युगों-युगों से न्याय और अन्याय, धर्म-अधर्म, सत्य-असत्य, साधु-असाधु, विष-अमृत व जीवन-मृत्यु के बीच अनवरत संघर्ष होता आया है। आज भी हो रहा है। देश काल परिस्थिति के अनुसार पात्र बदल जाते हैं परन्तु परिणाम कभी नहीं बदलता वह अटूट, अटल व अडिग होता है। सत्य की जीत सदा हुई है और सदा होगी यह उद्घोष स्वयं परमात्मा श्री कृष्ण ने अपने मुखारबिन्द से अपने अन्नन्य भक्त अर्जुन को महाभारत के धर्म युद्ध में बताते हुए कहा कि ’’यदा यदाहि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत-अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम-परित्राणाम साधूनां विनाशयच दुष्कृताम्-धर्म संस्थापनार्याय सम्भवमि युगे युगे’’ अर्थात हे भारत जब जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने रूप को रचता हॅू अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूूॅं। साधु पुरूषों की उद्धार करने के लिए पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए युग-युग में प्रकट हुआ करता हॅू। अतः सत्य की, धर्म की, न्याय की लड़ाई लड़ने वालों की विजय मेरे आशीर्वाद से होती है। आज राष्ट्रपे्रम अन्ना के रूप में शरीर धारण करके हमारे सामने आया है वहीं राष्ट्र की साख को रसातल में पहुंचाने वाली कांगे्रसी सत्ता (यूपीए-2) की सरकार देश की दुश्मन बनकर सामने आई है। वर्तमान सत्ता भ्रष्टाचार, काला धन, महंगाई, अपराध व आतंक को संरक्षण देने तथा देशप्रेमियों का लांछित करते-करते स्वयं के ही बुने मकड़जाल में फंस चुकी है। सुशासन हेतु नाना रूप से जंग छिड़ चुकी है। देशप्रेमी अन्ना और देश को धोखे में रखने वाली सरकार के मध्य भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कठोर कानून बनाने वाले प्राविधान जनलोकपाल और सरकारी लोकपाल के मध्य जंग जारी है। एक ओर आजाद भारत के इतिहास की सबसे महाभ्रष्ट सरकार है दूसरी ओर स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी के विचारों से पे्ररित सहज, सरल, सौम्य अन्ना हजारे हैं। अन्ना की न कोई पार्टी है न ही वह किसी बड़े घराने से तालूक रखने वाले और न ही किसी पार्टी का सहयोग माॅंग कर अपना आंदोलन चला रहे हैं। सरकार ने चार जून को काला धन को राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित करने तथा भ्रष्टाचारियों को कठोर सजा मिले इस मांग को लेकर योग गुरू स्वामी रामदेव उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण सहित उपस्थित तीस हजार निहत्थे महिला, पुरूष, नौजवान, देशप्रेमियों को आधी रात को आॅसू गैस, लाठी डंडा चलाकर जो दुस्साहस दिखाया और बाद में उसको प्रधानमंत्री सहित सभी ने जायज भी ठहराया। स्वामी रामदेव के साथ केन्द्र सरकार ने पहले धोखा किया अब उनके उत्पीड़न पर उतारू है। सरकार के मुंह खून लग चुका है वह अंहकार की भाषा बोल रही है। 16 अगस्त को अन्ना ने जनलोकपाल को स्वीकार करने के लिए अनशन करने का एलान किया हुआ है। सरकार उत्पीड़न पर उतारू है। अन्ना पर घटिया आरोप लगाने का दौर प्रारम्भ कर दिया है आगे सरकार किस हद तक जाएगी कुछ कहा नहीं जा सकता है। यह लड़ाई एक गांव के मन्दिर के 8 गुना 10 के छोटे से कमरे में रहने वाले किशन राव बाबू (अन्ना हजारे)े तथा महलों में रहने वाले, अकूत सम्पत्ति के मालिकों के मध्य छिड़ी है। आम देशवासी अन्ना हजारे के साथ है। अभी हाल ही में भ्रष्टाचार के कड़े कानून को लेकर नई दिल्ली के चाॅंदनी चैक लोकसभा क्षेत्र तथा कांगे्रस के युवराज राहुल गांधी के अमेठी संसदीय क्षेत्र में जो सर्वे हुआ उसमें 99प्रतिशत लोगों ने अन्ना के जनलोकपाल का समर्थन किया। यही सर्वे यदि पूरे भारत में कराया जाए तो परिणाम अमेठी व चाॅंदनी चैक जैसा ही आएगा। हम सभी देशवासी 74 वर्षीय अन्ना के कठोर अनशन करने के कारण तथा सरकार की ओछी चालों से चिन्तित हैं। त्रेता युग में मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम को सेना के रूप में बानर, भालुओं तथा संसाधनों के बिना व रथ व कवच आदि से रहित देखकर विभीषण चिन्नित हो उठा और प्रभु से कहने लगा उसको महान् सन्त परमपूज्य गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में लिखा कि हे नाथ ’’दसहु दिसि जय जयकार करि निज निज जोरि जानी-भीर वीर इत रामहि उत रावनहि बखानी’’ ’’रावण रथी बिरथ रघुवीरा-देखि विभीषण भयऊ अधीरा- अधिक प्रीति मन भा संदेहा- बंदि चरण कह सहित सनेहा’’ ’’सुनहु सखा कह कृपानिधाना जेहि जय होहि सो स्यंदन आना’’ ’सौरज धीरज जेहि रथ चाका-सत्य सील दृढ ध्वजा पताका-बल विवेक दम परहित घोड़े-क्षमा, कृपा, समता रजु जोड़े’ ’ईश भजनु सारथी सुजाना-बिरती चर्म संतोष कृपाना-दान परसु बुद्धि शक्ति प्रचंडा-बर विग्यान कठिन को दंडा’ ’अमल अचल मन त्रोन समाना-सम यम नियम सीलमुख नाना’ ’कवज अभेद बिप्र गुरू पूजा-ऐहि सम विजय उपाय न दूजा’ ’सखा धर्ममय अस रथ जाके- जीतन कहं न कतहूं रिपु ताके’ ’महाअजय संसार रिपुजीत सकइ सो वीर-जाके अस रथ होइ-दृढ सुनहु सखा मतिधीर’ अर्थात दोनों ओर से योद्धा जय-जयकार करके अपनी-अपनी जोड़ी चुनकर इधर श्रीरघुनाथ जी और उधर रावण का बखान करके भिड़ गए। रावण को रथ पर और श्रीरघुवीर को बिना रथ के देखकर विभीषण अधीर हो गए। पे्रम अधिक होने से उनके मन में सन्देह हो गया कि वे बिना रथ के रावण को कैसे जीत पाएंगे। श्रीरामचन्द्र जी के चरणों की वन्दना करके वे स्नेहपूर्वक कहने लगे कि हे नाथ आप न रथ पर हैं न तन की रक्षा के लिए कवच है और न ही पैरा में जूते ही हैं। वह बलवान बीर रावण इस स्थिति में किसी प्रकार जीता जाएगा ? कृपानिधान श्रीरामचन्द्र जी ने सखा को कहा कि जिससे जय होती है मित्र व रथ दूसरा ही होता है। शौर्य और धैर्य उस रथ के पहिये हैं। सत्य और सदाचार उसकी मजबूत ध्वजा और पताका है। बल, विवेक, दम (इन्द्रियों का वश में होना) और परोपकार ये चार उसके घोड़े हैं, जो क्षमा, दया और समतारूपी डोरी से रथ में जोड़े हुए हैं। ईश्वर का भजन ही उस रथ को चलाने वाला चतुर सारथी है। बैराग्य ढाल है और संतोष तलवार है। दान फरसा है, बुद्धि प्रचण्ड शक्ति है, श्रेष्ठ विज्ञान कठिन धनुष है। निर्मल पाप रहित और अचल (स्थिर) मन तरकस के समान है। शम (मन का वश में होना) (अहिंसादि) यम और नियम ये बहुत से बाण हैं। ब्राह्मणों और गुरू का पूजन अभेद कवच हैं। इसके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं है। हे सखे ऐसा धर्ममय रथ जिसके पास हो उसके लिए जीतने को कहीं कोई शत्रु ही नही है। हे धीर बुद्धि वाले सखा सुनो जिसके पास ऐसा दृढ़ रथ हो वह वीर संसार (जन्म-मृत्यु)
रूपी महान ’’दुर्जय’’ शत्रु को भी जीत सकता है। रावण की तो बात ही क्या है। भारत की सन्तान से नियति अपेक्षा कर रही है कि वह प्रवाह पतित न होकर अपने पुरूषार्थ से अपनी मातृभूमि की प्रतिष्ठा विश्व में प्रस्तापित करेंगे। स्वामी विवेकानंद ने कहा था यह देश अवश्य गिर गया है परन्तु निश्चित फिर उठेगा ओर ऐसा उठेगा कि दुनिया देखकर दंग रह जाएगी। अन्ना के श्रीचरणों में नमन करते हुए उनके लिए दो शब्द एक शेर के रूप में:-
अधिकार खोकर बैठे रहना यह बड़ा दुष्कर्म है।
न्याय के लिए अपने बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है।।
लेखक- उ0प्र0 भाजपा के मीडिया प्रभारी हैं।
लखनऊ, मो0 9415013300
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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