प्रदेश के उद्यान निदेशक श्री एस0पी0 जोशी ने किसानों को फलों के संदर्भ में जानकारी देते हुए बताया कि यह समय आँवला एवं अमरूद के लिये विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि आँवला की फसल तैयार हो रही है। शीघ्र व मध्य समय में तैयार होने वाली प्रजातियों की तुड़ाई ग्रेडिंग व पैकिंग कर वे बाजार में इसके विपणन के लिए तैयारी शुरू कर दें। अमरूद के बाग फलत में हैं, इनमें उर्वरकों के प्रयोग के लिये यही समय उपयुक्त है। अमरूद के 06 वर्ष आयु या इससे अधिक आयु वाले पौधों को तत्व के रूप में 300 ग्राम नत्रजन, 150 ग्राम फास्फोरस एवं 300 ग्राम पोटाश प्रति वर्ष की दर से दी जाती है। इस उर्वरक की मात्रा में नत्रजन की आधी मात्रा यानी कि 150 ग्राम नत्रजन तथा पूरी फास्फोरस एवं पोटाश की मात्रा इसी माह के प्रारम्भ में पेड़ों की नीचे घेरे में फैलाकर मिट्टी में मिला देना चाहिए। बेर के बागों में भी इसी प्रकार उर्वरकों का प्रयोग किया जाना है। इसके साथ ही 15-15 दिन के अन्तराल पर हल्की सिंचाई भी करते रहें। आम की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिये कीट एवं व्याधियां को नियंत्रित किया जाना आवश्यक है। इस समय आम के बागों में मिलीबग कीट का प्रकोप हो सकता है। इसके नियंत्रण के लिए 2 प्रतिशत मिथाइल पैराथियान चूर्ण 250 ग्राम प्रति वृक्ष की दर से पेड़ के नीचे फैलाव में बुरक दंे तथा मुख्य तने पर जमीन से 7 से0मी0 ऊपर अल्काथीन/पाॅलीथीन की 400 गेज शीट की 25-30 से0मी0 चैड़ी पट्टी दोनों किनारों पर बांध दे तथा नीचे की ओर ग्रीस की मोटी तह लगा दें ताकि मादा कीट उनपर न चढ़ने पायें। मैंगों मालफार्मेशन यानी गुम्मा रोग का प्रकोप भी इस समय आम के बागों में दिखायी देता है। इसके नियंत्रण के लिए 200 पी0पी0एम0 (2 ग्राम/10 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर) नेप्थलीन एसिटिक एसिड का छिड़काव करें।
श्री जोशी ने बागबानों को ड्रिप सिंचाई पद्धति के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि ड्रिप सिंचाई पद्धति जिसे टपक सिंचाई प्रणाली भी कहते हैं, एक बहुत ही लाभदायक सिंचाई की विधि है। इससे सिंचाई करने से लगभग 50 प्रतिशत पानी की बचत तो होती ही है, इसके साथ ही उपज में भी 40 से 50 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी भी हो जाती है। इस विधि से सिंचाई करने से और भी लाभ हंै जैसे कि उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार होता है। बागों में अनावश्यक खरपतवार कम उगते हैं इसके माध्यम से उर्वरकों का प्रयोग भी किया जा सकता है, जिससे समय व श्रम दोनों की ही बचत होती है। उन्होंने कहा कि इस लाभदायक विधि से सिंचाई कर के अवश्य फायदा उठायें। बागों से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिये खाद तथा उर्वरकों का प्रयोग बहुत जरूरी हैं। आम, कटहल, लीची के बागों में उर्वरकों के प्रयोग का समय आ गया हैं। 10 वर्ष की आयु या इससे अधिक आयु वाले प्रति वृक्ष के लिये नत्रजन व पोटाश, आधा-आधा कि0ग्रा0 जो कि वार्षिक कुल मात्रा का आधा भाग है तथा आधा कि0ग्रा0 फास्पोरस पेड़ के फैलाव में जमीन पर बिखेर कर मिट्टी में मिला दें। शेष आधा कि0ग्रा0 नत्रजन व पोटाश बाद में प्रयोग करें।
उद्यान निदेशक ने बताया कि प्रदेश के तराई वाले क्षेत्रों में आम के शाखा गांठ कीट का जहाँ प्रकोप होता है वहां प्रभावी नियंत्रण के लिए 2-4 डी रसायन का छिड़काव यदि पिछले माह नहीं किया हो तो अब अवश्य ही 200 मि0ग्रा0 प्रति ली0 पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव कर दें। इससे गांठ खुल जायेगी तथा कीट अपना जीवन चक्र पूरा नहीं कर पायेगा, जिससे इसका प्रकोप प्रभावी रूप से नियंत्रित हो सकेगा। तने से गोंद निकलने की व्याधि से बचाव के लिए इस समय 250 ग्रा0 कापर सल्फेट, 250 ग्रा0 जिंक सल्फेट, 125 ग्रा0 बोरेक्स तथा 100 ग्रा0 चूने का प्रयोग करें।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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