अब भारत गरीब देश नहीं है। यह एक सच्चाई है, यह खुशनुमा खबर धन के आकड़ों की हकीकत बयां करती हुई यूरोप से आई है। स्वीस बैंकों के डायरेक्टर्स ने अपने बैंकों में जमा भारत के काले धन के बारे में जानकारी सार्वजनिक कर दी है। भारत का 280 लाख करोड़ से अधिक धन उनके बैकों में जमा है। इसी प्रकार अन्य यूरोपीय बैंकों में भी धन जमा होने की जानकारी मिली है। गौरतलब है कि इस सच्चाई को अब तक स्वीस सरकार क्यों छुपा रही थी तथा अब उसके सामने ऐसी कोैन सी मजबूरी आ गई जो अपने यहां जमा अन्य देशों के धन के बारे में जानकारी देनी पड़ी है। क्या भारत सरकार ने उस पर दबाव डाला है र्षोर्षो भारत सरकार तो यही कहती मिलेगी कि उसके ठोस प्रयासों के कारण ही यह सम्भव हो सका है, कहे भी क्यों ना यहां के नेताओं का काम लोकतन्त्र के नाम पर जनता को गुमराह कर सरकार बनाना बनने पर जनसेवा को भूलकर सत्ता सुख प्राप्त करना, ऐसोआराम फरमाना है, जमीनी हकीकत से मुंह फेरना, आकाओं की हॉं में हॉं मिलाना, पद लोलुपता की महत्वाकांक्षा के इतने रिकार्ड बनाना कि देश के गौरव सचिन तेन्दुलकर के रनों के रिकार्ड को पीछे छोड़ने जैसा है। ऐसे नेताओं, नौकरशाहों से यह उम्मीद करना कि वे देश बनाने का काम करेंगे तो यह बात पत्थर मारकर चॉन्द तोड़ने जैसी होगी। अब यूपीए सरकार को क्या खिताब दिया जाय जब हमारे देश के गायब हुये धन की जानकारी अन्य देश के द्वारा दी गई हो। इस पर सरकार के आव-भाव देखने से लगता है कि वह देश के अमीर होने की बात को मानना तो दूर इस सच्चाई को दोहराने का भी साहस नहीं दिखा रही है। सरकार की कथनी और करनी में जमीन आसमान का अन्तर है। सरकार का इरादा नेक नहीं है। आजादी के 63 सालों में सत्ता सुख की पिच पर फिफ्टी तो कांग्रेस पार्टी ने ही बनाई है। अत: देश के धन को लूटकर विदेशों में जमा करने का पाप तो अधिकत्तर इन्हीं के राज में हुआ है। देश में गरीबी है तो वह इनकी लचर नीतियों के कारण है जो धन गरीब की गरीबी दूर करने में खर्च होना था, वह षडयन्त्रकारियों ने विदेशों में पहुंचा दिया। इस कारण लोग गरीब हैं तो इसकी गुनाहगार वे सरकारें तथा षडयन्त्रकारी हैं जिन्होंने यह कुकृत्य किया है। देश अब गरीब नहीं है। यह बात सुनकर भारतवासी जहां झूम उठे वहीं सरकार की हालत देखकर लगता है कि इस सच्चाई ने उसकी रीढ़ पर वार कर दिया है। यह सच्चाई और पुख्ता तब हुई जब मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के जवाब से नाराज होकर कड़ी फटकार लगाते हुये उसे याद दिलाया की कि यह धन की कर चोरी मात्र नहीं है, राष्ट्रीय सम्पदा की लूट है। राष्ट्र को शर्मशार करने जैसी घटना है। यहां गौरतलब यह है कि जमा काले धन का खुलासा कैसे हुआ र्षोर्षो बताते चलें दुनिया में आई आर्थिक मन्दी ने अमरीका को जबरदस्त झटका दिया उससे उभरने के प्रयास में अमरीका उस जंगल के राजा भूखे शेर की तरह छटपटाया जिसे भोजन समाप्त होने की जानकारी हुई हो, भोजन न मिल पाने के कारण जैसे जंगल का राजा छपटपटाता है और भोजन की पूर्ति के लिये चारों ओर आंखें तरेरता है, वही स्थिति इस मन्दी में अमरीका की हुई, उसे जब अपने यहां के बैंकों आदि के दिवालिया होने की खबर मिलने लगी तो उसने अन्य देशों में जमा धन को खंगालना शुरू किया। उसने स्वीटजरलैण्ड की ओर निगाहैं तरेरी तो स्विस सरकार और वहां के बैंकों की सारी गोपनीयता धरी की धरी रह गई और उसने अन्य देशों के जमा काले धन का हिसाब देना शुरू कर दिया। शेर की गुर्राहट से नीतियां ही नहीं, नीयत भी बदल गई। वहां के बोर्ड आफ डायरेक्टर्स ने जमा धन के बारे में सार्वजनिक जानकारी दी। इन परिस्थितियों में भारत सरकार के लिये भजन की ये लाइने वर्तमान हालातों पर चरितार्थ हो रही हैं- ´´बिना ही पतवार के नाव चल रही है,बिना कुछ किये ही मेरा सब काम हो रहा है, करते हो तुम कन्हैया मेरा नाम हो रहा है,´´ देश की सम्पत्ति को लूटकर विदेशों में जमा करने का घृणित पाप करने वालों ने ख्वाब में भी नहीं सोचा होगा कि विकसित देश विकासशील देशों का जमा धन बता देंगे। अन्यथा वे बेईमान वहां जमा ही क्यों करते र्षोर्षो आज नहीं तो कल सरकार कोशिश करे न करे खातेदारों और उनके धन का पता स्वीस सरकार ही बता देगी। चिन्ता इस बात की है कि वर्तमान यूपीए सरकार अपनी हीलाहवाली से षडयन्त्रकारियों को धन अनयन्त्र ठिकाने लगाने का पर्याप्त अवसर दे रही है। धन के निकालने की सम्बंधित जानकारी प्रमुख समाचार पत्रों में छपी भी है। पुणे की घुड़दौड़ के शोैकीन व्यापारी हसन अली के स्वीस बैंकों में जमा 35 हजार करोड़ रू0 से अधिक की राशि बैंक से गायब ह,ै वित्त मन्त्री प्रणव मुखर्जी ने इस पर कहा कि हसन अली के 3 स्वीस खातों में कोई रकम नहीं है, वहीं उसके चौथे खाते में 60 हजार डालर जमा होने का पता तो चला लेकिन बाद में उसे भी निकाल लिया गया। मुखर्जी ने स्पष्ट किया कि मामले की जांच अभी चल रही है मालूम हो कि 2007 में पुणे और मुम्बई में आयकर विभाग के छापों में हसन अली के 35 हजार करोड़ रू0 स्वीस बैंकों में जमा होने के पुख्ता सबूत मिले थे। सरकार देखती रही धन फुर्र हो गया। इसी प्रकार के अनेक उदाहरण और भी हो सकते हैं। देश की जनता जागरूक है यदि काला धन देश में वापस नहीं आया अथवा गायब हुआ तो उसके लिये सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुये जनता उससे हिसाब किताब लेगी। याद दिला दें देश में धन के वापस आने से यूपीए सरकार का वोट बैंक बिल्कुल प्रभावित नहीं होगा, उसके वोटरों में अच्छा सन्देश जायेगा। सरकार के आकाओं में गलत सन्देश नहीं जायेगा इसकी सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। जिस देश में चन्द रूपयों के लिए रेलवे व बस स्टेशन पर जेब काटते हुये जेब कतरों के पकड़े जाने पर जनता विकट पिटाई कर देती है। हवालात अलग से जाना पड़ता है, पुलिस द्वारा बाद में तलाशी लेने पर कभी-कभी चन्द रू0 निकलते हैं तो कभी खाली कागज ही निकलते है। यह हाल तो मामूली जेेब कतरे का जनता कर डालती है जिन्होंने देश की ही पाकेट काट ली हो उनका अल्लाह मालिक है। बाबा कबीर ने धन के बारे में कहा है ´´गोधन गजधन बाजधन और रतन धन खान, जब आवे सन्तोष धन सब धन धूरि समान´´ परमपूज्य गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी श्रीरामचरितमानस में भगवान भोलेनाथ के मुख से कहलाया कि ´´ सो धन धन्य प्रथम गति जाही। यहां धन की तीन गति बताई- ´´जो धन दान में दिया जाता है उसको उत्तम गति यानि प्रथम कहा तथा जो धन भोग में खर्च होता है उसको मध्यम गति कहा–जो न दान में न भोग में काम आता है उसको नाश गति कहा है। राम विमुख सम्पत्ति प्रभुताई, जाई रही पाई बिनु पाई, सजल मूल जिन सरितन नाही, बारिश गये ते पुन: सुखाई अर्थात परमात्मा राम से विमुख सम्पत्ति और प्रभुता होते हुये भी न होने जैसी है। जिन नदियों के मूल में जल स्रोत नहीं होते वह बारिस के जाने पर सूख जाती है। उसी प्रकार परिस्थितियों बदल जाने पर काला धन भयंकर अभिशाप बन जाता है। शास़्त्रों और महापुरूषों की बताई गई बात आज भी शाश्वत है। व्यक्ति हो या व्यवस्था, सत्ता हो या साहुकार जेैसे को तैसा वाली कहावत सनातन है। उन नेताओं ,नौकरशाहों तथा कारोबारियों के लिये जिन्होंने सार्वजनिक धन की लूट की है उसके राजफास की बुरी खबर है परन्तु 98 प्रतिशत के लिये तो रामबाण का काम करने वाली संजीवनी जड़ी है।
´´लाख बनाओ बहाने यहां वहां चलता कोई बहाना नहीं है, जो भी भला बुरा है श्रीराम जानते हैं-
बन्दे के दिल में क्या है प्रभु राम जानते हैं,
आता कहां से है कोई जाता कहां है कोई,
युग युग से इस गति को श्रीराम जानते है,
नेकी बदी को अपनी जितनी भी तू छुपा ले,
श्रीराम को सब पता है श्रीराम जानते हैं,
किस्मत के नाम को को सब जानते हैं,
लेकिन किस्मत में क्या लिखा है यह श्रीराम जानते हैं,
´´नहीं चाहिए दिल दुखाना किसी का,
सदा न रहा है न रहेगा जमाना किसी का´´
नरेन्द्र सिंह राणा (लेखक- उ0प्र0 भाजपा के मीडिया प्रभारी हैं)
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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