Posted on 22 September 2012 by admin
कुछ लोगों के बारे में कहा जाता है कि ना इनकी दोस्ती अच्छी, ना इनकी दुश्मनी अच्छी’। दोनों ही रूप में ये कष्ट देते है। इसी तर्ज पर संप्रग सरकार के बारे में कहा जा सकता है- ‘‘ना इनकी सुस्ती अच्छी, ना इनकी तेजी अच्छी।’ दोनों ही रूप कष्टप्रद है। बताया जाता है कि सरकार अपने ऊपर लगाने वाले निष्क्रियता के आरोप से परेशान थी। देश से लेकर परदेश तक उस पर ऐसे आरोप लग रहे थे। कई विदेशी पत्र-पत्रिकाएं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ‘उम्मीदो से कम ’ और असफल बता रही थी। यहां तक गनीमत थी। मनमोहन सिंह ऐसी भीतर-बाहर की आलोचनाओं से ऊपर रहते है। वह निर्लिप्त रहते है। निन्दा को गम्भीरता से लेते तो इतने वर्षो तक पद पर रहना मुश्किल हो जाता। लेकिन हद तो तब हुई जब ऐसी ही विदेशी पत्रिका ने वर्तमान के साथ-साथ भविष्य की भी आलोचना शुरू कर दी। उसने कांग्रेस महासचिव की निर्णय क्षमता पर प्रश्न उठाए।
इसके फौरान बाद सरकार ने सक्रियता दिखाई। वह निष्क्रियता के आरोप से मुक्त होने के कदम उठाने लगी। नीतिगत निर्णय लेने लगी। विपक्ष की बात अलग, सहयोगियों से विचार -विमर्श के बिना उसने रिटेल में एफ.डी. आई. को मंजूरी दी। डीजल के दाम बढ़ाए। रसोई गैस सिलेण्डर की सब्सिडी समाप्त करने की दिशा में कदम उठाए। सब्सिडी युक्त सिर्फ छः सिलेण्डर देने का फरमान जारी किया। यह उसकी सक्रियता थी। कष्टप्रद साबित हुई। निष्क्रिय रहती है, तब भ्रष्टाचार का आरोप लगता है। कोयला आवंटन में भारी घोटाला होता रहा। मंत्रियों के सगे -’संबंधी हाथ साफ करते रहे, सरकार शान्त भाव से देखती रही थी। रसूखदार लोग सैकड़ो की संख्या में सिलेण्डर लेते रहे। सब्सिडी का भरपूर फायदा धनी लोग शुरू से उठाते रहे। मंहगी गाडि़यों में डीजल की खपत होती रही। यह सब सरकार की जानकारी में था। किसी भी प्रकार की सब्सिडी इस वर्ग के लिए नहीं थी। नहीं होनी चाहिए। समय रहते इस प्रवृत्ति को नियंत्रित करने की आवश्यकता थी। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। फिर जब निर्णय किया तो गरीब , अमीर औश्र जरूरतमंद किसान सभी को एक पड़ले में रखा गया। सभी के लिए एक ही नीति। निश्चित ही सरकार की नीति में संवेदनशीलता का अभाव था। उसे अपनी सक्रियता दिखानी थी। यह संदेश देना था कि वह नीतिगत निर्णय कर सकती है। लेकिन ऐसा करते समय वह सामाजिक न्याय नहीं कर सकी। सरकार ने व्यवहारिकता का परिचय नहीं दिया।
रिटेल में एफ.डी. आई. की मंजूरी का परिणाम सरकार पहले भी देख चुके थी। फिर व्यापक विचार-विमर्श के बाद इसे पुनः मंजूर करने का क्या औचित्य था। मल्टी ब्रंाड रिटेल में इक्यावन प्रतिशत नागरिक उड्डयन में उन्यास, ब्राडकास्ंिटग में चैहत्तर, टी. वी. चैनल व एफएम रेडियो में छब्बीस व सिंगल ब्रांड रिटेल में शत प्रतिशत विदेशी पंूजी निवेश भारत की अर्थव्यवस्था, स्वायत्तता ही नहीं संस्कृति पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। वालमार्ट, कैरफोर, टेस्कों आदि का इतिहास निराशाजनक है। ये कहीं भी किसानों या खुदरा व्यापारियों का हित नहीं कर सकी। सरकार को इससे सबक लेना चाहिए। इस नीति का सड़क पर विरोध करने वाले तथा संसद में सरकार को बचाने, प्रोत्साहन देने वाले दल भी भविष्य में जवाब देह होंगे।
सरकार को एफ. डी. आई. पर होने वाले व्यापक विरोध का पहले ही अनुभव हो चुका है। तब सरकार ने अपने निर्णय पर रोलबैक किया था। तात्कालीन वित्त मंत्री ने संसद में आश्वासन दिया था कि राज्यों की सहमति के बिना इसे लागू नहीं किया जाएगा। ऐसे में दुबारा इस आग से खेलने का क्या औचित्य था। राज्यांे व विपक्षी दलों से विचार -विमर्श की बात अलग, सरकार ने अपने सहयोगियों को भी विश्वास में नहीं लिया। तणमूल कांग्रेस के कदम से यह बात स्पष्ट हो चुकी है। उसने सरकार पर गलत बयानी व झूठ बोलने का आरोप लगाया है। एफ. डी. आई. को दुबारा मंजूर करने पर सरकार अन्य पक्षों के साथ सहमति बनाने का प्रयास नहीं कर रही थी। देश में कोयला घोटालें का मामला गर्म था। दूसरी तरफ विदेशी विदेशी पत्रिका मनमोहन सिंह और राहुल गांधी पर नाकामी और किंकर्तव्यविमूढ़ होने की रेंटिग बना रही थी। कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार ने अपनी समझ में एक तीर से दो निशाने साधने का प्रयास किया है। तीर एक एफ. डी. आई. की मंजूरी । निशाने दो -एक तो कोयला घोटाले की आग दब गई। दूसरा- अमेरिका को संदेश दिया गया कि उसके यहां से प्रकाशित टाइम पत्रिका का आकलन गलत है। सरकार के मुखिया, मंत्री व कांग्रेस हाईकमान निर्णय लेने में समर्थ है। खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश को मंजूर किया। कई अन्य क्षेत्रों के द्वार खोल दिए। अब तो मानों कि सरकार नकारा नहीं है। यदि सक्रियता प्रदर्शित करने के ये कारण थे, तो उसकी सार्थकता पर विचार करना चाहिए। कोयले के दाग मिटना असम्भव है। टू-जी की भांति ये भी सप्रंग के दामन पर स्थायी रूप से रहेंगे। केन्द्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिन्दे ने भी माना है कि उन्होंने कोयले के दाग मिटने की बात हंसी में कही थी। इसी प्रकार वालमार्ट के बल पर विकास का सब्जबाग दिखाना भी बेमानी है। इसके द्वारा किसानों की उन्नति , उघोगों का विकास, रोजगार में बढ़ोत्तरी के सभी दावे छलावा है। खुदरा में विदेशी पूंजी निवेश करने वाले विदेशी व्यापारी अपना हित ही पूरा करेंगे। प्रारम्भ में वह लोगों को आर्कषित करने के लिए छूट दे सकते है। लेकिन एकाधिकार बढ़ाने के साथ ही वह असली रंग दिखाने लगेंगे। उन्हें विश्व में जहां से सस्ता सामान मिलेगा। वही से लाकर भारत कांे गोदाम बनाऐगे। यहां डीजल आदि महंगे हो रहे है। खेती की लागत बढ़ रही है। खाद की किल्लत रहती है। सिंचाई सुविधापर्याप्त नहीं। बाढ़ा राहत में व्यापक भ्रष्टाचार है। किसानों की बदहाली बालमार्ट दूर नहीं कर सकते। चीन का सस्ता सामान ही वह भारत में लाऐगा। भारत को उघोगो पर इसका बहुत प्रतिकूल प्रभाव होगा। वालमार्ट पूरे विश्व में अब तक मात्र बीस लाख लोगों को रोजगार दे सका। भारत में करोड़ों को रोजगार कहां से देगा। जो सरकार दावा कर रही है। उल्टे असंगठित क्षेत्र में लगे करोड़ो खुदरा व्यापारी बेरोजगारों की श्रेणी में आ जाएगे।
इस प्रकार के निर्णय देश और समाज के हित में नहीं है। सरकार सोच सकती है कि उसने अन्य समस्याओं से ध्यान हटाया है। लेकिन उसकी प्रतिष्ठा नहीं बढ़ी। सरकार में चैदह मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप है। ले दे कर तणमूल के नेता बेदाग थे। वह फिर भी बाहर हुए। सरकार में किस प्रकार के लोग बचे है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। आय से अधिक सम्पति के आरोप पर सी. बी. आई. जांच का सामना कर रहे लोग सरकार को बचाने का काम करेंगे। सरकार बच सकती है, लेकिन जन सामान्य के प्रति सत्ता की सवंेदनशीलता नहीं बचा सकी। सरकार सुरक्षित रह सकती है, लेकिन उसके निर्णय से राष्ट्रीय हित सुरक्षित रहेंगे, इस पर सन्देह है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
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Posted on 15 September 2012 by admin
समय आ गया है अब यह निर्णय हो ही जाना चाहिऐ कि आखिर आरक्षण कितनी बार एक ही व्यक्ति को दिया जाये। पहले शिक्षा में, फिर नौकरी में, फिर प्रमोशन में, फिर और बड़े प्रमोशन में जब तक सीनियर जूनियर न हो जाये। यह सिलसिला चालू रहे और हमारा संविधान के प्रदत्त अधिकार प्रतिष्ठा और अफसर की समता जब तक समाप्त न हो जाये। आखिर क्या हमने बाबा साहब अम्बेडकर के नेतृत्व में बने संविधान को इसीलिऐ अंगीकृत किया था। क्या आज के तथा कथित आकाओं का विश्वास संविधान के निर्माता द्वारा मूल भावनाओं से डिग गयी है?
सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कर्मियों को जून 1995 से प्रोन्नति में आरक्षण देने का प्रस्ताव है। मानसून सत्र में जो विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया था उसमें इसका उल्लेख है। विधेयक में कहा गया है, यह भी जरूरी है कि संविधान के अनुच्छेद 16 के प्रस्तावित परिच्छेद (4 ए) को तभी से प्रभावी माना जाए जबसे यह परिच्छेद मूल रूप में पेश किया गया था। वह तिथि 17 जून 1995 है। इसका अर्थ यह हुआ कि यह प्रावधान वर्ष 1995 की उस तिथि से प्रभावी माना जाएगा जब एससी और एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण के लिए संविधान संशोधन किया गया था। अब यह संविधान संशोधन विधेयक कम से कम शीतकालीन सत्र तक के लिए लटक गया है। समाजवादी पार्टी व शिव सेना के विरोध और कोयला घोटाले के मुद्दे पर भाजपा के तेवर को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि अगले सत्र में भी यह पारित हो पाएगा। वर्ष 1995 में 77वां संविधान संशोधन किया गया था। उसमें एक नया परिच्छेद (4 ए) को जोड़ा गया था जिससे सरकार प्रोन्नति में आरक्षण का प्रावधान करने में सक्षम हुई थी। बाद में वर्ष 2001 में 85वें संविधान संशोधन के जरिए एससी और एसटी समुदाय के प्रत्याशी को आरक्षण प्रावधान के परिणाम स्वरूप वरीयता देने का प्रावधान किया गया। इस संविधान संशोधन की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने एम नागराज के मामले में फैसला दिया कि संबंधित राज्य हर मामले में ऐसा किस कारण से मजबूर होकर किया गया यह बताने कहा। यह भी कहा कि प्रोन्नति में आरक्षण का प्रावधान करने से पहले पिछड़ापन, प्रतिनिधित्व की कमी और कुल मिलाकर ऐसे उम्मीदवार की प्रशासनिक कार्यक्षमता के बारे में बताएं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के आधार पर राजस्थान और इलाहाबाद हाई कोर्ट दो राज्यों में प्रोन्नति में आरक्षण खत्म कर दिया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी इन दोनों हाई कोर्ट के फैसले को मान लिया। उसी के बाद यह संविधान संशोधन की तैयारी है।
सियासी दाव पेच में उलझा आरक्षण का जिन्न कितने बार इस देश को डसेगा श्याम बाबू के शब्दों में कहाॅ जाकर रूकेगा आरक्षण यह सिलसिला ? आजादी के बाद से लागू आरक्षण व्यवस्था कम होने के बजाय इसका दायरा निरन्तर बड़ता जा रहा है। मात्र दस वर्षो से लागू इस व्यवस्था का कोई अन्त होता भी हाल फिलहाल नजर नही आ रहा है। सुप्रिम कोर्ट के प्रमोशन में आरक्षण को रद्द करने के फैसले के बावजूद सरकार फिरसे इसे बहाल करने की कोशश कर न्याय व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगा रही है। संविधान निर्माता डाॅ0 भीमराव अंबेडकर और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जातियों का भेद मिटाने और सभी तरह के आरक्षण को धीरे-धीरे खत्म किए जाने के हिमायती थे। संविधान निर्माताओं ने सरकार को समाज के एक ऐसे तबके को आगे करने के लिए आरक्षण का विवेकाधिकार दिया था, जो बरसों से पीछे था। पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रहा्रण्यम का कहना है कि सरकार की नीति संविधान के अनुच्छेद 14 की मूल भावना के भी खिलाफ है। संविधान का यह अनुच्छेद कानून के सामने हर नागरिक को समान अधिकार देता है। अगर संविधान में बदलाव भी होता है तो इस बात की पूरी गुंजाइस है कि सुप्रीम कोर्ट इस संशोधन को संविधान की मूल भावना के खिलाफ मानते हुए रद्द कर सकता है। इस कथन के साथ सहमति जताते समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेन्द्र चैधरी ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा प्रोन्नति में आरक्षण लागू करने को मंजूरी देना अनुचित और सामाजिक न्याय के सिद्वान्त के सर्वथा विपरीत है। सर्वोच्च न्यायालय ने 27 अप्रैल 2012 के अपने फैसले में उत्तर प्रदेश में बसपा सरकार के आदेशों को असंवैधानिक करार दिया था। इसको संविधान संशोधन द्वारा पलटने की तैयारी के गम्भीर परिणाम होगें। उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी प्रारम्भ से ही प्रोन्नति में आरक्षण का विरोध करती रही है। मुलायम सिंह याद ने केन्द्र सरकार को इस सम्बन्ध में चेताया था कि वह सामाजिक विषमता और असंतोष को बढ़ाने का काम न करें। प्रोन्नति में आरक्षण से जहां प्रशासनतंत्र में शिथिलता आएगी वही सामाजिक सद्भाव पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा। इससे सामान्य व पिछड़ें वर्गो के कार्मिकों को मनोबल गिरेगा और वे संविधान प्रदत्त समानता के अधिकार से वंचित हो जाएंगे। चैधरी ने कहा कि यह विधेयक संसद में पास नही होगा। यदि हो भी गया तो सुप्रीम कोर्ट इसे फिर रद्द कर सकता है। चिन्तक और वरिष्ठ पत्रकार निरंकार सिंह के शब्दांे में
यह बात बिल्कुल साफ है कि आरक्षित और गैर आरक्षित दोनेां तबको द्वारा एक ही स्तर की निर्धारित परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात समान पद पर नियुक्ति प्राप्त होती है तो उसके पश्चात सभी सरकारी वर्ग के सेवक हो जाते है। इन सेवकों में भेद और विभेद करना और उन्हें जन्मजाति कारणांे से सीनियर को रोक कर जूनियर को सीनियर बना देने की परिकल्पना प्राकृतिक न्याय के और सामाजिक न्याय के सर्वथा विपरीत है। सरकारी सेवाओं में प्रोन्नति का आधार कार्यशैली गुणवत्ता और अनुभव आदि मापदण्ड जो निर्धारित हमारे संविधान के अन्तर्गत किये गये उन्हें हटा कर संविधान संशोधन के माध्यम से नये नियमों को लागू करने से देश बट जायेगा। वैसविक करण के इस युग में जब तमाम विकसित देश जाति और देश की सीमाओं को तोड़ कर प्रतिभाओं का इस्तेमाल कर रहे है तो ऐसे किसी विधेयक का ध्क्या औचित्य हो सकता है जो देश को पीछे ले जाये।
सुप्रीम कोर्ट कें तीन फैसले
इंदिरा साहनी मामला
16 नवम्बर 1992 को इंदिरा साहनी मामले में सुनाए गए निर्णय में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने स्पष्ट व्यवस्था दी थी कि संविधान के अनुच्छेद 16 (4) के अंतर्गत नौकरी की शुरूआत में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उम्मीदवारों को आरक्षण दिया जा सकता है, मगर पदोन्नति के लिए इसका विस्तार नही किया जा सकता।
नागराज मामला
19 अक्टूबर 2006 को एम. नागराज में भी अपना निर्णय देते हुए सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ ने साहनी मामले पर दिए गए निर्णय को ही अपना आधार बनाया था। भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वाईएस सभरवाल की अध्यक्षता वाली इस संविधान पीठ में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रह चुके और वर्तमान राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति केजी बालाकृष्णन और भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडिया भी शामिल थे। इस संविधान पीठ ने स्पष्ट राय दी थी कि पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था संविधान के बुनियादी ढांचे और इसके अनुच्छेद 16 में दिए गए समता के अधिकार के खिलाफ है। एम. नागराज मामले मंे संविधान पीठ द्वारा दिए गए निर्णय में भी आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तक सीमित रखे जाने, इन वर्गो के संपन्न तबके की अवधारण, पिछड़ेपन और अपर्याप्त प्रतिनिधित्व जैसे अपरिहार्य कारणों की अनिवार्यता का उल्लेख किया गया था। संविधान पीठ का मानना था कि इस व्यवस्था के बिना संविधान मंें दिया गया समान अवसर का उद्देश्य ही नष्ट हो जाएगा। इसके अलावा संविधान पीठ का यह भी मानना था कि राज्य अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण को व्यवस्था किए जाने हेतु कतई बाध्य नही है। इसकें बावजूद यदि कोई राज्य अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए ऐसी कोई व्यवस्था करना चाहता है, तो उसे इस वर्गो के पिछड़ेपन और सरकारी नौकरी में इनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आंकड़े प्रस्तुत करने होंगे तथा अनिश्चित काल तक के लिए आरक्षण विस्तार नही किया जा सकता, यह भी सुनिश्चित करना होगा।
अप्रैल 2012 का फैसला
उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार द्वारा अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को पदोन्नति में आरक्षण एि जाने के प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट ने तीसरी बार खारिज कर दिया, क्योंकिम सुप्रीम कोर्ट द्वारा मांगे गए इन वर्गो के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने के जाति आधारित आंकड़े मायावती सरकार कोर्ट में प्रस्तुत नही कर सकी थी। न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की पीठ ने कहा कि हम इस दलील को स्वीकार करने को तैयार नही है, क्यांेकि जब संविधान के प्रावधान कुछ शर्तो के साथ वैध माने गए है, सरकारी के लिए आवश्यक है कि वह इसे आगे बढ़ाए और अमल करे ताकि संशोधनों को परखा जा सके और वह निर्धारित मानदंडों पर खरा उतर सके। इस मामले में कर्मचारियों के एक वर्ग ने उत्तर प्रदेश सरकार के कर्मचारियांे की वरीयता संबंधी नियम 1991 की धारा 8ए के प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी थी।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग केग उपाध्यक्ष का ने यह आरक्षण तो एससी और एसटी को संविधान के तहत पहले से ही मिलता रहा है। आरक्षण नीति संविधान के अनुरूप चल रही थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नागराज मामले मंे निर्णय देकर कहा कि एससी और एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण नही मिलना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले पर मुहर लगा दी थ्की। इस फैसले से हम लोग हतप्रभ रहे है दरअसल, न्यायालय अपनी सीमाओं को लांघ रहा है। कोर्ट भी कई दफा अपनी सीमा कूे पार जाकर, इस तरह का फैसला सुना देता है। जिससे समाज के एक वर्ग को धक्का लगता है और उनके हितों को भारी नुकसान पहंुचता है। एससी और एसटी सबसे पिछड़ास समाज है। आज भी देश के हर कोने में बसने वाले गांवां में अमीरों और गरीबों की अलग-अलग बस्तियां बनी हुई है। सबसे गरीब समाज होने के कारण हमेशा से इनके साथ उचित व्यवहार नही हुआ। जब न्यायालय इस तरह के फैसले करता है, तो विशेषकर सबसे गरीब तबके को ठोस पहुंचाती है। अभी भी सरकारी नौकरियों में जो प्रमोशन में आरक्षण एससी और एसटी को मिला हुआ है, वह मात्र 2 से 3 प्रतिशत है। जो कि काफी कम है। इसके बाद भी न्यायालय ने इसे भी देने से मना कर दिया। आखिर दबे और कुचले समाज के साथ इतनी नाइंसाफी क्यांे?
नौकरियो में कितना ‘पिछड़ापन’
सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी सेवाओं में पदोन्नति मंें आरक्षण की व्यवस्था को खारिज करते हुए सरकार से पूछा था कि वह बताए कि देशों में नौकरी कर रहे अनुसूचित जाति और जनजाति के पिछड़ेपन का आंकड़ा कितना है, जिसके आधार पर प्रमोशन में रिजर्वेशन की मांग की जा रही है। लेकिन सरकार अब तक यह नही बता पाई है कि इस बारे में आंकड़ा क्या है। आरक्षण लागू किए जाने से जातियों का पिछड़ापन कितना दूर हुआ है और कितने लोगों ने इसका फायदा उठाया है, इसे लेकर सरकार ने आज तक कोई ठोस अध्ययन नहीं करवाया है। इसी प्रश्न में कई राज छिपे है। माया सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को अपना जवाब इस लिए नही दिया था क्योंकि उनकी सरकार के समय उत्तर प्रदेश के टाप पोस्टों पर सबसे अधिक अधिकारी तैनात थे। तब वह किस आधार पर सच से मुॅह चुराती रही और उसी का परिणाम यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुॅचा जहाॅ से हुए फैसले ने मायावती के चुनावी आधार को ही तहस-नहस कर डाला इसे फिरसे आधार देने के लिये कांग्रेस से तालमेल करती नजर आई लेकिन समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के स्पष्ट रुख के कारण सरकारी बिल अटकता नजर आ रहा है। सवाल बिल अटके या लटके से बड़ा सवाल मुलायम सिंह यादव ने जो उठाया है कि सीनियर को जूनियर किस आधार पर कर सकते है। इसे कैसे स्वीकार किया जा सकता है? क्या इससे वैमनस्यता का खतरा पैदा होगा? इन सवालों के जवाब खोजने की जगह कांगे्रस ने अतिउत्साह में जो बिल पेश किया उसका हश्र कांग्रेस के लिए आने वाले दिनांे में किस तरह मिलता है यह तो वक्त ही बतायेगा लेकिन इतना तय है कि समाजवादी पार्टी प्रमोशन में आरक्षण के मामले में आगामी चुनाव में मुद्दा बनाकर सड़कांे पर ले जाएगी।
-सुरेन्द्र अग्निहोत्री
ए-305, ओ.सी.आर. बिल्डिंग
विधानसभा मार्ग, लखनऊ
मो0ः9415508695
Posted on 15 September 2012 by admin
भाषाई समाचार पत्रों के सम्पादकों के संगठन हिन्दी समाचार पत्र सम्मेलन द्वारा आगामी 15 सितम्बर को हिन्दी मीडिया सेण्टर गोमती नगर में भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री मार्कण्डेय काटजू का सम्मान समारोह एवं ’’मीडिया में बढती एकाधिकारी प्रवृत्ति’’ विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन सुबह 11 बजे से किया जायेगा। हिन्दी समाचार पत्र सम्मेलन की महामंत्री सुश्री सुमन गुप्ता ने बताया कि कार्यक्रम मंे प्रदेश सरकार के कई वरिष्ठ मंत्री, विभिन्न समाचार पत्रों के माननीय सम्पादक गण, वरिष्ठ पत्रकार एवं वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित रहेंगे। इस सम्बन्ध में कार्यक्रम के तैयारी की समीक्षा बैठक आज हिन्दी मीडिया सेण्टर में हिन्दी समाचार पत्र सम्मेलन के अध्यक्ष उत्तम कुमार शर्मा की अध्यक्षता तथा महामंत्री सुमन गुप्ता के संचालन में समपन्न हुई। बैठक में मुख्य रुप से संगठन के संरक्षक एवं भारतीय प्रेस परिषद के सदस्य श्री शीतला सिंह जी, उपाध्यक्ष राजीव अरोड़ा, कोषाध्यक्ष प्रदीप जैन, सचिव रजा रिजवी, डा0 एस0 पी0 सिंह, आदि ने अपने विचार व्यक्त किये।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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Posted on 13 September 2012 by admin
भाषाई समाचार पत्रों के सम्पादकों के संगठन हिन्दी समाचार पत्र सम्मेलन द्वारा आगामी 15 सितम्बर को हिन्दी मीडिया सेण्टर गोमती नगर में भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री मार्कण्डेय काटजू का सम्मान समारोह एवं ’’मीडिया में बढती एकाधिकारी प्रवृत्ति’’ विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया जायेगा। हिन्दी समाचार पत्र सम्मेलन की महामंत्री सुश्री सुमन गुप्ता ने बताया कि कार्यक्रम मंे प्रदेश सरकार के कई वरिष्ठ मंत्री, विभिन्न समाचार पत्रों के माननीय सम्पादक गण, वरिष्ठ पत्रकार एवं वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित रहेंगे।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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Posted on 11 September 2012 by admin
भारत रत्न-पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 राजीव गांधी जी की जयन्ती (20अगस्त) के मौके पर उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी द्वारा भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन एवं राजीव गांधी स्टडी सर्किल लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में विश्वविधालयमहाविधालयों में ‘क्या मात्र शिक्षा सामाजिक परिवर्तन एवं राष्ट्रीय एकीकरण में सहायक है विषय पर वाद-विवाद प्रतियोगिता आयोजित किये जाने का निर्णय लिया गया था। जिसके तहत विगत 20अगस्त 2012 से ”राजीव गांधी मेमोरियल वाद-विवाद प्रतियोगिता लखनऊ विश्वविधालय के 14 कालेजों में आयोजित किया गया।
इस प्रतियोगिता के दौरान 14कालेजों में प्रतियोगिताएं आयोजित की गयी थीं, जिसमें प्रत्येक कालेज से दो-दो प्रतिभागी चुने गये। कुल मिलाकर 21छात्रछात्राएं फाइनल वाद-विवाद प्रतियोगिता में पहुंचे। फाइनल वाद-विवाद प्रतियोगिता एवं पुरस्कार वितरण कार्यक्रम आज लखनऊ विश्वविधालय के डी.पी.ए. सभागार में आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता राजीव गांधी स्टडी सर्किल के नेशनल कोआर्डिनेटर प्रो0 पी.सी.व्यास ने किया तथा मुख्य अतिथि के रूप में पदमश्री प्रो0 मसूद हसन तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में उ0प्र0 कांग्रेस कमेटी की निवर्तमान अध्यक्ष एवं विधायक प्रो0 श्रीमती रीता बहुगुणा जोशी एवं पूर्व शिक्षा मंत्री डा0 अम्मार रिजवी मौजूद रहे।
कार्यक्रम का संचालन उ0प्र0 कांग्रेस कमेटी की प्रवक्ता शबनम पाण्डेय तथा जेएनपीजी कालेज के वाइस प्रिंसिपल श्री विनोद चन्द्रा ने किया।
इस प्रतियोगिता में विजयी प्रतिभागियों क्रमश: सुश्री हिमानी लखनऊ विश्वविधालय को प्रथम पुरस्कार के रूप में 11हजार रूपये, सुश्री मोनिका गुप्ता, अवध गल्र्स डिग्री कालेज को द्वितीय पुरस्कार के रूप में 7हजार रूपये एवं सुश्री रूचिका सिंह, अवध गल्र्स डिग्री कालेज को तृतीय पुरस्कार के रूप में 5हजार रूपये आने वाले विजयी प्रतिभागियों केा क्रमश: प्रथम पुरस्कार के रूप में 11हजार रूपये, द्वितीय पुरस्कार के रूप में 7हजार रूपये, तृतीय पुरस्कार के रूप में 5 हजार रूपये तथा 6 अन्य विजयी प्रतिभागियों को सांत्वना पुरस्कार के रूप में 1000-1000 रूपये क्रमश: अविकल्पा राय सिंह जेएनपीजी कालेज, कविता सिंह जेएनपीजी, एकता सिंह लखनऊ विश्वविधालय, ज्योति कुमार गुरूनानक गल्र्स कालेज, ज्योत्सना उपाध्याय गुरूनानक गल्र्स कालेज तथा दिव्या राय नवयुग गल्र्स कालेज को राजीव गांधी स्टडी सर्किल के नेशनल कोआर्डिनेटर प्रो0 पी.सी.व्यास द्वारा प्रदान किया गया।
इस मौके पर उ0प्र0 कांग्रेस कमेटी के पदाधिकारीगण, विश्वविधालय एवं महाविधालयों के शिक्षक एवं विधार्थीगण उपसिथत थे। जिसमें मुख्य रूप से राष्ट्रीय महिला कांग्रेस की उपाध्यक्ष श्रीमती मुर्शरफ चौधरी, प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता डा0 हिलाल नकवी एवं श्री जीशान हैदर, कै0 एस.जे.एस. मक्कड़, श्री अरशद, श्री अमित पाण्डेय आदि मौजूद रहे। इसके साथ प्रो0 सतीश राय वाराणसी, प्रो0 ए.चटर्जी लखनऊ वि0वि0, डा0 अवधेश त्रिपाठी लखनऊ वि0वि0, डा0 राजेश तिवारी एवं डा0 डी0के0 त्रिपाठी मौजूद रहे।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
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Posted on 04 September 2012 by admin
शिक्षक समाज के वास्तविक निर्माता:-
5 सितम्बर को एक बार फिर सारा देश भारत के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन का जन्मदिवस ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाने जा रहा है। सारा देश मानता है कि वे एक विद्वान दार्शनिक, महान शिक्षक, भारतीय संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ व्याख्याकार तो थे ही साथ ही एक सफल राजनयिक के रूप में भी उनकी उपलब्धियों को कभी भुलाया नहीं जा सकता। डाॅ. राधाकृष्णन अपनी बुद्धिमत्तापूर्ण व्याख्याओं, आनंदमयी अभिव्यक्ति और हँसाने, गुदगुदाने वाली कहानियों से अपने छात्रों को प्रेरित करने के साथ ही साथ उन्हें अच्छा मार्गदर्शन भी दिया करते थे। ये छात्रों को लगातार प्रेरित करते थे कि वे उच्च नैतिक मूल्यों को अपने आचरण में उतारें। उनकी मान्यता थी कि यदि सही तरीके से शिक्षा दी जाए तो समाज की अनेक बुराइयों को मिटाया जा सकता है। इस प्रकार किसी भी देश के वास्तविक निर्माता उस देश के शिक्षक होते हैं और एक विकसित, समृद्ध और खुशहाल देश व विश्व के निर्माण में शिक्षकों की भूमिका ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है।
‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के प्रबल समर्थक थे डाॅ. राधाकृष्णन:-
डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने ब्रिटेन के एडिनबरा विश्वविद्यालय में दिये गये अपने व्याख्यान में कहा था कि ‘‘मानव को एक होना चाहिए।……अब देशों की नीतियों का आधार विश्व शांति की स्थापना का प्रयत्न करना होना चाहिए।’’ वास्तव में डाॅ. राधाकृष्णन ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की अवधारणा को मानने वाले थे। पूरे विश्व को एक इकाई के रूप में रखकर शैक्षिक प्रबंधन के पक्षधर डाॅ. राधाकृष्णन अपने ओजस्वी एवं बुद्धिमत्ता पूर्ण व्याख्यानों से छात्रों के बीच अत्यन्त लोकप्रिय थे। अतः अब वह समय आ गया है कि हमें विश्व भर के बच्चों की शिक्षा का एक सा पाठयक्रम बनाकर उन्हें विश्व शांति एवं विश्व एकता की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जाये। संसार भर के बच्चों को यह शिक्षा दी जानी चाहिए कि हम समस्त संसार वासियों का ईश्वर एक है, धर्म एक है तथा सम्पूर्ण मानव जाति एक ही परमात्मा की संतान है। यह सारी धरती एक कुटुम्ब तथा एक देश है और हम सब इसके नागरिक हैं।
एक प्रिन्सपल का अपने शिक्षकों के नाम पत्र:-
द्वितीय विश्व युद्ध के समय हिटलर के यातना शिविर से जान बचाकर लौटे हुए एक अमेरिकी स्कूल के प्रिन्सिपल ने अपने शिक्षकों के नाम पत्र लिखकर बताया था कि उसने यातना शिविरों में जो कुछ अपनी आँखों से देखा, उससे शिक्षा को लेकर उसका मन संदेह से भर गया। प्रिन्सिपल ने पत्र में लिखा:
‘‘प्यारें शिक्षकों, मैं एक यातना शिविर से जैसे-तैसे जीवित बचकर आने वाला व्यक्ति हूँ। वहाँ मैंने जो कुछ देखा, वह किसी को नहीं देखना चाहिए। वहाँ के गैस चैंबर्स विद्वान इंजीनियरों ने बनाए थे। बच्चों को जहर देने वाले लोग सुशिक्षित चिकित्सक थे। महिलाओं और बच्चों को गोलियों से भूनने वाले काॅलेज में उच्च शिक्षा प्राप्त स्नातक थे। इसलिए, मैं शिक्षा को संदेह की नजरों से देखने लगा हूँ। आपसे मेरी प्रार्थना है कि आप अपने छात्रों को ‘मनुष्य’ बनाने में सहायक बनें। आपके प्रयास ऐसे हो कि कोई भी विद्यार्थी दानव नहीं बनें। पढ़ना-लिखना और गिनना तभी तक सार्थक है, जब तक वे हमारें बच्चों को ‘अच्छा मनुष्य’ बनाने में सहायता करते हैं।’’
शिक्षा सामाजिक बुराइयों को दूर करने का सबसे कारगर उपाय:-
डाॅ. राधाकृष्णन सामाजिक बुराइयों को हटाने के लिए शिक्षा को ही कारगर मानते थे। डाॅ. राधाकृष्णन केवल किताबी ज्ञान एवं जानकारियों को ही शिक्षा न मानते हुए व्यक्ति के बौद्धिक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक विकास को भी शिक्षा का अभिन्न अंग मानते थे। वे कहते थे कि शिक्षा का मुख्य कार्य प्रत्येक नागरिक के मन में लोकतांत्रिक भावना व सामाजिक मूल्यों की स्थापना करना है। उनके अनुसार शिक्षा का उद्देश्य करुणा, प्रेम और श्रेष्ठ परम्पराओं का विकास करना है। हमारा मानना है कि प्रत्येक बच्चे को सर्वोत्तम भौतिक शिक्षा के साथ ही साथ उसे एक सभ्य समाज में रहने के लिए सर्वोत्तम सामाजिक शिक्षा तथा एक सुन्दर एवं सुरक्षित समाज के निर्माण के लिए बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय लेने के लिए सर्वोत्तम आध्यात्मिक शिक्षा की भी आवश्यकता होती है क्योंकि सामाजिक ज्ञान के अभाव में जहाँ एक ओर बच्चा समाज को सही दिशा देने में असमर्थ रहता है तो वहीं दूसरी ओर आध्यात्मिक ज्ञान के अभाव में वह गलत निर्णय लेकर अपने साथ ही अपने परिवार, समाज, देश तथा विश्व को भी विनाश की ओर ले जाने का कारण भी बन जाता है।
विद्यालय: बौद्धिक जीवन के देवालय:-
डाॅ. राधाकृष्णन कहते थे कि विद्यालय गंगा-यमुना के संगम की तरह शिक्षकों और छात्रों के पवित्र संगम की तरह है। उनका कहना था कि बड़े-बड़े भवन और साधन सामग्री उतने महत्वपूर्ण नहीं होते, जितने कि शिक्षक। वे कहते थे कि विद्यालय जानकारी बेचने की दुकान नहीं बल्कि ऐसे तीर्थस्थल हैं जिनमें स्नान करने से व्यक्ति की बुद्धि, इच्छा और भावना का परिष्कार और आचरण का संस्कार होता है। उनके अनुसार विद्यालय बौद्धिक जीवन के देवालय हैं। वे कहते थे कि जब तक शिक्षक शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होता और शिक्षा को एक मिशन नहीं मानता तब तक अच्छी व उद्देश्यपूर्ण शिक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए एक शिल्पकार एवं कुम्हार की भाँति ही स्कूलों एवं उसके शिक्षकों का यह प्रथम दायित्व एवं कत्र्तव्य है कि वह अपने यहाँ अध्ययनरत् सभी बच्चों को इस प्रकार से संवारे और सजाये कि उनके द्वारा शिक्षित किये गये सभी बच्चे ‘विश्व का प्रकाश’ बनकर सारे विश्व को अपनी रोशनी से प्रकाशित करें।
शिक्षकों के श्रेष्ठ मार्गदर्शन द्वारा ही धरती पर ईश्वरीय सभ्यता की स्थापना संभव:-
डाॅ. राधाकृष्णन सन् 1962 में भारत के राष्ट्रपति बनें। उस समय राष्ट्रपति का वेतन 10 हजार रूपये मासिक था लेकिन उन्होंने भारत के प्रथम राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद के गौरवशाली परम्परा को कायम रखते हुए केवल 2,500 रूपये ही प्रतिमाह वेतन लेकर शेष राशि प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय राहत कोष में जमा करते रहे। इस प्रकार भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक गुणों से ओतप्रोत शिक्षकों के द्वारा ही समाज में व्याप्त बुराईयों को समाप्त करके एक सुन्दर, सभ्य एवं सुसंस्कारित समाज का निर्माण किया जा सकता है। सर्वपल्ली डा0 राधाकृष्णन ऐसे ही महान शिक्षक थे जिन्होंने अपने मन, वचन और कर्म के द्वारा सारे समाज को बदलने की अद्भुत मिसाल प्रस्तुत की। अतः आइये, शिक्षक दिवस के अवसर पर हम सभी डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को शत्-शत् नमन करते हुए उनकी शिक्षाओं, उनके आदर्शों एवं जीवन-मूल्यों को अपने जीवन में आत्मसात् करके एक सुन्दर, सभ्य, सुसंस्कारित एवं शांतिपूर्ण समाज के निर्माण के लिए प्रत्येक बालक को टोटल क्वालिटी पर्सन बनाने का संकल्प लें।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com
Posted on 11 August 2012 by admin
उनकी तुरबत पर नहीं है एक भी दीया,
जिनके खूं से जलते है ये चिराग-ए-वतन।
जगमगा रहे हैं मकबरे उनके,
बेचा करते थे जो शहीदों के कफन।
परतन्त्रता की बेड़ीयों से मुक्त कराने के लिये बुन्देलखण्ड के रणबाकुरे स्वतंत्रता सेनानियों ने इन्दौर, इलाहाबाद, कानपुर, लाहौर और अण्डमान निकोबार द्वीप की जेलों में यातनाऐं सहकर आजादी की दीप शिखा को जलाये रखा। इन्दौर में होलकर के खिलाफ प्रजा मण्डल के माध्यम से जंग-ऐ-आजादी की लड़ार्इ ललितपुर जनपद के ननौरा ग्राम के निवासी पंडित बालकृष्ण अगिनहोत्री एवं उनके छोटे भार्इ प्रेम नारायण ने लड़ी तो पंडित परमानन्द ने राठ से चलकर अण्डमान की जेलों तक आजादी का बिगुल फूका लेकिन इन्ही सबके बीच एक सहयोगी की भूमिका निभाने वाला ललितपुर का परमानन्द मोदी जीवन के अनितम पड़ाव पर अपनी पहचान के लिये दर-दर की ठोकरे खाने को मजबूर है। स्वधीनता सेनानियों ने अपना खून पसीना बहाकर आजादी तो दिलार्इ लेकिन इस आजादी ने स्वधीनता सेनानियों को ही भूला दिया। आजादी की लड़ार्इ में जिले के परमानंद स्वधीनता सेनानी का दर्जा तक नही दिया गया। उम्र के अनितम दौर पर पहुंच चुके स्वाधीनता सेनानी ने अंतत: हताश होकर राष्ट्रपति को मर्म स्पर्शी प्रार्थना पत्र भेजकर अपनी व्यथा को बताया है।
किराये के घर में रहकर आर्थिक तंगी के थपेड़े झेल रहे स्वधीनता सेनानी परमानंद मोदी की कड़क आवाज से अब भी उनके जोश का अंदाजा लग जाता है, लेकिन जिस आजादी की खातिर उन्होंने न्यौछावर कर दिया उस आजादी ने उन्हें स्वधीनता सेनानी तक का दर्जा नही दिया। गृह मंत्रालय के एक पत्र ने उनके सपनों को तार-तार कर दिया। वाकया पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर 1985 मेें विज्ञापित हुए एक विज्ञापन से जुड़ा है। जिसके द्वारा किन्ही कारणों से स्वधीनता संग्राम सेनानी होने का दर्जा पाने से वंचित करने का मौका दिया गया था। आवेदन की अंतिम तिथि 30 जून 1985 मुकर्रर की गयी थी। सेनानी ने अपना आवेदन 18 जून को ही रजिस्डर्ड डाक द्वारा भेज दिया था, जो गृह मंत्रालय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डिवीजन गृह मंत्रलाय में 25 जून को ही पहुंच गया था। इसके उपरांत भारत सरकार के सचिव ने पत्रांक नम्बर 32882455-एन 2 के माध्यम से बताया कि 28 जुलार्इ 85 को प्राप्त आवेदन पत्र में स्वधीनता संग्राम सेनानी की मान्यता का सपना झूलता रह गया। स्वधीनता सेनानी का तो यहां तक कहना है कि उनसे एक कार्यालय मेंं धन की मांग की गयी थी। पूरा कर पाने मंें असमर्थ रह पाने के चलते ही उनकी आखिरी ख्वाहिश अपूर्ण रह गयी।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परमानंद मोदी पुत्र नंदलाल मोदी हाल निवासी सरदारपुरा ललितपुर किसी परिचय के मोहताज नही है। वह जिस उम्र में आजादी की लड़ार्इ में कूदे थे, उस उम्र मेंं बच्चे खेलने कूदने मेंं ही व्यस्त रहते है। मोदी ने पहले गांधी के आंदोलनों में काम किया, इसके बाद वह नेताजी सुभाष चंद बोस की आजादी हिंद फौज मेंं जुट गये। सन 1942 मेंं बनारस युनीवर्सिटी बंद हो गयी थी। वहां से गुलाबचंद ललितपुर मेंं आये थे। उन्होेंने आंदोलन को गति देने के उददेश्य से परमानंद मोदी को डाकखाना जलाने का काम सौंपा था। अलावा इंगलैण्ड में निर्मित कपड़े को बेचने वाले दुकानदार की दुकान में भी आग लगाने का काम मोदी ने किया था। जो भी दायित्व सौंपा गया वह एक पर एक दायित्व निभाते चले गये। रात मेंं पैम्फलेट छपवाने मेंें सहयोग के अलावा चिपकाने का कार्य भी परमानंद मोदी के जिम्मे था। मोदी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथगोला बनाकर कोतवाली ललितपुर पर फेका था। इस सम्बंध मेंं वह दो बार पकड़े गये। इतनी पिटार्इ हुर्इ कि वह बेहोश तक हो गये थे। बाद में वरिष्ठ साथियों के सुझाव के चलते वह एक वर्ष के लिए भूमिगत हो गये। लगातार जंगलों मेंं खाक छानते रहे, फिर भी आजादी का जज्बा नहीं गंवाया। वह आजादी के लिए स्वधीनता संग्राम सेनानियों तक संदेश पहुंचाने का कार्य करते रहे। 1942 में ही कमिश्नरी झांसी पर तिरंगा झण्डा चढ़ाने वाले सेनानी को अंग्रेजों ने गोली मार दी थी। इस गोली ने झण्डा फहराने वाले सेनानी को मौत की नीद सुला दिया था। वहीं छर्रे निकलकर परमानंद मोदी के बाये पैर मंें भी लगे थे। जिनके चिन्ह आज भी उनके पांव मेंं बने हुए है। उस समय चिकित्सालय मंें दाखिल होकर इलाज कराना सम्भव नहीं था। इस वजह से मोदी अपनी रिश्तेदारी मेंं भाग गये। देशी इलाज के द्वारा उनके पाव ठीक हुए परमानंद मोदी ने राष्ट्रपति को भेजे ज्ञापन मेंं बताया कि उन्होंने कभी भी सरकार के ऊपर अतिरिक्त बोझ रखने का निर्णय नहीं लिया। यही वजह है कि वह स्वधीनता संग्राम मेंं अहम भूमिका निभाते रहे। इसके बावजूद भी इस कार्य के बदले किसी किस्म का लाभ हासिल करना उन्होंने मुनासिब नही समझा। लेकिन जब 1985 मेंं विज्ञापन प्रकाशित हुआ तब मोदी को लगा कि उम्र के पड़ाव को देखते हुए आवेदन करना ही उचित है, लेकिन सरकारी मशीनरी की खराबी के चलते उनका आखिरी सपना भी टूटकर बिखर गया। हर जगह उन्हें अपने स्वधीनता संग्राम सेनानी होने की पहचान बतानी पड़ रही है।उनके पास केवल स्मृतियां व फिरंगियाें द्वारा शरीर दिये गये जख्म ही शेष रह गये है। इसके अलावा कुछ भी साथ नही है। परमानंद मोदी के पास आजादी हिंद फौज द्वारा जारी 15 अगस्त 1947 का वह सिक्का भी है जो केवल आजाद हिंद फौज के सिपाहियां को ही दिया गया था। इस सिक्के मेंं अविभाज्य भारत का नक्शा बना हुआ है। परमानंद मोदी को स्वधीनता सेनानी होने के किसी साक्ष्य की जरूरत नही है, लेकिन जिस तरह की जरूरतें सरकारी मशीन द्वारा बतायी जा रही है, उनकी सुन-सुनकर बूढ़े मन को काफी ठेस पहुंचती है। वह बोझिल मन से कहते है कि इस तरह के राज्य की तो उन्होेंने कल्पना तक नहीं की थी। जिस आजादी के लिए उन्हाेंने दिन रात भूखे प्यासे रहकर संघर्ष किया, उस आजादी ने उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहंुंचने के पश्चात भी ठुकराने का कार्य किया। वह बताते है कि स्वधीनता संग्राम से जुड़ी निशानियों को अपने साथ रखेंगे। मोदी के अधिकांश साथी दिवंगत हो चुके है, वह भी मोदी को स्वधीनता सेनानियों के समान दिलाने के लिए संघर्ष करते रहे, लेकिन कही से भी कोर्इ उम्मीद की किरण दिखायी नही पड़ी। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बृजनंदन किलेदार, अहमद खां, बृजनंदन शर्मा, मथुरा प्रसाद वैध के अलावा हरीकृष्ण देवलिया ने भी मोदी के स्वधीनता संग्राम सेनानी होने का प्रमाण पत्र दिया है।
वक्त ने किये इतने सितम।
हमदम न रहे ।
बात करे तो किससे करें।
अपने ही जब हो बेरहम।।
एक आंख मोतियाबिंद के कारण कमजोर हो गयी है। सेनानी ने लिखा कि कमाना हिम्मत से बाहर है। भीख मांगना भी बस की बात नही है। उन्होंने बताया कि वह हर तरफ से निराश हो चुके है। पिछले एक माह से लगातार बीमार है। भोजन की व्यवस्था भी बड़ी मुशिकल से हो पाती है। इस हाल मेंं वह क्या करें, राष्ट्रपति ही सही मार्ग बताकर उनकी बोझिल बन चुकी जिदंगी को उम्मीद की किरणें दिखायें यह सोच-सोच कर अपने दिन काट रहे है।
-सुरेन्द्र अगिनहोत्री
ए-305, ओ.सी.आर. बिलिडंग
विधानसभा मार्ग, लखनऊ
मो0: 9415508695
Posted on 24 July 2012 by admin
सब सुख रहे तुम्हारी सरना तुम रक्षक प्रभु काहॅू का डरना - संकटमोचन नाम तुम्हारा श्री हनुमान चालीसा की यह प्रसिद्ध चैपाई देश-विदेश में रह रहे सभी हिन्दू भली-भांती जानते है भाव से गाते है और सुख पाते है। लगभग 8 वर्ष से यूपीए सरकार का हर मंत्री सांसद जानता रहा कि जैसे अध्यात्मिक जगत में श्री हनुमान जी संकटमोचन कहलाते है। वैसे ही यहां यूपीए-2 की दिनों दिन अपनी प्रतिष्ठा गवांती संयुक्त प्रगतीहिन गठबंधन की सरकार पर आया हर संकट प्रणव दादा ही निपटाते रहे ऐसा ही होता भी रहा है अभी तक परन्तु अब उनकी भूमिका बदली है वह तो 5 वर्ष तक महामहिम राष्ट्रपति कहलायेंगे परन्तु उनके बिना 5 दिन भी कांग्रेस संकटो से नही बच पाई।
राजनीति के माहिर खिलाड़ी राकांप के प्रमुख शरदपवार ने महामहिम राष्ट्रपति के चुनाव में कांग्रेस की जीत का मजा किरकिरा कर दिया । चुनाव के अंतिम समय ऐसी गेंदबाजी की कि दिल्ली से लेकर महाराष्ट्र तक में कांग्रेस हाथ ऊपर उठाए रक्षात्मक मुद्रा में नजर आ रही है। नवनिर्वाचित महामहिम राष्ट्रपति प्रणव दादा का 25 जुलाई को शपथ ग्रहण समारोह होना है। व्यक्तिगत रूप से प्रणव दादा उनका पूरा परिवार खुशी मना रहा है मनानी भी चाहिए। परन्तु कांग्रेस के लिए यह खुशी मनाने के साथ-साथ सावधानी बरतने जैसा साबित हो रहा है। सभी जानते है राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन श्रीमती सोनिया गांधी के विदेश मूल के मुद्दे पर ही हुआ था। मशहूर कहावत है राजनीती के बारे में यहां कोई स्थाई दोस्त या दुश्मन नही हुआ करता। वही हुआ भी भाजपा-शिवसेना गठजोड़ का मुकाबला करने मे कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी दोनो ही असहाय पड़ रही थी तभी दोनो साथ-साथ आये और परिणाम स्वरूप महाराष्ट्र मे सत्तारूढ दल बने। शरद पवार का कहना है वो पावरफूल है उनके तथा उनके साथियों के साथ बराबर का व्यवहार नही किया जा रहा है। शरद पवार ने भी ठान लिया है कि वे साबित कर देंगे कि वे कोई सर्कस के शेर नही है। उधर राष्ट्रपति चुनाव के लिए देशभर मे मतदान चल रहा था इधर श्रीमती सोनिया गाॅधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पवार साहब से बात कर रहे थे। उनसे मिलने का समय तय किया जा रहा था। सोनिया-पवार मुलाकात हुई परन्तु बेनतीजा सी रही। इसी क्रम मे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को दिल्ली आने का अपना कार्यक्रम भी रद्द करना पड़ा। यानि तनाव -तनाव-तनाव- आनन-फानन भरा रहा कांग्रेस के लिए यह समय। अब राजनीती के उठा-पठक में दरअसल शरद पवार और उनका दल अपनी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को हाशिये पर धकेले जाने का कोई पूर्वानुमान नही लगा पाया। मुलायम सिंह के कारण ममता बनर्जी को तथाकथित कोने में धकेले जाने के बाद कांग्रेस अब अन्य के भी होश ठिकाने लगाने में लग गई । यह स्वाभाविक भी था उठा-पठक की माहीर कांगे्रस समय-समय पर उठक-बैठक करती भी है और आय से अधिक की सम्पत्ति रखने वाले नेताओं को कराती भी है। करती तब है जब कोई बड़ा चुनाव जीतवाना होता है। बताते चले आज से लगभग पाॅच साल पहले जब ठीक ऐसा ही माहौल था राष्ट्रपति चुनाव को लेकर तब श्रीमती सोनिया गांॅधी ने उत्तर प्रदेश की अब तत्कालिन मुख्यमंत्री मायावती से स्वयं उनके आवास पर भेंट की और अपनी प्रत्याशी वर्तमान महामहिम प्रतिभा देवी पाटिल के लिए समर्थन मांगा। तब मायावती जी जो मोल भाव की माहिर है ने श्रीमती गाॅधी से पहले ताज कॅारिडोर की जाॅच जो महामहिम टी0 वी0 राजेश्वर की अनुमति के लिए पड़ी थी उसको समाप्त कराने का सौदा किया साथ ही साथ आय से अधिक की सम्पत्ति की जाॅच की आॅच को भी ठण्डे बस्ते में डालने का भरोसा लिया। पहले सौदा मंजूर होगा तब समर्थन का ऐलान होगा। वैसा ही हुआ तत्कालिन महामहिम ने मायावती जी के खिलाफ लम्बित जाॅच जिसकी सस्तुंति उस समय के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह जी ने स्वयं की थी को अपर्याप्त मानते हुए खारिज कर दिया। ठीक अगले दिन वादे के अनुसार मायावती जी ने राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी प्रतिभा पाटिल के समर्थन का ऐलान किया। उसके बाद तो मानो भ्रष्टाचार के सारे रिर्काड़ मायावती जी तोड़ते चली गई । पूरे पाॅच सालों तक लाखों-करोड़ांे रूपयो के भ्रष्टाचार के आरोंपो का सामना मायावती जी को करना पड़ा। देश का कभी उत्तम प्रदेश कहे जाने वाला उत्तर प्रदेश तबाही के कागार पर पहुॅच गया। इस बार भी कांग्रेस ने आय से अधिक की सम्पत्ति की जाॅच जो मा0 सर्वोच्चय न्यायलय मे लम्बित थी को लचर पैरवी के कारण खारिज करने की स्थिति तक पहुॅचाया और बदले में बहन जी का समर्थन पाया। देश के सामने जीत के लिए भ्रष्टाचार को फलने-फूलने देने की बैठके जारी है। अब महाराष्ट्र मंे दो घोटालों के उद्देश्य परक खुलासे से शरद पवार के मन में कोने में धकेले जाने का ख्याल क्यों आया है ? क्या कांग्रेस को खुद को कोने में धकेले जाने का अहसास हुआ है? क्या उसका चेहरा शर्म से लाल हुआ है कि उसने एक हथियारों के सौदागर को रक्षा सौदे की फाइलें दिखा दी ? इन विचित्र घटनाओं का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि सरकार ने लोकतंत्र व सभ्य शासन की घुरी यानी शर्म हया से पूरी तरह पल्ला झाड़ लिया है। सी0 बी0 आई0 के सम्पूर्ण क्षय पर सरकार को जरा भी शर्म नही आती। यह इस बात से सिद्ध हो जाता है कि पवार के विद्रोह की खबर आने के बाद ट्विटर पर अनेक टिप्पणीयाॅ आई जिसमें सम्भावना जाताई गई है कि अब राकांपा नेता के दरवाजे पर सी0 बी0 आई0 दस्तक देने ही वाली है। राष्ट्रपति चुनाव की शपथ तो 25 जुलाई को होनी है लेकिन एफ0डी0आई0 का विरोध करने की शपथ मुलायम सिंह ने पहले ही खा ली। मुलायम सिंह के इस निर्णय से आर्थिक सुधारो की गति तेज करने की केन्द्र सरकार की तैयारियों को करारा झटका लगा है। सप्रंग सरकार समाज वादी पार्टी के समर्थन से कुछ आर्थिक उड़ान भरने की सोच ही रही थी उसमें सपा ने विरोध कर उसकी हवा निकाल दी। वह एफ0डी0आई0 के विरोध में उतर आयी है। जब राहुल गाॅधी की नई भूमिका को लेकर कांग्रेसी उत्साहित दिख रहे थे ऐन वक्त पर मुलायम सिंह ने विरोध का दाॅव चल दिया। सपा प्रमुख के इस बयान को शरद पवार, ममता व मुलायम के बीच बन रहे गठजोड़ से जोड़कर भी देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री को लिखे उनके पत्र की टाईमिंग भी महत्वपूर्ण है। राष्ट्रपति चुनाव में समर्थन की कीमत केन्द्र की थैली खुलवाकर वसूल चुके सपा प्रमुख ने फिर पैतरा बदल दिया है। उल्लेखनीय है कि मुलायम सिंह जी ने वाम मोर्चे और जद एस के साथ मिलकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है जिसमें रिटेल में एफ0डी0आई0 को मंजूरी न देने का आग्रह किया गया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी इसके खिलाफ है । वह पहले ही इसके विरोध मे अपनी आवाज बुलंद कर चुकी है। सपा ने समर्थन के ऐवज में खुब हाथ साफ किया जैसे 60 हजार करोड़ का विशेष पैकेज प्रदेश के इतिहास में केन्द्र से मिलने वाला सबसे बड़ा पैकेज। वर्षो से लम्बित सरयू नहर परियोजना के लिए अलग से धन राशी। सरयू घाघरा नहर परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित कराना बुंदेलखण्ड के लिए लगभग 2 हजार करोड़ का अलग से पैकेज देने का वादा जो जल्द ही मंजूर हो जाएगा। चैकाने वाली बात यह है कि प्रदेश सरकार ने केन्द्र योजना आयोग को 51 हजार करोड़ का प्रस्ताव दिया था बाद मे इसे बढ़ाकर 56 हजार करोड़ किया गया मिला 1 हजार करोड़ और बढ़ा कर यानि 57 हजार करोड़। प्रणव दादा के खिलाफ चुनाव लड़े पी0ए0 संगमा ने अपनी हार को स्वीकारते हुए प्रणव मुखर्जी को बधाई दी। संगमा का आरोप है कि चुनाव प्रक्रिया अत्यंत भेदभाव पूर्ण थी और गैर सप्रंग राज्यों से समर्थन जुटाने के लिए पैकेज , प्रलोभनों और धमकियों का इस्तेमाल किया गया। नतीजे आने के बाद सवांददाता सम्मेलन में राष्ट्रपति चुनाव के लिए चुनाव आचार संहिता तैयान करने की मांग की है। गैर सप्रंग राज्यों को आर्थिक पैकेज के जरिए लुभाने के मसले को भी उन्होंने जोर-जोर से उठाया। जहाॅ हर संकट को हल करने में माहिर प्रणव मुखर्जी के विकल्प की तालाश कांग्रेस के लिए आसान नही होगी कही लोकप्रियता के मामले में डा0 राजेन्द्र प्रसाद, एस0 राधाकृष्णन और ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसे राष्ट्रपतियों की राह पर आगे बढ़ने की चुनौती प्रणव दादा के सामने भी होगी।
नरेन्द्र सिंह राणा
मो0-09415013300
लेखक उ0 प्र0 भाजपा के मीडिया प्रभारी है।
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com
Posted on 25 May 2012 by admin
‘Only a person with qualities of integrity and transparency can be unanimously elected as the President of India’
— Jagdish Gandhi, educationist & former MLA, U.P.
Former MLA from Uttar Pradesh and renowned educationist Dr Jagdish Gandhi has said that only a person who upholds the Constitution of India and promotes the Indian culture of Vasudhaiv Kutumbkam can be unanimously elected as the President of India. Describing the qualities required to be the President of India in a press note issued today, the former MLA also said that integrity and transparency are the prime and foremost prerequisites for the President of India as his office is the highest constitutional office in India. Since the chair of the President happens to be the supreme constitutional post, it is needed that the next candidate for such chair has already disclosed his assets and not availed any monetary or other benefits from Central Government or any state government for himself or any of his family members and relatives
Dr Gandhi stated that our nation has varied religions that incorporate people of different religions dwelling in it, therefore the person chosen for this highly respected post, the President, must be one who has devoted one’s entire life for sacred works like religious unity and social unity and also promotes religious harmony among all great religions of the globe. Hence, we need that President who has global perception and who can lead the entire humanity to a new era for the safety, integrity and peace in all the nations of the world by perceiving worldwide conundrums. He said that it should be the prime concern while selecting the President that ‘What kind of a person the President should be’ rather than ‘who should be’. Infact, the life of the next President should be an open book who is indulged in religious unity, social upliftment and service to mankind with honesty, transparency and full enthusiasm.
Dr Gandhi further said that the Article 51 of Indian Constitution clearly indicates that the State shall endeavour to promote (a) International peace and security (b) maintain just and honourable relations between nations (c) foster respect for international law and (d) encourage settlement of international disputes by arbitration. Therefore, the future President of India should be such a person who upholds the spirit of Article 51 of Indian Constitution, our great culture and custom ‘Vasudhaiv Kutumbkam’, establishes world unity among all the nations of the world and with honestly and see through endeavour retains the position of India as the ‘Jagat Guru’.
Expressing concern over the state of world today due to the problems of global warming, international terrorism, arms race and stockpiling of nuclear weapons of mass destruction, fear of complete annihilation etc, Dr Gandhi said that any one country can no longer counter these problems alone. Therefore, we need such a President who efforts sincerely to form World Parliament, World Government and World Judiciary having enforceable international law and motivates all the nations to join hands for solving global problems and sorting out various setbacks that whole humanity is facing. We have to find a way to engage all the countries to join hands together in taking effective measures to manage these problems jointly along with other major issues that the whole of humanity is facing.
Dr Gandhi said that President of India cannot ignore the problems of the world. India needs a President who will not over look the problems of the world and focus only on national issues but a President who will lead India to motivate all the nations of the world to work together in solving problems that are of serious concern to the entire humanity. We need a President who can give us a compelling vision for a new future, a vision of better country and a better world which is safer for all the children of the world as well as generations yet-to-be-born.
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com
Posted on 14 May 2012 by admin
— Dr Bharti Gandhi, renowned educationist and Founder-Director, CMS
Today’s World Unity Satsang organized at City Montessori School, Gomti Nagar auditorium had been about ‘Life and Death’ the eternal truth of mankind. Speaking on the occasion, Founder-Director of CMS and renowned educationist, Dr Bharti Gandhi said that the soul is the light of the body. As the sun illumines the earth, the soul is the God gifted light which enlightens and illumines the body. Dr Bharti Gandhi said that after death secret is not revealed by God because the soul happens to be in immense bliss when its freed from the body and if anybody knows it then no one would like to live in this world. We must do good work by our hands, reach His door by legs, praise Him by our month and listen His prayers by our ears, so that our soul reaches higher and higher to enlightenment and gets attainment. She further said that in Islam also seventh heaven is mentioned where we would not have body parts and the good deeds done here will alone save us from sufferings. When the soul is about to leave, the life cycle reels over in the eyes of the departing soul. Good deeds showcase goodness and give happiness whereas bad deeds gives pain but then there will be no time to apologies. Hence, we must always do good works to make our leaving time easy and after death time blissful.
Speaking at the Satsang, senior journalist, Mr Veer Vikram Bahadur Mishra said that the mother’s nature is like God’s. The children do immense mistakes, but the mother for sure gives them good and water whenever they need. Likewise the God pardons our mistakes. Mr Mishra quoted Kabir, ‘When we are born the world laughed and we wept, do such deeds that at the time of departing, we laugh and the world weeps’. King or popper, whosever comes, will definitely go. The God sent us to develop our soul. All the epics of any language, are our path finders and following its words, we can make our living worth. Islamic follower Mr A H Abdi said that the first and the last page of our life’s book is definite. If we write the in between pages with honesty and pure heart than our last page will be the best. Mr U B Singh said that all religions have customs after death to develop soul. Mr Ajay Singh also expressed his divine feelings and the Satsang came to an end with Mrs Sharda Devi’s bhajan.
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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