राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जिस स्वतंत्रता की बात करते थे, उसमें समाज के आखिरी आदमी के हित का लक्ष्य था। गांवों को स्वावलम्बी बनाने की बात थी। स्वराज ही नहीं, सुराज के लिए संघर्ष की बात थी। एक ऎसे आजाद भारत राष्ट्र का सपना था, जिसमें गांवों को रोजगार के लिए शहरों का मुंह नहीं ताकना पड़े। सभी देशवासी परस्पर मिलजुलकर रहें, सभी समान हों, सभी के साथ न्याय हो, किसी भी तरह की हिंसा या परस्पर भेदभाव का कोई स्थान न हो। वह लक्ष्य पाया नहीं जा सका। बेशक, आज देश के कुछ लोग दुनिया के अमीरों में गिने जाने लगे हैं, लेकिन इसे विकास का पैमाना कतई नहीं माना जा सकता। विकास तो हुआ है लेकिन अंधाधुंध। शहरों की ओर पलायन बढ़ा है। नैतिक मूल्यों का ह्रास हुआ है।
राष्ट्र प्रेम, राष्ट्र सेवा की चर्चा और उस पर भाषण एक बात है, लेकिन उसे जीवन में आचरण में लाना दूसरी बात। दुर्भाग्य से नेता राष्ट्र की स्वतंत्रता को मजबूत करने के बजाय खुद को ही मजबूत करने में लगे हैं। यह तो स्वतंत्रता का सरासर दुरूपयोग है! राजनीति में सेवा का जज्बा ही गायब हो गया। अब यह एक प्रोफेशन है। नेता समाज और देश के प्रति उत्तरदायी हैं, यह बात शायद वे भूलते जा रहे हैं।
लोग अन्याय और अनीति देखकर भी चुप कैसे रहते हैं? हम सिर्फ तमाशबीन भीड़ में तब्दील होते जा रहे हैं। माना जा चुका है कि भ्रष्टाचार के इसी माहौल में जीना हमारी नियति है। समूचा वातावरण विषाक्त-सा हो गया, लगता है। आश्चर्य होता है कि लोग कैसे सहन कर रहे हैं। ऎसा लगता है कि देश में लापरवाह लोगों की पूरी फौज बना ली गई है। राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों में घालमेल के आरोप बेहद शर्मनाक हैं। हम दुनिया के सामने भारत की कैसी तस्वीर पेश करना चाहते हैं? राजनीति में अपराधियों का बोलबाला बढ़ता जा रहा है। विधानसभा की बात छोड़ो, संसद तक में अपराधी व दागी लोग धड़ल्ले से पहुंच रहे हैं। यह भला कैसी स्वतंत्रता है? जब ये फंसते हैं, तो इन्हें बचाने के लिए वकीलों की फौज खड़ी कर दी जाती है। इनका बहिष्कार होना चाहिए। समाज इन्हें स्वयं अस्वीकार करे। नेताओं और अपराधियों की दुरभिसंधि को रोकना ही होगा। राष्ट्र में स्वतंत्रता की वास्तविक या सच्ची चेतना को पुनर्जीवित करना होगा।
येन-केन-प्रकारेण और रातोरात धन कमाने की प्रवृत्ति देश के लिए बहुत घातक है। एक बात मैं दावे के साथ कह सकती हूं, जो व्यक्ति अपने देश या अपने समाज के लिए समर्पित नहीं है, वह किसी का साथी नहीं हो सकता। भ्रष्टाचार कभी खत्म होगा, यह तो आज सोचा भी नहीं जा सकता। कम हो जाए, तो बड़ी बात।
मैं एक ऎसे भारत की कल्पना करता हूं, जिसमें युवा अपने अधिकारों से ज्यादा अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक होे। जिनके सामने कोई, अन्याय, अत्याचार, अनाचार की हिम्मत नहीं कर सकेगा। जो कहीं भी हो, इस देश का सिपाही होगा। माटी का सपूत, देश का रखवाला। युवाओं को यह समझना चाहिए कि आजादी का मतलब भोग-विलास के अपार साधन जुटाने का अवसर नहीं है। आजादी के पहले यदि देश के जवानों ने यही सब किया होता, तो देश आज भी गुलाम होता। उनके बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देना है और पूरी दुनिया के सामने भारत का सिर ऊंचा रहे, हम सभी का यही प्रयास होना चाहिए।
ढेर सारी विसंगतियों के बावजूद हमारे देश की कुछ ऎसी खूबियां हैं, जो हमें आशान्वित व आश्वस्त करती हैं। सामूहिकता व सहअस्तित्व हमारी विशेषता है। एक-दूसरे के लिए त्याग, समर्पण, सहयोग व सम्मान की जो भावना है, इसे अक्षुण्ण रखना होगा। दूसरे देश में लोग अलग-थलग पड़ जाते हैं। वहां किसी के लिए त्याग की बात कोई नहीं सोचता। हमारे यहां वसुधैव कुटुम्बकम की जड़ें गहरी हैं और आज भी यह बिरवा हरा-भरा है।
Vikas Sharma
Editor
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