Categorized | विचार

जुबान व काम पर नियंत्रण चाहती है आवाम

Posted on 26 February 2012 by admin

लोकतंत्र मंे जनता ही असली मालिक होती है। यह बात नेता व अफसर जानते हैं लेकिन मानते नहीं है। देश के सबसे बड़े प्रान्त उ0प्र0 में विधानसभा चुनाव हो रहें है। सभी दलों ने अपनी पूरी ताकत चुनाव मंे झोंकी हुई है। भाजपा और कांग्रेस दो राष्ट्रीय पार्टियां तथा सपा और बसपा देा क्षेत्रीय दल इस बार जनता को यह बताने मंे दिन रात एक किए हुऐ हैं कि उनकी दाल में कुछ काला नहीं हैं। हमने ऐसा किया, हम ऐसा करेंगे बस हमें मौका तो दीजिए। आम आदमी उनकी जुबान पर यकीन करने को तैयार नहीं है। जनता पूछना चाहती है कि यदि तुम्हारी दाल में कुछ भी नहीं है काला तो आम आदमी का मंहगाई से कैसे निकला दिवाला। चरम पर कमर तोड़ मंहगाई की मार, भयंकर भ्रष्टाचार, नौजवान बेरोजगार, बहन बेटियों से होता बलात्कार, गरीब को रोज पीटता थानेदार, विश्व में सर्वाधिक बच्चे भारत में कुपोषण के शिकार, सर्वत्र मचा हाहाकार, यह कैसा राजनीतिज्ञों का जनता से प्यार। लुटता-पिटता व आत्महत्या को नित मजबूर होता किसान, रातो रात माला माल होते अफसर नेता यह कैसा कमाल जो जनता को करते रहे है हलाल, नही करते और न ही करने देते मलाल, बस यही है आज का जनताजनार्दन का सवाल। इन सवालों से बचते घूम रहे है पार्टियों के युवराज चाहतें है बस राज।
सभी जानते है कि जीभ में हड्डी नही होती लेकिन शरीर की सम्पूर्ण हड्डियां तुड़वाने की ताकत उसमें होती है। जीभ ही खाती है और मार तथा जेल की सलाखों के पीछे भी पहुंचाती है। भोजन व जेल का मजा भी चखाती है।
भारतीय दर्शन ने विश्व का मार्गदर्शन किया है। सर्वे भवन्तु सुखिना, सर्वे सन्तु निराम्या का महामंत्र हमने ही दुनिया को दिया है। सत्य बोलना, कम बोलना, उसको तोलना यही है धर्म सत्ता व परम सत्ता का संदेश।
त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोंत्तम भगवान श्रीराम जब लीला करते-करते चित्रकूट पहुॅचे तो उन्होने हर हाल में कैसे सम्मानपूर्वक व प्रिय होकर जिया जाता है उसकी शिक्षा जनमानस को देने हेतु लक्ष्मण से कहा कि हे लक्ष्मण हम महलांे में रहना तो जानते है क्योंकि अयोध्यापति राजा दशरथ के बेटे है महलों मंे पैदा हुए लेकिन अब वनवास में 14 वर्ष रहना है तो यहां के तौर तरीके भी आने चाहिए। उन्होने लक्ष्मण से कहा कि करुणावतार (भगवान शिव)
उल्लेखनीय है कि करुणा पे्रम से भी आगे का पग है।
वन में रहते है अतः हमें उनसे मार्गदर्शन लेना चाहिए। लक्ष्मण जी ने पूछा भईया भोेले बाबा इस समय कहां मिलेंगे? प्रभु श्रीराम ने कहा कि अनुज तुम इस पहाड़ के पार उस पहाड़ पर जाओ वही भगवान शिव मिलेंगे उनसे कहना और पूछना कि हम 14 वर्ष तक वन में कैसे रहे। आज्ञानुसार लक्ष्मण जी उस पहाड़ पर पहुॅचे। पूरा दिन पहाड़ पर भगवान शिव को खोजते रहे लेकिन भगवान शिव नही मिलें। लक्ष्मण जी लौटनें लगे तेा उनके मन में विचार आया कि भगवान श्री राम ने कहा शिव यहां है तो राम का वचन सत्य होता है। अतः मुझे पुनः खोजना होगा त्रिपुरारी को रात होने को थी। उनको बाबा विश्वनाथ नही मिले लक्ष्मण जी लौट रहे थे तभी एक साधु दिखायी पड़ा वह कुछ अजीब सी मुद्रा में खड़ा थां उसने एक हाथ से अपनी जुबान पकड़ रखी थी और दूसरे हाथ से अपने लगोंट को पकड़े था। लक्ष्मण जी ने उस साधु को कुछ मानसिक पीडि़त सा समझा और वापस भगवान श्री राम के पास चित्रकूट पर्वत पर आ गए। श्री राम ने पूछा भईया लक्ष्मण क्या कहा भालेनाथ ने? लक्ष्मण जी ने पूरा दिन खोजने पर भी भोलेबाबा के न मिल पाने की बात बतायी। प्रभु श्री राम ने पूछा कि वो किसी और रुप में भी हो सकते है क्या तुम्हे कोई और नही मिला वहा कोई तो मिला अथवा दिखा होगा। तब लक्ष्मण जी ने कहा वापसी में एक साधु अजीब सी मुद्रा में दिखायी पड़ा मैने उन्हे आवाज भी दी परन्तु वह कुछ नही बोले। उसने अपने एक हाथ से अपनी जुबान पकड़े हुई थी और दूसरे हाथ से अपनी लंगोट को कसके पकड़े था। ’’जिनको प्राप्त करने के लिए योगीजन योग करते है तपस्वी तप करते है, हम संसारी लोग भी पूजापाठ का दिखावा करते हैं। उनके विषय में विधेयराज राजा जनक ने क्या प्रार्थना की वह  श्री रामचरितमानस में बाबा गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है ’’कैहि विधि करहु राम तुम्हारी प्रसंशा- तुम मुनी महेश मन मानस हंसा-योगी करही योग जेहि लागी- कोह मोह ममता मद त्यागी- मनसहित जेहि जान न वाणी  तर्क न सकही सकल अनुमानी।’’ अर्थात क्रोध, मोह, ममता और मद छोड़कर योगी जिनके लिए योग करते हैं। हे राम मै किस प्रकार तुम्हारी प्रसंशा करु तुम तो मुनियों और महादेव के मन रुपी मानसरोवर के हंस हो। यहंा बाबा ने योगी की परिभाषा बतलाई हैं। इन पंक्तियेां के माध्यम से मुनियों तथा महादेव का मन मानसरोवर होता है उसी में राम नाम रुपी हंस रहता है।
ब्रह्म हो अकथनीय हो, सचिदानंद हो निगुर्ण हो निराकार हो मन सहित वाणी भी जिसे जान नही सकती वहां कोई तर्क नही चलता केवल और केवल अनुमान ही होता है। आप तीनो कालों में सदा एक रस रहते है। प्रभु श्रीराम मुस्कुराए और बोले हे लक्ष्मण वही तो भगवान शंकर थे और उन्होने इशारे से हमें बताया कि जुबान पर और अपने काम पर जो नियंत्रण रखेगा वह वन ही नही कही भी रहने योग्य है रह सकता हैं। सनातन भारतीय संस्कृति का यह महामंत्र इन अफसरों और नेताओं को समझ नही पड़ता तभी तो ये आज राजा से रंक, घर से बेघर, सुहागिन से विधवा आदि-आदि बने है।

कांग्रेस के नेताआंे व मंत्रियों की जुबान पर जरा गौर फरमाइये तो इनकी बदजुबानी से चुनाव आयोग खफा है। चुनाव आयोग उनके बयानो को आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन मानता है दो वरिष्ठ केन्द्रीय मंत्रियों के बाद कांग्रेस के युवराज भी आचार संहिता की धज्जियां उड़ाने में पीछे नहीं रहे। चाहे बात भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए सशक्त लोकपाल की मांग कर रहे राष्ट्र संत अन्ना हजारे के आंदोलन के समय की हो, आम जनता का पैसा लूटकर विदेशांे में जमा करने की बात करने वाले बाबा रामदेव की हो, चुनाव शांतिपूर्ण-निष्पक्ष व भयमुक्त हो इस कोशिश में सफल होते चुनाव आयोग की हो कांग्रेस के नेताओं व मंत्रियों का अहंकार सर चढ़कर बोल रहा है। एक शब्द भी वो मंहगाई व कालेधन पर सुनने को तैयार नही है। याद दिलाते चले कांग्रेस प्रवक्ता ने अन्ना हजारे को सेना का भगोड़ा तक कह डाला था जब बात बिगड़ी तो माफी मांगने लगे यही हाल इनके राष्ट्रीय महासचिव व उत्तर प्रदेश के प्रभारी का है कब क्या कह दे फिर पलट जाए आम बात है। भारत की आवाम संवैधानिक संस्थाओं पर आक्रमण करने की इस मानसिकता से सन्न है खफा है। जनता ने कभी किसी को माफ नहीं किया है बल्कि सही समय पर साफ किया है। इस बार भारत का आवाम जुबान पर लगाम चाहता है। रही काम पर नियंत्रण की बात तो ये तो भोगवादियों के चाटुकार हैं इनके लिए तो ये सोचना भी आसमान के तारे गिनने जैसा होगा। काम पर नियंत्रण की बात तो बिरलों के नसीब में ही होती है।
परवाज साहब की गजल की दो लाइन तथा शेर के साथ आज के लेख की बात यहीं समाप्त।
आएगा लेके बाप दवा-भूख की जरुर
बैठा है इंतजार में बच्चा फकीर का
अपने ही आॅंसुओं से भरा जिसको शाम तक
क्यों लोग छीनते हैं, वो कासा फकीर का,

शेर
मेरे देश में जो असरदार घर है
अगर सच कहुं तो गुनाहगार घर हैं।

नरेन्द्र सिंह राणा
लेखक भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी हैं।
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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