Archive | कला-संस्कृति

उपन्यास ‘मदारीपुर जंक्शन’ का विमोचन

Posted on 06 December 2017 by admin

दिनांक 04.12.2017 को सांय 7 बजे इरम गल्र्स इ0का0 इन्दिरा नगर, लखनऊ में श्री बालेन्दु कुमार द्विवेदी द्वारा लिखित उपन्यास ‘मदारीपुर जंक्शन’ का विमोचन श्री बृजेश पाठक व श्रीमती रीता बहुगुणा जोशी, मा0 कैबिनट मंत्री उ0प्र0 सरकार तथा अन्य सम्मानित व्यक्तियों की उपस्थिति में किया गया। श्री अरुण माहेश्वरी, श्री ओम निश्चल, श्री अशोक चक्रधर आदि ने उपन्यास पर परिचर्चा की।whatsapp-image-2017-12-05-at-12
श्री अशोक चक्रधर ने उपन्यास पर बोलते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया और कुल मिलाकर अत्यन्त पठनीय उपन्यास बन पड़ा है लगता ही नहीं है कि किसी उपन्यासकार का पहला उपन्यास है। इसके अतिरिक्त विभिन्न समीक्षकों ने उपन्यास पर अपनी प्रतिक्रिया भेजी जिसे कवि रतिनाथ योगेश्वर ने पढ़कर उपस्थित लोगों को सुनाया। श्री काशीनाथ सिंह ने उपन्यास की सराहना करते हुए कहा है कि यह उपन्यास अपनी लोकप्रियता के शिखर को छुए और बालेन्दु द्विवेदी को हिन्दी साहित्य जगत में एक युवा समर्थ साहित्यकार के रूप में वह स्वागत व स्वीकार्यता मिले, जिसके वे वास्तव में हक़दार हैं। श्री नित्यानन्द तिवारी का कहना है कि गाँव की विविध स्थितियों और व्यक्तियों की कथा कहने वाला अच्छा उपन्यास है। श्री विश्वनाथ त्रिपाठी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि बालेन्दु जी ने गाँव को बहुत नज़दीक से और बड़ी आत्मीयता से देखा है उन्होंने ग्रामीण जीवन की वैविध्य को बहुत डूबकर देखा और लिखा है। श्री रामदरश मिश्र के शब्दों में होरी और बावनदास की मृत्यु में जैसी सृजनशील संभावनाएं हैं वैसी ही संभावना मेघा की मृत्यु में है। इस दृष्टि सम्पन्न रचना के लिये आपको बहुत बहुत बधाई।
उक्त मौके पर मदारिसे अरबिया, लखनऊ व बाराबंकी की तरफ से एक मुशायरा एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें देश के नामी शयरों एवं कवियों सर्व श्री अशोक चक्रधर, राहत इंदौरी, ओम निश्चल, खुशबीर सिंह शाद, रतीनाथ योगेश्वर, मनीष शुक्ला, शबीना अदीब, सबा बलरामपुरी, जौहर कानपुरी, कुँवर रंजीत सिंह चैहान, श्रीरंग, अज़्म शाकिरी, वक़ार बाराबंकवी, सग़ीर नूरी आदि ने प्रतिभाग कर अपनी शायरी व रचनाऐं प्रस्तुत कर श्रोताओं की तालियां बटोरी।

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डाॅ. लक्ष्मीशंकर मिश्र ‘निशंक’ जन्मशताब्दी समारोह सम्मान समारोह, संगोष्ठी एवं काव्य गोष्ठी

Posted on 29 October 2017 by admin

डाॅ0 उपेन्द्र को निशंक साहित्य सम्मान-2017 से समादृत किया गया।

dsc_7612लखनऊ। आज दिनांक 28 अक्टूबर, 2017 को डाॅ0 लक्ष्मीशंकर मिश्र ‘निशंक‘ जन्मशताब्दी समारोह के शुभ अवसर पर उत्तर प्रदेश हिन्दी के निराला सभागार में डाॅ0 सूर्य प्रसाद दीक्षित की अध्यक्षता में डाॅ0 उपेन्द्र को डाॅ0 लक्ष्मी शंकर मिश्र ‘निशंक‘ साहित्य सम्मान से समादृत करते हुए ग्यारह हजार रूपये की धनराशि, मानपत्र, स्मृति चिह्न उत्तरीय भंेट की गयी।
इस अवसर पर गणेश वन्दना व डाॅ0 लक्ष्मी शंकर मिश्र ‘निशंक‘ जी द्वारा रचित वाणी वन्दना माँ मुझको अपना वर दो की संगीतमयी प्रस्तुति श्रीमती रंजना दीवान द्वारा की गयी। तबले पर रीतेश ने सहयोग किया। मंचासीन अतिथियों का माल्यार्पण द्वारा स्वागत डाॅ0 मुकुल मिश्र द्वारा किया गया। अभ्यागतों का स्वागत डाॅ0 कमला शंकर त्रिपाठी जी ने किया। डाॅ0 उपेन्द्र का परिचय श्री योगीन्द्र द्विवेदी द्वारा प्रस्तुत किया गया।
इस अवसर पर सम्मानित डाॅ0 उपेन्द्र ने कहा - ऐसी संस्थाएँ और बड़ा काम करें महत्वपूर्ण कार्य करें। यह उम्र मान-सम्मान से निष्पेक्ष होने की उम्र है। निशंक जी ने सनेही जी को गुरू मान उनका आशीर्वाद मुझे भी मिला। सत्पुरुषों के साथ बैठने में महापुरुषों के साथ बैठने में आपको अनुभव होगा की आपने जो कुछ किताबों में पढ़ा उससे अधिक जीवन से सीखा जा सकता है। हिन्दी के स्वरूप को सुधारने का कार्य ऐसी संस्थाएँ कर सकती है।
अध्ययन संस्थान की ओर से प्रकाशित वार्षिक पत्रिका ‘निशंक सुरभि‘ तथा डाॅ. निशंक की काव्य कृति ‘ब्रज-जीवन’ का लोकार्पण मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया।
मुख्य अतिथि डाॅ0 सदानन्दप्रसाद गुप्त, कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने अपने सम्बोधन में कहा - डाॅ0 लक्ष्मीशंकर मिश्र ‘निशंक‘ का स्मरण एक परम्परा का स्मरण है। कविता में विचार तत्व की प्रधानता आयी है। राग तत्व की कमी आयी है। आज मंच की कविता और पढ़ी जाने वाली कविता में दूरी आ गयी है। निशंक जी ने उत्तरछायावादी काव्यधारा के दौर में अपने को वाद मुक्त रखा। उन्होंने कवित्त और सवैया की परम्परा को आगे बढ़ाया। उन्होंने छन्द विरोध की चुनौती को स्वीकार किया। हिन्दी भाषा के प्रति उनकी गहरी निष्ठा थी, वह स्तुत्य है। निशंक जी ऐसे रचनाकार थे जो हाट में बिकने वाले नहीं थे।
सभाध्यक्ष प्रो0 सूर्य प्रसाद दीक्षित जी ने कहा - निशंक जी ने आधुनिक युग में कवित्त और सवैया छन्द को जिन्दा करने का कार्य किया। यति, गति, स्वर, ताल का नमूना निशंक जी की कविताओं में मिलता है। उन्होेंने मंच की पवित्रता को जीवित रखने का प्रयास किया। आज कविता की पवित्रता को जीवित रखने की आवश्यकता है। निशंक जी ने कई संस्थाएँ स्थापित कीं और उनमें सक्रियता से गतिशीलता प्रदान की। उनकी हिन्दी सेवा भी उल्लेखनीय है।
डाॅ0 जितेन्द्र कुमार सिंह संजय के संचालन में प्रारम्भ हुए प्रथम सत्र में - डाॅ0 निशंक: सृजन के विविध आयाम’ विषय पर सार्थक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसके अध्यक्ष आजमगढ़ से पधारे डाॅ0 कन्हैया सिंह थे।
कानपुर से पधारी डाॅ0 दया दीक्षित ने कहा- निशंक जी सृजन के साथ हिन्दी भाषा, हिन्दी साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए कृत संकल्प रहे। ‘साहित्यकारों के पत्र मेरे

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नाम’ शीर्षक पुस्तक निशंक जी की अमूल्य कृति है। इन पत्रों के माध्यम से साहित्य की एक परम्परा सामने आती है। वे कहा करते थे कि मैं अनायास लिखता हूँ सध्यास नहीं लिखता। वे कहते थे मैं सदैव राममय रहा न काममय न नाममय। उनके द्वारा लिखे गये सम्पादकीय उनके मुखर और प्रखर व्यक्तित्व के प्रमाण है।
डाॅ0 गोपाल कृष्ण शर्मा ‘मृदुल’ ने कहा- ‘डाॅ0 निशंक राम चरित मानस का पाठ सुनकर बड़े हुए। उनका परिचय राष्ट्रीय संस्कृति काव्यधारा से हुआ। परम्परा की परिधि मे रहते हुए उन्होंने सदैव नवीन बात कहने का प्रयास किया।
इस अवसर पर डाॅ0 निशंक अध्ययन संस्थान द्वारा प्रकाशित ‘लखनऊ के दिवंगत हिन्दी कवि’ खण्ड-एक पुस्तक का लोकार्पण भी हुआ।
श्री आदित्य मिश्र ने कहा - निशंक जी ने गद्य साहित्य में कविता को जिया है। निशंक जी स्वाभिमान और सिद्धान्त के साथ काव्य साधना करने की प्रेरणा देते हैं। निशंक जी के संस्मरण स्वतः ही काव्यमय हो जाते हैं। उनके संस्मरण जीवन के यथार्थ को जोड़ने वाले हैं। अपने पत्र लेखन और संग्रहण के माध्यम से निशंक जी कविता के रस को जीवन धन मानते हैं।
सभाध्यक्ष डाॅ0 कन्हैया सिंह ने कहा - डाॅ0 लक्ष्मीशंकर मिश्र ‘निशंक‘ अध्ययन संस्थान साहित्य की टूटी हुई कड़ी को जोड़ने का काम करते हैं। निशंक जी रसिक कवि-रसिक अध्यापक और आचार्य रहे हैं। उन्होेंने सनातन परम्परा में रूढ़ियों का विखड़न करते हुए कविता-कर्म किया। नये प्रतिमान स्थापित किये।
इस अवसर पर एक सरस काव्य गोष्ठी का आयोजन श्री उदय प्रताप सिंह की अध्यक्षता में किया गयसा। वाणी वन्दना सुश्री सतरूपा पाण्डेय ने पढ़ी- लेखनी करती नमन है/शब्द के भण्डार दो/वीणा पाणी सरस्वती माँ!।
श्री अतुल वाजपेयी जी ने पढ़ा- है नवीन युग का ज्वलन्त उद्गांक्ष मुक्त/देश भक्ति भाव का संवाद वंदेमातरम्।
श्री रमेश रंजन मिश्र ने पढ़ा - मन ने पद्मावत पढ़ा जग कर सारी रैन/अक्षर-अक्षर तुम दिखे नैन हुए बैचेन/मन के मंगल भवन में पूर्ण हुए संस्कार/आँखों-आँखों भाँवरें पड़ी हजारों बार।
श्री दीनमोहम्मद दीन ने पढ़ा- हम रखे सम्मान देश का/और बढ़ाये मान देश का। सहन नहीं हम कर सकते हैं/पल भर को अपमान देश का।
श्री सरस कपूर, डाॅ0 शिवओम अम्बर, श्री राधाकृष्ण पथिक, श्री सतीश आर्य, डाॅ0 ओम निश्चल, सुश्री रूपा पाण्डेय ‘सतरूपा‘ ने भी काव्य पाठ किया। काव्य गोष्ठी का संचालन डाॅ0 शिव ओम अम्बर ने किया।
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पुस्तक मन का पंछी यादो का सफर का लोकर्पण

Posted on 14 September 2017 by admin

बागपत के ओमवीर सिंह तोमर की पुस्तक मन का पंछी यादो का सफर का लोकर्पण सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने किया।कार्यक्रम में नेता प्रतिपक्ष रामगोविन्द चौधरी ,प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम भी मौजूद थे।
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अखिलेष निगम ’अखिल’ को मिला साहित्य श्री सम्मान

Posted on 13 September 2017 by admin

img_20170909_184707भारतेन्दु हरिष्चन्द्र जी के 167 वें जयन्ती महोत्सव पर श्री भारतेन्दु समिति, कोटा (राजस्थान) द्वारा लखनऊ के सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री अखिलेष निगम ’अखिल’ को साहित्य श्री सम्मान से सम्मानित किया गया। अखिलेष निगम वर्तमान में उ0प्र0 सतर्कता अधिश्ठान लखनऊ में पुलिस अधीक्षक के पद पर कार्यरत हैं तथा उन्होंने कविता, कहानी और समीक्षा के क्षेत्र में छह से अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं, तथा उन्हें देष की विभिन्न साहित्यिक, सांस्कृतिक संगठनों द्वारा विभिन्न सम्मानों से समय-समय पर सम्मानित किया जाता रहा है।
भारतेन्दु समिति, कोटा 90 वर्श पुरानी संस्था है जो कि प्रतिवर्श देष के विभिन्न प्रान्तों के उन साहित्यकारों को सम्मानित करती है जो हिन्दी के उन्नयन एवं विकास में उल्लेखनीय योगदान देते हैं। दो दिवसीय सम्मेलन में प्रथम दिवस आमन्त्रित कवियों द्वारा काव्यपाठ हुआ, दूसरे दिन हिन्दी भाशा का दैनिक जीवन में उपयोग विशय पर संगोश्ठी आयोजित की गई, जिसके मुख्य अतिथि श्री विठ्ठल पारीक, पूर्व सचिव, ब्रजभाशा अकादमी जयपुर तथा अध्यक्षता श्री अखिलेष निगम ’अखिल’ ने की, संगोश्ठी में विभिन्न वक्ताओं ने आम जनता से दैनिक जीवन में हिन्दी का अधिकाधिक उपयोग करने, हिन्दी भाशा को रोजगार का माध्यम बनाये जाने तथा विभिन्न भाशाओं में एकता स्थापित करने का बल दिया। कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में श्री भारतेन्दु समिति द्वारा विभिन्न प्रान्तों के 20 साहित्यकारों को सम्मानित किया गया जिसमें उ0प्र0 से अखिलेष निगम ’अखिल’ के अतिरिक्त डा0 राजकुमार रंजन (आगरा), श्री अन्जीव अन्जुम (मथुरा) डा0 यासमीन (मेरठ) एवं सुश्री रजनी सिंह (आगरा) को साहित्य श्री सम्मान प्रदान किया गया। कार्यक्रम के संयोजक श्री राजेष कृश्ण बिड़ला द्वारा आमन्त्रित अतिथियों एवं जनमानस का आभार व्यक्त किया गया तथा कार्यक्रम का संचालन श्री रामेष्वर षर्मा द्वारा किया गया।

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हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार षिवसिंह ‘सरोज, डाॅ0 नन्द किषोर देवराज एवं डाॅ0 प्रभाकर माचवे के जन्मषताब्दी वर्ष के अवसर पर संगोष्ठी

Posted on 18 June 2017 by admin

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के तत्वावधान में हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार षिवसिंह ‘सरोज, डाॅ0 नन्द किषोर देवराज एवं डाॅ0 प्रभाकर माचवे के जन्मशताब्दी वर्ष के अवसर पर संगोष्ठी का आयोजन शुक्रवार, 16 जून, 2017 को निराला साहित्य केन्द्र एवं सभागार, हिन्दी भवन, लखनऊ में किया गया।
श्री राजनाथ सिंह ‘सूर्य‘, पूर्व सम्पादक, स्वतंत्र भारत, लखनऊ की अध्यक्षता में आयोजित संगोष्ठी में वक्ता के रूप में श्री वीर विक्रम बहादुर मिश्र, लखनऊ, प्रो0 अवधेश प्रधान, वाराणसी एवं प्रो0 राम मोहन पाठक, वाराणसी आमंत्रित थे।
दीप प्रज्वलन, माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण, पुष्पार्पण के उपरान्त प्रारम्भ हुए कार्यक्रम में वाणी वन्दना की प्रस्तुति श्रीमती दया चतुर्वेदी एवं सहयोगी द्वारा की गयी।
मंचासीन अतिथियों का उत्तरीय एवं माल्यार्पण द्वारा स्वागत करते हुए संस्थान के निदेशक,      श्री मनीष शुक्ल ने कहा- शिव सिंह सरोज, डाॅ0 नन्द किशोर देवराज एवं डाॅ0 प्रभाकर माचवे साहित्य जगत की महान विभूतियाँ हैं इनका जीवन प्रेरणादायी रहा है। ये हमारे समाज के प्रेरणास्रोत हैं। इनका समाज को योगदान काफी सराहनीय रहा है। इनकी रचनाएँ जीवन को सार्थकता प्रदान करती है।
वक्ता के रूप में आमंत्रित श्री वीर विक्रम बहादुर मिश्र, लखनऊ ने शिवसिंह ‘सरोज‘: व्यक्ति एवं रचनाकार विषय पर वक्तव्य देते हुए कहा - शिवसिंह ‘सरोज‘ जी का जीवन साधारण जीवन था। वे कवि थे, पत्रकार थे। कवि कल्पना में जीता है व पत्रकार यर्थाथ में। उन्होंने कैसे सामन्जस्य किया यह सराहनीय है। जब जीवन ईश्वर की आराधना में लग जाता है तब जिन्दगी, वन्दगी बन जाती है। वे अपने कार्यों को एक आराधक की भाँति पूर्ण करते थे। उनकी कृति लक्ष्मण काफी सराहनीय रही। उसमें उन्होंने लक्ष्मण को एक नायक के रूप में प्रस्तुत किया। जो जैसा जीवन जीता है वैसी ही उसकी कृतियाँ व स्मृतियाँ होती है।
वक्ता के रूप में आमंत्रित प्रो0 अवधेश प्रधान, वाराणसी ने डाॅ0 नन्द किशोर देवराज: व्यक्ति एवं रचनाकार विषय पर वक्तव्य देते हुए कहा -डाॅ नन्द किशोर देवराज ने ज्ञान व विज्ञान के क्षेत्र में हिन्दी भाषा में उच्च स्तरीय व मौलिक सृजन पर जोर दिया अपनी राष्ट्रभाषा में सृजन होना चाहिए। वह दर्शन-शास्त्र के महान अध्येता थे, उन्हों जीवन भर कविता के मर्म को बनाय रखा। वह महान अलोचक थे, देवराज जी की रचनाओं में दर्शन, अध्यात्मिकता व धार्मिक ग्रंथों का काफी प्रभाव रहा है। उन्होंने छायावादी विचारधारा में जादू पैदा करने का कार्य किया।  देवराज जी की रचनाओं में समाज का प्रतिविम्ब दिखाई देता है।
वक्ता के रूप में आमंत्रित प्रो0 राम मोहन पाठक, वाराणसी ने डाॅ0 प्रभाकर माचवे: व्यक्ति एवं रचनाकार विषय पर वक्तव्य देते हुए कहा- डाॅ प्रभाकर माचवे ने अपनी प्रथम रचना 15 वर्षो की उम्र लिखी व छिपी। वह साधक एवं तपस्वी थे, माचवे जी की मान्यता थी कि वह भारतीय भाषाओं को साथ लेकर चलने से ही हिन्दी भाषा राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित हो सकती है, उनकी ‘‘विसंगति‘‘ प्रथम श्रमिक काहनी थी जिसमें श्रमिकों का जीवन का परिलक्षित होता है।
अध्यक्षीय सम्बोधन में श्री राजनाथ सिंह ‘सूर्य‘, लखनऊ ने कहा - आज की पीढ़ी पहले के साहित्यकारों की रचनाओं व उनके प्रभावों से नहीं जुड़ पा रही है। नई पीढ़ी आज भ्रमित हो रही है। उचित क्या है या अनुचित क्या है अन्तर नहीं निकाल पा रही है। नई पीढ़ी को जोड़ना होगा। हिन्दी को समृद्ध बनाने में सरोज, देवराज व माचवे जी ने महान योगदान दिया। माचवे जी पत्रकारिता के महाननायक थे। आज बाजारवाद का युग आ गया है। बाजारवाद का पूरे समाज पर पड़ रहा है।
समारोह का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन श्री पद्मकान्त शर्मा ‘प्रभात‘ ने किया।

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राज्यपाल ने कविता संग्रह ‘प्रवासी पुत्र’ का लोकार्पण किया

Posted on 03 June 2017 by admin

उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नाईक ने आज राजभवन के गांधी सभागार में पूर्व महापौर डाॅ0 दाऊजी गुप्ता के पुत्र डाॅ0 पदमेश गुप्ता के कविता संग्रह ‘प्रवासी पुत्र’ का लोकार्पण किया। इस अवसर पर उप मुख्यमंत्री डाॅ0 दिनेश शर्मा, पूर्व महापौर डाॅ0 दाऊजी गुप्ता, लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति श्री एस0पी0 सिंह, प्रकाशक श्री अवनीश माहेश्वरी सहित अन्य गणमान्य नागरिक भी उपस्थित थे। कार्यक्रम का आयोजन चेतना साहित्य परिषद द्वारा राजभवन में किया गया था।

aks_8097इस अवसर पर राज्यपाल ने डाॅ0 पदमेश को शाल, पुष्प गुच्छ व अपनी पुस्तक ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ की हिंदी प्रति देकर सम्मानित किया। उल्लेखनीय है कि डाॅ0 पदमेश लंदन में रहते हैं तथा उन्होंने लंदन में हिंदी को प्रोत्साहित करने के लिये अनेक सराहनीय कार्य किये हैं तथा कई हिंदी सम्मेलन व संगोष्ठियों का आयोजन भी किया है।
पुस्तक के विमोचन के उपरान्त राज्यपाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि डाॅ0 पदमेश को कई भाषाओं पर अधिकार है। हाल में ही राष्ट्रपति भवन में उनका सम्मान किया गया था। उनके सम्मान से उनके पूर्व शिक्षण संस्थान लखनऊ विश्वविद्यालय तथा लामार्टिनियर कालेज का भी गौरव बढ़ा है। उन्होंने कहा कि अपने घर में सम्मान मिलता है तो उसकी खुशी की बात ही कुछ और होती है।
श्री नाईक ने कहा कि विदेशों में रहकर ‘हिंदी क्या है’, बताना बड़ा काम है। डाॅ0 पदमेश ने कई वर्षों तक अनेक हिंदी पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया है। विदेशों में रहकर हिंदी को प्रोत्साहित करना वास्तव में राष्ट्रभाषा के प्रति सम्मान प्रकट करना है। डाॅ0 पदमेश ने विदेश में हिंदी के विकास के लिये व्यक्ति नहीं संस्था के रूप में कार्य किया है। उन्होंने ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ श्लोक को उद्धृत करते हुये कहा कि जीवन में निरंतर चलते रहना ही सफलता का मूल मंत्र है।
उप मुख्यमंत्री डाॅ0 दिनेश शर्मा ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि डाॅ0 दाऊजी गुप्ता लखनऊ के महापौर रहे हैं। उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला। डाॅ0 पदमेश, डाॅ0 दाऊजी के पुत्र हैं और जब संतान आगे बढ़ती है तो माता-पिता को खुशी होती है। उन्होंने डाॅ0 पदमेश द्वारा लंदन में की जा रही हिंदी सेवा की सराहना की।
कार्यक्रम में डाॅ0 दाऊजी गुप्ता ने भी अपने विचार रखे तथा डाॅ0 पदमेश ने अपने काव्य संग्रह ‘प्रवासी पुत्र’ से दो कवितायें सुनाकर लोगों को भाव विभोर कर दिया। इससे पूर्व डाॅ0 उषा ने काव्य संग्रह ‘प्रवासी पुत्र’ पर संक्षिप्त प्रकाश डाला।

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लोक रंग कार्यक्रम का आयोजन किया गया

Posted on 11 May 2017 by admin

0710 मई क्रान्ति दिवस के अवसर पर चैधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के प्रेक्षागृह में संस्कृतिक मंत्रालय की ओर से संस्कृतिक संस्था सोनचिरैया द्वारा आजादी के लोक रंग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में सोनचिरैया  संस्था की सचिव व प्रसिद्ध लोकगायिका श्रीमती मालिनी अवस्थी जी द्वारा कार्यक्रम का संचालन किया गया तथा सन्दुर एवं मनमोहक गीत प्रस्तुत किया गया। इस अवसर सोनचिरैया के  अन्य कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किये गये। इस अवसर पर सांसद राजेन्द्र अग्रवाल, मुख्य अतिथि जिलाधिकारी समीर वर्मा और विशेष अतिथि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 एन के तनेजा सहित अन्य गणमान्य एवं आमजन उपस्थित रहे।

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Kabir Peace Mission celebrated its 27th Foundation Day

Posted on 24 April 2017 by admin

Two books titled ‘Sarthak Jeevan-Tamsoma Jyotirgamay and The Story of my Spiritual Journey’ Released.

· KPM conferred its prestigious award of ‘Kabir Deep’ on its five senior members from various centers.

Kabir Peace Mission celebrated its 27th Foundation Day on 23rd April 2017 (Sunday) in City Montessori School, Vishal Khand, Gomtinagar auditorium. On its Foundation Day, mission organized a discussion on the subject, from ‘Darkness to Light: An Ongoing Journey.’ At this occasion the Chief Guest was Hon’ble Shri Ram Naik Governor of Uttar Pradesh. The keynote speaker was Shri Shambhu Nath, former Chief Secretary of Uttar Pradesh. The program was presided by former Lokayukta of Uttar Pradesh Justice S. C. Verma. On this occasion Shri Krishan Bihari Agarwal President Kabir Peace Mission, Shri Jagdish Gandhi, Shri Rakesh Mittal Chief Coordinator of Kabir Peace Mission and Dr. I.P.S. Bisnik author were also present on the dais. The program was attended by a large number of members and well wishers of the mission.

Two books were launched during the program. One book titled ‘Sarthak Jeevan-Tamsoma Jyotirgamay is written by Dr. I.P.S. Bisnik a senior member of Kabir Peace Mission. He has written several books in the past also. This book explains in detail the fundamental principles of life which makes it meaningful. The explanations given in the book are very convincing. The second book released in the function is a spiritual biography of the author Shri Rakesh Kumar Mittal titled ‘The Story of my Spiritual Journey’. This book describes in detail the association of his spiritual master Swami Bhoomananda Tirth and how it changed the quality of his life. The book is of immense help to all genuine seekers.

Kabir Peace Mission conferred its prestigious award of ‘Kabir Deep’ on its five senior members from various centers. The recipients are Padam Shri Dr. Mansoor Hasan, the renowned cardiologist of Lucknow, Dr. Rajesh Agarwal, Chief Medical Superimtendent of Regency Hospital, Kanpur, Shri Chandra Bhooshan Singh former MP and an enlightened farmer from Farukabad, Dr Hemlata Dikhit an educationist and social worker from Indore and Dr. Ishwar Singh a world known Homeopath from Meerut. All of them have rendered selfless service to the society for a long time and are still doing so.

The program began with the welcome address of Mr.Rakesh Mittal who also introduced the subject of discussion. He told about the progress of Kabir Peace Mission since its establishment. He said that collective optimism is very

important and when large number of people think positive, its collective impact is bound to be positive. In the process, the individual is the first beneficiary.

Speaking on the subject of discussion, Shri Shambhu Nath gave a deep insight into the journey of human life. He said that moving foreward is the only way to live meaningfully. He dwelt in detail on the genesis of words ‘Chareveti-Chareveti’ which have been taken from ancient scriptures. A positive thinker always turns difficulties into opportunities and no difficulty in life can stop his forward march.

The Chief Guest Hon’ble Governor of U.P. Shri Ram Naik Ji spoke at length on this occasion. While appreciating the work done by Kabir Peace Mission, he gave many instances from his own life where the motto of ‘Marching Ahead’ helped him in facing the difficult situation of life. In fact the title of his biography released recently is ‘Chareveti–Chareveti’ (Marching Ahead). He expected that more and more selfless people will come forward and be an example for new generation. He profoundly congratulated the ‘Kabir Deep’ awardees and wished them good health in future.

Kabir Peace Mission was established in April 1990 to develop Positive Thinking in the Society. During this period mission has grown phenomenally and today it has support from all sections of the society. At present there are 2720 life member of the mission spread over 40 centers in India and abroad. Mission also works in association with many likeminded organizations.

The program concluded with the Presidential address by Justice S. C. Verma who also proposed a vote of thanks to Chief Guest, the key note speaker and all the guests for their benign presence. Around 400 enlightened citizens were present in the program.

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कार वर्सेज़ वाइल्ड

Posted on 11 September 2013 by admin

बियाबान की दक्षता से ज्यादा खतरनाक और कोई चीज नहीं होती। इस सितम्बर में डिस्कवरी चैनल एक बिल्कुल नई रोमांचक श्रृंखला,

कार वर्सेज़ वाइल्ड पेश कर रहा है जो मैक्सिको के मनोहारी मगर बेहद बेरहम भूदृश्यों को पेश करती है। दर्शक ब्रिटिश स्पैशल फोर्सेज के एक पूर्व सैनिक गैरी हम्फ्री के साथ एक रोमांच से भरे सफर पर चलेंगे, बिल वू कारों के शौकीन एक अमरीकी नागरिक हैं और रूबी उनकी भरोसेमंद और रोमांच के लिए हमेशा तैयार फोर व्हील ड्राइव वाली कार है। कार्यक्रम में ये लोग इंसान और मशीन, दोनों की सीमाओं का पूरा इम्तिहान लेते हैं क्योंकि ये ऐसी मुश्किल जगहों पर जाते हैं जहां पहले कभी कोई कार नहीं गई।

10 भाग वाली इस श्रृंखला कार वर्सेज़ वाइल्ड को केवल डिस्कवरी चैनल पर 16 सितम्बर से हर रात 10 बजे दिखाया जाएगा।  edited-car-vs-wild-discovery-channel-1

हर एपिसोड में बिल और गैरी एक बेहद चरम पर्यावरण में रूबी नामक एक कार के साथ जाते हैं जिसे ऐसे भूदृश्यों के लिए सज्जित नहीं किया गया है। इन तीनों को वेराक्रूज के ज्वालामुखीय इलाके और क्रेटरों से होकर अपनी आखिरी मंजिल ओरिजाबा तक पहुंचना है जहां के जंगल दम घोटने वाले और बेहद घने हैं। इनका सामना खतरनाक प्राकृतिक बाधाओं से होता है जो इनकी शारीरिक सीमाओं का इम्तिहान लेती हैं। इन्हें अपने डर पर काबू पाते हुए सांपों, चमगादड़ों से भरी गुफाओं और गहरे लगूनों का सामना करना है या इन्हें 70 मीटर गहरी एक कैन्यन में भी उतरना है। इस बियाबान में समय की कोई सीमा नहीं है। लेकिन धीमे चलने से इस निडर टीम को नुकसान ही होगा। आखिरकार बिल और गैरी को अपने सामने मौजूद चुनौतियों का सामना करने के लिए रफ्तार और रणनीति, दोनों के बीच ही संतुलन बनाना होगा।

इस कार्यक्रम का मुख्य तत्व है मानव, मशीन और प्रकृति के बीच मौजूद पेचीदा रिश्ता। दर्शक बिल और गैरी को प्रेरणाप्रद जोखिम उठाते और व्यावहारिक विकल्प ढूंढते देखेंगे जो हरे-भरे जंगलों में से रूबी को टारजन के अंदाज में आगे बढ़ाने के लिए लताओं और पेड़ों का इस्तेमाल करते हैं। दर्शक दक्षिण-पूर्व में मौजूद 14 हजार फुट ऊंचे पिको डे ओरिजाबा माउंटेन पर चढ़ाई करने के एक संभावित रेकाॅर्ड कीर्तिमान को भी देखेंगे। ये पहाड़ मैक्सिको में सबसे ऊंचा है और ये अपनी चट्टानों के बीच खोजियों को निगलता रहता है। सबसे आखिर में ये तीनों कुछ ऐसी जगहों पर से सफर करने की कोशिश करते हैं जहां पहले कभी कोई कार नहीं गई। इनमें एक ज्वालामुखीय क्रेटर में बनी झील भी है, और कहा जाता है कि यहां मानव बलि दी जाती थी।

इस सफर को पूरा करने के लिए महारतों और तुरत-फुरत लिए जाने वाले फैसलों के अलावा भी बहुत कुछ चाहिए होगा। क्या ये तीनों बिना कोई नुकसान उठाए ये काम कर पाएंगे? जीत किसकी होगी - कार की या बियाबान की? दर्शक 16 सितम्बर, 2013 से, हर रात 10 बजे दिखाए जाने वाले कार्यक्रम कार वर्सेज़ वाइल्ड में दिल की धड़कन बढ़ा देने वाले एक्शन को देखेंगे।

एपिसोडों की सुखिऱ्यांः

स्काई प्लेटफाॅर्मः बिल, गैरी और रूबी दक्षिणी मैक्सिको के सिएरा हुआरेज पहाड़ों में जाते हैं जिनकी ऊंचाई समुद्र की सतह से 1800 मीटर है, और ये पूर्व की ओर फैले हुए हैं। ये पत्थर से बने एक पवित्र मंच की ओर बढ़ते हैं और वहां तक जाने के लिए स्थानीय अमरीकियों के पैदल मार्ग को अपनाते हैं। यहां हमारे नायकों का सामना ग्रेनाइट पत्थरों की भूलभुलैया से होता है, हर मोड़ पर ऐसा लगता है जैसे ये पलट जाएंगे या उन्हें कुचल देंगे। बाद में जब बिल और गैरी घने पहाड़ी जंगल में भटक जाते हैं तो उन्हें वहां से निकलने का रास्ता प्राकृतिक संसाधनों को इस्तेमाल करके ढूंढना होता है। आखिरकार ये लोग स्काई प्लेटफाॅर्म के आधार तक पहुंच जाते हैं, लेकिन पांच सौ मीटर ऊंची इस प्राकृतिक चट्टानी सीढ़ी पर चढ़ना इनके लिए कुछ ज्यादा ही मुश्किल चुनौती साबित हो सकता है।

अनएक्सप्लोर्ड वैलीः बाहा, मैक्सिको में गैरी और बिल एक बेहद दूरदराज घाटी का ट्रैक करते हैं। इसका न तो कोई नाम है, और रूबी के यहां पहुंचने से पहले यहां कोई वाहन आया भी नहीं है। यहां पहुंचने के लिए इन तीनों को बेहद खतरनाक और अप्रत्याशित रियो हार्डी को पार करना पड़ता है, जो मैक्सिकाली वैली के साथ-साथ 26 किलोमीटर की लम्बाई में मौजूद है। यहां पानी बहुत गहरा है और ये लोग केवल उम्मीद और दुआ ही कर सकते हैं कि रूबी आंशिक रूप से पानी में डूब कर इस दूरी को पार कर लेगी। अगर ये लोग इस पानी में न भी बहे तो भी 10 लाख एकड़ में फैला नमक वाला मैदान लगूना सलाडा उनकी इस चुनौती की आखिरी बाधा तक पहुंचने का रास्ता तो फिर भी बाधित किए ही रहेगा। यानी 35 मीटर ऊंची एक चट्टान। बेहद गर्म लगूना सलाडा के बाजू में सिएरा डे हुआरेज पहाड़ मौजूद है।

बिहाइंड द सीन्सः दो भाग वाले इस विशेष एपिसोड में बिल और गैरी मैक्सिको के अपने चरम एडवैंचर के बारे में अपना नजरिया पेश करेंगे। वे एक झरने से छलांग लगाते हैं, और जंगल में चमगादड़ों वाली एक गुफा में भी जाते हैं। हम इन तीनों के साथ एपिसोड-1 से, इनकी यात्रा की शुरूआत से ही रहेंगे और ऐसी फुटेज देखेंगे जो पहले कभी देखी ही नहीं गई। रूबी जंगल के एक ढलान पर से नीचे आने के लिए जूझती है, और बिल और गैरी ये साबित कर देते हैं कि आप जैसा सोचते हैं, वैसा हमेशा होता नहीं है। आखिर में दर्शक फिल्म क्रू को भी देखेंगे जो मैक्सिको में सबसे नम, सबसे गर्म और सबसे खतरनाक जगहों पर टीम के साथ बने रहने और तमाम हालात को झेलने की कोशिश करते रहते हैं।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री

agnihotri1966@gmail.com

sa@upnewslive.com

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सहारा वन के नये धारावाहिक ‘’आखि़र बहू भी तो बेटी ही है‘’ पर शुरू होगी एक ज्वलंत बहस

Posted on 05 September 2013 by admin

  • सोमवार, 16 सितम्बर रात 9 बजे से होगा प्रसारण

समाजशास्त्री इस बात से आश्चर्यचकित हैं कि आखि़र संयुक्त परिवार एकल परिवारों में क्यों टूटते जा रहे हैं। इसके पीछे कई कारण हैं, लेकिन एक मुख्य कारण सास और बहू के बीच एक-दूसरे के प्रति अपेक्षाओं में मतभेद होना है। इसी विषय को ध्यान में रखते हुए सहारा वन पर आगामी सोमवार 16 सितम्बर से रात 9 बजे एक नये धारावाहिक ‘आखि़र बहू भी तो बेटी ही है‘ का प्रसारण शुरू किया जा रहा है, जो शुक्रवार तक प्रति सप्ताह जारी रहेगा।

edited-aakhir-bahu-bhi-toh-beti-hee-haiसहारा वन का ‘आखि़र बहू भी तो बेटी ही है‘ ऐसी कहानी है जिसमें बहू और बेटियों से अलग-अलग व्यवहार किया जाता है। कहानी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले की रूढि़वादी परिवार की है, जहां सास ‘नौलखा देवी‘ (प्राची पाठक) बहुत सख्त, दूसरों पर हावी होने वाली और बेहद रूढि़वादी महिला हैं। वह अपनी बहुओं को दकियानूसी विचारों के अनुसार रखती हैं। उनका विश्वास है कि घर की बहू पर सख्त नियंत्रण होना चाहिए और इसमे कोई भी बदलाव पूरे घर को तोड़ सकता है।

इसके विपरीत, सिया (पायल राजपूत) युवा, जोश से भरी, चंचल और बहिर्मुखी स्वभाव की है। वह युवा महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली आज के दौर की निडर एवं आत्मसम्मान वाली युवती है। वह बुद्धिमान, आत्मविश्वासी भी है, जिसके खुद के विचार हैं और सही के साथ खड़े होने का जिसमें साहस है। उसका दृढ़ विश्वास है कि उसका ससुराल उसके मायके से अलग नहीं होगा

श्री शरद राज, प्रोग्रामिंग और कान्टेट प्रमुख, सहारा वन मीडिया एंड एंटरटेनमेंट लिमिटेड ने धारावाहिक के बारे में कहा, ‘‘बदलते समय के साथ सामाजिक एवं पारिवारिक ýझान भी बदलने की आवश्यकता है और हम अपने नये धारावाहिक ‘‘आखि़र बहू भी तो बेटी ही है‘‘ में इसी बात को दर्शकों के सामने रखेंगे। हमारे देश की उभरती युवा महिलाओं के दिमाग में एक सवाल है कि यदि लड़की अपना परिवार छोड़कर पति के परिवार को अपने परिवार की तरह अपनाती है और अपने सभी कर्तव्य निभाती है, तो फिर क्यों सास-ससुर, खासकर सास उनके साथ एक बेटी की तरह व्यवहार नहीं करतीं? क्यों उसे ठेठ बहू बनना पड़ता है जिस पर कई प्रतिबंध हो, और शेष परिवार से अलग-थलग हो, जबकि उसके पास ‘‘संस्कार‘‘ लाने का अधिकार है? आखि़र बहू भी तो बेटी ही है धारावाहिक का प्रयास वर्तमान समय की महिलाओं के इसी सवाल को सामने लाना है… यह आज की प्रत्येक ‘बहू‘ की भावनात्मक महत्वाकांक्षा है और अब समय आ गया है कि इस मुद्दे पर खुलकर बहस हो।‘‘

भारतीय टेलीविजन पर अपने पहले शो के साथ एंट्री करने वाले भारत श्रीवास्तव, निर्माता, इम्पैक्ट टेली नेटवर्क प्राइवेट लिमिटेड, ने कहा, ‘‘आखि़र बहू भी तो बेटी ही है भारतीय शादी की परम्परा से जुड़े विभिन्न रंगों को प्रस्तुत करता है, जहां एक लड़की मासूमियत से परिपक्वता, बेफिक्र जिन्दगी से जिम्मेदारी उठाने की भूमिका और एक लड़की से महिला में परिवर्तित होती है। इस प्रक्रिया में, लड़की को बहुत कुछ खोना पड़ता है, लेकिन समाज इसे सही तरीके से नहीं लेता। उसकी सबसे बड़ी चुनौती नये परिवार में सामंजस्य बिठाना होता है। निस्संदेह उसकी सासू मां, खासकर संयुक्त परिवार में मुख्य केन्द्र बन जाती है। हमारी कहानी इन दोनों चरित्रों के इर्दगिर्द घूमती है कि किस तरह से दिलचस्प घटनाएं इन दो अजनबियों को मजबूती से बांधती है कि एक बहू को बेटी के तौर पर और सासू मां को मां के रूप में स्वीकारा जाए।‘‘ बताते चलें कि ‘आखि़र बहू भी तो बेटी ही है‘ सास नौलखा देवी, उसकी बहू सिया और अलग-अलग सोच के दो भिन्न लोगों के मिलने से उनके बीच पैदा हुए विवाद की कहानी है। शो में सास और बहू के बीच सम्बन्धों को दिखाया गया है। पूरी अवधारणा हमारे समाज में बहू और बेटियों से किये जाने वाले अलग-अलग व्यवहार पर आधारित है। शो की समाजवादी कहानी में पायल राजपूत, प्राची पाठक, सीमा पांडे, आर्यन पंडित और पारितोष सैंड जैसे प्रतिभाशाली कलाकार नजर आएंगे।

अधिक जानकारी के लिए कृपया संपर्क करें:

तिशम घटक/हेमन्त शुक्ल

सहारा काॅर्पोरेट कम्युनिकेशन्स, लखनऊ

मोबाइल नं0 - 9838072633/9838689871

सुरेन्द्र अग्निहोत्री

agnihotri1966@gmail.com

sa@upnewslive.com

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