नव संवत्सर का प्रथम दिवस ही वर्ष का राजा: डाॅ0 पाण्डेय

Posted on 29 March 2012 by admin

लखनऊ विश्वविवद्यालय के ज्योतिष विभाग के प्रोफेसर डा० बिपिन पाण्डेय ने एक छोटी सी भेट में नवरात्रि एवं नव संवत्सर के विषय मे कई आवश्यक जानकारियां दी । उन्होने बताया कि जब सूर्य, चन्द्रमा व लग्न मेष राशि में प्रवेश करते है तब नवंसवत्सर का प्रारंभ होता है ।
नवसंवत्सर के प्रथम दिन जो भी दिन रहता है उस वर्ष का राजा वही होता है । शुक्रवार को प्रतिपदा तिथि से इस संवत्सर का प्रारंभ हुआ है इसलिये इस वर्ष का राजा भी शुव्रहृ है । शुव्रहृाचार्य दैत्यों के गुरु थे और बीते युगों में शुव्रहृाचार्य के संरक्षण में ही दैत्य जाति देवताओं और ऋषियों पर अत्याचार करती थी । शुव्रहृ जल एवं विलासिता का प्रतीक है । इसे मुस्लिम एवं स्स्त्रत शक्ति का समर्थक भी माना जाता है।
शुव्रहृ के प्रभाव के कारण पूरे वर्ष कही अतिवृष्टि एवं कही कही अल्प वृष्टि की संभावना बनी रहेगी । भौतिकवाद का विकास होगा । श्री पाण्डेय ने नवरात्रि के विषय में बताते हुए कहा कि नौ दिनों के नवरात्र मे नौ शक्तियां समाहित होती है । नवरात्र नौ ग्रहो का आधार है इसमे मात्र शक्तियां मौजूद रहती है ।
नवरात्र के पहले दिन शैलपुत्री की पूजा होती है । शैलपुत्री नवजात कन्या को कहा जाता है । दूसरे दिन की आराधना ब्र्रहमचारिणी के रुप की होती है । ब्र्रहमचारिणी का मतलब लगभग ६-७ वर्ष की कन्या से होता है । तीसरे दिन की पूजा चंद्रघंटा देवी की पूजा की जाती है । चंद्रघंटा देवी को १२-१३ वर्ष की कन्या के रुप मे माना जाता है । नवरात्रि के चैथे कूष्मांडा देवी की आराधना की जाती है । यह देवी का वह रुप है जब उनकी आयु लगभग १६-१७ वर्ष की होती है । पांचवें दिन स्कंदमाता की आराधना भक्त करते है यह वह रुप है जब स्स्त्रत शक्ति मां बनने के लायक होती है ।
षष्टम दिन मां कात्यायनी की आराधना की जाती है । यह देवी जी का वह रुप है जब वह मां बनकर संर्पूण जगत का पालन करती है । नवरात्रि के सातवें दिन कालरात्रि देवी की आराधना की जाती है । कालरात्रि देवी इस संसार को मोह के अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का कार्य करती है । आठवां रुप मां गौरी का है जो सबका हमेशा कल्याण करती है । नवरात्रि के नवें दिन मां सिद्धदात्री की आराधना की जाती है जो संपूर्ण जगत को सब प्र्रकार से तृप्ति दिलाने में समर्थ है ।
नव संवत्सर का प्रारंभ नवरात्रि से होता है जिसमें संपूर्ण जगत ९ दिन तक पूजा पाठ व आराधना कर उर्जा व शक्ति का संचय करता है । ज्योतिषी श्री पाण्डेय ने कहा कि कलश स्थापना में बोये हुए जौ के अर्क का यदि पान किया जाय तो वह कई प्रकार की बीमारियों से छुटकारा दिलाता है । उन्होने बताया कि पंचमी तिथि दो दिन की होने के कारण इस बार का नवरात्रि दस दिन का माना गया है जिसमे आगामी १ अपै्रल को नवमी तिथि है जिसमें हवन का मुहूर्त सुबह ९ बजकर २१ मिनट तक एवं सूर्यास्त के समय ज्यादा उपयुक्त है ।
दशमी तिथि सोमवार को पारायण हल्का भोजन के साथ करें । ज्योतिषी श्री पाण्डेय ने हवन एवं पूजन के बाद की राख एवं अन्य पदार्थो को उद्यान या किसी पेड़ के नीचे गाड़ देने की सलाह दी है ।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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