(1) `होलिका´ का दहन समाज की समस्त बुराइयों के अन्त का प्रतीक है :-
होली भारत के सबसे पुराने पर्वों में से है। यह कितना पुराना है इसके विषय में ठीक जानकारी नहीं हैं लेकिन इसके विषय में इतिहास पुराण व साहित्य में अनेक कथाएं मिलती हैं। लेकिन इसके हर कथा में एक समानता है कि उसमें `असत्य पर सत्य की विजय´ और `दुराचार पर सदाचार की विजय´ का उत्सव मनाने की बात कही गई है। इस प्रकार होली मुख्यत: आनन्दोल्लास तथा भाई-चारे का त्योहार है। यह लोक पर्व होने के साथ ही अच्छाई की बुराई पर जीत, सदाचार की दुराचार पर जीत व समाज में व्याप्त समस्त बुराइयों के अन्त का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता व दुश्मनी को भूलकर एक-दूसरे के गले मिलते हैं और फिर ये दोस्त बन जाते हैं। राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व बसन्त का सन्देशवाहक भी है। किसी कवि ने होली के सम्बन्ध में कहा है कि :-
नफरतों के जल जाएं सब अम्बार होली में।
गिर जाये मतभेद की हर दीवार होली में।।
बिछुड़ गये जो बरसों से प्राण से अधिक प्यारे,
गले मिलने आ जाऐं वे इस बार होली मेें।।
(2) `भक्त प्रह्लाद की प्रभु के प्रति अटूट भक्ति एवं निष्ठा´ के प्रसंग की याद दिलाता है यह महान पर्व :-
होली पर्व को मनाये जाने के कारण के रूप में मान्यता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकश्यपु नाम का एक अत्यन्त बलशाली एवं घमण्डी राक्षस अपने को ही ईश्वर मानने लगा था। हिरण्यकश्यपु ने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबन्दी लगा दी थी। हिरण्यकश्यपुु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर का परम भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से कुद्ध होकर हिरण्यकश्यपुु ने उसे अनेक कठोर दण्ड दिए, परन्तु भक्त प्रह्लाद ने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकश्यपुु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकश्यपुु के आदेश पर होलिका प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से उसे अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। किन्तु आग में बैठने पर होलिका तो जल गई परन्तु ईश्वर भक्त प्रह्लाद बच गये। इस प्रकार होलिका के विनाश तथा भक्त प्रह्लाद की प्रभु के प्रति अटूट भक्ति एवं निष्ठा के प्रसंग की याद दिलाता है यह महान पर्व। होली का पर्व हमारे अन्त:करण में प्रभु प्रेम तथा प्रभु भक्ति के अटूट विश्वास को निरन्तर बढ़ाने का त्योहार है।
(3) शाहजहां के जमाने में होली को `ईद-ए-गुलाबी` या `आब-ए-पाशी´ (रंगों की बौछार) कहा जाता था :-
होली जैसे पवित्र त्योहार के सम्बन्ध में सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी ने अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है। भारत के अनेक मुस्लिम कवियों ने अपनी रचनाओं में इस बात का उल्लेख किया है कि होलिकोत्सव केवल हिन्दू ही नहीं अपितु मुसलमान लोग भी मनाते हैं। इसका सबसे प्रामाणिक इतिहास की तस्वीरे मुगलकाल की हैं और इस काल में होली के किस्से उत्सुकता जगाने वाले हैं। इन तस्वीरों में अकबर को जोधाबाई के साथ तथा जहांगीर को नूरजहां के साथ होली खेलते हुए दिखाया गया है। शाहजहां के समय तक होली खेलने का मुगलिया अन्दाज ही बदल गया था। इतिहास में वर्णन है कि शाहजहां के जमाने में होली को `ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी´ (रंगों की बौछार) कहा जाता था। अन्तिम मुगल बादशाह शाह जफर के बारे में प्रसिद्ध है कि होली पर उनके मन्त्री उन्हें रंंग लगाते थे।
(4) होली का आधुनिक रूप :-
होली रंगों का त्योहार है, हंसी-खुशी का त्योहार है। लेकिन होली के भी अनेक रूप देखने को मिलते हैं। प्राकृतिक रंगों के स्थान पर रासायनिक रंगों का प्रचलन, भंाग-ठण्डाई की जगह नशेबाजी और लोक-संगीत की जगह फिल्मी गानों का प्रचलन इसके कुछ आधुनिक रूप है। अनेक ऐसे लोग हैं जो पारम्परिक संगीत की समझ रखते हैं और पर्यावरण के प्रति सचेत हैं। इस प्रकार के लोग और संस्थाएं चन्दन, गुलाबजल, टेसू के फूलों से बना हुआ रंग तथा प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की परम्परा को बनाये हुए हैं। साथ ही रासायनिक रंगों के कुप्रभावों की जानकारी होने के बाद बहुत से लोग स्वयं ही प्राकृतिक रंगों की ओर लौट रहे हैं।
(5) अत: होली के इस महान पर्व को आपसी प्रेम, भाई-चारे व सौहार्द के साथ मनाते हुए :-
1. कठिन से कठिन परिस्थतियों में प्रभु की राह से विचलित न होने की प्रेरणा देने वाले होली के महान पर्व के अवसर पर बच्चों को भक्त प्रह्लाद की तरह ही सदैव प्रभु द्वारा बताये हुए मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए।
2. रंगों के इस पर्व में बच्चों को कालिख, पेण्ट, रासायनिक रंगों आदि से होली नहीं खेलना चाहिए क्योंकि इनसे हमारी त्वचा व आंखों को काफी नुकसान पहुंच सकता है।
3. होली के पावन पर्व पर बच्चों को चाहिए कि वे बाजार से अबीर व रासायनिक रंगों को न खरीदें और साथ ही अपने माता-पिता से भी इन रासायनिक रंगों को न खरीदने का अनुरोध करें। अबीर में अभ्रक का प्रयोग होता है, जो हमारे लिए खतरनाक है।
4. इस महान पर्व पर न तो वे खुद ही किसी प्रकार के नशे का सेवन करें और न ही अपने माता-पिता को ऐसा करने दें।
5. इस अवसर पर तेज आवाज में संगीत न बजायें। इससे बुजुर्ग व बीमार लोगों को परेशानी होती है।
6. किसी के साथ जोर-जबरदस्ती के साथ होली नहीं खेलनी चाहिए।
7. `जल ही जीवन है´ की कहावत को चरितार्थ करते हुए पानी का यथासम्भव कम से कम उपयोग करें।
8. बच्चों को हल्दी, चुकन्दर, टेसू के फूल व इसी प्रकार के अन्य घरेलू सामानों से तैयार प्राकृतिक रंगों के साथ ही होली खेलनी चाहिए। इसके साथ ही वे घरेलू सामान से ही बने गुलाल से भी अपने मित्रों के साथ होली खेल सकते हैं।
9. होली के इस महान पर्व पर वे पूरी शिष्टता के साथ ही एक-दूसरे को रंग व गुलाल आदि लगायें। साथ ही अपने से बड़ों को रंग लगाने के साथ ही उनके चरण छूकर उनका आशीर्वाद भी प्राप्त करें।
(6) होली खेलने से पहले बरतें सावधानियां :-
पहले जमाने में लोग टेसू और प्राकृतिक रंगों से होली खेलते थे। वर्तमान में अधिक से अधिक पैसा कमाने की होड़ में लोगों ने बाजार को रासायनिक रंगों से भर दिया है। वास्तव मेंं रासायनिक रंग हमारी त्वचा के लिए काफी नुकसानदायक होते हैं। इन रासायनिक रंगों में मिले हुए सफेदा, वानिZश, पेण्ट, ग्रीस, तारकोल आदि की वजह से हमको खुजली और एलर्जी होने की आशंका भी बढ़ जाती है। इसलिए होली खेलने से पूर्व हमें निम्न सावधानियों को अवश्य बरतना चाहिए :-
1. होली खेलने से पहले शरीर के खुले हिस्सों पर वैसलीन, तेल या कोल्ड क्रीम लगाएं। सरसों का तेल, ऑलिव ऑयल या नारियल का तेल लगाने से हमारी त्वचा पर रंगों की पकड़ हल्की रहती है।
2. नाखूनों को होली के रंगों से बचाने के लिए महिलायें उन पर नेल पॉलिश लगा लें। साथ ही रंग खेलने से पहले बढ़े हुए नाखूनों को भी काट लेना चाहिए।
3. बहुधा होली के दिन लोग पुराने कपड़े पहनते हैं, पर कपड़े इतने पुराने भी नहीं होने चाहिए कि होली खेलते समय उनकी सिलाई खुल जाये या कपड़े फट जायें।
4. कपड़े ऐसे पहनने चाहिए जिससे आपका पूरा शरीर ढका रहें। इससे काफी हद तक शरीर का रंगों से बचाव हो जाता है।
5. होली खेलने से पहले अंगूठी, घड़ी व सभी प्रकार के आभूषणों को अवश्य उतार कर रख देें।
6. बालों पर तेल लगा लें। साथ ही सूखे रंगों के कुप्रभाव से अपने बालों को बचाने के लिए टोपी का प्रयोग अवश्य करें।
(7) ऐसे छुड़ाएं होली के रंग :-
1. होली खेलने के बाद जितनी जल्दी हो सके, रंगों को छुड़ा दें। इन्हें ज्यादा देर तक त्वचा पर न लगा रहने दें।
2. तेज रगड़ने से त्वचा में जलन होती है और अधिक रगड़ से त्वचा के छिलने का भी डर रहता है। अत: रंगों को धीरे-धीरे छुड़ाएं।
3. बेसन या आटे में नीबू का रस डालकर उससे रंगों को छुड़ाएं। इसके साथ ही नारियल के तेल या दही से भी त्वचा को धीरे-धीरे साफ कर सकते हैं।
4. रंग छुड़ाने के लिए मिट्टी का तेल, डिटर्जेण्ट या कपड़े धोने का साबुन इस्तेमाल में न लाएं।
5. बालों में से रंग निकालने के लिए पहले उन्हें अच्छे से झाड़ लें ताकि उनमें से सूखा रंग निकल जाए। बालों से सूखा रंग निकलने के बाद ही उन्हें अच्छे से धोयें।
-जय जगत-
- डा. जगदीश गान्धी, प्रख्यात शिक्षाविद् एवं
संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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