डाॅ. लक्ष्मीशंकर मिश्र ‘निशंक’ जन्मशताब्दी समारोह सम्मान समारोह, संगोष्ठी एवं काव्य गोष्ठी

Posted on 29 October 2017 by admin

डाॅ0 उपेन्द्र को निशंक साहित्य सम्मान-2017 से समादृत किया गया।

dsc_7612लखनऊ। आज दिनांक 28 अक्टूबर, 2017 को डाॅ0 लक्ष्मीशंकर मिश्र ‘निशंक‘ जन्मशताब्दी समारोह के शुभ अवसर पर उत्तर प्रदेश हिन्दी के निराला सभागार में डाॅ0 सूर्य प्रसाद दीक्षित की अध्यक्षता में डाॅ0 उपेन्द्र को डाॅ0 लक्ष्मी शंकर मिश्र ‘निशंक‘ साहित्य सम्मान से समादृत करते हुए ग्यारह हजार रूपये की धनराशि, मानपत्र, स्मृति चिह्न उत्तरीय भंेट की गयी।
इस अवसर पर गणेश वन्दना व डाॅ0 लक्ष्मी शंकर मिश्र ‘निशंक‘ जी द्वारा रचित वाणी वन्दना माँ मुझको अपना वर दो की संगीतमयी प्रस्तुति श्रीमती रंजना दीवान द्वारा की गयी। तबले पर रीतेश ने सहयोग किया। मंचासीन अतिथियों का माल्यार्पण द्वारा स्वागत डाॅ0 मुकुल मिश्र द्वारा किया गया। अभ्यागतों का स्वागत डाॅ0 कमला शंकर त्रिपाठी जी ने किया। डाॅ0 उपेन्द्र का परिचय श्री योगीन्द्र द्विवेदी द्वारा प्रस्तुत किया गया।
इस अवसर पर सम्मानित डाॅ0 उपेन्द्र ने कहा - ऐसी संस्थाएँ और बड़ा काम करें महत्वपूर्ण कार्य करें। यह उम्र मान-सम्मान से निष्पेक्ष होने की उम्र है। निशंक जी ने सनेही जी को गुरू मान उनका आशीर्वाद मुझे भी मिला। सत्पुरुषों के साथ बैठने में महापुरुषों के साथ बैठने में आपको अनुभव होगा की आपने जो कुछ किताबों में पढ़ा उससे अधिक जीवन से सीखा जा सकता है। हिन्दी के स्वरूप को सुधारने का कार्य ऐसी संस्थाएँ कर सकती है।
अध्ययन संस्थान की ओर से प्रकाशित वार्षिक पत्रिका ‘निशंक सुरभि‘ तथा डाॅ. निशंक की काव्य कृति ‘ब्रज-जीवन’ का लोकार्पण मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया।
मुख्य अतिथि डाॅ0 सदानन्दप्रसाद गुप्त, कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने अपने सम्बोधन में कहा - डाॅ0 लक्ष्मीशंकर मिश्र ‘निशंक‘ का स्मरण एक परम्परा का स्मरण है। कविता में विचार तत्व की प्रधानता आयी है। राग तत्व की कमी आयी है। आज मंच की कविता और पढ़ी जाने वाली कविता में दूरी आ गयी है। निशंक जी ने उत्तरछायावादी काव्यधारा के दौर में अपने को वाद मुक्त रखा। उन्होंने कवित्त और सवैया की परम्परा को आगे बढ़ाया। उन्होंने छन्द विरोध की चुनौती को स्वीकार किया। हिन्दी भाषा के प्रति उनकी गहरी निष्ठा थी, वह स्तुत्य है। निशंक जी ऐसे रचनाकार थे जो हाट में बिकने वाले नहीं थे।
सभाध्यक्ष प्रो0 सूर्य प्रसाद दीक्षित जी ने कहा - निशंक जी ने आधुनिक युग में कवित्त और सवैया छन्द को जिन्दा करने का कार्य किया। यति, गति, स्वर, ताल का नमूना निशंक जी की कविताओं में मिलता है। उन्होेंने मंच की पवित्रता को जीवित रखने का प्रयास किया। आज कविता की पवित्रता को जीवित रखने की आवश्यकता है। निशंक जी ने कई संस्थाएँ स्थापित कीं और उनमें सक्रियता से गतिशीलता प्रदान की। उनकी हिन्दी सेवा भी उल्लेखनीय है।
डाॅ0 जितेन्द्र कुमार सिंह संजय के संचालन में प्रारम्भ हुए प्रथम सत्र में - डाॅ0 निशंक: सृजन के विविध आयाम’ विषय पर सार्थक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसके अध्यक्ष आजमगढ़ से पधारे डाॅ0 कन्हैया सिंह थे।
कानपुर से पधारी डाॅ0 दया दीक्षित ने कहा- निशंक जी सृजन के साथ हिन्दी भाषा, हिन्दी साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए कृत संकल्प रहे। ‘साहित्यकारों के पत्र मेरे

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नाम’ शीर्षक पुस्तक निशंक जी की अमूल्य कृति है। इन पत्रों के माध्यम से साहित्य की एक परम्परा सामने आती है। वे कहा करते थे कि मैं अनायास लिखता हूँ सध्यास नहीं लिखता। वे कहते थे मैं सदैव राममय रहा न काममय न नाममय। उनके द्वारा लिखे गये सम्पादकीय उनके मुखर और प्रखर व्यक्तित्व के प्रमाण है।
डाॅ0 गोपाल कृष्ण शर्मा ‘मृदुल’ ने कहा- ‘डाॅ0 निशंक राम चरित मानस का पाठ सुनकर बड़े हुए। उनका परिचय राष्ट्रीय संस्कृति काव्यधारा से हुआ। परम्परा की परिधि मे रहते हुए उन्होंने सदैव नवीन बात कहने का प्रयास किया।
इस अवसर पर डाॅ0 निशंक अध्ययन संस्थान द्वारा प्रकाशित ‘लखनऊ के दिवंगत हिन्दी कवि’ खण्ड-एक पुस्तक का लोकार्पण भी हुआ।
श्री आदित्य मिश्र ने कहा - निशंक जी ने गद्य साहित्य में कविता को जिया है। निशंक जी स्वाभिमान और सिद्धान्त के साथ काव्य साधना करने की प्रेरणा देते हैं। निशंक जी के संस्मरण स्वतः ही काव्यमय हो जाते हैं। उनके संस्मरण जीवन के यथार्थ को जोड़ने वाले हैं। अपने पत्र लेखन और संग्रहण के माध्यम से निशंक जी कविता के रस को जीवन धन मानते हैं।
सभाध्यक्ष डाॅ0 कन्हैया सिंह ने कहा - डाॅ0 लक्ष्मीशंकर मिश्र ‘निशंक‘ अध्ययन संस्थान साहित्य की टूटी हुई कड़ी को जोड़ने का काम करते हैं। निशंक जी रसिक कवि-रसिक अध्यापक और आचार्य रहे हैं। उन्होेंने सनातन परम्परा में रूढ़ियों का विखड़न करते हुए कविता-कर्म किया। नये प्रतिमान स्थापित किये।
इस अवसर पर एक सरस काव्य गोष्ठी का आयोजन श्री उदय प्रताप सिंह की अध्यक्षता में किया गयसा। वाणी वन्दना सुश्री सतरूपा पाण्डेय ने पढ़ी- लेखनी करती नमन है/शब्द के भण्डार दो/वीणा पाणी सरस्वती माँ!।
श्री अतुल वाजपेयी जी ने पढ़ा- है नवीन युग का ज्वलन्त उद्गांक्ष मुक्त/देश भक्ति भाव का संवाद वंदेमातरम्।
श्री रमेश रंजन मिश्र ने पढ़ा - मन ने पद्मावत पढ़ा जग कर सारी रैन/अक्षर-अक्षर तुम दिखे नैन हुए बैचेन/मन के मंगल भवन में पूर्ण हुए संस्कार/आँखों-आँखों भाँवरें पड़ी हजारों बार।
श्री दीनमोहम्मद दीन ने पढ़ा- हम रखे सम्मान देश का/और बढ़ाये मान देश का। सहन नहीं हम कर सकते हैं/पल भर को अपमान देश का।
श्री सरस कपूर, डाॅ0 शिवओम अम्बर, श्री राधाकृष्ण पथिक, श्री सतीश आर्य, डाॅ0 ओम निश्चल, सुश्री रूपा पाण्डेय ‘सतरूपा‘ ने भी काव्य पाठ किया। काव्य गोष्ठी का संचालन डाॅ0 शिव ओम अम्बर ने किया।
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