतिषी श्री पाण्डेय ने हवन एवं पूजन के बाद की राख एवं अन्य पदार्थो को उद्यान या किसी पेड़ के नीचे गाड़ देने की सलाह दी है ।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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जुबान व काम पर नियंत्रण चाहती है आवाम

Posted on 26 February 2012 by admin

लोकतंत्र मंे जनता ही असली मालिक होती है। यह बात नेता व अफसर जानते हैं लेकिन मानते नहीं है। देश के सबसे बड़े प्रान्त उ0प्र0 में विधानसभा चुनाव हो रहें है। सभी दलों ने अपनी पूरी ताकत चुनाव मंे झोंकी हुई है। भाजपा और कांग्रेस दो राष्ट्रीय पार्टियां तथा सपा और बसपा देा क्षेत्रीय दल इस बार जनता को यह बताने मंे दिन रात एक किए हुऐ हैं कि उनकी दाल में कुछ काला नहीं हैं। हमने ऐसा किया, हम ऐसा करेंगे बस हमें मौका तो दीजिए। आम आदमी उनकी जुबान पर यकीन करने को तैयार नहीं है। जनता पूछना चाहती है कि यदि तुम्हारी दाल में कुछ भी नहीं है काला तो आम आदमी का मंहगाई से कैसे निकला दिवाला। चरम पर कमर तोड़ मंहगाई की मार, भयंकर भ्रष्टाचार, नौजवान बेरोजगार, बहन बेटियों से होता बलात्कार, गरीब को रोज पीटता थानेदार, विश्व में सर्वाधिक बच्चे भारत में कुपोषण के शिकार, सर्वत्र मचा हाहाकार, यह कैसा राजनीतिज्ञों का जनता से प्यार। लुटता-पिटता व आत्महत्या को नित मजबूर होता किसान, रातो रात माला माल होते अफसर नेता यह कैसा कमाल जो जनता को करते रहे है हलाल, नही करते और न ही करने देते मलाल, बस यही है आज का जनताजनार्दन का सवाल। इन सवालों से बचते घूम रहे है पार्टियों के युवराज चाहतें है बस राज।
सभी जानते है कि जीभ में हड्डी नही होती लेकिन शरीर की सम्पूर्ण हड्डियां तुड़वाने की ताकत उसमें होती है। जीभ ही खाती है और मार तथा जेल की सलाखों के पीछे भी पहुंचाती है। भोजन व जेल का मजा भी चखाती है।
भारतीय दर्शन ने विश्व का मार्गदर्शन किया है। सर्वे भवन्तु सुखिना, सर्वे सन्तु निराम्या का महामंत्र हमने ही दुनिया को दिया है। सत्य बोलना, कम बोलना, उसको तोलना यही है धर्म सत्ता व परम सत्ता का संदेश।
त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोंत्तम भगवान श्रीराम जब लीला करते-करते चित्रकूट पहुॅचे तो उन्होने हर हाल में कैसे सम्मानपूर्वक व प्रिय होकर जिया जाता है उसकी शिक्षा जनमानस को देने हेतु लक्ष्मण से कहा कि हे लक्ष्मण हम महलांे में रहना तो जानते है क्योंकि अयोध्यापति राजा दशरथ के बेटे है महलों मंे पैदा हुए लेकिन अब वनवास में 14 वर्ष रहना है तो यहां के तौर तरीके भी आने चाहिए। उन्होने लक्ष्मण से कहा कि करुणावतार (भगवान शिव)
उल्लेखनीय है कि करुणा पे्रम से भी आगे का पग है।
वन में रहते है अतः हमें उनसे मार्गदर्शन लेना चाहिए। लक्ष्मण जी ने पूछा भईया भोेले बाबा इस समय कहां मिलेंगे? प्रभु श्रीराम ने कहा कि अनुज तुम इस पहाड़ के पार उस पहाड़ पर जाओ वही भगवान शिव मिलेंगे उनसे कहना और पूछना कि हम 14 वर्ष तक वन में कैसे रहे। आज्ञानुसार लक्ष्मण जी उस पहाड़ पर पहुॅचे। पूरा दिन पहाड़ पर भगवान शिव को खोजते रहे लेकिन भगवान शिव नही मिलें। लक्ष्मण जी लौटनें लगे तेा उनके मन में विचार आया कि भगवान श्री राम ने कहा शिव यहां है तो राम का वचन सत्य होता है। अतः मुझे पुनः खोजना होगा त्रिपुरारी को रात होने को थी। उनको बाबा विश्वनाथ नही मिले लक्ष्मण जी लौट रहे थे तभी एक साधु दिखायी पड़ा वह कुछ अजीब सी मुद्रा में खड़ा थां उसने एक हाथ से अपनी जुबान पकड़ रखी थी और दूसरे हाथ से अपने लगोंट को पकड़े था। लक्ष्मण जी ने उस साधु को कुछ मानसिक पीडि़त सा समझा और वापस भगवान श्री राम के पास चित्रकूट पर्वत पर आ गए। श्री राम ने पूछा भईया लक्ष्मण क्या कहा भालेनाथ ने? लक्ष्मण जी ने पूरा दिन खोजने पर भी भोलेबाबा के न मिल पाने की बात बतायी। प्रभु श्री राम ने पूछा कि वो किसी और रुप में भी हो सकते है क्या तुम्हे कोई और नही मिला वहा कोई तो मिला अथवा दिखा होगा। तब लक्ष्मण जी ने कहा वापसी में एक साधु अजीब सी मुद्रा में दिखायी पड़ा मैने उन्हे आवाज भी दी परन्तु वह कुछ नही बोले। उसने अपने एक हाथ से अपनी जुबान पकड़े हुई थी और दूसरे हाथ से अपनी लंगोट को कसके पकड़े था। ’’जिनको प्राप्त करने के लिए योगीजन योग करते है तपस्वी तप करते है, हम संसारी लोग भी पूजापाठ का दिखावा करते हैं। उनके विषय में विधेयराज राजा जनक ने क्या प्रार्थना की वह  श्री रामचरितमानस में बाबा गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है ’’कैहि विधि करहु राम तुम्हारी प्रसंशा- तुम मुनी महेश मन मानस हंसा-योगी करही योग जेहि लागी- कोह मोह ममता मद त्यागी- मनसहित जेहि जान न वाणी  तर्क न सकही सकल अनुमानी।’’ अर्थात क्रोध, मोह, ममता और मद छोड़कर योगी जिनके लिए योग करते हैं। हे राम मै किस प्रकार तुम्हारी प्रसंशा करु तुम तो मुनियों और महादेव के मन रुपी मानसरोवर के हंस हो। यहंा बाबा ने योगी की परिभाषा बतलाई हैं। इन पंक्तियेां के माध्यम से मुनियों तथा महादेव का मन मानसरोवर होता है उसी में राम नाम रुपी हंस रहता है।
ब्रह्म हो अकथनीय हो, सचिदानंद हो निगुर्ण हो निराकार हो मन सहित वाणी भी जिसे जान नही सकती वहां कोई तर्क नही चलता केवल और केवल अनुमान ही होता है। आप तीनो कालों में सदा एक रस रहते है। प्रभु श्रीराम मुस्कुराए और बोले हे लक्ष्मण वही तो भगवान शंकर थे और उन्होने इशारे से हमें बताया कि जुबान पर और अपने काम पर जो नियंत्रण रखेगा वह वन ही नही कही भी रहने योग्य है रह सकता हैं। सनातन भारतीय संस्कृति का यह महामंत्र इन अफसरों और नेताओं को समझ नही पड़ता तभी तो ये आज राजा से रंक, घर से बेघर, सुहागिन से विधवा आदि-आदि बने है।

कांग्रेस के नेताआंे व मंत्रियों की जुबान पर जरा गौर फरमाइये तो इनकी बदजुबानी से चुनाव आयोग खफा है। चुनाव आयोग उनके बयानो को आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन मानता है दो वरिष्ठ केन्द्रीय मंत्रियों के बाद कांग्रेस के युवराज भी आचार संहिता की धज्जियां उड़ाने में पीछे नहीं रहे। चाहे बात भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए सशक्त लोकपाल की मांग कर रहे राष्ट्र संत अन्ना हजारे के आंदोलन के समय की हो, आम जनता का पैसा लूटकर विदेशांे में जमा करने की बात करने वाले बाबा रामदेव की हो, चुनाव शांतिपूर्ण-निष्पक्ष व भयमुक्त हो इस कोशिश में सफल होते चुनाव आयोग की हो कांग्रेस के नेताओं व मंत्रियों का अहंकार सर चढ़कर बोल रहा है। एक शब्द भी वो मंहगाई व कालेधन पर सुनने को तैयार नही है। याद दिलाते चले कांग्रेस प्रवक्ता ने अन्ना हजारे को सेना का भगोड़ा तक कह डाला था जब बात बिगड़ी तो माफी मांगने लगे यही हाल इनके राष्ट्रीय महासचिव व उत्तर प्रदेश के प्रभारी का है कब क्या कह दे फिर पलट जाए आम बात है। भारत की आवाम संवैधानिक संस्थाओं पर आक्रमण करने की इस मानसिकता से सन्न है खफा है। जनता ने कभी किसी को माफ नहीं किया है बल्कि सही समय पर साफ किया है। इस बार भारत का आवाम जुबान पर लगाम चाहता है। रही काम पर नियंत्रण की बात तो ये तो भोगवादियों के चाटुकार हैं इनके लिए तो ये सोचना भी आसमान के तारे गिनने जैसा होगा। काम पर नियंत्रण की बात तो बिरलों के नसीब में ही होती है।
परवाज साहब की गजल की दो लाइन तथा शेर के साथ आज के लेख की बात यहीं समाप्त।
आएगा लेके बाप दवा-भूख की जरुर
बैठा है इंतजार में बच्चा फकीर का
अपने ही आॅंसुओं से भरा जिसको शाम तक
क्यों लोग छीनते हैं, वो कासा फकीर का,

शेर
मेरे देश में जो असरदार घर है
अगर सच कहुं तो गुनाहगार घर हैं।

नरेन्द्र सिंह राणा
लेखक भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी हैं।
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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गरीबों में नहीं अपने गिरेबान में झांको - नरेन्द्र सिंह राणा

Posted on 16 January 2012 by admin

पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव हो रहे हैं। नेताओं को अपनी वैतरणी पार करने के लिए जनता के बीच जाना पड़ रहा है। चुनावी मौसम में नेताओं के बीच गरीबों का हमदर्द बनने की होड़ लग गई है। उनका हितेषी साबित करने के लिए इन्होंने आसमान सर पर उठा लिया है। रोड शो और यात्राओं का दौर चरम पर है। यात्राओं और रोड सो पर करोड़ों का खर्च होता है लम्बे-लम्बे विज्ञापन देकर कार्यक्रम आयोजित करने के लिए पैसे की बर्बादी का सिलसिला जारी है। यदि मान भी लें कि इन कार्यक्रमों से गरीब की गरीबी खत्म होती है तो अब तक यह घटने के बजाए बढ़ी क्यों है यह यक्ष प्रश्न है इसका उत्तर धर्मराज की तरह है कौन नेता देना चाहेगा। एक काम जरूर हुआ है वह कि गरीब की गरीबी बेशक बढ़ी है लेकिन नेताओं की आमदनी जरूर बढ़ी है। गरीबी को मिटाने की कस्में खाई जा रही हैं यही नेता अगर रोड सो में खर्च हो रहे धन को गरीबों में बंटवा देते तो उनको उसका कुछ फायदा भी मिलता और कुछ गरीबों की गरीबी जरूर दूर हो जाती लेकिन नेता जानते हैं कि अमीर कितने वोट करते हैं। देश की आजादी से लेकर आज तक देश में सबसे लम्बे समय तक कांगे्रस पार्टी की हुकुमत रही, गरीबी मिटाने की जो कस्में जवाहर लाल नेहरू ने प्रधानमंत्री बनने पर खाई थी वही इन्दिरा गांधी ने, राजीव गांधी ने और आज कांगे्रस के युवराज राहुल गांधी खा रहे हैं। विदेशों में जमा सैकड़ों लाख काला धन किसका है इस पर कांगे्रस पार्टी मौन है। विकिलिक्स की माने तो काले धन में इस परिवार का बड़ा हिस्सा है। राजा का राज चल रहा है और प्रजा बैचारी को उनके रहमो कर्मो पर  ही रहना व जीना पड़ रहा है। आकड़ों की मानें तो जब गरीबी कम करने का तरीका सही नहीं है तो इसका जारी रखने का मतलब क्या है। इसका बदलने का श्रीगणेश कब होगा यह प्रश्न भी मंुह बाए खड़ा है।  गरीब और गरीब बढ़ने के इस प्रश्न का जवाब जब नेताओं से पूछा जाता है तो सत्तारूढ़ दल का जवाब और विपक्ष का जवाब गोल-मोल ही होता है। दोनों को एक दूसरे को आइना दिखाने का काम करते हैं तथा जिम्मेदारी से मुंह चुराने की बात करते हैं। जिसके परिणामस्वरूप जनता की नजरों में नेताओं की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगे हैं और लग रहे हैं। ऐसा भी नहीं इस सच्चाई से पार्टिया वाकिफ न हों लेकिन आफ दि रिकार्ड पूछने पर नेता कहते हैं यदि समस्याएं खत्म हो जाएंगी तो फिर उनकी दुकान कैसे चलेगी। उनके हाथ में ही सब कुछ नहीं है। गरीबी, अमीरी, सुख-दुख यह सब भाग्य का खेल होता है तब जनता के बीच में जाकर छोटी बड़ी सभांए करके रोड सो व यात्राएं निकालकर यही सच क्यों नही बोलते। जनता तो सच्चाई सुनना चाहती है लेकिन कैमरे की और कमरे की सच्चाई में नेता अन्तर क्यों करता है। सच बताओ तब देखो जनता आपकी बात पर क्या करती है यानि जब चुनाव आए तो गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार व आम आदमी की सुरक्षा पर जम कर बोलो और सत्ता में आने पर मंुह देखकर बोलो। सत्तारूढ़ दल का नेता कहता है कि देखते हैं कि कुछ करते हैं, पत्रकार कहता है अभी तक कुछ नहीं हुआ, तब कर तो रहे हैं और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भाषा में कहें तो उनके पास कोई जादू की छड़ी तो है नहीं कि रातो-रात सब ठीक कर दें। वित्त मंत्री की मानें तो वैश्विक स्तर पर हो रही उथल-पुथल इसके लिए जिम्मेदार है। खाद्य मंत्री महोदय कहते हैं कि लोग ज्यादा खाने लगे हैं, महंगाई तो बढ़ेगी ही यानि जितने मुंह उतनी बात। इसके लिए जितने जिम्मेदार नेता हैं उससे अधिक उनका कुप्रबन्धन तथा वे सड़ी गली नीतियाॅं जिम्मेदार हैं। जिनमें भ्रष्टाचार की बु आती है और आज भी यथावत लागू है। इन नीतियों को बदलना होगा  उनके समर्थक नेताओं को बदलना होगा। लेकिन इसके लिए तैयार कौन है। लम्बे समय तक देश की सत्ता में रहने वाली कांगे्रस पार्टी न तो नीति बदलने का तैयार है, न ही नेता बदलने का तैयार है। जब यदाकदा कलाम साहब जैसे राष्ट्रपति के सामने आना पड़े तो किसी कठपुतली को नेता बनाकर इशारों पर नचाते रहो। वास्तव में यह सच्चाई है कि गांधी परिवार ने कभी गरीबी देखी ही नहीं, कैसी होती है गरीबी या गरीब कैसे रहता है उनका लगता है कि इसका देखना चाहिए। जिससे लोगों को उनके हितेषी होने का पता चले तो युवराज का गरीबों के घरों मंे जाने का कार्यक्रम बनता है वह भी देश की राजधानी दिल्ली में और शुरू होता है गरीबों के घर जाकर उनकी दाल-रोटी खाना। हम सभी यह भली-भांति जानते हैं कि किसी गरीब के घर जाने से तो गरीबी मिटती नहीं दिखती जरूर है। गरीबो तो जब भी मिटेगी दिल्ली से ही मिटेगी। इस काम को जब कभी किसी अटल बिहारी बाजपेई व अब्दुल कलाम जैसे देशभक्त नेताओं ने करना चाहा, इस दुखती रग पर हाथ रखा तो उनमें से एक को तो समय ही कम मिला दूसरे को कांगे्रस अध्यक्षा ने जिद करके दुबारा राष्ट्रपति ही नहीं बनने दिया। गरीब की गरीबी का मजाक उड़ाना इनका रास जो आता है। विज्ञापन देने से गरीब के घर जाने से यदि गरीबी खत्म हो जाती तो इसके लिए और कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ती। 1977 में जनता पार्टी ने महंगाई कम की थी, एनडीए की सरकार ने भी महंगाई को अपने छःवर्षो के कार्यकाल में बढ़ने नहीं दिया महंगाई को बांधे रखने में अटल बिहारी बाजपेई कामयाब रहे। बाजपेई जी राजनीति में एक गरीब परिवार से आए थे उनको उनके दुख दर्द का अहसास था इसलिए उन्हांेंने इनके हितों की चिन्ता की। ऐसा भी नहीं कि सपा व बसपा के मुखिया गरीब परिवारों से राजनीति में नहीं आए परन्तु उनमें और अटल बिहारी बाजपेई में जमीन आसमान जेैसा अन्तर है। अटल जी को कभी अपनी आय के स्रोत नहीं बताने पड़े जबकि इन नेताओं द्वारा  बताए गए आय के स्रोतों की सी0बी0आई0 जांच कर रही है जिसका लाभ कांगे्रस भी बखूबी ले रही है तभी तो आज आम आदमी की जुबान में सी0बी0आई0 कांगे्रस ब्यूरों आफ इन्वेस्टीगेंशन कही जाने लगी है। अब चुनाव के समय इन दलों को लगता है कि चिट्ठी लिखने से गरीबी दूर होगी। राज्य सरकार केन्द्र सरकार को जिम्मेदार ठहराती है और केन्द्र सरकार प्रदेश सरकार को पत्राचार कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री करती है। देश में चालीस करोड़ लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवन जीने के लिए मजबूर हैं अनाज रखने के गोदाम कम पड़ रहे हैं, फलस्वरूप अनाज सड़ रहा है लेकिन गरीब भूखों मर रहा है। किसान कर्ज में डूबा है, आत्महत्या करने को मजबूर है, नौजवान रोजगार के पर्याप्त अवसर न होने के कारण हताश है, निराश है, इलाज के लिए अस्पताल नहीं हैं, जहां हैं वहंा डाक्टर नहीं हैं यदि हैं तो पर्याप्त दवाएं नहंीं हैं, दवाएं हैं तो नकली हैं। शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा, सड़क, बिजली, पानी, घर जैसी मूलभूत सुविधाएं जनता को सरकार नहीं दे पा रही है। देश व प्रदेश के मंत्री, सांसद-विधायक आदि भ्रष्टाचार आरोपों में जेल में अटे पड़े हैं। जहां इतने घोटाले हो रहे हों वहां कैसे सुधार होगा लेकिन आज संचार क्रान्ति का युग आ गया है जनता मिनटों में हकीकत जान जाती है अब घडि़याली आॅंसू बहाना बंद करो वरना अपना अलग रास्ता देखा। गरीबी दूर करने की बात करने वाले नेताओं के लिए किसी शायर का यह शेर कुछ यूं कहता है कि-

सियासी लोग यदि नदी के किनारे बस जाते
तो प्यासे होंठ एक बूंद पानी को तरस जाते

नरेन्द्र सिंह राणा
लेखक- उ0प्र0 भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी हैं

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भाजपा की कार्यसमिति बैठक में नरेन्द्र मोदी

Posted on 12 October 2011 by admin

भाजपा राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में अनुपस्थित रहकर नरेन्द्र मोदी इतने चर्चित हुए कि मंहगाई, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पीछे छूट गए। इसी के साथ प्रधानमंत्री पद के दावेदारों समय पूर्व जोर आजमाइश भी चर्चित हुई।
नरेन्द्र मोदी ने तीन दिन के उपवास में जो प्राप्त किया, उसे दो दिन मे गवाँ दिया। उपवास के माध्यम से वह उदारवादी छवि प्रस्तुत करना चाहते थे। इसमें उन्हें व्यापक समर्थन मिला। किन्तु अपनी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति मे ना जाना, और आई0पी0एस0 अधिकारी संजय भट्ट का जेल जाना उनकी उस छवि के प्रतिकूल साबित हुआ। नरेन्द्र मोदी के मन में क्या था, या ये प्रकरण महज संयोग थे, इस बारे में वही जानते होंगे। लेकिन इस माध्यम से असहिष्णुता का ही संदेश गया। नरेन्द्र इसको रोक नहीं सके।
इसमें कोई संदेह नहीं कि नरेन्द्र मोदी देश के सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री हैं। विकास के सबंध में उनकी सोच, कार्यप्रणाली बेजोड़ है। उन्होंने आर्थिक प्रगति के कीर्तिमान स्थापित किए। 2002 के दंगो के लिए उनकी आलोचना होती है। उनके विरोधियों के पास इसके अलावा दूसरा कोई मुद्दा नहीं है। वह पिछले करीब एक दशक से इसी मुद्दे के आधार पर नरेन्द्र मोदी को निशाना बनाते रहे हैं। जबकि प्रशासनिक द्रष्टि से गुजरात के मुख्यमंत्री बहुत आगे निकल गये हैं। इस एक दशक मे उन्होंने राजधर्म का बाखूबी निर्वाह किया है। आर्थिक विकास मे मजहबी भेदभाव नहीं है। विकास यात्रा में सभी वर्ग-सम्रदाय के लोग समान रुप से लाभान्वित हैं। इस बात से कोई इन्कार नही कर सकता। उनके विरोधी भी इस मामले पर बोलने से बचते हैं। वह जानते हैं कि गुजरात के विकास पर कोई टिप्पणी करना राजनीतिक रुप से आत्मघाती होगा। इस मुद्दे पर कुछ भी बोलना मोदी की प्रशंसा मानी जाती है। जम्मू-कश्मीर की कट्टरपंथी नेता महबूबा मुफ्ती का उदाहरण सामने है। उन्होंने एक मुस्मिल उद्योगपति को गुजरात मे केवल आधे घण्टे की एक बैठक के बाद उद्योग स्थापना की अनुमति, सुविधाएँ मिल जाने की घटना सुनाई थी। यदि महबूबा को पता होता कि यह नरेन्द्र की तारीफ बन जायेगी, तो वह यह ‘गुनाह‘ न करती।
संजीव भट्ट प्रकरण में गुजरात सरकार कह सकती है कि कानून अपना काम कर रहा है, मुख्यमंत्री का इस घटना से कोई लेना-देना नहीं है। किन्तु जनसामान्य में पहुँच रहे संदेश को समझना चाहिए। यह गुजरात शासन की दलीलों से मेल नहीं खाता। संजीव भट्ट सीधे रुप से नरेन्द्र मोदी के विरोध मे थे। उन्होंने 2002 के दंगों के दौरान नरेन्द्र मोदी की भूमिका पर सवाल उठाया था। भट्ट ने न्यायपालिका मे हलफनामा दायर किया था। इसमे कहा गया कि 2002 में मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पुलिस अधिकारियों को हिन्दुओं के प्रति उदारता दिखाने के निर्देष दिए थे। इसके अनुसार दंगों के दौरान हिन्दुओं को को अपनी गुस्सा निकालने की छूट देने को कहा गया था। संजीव भट्ट जिम्मेदार पुलिस अधिकारी रहे हैं। वह वर्षाें तक खामोश रहे। यदि उनका आरोप सही है, तब भी करीब आठ-नौ वर्ष बाद उन्होंने हलफनाम क्यों दिया। वह आई0पी0एस0 अधिकारी हैं। किसी अनुचित, अवैधानिक, असंवैधानिक निर्देश को अस्वीकार कर सकते थे। समय रहते उसका विरोध कर सकते थे। न्यायपालिका की शरण ले सकते थे। लेकिन यह काम उन्होंने वर्षाें बाद किया। वह कह सकते हैं कि इतने लम्बे समय के बाद उन्हे ज्ञान प्राप्त हुआ, सच कहने का साहस जुटाया आदि। लेकिन रहस्य कम नहीं है।
इस प्रकार संजीव भट्ट का सीधा आरोप मुख्यमंत्री पर था। ऐसे में एक सिपाही के हलफनामे से संजीव भट्ट की गिरफ्तारी भी रहस्यपूर्ण लगनी थी। संदेश यही गया कि नरेन्द्र मोदी अपने विरोधियों के प्रति असहिष्णुता की भावना रखते हैं। यह सिपाही भी लम्बे समय तक खामोश रहा। एकाएक इसे भी ज्ञान प्राप्त हुआ, सत्य बोलने का साहस जुटाया, कहा कि संजीव भट्ट ने दबाव डालकर उससे मुख्यमंत्री विरोधी हलफनामे में हस्ताक्षर कराए थे। सिपाही ने भी समय पर विरोध क्यों नहीं किया। इतने समय बाद उसका हलफनामा भी रहस्यपूर्ण है। इसने नरेन्द्र मोदी के विरोधियों को मौका दिया। जिन्हें उनके खिलाफ मुद्दा नहीं मिल रहा था, वह भी विरोधियों के प्रति अहिष्णुता दिखाने का आरोप लाग रहे हैं। इस घटना का दूरगामी परिणाम हो सकता है। जो राष्ट्रीय स्तर पर नरेन्द्र मोदी के लिए असुविधा का कारण बनेगा।
इस प्रकार राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक मे ना जाकर नरेन्द्र मोदी ने जाने-अनजाने अफवाहों को भरपूर मौका दिया। कार्य समिति ऐसे समय पर हो रही थी, जब केन्द्र की संप्रग सरकार का अन्तर्विरोध सतह पर था। टू-जी घोटाले में चिदम्बरम के पत्र से उजागर हुई थी। भ्रष्टाचार, मंहगाई आदि सभी मुद्दे पीछे रह गए। मोदी की अनुपस्थिति चर्चायें आ गई। इसी के साथ भाजपा में प्रधानमंत्री पद के दावेदारों का ‘लठ्म-लट्ठा‘ सामने आ गया। भाजपा नरेन्द्र मोदी की अनुपस्थिति का तर्कसंगत जवाब नहीं दे सकी। कहा गया कि नवरात्रि व्रत के कारण वह शामिल नहीं हुए। देश के करोड़ो सुविधा-साधन विहीन हिन्दू नवरात्रि व्रत रखते हैं। इन्हें शुद्ध कुट्टू का आटा भी नहीं मिलता। वह व्रत के साथ ही अपनी जीविका पालन मे लगे रहते हैं। मुख्यमंत्री के साथ तो पूरी ‘पाक-साफ फलाहारी रसोई‘ चल सकती है। नरेन्द्र मोदी के सामने व्रत समस्या कैसे बन सकता है। ऐसे में यह क्यों ना माना जाए कि नरेन्द्र मोदी भी वही चाहते थे, जो संदेश सार्वजनिक हुआ। चर्चा हुई कि नरेन्द्र मोदी नाराज हैं। वह लालकृष्ण आडवानी की रथयात्रा को प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के रुप मे मानते हैं। इसलिए कार्यसमिति में नहीं आए।
इस प्रकार की चर्चा से भाजपा का नुकसान हुआ है। लोकसभा चुनाव 2014 मे होने हैं। सरकार के गिरने, मध्यावधि चुनाव की फिलहाल कोई संभावना नहीं है। अभी से भाजपा के शीर्ष नेताओं मे कलह, महत्वाकांक्षा, प्रधानमंत्री पद की दावेदारी की जंग अनुचित कही जायेगी। इससे ‘पहले राष्ट्र, फिर पार्टी और अन्त मे मैं‘ का दावा खारिज होता है। भाजपा नेताओं को ऐसी चर्चाओं से बचने के लिए कारगर प्रयास करने होंगे। तभी वह ‘औरों से अलग‘ दिखाइ्र देंगे।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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महान गायक ही नहीं, नेक इंसान भी थे मोहम्मद रफी

Posted on 18 September 2011 by admin

untitled-1लखनऊ के युवा पत्रकार चैधरी ज़िया इमाम ने महामहिम उपराष्ट्रपति श्री हामिद अंसारी को महान गायक मोहम्मद रफी के जीवन पर लिखी किताब ‘‘पयम्बर-ए-मौसीकीः मोहम्मद रफी’’ की एक प्रति भेंट की। इस अवसर पर उपराश्ट्रपति श्री हामिद अंसारी ने उनकी नई पुस्तक प्रकाषित होने पर षुभकामनाएं दीं।
चैधरी जिया इमाम द्वारा लिखित पुस्तक ‘‘मोहम्मद रफीः पयम्बर-ए-मौसीकी’’ जिसका प्रकाषन हार्पर कोलिंस हिन्दी ने हाल ही में किया है कि एक प्रति उपराश्ट्रपति श्री हामिद अंसारी को उपराश्ट्रपति भवन,नई दिल्ली में भेंट की इससे पहले इनकी एक और पुस्तक ‘‘नौषाद: जर्रा जो आफताब बना’’ प्रकाषित हो चुकी है। जिसका प्रकाषन पेंगुईन बुक्स द्वारा किया गया था।
‘‘पयम्बर-ए-मौसीकी’’ महान गायक मोहम्मद रफी के जीवन पर प्रकाष डालती है। इस किताब में खुलासा किया गया है कि मोहम्मद रफी का सिर्फ गला ही नहीं अच्छा था बल्कि उनका दिल उससे  भी कहीं अच्छा था। इसी लिये वह देषभक्ति तथा धार्मिक गीतों को गाने की कोई फीस चार्ज नहीं करते थे। वह नए कलाकारों को जहाँ प्रोत्साहित करते थे वहीं स्ट्रगलरों की पैसे से भी हर संभव मदद किया करते थे।
दो सौ बत्तीस पृष्ठों की इस किताब में रफी साहब का बचपन, मौसीकी से उनका लगाव, लखनऊ से उनका रिष्ता, मुम्बई में उनकी जेद्दोजेहद, उनकी पसंद, नापसंद, उनके कुछ सदा बहार नगमों के बनने की दिलचस्प दास्तान को भी इस किताब में षामिल किया गया है। इस किताब में इसके अलावा रफी साहब के मुतालिक महान संगीतकार नौषाद अली, स्वर कोकिला लता मंगेषकर, संगीतकार खय्याम, संगीतकार आनन्दजी (कल्याण जी) गीतकार नक्ष लायल पुरी जैसी षख्सियतों के तासुरात भी षामिल किए गये  हैं।
चैधरी जिया इमाम की यह किताब पुस्तक प्रेमियों, संगीत प्रेमियों और रफी साहब के चाहने वालों के लिए एक बेहतरीन तोहफा है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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भारतीय संविधान के आधार-तत्व तथा उसका दर्शन

Posted on 25 August 2011 by admin

खलक खुदा का,
मुलुक बाश्शा का
हुकुम शहर कोतवाल का….
हर खासो-आम को
आगाह किया जाता है
कि खबरदार रहें
और अपने-अपने
किवाड़ों को अन्दर से
कुंडी चढ़ाकर बन्द कर लें
गिरा लें खिड़कियांे के परदे
और बच्चों को बाहर
सड़क पर न भेजंे क्योंकि
एक बहत्तर बरस का बूढ़ा आदमी
अपनी काँपती कमजोर आवाज मंे
सड़कों पर सच बोलता
हुआ निकल पड़ा है।

surender-agnihotri-21कोई साढ़े तीन दशक से कुछ ज्यादा समय हुआ, जे.पी. ने पटना मंे प्रष्टाचार के खिलाफ रैली बुलायी थी। तमाम रोक के बाद भी लाखों लोग सरकारी शिकंजा तोड़ कर आये। उन निहत्थों पर निर्मम लाठी-चार्ज और आदेश दिया गया। जेपी भी घायल हुए। इस घटना ने प्रख्यात कवि और धर्मयुग के संपादक धर्मवीर भारती को बेचैन कर दिया। उसी बेचैनी से फूटी एक कविता, मुनादी। एक बार फिर परिस्थितियां कुछ वैसी ही नजर आ रही हैं दूसरी आजादी की लड़ाई रामलीला मैदान में जनयोद्धा अन्ना हजारे के नेतृत्व में लड़ी जा रही है। भष्ट्राचार रूपी रावण के खात्मे का आवाहन पर कुछ दिनों तक सरकार चुप्पी के बाद कुछ सुगबुगाहट हुई है लेकिन वह भी आधी अधूरी जिसमें ंसंविधान और संसद की आड़ लेकर सच को सच न होने देने का षडयन्त्र रचा जा रहा है। हार्बड की हाई-फाई शिक्षा प्राप्त मंत्रीयों की फौज नौवी पास अन्ना हजारे से अपनी चतुराई से जन मुद्दों को भटका कर उन्हें ही आरोपी सिद्ध करने की कवायद करने में नाकाम रहने के बाद कुछ कुछ सही रास्ते पर आती दिख रही है पर इस बीच कुछ सवाल जरूरी हो गये है विभिन्न राजनैतिक दल अपनी व्यापारिक राजनीति के दिन लदते नजर आने पर उल्टा चोर कोतवाल को डाटे रणनीति को अपना रहे है। अन्ना हजारे पर हमला बोल कर जन लोकपाल के प्रति सरकार की वचनबद्धता को संदिग्ध बनाने का कुत्सित प्रयास करने में लग गये है। यह प्रयास पहली बार नही हुआ इसलिए यह जानना जरूरी है कि देश में भ्रष्टाचार की बिमारी क्यों हुई है इसके पीछे छिपे राजनैतिक स्खलन के कारणों की पड़ताल करनी होगी और उनका परीक्षण करके उनका निदान भी खोजना होगा। वर्ना कोई भी फायदा नहीं मिल सकता है कानूनों के मकड़जाल से जन यदि सुखी हो सकता होता तो कब का यह देश सोने की चिड़िया बन गया होता। कवि धूमिल जनतंत्र में संसद की जन के प्रति भूमिका पर सवाल करते हुए यह कविता लिखते है-
एक आदमी/रोटी बेलता है/एक आदमी रोटी खाता है/एक तीसरा आदमी भी है/जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है। /वह सिर्फ रोटी से खेलता है/मैं पूछता हूँ ‘यह तीसरा आदमी कौन है’? मेरे देश की संसद मौन है। इस मौन को तोड़ने के लिये संविधान में निहित आधार तत्व को समझकर एक बार फिर दूसरी आजादी की लड़ाई लड़ने का वक्त आ गया है। टयूनिशिया में हुई जनक्रांति की आहट हमारे देश में भी आने लगी है। इस आहट के पीछे के सच को खोजने का समय बेचैनी पैदा कर रहा है। आजादी के अनेक सालों के बाद दूसरी आजादी की परिकल्पना मन में आना कहीं न कहीं इस व्यवस्था में गुत्थमगुत्था पैदा होने का कारण है। यह विचित्र समय है जब जज से लेकर मंत्रियों तक के दामन दागदार दिख रहे है। डगमग-डगमग होती नैय्या के पीछे छिप शैतानी हाथों और उसके रिमोड कन्ट्रोल की सच्चाईयाँ जानना ही होगा। वरना पश्चाताप के सिवा कुछ शेष नही रह जायेगा। दिशाहीन, दिशाहारे लोग अपने स्वार्थो के लिये आँखों पर काली पट्टी बांध कर मौनी बाबा बने हुये है। उन्हें जन के मन से कोई लेनादेना नही है। सारे दरवाजे अकेलेपन जैसे हो गये है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की सोच को तिलांजलि देकर संविधान की मूल भावना को तिरोहित कर के संसद की सेन्टर टेबल पर खुशी मनाने में मग्न है। जनता की रुलाई उन्हंे दिखाई नही देती है। ऐसा लगता है कि जनता की आँखों में उतरे शोक के आँसू उन्हें खुशी के आँसू नजर आ रहे है। लगातार किसान से लेकर युवा तक पराधीन और दैयनीय जीवन जीते जीते आत्महत्या तक करने को मजबूर है। आदमी के मरते हुये चेहरे को देखने का साहस न जुटा पाने वाले लोगों के खिलाफ एक कमजोर हाथ एक मुठ्ठी में ताकत बटोर कर सब कुछ तहस नहस न कर दे इससे पूर्व संविधान को एक बार देखने का वक्त आ गया है। सरकारें अनिश्चिताओं से नहीं अपितु जनमत कराकर नीति तय करे। बाजारवाद चलेगा या संविधान मंे प्रदत्त उद्देशिका वाला समाजवाद।
भारतीय संविधान के आधार-तत्व तथा उसका दर्शन
किसी संविधान की उद्देशिका से आशा की जाती है कि जिन मूलभूत मूल्यों तथा दर्शन पर संविधान आधारित हो तथा जिन लक्ष्यों तथा उद्देश्यों की प्राप्ति का प्रयास करने के लिए संविधान निर्माताओं ने राज्य व्यवस्था को निर्देश दिया हो, उनका उसमंे समावेश हो।
हमारे संविधान की उद्देशिका मंे जिस, रूप में उसे संविधान सभा ने पास किया था, कहा गया हैः हम भारत के लोग भारत को एक प्रभुत्वसंपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए उसके समस्त नागरिकों को न्याय स्वतंत्रता और समानता दिलाने और उन सबमें बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प करते हैं। न्याय की परिभाषा सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के रूप में की गई है। स्वतंत्रता में विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता सम्मिलित है और समानता का अर्थ है प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता ।
42वें संशोधन के बाद जिस रूप में उद्देशिका इस समय हमारे संविधान में विद्यमान है, उसके अनुसार, संविधान निर्माता जिन सर्वोच्च या मूलभूत संवैधानिक मूल्यांे मंे विश्वास करते थे, उन्हें सूचीबद्ध किया जा सकता है। वे चाहते थे कि भारत गणराज्य के जन-जन के मन में इन मूल्यों के प्रति आस्था और प्रतिबद्धता जगे-पनपे तथा आनेवाली पीढ़ियां, जिन्हें यह संविधान आगे चलाना होगा, इन मूल्यों से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकें। ये उदात्त मूल्य हैः
संप्रभुता, समाजवाद, पंथनिरपेक्षता, लोकतंत्र, गणराज्यीय स्वरूप, न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुता, व्यक्ति की गरिमा, और, राष्ट्र की एकता तथा अखंडता।
समाजवाद
संविधान निर्माता नहीं चाहते थे कि संविधान किसी विचारधारा या वाद विशेष ने जुड़ा हो या किसी आर्थिक सिंद्धात द्वारा सीमित हो। इसलिए वे उसमंे, अन्य बातों के साथ-साथ, समाजवाद के किसी उल्लेख को सम्मिलित करने के लिए सहमत नही हुए थे। किंतु उद्देशिका मंे सभी नागरिकों को आर्थिक न्याय और प्रतिष्ठा तथा  अवसर की समानता दिलाने के संकल्प का जिक्र अवश्य किया गया था। संविधान (42वां संशोधन) अधिनियम, 1976 के द्वारा हमारे गणराज्य की विशेषता दर्शाने के लिए समाजवादी शब्द का समावेश किया गया। यथासंशोधित उद्देशिका के पाठ मंे समाजवाद के उद्देश्य को प्रायः सर्वोच्च सम्मान का स्थान दिया गया है। संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न के ठीक बाद इसका उल्लेख किया गया है। किंतु समाजवाद शब्द की परिभाषा संविधान मंे नही की गई।
संविधान (45वां संशोधन) विधेयक मंे समाजवादी की परिभाषा करने का प्रयास किया गया था तथा उसके अनुसार इसका अर्थ था इस प्रकार के शोषण-सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक-से मुक्त।
समाजवाद का आशय यह है कि आय तथा प्रतिष्ठा और जीवनयापन के स्तर मंे विषमता का अंत हो जाए। इसके अलावा, उद्देशिका मंे समाजवादी शब्द जोड़ दिए जाने के बाद, संविधान का निर्वचन करते समय न्यायालयांे से आशा की जा सकती थी कि उनका झुकाव निजी संपत्ति, उद्योग आदि के राष्ट्रीयकरण तथा उस पर राज्य के स्वामित्व के तथा समान कार्य के लिए समान वेतन के अधिकार के पक्ष में होता है। ’
भारतीय संविधान के उद्देश्यों के विरूद्ध
गुपचुप तरीके से बाजारवादी व्यवस्था को थोपने के दुस्परिणाम सामने आने लगे है। नक्सलवाद और अराजकता के जाल मंे उलझते भारत को बचाने के लिए सिर्फ जनलोक पाल बिल से काम चलने वाला नहीं है हमें सरकार पर दबाव डालना होगा कि आपने बिना रिफरेडम कैसे बाजारवादी व्यवस्था को क्यो अपना लिया है दूसरी आजादी तभी मिलेगी जब तक हम समाजवादी व्यवस्था लागू नहीं करवा पाते है जो संविधान की मूल भावना की उद्देशिका में शामिल है। बदलते परिवेश में क्या देश के लिऐ उचित है क्या अनुचित?  आश्चर्य जब होता है की देश की सबसे बड़ी अदालत के सामने नारीमन जी संविधान की उद्देशिका से समाजवाद शब्द हो हटाने के लिये याचिका प्रस्तुत करते है। इस शब्द के हट जाने से किन को लाभ होगा इस पर आजतक कोई सार्वजनिक बहस तक नही हुई है। संसद, सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री संविधान के अन्तर्गत है। उन्हें संविधान बदलने का कोई अधिकार नही है। इस कार्य के लिये सविधानसभा का गठन हो या जनमत संग्रह यह सब प्रक्रिया जानते हुये भी अंजान बनकर सर्वोच्च न्यायालय में जाने के निहतार्थ स्पष्ट होने चाहिये और नारीमन जी से पूछा जाना चाहिये कि उन्हें यह प्रेरणा कहाँ से मिली थी। सर्वोच्च न्यायालय ने भले ही उनकी इस याचिका को रद्दी की टोकरी में फेक दिया हो लेकिन अब वक्त आ गया है। व्यक्तिवादी स्वर के पीछे अन्तर्राष्ट्रीय षंडयन्त्र के सन्दर्भो को समझे, इस विशाल देश मंे अब राष्ट्रीयता, राष्ट्रवाद, देशभक्ती, देशप्राणता आदि में भावुकता के बीच छद्म रुप में वैश्वीकरण के नापाक पंजों से हमें अपनी जड़े, अपनी परम्परा और अपने मूल्य बचाने के लिये सजग और संवेदनशील रहना होगा। कोई भी बड़ा परिवर्तन करने के पहले संसद को संविधान की मूल भावना को समझना होगा। अब पिछले दरवाजे से कोई कार्य जनता स्वीकार नही करेगी। जापान की त्रासदी के बाद न्यूक्लीयर डील भले ही कर ली हो लेकिन एक बार फिर इस पर फैसला जनमत संग्रह से होना चाहिए। यह कोई सामान्य व्यवस्था नहीं है जिसे हमारे चुने प्रतिनिधि तय कर ले, वर्ना ‘‘लम्हो ने खता की थी सदीयो ने सजा पायी’’ वाली स्थिति होगी। लगड़ी और कटपुतली सरकारें  टाटा और अंबानी जैसे बाजारवादी व्यवस्था के समर्थक लोगों की चेरी बनने को मजबूर रहेगी, बजारवादी लोग अपने लाभकारी निहतार्थ पूरे करते रहेंगे। जन लोकपाल बिल में कुछ शर्ते जोड़ना होगी जिनमें कानून के विपरीत कार्य मंे स्वतः रदद होना मुख्य होता है इस देश को बचाना है तो सबसे पहले कानून के विपरीत कार्य के द्वारा होने वाले लाभ को रद्द करना अनिवार्य कदम होगा। जिस तरह टू-जी स्टेंप घोटाले में लाईसेंस होल्डरों के लाईसेंस अभी तक रद्द न होना चिंता का सबब बना हुआ है इसी कारण गलत कार्यो को लगातार होने को बल मिलता है। सबसे पहले टूजी घोटाले के लाभार्थियों के करार को रद्द करने के साथ ही घोटाले करने वालों की सजा के मामले में निर्णय देने की समय सीमा न्यायालय के सामने होना चाहिए। करार रद्द होने के कारण कोई भी कठिनाई पैदा हो इस कठिनाई से जूझने के लिए भारतीय जनता तैयार है। जो भी कार्य जन्म से ही गलत था उसे कैसे न्याय उचित या देश की पूँजी के नाम उचित स्वीकार कर सकते है।  इन कठोर निर्णय के बिना  भ्रष्टाचार का सिलसिला नही रुक सकता है।  ट्रांसफर प्रापर्टी एक्ट जैसे अनेक प्रावधान है जिनमें कुछ कानून के अन्तर्गत स्वतः निरस्त हो जाते है और कुछ को इंगित करने पर निरस्त किया जाता है। लेकिन जो कार्य जन्म से ही गलत है उसे खत्म होना ही चाहिए। चाहे इस कार्य को सरकार ने किया हो या पूंजीपति ने अथवा जनता ने यह तो तय करना ही होगा। क्योंकि आर्दश सोसायटी जैसे अनेक मामले सामने आये हैै जहाँ पर्यावरण को अनदेखा किया गया। कहीं नीतियों में हेरफेर किया गया। तो कहीं लाभार्थियों के नाम बदले गये है। जब जन्म से ही इन मामलों में गलत हुआ है तो उसे रद्द करना ही पड़ेगा। हमे बिमारी को दबाने के उपाय के स्थान पर बिमारी के कारणों की खोज करना जरूरी है। तभी बिमारी का समूलनाश हो पायेगा।
अज्ञेय के शब्द आज भी हमें सोचने के लिये विवश कर रहे है। अपनी वसीयत का कविता में लिखते है- मेरी छाती पर/हवाएँ लिख जाती हैं/महीन रेखाओं में/अपनी वसीयत/और फिर हवाओं के झोंके ही/वसीयतनामा उड़ाकर/कहीं और ले जाते है/बहकी हावाओं!वसीयत करने से पहले/ हलफ उठाना पड़ता है/ कि वसीयत करने वाले के/होश -हवास दुरूस्त हैं/और तुम्हें इसके लिए/ गवाह कौन मिलेगा/मेरे ही सिवा?/क्या मरेी गवाही/तुम्हारी वसीयत से ज्यादा टिकाऊ होगी? क्या आज यह सवाल देश अपने चुने हुये प्रतिनिधियों से गाँव गली के गलियारों में क्यों पूछ रहा है? आजादी सिर्फ बड़ते भाव नमक और तेल पर, यह सरकारी रेल पर या भ्रष्टाचार के खेल पर ? इस सवाल का हल खोजना ही होगा। वरना चिचियातीं जनता सबकुछ तहसनहस कर देगी और धुआँ शेष रह जायेगा। समय आज फिर सवाल कर रहा है। जागों फिर एक बार! जगों फिर एक बार!  …बस ! आपलोग थोड़ा-सा; ..बस थोड़ा सा ही .. अपने देश से प्यार करना है। अरूण के शब्दों में हुई क्रांति की ऐसी तैसी/सपनों की दुर्गति ये कैसी, इसे रोकने के लिये राजमद मंे चूर कुर्सी ने आपके लोकतांत्रिक अधिकारों पर अपनी विषाक्त महत्वाकांक्षा पर उल्ट दी है इसे रोकने के लिये एक नई हजारों लाखों अन्ना हजारे जैसे लोगों की जरूरत है उन्हें बनाने और बल देने के लिये समाज को इसी एक जुटता के साथ आगे आने के लिये संकल्प वद्ध रहना पड़ेगा तभी यह देश सोने की चिड़िया बनने की राह पर अग्रसर हो सकेगा।

’ इस आलेख में सुभाष कश्यप लिखित पुस्तक हमारा संविधान के अंश समाहित है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
राजसदन- 120/132
बेलदारी लेन, लालबाग
लखनऊ
मो0ः 9415508695
(लेखक-दैनिक भास्कर के लखनऊ ब्यूरोप्रमुख है।)

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’’अन्ना’’ केहि विधि जीतहॅु रिपु बलवाना - नरेन्द्र सिंह राणा

Posted on 14 August 2011 by admin

युगों-युगों से न्याय और अन्याय, धर्म-अधर्म, सत्य-असत्य, साधु-असाधु, विष-अमृत व जीवन-मृत्यु के बीच अनवरत संघर्ष होता आया है। आज भी हो रहा है। देश काल परिस्थिति के अनुसार पात्र बदल जाते हैं परन्तु परिणाम कभी नहीं बदलता वह अटूट, अटल व अडिग होता है। सत्य की जीत सदा हुई है और सदा होगी यह उद्घोष स्वयं परमात्मा श्री कृष्ण ने अपने मुखारबिन्द से अपने अन्नन्य भक्त अर्जुन को महाभारत के धर्म युद्ध में बताते हुए कहा कि ’’यदा यदाहि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत-अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम-परित्राणाम साधूनां विनाशयच दुष्कृताम्-धर्म संस्थापनार्याय सम्भवमि युगे युगे’’ अर्थात हे भारत जब जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने रूप को रचता हॅू अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूूॅं। साधु पुरूषों की उद्धार करने के लिए पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए युग-युग में प्रकट हुआ करता हॅू। अतः सत्य की, धर्म की, न्याय की लड़ाई लड़ने वालों की विजय मेरे आशीर्वाद से होती है। आज राष्ट्रपे्रम अन्ना के रूप में शरीर धारण करके हमारे सामने आया है वहीं राष्ट्र की साख को रसातल में पहुंचाने वाली कांगे्रसी सत्ता (यूपीए-2) की सरकार देश की दुश्मन बनकर सामने आई है। वर्तमान सत्ता भ्रष्टाचार, काला धन, महंगाई, अपराध व आतंक को संरक्षण देने तथा देशप्रेमियों का लांछित करते-करते स्वयं के ही बुने मकड़जाल में फंस चुकी है। सुशासन हेतु नाना रूप से जंग छिड़ चुकी है। देशप्रेमी अन्ना और देश को धोखे में रखने वाली सरकार के मध्य भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कठोर कानून बनाने वाले प्राविधान जनलोकपाल और सरकारी लोकपाल के मध्य जंग जारी है। एक ओर आजाद भारत के इतिहास की सबसे महाभ्रष्ट सरकार है दूसरी ओर स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी के विचारों से पे्ररित सहज, सरल, सौम्य अन्ना हजारे हैं। अन्ना की न कोई पार्टी है न ही वह किसी बड़े घराने से तालूक रखने वाले और न ही किसी पार्टी का सहयोग माॅंग कर अपना आंदोलन चला रहे हैं। सरकार ने चार जून को काला धन को राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित करने तथा भ्रष्टाचारियों को कठोर सजा मिले इस मांग को लेकर योग गुरू स्वामी रामदेव उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण सहित उपस्थित तीस हजार निहत्थे महिला, पुरूष, नौजवान, देशप्रेमियों को आधी रात को आॅसू गैस, लाठी डंडा चलाकर जो दुस्साहस दिखाया और बाद में उसको प्रधानमंत्री सहित सभी ने जायज भी ठहराया। स्वामी रामदेव के साथ केन्द्र सरकार ने पहले धोखा किया अब उनके उत्पीड़न पर उतारू है। सरकार के मुंह खून लग चुका है वह अंहकार की भाषा बोल रही है। 16 अगस्त को अन्ना ने जनलोकपाल को स्वीकार करने के लिए अनशन करने का एलान किया हुआ है। सरकार उत्पीड़न पर उतारू है। अन्ना पर घटिया आरोप लगाने का दौर प्रारम्भ कर दिया है आगे सरकार किस हद तक जाएगी कुछ कहा नहीं जा सकता है। यह लड़ाई एक गांव के मन्दिर के 8 गुना 10 के छोटे से कमरे में रहने वाले किशन राव बाबू (अन्ना हजारे)े तथा महलों में रहने वाले, अकूत सम्पत्ति के मालिकों के मध्य छिड़ी है। आम देशवासी अन्ना हजारे के साथ है। अभी हाल ही में भ्रष्टाचार के कड़े कानून को लेकर नई दिल्ली के चाॅंदनी चैक लोकसभा क्षेत्र तथा कांगे्रस के युवराज राहुल गांधी के अमेठी संसदीय क्षेत्र में जो सर्वे हुआ उसमें 99प्रतिशत लोगों ने अन्ना के जनलोकपाल का समर्थन किया। यही सर्वे यदि पूरे भारत में कराया जाए तो परिणाम अमेठी व चाॅंदनी चैक जैसा ही आएगा। हम सभी देशवासी 74 वर्षीय अन्ना के कठोर अनशन करने के कारण तथा सरकार की ओछी चालों से चिन्तित हैं।  त्रेता युग में मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम को सेना के रूप में  बानर, भालुओं तथा संसाधनों के बिना व रथ व कवच आदि से रहित देखकर विभीषण चिन्नित हो उठा और प्रभु से कहने लगा उसको महान् सन्त परमपूज्य गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में लिखा कि हे नाथ ’’दसहु दिसि जय जयकार करि निज निज जोरि जानी-भीर वीर इत रामहि उत रावनहि बखानी’’ ’’रावण रथी बिरथ रघुवीरा-देखि विभीषण भयऊ अधीरा- अधिक प्रीति मन भा संदेहा- बंदि चरण कह सहित सनेहा’’ ’’सुनहु सखा कह कृपानिधाना जेहि जय होहि सो स्यंदन आना’’ ’सौरज धीरज जेहि रथ चाका-सत्य सील दृढ ध्वजा पताका-बल विवेक दम परहित घोड़े-क्षमा, कृपा, समता रजु जोड़े’ ’ईश भजनु सारथी सुजाना-बिरती चर्म संतोष कृपाना-दान परसु बुद्धि शक्ति प्रचंडा-बर विग्यान कठिन को दंडा’ ’अमल अचल मन त्रोन समाना-सम यम नियम सीलमुख नाना’ ’कवज अभेद बिप्र गुरू पूजा-ऐहि सम विजय उपाय न दूजा’ ’सखा धर्ममय अस रथ जाके- जीतन कहं न कतहूं रिपु ताके’ ’महाअजय संसार रिपुजीत सकइ सो वीर-जाके अस रथ होइ-दृढ सुनहु सखा मतिधीर’ अर्थात दोनों ओर से योद्धा जय-जयकार करके अपनी-अपनी जोड़ी चुनकर इधर श्रीरघुनाथ जी और उधर रावण का बखान करके भिड़ गए। रावण को रथ पर और श्रीरघुवीर को बिना रथ के देखकर विभीषण अधीर हो गए। पे्रम अधिक होने से उनके मन में सन्देह हो गया कि वे बिना रथ के रावण को कैसे जीत पाएंगे। श्रीरामचन्द्र जी के चरणों की वन्दना करके वे स्नेहपूर्वक कहने लगे कि हे नाथ आप न रथ पर हैं न तन की रक्षा के लिए कवच है और न ही पैरा में जूते ही हैं। वह बलवान बीर रावण इस स्थिति में किसी प्रकार जीता जाएगा ? कृपानिधान श्रीरामचन्द्र जी ने सखा को कहा कि जिससे जय होती है मित्र व रथ दूसरा ही होता है। शौर्य और धैर्य उस रथ के पहिये हैं। सत्य और सदाचार उसकी मजबूत ध्वजा और पताका है। बल, विवेक, दम (इन्द्रियों का वश में होना) और परोपकार ये चार उसके घोड़े हैं, जो क्षमा, दया और समतारूपी डोरी से रथ में जोड़े हुए हैं। ईश्वर का भजन ही उस रथ को चलाने वाला चतुर सारथी है। बैराग्य ढाल है और संतोष तलवार है। दान फरसा है, बुद्धि प्रचण्ड शक्ति है, श्रेष्ठ विज्ञान कठिन धनुष है। निर्मल पाप रहित और अचल (स्थिर) मन तरकस के समान है। शम (मन का वश में होना) (अहिंसादि) यम और नियम ये बहुत से बाण हैं। ब्राह्मणों और गुरू का पूजन अभेद कवच हैं। इसके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं है। हे सखे ऐसा धर्ममय रथ जिसके पास हो उसके लिए जीतने को कहीं कोई शत्रु ही नही है। हे धीर बुद्धि वाले सखा सुनो जिसके पास ऐसा दृढ़ रथ हो वह वीर संसार (जन्म-मृत्यु)
रूपी महान ’’दुर्जय’’ शत्रु को भी जीत सकता है। रावण की तो बात ही क्या है। भारत की सन्तान से नियति अपेक्षा कर रही है कि वह प्रवाह पतित न होकर अपने पुरूषार्थ से अपनी मातृभूमि की प्रतिष्ठा विश्व में प्रस्तापित करेंगे। स्वामी विवेकानंद ने कहा था यह देश अवश्य गिर गया है परन्तु निश्चित फिर उठेगा ओर ऐसा उठेगा कि दुनिया देखकर दंग रह जाएगी। अन्ना के श्रीचरणों में नमन करते हुए उनके लिए दो शब्द एक शेर के रूप में:-
अधिकार खोकर बैठे रहना यह बड़ा दुष्कर्म है।
न्याय के लिए अपने बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है।।

लेखक- उ0प्र0 भाजपा के मीडिया प्रभारी हैं।
लखनऊ, मो0 9415013300
———————————
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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आजादी

Posted on 05 August 2011 by admin

न खाना खाने की आजादी,
न पानी पीने की आजादी।
न सड़क पर चलने की आजादी,
तोे फिर कैसी है यह आजादी।।

प्रतिवर्ष आता 15 अगस्त, 26 जनवरी,
खुशियाँ मनाती है जनता बेचारी।
नेता करते हैं भाषण, अभिभाषण,
जनता रहती है मूक बेचारी।।

न बहन सुरक्षित, न बेटी,
नहीं मिलती दो वक्त की रोटी।
बूँद-बूँद पानी को जनता तरसती,
आश्वासनों से क्या प्यास है बुझती।।

अत्याचार कर रही है मंहगाई,
नेता कर रहे हैं बेवफाई।
अपनी आवाज उठाये जनता प्यारी,
चलते लाठी डंडे और होती है पिटाई।।

चहुँदिश फैला भ्रष्टाचार,
हो रहा व्यभिचार, अनाचार, अत्याचार।
देश का धन जा रहा विदेशों म,ें
क्या इसी का नाम है आजादी।।
क्या इसी का ……..

– पं0 हरि ओम शर्मा ‘हरि’
12, स्टेशन रोड, लखनऊ
फोनः 0522-2638324, मो0: 9415015045

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वीडियो गेम तथा हिंसात्मक फिल्मों से बच्चे हिंसा की सीख ग्रहण कर रहे हैं! - डा0 जगदीश गांधी, संस्थापक-प्रबन्धक,

Posted on 03 August 2011 by admin

(1) वीडियो गेम तथा हिंसात्मक फिल्मों से बच्चे हिंसा की सीख ग्रहण कर रहे हैं:-
इन दिनों ‘वीडियो गेम’ के प्रति बच्चों की दीवानगी बढ़ती जा रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार 82 प्रतिशत से अधिक किशोर हर हफ्ते औसतन 14 से 16 घंटे कम्प्यूटर, वेब पोर्टल आदि पर गेम खेलने पर खर्च करते हैं। इनमें से 84 प्रतिशत बच्चों की दिलचस्पी मारधाड़ वाले गेम की ओर होती है। साथ ही हिंसात्मक तथा सेक्स से भरी फिल्में भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। स्क्रीन पर मारधाड़ मचाते किरदार बच्चों के नाजुक मन-मस्तिष्क पर असर डालते हैं। आॅडियो-विजिल माध्यम बच्चे के कोमल मस्तिष्क को आतंक फैलाने के लिए उकसाते हैं। लगभग सभी यंत्र चलित खेलों के हीरो गोलीबारी या भयंकर मार पिटाई के जरिए उन लोगों को राह से हटाने में लगे रहते हैं जो उनके मिशन में रूकावट बनते हैं। यह हिंसात्मक द्वन्द्व बच्चों के मन-मस्तिष्क में खीझ और गुस्सा भर देता है। वीडियो गेम तथा हिंसात्मक-सेक्स से भरी फिल्मों के कारण बच्चों के कोमल मस्तिष्क की सकारात्मकता नष्ट होने लगती है। छोटी उम्र से ही बच्चे नकारात्मकता, तनाव व अवसाद का शिकार होने लगते हैं।

(2) बच्चे के मस्तिष्क, मन तथा आत्मा को कठोरता से बचाना चाहिए:-
आरंभ में ‘समय काटने के लिए वीडियो खेलों का सहारा, धीरे-धीरे लत बन जाती है, और यही लत मनोविकार में बदल जाती है। वीडियो गेम्स बच्चों को सीधे तौर पर हिंसा के जरिए अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का संदेश देते हैं। इसी से प्रभावित होकर बच्चे वीडियो ‘खेलों’ तथा गंदी फिल्मों के मायावी संसार को असल जीवन में भी लागू करने लगते हैं। पर्दे पर खेले जाने वाले ये हिंसात्मक खेल प्रतिकारक आनन्द देते हैं।
(3) बच्चों में बढ़ती अपराध वृत्ति स्वस्थ समाज के निर्माण में बड़ी बाधा है:-
कुछ समय पहले दिल्ली के मैक्स हैल्थ केयर, मनोरोग विभाग के प्रमुख डाॅ. समीर पारिख ने बच्चों में बढ़ती
अपराध वृत्ति पर एक सर्वेक्षण किया था। उनकी रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंसात्मक फिल्में देखने के कारण बच्चों में हथियार रखने की प्रवृत्ति बढ़ी है। रिपोर्ट बताती है कि 14 से 17 वर्ष के किशोर हिंसात्मक वीडियो गेम खेलने तथा फिल्में देखने के शौकीन हो गए हैं। अमेरिका में हाल में हुए एक अध्ययन के मुताबिक जिन बच्चों को कम उम्र में प्रताड़ित किया जाता है उसके बाद जीवन भर इस प्रताड़ना का गहरा असर देखने को मिलता है। समाज में देखें तो बच्चों में आपराधिक प्रवृत्ति के लिए एक तो उनके साथ किया गया क्रूर तथा उपेक्षापूर्ण व्यवहार जिम्मेदार है, तो दूसरी तरफ हमारे पूरे परिवेश तथा सामाजिक वातावरण में गहरे पैठे गैर-बराबरीपूर्ण आपसी रिश्ते तथा परत दर परत बैठी हिंसा की मनोवृत्ति जिम्मेदार है।
(4) हम कैसा समाज अपने बच्चों के लिए छोड़कर जाना चाहते हैं:-
नन्हें बच्चे ‘वीडियो गेम’ में क्यों इतनी अधिक रूचि ले रहे हैं? इसका सीधा सा उत्तर है, ‘बच्चों का अथाह अकेलापन’। दौड़ती-भागती जिंदगी और भौतिक सुखों तथा वस्तुओं की असीम चाह में, आज हर अभिभावक दिन रात की सीमाओं को लांघकर काम में जुटे हैं और अपने द्वारा दिए ‘अकेलेपन’ को भरने के लिए वह बच्चों के हाथों में ‘वीडियो गेम्स’ थमा देते हैं। अमेरिका और ब्रिटेन में बच्चों को खेलने-कूदने के लिए प्रोत्साहित करने के मकसद से पिछले दो दशकों से ‘प्लेडे’ मनाया जा रहा है। ‘खेलकूद’ बच्चों के शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक, शैक्षणिक और बौद्धिक विकास के लिए ही जरूरी नहीं है, बल्कि उनमें सामाजिकता और व्यवहारगत कुशलता विकसित करने में भी इसकी भूमिका है। बच्चों में योग, आसन, खेलकूद का लोप मौजूदा समय की बड़ी चुनौती है। इस दिशा में समाज के शुभचिन्तकों को गम्भीरता से सोचना होगा कि हम कैसा समाज अपने बच्चों के लिए छोड़कर जाना चाहते हैं।
(5) सृजनात्मक तथा कलात्मक कार्यों में प्रतिभाग करने के लिए बच्चों को प्रेरित करें:-
भारत में बच्चों में खेेलों के प्रति रूचि पैदा करने के लिए कोई खास नीति नहीं है। ब्रिटेन ने 1991 में ही बच्चों के अधिकारों के बारे में संयुक्त  राष्ट्र समझौते को अपना लिया था। जिसमें ‘प्ले डे कैंपेन’ भी शामिल था, जिसके तहत बच्चों के लिए खेलों को अनिवार्य किया गया और यह सुनिश्चित किया गया कि ब्रिटेन में सभी बच्चे खेलों में हिस्सा लें। इस बारे में संयुक्त  राष्ट्र का जो घोषणा पत्र है वह केवल पारम्परिक खेलों को ही शामिल नहीं करता बल्कि इसमें ‘प्ले’ से मतलब बच्चों के ऐसे समय से है जिसमें वे आराम करें, खेलें, अपने रूचि की सृजनात्मक और कलात्मक गतिविधियों में समय बिताएं। हमारे देश को भी ऐसी ही नीति की जरूरत है।
(6) घर की चारदीवारी के अंदर भी बच्चा अब सुरक्षित नहीं है:-
आज घर-घर में केबिल/डिश टी0वी0 हेड मास्टर की तरह लगे हंै। टी0वी0 तथा इण्टरनेट की पहुँच अब बच्चों के पढ़ाई के कमरे तथा बेडरूम तक हो गयी है। प्रतिदिन टी0वी0, इण्टरनेट तथा सिनेमा के माध्यम से सेक्स, हिंसा, अपराध, लूटपाट, निराशा, अवसाद तथा तनाव से भरे कार्यक्रम दिखाये जा रहे हैं। बच्चे इन कार्यक्रमों से अपराध, सेक्स, हिंसा, लूटपाट आदि के रास्तों पर चलने की गलत सीख ग्रहण कर रहे हैं।
(7) आइये, बच्चों की पवित्रता, कोमलता तथा निष्कपटता को बचाने का अभियान चलाये:-
बच्चे बडे निष्कपट होते हैं। परमात्मा की पवित्रता और निश्छलता यदि कहीं है तो उसे बच्चों में स्पष्टतः देखा जा सकता है। बच्चे के मस्तिष्क, मन और आत्मा को कठोरता से बचाना हमारी प्रमुखता होनी चाहिए। निर्मल तथा कोमल भावना ही बच्चों के अंतःकरण की भाषा है, जिसके माध्यम से ईश्वरानुभूति सहज ही की जा सकती है। आधुनिक युग में
सर्वाधिक अजूबा मानव शिशु को ही माना जा सकता है। घर में माता-पिता तथा स्कूल में टीचर्स बच्चों की सृजनात्मकता को नष्ट करने वाले वीडियो गेम से दूर रखने की आत्मीयतापूर्ण सीख तथा जागरूकता बरते।
(8) बच्चे ही हमारी असली पूँजी हैं:-
जैसे-जैसे बच्चा बढ़ता है उसी तरह हमारी जिम्मेदारी भी उसके प्रति बढ़ती है। अतः हमें भी बच्चे की मानसिक विकास के अनुरूप बदलना चाहिए। यदि आप अपने बच्चे को बाल्यावस्था में संस्कार-व्यवहार को विकसित होने के लिए स्वस्थ वातावरण नहीं देते हंै तो युवावस्था में गुणों के अभाव में उसे जीवन की परीक्षा में सफल होने में कठिनाई होती है। अभिभावक उस समय उसके आस-पास नहीं होते हैं। गुणों को विकसित करने की सबसे अच्छी अवस्था बचपन की होती है।
(9) बालक की स्वतंत्रता का सम्मान करें:-
कई अभिभावक अज्ञानतावश अपने बच्चों को स्वतंत्रता के प्रति कड़ा रूख अपनाते हंै। यह मानव स्वभाव की एक सच्चाई है कि मनुष्य दूसरे की अपेक्षा स्वयं से नियंत्रित होने में ज्यादा सहजता महसूस करता है। बालक को एक स्वतंत्र इकाई के रूप में विकसित होने के अवसर देने से उनके अंदर स्वयं को आदेश देने की भावना का विकास होता है। बालक में गुणों को अपनाने का स्वभाव विकसित कर देने से वह आत्मानुशासित बनता है।
(10) बच्चों को आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली बनायें:-
आज के युग में बच्चों पर निवेश करने की सबसे अच्छी चीज है उनके हृदय में विश्व एकता तथा पारिवारिक एकता के अच्छे संस्कारों का बीजारोपण करना। एक बालक का निर्माण सारे विश्व को बेहतर बनाने की एक शुरूआत है। मानवता की सेवा करने वाले हाथ उतने ही धन्य होते हैं जितने परमात्मा की प्रार्थना करने वाले होंठ। परमात्मा का नाम ही मेरा आरोग्य तथा उसका स्मरण ही मेरी औषधि है। हे मेरे ईश्वर हे मेरे परमेश्वर मेरे हृदय को निर्मल कर मेरी आत्मा में तू अपनी खुशियों का संचार कर। तू मुझको राह दिखाता तू है मेरा आश्रयदाता। अब शोकाकुल नहीं रहूँगा मैं आनन्दित व्यक्ति बनूगा। प्रभु हमारा सबसे अच्छा मित्र है। उस शक्तिशाली के प्रति पूरी तरह समर्पण ही जीवन की सफलता का रहस्य है। साथ ही आध्यात्मिक रूप से भी शक्तिशाली बनने का फल है।
(11) आधुनिक विद्यालय का सामाजिक उत्तरदायित्व:-
आधुनिक जागरूक विद्यालय का सामाजिक उत्तरदायित्व है कि वह सुन्दर, स्वस्थ, समृद्ध, आनन्दित एवं सशक्त समाज के निर्माण के लिये समाज के प्रकाश का केन्द्र बने। बच्चों को परिवार, स्कूल तथा समाज रूपी तीन विद्यालयों के क्लासरूम में बाल्यावस्था से ही (1) उद्देश्यपूर्ण भौतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक ज्ञान की संतुलित शिक्षा दे, (2) धर्म के वास्तविक उद्देश्य अर्थात एकता के महत्व से परिचित कराये तथा (3) कानून और न्याय पर चलने से सम्बन्धित मौलिक सिद्धान्तों का बचपन से ही छात्रों को ज्ञान कराये तथा उन पर चलने का अभ्यास कराये।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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