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राजनीतिक घरानों ने घोंटा छात्र राजनीति का गला

Posted on 02 April 2011 by admin

ब्ंाधक तरूणाई ने घोंटा वैकल्पिक राजनीति का दम
देष बचेगा पर पुस्तैनी नेताओं नहीं असली तरूणों के दम पर

photoपूंजी के गिरफ्त में मौजूदा युवा भारत इतना उलझ गया जो भौतिकता की चकाचैंध और वर्तमान में जीने की तालीम से प्रेरित हो अंतहीन हर्डलरेस का महज भागीदार बन कर रह गया है।देष की तरूणाई पहले मोबाइल,फिर रेस्तरां,डिस्कोथेक और अब फेसबुक ट्वीटर के हाथ का खिलौना भर बन कर रह गयी लगती है। भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, महंगाई, अपराध के रावण राज में अब डर सताने लगा है कि अब न रावण मरेगा, न तो कंुभकरण, न ही धर्म - अधर्म का भेद समझाया पढाया जायेगा क्योंकि अब तरूणाई के माथे पर जवानी के चरमोत्कर्ष में प्रोफेषनैलिज्म का ठप्पा होना सबसे अहम् है क्योकि यह मौजूदा भारत का तथाकथित स्टेटस सिंबल है। स्टेटस सिंबल बांटने की दुकाने भी खूब हैं जाहिर है खरीददारों की संख्या ने इस बाजार को भी बल दिया है।

हालात कुछ ऐसे हैं कि इुजिनियरिंग,प्रबंधन,व अन्य कमाउ कहे जाने वाले डिग्री डिप्लोमा जैसे ठप्पों को सरलता से पाने की असीम संभावनाये हैं। यह इस क्षेत्र का विकास ही है जिससे केवल उत्तर प्रदेष में हर साल अब 1 लाख के आस पास तो इंजीनियर, डिप्लोमाधारी, आई टी आई,प्रषिक्षित स्नातक व प्रबंधक निकलेंगे ही, बाकी देष की हालत तो आसानी से समझी जा सकती है। ऐसा होना भी चाहिए था क्योंकि तरूणाई को इस तथाकथित कैरियर ओरियेन्टेड (कैरियर उन्मुख) माया जाल में फांसने के भारतीय नीति निर्माताओं के अपने मायने और फायदे हैं। तभी तो कैंपसों में खुले मन से समाज और देष के प्रति जुझारू तेवर के साथ सार्थक सोच को प्रतिबद्ध छात्र राजनीति का गला नीति निर्माताओं ने घोंट दिया।

यूं ही नहीं कैंपस से राजनीति को उखाड फेंकने की पहल करते हुए मौजूदा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वर्ष 2000 में विकासषील देषों में उच्च षिक्षा नाम से विष्वबैंक की टास्क फोर्स द्वारा जारी रिपोर्ट तैयार कराने में अपनी सक्रिय सहभागिता दर्ज कराई थी। कैंपस की राजनीति की सक्रियता होने से जो अघोषित भय इन नियंताओं के मन में था वह आज चरम पर पहुची महंगाई आईपीएल से काॅमनवेल्थ तक के घोटालों,टू जी स्पेक्ट्म् से आदर्ष सोसाईटी जैसे बंदरबांट और देष की संपत्ति को गटक जाने की घटनाओं से ज्यादा साफ पता चलता है।

कितना दुःखद है संसद में गुंडो को ले जाने से लेकर विधानसभाओं, परिषदों में माफियाओं की दखल को यह देष कैंपस में भविष्य के नता पैदा करने से ज्यादा बेहतर समझता है,दुःख तो सबको होता है जब अपने देष में कांगेस के राज में केवल अलगाववादियों को पुष्ट रखने के लिए कष्मीर के लाल चैक पर गणतंत्र दिवस पर भारत का तिरंगा नहीं लहराया जा सकता है। 90 के दषक में षिक्षा को बेचने की शुरूआत करने से पूर्व ही इन नीति निर्माताओं ने इसलिए भी छात्रसंघों व छात्र राजनीति का विरोध किया होगा क्योंकि मान्यता देने से लेकर, कालेज खुलवाने, डीम्ड - प्राइवेट वि0 वि0 बनाने में इनकी मोटी कमाई नहीं हो पाती क्योंकि तरूणाई खुलकर आज राजनीतिक हस्तक्षेप के ताकत में होती।

कैंपसों में चल रहे मुनाफाखोरी के धंधें से शायद इस देष को छात्रसंघों की मौजूदगी से कम क्षति हो रही है। युवा राजनीति का दम घोंटने वाले यह बखूबी जानते हैं कि विभेद,शोषण, विरोध सहित तमाम सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक परिवर्तनों का एकमात्र सूत्रधार तरूणाई होती है तभी तो इन्होंने छात्र राजनीति को लेकर पूर्व नियोजित तरीके से राजनीति की नर्सरी की ऐसी पटकथा लिखी जिससे छात्र राजनीति का चेहरा ही विद्रूप हो गया और लिंगदोह जैसे साहबों ने देष के अंदर एक पवित्र संस्था पर जमकर थू-थू कराया।

नीति निर्माताओं ने देष को समझाया कि षिक्षा परिसर नेता पैदा करने के कारखाने नहीं है। ऐसा उनके लिए इसलिए भी करना जरूरी था क्योकि नेता पैदा करने का केन्द्र तो अरबों हिन्दुस्तानियों के घर के बजाय इंदिरा-नेहरू खानदान को ही बने रहना था। ये कुछ ऐसा ही है जैसा पुरानी सल्तनतों के वारिसों के साथ होता रहा। युवा कहलाने का हक केवल नेहरू परिवार के नौजवानों के पास हो और बाकी मुल्क युवा नेता के प्रषंसक और पिछलग्गू रहें तो सब ठीक है।

नोट के बदले संसद में सवाल पूछने वाले, पैसा देकर बहुमत जुटाने वाले , लाखों करोडों रूपये का घोटाला कर खुद को बारंबार अच्छा साबित का कोषिष करने वाले वस्तुतः इस बात से सदैव डरते रहे हैं कि उनके राजनैतिक व्यापार का अगर कोई सबल,समर्थ और सही प्रतिद्वंदी रहा है तो वह है हिन्दुस्तान की तरूणषक्ति।

विसंगति है कांगे्रसी घरानों के राजकुमार राहुल,सचिन पायलट सरीख्ेा नेता देष के युवा प्रतिनिधि हैं जिन्होने अपने दम पर सिर्फ विरासत मेें मिली नाव की सवारी की है। इनकी नजर में देष की आबादी के 70 फीसदी युवा महज पिछलग्गू बनकर इनकी नुमाइंदगी को सलाम करते रहें तो ही प्रगति होगी। इनको कैसे नहीं डर लगेगा जब ये ही नहीं पूरा देष जानता है कि महज 50-60 करोड के बोफोर्स घोटाले पर राजीव गांधी की सरकार गिरी,इंदिरा की तानाषाही को देष की तरूणाई ने गजब की पटखनी दी,वैसे ये अब छात्र युवा राजनीति का पर कुतर आराम से 176000 के स्पेक्ट्म घोटाले सहित कलमाडी सरीखे लोगों के कंधे पर बंदूक रख अपनी जेबें भर रहे हैं, इन्हें पता है दो चार  हफतो बाद चाहे शुृगलू कमीषन रिपोर्ट हो या कोई अन्य आयोग की जांच सब कुछ देष का आम मतदाता भूल जायेगा क्योंकि उसे तो दाल भात के पीछे लगना है,अपनी रोजी रोटी देखनी है,इन्हें बखूबी पता है कि कैरियर ओरियेन्टेड युवा इन लफडों में नही आने वाले। इनकी सोच यही लगती है कियही परिवर्तन लाना इन लोकतांत्रिक डमरूओं का लक्ष्य था जिसे ये छात्र संघों की तालाबंदी से ला चुके हैं।

अब देष बाबा रामदेव तो कभी सुब्रहमण्यम् स्वामी तो कभी टी0एन0षेषन तो कभी किरन बेदी की ओर टुकुर टुकुर ताक रहा है फिर भी उसे ये संतोष नहीं कि आसिर क्या होगा इस देष का । सच तो ये है कि अब राषन कार्ड बनवाने से लेकर विधवा पेंषन पाने तक में कुछ ले दे के तेज काम कराने के खेल,सत्ता के दम पर किसी को कभी भी आबाद या बर्बाद करने के खेल,विधायको के बलात्कार जैसे मामलों से देष उकता सा गया है। समूचे भारत में अब सरकारी बाबुओं से लेकर भ्रष्ट नेताओं के बारे में एक ही राय है जिसे हम आप कोई अच्छा नहीं साबित कर सकते।कहीं न कहीं समूचा भारत निगाह गडाये बैठा है उस चमत्कार की ओर जो अबाध गति से तूफान की तरह आये और पूरी व्यवस्था को एकबारगी गंगा स्नान करा दे।

यही सही वक्त है देष की तरूणाई को उस अहम् जिम्मेदारी के बारे में सोचने का जो पूरे देष में उस विद्युत का संचार करे जो फरेबी यूथ आइकाॅनों,मायावी बुद्धिजीवियों, तथाकथित जनवादियों की पहचान कर लोगों के बीच ला सके। हमको इन फरेबियों के मकडजाल से निकल कर उस आबादी के बारे में सोचने की जरूरत है जो देष केे खेतों मेे,फुटपाथों पर,झोपडों में,मनरेगा में खटते हुए,एक अदद नौकरी के लिए कर्ज लेकर प्रोफेषनल कालेजों में पढते हुए अपनी आंखों मंे सीना तानकर चलने का सुनहरा सपना पाले हुए है।

आज की तरूणाई को अब सोचना ही होगा उन ढकोसलेबाज नेताओं के बारे में जिन्होंने असल नेताओं की फौज को टकराव के भय से पराजय की आषंका से पनपने से रोक दिया है। पूरे देष को यदि वास्तव में अपनी माटी पर लूट मचाकर जनता का धन हडपने वालों को दंडित करने की रंचमात्र भी कामना है तो जागकर सबसे पहले देष में छात्र-युवा राजनीति को पुर्नस्थापित कराने के लिए व्यापक देषव्यापी जनमत तैयार करना होगा क्योंकि खुद को दिलासा देने के लिए सपनों में भविष्य  और उज्जवल अतीत में खोने से बेहतर है,बंधी हुई बेडियों को काटकर अपनी चेतना हासिल कर देष को परम् वैभव पर ले जाया जाये।

आनन्द शाही ’’नौतन’’ (प्रदेष सह-म्ीडिया प्रभारी,,भाजपा-युवा मोर्चा,उ0प्र)
(लेखक भाजपा-युवा मोर्चा,उ0प्र0 के प्रदेष सह मीडिया प्रभारी व सामाजिक शोध एजेंसी डी-वोटर्स के वरिष्ठ शोध अधिषाषी हैं)
संपर्क-9454721176,9598939235
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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आईरीड भारत खुद बनाये प्राकृतिक रंगों से खेलें होली : डा. अर्चना

Posted on 20 March 2011 by admin

dr2इको फ्रेण्डली होली अभियान की सूत्रधार गैर सरकारी संस्था आईरीड भारत ने `खुद बनाये प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की अपील की है। यहां जारी प्रेस विज्ञप्ति में आईरीड की निदेशक डा. अर्चना ने आम जन से अपील की है कि वह खुद घर में बनाएं रंग-बिरंगे प्राकृतिक रंगों से इसबार होली खेलें।

उन्होने बताया कि होली के रंगों के लिए टेसू और पलाश के फूलों का उपयोग आदिकाल से होता आया है। यह ओर जहां कृत्रिम रसायनिक रंग स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह होते हैं वहीं टेसू और पलाश के रंगों में औषधीय गुण पाये जाते हैं। इसके अलावा अन्य प्राकृतिक स्रोतों से विभिन्न रंग इसी तरह तैयार किये जा सकते हैं।

डा. अर्चना ने बताया कि लाल रंग- लाल गुड़हल के फूल, अनार के छिलके, सिन्दूरिया के बीज या लाल चन्दन पाउडर से बनाया जा सकता है तथा पीला रंग हल्दी-बेसन को साथ मिलाकर बनाने से तैयार किया जा सकता है। केसरिया रंग, टेसू और पलाश के फूलों से तैयार होगा।

उन्होने बताया कि गुलाबी रंग गुलाब की पत्तियों से, मैजेन्टा शलजम के गूदे से तथा हरा रंग मेंहदी, गुलमोहर, पालक आदि से पत्तों से बनाया जा सकता है। यह रंग ऋतु परिवर्तन के अवसर के लिए स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होने के साथ-साथ इको फ्रेंण्डली होंगे। आईए इस अभियान की कड़ी बनकर इसे आगे बढ़ायें।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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होली

Posted on 19 March 2011 by admin

मौसम मस्त हुआ,
सभी हुए खुशहाल।
होली के हुड़दंग में,
उड़ी खूब गुलाल।
टेसू से रंग बना,
पीला और लाल।
होली रंग से खेल लो,
रहे न कोई मलाल।
हया शर्म को छोड़कर
अधर करो तुम लाल
रंगों के रस रंग में
रखना यही ख्याल
कर लो दिल की बात
चलो न कोई चाल
होली फिर आयेगी
अब तो अगली साल।

surender-agnihotri-21
-सुरेन्द्र अग्निहोत्री
राजसदन-120/132
बेलदारी लेन, लालबाग,
लखनऊ
मो0: 9415578695

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आपसी भाई-चारे, प्रेम एवं सौहार्द का पर्व है होली,नफरतों के जल जाएं सब अम्बार होली में!

Posted on 19 March 2011 by admin

gandhi-ji-with-globe-for-email(1) `होलिका´ का दहन समाज की समस्त बुराइयों के अन्त का प्रतीक है :-
होली भारत के सबसे पुराने पर्वों में से है। यह कितना पुराना है इसके विषय में ठीक जानकारी नहीं हैं लेकिन इसके विषय में इतिहास पुराण व साहित्य में अनेक कथाएं मिलती हैं। लेकिन इसके हर कथा में एक समानता है कि उसमें `असत्य पर सत्य की विजय´ और `दुराचार पर सदाचार की विजय´ का उत्सव मनाने की बात कही गई है। इस प्रकार होली मुख्यत: आनन्दोल्लास तथा भाई-चारे का त्योहार है। यह लोक पर्व होने के साथ ही अच्छाई की बुराई पर जीत, सदाचार की दुराचार पर जीत व समाज में व्याप्त समस्त बुराइयों के अन्त का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता व दुश्मनी को भूलकर एक-दूसरे के गले मिलते हैं और फिर ये दोस्त बन जाते हैं। राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व बसन्त का सन्देशवाहक भी है। किसी कवि ने होली के सम्बन्ध में कहा है कि :-
नफरतों के जल जाएं सब अम्बार होली में।
गिर जाये मतभेद की हर दीवार होली में।।
बिछुड़ गये जो बरसों से प्राण से अधिक प्यारे,
गले मिलने आ जाऐं वे इस बार होली मेें।।

(2) `भक्त प्रह्लाद की प्रभु के प्रति अटूट भक्ति एवं निष्ठा´ के प्रसंग की याद दिलाता है यह महान पर्व :-
होली पर्व को मनाये जाने के कारण के रूप में मान्यता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकश्यपु नाम का एक अत्यन्त बलशाली एवं घमण्डी राक्षस अपने को ही ईश्वर मानने लगा था। हिरण्यकश्यपु ने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबन्दी लगा दी थी। हिरण्यकश्यपुु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर का परम भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से कुद्ध होकर हिरण्यकश्यपुु ने उसे अनेक कठोर दण्ड दिए, परन्तु भक्त प्रह्लाद ने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकश्यपुु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकश्यपुु के आदेश पर होलिका प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से उसे अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। किन्तु आग में बैठने पर होलिका तो जल गई परन्तु ईश्वर भक्त प्रह्लाद बच गये। इस प्रकार होलिका के विनाश तथा भक्त प्रह्लाद की प्रभु के प्रति अटूट भक्ति एवं निष्ठा के प्रसंग की याद दिलाता है यह महान पर्व। होली का पर्व हमारे अन्त:करण में प्रभु प्रेम तथा प्रभु भक्ति के अटूट विश्वास को निरन्तर बढ़ाने का त्योहार है।

(3) शाहजहां के जमाने में होली को `ईद-ए-गुलाबी` या `आब-ए-पाशी´ (रंगों की बौछार) कहा जाता था :-
होली जैसे पवित्र त्योहार के सम्बन्ध में सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी ने अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है। भारत के अनेक मुस्लिम कवियों ने अपनी रचनाओं में इस बात का उल्लेख किया है कि होलिकोत्सव केवल हिन्दू ही नहीं अपितु मुसलमान लोग भी मनाते हैं। इसका सबसे प्रामाणिक इतिहास की तस्वीरे मुगलकाल की हैं और इस काल में होली के किस्से उत्सुकता जगाने वाले हैं। इन तस्वीरों में अकबर को जोधाबाई के साथ तथा जहांगीर को नूरजहां के साथ होली खेलते हुए दिखाया गया है। शाहजहां के समय तक होली खेलने का मुगलिया अन्दाज ही बदल गया था। इतिहास में वर्णन है कि शाहजहां के जमाने में होली को `ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी´ (रंगों की बौछार) कहा जाता था। अन्तिम मुगल बादशाह शाह जफर के बारे में प्रसिद्ध है कि होली पर उनके मन्त्री उन्हें रंंग लगाते थे।

(4) होली का आधुनिक रूप :-
होली रंगों का त्योहार है, हंसी-खुशी का त्योहार है। लेकिन होली के भी अनेक रूप देखने को मिलते हैं। प्राकृतिक रंगों के स्थान पर रासायनिक रंगों का प्रचलन, भंाग-ठण्डाई की जगह नशेबाजी और लोक-संगीत की जगह फिल्मी गानों का प्रचलन इसके कुछ आधुनिक रूप है। अनेक ऐसे लोग हैं जो पारम्परिक संगीत की समझ रखते हैं और पर्यावरण के प्रति सचेत हैं। इस प्रकार के लोग और संस्थाएं चन्दन, गुलाबजल, टेसू के फूलों से बना हुआ रंग तथा प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की परम्परा को बनाये हुए हैं। साथ ही रासायनिक रंगों के कुप्रभावों की जानकारी होने के बाद बहुत से लोग स्वयं ही प्राकृतिक रंगों की ओर लौट रहे हैं।

(5) अत: होली के इस महान पर्व को आपसी प्रेम, भाई-चारे व सौहार्द के साथ मनाते हुए :-
1.    कठिन से कठिन परिस्थतियों में प्रभु की राह से विचलित न होने की प्रेरणा देने वाले होली के महान पर्व के अवसर पर बच्चों को भक्त प्रह्लाद की तरह ही सदैव प्रभु द्वारा बताये हुए मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए।
2.    रंगों के इस पर्व में बच्चों को कालिख, पेण्ट, रासायनिक रंगों आदि से होली नहीं खेलना चाहिए क्योंकि इनसे हमारी त्वचा व आंखों को काफी नुकसान पहुंच सकता है।
3.    होली के पावन पर्व पर बच्चों को चाहिए कि वे बाजार से अबीर व रासायनिक रंगों को न खरीदें और साथ ही अपने माता-पिता से भी इन रासायनिक रंगों को न खरीदने का अनुरोध करें। अबीर में अभ्रक का प्रयोग होता है, जो हमारे लिए खतरनाक है।
4.    इस महान पर्व पर न तो वे खुद ही किसी प्रकार के नशे का सेवन करें और न ही अपने माता-पिता को ऐसा करने दें।
5.    इस अवसर पर तेज आवाज में संगीत न बजायें। इससे बुजुर्ग व बीमार लोगों को परेशानी होती है।
6.    किसी के साथ जोर-जबरदस्ती के साथ होली नहीं खेलनी चाहिए।
7.    `जल ही जीवन है´ की कहावत को चरितार्थ करते हुए पानी का यथासम्भव कम से कम उपयोग करें।
8.    बच्चों को हल्दी, चुकन्दर, टेसू के फूल व इसी प्रकार के अन्य घरेलू सामानों से तैयार प्राकृतिक रंगों के साथ ही होली खेलनी चाहिए। इसके साथ ही वे घरेलू सामान से ही बने गुलाल से भी अपने मित्रों के साथ होली खेल सकते हैं।
9.    होली के इस महान पर्व पर वे पूरी शिष्टता के साथ ही एक-दूसरे को रंग व गुलाल आदि लगायें। साथ ही अपने से बड़ों को रंग लगाने के साथ ही उनके चरण छूकर उनका आशीर्वाद भी प्राप्त करें।

(6) होली खेलने से पहले बरतें सावधानियां :-
पहले जमाने में लोग टेसू और प्राकृतिक रंगों से होली खेलते थे। वर्तमान में अधिक से अधिक पैसा कमाने की होड़ में लोगों ने बाजार को रासायनिक रंगों से भर दिया है। वास्तव मेंं रासायनिक रंग हमारी त्वचा के लिए काफी नुकसानदायक होते हैं। इन रासायनिक रंगों में मिले हुए सफेदा, वानिZश, पेण्ट, ग्रीस, तारकोल आदि की वजह से हमको खुजली और एलर्जी होने की आशंका भी बढ़ जाती है। इसलिए होली खेलने से पूर्व हमें निम्न सावधानियों को अवश्य बरतना चाहिए :-
1.    होली खेलने से पहले शरीर के खुले हिस्सों पर वैसलीन, तेल या कोल्ड क्रीम लगाएं। सरसों का तेल, ऑलिव ऑयल या नारियल का तेल लगाने से हमारी त्वचा पर रंगों की पकड़ हल्की रहती है।
2.    नाखूनों को होली के रंगों से बचाने के लिए महिलायें उन पर नेल पॉलिश लगा लें। साथ ही रंग खेलने से पहले बढ़े हुए नाखूनों को भी काट लेना चाहिए।
3.    बहुधा होली के दिन लोग पुराने कपड़े पहनते हैं, पर कपड़े इतने पुराने भी नहीं होने चाहिए कि होली खेलते समय उनकी सिलाई खुल जाये या कपड़े फट जायें।
4.    कपड़े ऐसे पहनने चाहिए जिससे आपका पूरा शरीर ढका रहें। इससे काफी हद तक शरीर का रंगों से बचाव हो जाता है।
5.    होली खेलने से पहले अंगूठी, घड़ी व सभी प्रकार के आभूषणों को अवश्य उतार कर रख देें।
6.    बालों पर तेल लगा लें। साथ ही सूखे रंगों के कुप्रभाव से अपने बालों को बचाने के लिए टोपी का प्रयोग अवश्य करें।

(7) ऐसे छुड़ाएं होली के रंग :-
1.     होली खेलने के बाद जितनी जल्दी हो सके, रंगों को छुड़ा दें। इन्हें ज्यादा देर तक त्वचा पर न लगा रहने दें।
2.     तेज रगड़ने से त्वचा में जलन होती है और अधिक रगड़ से त्वचा के छिलने का भी डर रहता है। अत: रंगों को धीरे-धीरे छुड़ाएं।
3.     बेसन या आटे में नीबू का रस डालकर उससे रंगों को छुड़ाएं। इसके साथ ही नारियल के तेल या दही से भी त्वचा को धीरे-धीरे साफ कर सकते हैं।
4.     रंग छुड़ाने के लिए मिट्टी का तेल, डिटर्जेण्ट या कपड़े धोने का साबुन इस्तेमाल में न लाएं।
5.      बालों में से रंग निकालने के लिए पहले उन्हें अच्छे से झाड़ लें ताकि उनमें से सूखा रंग निकल जाए। बालों से सूखा रंग निकलने के बाद ही उन्हें अच्छे से धोयें।
-जय जगत-

- डा. जगदीश गान्धी, प्रख्यात शिक्षाविद् एवं
संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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पुरुषार्थ,प्रार्थना तथा प्रतीक्षा पूर्ण जीवन के सूत्र - नरेन्द्र सिंह राणा

Posted on 17 March 2011 by admin

जीवन अमृत है बस जीना आना चाहिए। जहर भी अमृत है भगवान शंकर व परम् भक्त मीरा की तरह पीना आना चाहिए। आदिकाल से लेकर आज तक जितने भी महापुरूष हुए सब के जीवन में पुरूषार्थ, प्रार्थना तथा प्रतीक्षा का महामन्त्र मूल आधार है। जिसप्रकार सुबह, दोपहर, शाम को मिलाकर पूरा दिन बनता है उसी प्रकार उपरोक्त तीनों गुणों को मिलाकर मानव का पूर्ण जीवन खिलता है। यहां पुरूषार्थ बीज है उसको बोने के लिए भूमि को जोतना पड़ता है, सींचना पड़ता है, पथरीली, कंकरीली जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए कठोर परिश्रम करना होता है। प्रार्थना वृक्ष रूप है, बीज जमीन के अन्दर बो दिया जाता है, उसके पौधे के रूप में बाहर आने और विशाल वृक्ष बनने तक अपना काम करती है। प्रतीक्षा वृक्ष पर फल आना व उसका पकना है। सतयुग, त्रैता, द्वापर और कलिकाल में तीनों महान् गुणों से युक्त जीवन जीने वाले महापुरूषों के अनेक उदाहरण हैं। ऋषि मतंग ने मॉं शबरी, ब्रह्म ऋषि विश्वामित्र ने अहिल्या और श्री हनुमान जी महाराज ने बानर राज सुग्रीव को प्रतीक्षा, धैर्य कर भरोसा रखना बताया जिसके परिणामस्वरूप ही स्वयं प्रभु श्री राम प्रतीक्षार्थीयों के पास गये और उनका उद्धार किया। दानव और देवता दोनों परम पुरूषार्थी और प्रार्थना करने वाले माने गए हैं। अनेकों बार देवाअसुर संग्राम हुए दैत्यों ने देवताओं को हराया भी परन्तु उनका राज कभी यशस्वी नहीं रहा वहीं देवताओं ने भगवत कृपा पाई और अखण्ड राज किया। दोनों में तुलना करने पर यह सहज समझ में आता है कि देवता प्रतीक्षा रूपी गुण के माहिर थे और दैत्य इस गुण से सदा विहीन थे। पुरूषार्थी व्यक्ति अधीर होता है। पुरूषार्थी यह सोचते है कि सफलता तो मेरे पुरूषार्थ पर निर्भर हैं, जितना जल्दी करूंगा उतनी जल्दी सफलता मिलेगी। जो प्रतिक्षा करता है वह धीर होता है। जो कृपा चाहेगा उसे धैर्य पूर्वक प्रतीक्षा करनी होगी। सूत्र यही है कि पुरूषार्थ में सक्रियता है और कृपा में प्रतिक्षा है। प्रार्थना की शक्ति अपरम्पार होती है। श्री हनुमान जी महाराज के चरित्र में हम पुरूषार्थ, प्रार्थना और प्रतिक्षा का समग्र रूप एक साथ देखना चाहे तो सहज ही देख सकते हैें।  हम देखते हैं कि सचमुच श्री हनुमान जी का प्रभु से मिलन होता है। हनुमान जी ने जब प्रभु श्रीराम से सुग्रीव को मिलाया तो प्रतिक्षा के मार्ग से मिलवाया। श्री राम ने हनुमान को हृदय से लगा लिया। श्री हनुमान जी ने प्रतिक्षारत सुग्रीव के बारे में प्रभु से यही कहा ´´ नाथ सैल पर कपिपति रहई-सो सुग्रीव दास तव अहई´ तेहि सन नाथ मेैत्री कीजे- दीन जानि तेहि अभय करीजे´´ यानि वानरराज सुग्रीव यहां पर्वत पर रहते हैं आप चलकर उनसे मित्रता कीजिए। कितनी मीठी बात है। साधन का स्वयं चलकर आना अति शुभ होता है। हनुमान जी सुग्रीव को भी आने के लिए कह सकते थे पर धन्य हैं, पुरूषार्थ के पुञ्ज हैं, प्रभु के पास भी है, उन्हें प्रतिक्षा (कृपा) की प्रतीति पर इतनी आस्था है कि उन्होंने प्रभु से प्रार्थना करते हुए यही संकेत किया कि प्रभु जब आप जीव पर कृपा करने के लिए श्री अयोध्यावासी से यहां तक आ गए तो अब इतनी दूर भी जीव को क्यों चलाते हैं। यह जीव तो भागते-2 थक गया है, यहां तक आने में समर्थ नहीं है। प्रार्थना के बल (समर्पण) से श्री हनुमान ने प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण जी को अपने कधों पर बैठा लिया और सुग्रीव से मिला दिया। प्रतीक्षा (कृपा) के मार्ग से श्री हनुमान जी ने परम  पुरूषार्थ होते हुए भी प्रभु का दर्शन कराया तथा मित्रता करा दी। श्री हनुमान जी के बल के बारे में अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। परमपूज्य महान् सन्त रामचरितमानस के रचियता गोस्वामी तुलसीदास जी ने उनके बारे में लिखा ´´अतुलितबलधामम्´´ उनके समग्र बल को तोलना असम्भव है फिर भी कहा गया है कि दस हजार हाथियों का बल स्वर्ग के राज इन्द्र के ऐरावत हाथी में है और यदि दस हजार एरावत हाथियों के बल को एकत्र कर दिया जाए तो उतना बल श्री हनुमान जी को कनिष्का उंगली में है। हनुमान जी विलक्षण पुरूषार्थी, प्रार्थनार्थी और प्रतिक्षार्थी है। चाहते तो बाली और रावण को स्वयं हरा सकते थे और मार भी सकते थे। इतने बड़े पराक्रमी होते हुए भी उन्होंने न हराया न मारा। प्रभु के राज्याभिषेक के समय महषिZ अगस्त दर्शन के लिए पधारे प्रभु ने ऋषिवर का पूजन किया । महषिZ अगस्त ने प्रभु से कहा कि इतिहास में हनुमान के समान बलवान न हुआ है न हो सकता है। प्राणी मात्र हनुमान जी के जीवन चरित्र से कुछ सिखें कि हमें अपने गुणों को छिपाना चाहिए।  हम अभिमान में न रहे तो हमारा जीवन धन्य हो सकता है। हम सबके जीवनमें दो वस्तुएं है स्मृति और विस्मृति। हमारा दुर्भाग्य यह है कि जिसकी हमें विस्मृति होनी चाहिए उसका हम स्मृर्ति कर रहे हैं और जिसकी स्मृति होनी चाहिए उसको विस्मृत कर बैठे हैं। रामायण की अनोखी भाषा में भगवान ने हमें यह जो विस्मरण दिया है सदा चिन्तन करने योग्य है। रावण, कुम्भकरण, मेघनाथ ने वरदान पाया भगवान विष्णु, हनुमान जी, नल व नील को श्राप मिला। हमारे आदर्श वरदानी नहीं श्रापित हैं। राक्षसी वृति तो मिले वरदान को श्राप बना देती है वही वरदान की वृति हो तो हम श्राप को भी वरदान बना सकते है। घनीभूत विश्वास प्रतिक्षा की खान श्री हनुमान जी ने अपने चरित्र के द्वारा दिखा दी। मारना और बचाना दोनों प्रभु जी का काम है। मोह मारेगा तो हरि इच्छा से और जीव की रक्षा होगी तो प्रभु आश्रय से। गोस्वामी जी ने विनय पत्रिकाओं में कहा कि हम धन को भी उतना नहीं छिपाते है, जितना किए गए पापों को गहराई से छिपाते हैं। दूसरे की संगति से ´´ संग बस किये सुभ सुना ये सकल लोकनिहारी´´ जो कुछ अच्छा कार्य हो गया सबको दिखलाते फिरते है। यह बाली और रावण की वृत्ति है। दोनों  म्प्रभु के बाण से मारे गए।

´´महषिZ विश्वामित्र जी ने प्रतिक्षा (धीर) का बहुत सुन्दर अर्थ किया है। ´´गौतम नारी श्राप बस उपल देह धरि धीर´´  पुरूषार्थी व्यक्ति अधीर होता है पर जो कृपा चाहता है  उसे धीर (प्रतीक्षारत) होना पड़ेगा। अहिल्या को परम धेैर्यशालिनी (प्रतीक्षारत) बताते हुए श्रीराम से कहा कि यह कब से आपके आने का मार्ग देख रही है। सन्त की यही विशेषता है कि वे विशेषता निकाल लेते हैं। वेद व्यास जी कहते है ´´भुज्जानएवात्मकृतं विपाकम´´  जीवन की प्रतिकुलता, कष्ठ, रोग, संकट तथा विपति मेरे किसी पाप का व प्रारब्ध का परिणाम है, अत: इसे भोग लेना ही अच्छा है। ´´पुरूषार्थ बीज है उसे बोने के लिए भूमि को जोतना पड़ता है, सींचना पड़ता है, पथरीली, कंकरीली जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए कठोर परिश्रम करना पड़ता है बीज जमीन के अन्दर बोया जाता है। प्रार्थना है उसका पौधे के रूप में बाहर आना तथा वृक्ष बनना।  प्रतिक्षा है वृक्ष पर फल आना उनका पकना। तीनों में सामञ्जस्य होना मानव का सम्पूर्ण जीवन कहलाता है। यह सब गुरू महाराज का प्रसाद है।

लेखक- पावरलििफ्टंग के अन्तर्राष्ट्रीय कोच रहे हैं
वर्तमान मेंउ0प्र0 भाजपा के मीडिया प्रभारी हैं।
लखनऊ, मो0 9415013300

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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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ईरान में बहाईयों पर अत्याचार गम्भीर चिन्ता का विषय - डॉ0 (श्रीमती) भारती गान्धी, बहाई अनुयायी

Posted on 14 March 2011 by admin

लखनऊ की प्रमुख बहाई अनुयायी डॉ0 (श्रीमती) भारती गान्धी ने ईरान में बहाई धर्मावलम्बियों पर हो रहे विभिन्न अत्याचार पर गम्भीर चिन्ता तथा दु:ख व्यक्त किया है। उन्होने आज जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से यह सूचना दी की ईरान में बहाई धर्म के अनुयाईयों को गैर-कानूनी ढंग से गिरफ्तार करके जेल में बन्द रखने के धोर अमानवीय व्यवहार से भारत का प्रबुद्ध वर्ग बुरी तरह से आहत है। भारत की न्यायिक, प्रशासनिक, मानवाधिकार, शिक्षा, सामाजिक संगठनों, कार्पोरेट जगत आदि से जुड़ी 90 विख्यात तथा प्रबुद्ध हस्तियों ने भी रोष प्रकट करते हुए कहा है कि धार्मिक आस्था के आधार पर बहाईयों के साथ हो रही यह भेदभावपूर्ण कार्यवाही अमानवीय, पूर्वाग्रह से भरी तथा गैरकानूनी है। उन्होंने ईरान के पीड़ित बहाईयों पर हो रही दमनपूर्ण कार्यवाही पर अपनी गहरी सहानुभूति व्यक्त करते हुए भारत सरकार से अपील की है कि वह ईरान सरकार से तुरन्त गैर-कानूनी ढंग से गिरफ्तार किये गये बहाईयों को छोड़ने के लिए दवाब डाले।

डा0 गान्धी ने बताया कि 7 बहाईयों को गिरफ्तार करके तेहरान की जेल में मई 2008 से डाल दिया गया है। ईरान सरकार के सुरक्षा कर्मियों द्वारा बहाईयों के घरों में छापा मारकर उनकी बहाई धर्म की पवित्र पुस्तकों, कम्प्यूटर्स, फोटो आदि जब्त कर लिये गये। इन बहाईयों में से कुछ के परिवारजन तथा मित्र नई दिल्ली में निवास कर रहे हैं। ईरान में बहाई धर्म के अनुयायियों की बिना पूर्व सूचना के हो रही गिरफ्तारियां बहाईयों के सहनशील दृष्टिकोण तथा धार्मिक आस्था की स्वतन्त्रता के खिलाफ है। यह सारे विश्व के मानवीय एवं विचारशील लोगों के लिए चिन्ता का विषय है। हाल ही में उत्पीड़न का सिलसिला इतना बढ़ गया है कि बहाई विद्यार्थियों पर हमले, मीडिया में उनके खिलाफ झूठी बातें फैलाना, उनके घरों तथा दुकानों को क्षति पहुंचाना, उन्हें जीवन यापन की आम जरूरतों से वंचित रखना और उन्हें विश्वविद्यालय से बेदखल करना आदि बातें आम हो गई हैं। ईरानी सरकार की मिलीभगत से बहाई समाज पर दिन-ब-दिन अत्याचारों का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है।

ईरान स्वयं एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौते पर हस्ताक्षर कर चुका है जिसके तहत हर व्यक्ति को अपना मनचाहा धर्म अपनाने की स्वतन्त्रता है और उसके साथ इस मामले में कोई जोर जबरदस्ती नहीं की जा सकती है। बहाई धर्म के जन्म स्थल ईरान में बहाईयों के साथ इस तरह की धार्मिक घृणा तथा भेदभाव से भरी दमनपूर्ण कार्यवाही दुखदायी है। ऐसे समय जब सारा विश्व पूरी धार्मिक स्वतन्त्रता, एकता, शान्ति तथा मित्रता के साथ एक-दूसरे के साथ हिलमिल कर रहते हुए नये युग में जी रहा है। जबकि ईरान में बहाईयों पर सिर्फ उनके धर्म के आधार पर विभिन्न प्रकार के अत्याचार किए जा रहे हैं।

ज्ञातव्य हो कि भारत तथा अन्य देशों में बहाई सहित अन्य धार्मिक समुदायों को अपने धर्म के प्रति आस्था व्यक्त करने की पूरी स्वतन्त्रता है, जबकि इनमें से कई देश धर्मनिरपेक्ष भी नहीं हैं। एक सभ्य विश्व समाज में ईरान सरकार का बहाईयों के प्रति इस तरह का अन्यायपूर्ण, कठोर तथा जातिवादी दृष्टिकोण स्वीकार करने योग्य नहींं है। यह दुखदायी स्थिति सह-अस्तित्व अर्थात समानता के साथ जीने के अधिकार का घोर हनन है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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यूनिसेफ: किशोरों पर निवेश से गरीबी और असमानता का कुचक्र मिटेगा

Posted on 06 March 2011 by admin

यूनिसेफ ने 2011 में दुनिया भर के बच्चों की स्थिति पर रिपोर्ट किशोरावस्था: अवसर की उम्र जारी करते हुए कहा है कि 10 से 19 साल के 1.2 अरब किशोरों पर निवेश करने से गरीबी और असमानता का कुचक्र मिटेगा।

भारत में 243 मिलियन(24.3 करोड़) किशोर रहते हैं, जो देश की कुल आबादी का एक चौथाई हिस्सा हैं। पिछले दो दशक के दौरान देश में विकास की तेज रफ्तार से लाखों लोग गरीबी की रेखा से बाहर निकले हैं। विकास और सरकारी योजनाओं के चलते, ही देश के किशोरों का स्वास्थ्य और विकास बेहतर हुआ है। हालांकि अभी भी खासकर लड़कियों के लिए काफी मुश्किलें बाकी हैं। लड़कियों को लैंगिक आधार पर शिक्षा और पोषण में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। कम उम्र में शादी भी एक बड़ी चुनौती है। समाजिक तौर पर बहिष्कृत और जनजातीय समुदाय में यह भेदभाव कुछ ज्यादा होता है।

दुनिया भर में, बीते दो दशक के दौरान भारी निवेश के चलते 10 साल की उम्र तक के बच्चों को काफी फायदा पहुंचा है। वैश्विक स्तर पर पांच साल से कम आयु के बच्चों की मृत्युदर में 33 फीसदी की गिरावट हुई है। साफ है कि कई युवाओं के जीवन को बचाया जा रहा है। दुनिया के अधिकांश हिस्सों में प्राथमिक स्कूल जाने के मामले में लड़कियां लड़कों की बराबरी कर रही हैं। लाखों बच्चों को अब स्वच्छ पेय जल और नियमित टीकाकरण के चलते जरूरी दवाईयां भी उपलब्ध हैं।

दूसरी ओर, किशोरों को प्रभावित करने वाले क्षेत्रों में थोड़ा ही फायदा देखने को मिला है। 70 मिलियन ( 7 करोड़) किशोर स्कूलों से बाहर हैं। माध्यमिक शिक्षा के लिहाज से दुनिया भर में लड़कों के मुकाबले लड़कियां काफी पीछे हैं। शिक्षा के बिना किशोर अपनी जानकारी और कौशल नहीं बढ़ा सकते हैं, जिसके जरिए वे अपने जीवन के दूसरे दशक में शोषण, भेदभाव और हिंसा से बच सकते हैं। ब्राजील में उदाहरणस्वरूप, 1998 से 2008 के दौरान शिशु मृत्युदर में कमी लाकर एक साल से कम उम्र के 26 हजार बच्चों को बचाया गया। लेकिन इसी दौरान 15 से 19 साल के 81 हजार ब्राजीली किशोरों की हत्या हुई।

यूनिसेफ के कार्यकारी निदेशक एंथनी लेक के मुताबिक, “ किशोरावस्था आधारबिंदू है जहां से हम बचपन के मिले फायदों का लाभ उठा सकते हैं या फिर उन लाभों को गंवा सकते हैं। हमें किशोरावस्था में पहुंच रहे बच्चों खासकर किशोर लड़कियों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। शिक्षा में निवेश, स्वास्थ्य और अन्य मापदंडो पर निवेश कर हम उनके जीवन को बेहतर बना सकते हैं।”

किशोरावस्था जीवन का गंभीर औऱ महत्वपूर्ण दौर होता है। जीवन के दूसरे दशक में गरीबी और असमानता का बोध कुछ ज्यादा ही होता है। युवा लोग जो गरीब हैं या फिर हाशिए के लोग हैं, किशोरावस्था में वे अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए होंगे। ऐसे लोगों का शोषण और अपमान भी ज्यादा होता है। लड़कियों को घरेलू मजदूरी और बाल विवाह का सामना करना होता है। विकासशील देशों में ( चीन को छोड़कर) किसी गरीब परिवार की लड़की की 18 साल की उम्र से पहले शादी होने की संभावना किसी अमीर परिवार की लड़की से तीन गुना ज्यादा होती है। जिन लड़कियों की कम उम्र में शादी हो जाती है, उन्हें कम उम्र में ही बच्चे को जन्म देना होता है। जिससे मातृ मृत्यु दर के बढ़ने के अलावा बच्चे के कुपोषित होने की आशंका बनी रहती हैं। लड़कों की अपेक्षा लड़कियों को घरेलू और यौन हिंसा का ज्यादा सामना करना होता है, जिसके चलते उन्हें एचआईवी संक्रमण की आशंका भी ज्यादा होती है।

किशोरों की बड़ी आबादी(88 प्रतिशत) विकासशील देशों में रहती है। उनमें कई को काफी चुनौती का सामना करना पड़ता है। अतीत के मुकाबले आज के किशोर कहीं ज्यादा स्वस्थ हैं। लेकिन स्वास्थ्य संबंधी ख़तरा मसलन, दुर्घटना का शिकार होना, खाने-पीने में गड़बड़ियां, मादक पदार्थों का सेवन और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं भी मौजूद हैं। आकलन के मुताबिक प्रत्येक पांच में से एक किशोर मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहारगत समस्याओं की चपेट में है।

2009 में 81 मिलियन (8.1 करोड़) युवाओं को नौकरी से निकाला गया। युवाओं में बेरोजगारी हर देश देश के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। तेजी से बढ़ते तकनीकी श्रम बाज़ार में जिस कुशलता की ज़रूरत है, वह ज्यादातर युवाओं के पास नहीं है। इससे युवा प्रतिभा का नुकसान तो होता ही है, साथ ही उस समुदाय के लिए भी अवसर खत्म होते जिसमें वे रहते हैं। दुनिया के कई देशों में किशोरों की आबादी को जनसांख्यिकी तौर पर बेहतर संसाधन माना जा सकता है, लेकिन इसे नजरअंदाज कर दिया जाता है। किशोरों की शिक्षा औऱ प्रशिक्षण पर निवेश करके कोई भी देश अपने यहां बड़ा मानव संसाधन तैयार कर सकता है जिससे देश की आर्थिक विकास दर बढ़ेगी।

किशोरों को आज और आने वाले कल में कई वैश्विक चुनौतियों को सामना करना पड़ेगा। इनमें मौजूदा वक्त में दुनिया का अनिश्चित आर्थिक दृष्टिकोण, पर्यावरण संकट, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण क्षरण, अंधाधुंध शहरीकरण और पलायन, समाज में बुजुर्ग लोगों की बढ़ती संख्या, स्वास्थ्य सुविधाओं पर बढ़ता खर्च, और तेजी से बढ़ते मानवजनित संकट शामिल हैं।

किशोर इन चुनौतियों का सामना बेहतर ढ़ंग से कर पाएं, इसके लिए निम्नांकित क्षेत्रों में निवेश जरूरी हैं-

•    किशोरों की स्थिति को समझने के लिए आंकड़ों का संग्रह को बेहतर बनाना होगा और उनके अधिकारों की आपूर्तिक करनी होगी।
•    उनकी शिक्षा और प्रशिक्षण पर निवेश करना होगा ताकि वे खुद को गरीबी से निकाल सकें औऱ देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे सकें।
•    युवाओं की भागीदारी बढ़ाने के मौके मुहैया कराने होंगे। उन्होंने अपनी राय जाहिर करने के लिए राष्ट्रीय युवा परिषद, युवा मंच, सामुदायिक सेवा पहल, ऑनलाइन सक्रियता और अन्य विकल्पों की तलाश करनी होगी।
•    किशोरों की अधिकारों की रक्षा के लिए कानून, नीतियों और कार्य़क्रमों का प्रचार किया जाना चाहिए। बुनियादी सेवाओं में आ रही अड़चनों को भी दूर करना होगा।
•    गरीबी औऱ असमानता के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए बाल संवेदनशील कार्यक्रमों को लागू करना होगा ताकि किशोरों को असमय ही व्यस्कता का भार नहीं उठाना पड़े।

लेक कहते हैं,“ दुनिया भर के लाखों लोगों को हमारे विस्तृत कार्ययोजना का इंतजार कर रहे हैं। हमें युवाओं को वह साधन मुहैया कराने होंगे जिससे वे जीवन को बेहतर बना सकें और आर्थिक तौर पर सक्षम नागरिक के तौर पर तैयार हो सकें। ताकि वे नागरिक जीवन के साथ साथ अपने समुदाय में सक्रिय योगदान कर सकें।”

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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`भ्रष्ट व्यूह´ का प्रथम द्वार धराशाही

Posted on 04 March 2011 by admin

समूचा देश सियासी जमात के महाभ्रष्ट आचरण के व्यूह में फंसा आर्तनाद कर रहा है,ऐसे में पांच पाण्डव `इण्डिया अगेंस्ट करप्शन´ लक्ष्य बेध के लिए जंग-ए-ईमान में डटे हैं। यह जंग 21वीं सदी का महाभारत ही है। इसमें धर्मराज रूप जीवन्त गांधी की छवि रखने वाले अन्ना हजारे हैं जो स्वयमेव एक वैशिष्ट रखते हैं। अपरिमित शक्ति रखने वाले भीमसेन के रूप में पूर्व निर्वाचन आयुक्त जे.एम. लिंगदोह और लक्ष्यवेध में निपुण तीरन्दाज सव्यसाची अर्जुन के रूप में आरटीआई कार्मिक अरविन्द केरजीवाल हैं, विधि विशेषज्ञ शंाति भूषण व प्रशान्त भूषण `नकुल-सहदेव´ पूर्व आईपीएस किरणबेदी सहित देशभर के सदाचारी सेवानिवृत्त अधिकारी व मौजूदा अफसरों का संगठन सत्यमेव जयते आदि अन्यान्य जन इस पाण्डव `धर्मसेना´ के महारथी है। इस महासमर में `ईश्वरीय सत्ता´ अपना कार्य योगेश्वर कृष्ण के निर्गुणात्मक रूप में जो होना चाहिए वह सम्पादित कर रही है। जहां जिसे निमित्त मान रही है, वहां वही निमित्त बन रहा है। धर्म रूप अन्ना हजारे ने जनलोकपाल विधेयक के लिए नवसंवत्सर से आमरण अनशन करने का ऐलान किया है, ईश्वरीय सत्ता की प्रेरणा से यह कदम उठाया जा रहा है, इसीलिए जेएम लिंगदोह के नैमित्तिक प्रयास से भ्रष्ट व्यूह का प्रथम द्वार धराशाही हो गया है। यह `द्वार´ है सर्वोच्च न्यायालय का सीवीसी पद से पीजे थॉमस को बेदखल करना।

दक्षिणी राज्य केरल से ताल्लुक रखने वाले थॉमस एक घोटाले के आरोपी रहे और विवादों में भी रहे, उन्हें केन्द्र द्वारा सितम्बर 2010 में केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त बनाया गया था। भला `भ्रष्ट´ अधिकारी भ्रष्टाचार को कैसे रोक सकता हैर्षोर्षो थॉमस ने अपने शपथ पत्र में राजनीति के अपराधीकरण तथा सियासत की कदाचारी संस्कृति जे.एम. लिंगदोह की याचिका पर थॉमस की नियुक्ति को रद्द कर दिया गया। सीवीसी पद पर थॉमस की नियुक्ति को भला कौन सही मान सकता थार्षोर्षो यह प्रकरण सभी की नज़रों के सामने हैं।

थॉमस की नियुक्ति रद्द होने से `जन लोकपाल बिल´ को लेकर 5 अपै्रल से दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर अन्ना हजारे के अनशन को बल मिला है, चैत्रीय नवरात्रि में `पाण्डवों´ द्वारा इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) के नाक्षत्रिक गणना केन्द्र (जन्तर मन्तर) से विज्ञान की कसौटी पर खरी उतरने वाली `महाशक्ति´ अर्जित करने का सिद्धदात्री अनुष्ठान आयोजित किया जा रहा है। जिस अनुष्ठान के निश्चय मात्र से `भ्रष्ट व्यूह´ का अहम द्वार टूट गया। यहां कौरवी सेना के रूप में सिर्फ कांग्रेस को ही हम नहीं मान सकते, बल्कि उस अपरिमित शक्ति सम्पन्न अधर्मी अनन्त अक्षौहिणी सेना में सभी ऐसे लोग हैं जो रिश्वत लेना-देना विवशता मानकर भ्रष्टाचार को पुिष्पत और पल्लवित करने वाले `भीष्म, द्रोण आदि विवश महारथी तथा आंखों पर पट्टी बांधकर अधर्म की मौन स्वीकृत देते हुए भ्रष्टता को प्रोत्साहित करने वाले नौकरशाह व न्यायपालिका के जिम्मेदार न्यायाधिकारी धृतराष्ट्र और गांधारी बने बैठे हैं। राष्ट्र को अराजकता की भींच में धकेलने वाला दुर्योधन कांग्रेस है तो दु:शासन रूपी भाजपा है साथ ही सभी सियासी पार्टियां, कर्ण-जयद्रथ तथा पुत्रमोहान्ध घृतराष्ट्र के 101 पुत्रों के रूप में शुमार रखती हैं। इस महाभारत में `सत्यमेवजयते´ वेदवाक्य सार्थकता सिद्ध करेगा। पाण्डवों के वनवास और अज्ञातवास की अवधि पूर्ण हो चुकी है। और `शक्ति-सिद्ध´ अनुष्ठान के बाद जंग-ए-ईमान रूपी महाभारत का शंखनाद हो जायेगा और पश्चिमी ओर से आ रही परिवर्तन की बयार `भारत वर्ष´ में कौरवी साम्राज्य का उड़ाकर सद्धर्म को स्थापित करेगी, यही `ईश्वरीय माया´ का शाश्वत सत्य है।

देवेश शास्त्री (इटावा) 9259119183
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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निराश करता नरेश

Posted on 24 February 2011 by admin

आशावादी देश निराशावादी नरेश कुछ ऐसी ही स्थिति का सामना कर रहा है अपना भारत देश। ´´गुण सागर नागर नर जोऊ-अल्प लोभ भल कह न कोऊ´´ अर्थात व्यक्ति चाहे गुणों का सागर हो और अत्यन्त बुद्धिमान चतुर ही क्यों न हो थोड़े से लोभ के कारण उसे कोई भला नही कहता है। यह शाश्वत सत्य कहावत और भारत के खुद के लिये ईमानदार कहे जाने वाले मा0 प्रधानमन्त्री डा0 मनमोहन सिंह पर फिट बैठती है। यह चौपाइ्रZ महान सन्त पूज्य गुरूदेव गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में लिखी है। दि0 16 फरवरी दिन बुधवार को देश की राजधानी नई दिल्ली मा0 प्रधानमन्त्री ने मीडिया से रूबरू होकर टी0वी0 चैनलों के सम्पादकों से बातचीत की। उन्होंने कहा कि मीडिया के लिये मेरा विशेष सन्देश यह है कि वे नकारात्मक मुद्दों पर ज्यादा फोकस न करे,ं मैं प्रधानमन्त्री का पद त्यागने वाला नहीं हंू, भ्रष्टाचारियों को बख्शा नहीं जायेगा, हम गठबंधन सरकार चला रहे हैं और गठबंधन की कुछ मजबूरियां होती हैं आदि अनेक स्पष्ट प्रश्नों का गोल मोल अस्पष्ट जवाब दिया। याद दिलाते चलें इसके पूर्व प्रधानमन्त्री जी ने संसद के शीतकालीन सत्र की समाप्ति के दो दिन पूर्व विदेश जाते समय हवाई जहाज में पे्रस के बंधुओं से वार्ता की थी। अपने संबोधन में उन्होंने कहा था कि विपक्ष की जे0पी0सी0 की मांग अनुचित है और जे0पी0सी0 गठित नहीं की जायेगी। हवाई जहाज में हुई पे्रस से बातचीत को कल उन्होंने जे0पी0सी0 की मांग मानकर खुद ही अपनी बात से पलटकर अपनी कमजोरी को साबित किया है। उस बात को अगर अब हवा हवाई बात कहा जाए तो यह गलत नहीं होगा। जग जाहिर है कि आपको श्रीमती सोनिया गांधी ने प्रधानमन्त्री चुना है किसी चुनाव में जनता ने नहीं चुना है। कांग्रेसी लीला में श्रीमती गांधी ही सब कुछ तय करती है वह सर्वशक्तिमान है आपको उनकी ही बात को मानना, बोलना व स्वीकारना पड़ता है। जैसे हमारे देश में हर साल बुराई पर अच्छाई की जीत के त्यौहार के रूप में दशहरा, दीपावली, होली और गांव-गांव में रामलीला का आयोजन होता है। रामलीला का आयोजन कराने वाले अच्छे-अच्छे कलाकारों को अभिनय हेतु बुलाते हैं उनका अभिनय देखने के लिये भारी भीड़ जुटती है, कलाकारों को डायलाग लिखकर दिये जाते हैं जिन्हें वह बोलते हैं। स्टेज पर पर्दे के पीछे प्रमुख कर्ता धर्ता रहता है ताकि बताए गए डायलाग बोलने में कलाकार से कहीं चूक न होने पाये इसलिए पर्दे के पीछे से पहले डायलाग बोला जाता है फिर मंच पर बोला जाता है। यही स्थिति कांग्रेसी लीला में गांधी परिवार को छोड़कर लगभग शेष सभी की है। आपको मैडम ने चुना इसीलिए आपने सदा ईमानदारी पूर्वक मैडम को सुना। आपका पूरा-पूरा लाभ कांग्रेसी उठा रहे हैं। बुराड़ी में आयोजित कांग्रेस के महाधिवेशन में श्रीमती गांधी ने डा0 सिंह को एक गरिमामय, कर्तव्यनिष्ठ, क्षमतावान बताकर उनके हटने हटाने के कयासों पर विराम लगा दिया था। घपलों, घोटालों के लगातार सामने आने और उनमें आपके मन्त्रियों, मुख्यमन्त्रियों के नाम होने से पूरी कांग्रेस सहित आपकी हालत भी पतली है। भ्रष्टाचार के उभरते मामलों को न रोक पाने के कारण राजनीतिक अनिश्चितता सरकार की लाचार छवि के कारण बनी है। जाहिर है कि जब तक यह सरकार रहेगी तब तक गठबंधन की मजबूरी बनी ही रहेगी ओैर सत्ता का पावर हाउस श्रीमती गांधी ही रहेंगी। भ्रष्टाचारियों पर सरकार के प्रहार की फिक्स मैच जैसी कार्रवाई की गूंज सुनाई पड़ती रहेगी। गठबंधन को मजबूरी बताने वाले प्रधानमन्त्री को यदि कोई निराश करने वाला नरेश कह रहा है तो उसे गलत कैसे कहा जा सकता है। जहां वाणी में सामर्थ न हो और शब्दों का कोई अर्थ न हो वहां स्थिति चिन्ताजनक बनी रहती है। वर्तमान यूपीए सरकार हर मुद्दे के लिये बहाने ढूढने और दोष किसी और के ऊपर मढ़ने के मूढ में काम  कर रही है। सात साल से जो व्यक्ति देश का प्रधानमन्त्री हो और सुधार कुछ न हो तो उन्हें क्या कहा जायेगा। एक अमरीकन एजेन्सी के अनुसार अभी भी प्रतिवर्ष काले धन के रूप में एक लाख पैतीस हजार करोड़ रू0 से अधिक का धन विदेशों में जमा हो रहा है। जन साधारण के खून पसीने की कमाई बुरी तरह लुट रही है। सरकारी योजनाओं पर खरबों रू0 का व्यय भ्रष्टाचार के कारण अपव्यय हो रहा है। भ्रष्टाचार जब शीर्ष स्तर पर हो तो नीचे के स्तर पर होगा ही। दागदार अतीत के अधिकारी की नियुक्ति मुख्य सर्तकता आयुक्त के पद पर करना, बोफोर्स तोप सौदे में करोड़ों डकारने वाले क्वात्रोची के बैंक खातों पर लगी रोक को विदेश भेजकर सीबीआई से हटवाना, जमा धन को निकालने देना, भ्रष्टाचारी मन्त्रियों का बचाव करने से आपकी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक है। वैसे आपने अपनी मजबूती का परिचय हैदराबाद में न्यायपालिका को अपनी हद में रहे, मीडिया घपले, घोटालों को ही न छाप,े विपक्षी दल सरकार से दुश्मनी मानता है तथा प्रधानमन्त्री पद से इस्तीफा नहीं दूंगा कहकर दिया है। मुक्त पुरूष संसार में कैसे रहते हैं जैसे आंधी से उड़ी हुई पत्तल उसकी अपनी इच्छा या अभिमान नहीं रहता हवा उसको जिस ओर उड़ा ले जाती है वह उसी ओर चली जाती है, कभी कुड़े के ढेर के तो कभी अच्छी जगह पर। दूसरा उदाहरण जहाज किसी भी दिशा में क्यों न जाए कम्पास (दिग्दर्शक यन्त्र) की सुई उत्तर दिशा ही दिखाती है इस कारण जहाज को दिशा भ्रम नहीं होता। सत्ता की आंधी हो या भ्रष्टाचार का तूफान उठा हो अथवा पूरा देश सरकार पर आरोप लगा रहा हो आपको कम्पास की उत्तर दिशा की तरह (10 जनपथ) ही दिखाई देता है। चाहे आन्तरिक एवं बाह्य सुरक्षा, कश्मीर में अलगाववादियों की हरकतें, बढ़ता हुआ नक्सलवाद और माओवाद, कमरतोड़ महंगाई, अराजकता, बेरोजगारी, गरीबी, राष्ट्र भाषा और राष्ट्र ध्वज का अपमान हो आप उसको न रोक पाने में गठबंधन की मजबूरी ही बतायेंगे। भारत में त्याग और सेवा की सत्ता का ही सम्मान रहा है अन्य सत्ता पतझड़ के पत्तों की भान्ति आती जाती रहती हैं उनकी गणना भारतीय जनमानस ने कभी नहीं की, ´´जथा गगन घन पट निहारी-झापहूं भानु कहहि कुबिचारी´´ अर्थात आकाश में बादलों को छाया देखकर अज्ञानी लोग यह समझते हैं कि बादलों ने सूर्य का ढक लिया है। आकाश जैसे निर्मल और निर्लेप है उसको कोई मलिन या स्पर्श नहीं कर सकता उसी प्रकार मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम के द्वारा स्थापित भारत की सत्य सत्ता भी नित्य निर्मल और निर्लेप है उसको कोई सरकार मिटा नहीं सकती। जो सनातन नहीं झुका रावण और कंस के अत्याचारों से- वह क्या झूकेगा इन लंगड़ी लूली गठबंधन सरकारों से। जो कहते थे दुनिया को खाक कर देंगे जहां दफन हैं हमने वो जमीं देखी है। सच कहते हैं हमने जिन्दगी देखी है

नरेन्द्र सिंह राणा
(मो0 9415013300)
लेखक-   उ0प्र0 भाजपा के मीडिया प्रभारी हैं।
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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घबड़ायें व हड़बड़ायें नहीं, परीक्षा भवन में!

Posted on 24 February 2011 by admin

new-hoपरीक्षा भवन उस इमारत का नाम है जहां आपके सपनों की आधारशिला रखी जाती है। अत: परीक्षा भवन का जीवन में वह स्थान है जो अन्य किसी का नही है। इस इमारत में अच्छे-अच्छे छात्रों को पसीना आ जाता है जो छात्र अपने को सभांल ले जाते हैं, अपना आत्मविश्वास बनाये रखते हैं, हडबड़ाते नहीं है, उनकी नींव अच्छी तैयार हो जाती है और फिर उस पर खड़ी होती है गगनचुम्बी इमारत! जिस पर खड़े होकर आप सफलता की पताका फहराते हैं और कहलाये जाते हैं सफल व्यक्ति! सफल व्यक्ति कहलाने के लिए आवश्यक है कि परीक्षा भवन में अपना धैर्य बनाये रखें, हड़बड़ायें नहीं क्योंकि हड़बड़ में गड़बड़ होती है यदि आप परीक्षा में अंको की गड़बड़ाहट से बचना चाहते हैं तो फिर आप परीक्षा भवन में हड़बड़ाये नहीं बल्कि पूरे विश्वास के साथ परीक्षा दे परीक्षा भवन में अपना आत्मविश्वास बनाये रखें फिर आप देखेंगे कि परीक्षा की कसौटी में खरा उतरते हुए आप उच्च अंको के साथ परीक्षा उत्तीर्ण करेंगे इसके लिए केवल आपको इन बिन्दुओं पर अमल करना है।

परीक्षा भवन में उपयोग में आने वाली सामग्री पहले ही रख लें : परीक्षा भवन में परीक्षा देते समय आपको किन उपयोगी वस्तुओं की आवश्यकता होगी इसका प्रबन्ध परीक्षा समय से 12 घंटे पहले ही कर लें। जैसे पेन, रबर, स्केल, ज्योमेट्री बाक्स, नीली स्याही का पेन, काली स्याही का पेन, प्रवेश पत्र आदि पहले ही व्यवस्थित कर रख लें वरना चलते समय अगर आप कुछ भूल गये तो फिर आपका हड़बड़ा जाना स्वाभाविक ही है।

परीक्षा समय से पहले ही परीक्षा भवन पहुंच जायें : परीक्षा समय से पहले ही परीक्षा भवन पहुंचना हमेशा उपयोगी होता है। कभी-कभी परीक्षा रूम व आपका परीक्षा स्थान भी बदल दिया जाता है ऐसी स्थिति में ऐन वक्त पर आपका परीक्षा भवन पहुंचना हड़बड़ाहट का कारण बन सकता है। अत: परीक्षा भवन पहुंचकर सुनिश्चित कर लें कि आपका परीक्षा रूम या परीक्षा टेबिल तो नहीं बदल दी गई है। यदि बदल गई है तो आप हड़बड़ायें नहीं क्योंकि आपके पास पर्याप्त समय है जाकर अपना कमरा व सीट देख लें।

अपनी परीक्षा टेबिल व कुर्सी को चेक कर लें : अपनी परीक्षा टेबिल को भली-भांति चेक कर लें और सुनिश्चित कर लें कि कोई उल्टा सीधा कागज तो टेबिल के आसपास नहीं है, यदि ऐसा है तो तुरन्त कक्ष निरीक्षक महोदय को सूचित करें अन्यथा यह गैर उपयोगी व अनावश्यक कागज ही आपको मुसीबत में डाल सकता है। कुर्सी को भी चेक कर लें, कहीं कुर्सी गन्दी या टूटी फूटी तो नहीं है, यदि ऐसा कुछ है तो नि:संकोच कक्ष निरीक्षक महोदय को सूचित कर तुरन्त कुर्सी बदलवादें।

परीक्षा भवन में अनावश्यक वस्तु कदापि न ले जायें : परीक्षा भवन में केवल वही वस्तुयें लेकर जायें जिनकी परीक्षा समय में आपको आवश्यकता है। अनावश्यक वस्तु उस समय आपको अनावश्यक रूप से परेशान कर सकती है और यदि गलती से कोई कागज का टुकड़ा आदि है तो वह आपको मुसीबत में डाल सकता है।

नकल करना तो दूर उसके बारे में सोचें भी नहीं : नासमझ लोगों का कहना है कि नकल के लिए भी अक्ल की जरूरत होती है। मैं कहता हूं नकल वह छात्र करते हैं जिनके पास अक्ल नहीं होती है। अगर इन गैर समझदार लोगों की बात मान भी लें तो भी नकल से गिरते पड़ते परीक्षा तो उत्तीर्ण की जा सकती है किन्तु उच्च अंक प्राप्त नहीं किये जा सकते हैं और आज के प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में गिरते पड़ते अंको के परीक्षा उत्तीर्ण करने से अनुत्तीर्ण होना ही श्रेयस्कर है इसलिए नकल करने के बारे में कदापि न सोचें, ईश्वर पर व अपने परिश्रम पर भरोसा करें।

आत्मविश्वास बनाये रखें : आप परीक्षा भवन में बैठे हैं किसी हवालात में नहीं! आपके समक्ष कक्ष निरीक्षक है जो आपके गुरू है कोई पुलिस का दरोगा नहीं तो घबराहट व हड़बड़ाने की क्या आवश्यकता हैर्षोर्षो अत: अपना आत्मविश्वास बनाये रखें, ईश्वर का स्मरण करें और पूरी तन्मयता से परीक्षा दें।

कापी पेपर मिलते ही चेक कर लें : कापी मिलते ही एक बार पलट कर अवश्य देख लें, कहीं ऐसा तो नहीं है कि कापी के बीच में कोई पन्ना फटा हुआ या बिना लाइन का तो नहीं है। कभी-कभी प्रिटिंग की गलती से ऐसा हो जाता है। यदि ऐसा है तो तुरन्त कक्ष निरीक्षक महोदय को कापी दिखाकर कापी बदल लें। पेपर को मिलते ही ईश्वर का स्मरण अवश्य करें, पेपर को भी एक बार गौर से देख लें कहीं मिसप्रिंट या कटा-फटा तो नहीं है, यह सब चेक करने के बाद ही कापी पर अपना रोल नं0 लिखें।

सर्वप्रथम कापी पर अपना रोल नम्बर आदि लिखें : प्रश्नों का उत्तर लिखने से पहले कापी के निर्धारित स्थान पर रोल नं0 व अन्य विवरण पूर्ण रूप से लिखें, तब प्रश्नों का उत्तर लिखना प्रारम्भ करें। कापी पर बांयी ओर खाली स्थान अवश्य छोड़ें, बीच में कोई भी पेज खाली न छोड़े। यदि रफ कार्य हेतु आपको जगह की आवश्यकता है तो रफ कार्य हमेशा बांये पेज पर ही करें और उसके ऊपर मोटा-मोटा रफ कार्य अवश्य लिख दें।

प्रश्नों के उत्तर देने की कला सीखें : प्रश्नों का उत्तर तो सभी छात्र देते हैं लेकिन उच्च अंक वही छात्र अर्जित करते हैं जो छात्र प्रश्नोत्तर की कला में निपुण होते हैं। अत: प्रश्नों के उत्तर देने की कला सीखें। उत्तर लिखना भी एक कला है कि आप उत्तर को कितनी खूबसूरती व अच्छी तरह से परीक्षक के समक्ष प्रस्तुत करते हैं इसके लिए आपकेा कापी पर बांयी तरफ खाली स्थान के साथ उत्तर में महत्वपूर्ण लाइनों को या तो अण्डरलाइन करना है या फिर काली स्याही से लिखना है, जिससे परीक्षक की निगाह बरबस ही उन महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर चली जाये।

प्रश्नों को उनके अंको के अनुसार ही समय दें : परीक्षा भवन में अगर सबसे कीमती कोई है तो वह है समय! इसका अवश्य ध्यान रखें। प्रश्नों का उत्तर उनकी हैसियत के अनुसार ही दें अर्थात कम अंक वाले प्रश्नों को कम समय व अधिक अंक वालें प्रश्नों को अधिक समय दें। कहीं ऐसा न हो कि कम अंक वाले प्रश्न के उत्तर में ही आप समय व्यतीत कर दें और अधिक अंक वाले प्रश्नों के उत्तर के लिए समय ही न बचे। अत: समय के बंटवारे में ध्यान रखना अतिआवश्यक है। समय के बंटवारे में आप कितने निपुण हैं परीक्षाफल आते ही स्पष्ट हो जायेगा।

राइटिंग अच्छी व साफ सुथरी रखें : राइटिंग का अच्छे अंको पर विशेष प्रभाव पड़ता है यदि आपकी राइटिंग अच्छी है और आपके उत्तर उच्च अंको के नहीं है तो भी आप परीक्षक की प्रशंसा के पात्र बनेंगे और परीक्षक द्वारा दी गई यह प्रशंसा ही आपको उच्च अंको के द्वार पर ले जायेगी। दूसरी ओर यदि आपकी राइटिंग खराब है और उत्तर उच्च कोटि के हैं तब आपकी राइटिंग देखकर परीक्षक की नाक भौं सिकुड़ जायेगी और परीक्षक की नाक भौं का सिकुड़ना आपके हित में नहीं होगा। अत: राइटिंग का परीक्षा में विशेष महत्व है इस बात को गांठ बांध लें और परीक्षा में इसका विशेष ध्यान रखें।
एक प्रश्न के उत्तर देने के बाद थोड़ी जगह अवश्य छोड़े : एक प्रश्न का उत्तर देने के बाद दूसरे प्रश्न का उत्तर प्रारम्भ करने के पूर्व थोड़ी जगह बीच में अवश्य छोड़े, साथ ही इस बात का भी विशेष ध्यान रखें कि किन लाइनों को मोटे अक्षरों में लिखना है और किनको छोटे अक्षरों में।

न तो कोई प्रश्न छोड़े और न ही अनावश्यक प्रश्न का उत्तर दें : जितना पूछा गया है वही उत्तर दें, न तो अधिक प्रश्नों का उत्तर दें न ही कम प्रश्नों का। परीक्षा समय समाप्ति से 15 मिनट पूर्व ही अपने कार्य पूरा कर लें और इन 15 मिनटों का उपयोग अपने प्रश्नों के उत्तर को देखने व पढ़ने में लगा दें। इससे आपको छोटी-मोटी हुई गलतियों को सुधारने का मौका मिल जायेगा। इससे निश्चित रूप से आपके अंको में वृद्धि होगी।

अच्छी तरह याद प्रश्नों का उत्तर पहले दें : जिन प्रश्नों का उत्तर आप सर्वश्रेष्ठ ढंग से दे सकते हैं, पहले उन्हीं प्रश्नों का उत्तर दें। इससे दो लाभ होंगे एक तो आपके ऊपर से काम का बोझ कम होगा, आप प्रसन्नचित होंगे, साथ ही परीक्षक पर अच्छे उत्तर का प्रभाव भी जमेगा जो आपके लिए लाभकारी सिद्ध हो सकता है।
प्रश्नों का उत्तर देते समय प्रश्न संख्या अवश्य डालें : आप जिस प्रश्न का भी उत्तर लिख रहे हों, उसी प्रश्न के उत्तर नं0 अवश्य डालें जिससे परीक्षक को आपके उत्तर देखने में आसानी हो। परीक्षक को हुई आसानी आपके लिए रास्ता आसान बना सकती है।

अनिवार्य प्रश्नों का उत्तर अवश्य दें : प्रश्नपत्र में कुछ प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य होता है। अत: ऐसे प्रश्नों का उत्तर देना न भूलें, याद रखें अनिवार्य प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य ही होता है तभी आप उच्च अंको के साथ परीक्षा उत्तीर्ण कर सकते हैं।

`बी´ कापी को `ए´ कापी के साथ मजबूती से बांधे : परीक्षा में उच्च अंक प्राप्त करने के लिए आवश्यक है अधिक लिखना। अत: `बी´ व `सी´ कापी की आवश्यकता तो अवश्य पड़ेगी। अत: `बी´ व `सी´ कापी अवश्य लिखें, याद रखें कि `बी´ व `सी´ कापी को `ए´ कापी के साथ `नथ्थी´ अवश्य कर दें अर्थात अच्छी तरह बांध दे साथ ही `बी´ व `सी´ कापी पर भी अपना रोल नं0 अवश्य डाल दें।

परीक्षा भवन में रूमाल व पानी की बोतल अवश्य ले जायें : परीक्षा भवन में एक रूमाल अवश्य रखें व पानी की बोतल भी उपयोगी है। अधिकांस देखा गया है कि परीक्षा रूम में प्यास लगती है और बाहर जाने पर समय बबाZद होता है। अत: समय की बचत के लिए पीने हेतु पानी व हाथ मुंह पोछने हेतु रूमाल अवश्य रखें। इससे आपके समय की बचत होगी और समय के बचत का अर्थ है आपके अंको की बढ़ोत्तरी।

यह बातें देखने में भले ही आपको छोटी लग रही होगी किन्तु यह छोटी-छोटी बातें ही आपकेा दिलायेंगी बड़ी सफलता। यदि आप बड़ी सफलता प्राप्त करना चाहते हैं और चाहते हैं कि आप परीक्षा में उच्च अंक प्राप्त करें तो परीक्षा भवन व परीक्षा समय में इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान अवश्य रखें। सच मानिये! आप परीक्षा में सर्वोच्च अंक प्राप्त करेंगे।

“छोटी-छोटी बातों से ही हमारी योग्यता की परीक्षा होती है´´– महात्मा गांधी

पण्डित हरि ओम शर्मा `हरि´
12 स्टेशन रोड, लखनऊ।
मोबाइल : 9415015045, 9839012365
ईमेल : hosharma12@rediffmail.com

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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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