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मान न मान, मैं तेरा मेहमान

Posted on 07 February 2011 by admin

मान न मान, मैं तेरा मेहमान की रट लगाये आज नारद जी से फिर मुलाकात हो गई किन्तु आज नारद जी की अजब गजब वेशभूषा, गजब के तौर तरीके देखकर मैं हैरान रह गया। आज नारद जी रिक्शे पर सवार सचिवालय की तरफ जा रहे थे। रिक्शे के पीछे हॉफते हॉफते उनके अंगरक्षक दौड़ रहे थ्ेा उनके पीछे मंहगी गाड़ियों की लम्बी कतार थी। यह सब देखकर मैं आश्चर्यचकित होकर अपनी जिज्ञासा शान्त करने के लिए मैं नारद जी के चरण स्पर्श करने लपका ही था कि सिक्योरिटी वालों ने मुझे दिल दुखाने वाले भद्दे विश्लेषणों से सम्मानित करते हुए मेरा गिरेबान पकड़ कर मुझे पीछे धकेल दिया मैं चारो खाने चित्त हो गया। जबड़े का सत्यानाश हो गया होठों का कचालू बन गया मेरी यह दुर्दशा देख नारद जी को मेरे उपर तरस आ गया वह शान्त स्वभाव से बोले आने दो भाई यह कोई प्रोटोकाल अधिकारी थोड़ा ही है। यह तो बेचारा दीन हीन फटीचर लेखक है यह हमारा न सम्मान कर सकता है और न ही अपमान कर सकता है फिर इससे डरना कैसा अरे नामुरादों अक्ल के दुश्मनों डरो उनसे जो हमें अपना मेहमान ही नहीं मानते हैं इतना कहते ही नारद जी सुबकने लगे यह नजारा देखकर मै समझ गया कि किसी ने आज नारद जी का दिल दुखाया है तब मेरी समझ में सब नजारा आ गया है कि नारद जी इतने लाव लश्कर के होते हुए भी रिक्शे पर क्यों चल रहे हैं। सो मैं नारद जी के पैरों में गिरकर गिड़गिड़ाते हुए बोला भगवन! आपतो तीनों लोगों के स्वामी हैं पल-पल की खबर रखते है अन्तर्यामी है बलशाली हैं, सर्वशक्तिमान हैं दुनिया आपका लोहा मानती है फिर किसकी हिम्मत हो गई कि आपका घोर अपमान कर दिया और साथ ही आपको “राज्य अतिथि´´ के पद से पदच्युत कर दिया। आप तो जन जन के अतिथि है पूरा देश आपके रहमोकरम पर चल रहा है इतने पर भी आपके साथ अभद्रता करने की हिम्मत कैसे हो गई इतना सुनते ही नारद जी क्रोधित हो गये चेहरा लाल हो गया नाक के दोनो नथुने फूल गये चीखते हुए बोले अरे निरक्षर भट्ट कहीं के वैसे तो तू अपने को बहुत बड़ा भारी साहित्यकार लेखक पत्रकार कहता फिरता है फिर अल्पज्ञानी कही के! तुझे इतना तक नहीं मालूम है कि प्रदेश सरकार ने मेरा “राज्य अतिथि´´ का दर्जा छीन लिया है ओटो काल, प्रोटोकाल सब हटा लिया है अरे! मुझे तो अपनी जान का भी खतरा है मुझे तो सरकार की नियत में भी खोट नज़र आ रहा है मुझे भय है कि सरकार कहीं मेरा मर्डर न करा दें आज नारद जी बड़े क्रोध में थे सो यह सब बातें एक ही सांस में कह गये। इतना सुनते ही मैं विनम्रतापूर्वक बोला कि महषिZ जी मेरी समझ में एक बात नहीं आ रही है कि जब आप को हर कोई अपना अतिथि मानता है कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सभी आपको अपना अतिथि मानते हैं प्रोटोकाल ओटोकाल सभी आपके इशारों पर नाचते हैं बड़े से बड़े आला अफसर आपको सलाम ठोकते हैं। अनेक प्रदेशों के मुख्यमन्त्री तक आपकी जी हजूरी करते हैे तो फिर प्रदेश सरकार ने आपको अपना राज्य अतिथि मानने से क्यों इन्कार कर दिया र्षोर्षो इतना सुनते ही नारद जी फिर भड़क गये कड़कते हुए बोले इस प्रदेश में प्रजातन्त्र नहीं राजतन्त्र चल रहा है। एक राजा है बाकी सब प्रजा है रही मन्त्रियों की बात तो सब के सब यहां अकबर राजा के नौ रत्न हैं। बीरबल भी अकबर को कभी कभी सलाह देने की हिम्मत कर लेते थे किन्तु यह नौरत्न तो हां में हां ही मिलाते रहते है एक दिन बीरबल से अकबर ने कहा बीरबल बैगन में कोई गुण नहीं होता है बीरबल बोले हां हुजूर तभी तो उसका नाम “बेगुन´´ है। दूसरे दिन अकबर बोले बीरबल बैंगन तो बड़ा गुणकारी होता है तब बीरबल बोले हां हुजूर तभी तो उसके सिर पर ताज होता है। अब इन नौ रत्नों को कौन समझाये कि यह राजतन्त्र नहीं यह प्रजातन्त्र है यहां प्रजा ही शक्तिशाली होती है उसने राजा को बदलने की भी शक्ति होती है तो आज नारद जी बड़े क्रोध में थे सो रूकने का नाम ही नहीं ले रहे थे सो बीच में ही मैने टोकते हुए कहा कि आपने सरकार का क्या बिगाड़ा है जो आपका राज अतिथि का दर्जा समाप्त कर दिया र्षोर्षो और तू बड़ा भोला है हरि ओम। तू इतना भी नहीं जानता कि इनको मुझसे और हमारे अन्य भाइयों से वोट बैंक में सेंध लगने का खतरा है हमारे उपर आरोप है कि हम बार-बार और जल्दी-जल्दी प्रदेश में क्यों आते हैंर्षोर्षो जरूर कोई गड़बड़ है यह जरूर हमारे वोट बैंक में सेध लगाने आते हैं और हमारी बातें अपने आका तक पहुंचाते हैं। सो मारे क्रोध के हमारा “राज्य अतिथि´´ का दर्जा ही समाप्त कर दिया इतना सुनते मेरे मुह से बरबस ही निकल गया कि महषिZ जी इसमें क्रोध करने की कौन सी बात है यह तो घर के मालिक के हाथ में है कि वह हमें अपना अतिथि माने या न माने यह तो राज्य सरकार का विवेकाधीन है कि वह किस को अपना राज्य अतिथ माने और किस को अपना राज्य अतिथि न माने इतना सुनते ही नारद मुनि पुन: भड़क गये भड़कते हुए बोले तू प्रदेश सरकार का एजेन्ट है क्या र्षोर्षो तुझे इतना भी नहीं मालूम कि अतिथि देवो भव: की हमारी प्राचीन संस्कृति है मैं तो राज्य अतिथि था अभी भी हूं और आगे भी रहूंगा तेरे मानने या न मानने से क्या होता है र्षोर्षो की रट लगाये नारद जी अन्तर्धयान हो गये मेरी आंख खुली तो पता चला कि मैं तो सपना देख रहा था किन्तु सपने में ही सही नारद जी कह तो सोलह आने सच गये हैं कि मान या न मान मैं तेरा मेहमान।

(हरि ओम शर्मा)
12, स्टेशन रोड, लखनऊ (मोबाइल : 9415015045, 9839012365)

इ-मेल :hariomsharmahari@yahoo.co.in; hosharma12@rediffmail.com

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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