Posted on 19 September 2010 by admin
कॉमनवेल्थ गेम्स की क्वींस बेटन रिले टीम रविवार को झाँसी आ रही हैक्वींस बेटन के आगमन को लेकर तैयारी पूरी कर ली गई है। स्टेडियम की सफाई के लिए जहाँ कर्मचारियों की टीम लगाई गई है, तो यातायात में बाधा पहुँचाने वाले आवारा जानवरों को पकड़ कर गौशाला छोड़े दिए गए है।
जिला अधिकारी ने प्रशासन के साथ क्वींस बेटन रिले टीम के आगमन को लेकर पिछले दिनो क्षेत्र का भ्रमण किया था। टीम का जहाँ-जहाँ स्वागत होना है तथा जिन स्थानों से गुजरना है, वहाँ की व्यवस्थाओं को देखा तथा कमियों को दूर करने के निर्देश दिए। नगर में क्वींस बेटन रिले के स्वागत के लिए जगह-जगह गेट बनाये गए है. क्वींस बेटन रिले का स्वागत में स्क्कूली बच्चे नगरवासी क्वींस के लिए उत्साहित है
2– कॉमनवेल्थ गेम्स की बेटन रिले और भारतीय रेलवे की ओर से चलायी गयी कॉमनवेल्थ एक्सप्रेस रविवार को झाँसी पहुचेगी . इस ट्रेन में कॉमनवेल्थ गेम्स से जुड़ी हर जानकारी उपलब्ध है. झाँसी में इस ट्रेन को देखने के लिए लोगों बड़े उत्साहित है
युवाओं पर केंद्रित 11 डिब्बों वाली इस ट्रेन में पांच बोगियों में कॉमनवेल्थ गेम्स से जुड़ी जानकारी दी गयी है, जबकि छह डिब्बे में सूचना तकनीक एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुई प्रगति को प्रदर्शित किया गया है. कॉमनवेल्थ गेम्स वाले डिब्बे के पहले कोच में कॉमनवेल्थ खेल का इतिहास, मसकट व प्रतीक चि: से संबंधित जानकारी दी गयी है.दूसरे कोच में दिल्ली में मेटो रेलवे का हवाई अड्डों से संपर्क, विभिन्न स्टेडियमों व दिल्ली के विभिन्न स्थानों को विस्तार से दरसाया गया है.
रेलवे के खिलाड़ियों का भी है ब्योरातीसरे कोच में दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में होने वाले खेलों की जानकारी दी गयी है. इसमें बताया गया है कि कौन सा खेल किस स्टेडियम में होगा. चौथा कोच भारतीय खिलाड़ियों को समर्पित किया गया है. जिन खिलाड़ियों ने भारत का नाम रोशन किया है, उनकी पूरी विवरणी चौथे कोच में है. पांचवें कोच में भारतीय खेलों को बढ़ावा देने संबंधी जानकारी दी गयी है. रेलवे के प्रयास की सराहनाशेष छह डिब्बों में सूचना प्रौद्योगिकी संबंधित प्रदर्शनी लगायी गयी है.
इस विभाग के योगदान, आइटी से हुए बदलाव, राष्टीय इ-गवर्नेस योजनाओं पर भी प्रकाश डाला गया है. १९-२०-२१ तक झाँसी स्टेशनों पर रुकेगी. झाँसी जंकशन की प्लेटफॉर्म संख्या ६ पर यह टेन लगेगी . इसे सुबह के दस से रात के आठ बजे तक निशुल्क देखा जा सकता है.
Vikas Sharma
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Posted on 09 September 2010 by admin
झांसी - बैंक भले ही लाख दावे करे मगर स्थिति एजुकेशन लोन की ठीक नहीं है। विदेशों में पढ़ाई करने वालों को भी लोन की व्यवस्था है, मगर अपने शहर में ऐसों का टोटा है। पढ़ाई के लिए ऋण मागने वालों की राह आसान होते नहीं दिख रही। बैंकों में तमाम औपचारिकताओं के बीच फँसे अधिकाश छात्रों के हाथ सिर्फ निराशा ही हाथ लगती है। हालाकि बैंक ऋण देने के मामले में खुद को नरम बताते है, मगर रिकवरी की गारण्टी पर पूरी प्रक्रिया कहीं न कहीं फँस जाती है।
गौरतलब है कि इण्टरमीडिएट के बाद खास कर तकनीकी और व्यवसायिक शिक्षा के लिए एजुकेशन लोन का प्रावधान है। छात्र जहा का मूल निवासी हो, वहा के बैंक से ऋण ले सकता है। पढ़ाई पूरी होने के छह माह बाद या उससे पहले नौकरी लगते ही ऋण चुकाने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है।
चार लाख रुपए से ज्यादा का एजुकेशन लोन लेने वालों को गारण्टी के रूप में सम्पत्ति दर्शाना होती है। हालाकि चार लाख से कम एजुकेशन लोन लेने वालों को गारण्टी दर्शाने की छूट दी जाती है, किन्तु लोन देने से पहले बैंक रिकवरी की सम्भावनाओं पर भी गौर करता है। मैरिट व पढ़ाई में तेज स्टूडेण्ट को इसमें छूट भी मिल जाती है। मसलन आईआईटी जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में चयनित होने वाले छात्रों को औपचारिकताओं में छूट दी जाती है। इसके पीछे बैंकों को रिकवरी की पूरी उम्मीद की मानसिकता होती है। दूसरी ओर पढ़ाई में सुस्त स्टूडेण्ट को लोन देकर बैंक वाले रिस्क नहीं लेना चाहते।
बैंक लोन में पढ़ाई का पूरा खर्च समाहित होता है। इसमें ट्यूशन फीस के साथ ही कॉपी-किताब, एजुकेशन टूर, प्रोजेक्ट, हॉस्टल फीस जैसे सभी खर्चोü का वहन किया जाता है। ज्यादातर बैंकों द्वारा भारत में पढ़ाई के लिए अधिकतम14 लाख और विदेश में पढ़ाई के लिए बीस लाख के लोन की सीमा निर्धारित की गई है। छात्रों को राहत देने के मकसद से चार लाख तक का एजुकेशन लोन बिना किसी गारंटी के दे दिया जाता है, पर इससे ऊपर लोन प्राप्त करने के लिए लोन के बराबर की संपत्ती गारंटी के तौर पर बैंक के पास रखनी पड़ती है।
इनमें ब्याज की राशी भी काफी कम होती है। लोन की सुविधा मैनेजमेंट, इंजीनियरिंग, मेडीकल की पढ़ाई के साथ ही सामान्य पढ़ाई के लिए भी उपलब्ध कराई गई है। छात्र सामान्य कोर्सोü के लिए जरूरी दस से बीस हजार रूपये से लेकर बीस लाख तक का लोन ले सकते हैं। एजुकेशन लोन में चार लाख तक की राशी में कोई मार्जिन नहीं होता, जबिक इसके ऊपर 14 लाख तक की राशी में 15 फीसदी और बीस लाख तक की राशी में 25 फीसदी मार्जिन देना होता है।
किसका कितना लोन
बैंक - एकाउण्ट - राशी
1. पंजाब नेशनल बैंक-628- लगभग अठारह करोड़
2. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया-228-करीब साढ़े सात करोड़
3. इलाहाबाद बैंक-135 -एक करोड़ 54 लाख
4. एक्सेस बैंक-यहां बंद - इंदौर से स्पेशल केस
5. आईसीआईसीआई- पॉलसी नहीं-मुम्बई से स्पेशल केस
6. एचडीएफसी-यहां बंद-भोपाल से स्पेशल केस
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Posted on 02 September 2010 by admin
झांसी- पटरी पर यदि खतरा है या आगे कोई गाड़ी खड़ी हुई है और सिग्नल लाल है और चालक लापरवाह तो भी डरने की जरूरत नहीं। ट्रेन दुर्घटना ग्रस्त हो ही नहीं सकती क्योंकि वह खतरे से कई मीटर दूरी पर अपने आप रुक जाएगी।
दुर्घटना रहित सुरक्षित यात्रा को सम्भव बनाया है टीपीडब्लूएस अर्थात ट्रेन प्रोटेक्शन एण्ड वार्निग सिस्टम ने। इस प्रणाली को प्रयोग के तौर पर अभी ताज एक्सप्रेस व महाकौशल एक्सप्रेस के इजनों में लगाया गया है। दोनों ट्रेनों में इसका परीक्षण आगरा-मथुरा स्टेशनों के बीच किया जा रहा है। इस प्रणाली का एक सप्ताह का प्रशिक्षण झाँसी में प्रणाली बनाने वाली कम्पनी के इजीनियरों ने शताब्दी, मेल ट्रेन चालकों, लोको इस्पेक्टरों व संरक्षा से जुड़े लोगों को दिया।
बताया गया है कि जिस इजन में यह प्रणाली लगी होगी उसके रूट की रेल लाइन व सिग्नल की रिले को इस सिस्टम से जोड़ा गया है। यदि ट्रेन का चालक लाल सिग्नल के बावजूद गाड़ी को नहीं रोकता है तो इजन में लगा सिस्टम 600 मीटर दूर से ही चेतावनी देना शुरू कर देगा। चालक के फिर भी सतर्क नहीं होने की स्थिति में खतरे से 30 मीटर की दूरी पर ही इमर्जेन्सी ब्रेकिंग प्रणाली से रफ्तार पर ब्रेक लगा कर ट्रेन को रोक देगा। इसके बाद तभी गाड़ी आगे बढ़ सकेगी जब चालक इजन में लगे सिस्टम को पुन: चालू करेगा।
यही स्थिति कॉशन आर्डर अर्थात निश्चित स्थान पर ट्रेन के इजन की निर्धारित से कम गति पर संचालन के समय पर रहेगी। यदि चालक कॉशन आर्डर का पालन नहीं कर लापरवाही से ट्रेन की अपनी गति से निकालने की कोशिश करेगा तो वार्निग के बाद उसकी रफ्तार स्वत: नियन्त्रित हो जाएगी। इतना ही नहीं इजन के आगे के खतरे की जानकारी उपकरण के साथ लगी स्क्रीन पर भी स्पष्ट होगी।
यह उपकरण पाँच-पाँच मिनट में विशेष संकेत देकर चालक को सतर्क करता रहेगा। चालक द्वारा संकेत का जवाब नहीं देने की प्रतिक्रिया स्वरूप उपकरण इजन को रोक देगा। इतना ही नहीं चालक अपनी लापरवाही को छिपा नहीं पाएगा। उपकरण चालक की लापरवाही व गल्तियों को उजागर कर देगा। फिलहाल इस उपकरण के झाँसी तक काम करने की बेसब्री से प्रतीक्षा है।
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Posted on 29 August 2010 by admin
झाँसी - दादा ध्यानचंद जिनका जन्मदिन (29 अगस्त) पूरा देश खेल दिवस के रूप में मनाता है ध्यानचंद ने तीन ओलंपिक खेलों [1928], [1932] और [1936] में भारत का प्रतिनिधित्व किया तथा तीनों बार देश को स्वर्ण पदक दिलाया। आंकड़ों से भी पता चलता है कि वह वास्तव में हाकी के जादूगर थे। भारत ने 1932 में 37 मैच में 338 गोल किए जिसमें 133 गोल ध्यानचंद ने किए थे। ध्यानचंद की अगुवाई में 1947 में भारत की युवा टीम ने पूर्वी अफ्रीका का दौरा किया। असल में तब जो न्यौता दिया गया था उसमें लिखा गया था कि यदि ध्यानचंद नहीं तो कोई टीम नहीं। ध्यानचंद तब 42 साल के थे और उन्होंने 22 मैच में 61 गोल दागे। उसी जादूगर की सबसे प्रिय ‘हॉकी’ आज कितनी दयनीय अवस्था में पहुँच गई है… ध्यानचंद की कर्म स्थली झाँसी में हर वर्ष ध्यानचंद की समाधी स्थल हीरोज फिल्ड पर हाकी एक वार फिर जिन्दा हो जाती है इस दिन झाँसी में मेराथन दोड़ का सुबह आयोजन किया जाता है और जगह जगह स्कूल कालेजो में खेलो का आयोजन किया जाता है……. वही ध्यानचंद के पुत्र अशोक ध्यानचंद देश में होकी के गिरते स्थर के लिए चिंतित है उनका कहना है की होकी के स्थर हो सुधारना है तो खिलाडियों को किरकेट की तर्ज पर शुभिधाओ की अबशाकता है
बताने की जरूरत नहीं है कि हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है, लेकिन इस खेल के साथ 14 सालों तक जो खिलवाड़ हुआ , उसी का नतीजा रहा कि 8 स्वर्ण, 1 रजत और2 काँस्य ओलिम्पिक पदक जीतने वाला भारत 80 साल के ओलिम्पिक इतिहास में पहली मर्तबा बाहर था।
दादा ध्यानचंद हॉकी के जादूगर थे और अपने काल में ऐसा नाम कमाया कि ‘क्रिकेट के संत’ माने जाने वाले डॉन ब्रैडमैन भी उनके कायल हो गए थे। हॉकी को उन्होंने भरपूर जीया और देश के लिए तीन ओलिम्पिक (1928 एम्सटर्डम), 1932 लॉस एंजिल्स और 1936 बर्लिन) खेलें और इन तीनों में वे ओलिम्पिक स्वर्ण विजेता टीम का हिस्सा बने। यदि दुनिया द्वितीय विश्वयुद्ध में नहीं झोंकी जाती तो दादा ध्यानचंद के गले में और स्वर्ण पदक लटकते रहते।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को चलाने वालों को कुछ सद्बुद्धि आई और उन्होंने दादा ध्यानचंद को हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा खेल नायक मानकर हर साल 29 अगस्त को देश में ‘खेल दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला किया। बीते कई सालों से इस दिन पूरे देश में हॉकी यकायक जिंदा होती और अगले दिन फिर से मर जाती है। लकड़ी का यह जरा-सा डंडा (हॉकी स्टिक) सिर्फ उन हाथों तक सीमित रहता है, जो नियमित रूप से इसे गले से लगाए हुए हैं।
हिन्दुस्तान की हॉकी की दुर्दशा देखकर हर भारतीय का दु:खी होना लाजिमी है। जो लोग क्रिकेट को पागलों की तरह प्यार करते हैं, उनके दिल में भी राष्ट्रीय खेल के प्रति आस्था है लेकिन हॉकी पर से विश्वास इसलिए कम हो गया, क्योंकि बीते सालों में ऐसी लगातार कामयाबियाँ नहीं मिली, जिस तरह क्रिकेट में मिली।
बेशक यूरोपीय देश बहुमत के साथ अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने तरीके से नियम बनाते चले गए और मैदान पर खेली जाने वाली एशियाई शैली की हॉकी को ‘हिट एंड रन’ वाली शैली में तब्दील करके इसे नाइलोन की घास वाले मैदान तक ले गए, जहाँ घास गर्म होने पर उसे पानी की फुहारों से ठंडा किया जाने लगा। आधुनिक हॉकी एशियाई हॉकी को पूरी तरह लील गई।
जब नियम बनाए जा रहे थे, तब भारत, पाकिस्तान, कोरिया, जापान जैसे ताकतवर एशियाई देशों ने विरोध नहीं किया। एक गलती यह भी है कि यदि नए नियम और एस्ट्रोटर्फ आ गए थे तो क्यों नहीं भारत ने भी इसके लिए तैयारियाँ की? हकीकत यह है कि इस बदलाव में हम काफी पिछड़ गए।
यह ठीक वैसी ही स्थिति है जैसे कि गाँवों में मिट्टी पर लड़ने वाले पहलवान को बड़ा होने पर कुश्ती की मैट मिले और सुशील कुमार जैसे कम ही भाग्यशाली पहलवान होते हैं, जो अभाव में पलकर भी ओलिम्पिक से काँसे का पदक ले आते हैं। अब जबकि ‘गुदड़ी के दो लालों’ ने भारत को गरीब खेल माने जाने वाले कुश्ती और बॉक्सिंग में दो ओलिम्पिक पदक दिला दिए हैं तो हो सकता है कि इन खेलों का उद्धार करने पर भारत सरकार ध्यान दें।
1979 में दादा ध्यानचंद की कोमा में जाने के बाद मृत्यु हुई लेकिन जब तक वे होश में रहे, भारतीय हॉकी के प्रति चिंतित रहे। बेटे अशोक से हमेशा कहते थे कि मेरा यही सपना है कि भारतीय हॉकी एक बार फिर स्वर्णिम युग में पहुँचे। अब मेरे बूढ़े शरीर में भले ही दम नहीं रहा हो लेकिन मैं भारत की हॉकी को सम्मानजनक स्थिति में देखना चाहता हूँ ताकि खुद को जवान महसूस कर सकूँ।
इसमें कोई दो मत नहीं कि दादा ध्यानचंद की आत्मा आज जहाँ भी होगी, वह इस बदहाली पर आँसू बहा रही होगी। जिस शख्स ने हॉकी में भारत की पहचान स्थापित की, आज उनकी ही कर्म स्थति झाँसी के साथ देश भी हॉकी से अनाथ हो गया है।
परिचय -हॉकी के जादूगर दादा ध्यानचंद का जन्म प्रयाग (उत्तरप्रदेश) के राजपूत घराने में 29 अगस्त 1905 को हुआ था। उनके पिता सामेश्वर दत्त सिंह भारतीय फौज में सूबेदार थे। सेना में रहते हुए उन्होंने भी खूब हॉकी में अपने जौहर दिखाए। मूलसिंह और रूपसिंह ध्यानचंद के दो भाई थे। ध्यानचंद की तरह रूपसिंह का भी हॉकी का जाना-माना चेहरा थे। पिता के तबादले के कारण ध्यानचंद ढंग से किताबों में मन नहीं लगा सके। यही वजह थी कि छठी कक्षा के बाद ही उन्हें पढ़ाई को अलविदा कहना पड़ा। कालांतर में पूरा परिवार झाँसी आकर बस गया।
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Vikas Sharma
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Posted on 19 August 2010 by admin
झांसी में इन दिनों अफवाहों का क्या कहना! मोबाइल फोन पर आने वाली कॉल पर सुनायी देने वाली ‘राधे-राधे’ की आवाज अब पुरे नगर में खौफ का पर्याय बनती जा रही है। बीते दो दिनों में फिर दो महिलायें मोबाइल फोन पर इन शब्दों को सुनने के बाद बेहोश हो गयीं। उनमें से एक को उपचार के लिये जिला राजकीय चिकित्सालय में दाखिल कराया गया है।
ये घटनायें कोत्बाली थाना क्षेत्र अन्तर्गत घटीं। मुहल्ला लक्ष्मी गेट निवासी मीरा रावत दो दिन पूर्व रक्षाबन्धन का त्यौहार मनाने के लिये जालौन के सिरसाकला स्थित ससुराल से अपने मायके आयी थी। उसके साथ उसका पति धर्मेन्द्र भी आया था। सुबह मीरा ने अपने मोबाइल फोन को चार्ज पर लगा दिया। सुबह 9.30 बजे उसके मोबाइल फोन पर घण्टी बजी। फोन करने वाले ने मिस्ड काल देकर घण्टी बन्द कर दी।
उस समय कमरे में मीरा के अलावा उसकी माँ रमा व पति धर्मेन्द्र भी मौजूद थे। मिस्ड काल आने के बाद मीरा ने उसी काल पर घण्टी दी। दूसरी तरफ घण्टी बजने के बाद किसी पुरुष ने फोन उठाते ही ‘राधे-राधे’ कहा। इतने पर ही मीरा को चक्कर आने लगे। घबराकर उसने मोबाइल से सिम निकाल कर तोड़ कर फेंक दी और इसके बाद बेहोश हो गयी। परिवार के लोग उसे लेकर जिला अस्पताल लाये, जहाँ उसे दाखिल कर लिया गया।
इसी तरह मुहल्ला सागर गेट स्थित जल संस्थान की पानी की टंकी परिसर में पम्प ऑपरेटर दीपचन्द्र परिवार सहित रहता है। आज शाम 6.23 बजे दीपचन्द्र के मोबाइल फोन पर काल आयी। दीपचन्द्र की पत्नी मीरा ने जैसे ही फोन अटैण्ड किया और दो बार हैलो बोलने के बाद भी जब दूसरी ओर से कोई आवाज नहीं आयी तो उसने मोबाइल का स्पीकर ऑन कर दिया। इसके बाद जब उसने पुन: हैलो बोला तो दूसरी तरफ से किसी पुरुष ने ‘राधे-राधे’ कहा। यह सुनते ही मीरा के हाथ में झनझनाहट शुरू हो गयी और मोबाइल फोन की स्क्रीन लाल हो गयी। इस पर मीरा ने मोबाइल फोन फेंक दिया। बाद में जब उसके पति ने आये नम्बर पर फोन लगाया तो दूसरी ओर से उक्त नम्बर स्विच ऑफ मिला।
इस प्रकार की घटनाये झाँसी में ही नही वल्कि पुरे बुंदेलखंड में हो रही मग कियो इस का किसी पर जबाब नही है जब भारत संचार निगम के महा प्रबंधक से जानना चाहा तो उनके पास भी इन कोलो के बारे में संतोषजनक जबाब नही है.
Vikas Sharma
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Posted on 17 August 2010 by admin
मामला बिजली विभाग में ठेकेदारी के लिए आवेदन की प्रक्रिया पूरी कराने के लिए रिश्वत माँगना एक पीसीएस अफसर को ले डूबा। विजिलेंस ने रिश्वत लेते उसे रंगों हाथ पकड़ लिया।
बिजली विभाग में ठेकेदारी करने के लिए विद्युत सुरक्षा निदेशालय का एनओसी आवश्यक होता है। इसके बगैर लाइसेंस जारी नहीं किया जाता है। इतवारी गंज निवासी पवन कुमार साहू ने ठेकेदारी के लिए आवेदन किया था,जो लाइसेंस प्रक्रिया पूरी करने के लिए विभाग के कई दिन से चक्कर काट रहा था। उसने बताया कि लाइसेंस प्रक्रिया को लेकर विद्युत विभाग निदेशालय के सहायक निदेशक मनोज कुमार सिंह ने उससे 60 हजार रुपए माँगे। न देने पर फाइल को लटका दिया। इस पर उसने सतर्कता विभाग से सम्पर्क किया। मामला पीसीएस अफसर का होने के कारण पहले तो शासन से स्वीकृति माँगी गई। जिलाधिकारी ने नायब तहसीलदार सदर सुबोध मणि शर्मा को गवाही के लिए लगा दिया। इसके बाद सतर्कता विभाग के इन्सपेक्टर अशोक कुमार आवेदक के साथ चाचा बनकर विद्युत परिषद कार्यालय गए और रुपए कम लेने की बात कहते हुए पाउडर लगे 10 हजार रुपए देने लगे। इस पर सहायक निदेशक ने कम रुपए होने के कारण लेने से मना कर दिया। 30 हजार रुपए पर मामला तय हुआ। आज पवन सर्तकता विभाग के इन्सपेक्टर के साथ पहुंचा और 30 हजार रुपए में रसायनिक पाउडर लगे एक हजार के दस तथा 500 के चालीस नोट दिए, तो सहायक निदेशक ने तुरन्त उनको पकड़ लिया। इस दौरान इन्सपेक्टर गवाह नायब तहसीलदार को अपना मोबाइल फोन चालू कर सारी बातें सुनाते रहे। जैसे ही मनोज ने रुपए लिए, उनको पकड़ लिया गया। सतर्कता विभाग के इन्सपेक्टर नरेश कुमार, सीएल दिनेश, जेपी सुमन ने कई लोगों के सामने हाथ धुलाए, तो सहायक निदेशक के हाथों से झाग के साथ गुलाबी पानी निकलने लगा। इस पर सतर्कता विभाग के इन्सपेक्टरों ने आरोपी सहायक निदेशक को गिरफ्तार कर थाना नवाबाद के हवाले कर दिया। इस सम्बन्ध में सहायक निदेशक मनोज कुमार से बात की गई, तो उन्होंने बताया कि रुपए टेबिल पर रखे थे, उन्होंने हाथ तक नहीं लगाया।
रिश्वत का ये ममला झाँसी में नया नही है लगभग हर विभाग में रिश्वत का खेल चल रहा है कोई कम लेता है तो कोई ज्यादा. कर कर्मचारी अधिकारी महगाई के ज़माने में सिर्फ सरकारी तनख्व में गुजरा करने को त्येयार नही है हर किसी को कहिये दो नम्वर का पैसा.
मगर इसमें कुछ तो कभी कभी हिंदी फ़िल्म खट्टे मीठे के “सचिन चिट्कुले” की तरह अपना काम निकलने के लिए अधिकारियो या कर्मचारियों को फसाने की कोशिस भी करते है. आज हर विभाग में भार्स्ताचार का बोलबाला है जिसे मिटने में हर आम आदमी को सोचना पड़ेगा.
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Posted on 17 August 2010 by admin
मामला बिजली विभाग में ठेकेदारी के लिए आवेदन की प्रक्रिया पूरी कराने के लिए रिश्वत माँगना एक पीसीएस अफसर को ले डूबा। विजिलेंस ने रिश्वत लेते उसे रंगों हाथ पकड़ लिया।
बिजली विभाग में ठेकेदारी करने के लिए विद्युत सुरक्षा निदेशालय का एनओसी आवश्यक होता है। इसके बगैर लाइसेंस जारी नहीं किया जाता है। इतवारी गंज निवासी पवन कुमार साहू ने ठेकेदारी के लिए आवेदन किया था,जो लाइसेंस प्रक्रिया पूरी करने के लिए विभाग के कई दिन से चक्कर काट रहा था। उसने बताया कि लाइसेंस प्रक्रिया को लेकर विद्युत विभाग निदेशालय के सहायक निदेशक मनोज कुमार सिंह ने उससे 60 हजार रुपए माँगे। न देने पर फाइल को लटका दिया। इस पर उसने सतर्कता विभाग से सम्पर्क किया। मामला पीसीएस अफसर का होने के कारण पहले तो शासन से स्वीकृति माँगी गई। जिलाधिकारी ने नायब तहसीलदार सदर सुबोध मणि शर्मा को गवाही के लिए लगा दिया। इसके बाद सतर्कता विभाग के इन्सपेक्टर अशोक कुमार आवेदक के साथ चाचा बनकर विद्युत परिषद कार्यालय गए और रुपए कम लेने की बात कहते हुए पाउडर लगे 10 हजार रुपए देने लगे। इस पर सहायक निदेशक ने कम रुपए होने के कारण लेने से मना कर दिया। 30 हजार रुपए पर मामला तय हुआ। आज पवन सर्तकता विभाग के इन्सपेक्टर के साथ पहुंचा और 30 हजार रुपए में रसायनिक पाउडर लगे एक हजार के दस तथा 500 के चालीस नोट दिए, तो सहायक निदेशक ने तुरन्त उनको पकड़ लिया। इस दौरान इन्सपेक्टर गवाह नायब तहसीलदार को अपना मोबाइल फोन चालू कर सारी बातें सुनाते रहे। जैसे ही मनोज ने रुपए लिए, उनको पकड़ लिया गया। सतर्कता विभाग के इन्सपेक्टर नरेश कुमार, सीएल दिनेश, जेपी सुमन ने कई लोगों के सामने हाथ धुलाए, तो सहायक निदेशक के हाथों से झाग के साथ गुलाबी पानी निकलने लगा। इस पर सतर्कता विभाग के इन्सपेक्टरों ने आरोपी सहायक निदेशक को गिरफ्तार कर थाना नवाबाद के हवाले कर दिया। इस सम्बन्ध में सहायक निदेशक मनोज कुमार से बात की गई, तो उन्होंने बताया कि रुपए टेबिल पर रखे थे, उन्होंने हाथ तक नहीं लगाया।
रिश्वत का ये ममला झाँसी में नया नही है लगभग हर विभाग में रिश्वत का खेल चल रहा है कोई कम लेता है तो कोई ज्यादा. कर कर्मचारी अधिकारी महगाई के ज़माने में सिर्फ सरकारी तनख्व में गुजरा करने को त्येयार नही है हर किसी को कहिये दो नम्वर का पैसा.
मगर इसमें कुछ तो कभी कभी हिंदी फ़िल्म खट्टे मीठे के “सचिन चिट्कुले” की तरह अपना काम निकलने के लिए अधिकारियो या कर्मचारियों को फसाने की कोशिस भी करते है. आज हर विभाग में भार्स्ताचार का बोलबाला है जिसे मिटने में हर आम आदमी को सोचना पड़ेगा.
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Posted on 04 August 2010 by admin
आंखों के सामने ही कुत्ते उसके जिगर के टुकड़े को नोंचते रहे और वह चाह कर भी कुछ न कर सकी। हिम्मत कर दिल के टुकड़े को बचाने की कोशिश की तो नरभक्षियों ने उस पर भी हमला बोल दिया। किसी तरह से खूंख्वारों को दौड़ा लेने के बाद वह लहूलुहान हालत में मासूम को अस्पताल ले गयी, लेकिन उसने दम तोड़ दिया।
दिल दहला देने वाली यह घटना बबीना थाना क्षेत्र अन्तर्गत रेलवे कॉलोनी में सुबह लगभग 5.30 बजे घटी। रेलवे कॉलोनी में रहने वाला रामकुमार रेलवे में कार्यरत है तथा कॉलोनी में विभाग की ओर से आवण्टित क्वार्टर में परिवार सहित रहता है। सुबह लगभग 5.30 बजे लाइट न आने के कारण रामकुमार की पत्नी सुधा गर्मी से बेचैन अपने डेढ़ वर्षीय पुत्र कुणाल को लेकर कमरे से बाहर निकल आयी और मेन गेट के पास खुली जगह में उसे लिटा दिया। इसके बाद वह अन्दर जा कर काम करने लगी। कुछ देर बाद उसे अपने पुत्र की जोर-जोर की रोने की आवाज सुनायी दी। इस पर वह दौड़ कर बाहर आयी।
वहाँ का नजारा देखकर उसके रोंगटे खड़े हो गये। करीब आधा दर्जन कुत्तों का झुण्ड उसके मासूम को नोंच रहा था और वह नन्हीं जान तड़प रही थी। जिस समय सुधा बाहर आयी, उस समय तक कुत्ते मासूम कुणाल के शरीर के कई हिस्सों में अपने दाँत गड़ा चुके थे। यह देखकर उसने कुत्तों को भगाने की चेष्टा की, तो एक कुत्ते ने झपट कर उसे काट लिया। चीख-पुकार सुनकर अन्दर से रामकुमार के परिवार के अन्य सदस्य भी बाहर निकल आये। किसी तरह से कुत्तों को खदेड़ा गया, तब तक कुत्तों के दाँतों से मासूम कुणाल बुरी तरह से घायल होकर निढाल हो चुका था। उसे आनन-फानन में रक्तरंजित हालत में उपचार के लिये अस्पताल ले जाया गया, जहां उसकी मौत हो गयी।
Vikas Sharma
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Posted on 03 August 2010 by admin
बुंदेलखंड के लोग मिलावट, घटतौली और पेट्रो पदार्थो के दामों में बढ़ोतरी से आम आदमी की रसोई के स्वाद को कसैला बना दिया है। पांच लोगों ने परिवार के लिये रोटी, दाल और सब्जी का जुगाड़ करने में दिहाड़ी मजदूरों को दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। स्थिति यह है कि अब बाजार में सब्जियों के भाव किलो में न होकर पांव में होने लगे हैं।
लगातार बदती सब्जियों के दाम असमान पर है खुशनुमा तथ्य यह है कि इस बार अब आलू और प्याज ने उछाल नहीं मारा है। आलू का मोल भाव किलो में किया जाता है। आलू सात रुपये और प्याज दस रुपये किलो में उपलब्ध है। वहीं भसीड़ा नाम से मशहूर कमल ककड़ी बीते वर्ष पांच रुपये पाव बिकती थी। इस साल दस रुपये पाव बेची जा रही है। नींबू और मिर्च के भाव भी आसमान छू रहे हैं। नींबू दस रुपये पाव और मिर्च 25 रुपये पाव में है। इतना ही नहीं इस समय बाजार में रंगे हुए परवल की भरमार है। सोया 15 रुपये और पालक पांच रुपये पाव में है। सीजन की सब्जी घुइयां का भाव दुकानदार 10 रुपये की आधा किलो बताते हैं। यही हाल साग पात समझी जाने वाली तरोई का है। हरा केला 30 रुपये किलो और धरती का फूल 30 रुपये का सौ ग्राम है। पेट्रो पदार्थो के दामों की बढ़ोतरी का असर सब्जी मंडी में नजर आने लगा है। वहीं दालों की स्थिति भी लोगों का डरा रही है। रोगियों की जरूरत समझी जाने वाली मूंग की दाल 85 रुपये और बच्चों की खास पसंद अरहर की दाल 70 रुपये किलो में है। इस स्थिति में दिहाड़ी मजदूर के लिये रोटी-दाल का जुगाड़ करना मुश्किल हो रहा है।
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Vikas Sharma
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Posted on 03 August 2010 by admin
बुंदेलखंड का किसान तो फले से ही दया भी भीख पर जी हा था. उस पर ये आए दिन बढ़ रही महगाई के कारण आम आदमी काफी प्रभावित है। दिन भर मजदूरी करने वाले मजदूर अपने परिवार का गुजारा बड़ी मुश्किल से चला पाता है। यदि दो चार दिनों तक काम न मिले तो उसके परिवार को भूखे मरने की नौबत आ जाती है। रिक्शा चलने वाले दिन भर रिक्शा चलाकर बड़ी मुश्किल से 100 रुपये तक कमाते हैं, लेकिन इतनी अधिक महगाई के चलते उनके लिए अच्छा खाना नसीब नहीं होता। आम आदमी को रोजगार मुहैया कराने के लिए भारत सरकार द्वारा नरेगा स्कीम को क्रियान्वित किया गया, लेकिन वह स्कीम भी अधिकारियों की लापरवाही के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर नहीं चल रही है। इस कारण दूर वर्ग को कोई लाभ नहीं हो रहा है। महगाई का स्तर इतना बढ़ चुका है कि माध्यम वर्ग के लोग भी महगाई से दुखी है तथा गरीब आदमी के लिए यह महगाई कमर तोड़ने वाली है। करियाने की दुकान करने वाले रमेश कुमार ने बताया कि पहले माध्यम वर्ग के लोग अच्छी खरीदारी करते थे, लेकिन वह भी अब हाथ पीछे खींच रहे है। गरीब आदमी अपने परिवार का गुजारा बड़ी मुश्किल से चला रहा है। यदि इसी तरह से महगाई बढ़ती रही तो सभी के लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी। बढ़ती महगाई के चलते किसी भी सामान की कीमत कम नही हुई बल्कि बढ़ रही है। इस समय रोजमर्रा के खाद्य पदार्थो की कीमतों में भारी इजाफा हो रहा है। एशे में जिए तो क्या जीये
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Vikas Sharma
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