हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार षिवसिंह ‘सरोज, डाॅ0 नन्द किषोर देवराज एवं डाॅ0 प्रभाकर माचवे के जन्मषताब्दी वर्ष के अवसर पर संगोष्ठी

Posted on 18 June 2017 by admin

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के तत्वावधान में हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार षिवसिंह ‘सरोज, डाॅ0 नन्द किषोर देवराज एवं डाॅ0 प्रभाकर माचवे के जन्मशताब्दी वर्ष के अवसर पर संगोष्ठी का आयोजन शुक्रवार, 16 जून, 2017 को निराला साहित्य केन्द्र एवं सभागार, हिन्दी भवन, लखनऊ में किया गया।
श्री राजनाथ सिंह ‘सूर्य‘, पूर्व सम्पादक, स्वतंत्र भारत, लखनऊ की अध्यक्षता में आयोजित संगोष्ठी में वक्ता के रूप में श्री वीर विक्रम बहादुर मिश्र, लखनऊ, प्रो0 अवधेश प्रधान, वाराणसी एवं प्रो0 राम मोहन पाठक, वाराणसी आमंत्रित थे।
दीप प्रज्वलन, माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण, पुष्पार्पण के उपरान्त प्रारम्भ हुए कार्यक्रम में वाणी वन्दना की प्रस्तुति श्रीमती दया चतुर्वेदी एवं सहयोगी द्वारा की गयी।
मंचासीन अतिथियों का उत्तरीय एवं माल्यार्पण द्वारा स्वागत करते हुए संस्थान के निदेशक,      श्री मनीष शुक्ल ने कहा- शिव सिंह सरोज, डाॅ0 नन्द किशोर देवराज एवं डाॅ0 प्रभाकर माचवे साहित्य जगत की महान विभूतियाँ हैं इनका जीवन प्रेरणादायी रहा है। ये हमारे समाज के प्रेरणास्रोत हैं। इनका समाज को योगदान काफी सराहनीय रहा है। इनकी रचनाएँ जीवन को सार्थकता प्रदान करती है।
वक्ता के रूप में आमंत्रित श्री वीर विक्रम बहादुर मिश्र, लखनऊ ने शिवसिंह ‘सरोज‘: व्यक्ति एवं रचनाकार विषय पर वक्तव्य देते हुए कहा - शिवसिंह ‘सरोज‘ जी का जीवन साधारण जीवन था। वे कवि थे, पत्रकार थे। कवि कल्पना में जीता है व पत्रकार यर्थाथ में। उन्होंने कैसे सामन्जस्य किया यह सराहनीय है। जब जीवन ईश्वर की आराधना में लग जाता है तब जिन्दगी, वन्दगी बन जाती है। वे अपने कार्यों को एक आराधक की भाँति पूर्ण करते थे। उनकी कृति लक्ष्मण काफी सराहनीय रही। उसमें उन्होंने लक्ष्मण को एक नायक के रूप में प्रस्तुत किया। जो जैसा जीवन जीता है वैसी ही उसकी कृतियाँ व स्मृतियाँ होती है।
वक्ता के रूप में आमंत्रित प्रो0 अवधेश प्रधान, वाराणसी ने डाॅ0 नन्द किशोर देवराज: व्यक्ति एवं रचनाकार विषय पर वक्तव्य देते हुए कहा -डाॅ नन्द किशोर देवराज ने ज्ञान व विज्ञान के क्षेत्र में हिन्दी भाषा में उच्च स्तरीय व मौलिक सृजन पर जोर दिया अपनी राष्ट्रभाषा में सृजन होना चाहिए। वह दर्शन-शास्त्र के महान अध्येता थे, उन्हों जीवन भर कविता के मर्म को बनाय रखा। वह महान अलोचक थे, देवराज जी की रचनाओं में दर्शन, अध्यात्मिकता व धार्मिक ग्रंथों का काफी प्रभाव रहा है। उन्होंने छायावादी विचारधारा में जादू पैदा करने का कार्य किया।  देवराज जी की रचनाओं में समाज का प्रतिविम्ब दिखाई देता है।
वक्ता के रूप में आमंत्रित प्रो0 राम मोहन पाठक, वाराणसी ने डाॅ0 प्रभाकर माचवे: व्यक्ति एवं रचनाकार विषय पर वक्तव्य देते हुए कहा- डाॅ प्रभाकर माचवे ने अपनी प्रथम रचना 15 वर्षो की उम्र लिखी व छिपी। वह साधक एवं तपस्वी थे, माचवे जी की मान्यता थी कि वह भारतीय भाषाओं को साथ लेकर चलने से ही हिन्दी भाषा राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित हो सकती है, उनकी ‘‘विसंगति‘‘ प्रथम श्रमिक काहनी थी जिसमें श्रमिकों का जीवन का परिलक्षित होता है।
अध्यक्षीय सम्बोधन में श्री राजनाथ सिंह ‘सूर्य‘, लखनऊ ने कहा - आज की पीढ़ी पहले के साहित्यकारों की रचनाओं व उनके प्रभावों से नहीं जुड़ पा रही है। नई पीढ़ी आज भ्रमित हो रही है। उचित क्या है या अनुचित क्या है अन्तर नहीं निकाल पा रही है। नई पीढ़ी को जोड़ना होगा। हिन्दी को समृद्ध बनाने में सरोज, देवराज व माचवे जी ने महान योगदान दिया। माचवे जी पत्रकारिता के महाननायक थे। आज बाजारवाद का युग आ गया है। बाजारवाद का पूरे समाज पर पड़ रहा है।
समारोह का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन श्री पद्मकान्त शर्मा ‘प्रभात‘ ने किया।

Leave a Reply

You must be logged in to post a comment.

Advertise Here

Advertise Here

 

November 2024
M T W T F S S
« Sep    
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930  
-->









 Type in