Archive | विचार

मान न मान, मैं तेरा मेहमान

Posted on 07 February 2011 by admin

मान न मान, मैं तेरा मेहमान की रट लगाये आज नारद जी से फिर मुलाकात हो गई किन्तु आज नारद जी की अजब गजब वेशभूषा, गजब के तौर तरीके देखकर मैं हैरान रह गया। आज नारद जी रिक्शे पर सवार सचिवालय की तरफ जा रहे थे। रिक्शे के पीछे हॉफते हॉफते उनके अंगरक्षक दौड़ रहे थ्ेा उनके पीछे मंहगी गाड़ियों की लम्बी कतार थी। यह सब देखकर मैं आश्चर्यचकित होकर अपनी जिज्ञासा शान्त करने के लिए मैं नारद जी के चरण स्पर्श करने लपका ही था कि सिक्योरिटी वालों ने मुझे दिल दुखाने वाले भद्दे विश्लेषणों से सम्मानित करते हुए मेरा गिरेबान पकड़ कर मुझे पीछे धकेल दिया मैं चारो खाने चित्त हो गया। जबड़े का सत्यानाश हो गया होठों का कचालू बन गया मेरी यह दुर्दशा देख नारद जी को मेरे उपर तरस आ गया वह शान्त स्वभाव से बोले आने दो भाई यह कोई प्रोटोकाल अधिकारी थोड़ा ही है। यह तो बेचारा दीन हीन फटीचर लेखक है यह हमारा न सम्मान कर सकता है और न ही अपमान कर सकता है फिर इससे डरना कैसा अरे नामुरादों अक्ल के दुश्मनों डरो उनसे जो हमें अपना मेहमान ही नहीं मानते हैं इतना कहते ही नारद जी सुबकने लगे यह नजारा देखकर मै समझ गया कि किसी ने आज नारद जी का दिल दुखाया है तब मेरी समझ में सब नजारा आ गया है कि नारद जी इतने लाव लश्कर के होते हुए भी रिक्शे पर क्यों चल रहे हैं। सो मैं नारद जी के पैरों में गिरकर गिड़गिड़ाते हुए बोला भगवन! आपतो तीनों लोगों के स्वामी हैं पल-पल की खबर रखते है अन्तर्यामी है बलशाली हैं, सर्वशक्तिमान हैं दुनिया आपका लोहा मानती है फिर किसकी हिम्मत हो गई कि आपका घोर अपमान कर दिया और साथ ही आपको “राज्य अतिथि´´ के पद से पदच्युत कर दिया। आप तो जन जन के अतिथि है पूरा देश आपके रहमोकरम पर चल रहा है इतने पर भी आपके साथ अभद्रता करने की हिम्मत कैसे हो गई इतना सुनते ही नारद जी क्रोधित हो गये चेहरा लाल हो गया नाक के दोनो नथुने फूल गये चीखते हुए बोले अरे निरक्षर भट्ट कहीं के वैसे तो तू अपने को बहुत बड़ा भारी साहित्यकार लेखक पत्रकार कहता फिरता है फिर अल्पज्ञानी कही के! तुझे इतना तक नहीं मालूम है कि प्रदेश सरकार ने मेरा “राज्य अतिथि´´ का दर्जा छीन लिया है ओटो काल, प्रोटोकाल सब हटा लिया है अरे! मुझे तो अपनी जान का भी खतरा है मुझे तो सरकार की नियत में भी खोट नज़र आ रहा है मुझे भय है कि सरकार कहीं मेरा मर्डर न करा दें आज नारद जी बड़े क्रोध में थे सो यह सब बातें एक ही सांस में कह गये। इतना सुनते ही मैं विनम्रतापूर्वक बोला कि महषिZ जी मेरी समझ में एक बात नहीं आ रही है कि जब आप को हर कोई अपना अतिथि मानता है कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सभी आपको अपना अतिथि मानते हैं प्रोटोकाल ओटोकाल सभी आपके इशारों पर नाचते हैं बड़े से बड़े आला अफसर आपको सलाम ठोकते हैं। अनेक प्रदेशों के मुख्यमन्त्री तक आपकी जी हजूरी करते हैे तो फिर प्रदेश सरकार ने आपको अपना राज्य अतिथि मानने से क्यों इन्कार कर दिया र्षोर्षो इतना सुनते ही नारद जी फिर भड़क गये कड़कते हुए बोले इस प्रदेश में प्रजातन्त्र नहीं राजतन्त्र चल रहा है। एक राजा है बाकी सब प्रजा है रही मन्त्रियों की बात तो सब के सब यहां अकबर राजा के नौ रत्न हैं। बीरबल भी अकबर को कभी कभी सलाह देने की हिम्मत कर लेते थे किन्तु यह नौरत्न तो हां में हां ही मिलाते रहते है एक दिन बीरबल से अकबर ने कहा बीरबल बैगन में कोई गुण नहीं होता है बीरबल बोले हां हुजूर तभी तो उसका नाम “बेगुन´´ है। दूसरे दिन अकबर बोले बीरबल बैंगन तो बड़ा गुणकारी होता है तब बीरबल बोले हां हुजूर तभी तो उसके सिर पर ताज होता है। अब इन नौ रत्नों को कौन समझाये कि यह राजतन्त्र नहीं यह प्रजातन्त्र है यहां प्रजा ही शक्तिशाली होती है उसने राजा को बदलने की भी शक्ति होती है तो आज नारद जी बड़े क्रोध में थे सो रूकने का नाम ही नहीं ले रहे थे सो बीच में ही मैने टोकते हुए कहा कि आपने सरकार का क्या बिगाड़ा है जो आपका राज अतिथि का दर्जा समाप्त कर दिया र्षोर्षो और तू बड़ा भोला है हरि ओम। तू इतना भी नहीं जानता कि इनको मुझसे और हमारे अन्य भाइयों से वोट बैंक में सेंध लगने का खतरा है हमारे उपर आरोप है कि हम बार-बार और जल्दी-जल्दी प्रदेश में क्यों आते हैंर्षोर्षो जरूर कोई गड़बड़ है यह जरूर हमारे वोट बैंक में सेध लगाने आते हैं और हमारी बातें अपने आका तक पहुंचाते हैं। सो मारे क्रोध के हमारा “राज्य अतिथि´´ का दर्जा ही समाप्त कर दिया इतना सुनते मेरे मुह से बरबस ही निकल गया कि महषिZ जी इसमें क्रोध करने की कौन सी बात है यह तो घर के मालिक के हाथ में है कि वह हमें अपना अतिथि माने या न माने यह तो राज्य सरकार का विवेकाधीन है कि वह किस को अपना राज्य अतिथ माने और किस को अपना राज्य अतिथि न माने इतना सुनते ही नारद मुनि पुन: भड़क गये भड़कते हुए बोले तू प्रदेश सरकार का एजेन्ट है क्या र्षोर्षो तुझे इतना भी नहीं मालूम कि अतिथि देवो भव: की हमारी प्राचीन संस्कृति है मैं तो राज्य अतिथि था अभी भी हूं और आगे भी रहूंगा तेरे मानने या न मानने से क्या होता है र्षोर्षो की रट लगाये नारद जी अन्तर्धयान हो गये मेरी आंख खुली तो पता चला कि मैं तो सपना देख रहा था किन्तु सपने में ही सही नारद जी कह तो सोलह आने सच गये हैं कि मान या न मान मैं तेरा मेहमान।

(हरि ओम शर्मा)
12, स्टेशन रोड, लखनऊ (मोबाइल : 9415015045, 9839012365)

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अब हमारे देश को कोई गरीब देश नही कह सकता

Posted on 02 February 2011 by admin

अब भारत गरीब देश नहीं है। यह एक सच्चाई है, यह खुशनुमा खबर धन के आकड़ों की हकीकत बयां करती हुई यूरोप से आई है। स्वीस बैंकों के डायरेक्टर्स ने अपने बैंकों में जमा भारत के काले धन के बारे में जानकारी सार्वजनिक कर दी है। भारत का 280 लाख करोड़ से अधिक धन उनके बैकों में जमा है। इसी प्रकार अन्य यूरोपीय बैंकों में भी धन जमा होने की जानकारी मिली है। गौरतलब है कि इस सच्चाई को अब तक स्वीस सरकार क्यों छुपा रही थी तथा अब उसके सामने ऐसी कोैन सी मजबूरी आ गई जो अपने यहां जमा अन्य देशों के धन के बारे में जानकारी देनी पड़ी है। क्या भारत सरकार ने उस पर दबाव डाला है र्षोर्षो भारत सरकार तो यही कहती मिलेगी कि उसके ठोस प्रयासों के कारण ही यह सम्भव हो सका है, कहे भी क्यों ना यहां के नेताओं का काम लोकतन्त्र के नाम पर जनता को गुमराह कर सरकार बनाना बनने पर जनसेवा को भूलकर सत्ता सुख प्राप्त करना, ऐसोआराम फरमाना है, जमीनी हकीकत से मुंह फेरना, आकाओं की हॉं में हॉं मिलाना, पद लोलुपता की महत्वाकांक्षा के इतने रिकार्ड बनाना कि देश के गौरव सचिन तेन्दुलकर के  रनों के रिकार्ड को पीछे छोड़ने जैसा है। ऐसे नेताओं, नौकरशाहों से यह उम्मीद करना कि वे देश बनाने का काम करेंगे तो यह बात पत्थर मारकर चॉन्द तोड़ने जैसी होगी। अब यूपीए सरकार को क्या खिताब दिया जाय जब हमारे देश के गायब हुये धन की जानकारी अन्य देश के द्वारा दी गई हो। इस पर सरकार के आव-भाव देखने से लगता है कि वह देश के अमीर होने की बात को मानना तो दूर इस सच्चाई को दोहराने का भी साहस नहीं दिखा रही है। सरकार की कथनी और करनी में जमीन आसमान का अन्तर है। सरकार का इरादा नेक नहीं है। आजादी के 63 सालों में सत्ता सुख की पिच पर फिफ्टी तो कांग्रेस पार्टी ने ही बनाई है। अत: देश के धन को लूटकर विदेशों में जमा करने का पाप तो अधिकत्तर इन्हीं के राज में हुआ है। देश में गरीबी है तो वह इनकी लचर नीतियों के कारण है जो धन गरीब की गरीबी दूर करने में खर्च होना था, वह षडयन्त्रकारियों ने विदेशों में पहुंचा दिया। इस कारण लोग गरीब हैं तो इसकी गुनाहगार वे सरकारें तथा षडयन्त्रकारी हैं जिन्होंने यह कुकृत्य किया है। देश अब गरीब नहीं है। यह बात सुनकर भारतवासी जहां झूम उठे वहीं सरकार की हालत देखकर लगता है कि इस सच्चाई ने उसकी रीढ़ पर वार कर दिया है। यह सच्चाई और पुख्ता तब हुई जब मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के जवाब से नाराज होकर कड़ी फटकार लगाते हुये उसे याद दिलाया की कि यह धन की कर चोरी मात्र नहीं है, राष्ट्रीय सम्पदा की लूट है। राष्ट्र को शर्मशार करने जैसी घटना है। यहां गौरतलब यह है कि जमा काले धन का खुलासा कैसे हुआ र्षोर्षो बताते चलें दुनिया में आई आर्थिक मन्दी ने अमरीका को जबरदस्त झटका दिया उससे उभरने के प्रयास में अमरीका उस जंगल के राजा भूखे शेर की तरह छटपटाया जिसे भोजन समाप्त होने की जानकारी हुई हो, भोजन न मिल पाने के कारण जैसे जंगल का राजा छपटपटाता है और भोजन की पूर्ति के लिये चारों ओर आंखें तरेरता है, वही स्थिति इस मन्दी में अमरीका की हुई, उसे जब अपने यहां के बैंकों आदि के दिवालिया होने की खबर मिलने लगी तो उसने अन्य देशों में जमा धन को खंगालना शुरू किया। उसने स्वीटजरलैण्ड की ओर निगाहैं तरेरी तो स्विस सरकार और वहां के बैंकों की सारी गोपनीयता धरी की धरी रह गई और उसने अन्य देशों के जमा काले धन का हिसाब देना शुरू कर दिया। शेर की गुर्राहट से नीतियां ही नहीं, नीयत भी बदल गई। वहां के बोर्ड आफ डायरेक्टर्स ने जमा धन के बारे में सार्वजनिक जानकारी दी। इन परिस्थितियों में भारत सरकार के लिये भजन की ये लाइने वर्तमान हालातों पर चरितार्थ हो रही हैं- ´´बिना ही पतवार के नाव चल रही है,बिना कुछ किये ही मेरा सब काम हो रहा है, करते हो तुम कन्हैया मेरा नाम हो रहा है,´´    देश की सम्पत्ति को लूटकर विदेशों में जमा करने का घृणित पाप करने वालों ने ख्वाब में भी नहीं सोचा होगा कि विकसित देश विकासशील देशों का जमा धन बता देंगे। अन्यथा वे बेईमान वहां जमा ही क्यों करते र्षोर्षो आज नहीं तो कल सरकार कोशिश करे न करे खातेदारों और उनके धन का पता स्वीस सरकार ही बता देगी। चिन्ता इस बात की है कि वर्तमान यूपीए सरकार अपनी हीलाहवाली से षडयन्त्रकारियों को धन अनयन्त्र ठिकाने लगाने का पर्याप्त अवसर दे रही है। धन के निकालने की सम्बंधित जानकारी प्रमुख समाचार पत्रों में छपी भी है। पुणे की घुड़दौड़ के शोैकीन व्यापारी हसन अली के स्वीस बैंकों में जमा 35 हजार करोड़ रू0 से अधिक की राशि बैंक से गायब ह,ै वित्त मन्त्री प्रणव मुखर्जी ने इस पर कहा कि हसन अली के 3 स्वीस खातों में कोई रकम नहीं है, वहीं उसके चौथे खाते में 60 हजार डालर जमा होने का पता तो चला लेकिन बाद में उसे भी निकाल लिया गया। मुखर्जी ने स्पष्ट किया कि मामले की जांच अभी चल रही है मालूम हो कि 2007 में पुणे और मुम्बई में आयकर विभाग के छापों में हसन अली के 35 हजार करोड़ रू0 स्वीस बैंकों में जमा होने के पुख्ता सबूत मिले थे। सरकार देखती रही धन फुर्र हो गया। इसी प्रकार के अनेक उदाहरण और भी हो सकते हैं। देश की जनता जागरूक है यदि काला धन देश में वापस नहीं आया अथवा गायब हुआ तो उसके लिये सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुये जनता उससे हिसाब किताब लेगी। याद दिला दें देश में धन के वापस आने से यूपीए सरकार का वोट बैंक बिल्कुल प्रभावित नहीं होगा, उसके वोटरों में अच्छा सन्देश जायेगा। सरकार के आकाओं में गलत सन्देश नहीं जायेगा इसकी सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। जिस देश में चन्द रूपयों के लिए रेलवे व बस स्टेशन पर जेब काटते हुये जेब कतरों के पकड़े जाने पर जनता विकट पिटाई कर देती है। हवालात अलग से जाना पड़ता है, पुलिस द्वारा बाद में तलाशी लेने पर कभी-कभी चन्द रू0 निकलते हैं तो कभी खाली कागज ही निकलते है। यह हाल तो मामूली जेेब कतरे का जनता कर डालती है जिन्होंने देश की ही पाकेट काट ली हो उनका अल्लाह मालिक है। बाबा कबीर ने धन के बारे में कहा है ´´गोधन गजधन बाजधन और रतन धन खान, जब आवे सन्तोष धन सब धन धूरि समान´´ परमपूज्य गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी श्रीरामचरितमानस में भगवान भोलेनाथ के मुख से कहलाया कि ´´ सो धन धन्य प्रथम गति जाही। यहां धन की तीन गति बताई- ´´जो धन दान में दिया जाता है उसको उत्तम गति यानि प्रथम कहा तथा जो धन भोग में खर्च होता है उसको मध्यम गति कहा–जो न दान में न भोग में काम आता है उसको नाश गति कहा है। राम विमुख सम्पत्ति प्रभुताई, जाई रही पाई बिनु पाई, सजल मूल जिन सरितन नाही, बारिश गये ते पुन: सुखाई अर्थात परमात्मा राम से विमुख सम्पत्ति और प्रभुता होते हुये भी न होने जैसी है। जिन नदियों के मूल में जल स्रोत नहीं होते वह बारिस के जाने पर सूख जाती है। उसी प्रकार परिस्थितियों बदल जाने पर काला धन भयंकर अभिशाप बन जाता है। शास़्त्रों और महापुरूषों की बताई गई बात आज भी शाश्वत है। व्यक्ति हो या व्यवस्था, सत्ता हो या साहुकार जेैसे को तैसा वाली कहावत सनातन है। उन नेताओं ,नौकरशाहों तथा कारोबारियों के लिये जिन्होंने सार्वजनिक धन की लूट की है उसके राजफास की बुरी खबर है परन्तु 98 प्रतिशत के लिये तो रामबाण का काम करने वाली संजीवनी जड़ी है।

´´लाख बनाओ बहाने यहां वहां चलता कोई बहाना नहीं है, जो भी भला बुरा है श्रीराम जानते हैं-
बन्दे के दिल में क्या है प्रभु राम जानते हैं,
आता कहां से है कोई जाता कहां है कोई,
युग युग से इस गति को श्रीराम जानते है,
नेकी बदी को अपनी जितनी भी तू छुपा ले,
श्रीराम को सब पता है श्रीराम जानते हैं,
किस्मत के नाम को को सब जानते हैं,
लेकिन किस्मत में क्या लिखा है यह श्रीराम जानते हैं,
´´नहीं चाहिए दिल दुखाना किसी का,
सदा न रहा है न रहेगा जमाना किसी का´´

नरेन्द्र सिंह राणा (लेखक-    उ0प्र0 भाजपा के मीडिया प्रभारी हैं)
लखनऊ, मो0 9415013300

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……तो स्वीटजरलैण्ड के राष्ट्रपति को बुलाओं

Posted on 26 January 2011 by admin

देश का पैसा देश में लाओ, स्वीटजरलैण्ड के राष्ट्रपति को बुलाओं। हर वर्ष 15 अगस्त को हम देश की आजादी का जश्न मनाते हैं इस बार इस आजादी के जश्न को दोहरे जश्न में बदलने का मौका भी है और आवश्यकता भी। 15 अगस्त व 26 जनवरी को राष्ट्रीय पर्वो पर देश में विदेशी राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री मुख्य अतिथि होते हैं। इसी क्रम में क्यों न अगली बार भारत सरकार स्वीटजरलैण्ड के राष्ट्रपति को न्यौता भेजकर बुलाने का निवेदन करे उनके यहां हमारे देश का अरबों रूपया काले धन के रूप में जमा पड़ा है उनके आने से हमें दोहरा लाभ होगा। देश की आजादी के साथ आर्थिक आजादी का जश्न भी मना सकते हैं यानि आम के आम गुठली के दाम। इस अवसर पर हमें हमारा धन वापस करने की पुरजोर मांग उनसे करनी चाहिए। स्वीस राष्ट्रपति भी वहां के बैंकों से जल्द से जल्द भारतवासियों का धन वापस करने का निर्देश दें। जिस दिन यह हो जायेगा उसी दिन हमारा देश विकासशील देश से विकसित बन जायेगा। याद दिलाते चले मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने लगातार सरकार पर विदेशों में जमा काला धन वापस लाने तथा जमा करने वालों के नाम खोलने का दबाव बना रखा है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने भी केन्द्र सरकार को इस बारे में कड़े निर्देश दिये हैं। मीडिया की भूमिका अत्यन्त सराहनीय है, प्रशंसनीय है। उसने इस लूट मारी के खिलाफ गजब का जनजागरण किया है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि वर्तमान भारत सरकार के प्रधानमन्त्री ने 2009 के आम चुनाव में देश वासियों से उनकी सरकार बन जाने पर तय समय में ही विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने का भरोसा दिलाया था। गौरतलब है कि मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने भी अपनी चुनावी घोषणा पत्र में उसकी सरकार आने पर 100 दिन के अन्दर पैसा भारत लाने का वादा किया था। अब भाजपा की सरकार तो बनी नहीं परन्तु वह अपनी बात पर कायम है। समय-समय पर केन्द्र सरकार को काला धन वापस लाने के लिये घेरती रहती है। सरकार की ओर से जो भाषा बोली जा रही है वह निराश करने जैसी है। टाल मटोल का फार्मूला अपनाया जा रहा है। यह सरकार तो जबानी जमा खर्च करने को तैयार नहीं दिखती सरकार को अपनी सरकती साख का भरोसा शायद नही है उनकी हर बात छन छन कर जनता के दिलो दिमाग तक असर कर रही है। सरकार नामों का खुलासा करे न करे विकीलक जरूर करेगी उसके पास नाम मौजूद हैं। आम आदमी की जुबान में बात की जाय तो वह इस लूट काण्ड के बारे में कहता मिलेगा जिसने सबसे लम्बे समय तक सत्ता का सुख लिया वही सबसे बड़ा जिम्मेदार है। चाह कर भी इस सच्चाई से कांग्रेस इनकार करे भी तो कैसे क्योंकि 63 सालों में 50 वषोZ से अधिक उसने ही देश पर राज्य किया है। इस समय भ्रष्टाचार के नाम पर सरकार की स्थिति सांप के मुंह में छछुन्दर जैसी है। खाये तो मरेगा छोड़े तो कोड़ी होगा। सरकार ने बेहद शर्मिन्दा किया। ऐसे हालत बन गये हैं अगर सर्वोच्च न्यायालय, मीडिया तथा विपक्षी पार्टियां सरकार को न चेतायें तो देश का भगवान ही मालिक है। भारत ऋषियों, मुनियों और तपस्वियों की भूमि है और शत-प्रतिशत परमात्मा ही इसका मालिक है। परम पूज्य महान् सन्त गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरित मानस में राम भरत मिलन के समय प्रभु श्रीराम ने भरत को राजधर्म के बारे में समझाते हुये बताया ´सिबी दधीचि हरीशचन्द्र नरेशा- सहे धरम हित कोटि कलेशा, रन्ति देव बलि भूप सूजाना- धरम धरेउ सहि संकट नाना´´। अर्थात इन्होंने राज धरम के लिये करोड़ों कष्ट सहे बुद्धिमान राजा रन्तिदेव और बलि बहुत से संकट सहकर भी धर्म को पकड़े रहे उन्होंने स्वप्न में भी धर्म का त्याग नहीं किया। धर्म न दुसर सत्य समाना- आगम निगम पुराण बखाना´´ वर्तमान सरकार व उसके मन्त्री, प्रधानमन्त्री सत्य धर्म का कितना पालन कर रहे हैं यह चर्चा आम है। भारत सरकार को स्वीस बैंकों में जमा देश के काले धन की पुख्ता जानकारी हो चुकी है। लगभग दो हजार खाता धारकों का 280 लाख करोड़ रू0 काले धन के रूप में विदेशी बैंकों में जमा है। इस धन के प्रकार के बारे में मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुये कहा कि यह महज कर की चोरी नहीं हेै बल्कि राष्ट्रीय सम्पत्ति की लूट है तथा राष्ट्रद्रोह जैसा है। यूपीए 2 सरकार में भ्रष्टाचार संक्रामक रोग की तरह फैल रहा है। लाख दावों के बावजूद भी सरकार स्थिति को नियन्त्रण कर पाने में सफल नहीं रही है। प्रधानमन्त्री इस स्थिति के कारण अपनी विश्वसनीयता खो बैठे हैं। सरकार में शामिल दल ही सरकार पर हमला बोल रहे हैं मन्त्री एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने में व्यस्त हैं। रह-रहकर शरद पवार- गरम पवार हो जा रहे है, ममता जी अपनी समता को भूलकर कठोरता का परिचय दे जाती हैं। यूपीए की चैयरमैन श्रीमती सोनिया गांधी जी सरकार की गलतियों को ढकने के नये नये बहाने बना रही है। राष्ट्रमण्डल खेल घोटाला, 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला, आदर्श सोसाइटी घोटाला, जीवन बीमा निगम का हाउसिंग ऋण घोटाला और बोफोर्स घोटाले ने सत्तारूढ गठबंधन के नेताओं और षडयन्त्रकारियों के बीच गठजोड़ उजागर हुआ है। कहने को इनकी जांच चल रही है। राष्ट्रमण्डल खेल घोटाले में जिन अधिकारियों की गिरफ्तारी हुई थी वह सब सीबीआई द्वारा कोर्ट को पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध न कराने के कारण जमानत पर छूट गये हैं। सीबीआई सरकार के अधीन काम करती है इसी कारण उसकी कार्रवाई पर सरकार से जुडे मामलों में पक्षपात का आरोप लगता है। अनेकों बार माननीय न्यायालय ने सीबीआई की लचर व्यवस्था पर कड़ी फटकार लगाई है। बताते चले केन्द्रीय सर्तकता आयुक्त पद पर आसीन पहले से ही भ्रष्टाचार में आरोपित पी0जे0थामस की नियुक्ति कर सरकार ने अपनी मंशा जाहिर कर दी है। जबकि दागदार छवि के थामस की नियुक्त का लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमती सुषमा स्वराज ने कड़ा विरोध किया था। ईमानदार, स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष कामकाज के लिये सुषमा स्वराज की असहमति पर ध्यान दिया जाना चाहिए था। यही हाल 2 जी स्पेक्ट्रम की जांच जेपीसी से न कराने में संप्रग सरकार का है। विेदेशों में जमा काले धन के बारे में मा0 प्रधानमन्त्री जी व वित्तमन्त्री जी ने जिस भाषा का प्रयोग किया है वह निराश करने जैसी है। गौरतलब है कि प्रधानमन्त्री, वित्त मन्त्री दोनों ने धन की वापसी में द्विपक्षीय संधि को बाधा बताया। यह भाषा इस कहावत को चरितार्थ करती है कि हाथी के दॉन्त खाने के और दिखाने के और। यूपीए 2 सरकार में उंचे पदों पर भ्रष्टाचार, कमरतोड़ महंगाई, आर्थिक नाकामी, प्रबल तुष्टिकरण की नीति जिसके कारण कांग्रेस के नेता देशभक्तों को आतंकी और आतंकियों को देशभक्त बताते हैं। परम पूज्य भगवा रंग को आतंक से जोड़ना यह तुष्टिकरण की नीति की पराकाष्टा नहीं तो और क्या है। परम् पूज्य गुरू गोलवरकर जी जिस संगठन के 33वषोZ तक सरसंघचालक रहे हों जिनके प्रयासों से ही कश्मीर के राजा हरि सिंह ने अपने राज्य कश्मीर का विलय भारत में करने को तैयार हुये थे।ं तत्कालीन प्रधानमन्त्री पं0 जवाहरलाल नेहरू ने 1962 के चीनी आक्रमण के समय संघ की स्वंयसेवकों की भूमिका से प्रभावित होकर उनको राष्ट्रीय परेड में शामिल किया हो उस संघ परिवार को आतंकी बताना अलागाववादियों व फिरकापरस्तीयों की बातों का समर्थन करने जैसा ही है। कांग्रेस की सरकारों के चलते इनकी ढुलमुल नीतियों के कारण देश ने 1948 व 1962 के हमलों में देश के बड़े भूभाग को गवा दिया था। वह भूभाग आज भी दुश्मनों के कब्जे में है। वहां पर आज भी खुलेआम आतंकी कैम्प चलाये जा रहे हैं। सरकार की इन नीतियों के कारण ही पहले हमने जमीन गवांई, देश की रक्षा करते हुये हजारों की संख्या में वीर सैनिकों ने जान गवाई, अब तन मन के बाद देश का धन भी जो काले धन के रूप में विदेशी बैंकों में जमा है एक तरह से गंवा ही बैठे हैं। यह धन देश के किसानों की कड़ी मेहनत का पैसा है, छोटे-छोटे दुकानदारों से कर के रूप में लिया गया पैसा है तथा जो अन्य देशवासियों से टैक्स के रूप में लिया जाता है। उसका उपयोग आमजन के रोटी,कपड़ा,मकान, चिकित्सा, सुरक्षा आदि के लिये होता है उस पैसे को सरकार की लचर नीतियों का लाभ उठाकर अथवा मिलीभगत से विदेशों में जमा किया जा रहा है। यह निन्दनीय नहीं कठोर दण्डनीय श्रैणी में आता है। लोकतन्त्र के नाम पर लूटतन्त्र का राज चल रहा है एक विदेशी अमरीकन एजेन्सी के अनुसार आज भी प्रतिवर्ष 1 लाख 35 हजार करोड़ रू0 काले धन के रूप में प्रतिवर्ष देश से बाहर जमा हो रहा है।

नरेन्द्र सिंह राणा
लेखक, पावरलििफ्टंग के अन्तर्राष्ट्रीय कोच रहे हैं (लखनऊ, मो0 9415013300)

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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अबुलफजल जन्म दिवस (14 जनवरी 1551 ई.) पर विशेश

Posted on 13 January 2011 by admin

abulphajal-akbarnamaअकबर के नवरत्नों में शीशZ पर रहे महान रचनाकार कुशल शासक के साथ युद्ध कौशल में महारत हासिल करने के साथ-साथ मानवीय मूल्यों को अपने जीवन में उतारने वाले अबुलफजल हमेशा याद आते रहेंगे। भारतीय दशZन को पूरी तरह अपने में आत्मसात करके धर्मनिरपेक्षता का पाठ हकीकत की दुनिया में लाने वाले महान विचारक अबुलफजल को इतिहास के पन्नों में विसरा देने की साजिश का ही परिणाम है कि आज देश धार्मिक कटरता की आग में झुलसने के लिये विवश है। शेख अबुलफजल की तुलना हम भले ही कौटिल्य विश्णुगुप्त के समतुल्य ना करें फिर भी सकते है कि जिस तरह  कौटिल्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन के रूप में भारत को एकताबद्ध समृद्ध बनाने की कोिशश की यही काम अबुलफजल ने अकबर के समय भी  किया था।

अबुलफजल ने तत्कालीन समय भारत को एकता की डोर में बांधने  की कोिशश की थी जिस वक्त  धर्म के नाम पर होते खूनी जंग का मैदान भारत भूमि बना हुआ था। अबुलफजल का जन्म आज से 460 वशZ पहले 14 जनवरी 1551 ई0 में आगरा के जमुना पार रामबाग में हुआ था। पिता शेख मुबारक अद्वितीय विद्धान और अत्यन्त उदार विचारों के समर्थक थे। इस कारण तत्कालीन मुल्ले उन्हें काफिर कहकर हर तरह की तकलीफ देते रहते थे, क्योंकि उनकी धारणा थी कि वे सामवादी सय्यद मोहम्मद जौनपुरी का अनुयायी है, कभी िशया और नास्तिक कहते थे। इस कारण अबुलफजल का बपचन जद्दोजहद में बीता।  अपने जीवन की कुछ बाते अकबरनामा में अबुलफजल ने इस तरह लिखी हैं- “बरस-सवा-बरस की उमर में भगवान ने मेहरबानी की और मैं साफ बातें करने लगा। पांच वशZ का था, कि दैवने प्रतिभा खिड़की खोल दी। ऐसी बातेें समझमें आने लगीं, जो औरों को नसीब नहीं होती। 15 वशZ की उमर में पूज्य पिता की विद्यानिधिका खजांची और तत्तवरत्न का पहरेदार हो गया, निधिपर पांव जमा कर बैठ गया। िशक्षा की बातों से सदा दिल मुरझाता था और दुनिया के खटकामों से मन कोसों भागता था। प्राय: कुछ समझ ही नहीं पाता था। पिता अपने ढंग से विद्या और बुद्धि के मन्त्र फूंकते थे। हरेक विशय पर एक पुस्तक लिख कर याद करवाते। यद्यपि ज्ञान बढ़ता था, पर वह दिलको न लगाता था। कभी तो जरा भी समझमें न आता था और कभी सन्देह रास्ते को रोक लेते थे, वाणी मदद न करती थी, रूकावट हलका बनादेती थी। मैं भाशण का भी पहलवान था पर जबान खोल न सकता था। लोगों के सामने मेरे आंसू निकल पड़ते थे, अपने को स्वयं धिक्कारता था। … जिन्हें विद्वान! कहा जाता था, उन्हें मैने बेइन्साफ पाया, इसलिये मन चाहता था, कि अकेले में रहूं, कही भाग जाऊं। दिन को मदरसा में बुद्धि के प्रकाश में रहता,रात को निर्जन खण्डहरों में भागता।… इसी बीच एक सहपाटी से स्नहे हो गया, जिसके कारण मदरसे की ओर फिर आकशZण बढ़ा।´´ ज्ञान अर्जन के बाद अबुलफजल अपने हुनर के बल पर बादशाह अकबर के निकट आया और उनका प्रधानमन्त्री बना।

अबुलफजल का धर्म
अबुलफजल धर्म मानव-धर्म था। वह मानवताको धर्मो के अनुसार बांटने के लिये तैयार नही थे। हिन्दू, मुसलमान, पारसी, ईसाई, उनके लिये सब बराबर थे। बादशाह का भी यही मजहब था। जब लोगों ने ईसाई इंजीलकी तारीफ की, तो उसने शाहजादा मुराद को इंजील पढ़ने के लिये बैठा दिया और अबुलफजल तर्जुमा करने के लिये नियुक्त किये गये। गुजरात से अग्निपूजक पारसी अकबर में पहुंचे। उन्होंने जर्थुस्तके धर्म की बातें बतलाते आग की पूजा की महिमा गाई। फिर क्या था, अबुलफजल को हुक्म हुआ-“जिस तरह ईरान में अग्नि-मिन्दर बराबर प्रज्वलित रहते हैं, यहां भी उसी तरह हो। दिन-रात अग्निको प्रज्वलित रक्खों। आग तो भगवान के प्रकाश की ही एक किरण है। अग्नि पूजा में हिन्दू भी शामिल थे, इसलिये उन्होंने इसकी पुिश्ट की होगी, इसमें सन्देह नहीं। जब शेख मुबारक मर गये, तो अबुलफजल ने अपने भाइयों के साथ भद्र (मुण्डन) करवाया। अकबर ने खुद मरियम मकानी के मरने पर भद्र कराया था। लोगों ने समझा दिया था, कि यह रम्स हिन्दुओं मेें ही नहीं, बल्कि तुर्क सुल्तानों में भी थी। यही वह बातें थी, जिनके कारण कट्टर मुसलमान अबुलफजल को काफिर कहते थे। पर, न वह काफिर थे और न ईश्वर से इन्कार करने वाले। रात के वक्त वह सन्तों-फकीरों की सेवा में जाते और उनके चरणों मेें अशफिZयां भेंट करते। बादशाह ने कश्मीर में एक विशाल इमारत बनवाई थी, जिसमें हिन्दू, मुसलमान सभ आकर पूजा-प्रार्थना करते। अबुलफजल ने इसके लिये वाक्य लिखा था-
“इलाही, ब-हर खाना कि भी निगरम्, जोयाय-तू अन्द। व ब-हर जबां कि मी शुनवम्, गोयाय तू।´´ (हे अल्ला, मैं जिस घर पर भी निगाह करता हूं, सभी तेरी ही तलाश में है और जो भी जबान मैं सुनता हूं, वह तेरी बात करती हैं।) यह भी लिखा-
“इै खाना ब-नीयते इै तलाफे-कलूब मोहिदाने-हिन्दोस्तान व खसूसन् माबूद्परिस्तान अर्सये-कश्मीर तामीर याफ्ता।´´ (यह घर हिन्दुस्तान के एकेश्वरवादियों, विशेशकर कश्मीर के भगवत्-पूजा के लिये बनाया गया।)
अबुलफजल यदि आज पैदा हुए होते, तो वह निश्चय ही अल्ला और ईश्वर से नाता तोड़ देते। पर, अपने समय में वह यहां तक नही पहुंच सके थे। वह इतना ही चाहते थे, कि सभी मनुश्य आपसी भेद-भाव को छोड़ कर अपने-अपने ढंग से भगवान् की पूजा करें।

अबुलफजल कलम ही नही तलवार का भी धनी था। अकबर के कहने पर दक्षिण में विद्रोह दबाने तथा असीरगढ़ तथा अहमद नगर की आसाधरण विजय का सहरा अबुलफजल के नेतृत्व को जाता है। लेकिन सन् 1602 ई0 19 अगस्त को आगरा की ओर लौटते समय अन्तरी के पास ओरछा के राजा नर्ससिंह देव का बेटा मधुकर बुन्देला ने बगावत करके अबुलफजल का सिर काटकर शहजादा सलीम उर्फ जहांगीर को पेश किया। बुन्देला मधुकर शाह के क्रूर हाथों ने मानवता के उस पुजारी को असमय ही मौत की नीन्द सुलाकर हिन्दुस्तान से धर्मनिZपेक्षता की ज्योति को बुझा दिया। ग्वालियर से 5-6 कोस पर स्थित इस छोटे से कस्बे मेें आज भी हमारे इतिहास का महान राजनैतिक परमदेश भक्त और धर्मिनिपेक्षता की जीती जागती मिशाल गुमनामी में सो रही है। अकबर ने अबुलफजल की मौत पर अफशोस करते हुये कहा था “हाय, हाय शेखूजी, बादशाहत लेनी थी मुझे मारना था तो शेख को क्यों मारा´´ अकबर सलीम को शेखूजी कहता था।

कृतियां
अबुलफजल अगर और कुछ न करते और केवल अपनी लेखनी को ही चला कर चले गये होते, तो भी वह एक अमर साहित्यकार माने जाते। उन्होंने कई विशाल और अत्यन्त महत्वपूर्ण गं्रथ लिखे हैं, जो आज भी हमें उनके काल और विचारों के बारे में बहुत-सी बातें बतलाते मार्ग-प्रदशZन करते है। “अकबरनामा´´ और “आईनेअकबरी´´ उनके अमर ग्रन्थ हैं।

1. आईनअकबरी- “अकबरनामा´´ को उन्हेांने तीन खण्डों में लिखा। इसके पहिले दूसरे खण्ड ही “आईनअकबरी हैं पहले खण्ड में तैमूर के वंश का संक्षेप में, बाबर का उससे अधिक, हुमायंू का उससे भी विस्तृत वर्णन है। फिर अकबर के पहले 17 साल (1556-73 ई0) तक का हाल है। अकबर के 30 वशZ के होने तक की बातें इसमें आई है। दूसरे खण्ड में अकबर के राज्य संवत्सर (सनजलूस) 18 से 46 (1574-1602 ई0) की बातें है। अबुलफजलकी मृत्यु के तीन साल बाद अकबर का देहान्त हुआ। इस वक्त की घटनायें “तारीख अकबरी´´ में है। पहले खण्ड की भूमिका देहान्त हुआ। इस वक्त की घटनायें “तारीख अकबरी´´ में है। पहले खण्ड की भूमिका में अबुल फजल ने लिखा है- “मैं हिन्दी हूं, फारसी में लिखना मेरा काम नही हैं। बड़े भाई के भरोसे यह काम शुरू किया था( पर अफसोस, थोड़ा ही लिखा था, कि उनका देहान्त हो गया सिर्फ दस साल का हाल उन्होंने देख पाया था।´´

2. अकबरनामा -“अकबरनामा´´ ही इसका तीसरा खण्ड है, जिसे अबुलफजल ने 1597-98 ई (हिजरी 1006) में समाप्त किया था। यह एक ऐसी किताब है, जिसकी जरूरत अंग्रेजों ने 19वीं सदी के अन्त में महसूस की और अनेक गजेटियर लिखे। अकबर सल्तनत का यह विशाल गजेटियर है। इसमें हरेक सूबे, सरकार (जिला) परग ने का विस्तृत वर्णन और आंकड़े दिये गये है। उनके क्षेत्रफल, उनका इतिहास, पैदावार, आमदनी-खर्च, प्रसिद्ध स्थान, प्रसिद्ध नदियां-नहरें-नाले-चश्में, लाल-नुकसान का उल्लेख है। सैनिक-असैनिक प्रबन्न्ध, अमीरों और उनके दजोZ की सूची, विद्वानों, पण्डितों, कलाकारों, दस्ताकारों, सन्त-फकीरों,़़़़ मिन्दरों-मिस्जदों आदि की बातों को भ़्ाी नहीं छोड़ा गया है और साथ़्ा ही हिन्दुस्तान के लोगों के धर्म विश्वास और रीतिरवाज भी जिक्र किया है। जिस चीज की महत्ता को 19वीं सदी में अंग्रेजों ने समझा, उसे अबुल फजल ने साढ़े तीन सौ वशZ पहले समझकर लिख डाला। “अकबरनामा´´ में अबुलफजल अलंकारिक भाशा इस्तेमाल करते हैं, पर “आईन´´ में उनकी भाशा प्रभावशाली होते भी बहुत सीधी-सादी हो जाती है। दोनों पुस्तकें बहुत विशाल है। (अबुलफजल की हरेक कृतियों का हिन्दी में अनुवाद होना आवश्यक है।)

3. मुकातिबाते अल्लामी- अबुलफजलको अल्लामी (महान पण्डित) कहा जाता था। इस पुस्तक में उनके पत्रों संग्रह है। इसके तीन खण्ड है। पहले खण्ड में वे पत्र हैं, जिन्हें अकबर ने ईरान और तूरान (तुिर्कस्तान) के बादशाहों के नाम पर अबुलफजल से लिखवायें थे। इसी में बादशाही फरमान भी दर्ज है। समरकन्द का शासक उज्बक सुल्तान अब्दुल्ला बहुत ही प्रतापी खान और अकबर का खानदानी दुश्मन भी था। वह कहता था -“अकरब की तलवार तो नही देखी, लेकिन मुझे अबुलफजल की कलम से डर लगता है।´´ दूसरे खण्ड मेें अबुलफजल के अपने खत हैं, जो दरबार के अमीरों, अपने मित्रों और सम्बन्धियों को उन्होने लिखे। तीसरे खण्ड में उन्होंने पुराने ग्रन्थकारों की पुस्तकों के ऊपर अपने विचार प्रकट किये है। इसे साहित्यिक समालोचना कह सकते है।

4. ऐयारेदानिश-पंचतन्त्र अपने गुणों के लिये दुनिया में मशहूर है। छठी सदी में नौशेरखां इसका अनुवाद पहलवी भाशा में कराया था। अब्बासी खलीफों के जमाने में इसे अरबी में किया गया। सामानियों समय फारसी महान तथा आदिकवि रूदी की ने उसे पद्यबद्ध किया। मुल्ला हुसेन वायज़ने फारसी में करके इसका हिन्दुस्तान में प्रचार किया। अकबर उसे सुना। जब मालूम हुआ कि मूल संस्कृत पुस्तक अब भी मौजद है, तो कहा-कि घर की चीज है, सीधे क्यां न अनुवाद करो। अबुल फजलने इस पुस्तक को “ऐयारेदानिश´´ के नाम से सन् 1587-88 ई0 (हिजरी 996) में समाप्त किया। मुल्ला बदायूंनी इसको भी लेकर अकबर पर आज्ञेप किये बिना नहीं रहे और कहते है: इस्लाम की हर बात से उसे घृणा है, हर इल्म (शास्त्र) से बेजारी है। जबान भी पसन्द नहीं, हरफ भी प्रिय नहीं। मुल्ला हुसेन वायजने कलीलादमना (करकट दमनक) का तर्जुमा “अनवार सुहेली´´ कैसा अच्छा किया था। अब अबुलफजल को हुक्म हुआ, कि इसे साधारण साफ नंगी फारसी में लिखें, जिसमें उपमा अतिशयोक्ति भी न हो, अरबी वाक्य भी न हो।

5. रुकआते-अबुलफजल- यह अबुलफजल के रुक्कों (लघु-पत्रों) का संग्रह है। इसमेें 46 रुक्कों रूप में बहुत सी ऐतिहासिक, भौगोलिक और दूसरी महत्व की बातें सीधी-सादी भाशा में दर्ज हैं। जिनके नाम रुक्के लिखे गये हैं, उनमें कुछ हैं- अब्दुला खान, दानियाल, अकबर, मरियम मकानी (अकबर की मां), शेख मुबारक, फौजी, उर्फ, (मार्सिया फैजी)।

6. कश्कोल- कश्कोल फकीरों के भिज्ञा-पात्र को कहते है, जिसमें वह हर घर से मिलने वाले पुलाव, भुने चने, रोटी, दाल, सूखा तर रोटी का टुकड़ा, मिट्टा-सलोना-खट्टा कड़वा सभी कुछ डाल लेते है। अबुलफजल जो भी सुभाशित सुनते, उन्हें जमा करते जाते। इसको ही कश्कोल नाम दिया गया। इसे देखने से अबुलफजल की रुचिका पता लगता है।

आभार- इस आलेख लेखन में राहुल सांकृत्यायन लिखित पुस्तक अकबर के अंश का समावेश किया गया है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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पीने वालो के लिए खुश खबरी

Posted on 09 September 2010 by admin

एक नए शोध में दावा किया गया है कि कम मात्रा में शराब पीने से इंसान ज्यादा जी सकते हैं। वैज्ञानिकों ने 20 साल चले इस शोध में लगभग 1,800 वयस्कों के शराब पीने की मात्रा और उनके जीवन के संबंध के बारे में अध्ययन किया। शोध से पता चला कि कम मात्रा में शराब या रोज एक से तीन ड्रिंक मृत्यु दर को उल्लेखनीय तौर पर कम करती है।

हालांकि शोध के लेखकों का मानना है कि कम मात्रा में शराब पीने के पहले जो फायदे गिनाए गए हैं, उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है। इस शोध ने पुष्टि की है कि कम मात्रा में शराब और मृत्युदर के बीच संबंध होता है। शोध के परिणाम अल्कोहलिज्म : क्लिनिकल एंड एक्सपेरिमेंटल रिसर्च के ऑनलाइन संस्करण में प्रकाशित हुए हैं।


Vikas Sharma
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जेल बन्दीयों को शुद्ध भोजन एवं समय से रिहाई एवं समय से पेशी की व्यवस्था

Posted on 02 September 2010 by admin

पडरौना (कुशीनगर)- जिला प्रशासन एवं जेल प्रशासन के सम्बन्धों को पारदर्शी रखना जेल कर्मचारियों से स्वच्छ एवं सुचारू रूप से जेल में व्यवस्था बनाये रखने का प्रयास होगा। जेल बन्दीयों को शुद्ध भोजन एवं समय से रिहाई एवं समय से पेशी की व्यवस्था करना प्राथमिकता में है।

उक्त बाते नवागत जेलर रमाशंकर जयसवाल ने एक भेंट वार्ता के दौरान कही। श्री जयसवाल ने आगे बताया कि जेल व्यवस्था बनाये रखने के लिए अनेक बातों पर ध्यान देना जरूरी होता है। देवरिया जिला कारागार की क्षमता मात्र 392 बन्दीयों का है परन्तु इस समय 1096 कैदी है। जबकि कर्मचारियों की तैनाती 392 कैदियों के सापेक्ष ही है। मौजूदा समय में 40 बन्दी रक्षकों से ही पूरे जेल की व्यवस्था बनाये रखना पड़ा रहा है। बन्दीयों के भोजन मे शुद्धता बनाये रखने के लिए हमेशा आकिस्मक निरीक्षक किये जा रहे है। बन्दीयों को कोर्ट ले जाने में कोई अनियमितता न हो पेशी गलत न हो रिहाई समय से हो उसका बखूबी ख्याल रखा जा रहा है।

उन्होंने कहा कि बन्दीयों के चिकित्सकिय व्यवस्था थोड़ी परिशानी हो रही है कारण जेल मे डाक्टर की तैनाती नही होते के कारण जिला चिकित्सालय से डाक्टरों की व्यवस्था की गई है। डाक्टर की तैनाती के लिए प्रयास किया जा रहा है कि जेल की व्यवस्था सुचारू रूप से एवं पारदर्शी है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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वाद विवाद प्रतियोगिता में संध्या द्विवेदी प्रथम एवं सरोज राठौर द्वितीय

Posted on 19 August 2010 by admin

स्वतन्त्रता दिवस की 63वीं वशZगॉंठ के उपलक्ष्य में एकेडमिक्स, यू0पी0डेस्को द्वारा  अशोक मार्ग स्थित प्रशिक्षण केन्द्र में वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें लगभग 50 विद्यार्थियों ने भाग लिया। इस प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर एकेडमिक्स की छात्रा सुश्री संध्या द्विवेदी एवं द्वितीय स्थान पर सरोज राठौर रहीं।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि माननीय कर्नल अजय कुमार पाण्डे ,उप निदेशक सैनिक कल्याण निदेशालय ने प्रतियोगिता में विजयी रहे प्रतिभागियों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारे  श्री सतीश चन्दª वर्मा,प्रोजेक्ट आफिसर,डूडा एवं हरीश चन्दª श्रीवास्तव ने प्रतियोगिता में भाग लेने वाले समस्त प्रतिभिागियों को मेडल देकर सम्मानित किया।

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कार्यक्रम का आयोजन गरिमा सिंह द्वारा किया गया तथा पारूल अवस्थी,ने छात्रों का प्रोत्साहन बढ़ाते हुए उन्हे प्रेरित किया एवं सुश्री स्वाति गोसाईं के द्वारा कार्यक्रम का संचालन किया गया। अन्त मेें एकेडेमेिक्स, यू0पी0डेस्को के निदेशक अमिताभ मिश्र ने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथि के प्रति आभार व्यक्त करते हुए बच्चों के उज्जवल भविष्य की कामना की।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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क्या यही आजादी है ?

Posted on 15 August 2010 by admin

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जिस स्वतंत्रता की बात करते थे, उसमें समाज के आखिरी आदमी के हित का लक्ष्य था। गांवों को स्वावलम्बी बनाने की बात थी। स्वराज ही नहीं, सुराज के लिए संघर्ष की बात थी। एक ऎसे आजाद भारत राष्ट्र का सपना था, जिसमें गांवों को रोजगार के लिए शहरों का मुंह नहीं ताकना पड़े। सभी देशवासी परस्पर मिलजुलकर रहें, सभी समान हों, सभी के साथ न्याय हो, किसी भी तरह की हिंसा या परस्पर भेदभाव का कोई स्थान न हो। वह लक्ष्य पाया नहीं जा सका। बेशक, आज देश के कुछ लोग दुनिया के अमीरों में गिने जाने लगे हैं, लेकिन इसे विकास का पैमाना कतई नहीं माना जा सकता। विकास तो हुआ है लेकिन अंधाधुंध। शहरों की ओर पलायन बढ़ा है। नैतिक मूल्यों का ह्रास हुआ है।

राष्ट्र प्रेम, राष्ट्र सेवा की चर्चा और उस पर भाषण एक बात है, लेकिन उसे जीवन में आचरण में लाना दूसरी बात। दुर्भाग्य से नेता राष्ट्र की स्वतंत्रता को मजबूत करने के बजाय खुद को ही मजबूत करने में लगे हैं। यह तो स्वतंत्रता का सरासर दुरूपयोग है! राजनीति में सेवा का जज्बा ही गायब हो गया। अब यह एक प्रोफेशन है। नेता समाज और देश के प्रति उत्तरदायी हैं, यह बात शायद वे भूलते जा रहे हैं।

लोग अन्याय और अनीति देखकर भी चुप कैसे रहते हैं? हम सिर्फ तमाशबीन भीड़ में तब्दील होते जा रहे हैं। माना जा चुका है कि भ्रष्टाचार के इसी माहौल में जीना हमारी नियति है। समूचा वातावरण विषाक्त-सा हो गया, लगता है। आश्चर्य होता है कि लोग कैसे सहन कर रहे हैं। ऎसा लगता है कि देश में लापरवाह लोगों की पूरी फौज बना ली गई है। राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों में घालमेल के आरोप बेहद शर्मनाक हैं। हम दुनिया के सामने भारत की कैसी तस्वीर पेश करना चाहते हैं? राजनीति में अपराधियों का बोलबाला बढ़ता जा रहा है। विधानसभा की बात छोड़ो, संसद तक में अपराधी व दागी लोग धड़ल्ले से पहुंच रहे हैं। यह भला कैसी स्वतंत्रता है? जब ये फंसते हैं, तो इन्हें बचाने के लिए वकीलों की फौज खड़ी कर दी जाती है। इनका बहिष्कार होना चाहिए। समाज इन्हें स्वयं अस्वीकार करे। नेताओं और अपराधियों की दुरभिसंधि को रोकना ही होगा। राष्ट्र में स्वतंत्रता की वास्तविक या सच्ची चेतना को पुनर्जीवित करना होगा।

येन-केन-प्रकारेण और रातोरात धन कमाने की प्रवृत्ति देश के लिए बहुत घातक है। एक बात मैं दावे के साथ कह सकती हूं, जो व्यक्ति अपने देश या अपने समाज के लिए समर्पित नहीं है, वह किसी का साथी नहीं हो सकता। भ्रष्टाचार कभी खत्म होगा, यह तो आज सोचा भी नहीं जा सकता। कम हो जाए, तो बड़ी बात।

मैं एक ऎसे भारत की कल्पना करता  हूं, जिसमें युवा अपने अधिकारों से ज्यादा अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक होे। जिनके सामने कोई, अन्याय, अत्याचार, अनाचार की हिम्मत नहीं कर सकेगा। जो कहीं भी हो, इस देश का सिपाही होगा। माटी का सपूत, देश का रखवाला। युवाओं को यह समझना चाहिए कि आजादी का मतलब भोग-विलास के अपार साधन जुटाने का अवसर नहीं है। आजादी के पहले यदि देश के जवानों ने यही सब किया होता, तो देश आज भी गुलाम होता। उनके बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देना है और पूरी दुनिया के सामने भारत का सिर ऊंचा रहे, हम सभी का यही प्रयास होना चाहिए।
ढेर सारी विसंगतियों के बावजूद हमारे देश की कुछ ऎसी खूबियां हैं, जो हमें आशान्वित व आश्वस्त करती हैं। सामूहिकता व सहअस्तित्व हमारी विशेषता है। एक-दूसरे के लिए त्याग, समर्पण, सहयोग व सम्मान की जो भावना है, इसे अक्षुण्ण रखना होगा। दूसरे देश में लोग अलग-थलग पड़ जाते हैं। वहां किसी के लिए त्याग की बात कोई नहीं सोचता। हमारे यहां वसुधैव कुटुम्बकम की जड़ें गहरी हैं और आज भी यह बिरवा हरा-भरा है।

Vikas Sharma
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अब अब बुन्देलखण्ड में मोबाइल अन्धविश्वास

Posted on 12 August 2010 by admin

बुन्देलखण्ड के मध्यप्रदेश क्षेत्र में फैली मोबाइल अन्धविश्वास की तरह-तरह की खबरे अब उत्तर प्रदेश क्षेत्र के बुन्देलखण्ड में भी फैल गई है जिसके कारण लोग अब अनजान मोबाइल काल को रिसवी नही कर रहे है। रात में तो अधिकतर लोग अपना मोबाइल बन्द करके रखते है दिन में भी लोग परिचित के मोबाइल काल ही उठा रहे है।
बुन्देलखण्ड में मोबाइल अन्धविश्वास का इस समय इतना भय है कि लोग मेाबाइल से मूठ मारना तक कहते है। मध्यप्रदेश बुन्देलखण्ड के टीकमगढ़, सागर, सिहारे, छिरारी, छतरपुर में फैली मोबाइल अफवा है चित्रकूट होती हुई उत्तर प्रदेश के चित्रकूट, बान्दा, महोबा, उरई, जालौन, मऊरानीपुर, झांसी सहित पूरे बुन्देलखण्ड में फैल गई है।
मोबाइल अन्धविश्वास की अफवाह चित्रकूट स्थित जानकी कुछ इलाज कराने आये मरीजों एवं उनके तामीरदारों के माध्यम से फैली जिसे मोबाइल मूठ नाम दिया गया है। कहा जा रहा है कि 14 नम्बर वाला एक अंजान फोन आता है जिसे रिसीव करते ही मौत हो जाती है। जानकी कुंठ चित्रकूट इलाज कराने आये तमाम तामीर दारों की माने तो उकने इलाकों में इस तरह के फोन पर बात करने पर कई लोगों की मौत हो चुकी है। हालाकि वे इसकी काई पुिश्ट नही कर सके। चित्रकूट धाम मण्डल मुख्यालय बान्दा में इस समय लोग अपने परिचित नाते रिश्तेदारों को सावधान कर रहे है कि 14 नम्बर वाली कोई मोबाइल काल आये तो उसे रिसीव न करें। महोबा नगर के श्रीनगर थाना क्षेत्र के गॉव डिगरियां में बुधवार की रात मोबाइल पर बात करते-करते एक किशोर के बेहोश होने की बात प्रकाश में आयी है जिसे मध्यप्रदेश के निकटवर्ती जिला अस्पताल छतरपुर में इलाज हेतु भर्ती कराया गया है। भुक्तभोगी की ओर से यह बात बतायी गई है कि मोबाइल उठाया तो स्कीन लाल बड़ गई जिससे किशोरी अचेत होकर गिर पड़ी। किशोरी का सरोज बताया जाता है। इसी तरह एक सिपाही जालौन जनपद के फोन करते में मोबाइल पर एक लड़की की आवाज सुनकर बेहोश होकर गिर पड़ा। बुधवार को जिन्हे एक थाने का सिपाही कोच आया था उसके साथी के मोबाइल पर एक काल आयी उसमें एक लड़की बोली और अपना नाम संगीता बताया। बातचीत शुरू हुई तो लड़की ने हनुमान चालीसा का पाठ शुरू कर नसीहत देना शुरू किया ही था कि सिपाही को चक्कर आने लगे और वह धड़ाम से जमीन पर गिर गया उसकी हालत खराब होने पर साथियों ने एक प्राइवेट चिकित्सक को दिखाया जहां डाक्टर ने स्वस्थ बताकर छुट्टी कर दी। सिपाही का नाम आर0एस0 यादव बताया गया है।
इसी प्रकार झांसी मण्डल के मऊरानीपुर क्षेत्र में अफवाह फैली है कि कुछ अनजान नम्बरों से काल आने पर जैसे ही रिसीव कर हैलो बोलते है दूसरी ओर से एक महिला द्वारा मन्त्र पड़ने की आवाज आती है यह मन्त्र सुनकर मोबाइल उपभोक्ता अचेत हो जाता है। यहां तक की उसे जान का खतरा हो जाता है। इस अफवाह का ग्रामीण क्षेत्र में काफी असर दिखायी दे रहा है इसके परिणाम स्वरूप गांव के ही नही नगर क्षेत्र के लोग भी अपने परिवार के लोगों से अनजान नम्बरों को रिसीव न करने की सलाह दे रहे है।
जालौन जनपद के उरई नगर मे तो बाकायदा पांच नम्बर प्रसिारत किये गये है जिनसे काल एवं एस0एम0एस0 भेजने की बाते आ रही है। ये खतरनाक नम्बर 7888308001, 9316048121, 9876266211, 9888854137 बताये जा रहे है जिनको अटैन्ड करने से शक सा लगता है और मृत्यु होने की सम्भावना रहती है। किन्तु इन नम्बरों से बात करने वाले किसी पीड़ित व्यक्ति से बात नही हो पायी दूरसंचार जिला प्रबन्धक लल्लन लाल का कहना यदि इस प्रकार की कोई काल या एसएसएस आते है तत्काल पुलिस को सूचित करें। ताकि जो लोग भ्रमित कर रहे है उनके खिलाफ कानूनी सिंगजा कसा जा सके। जिला दूरसंचार प्रबंधक चित्रकूट सीबी सिंह इस तरह के काल को कोरे बकवास बताते है। जनता से कहा है कि फोन रिसीव करने की किसी की मौत नही हो सकती है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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तहसील दिवस के आवेदन पत्रों का प्रभावी निस्तारण कर इन्टरनेट पर भी फीड करायें-अभिजात

Posted on 04 August 2010 by admin

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जिलाधिकारी अमृत अभिजात ने आज सदर तहसील में आयोजित “ तहसील दिवस` में लोगों की िशकायतों और समस्याओं की सुनवाई की और अधिकारियों को प्रभावी निस्तारण हेतु निर्देश दिये। उन्होंने कहा कि निस्तारण का विवरण भी इन्टरनेट पर डालें । उन्होंने कहा कि तहसील दिवस की भावना के अनुरूप अधिकारी जनता के पास आकर समस्याओं का तत्परता से निदान करें।

11 जिलाधिकारी के निर्देश पर विभागों द्वारा अलग-अलग पटल लगाये गये। उन्होंने गत बैठकों में निर्देश दिये थे कि विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों को चैक आदि वितरण तहसील दिवस में सार्वजनिक रूप से करायें। इन आदेशो के क्रम में इस अवसर पर शादी अनुदान योजना के अन्तर्गत 25 लाभार्थियों को चैक तथा महामाया गरीब बालिका आशीZवाद aयोजना के अन्तर्गत 18 महिलाओ को एफ.डी. प्रदान की गई। आपदा राहत कोश से जिलाधिकारी के निर्देश पर एक व्यक्ति को  05 हजार रूपये की आर्थिक सहायता का चैक भी मौके पर दिया गया। मेडिकल कैम्प में जांच के उपरान्त चार व्यक्तियों को विकलांग प्रमाण पत्र जारी किये गये।
भीम नगरी क्षेत्र में स्थापित हैण्डपम्पों की िशकायत पर संज्ञान लेकर जिलाधिकारी ने तत्काल अधिकारियों की 13 टीमें बनाकर स्थल पर कार्यो के सत्यापन हेतु भेजा। िशकायत में कहा गया है कि इस क्षेत्र में 218 हैण्डपम्प तथा 32 टी.डी.एस.पी लगे हैं परन्तु अनेक खराब है।  जिलाधिकारी ने निर्देश दिये कि आगामी तहसील दिवसों में अधिकारियों की दो टीमें गठित होगी। एक दल में जिलाधिकारी डीआईजी तथा गांव की विभिन्न योजनाओं से सम्बन्धित अधिकारी तहसील दिवस के उपरान्त ग्राम में स्थलीय निरीक्षण/सत्यापन हेतु जायेगें। दूसरे दल में लगभग दस-बारह अधिकारियों को रखा जायेगा जो तहसील दिवस में प्राप्त आवेदन पत्रों के निस्तारण में दिखाये कार्यो का सत्यापन करेगें या तहसील दिवस में प्राप्त िशकायत की तात्कालिक जांच हेतु भेजे जायेगें। उन्होंने चेतावनी दी कि फर्जी निस्तारण के प्रकरणों पर कठोर कार्यवाही होगी। आगामी तहसील दिवसों मे सर्वप्रथम गत तहसील दिवसों में लिम्बत पटलों की समीक्षा की जायेगी। उन्होंने कहा कि विभिन्न पटलों पर वह स्वंय जाकर निस्तारण की समीक्षा करेगें। उन्होंने कहा कि तहसील दिवस आयोजनो की शासन स्तर पर भी समीक्षा होती है। उन्होंने कहा कि जन समस्याओं के निस्तारण में संवेदनशील रहें ताकि लोगो को बार-बार चक्कर न लगानें पड़े। उन्होंने चेतावनी दी कि बिना पूर्व सूचना/अनुमति के कोई भी अधिकारी तहसील दिवस से अनुपस्थित नही रहेगे। उन्होंने पी.ओ. डूडा के अनुपस्थित रहने पर स्पश्टीकरण कल तक मांगा है। आगरा विकास प्राधिकरण की ओर से कोई अधिकारी उपस्थित न होने पर संज्ञान लेकर निर्देश दिये कि तहसील दिवसों पर एडीए के अधिकारी भी उपस्थित रहें।
इस अवसर पर डीआईजी दीपेश जुनेजा,डी.एफ.ओ- एन के जानू मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा0 राम रतन आदि जिलास्तरीय अधिकारी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन उप जिलाधिकारी ने वट वृक्ष लगाकर तहसील परिसर में वृक्षारोपण का शुभारम्भ कर  किया । तहसील दिवस के उपरान्त अधिकारियो ने अम्बेडकर ग्राम सुनाली जाकर विकास योजनाओं का स्थलीय सत्यापन किया।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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