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बी.एस.पी. द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति-दिनांक 09.11.2018

Posted on 09 November 2018 by admin

(1) देश की जनता में बहुचर्चित व इनके लिये अति-दुखःदायी ’’नोटबन्दी’’ के सम्बन्ध में जो-जो फ़ायदे केन्द्र की बीजेपी सरकार ने यहाँ की सवासौ करोड़ जनता को गिनाये थे उनमें से किसी भी घोषित उद्देश्यों की आज दो वर्ष बाद भी पूर्ति नहीं होने पर बीजेपी सरकार लोगों से माफी माँगे।
(2) तथ्य व आँकड़ें गवाह हैं कि काफी अपरिपक्व तरीके से व काफी आपाधापी में देश की जनता पर ज़र्बदस्ती थोपे गये ’’नोटबन्दी’’ की आर्थिक इमरजेन्सी से वह कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ है जिसका दावा सरकार ने इसको लागू करते समय किया था
ऽ आर्थात् ’’नोटबन्दी’’ देश व यहाँ की जनता के लिये बीजेपी के अन्य वायदों की तरह ही पूरी तरह से एक और धोखा ही साबित हुआ है।
(3) इसके अलावा, केन्द्र की बीजेपी सरकार द्वारा विभिन्न संवैधानिक व स्वायत्तशासी संस्थाओं से अनावश्यक टकराव का हठीला रवैया भी त्यागने की सख्त ज़रूरत है क्योंकि इन कारणों से देश को लगातार अपूर्णीय क्षति हो रही हैः बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व सांसद सुश्री मायावती जी।

नई दिल्ली, 09 नवम्बर 2018 : देश में 500 व 1,000 रूपये की ’’नोटबन्दी’’ के सम्बन्ध में जो-जो फ़ायदे केन्द्र की बीजेपी सरकार ने यहाँ की सवासौ करोड़ से अधिक आमजनता को गिनाये थे उनमें से किसी भी घोषित उद्देश्यों की आज दो वर्ष पूरे होने के बाद भी पूर्ति नहीं होने पर लोगों से माफी माँगने की माँग करते हुये बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व सांसद सुश्री मायावती जी ने कहा कि बीजेपी की देश में पहली बनी पूर्ण बहुमत की सरकार जनहित व जनकल्याण के लगभग हर महत्वपूर्ण मामले में घोर विफलताओं के कारण पूर्ण रूप से ’’वादाखिलाफी की सरकार’’ के रूप में ही हमेशा याद की जायेगी।
देश की जनता में बहुचर्चित व इनके लिये अति-दुखःदायी साबित होने वाली ’’नोटबन्दी’’ की आर्थिक इमरजेन्सी के दो साल पूरे होने पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये सुश्री मायावती जी ने कहा कि बीजेपी मंत्रियों की भ्रामक व मिथ्या प्रचार वाली बयानबाजियों को छोड़कर जितने भी तथ्य व आँकड़े मौजूद हैं वे सभी यह चीख-चीख कर बता रहे हैं कि काफी अपरिपक्व तरीके से पूरी आपाधापी में देश की जनता पर ज़र्बदस्ती थोपे गये ’’नोटबन्दी’’ से वह कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ है जिसका दावा सरकार ने इसको लागू करते समय काफी बड़बोले तौर पर किया था अर्थात् ’’नोटबन्दी’’ देश व यहाँ की जनता के लिये बीजेपी के अन्य वायदों की तरह ही एक पूरी तरह से और धोखा ही साबित हुआ है।
जहाँ एक तरफ इस ’’नोटबन्दी’’ ने सर्वसमाज के तमाम मेहनतकाश व ईमानदार लोगों की कमर तोड़ दी है तथा रोजगार आदि का काफी ज्यादा बुरा हाल किया है, तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी एण्ड कम्पनी के तमाम चहेतों ने इसी बहाने अपने-अपने कालेधन को विभिन्न उपायों के माध्यम से बैंकों में जमा करके उसे सफेद कर लिया है, यह जनता खुली आँखों से देख रही है। इतना ही नहीं बल्कि स्वंय बीजेपी ने भी पार्टी के तौर पर देशभर में अकूत सम्पत्ति अर्जित कर ली है, यह भी जनता की नजर में है।
सुश्री मायावती जी ने कहा कि विदेशों से कालाधन देश में वापस लाकर देश के हर गरीब परिवार के प्रत्येक सदस्य को 15 से 20 लाख रूपये देने, किसानों की आत्महत्या रोकने व उन्हें कर्ज की अदायगी नहीं कर पाने पर जेल भेजने आदि से मुक्ति दिलाने आदि के साथ-साथ देश के सवासौ करोड़ ग़रीबों, मजदूरों, किसानों, बेरोजगारों, युवाओं व महिलाओं आदि के ’अच्छे दिन’ लाने का सुनहरा सपना दिखाकर वोटों के स्वार्थ की राजनीति करने वाली बीजेपी अपनी सरकार के दौरान व्यापक जनहित व जनकल्याण का ऐसा कोई भी काम नहीं कर पायी है जिससे लोगों का जनजीवन थोड़ा बेहतर होकर उनके जीवन में बेहतर परिवर्तन आया हो, बल्कि इसके विपरीत बीजेपी सरकार की गरीब, मजदूर व किसान-विरोधी नीतियों, गलत कार्यप्रणाली व अहंकारी रवैये से समाज के हर वर्ग का जीवन पहले से कहीं ज्यादा त्रस्त व दुःखी हुआ है, जिससे आमजन में व्यापक आक्रोश का व्याप्त होना स्वाभाविक ही है जो अब धीरे-धीरे उचित समय पर लगातार उजागर भी हो रहा है, जो कि देश की भलाई व यहाँ के लोकतंत्र के लिये काफी शुभ संकेत माना जा रहा है।
साथ ही स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार थोपी गई जबर्दस्त ’’नोटबन्दी’’ की आर्थिक इमरजेन्सी एक व्यक्ति की अपनी मनमानी व अहंकार का नतीजा थी, आज यह कटू सत्य भी देश व दुनिया के सामने प्रकट है। इसीलिये इसे अपरिपक्व तरीके से लागू किये जाने के घोषित परिणाम अब तक नहीं आ पाये हैं और ना ही शायद कभी आ ही सकते हैं। इसलिये बीजेपी सरकार को अपना अहंकार त्यागकर देश की जनता से इस आर्थिक इमरजेन्सी व राष्ट्रीय त्रास्दी के लिये खुले दिल से माफी माँग लेनी चाहिये, यह बी.एस.पी. की माँग है ताकि इस सम्बन्ध में आवश्यक सुधार का रास्ता थोड़ा साफ हो सके।
इसके अलावा केन्द्र की बीजेपी सरकार द्वारा विभिन्न लोकतांत्रिक, संवैधानिक व स्वायत्तशासी संस्थाओं से अनावश्यक टकराव का हठीला रवैया भी त्यागने की सख्त ज़रूरत है क्योंकि इन सब कारणों से देश को लगातार अपूर्णीय क्षति हो रही है तथा इससे आमजनहित भी काफी ज्यादा प्रभावित हो रहा है। कुल मिलाकर देश में लोकसभा आमचुनाव से पहले केन्द्र की बीजेपी सरकार तमाम गलत कारणों से सुर्खियों में बनी हुई है जिससे देशहित बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है और वर्तमान हालात में इसके लिये बीजेपी की सरकार विपक्षी पार्टियों को भी नहीं कोस सकती है क्योंकि यह सब इनके अपने गलत कर्मों का ही फल हैं।

जारीकर्ता :
बी.एस.पी. केन्द्रीय कार्यालय
4, गुरूद्वारा रकाबगंज रोड,
नई दिल्ली - 110011

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बी.एस.पी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति-दिनांक 20 अक्टूबर, 2018

Posted on 20 October 2018 by admin

(1) बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व सांसद सुश्री मायावती जी की ओर से श्री नारायण दत्त तिवारी के पार्थिव शरीर पर आज यहा पुष्पांजलि अर्पित करके उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित।
(2) इस अवसर पर उनके लम्बे राजनीतिक जीवन के दौरान किये गये उनके अच्छे कार्यों का स्मरण किया गया।
(3) साथ ही, पंजाब के अमृतसर में कल रात हुये दर्दनाक रेल हादसे में दशहरा मनाने गये लगभग 60 लोगों की हुई मौत पर गहरा दुःख व संवेदना व्यक्त तथा घटना के लिये दोषियों को सख्त से सख्त सजा देने की माँग।
(3) इसके अलावा बिना पूर्व सरकारी अनुमति के इस प्रकार के आयोजनों पर हर जगह तत्काल रोक लगा देनी चाहिये ताकि ऐसी दुःखद व दर्दनाक घटनाओं की पुनरावृत्ति आगे ना हो पाये : बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व सांसद सुश्री मायावती जी।

नई दिल्ली, 20 अक्तूबर, 2018 : बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व सांसद सुश्री मायावती जी की ओर से आज यहाँ श्री नारायण दत्त तिवारी के पार्थिव शरीर पर पुष्पांजलि अर्पित करके उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई और उनके लम्बे राजनीतिक जीवन के दौरान किये गये उनके अच्छे कार्यों का स्मरण किया गया।
श्री तिवारी तीन बार उत्तर प्रदेश के और एक बार उत्तर प्रदेश से अलग होकर नवसृजित उत्तराखण्ड राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। सुश्री मायावती जी की ओर से आज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव व राज्यसभा सांसद श्री सतीश चन्द्र मिश्र ने यहाँ उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
उल्लेखनीय है कि काफी लम्बी बीमारी के बाद श्री तिवारी जी का 93 वर्ष की उम्र में नई दिल्ली के एक अस्पताल में निधन हो गया था। उनके पार्थिव शरीर को लखनऊ के बाद उत्तराखण्ड राज्य में अन्तिम संस्कार के लिये ले जाया जायेगा।
इसके साथ ही, कल रात दशहरा के मौके पर पंजाब प्रान्त के अमृतसर में हुये दर्दनाक रेल हादसे में दशहरा मनाने गये लगभग 60 लोगों की हुई मौत पर गहरा दुःख व संवेदना व्यक्त करते हुये सुश्री मायावती जी ने कहा कि इस प्रकार की गंभीर लापरवाहियों के लिये दोषियों को सख्त से सख्त सजा जरूर दी जानी चाहिये।
मृतकों के परिवारों को रेलवे तथा पंजाब सरकार दोनों की ओर से समुचित अनुग्रह राशि दिये जाने की माँग करते हुये उन्होंने कहा कि बिना पूर्व सरकारी अनुमति के इस प्रकार के आयोजनों पर हर जगह तत्काल रोक लगा देनी चाहिये ताकि ऐसी दुःखद व दर्दनाक घटनाओं की पुनरावृत्ति आगे कहीं भी ना हो पाये। ऐसी घटनाओं से पूरे देश का माहौल ग़म व दर्द में बदल जाता है इसलिए हर प्रकार के उपाय करके इस प्रकार की दर्दनाक घटनाओं को रोका जाना चाहिये।

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प.पू. सरसंघचालक डॉ. श्री मोहन जी भागवत के श्री विजयादषमी उत्सव 2018 (गुरुवार दिनांक 18 अक्तूबर 2018) के अवसर पर दिये गये उद्बोधन का सारांष

Posted on 18 October 2018 by admin

प्रास्ताविक :
इस वर्ष की विजयादषमी के पावन अवसर को संपन्न करने के लिये हम सब आज यहाँ पर एकत्रित है। यह वर्ष श्रीगुरुनानक देव जी के प्रकाश का 550 वाँ वर्ष है। अपने भारतवर्ष की प्राचीन परम्परा से प्राप्त सत्य को भूलकर, आत्मविस्मृत होकर जब अपना सारा समाज दम्भ, मिथ्याचार, स्वार्थ तथा भेद की दलदल में आकण्ठ फँस गया था और दुर्बल, पराजित व विघटित होकर लगातार सीमा पार से आने वाले क्रूर विदेशी असहिष्णु आक्रामकों की बर्बर प्रताड़नाओं को झेलकर तार-तार हो रहा था, तब श्रीगुरुनानक देव जी ने अपने जीवन की ज्योति जलाकर समाज को अध्यात्म के युगानुकूल आचरण से आत्मोद्धार का नया मार्ग दिखाया, भटकी हुई परम्परा का शोधन कर समाज को एकात्मता व नवचैतन्य का संजीवन दिया। उन्हीं की परम्परा ने हमको देश की दीन-हीन अवस्था को दूर करने वाले दस गुरुआें की सुन्दर व तेजस्वी मालिका दी।
उसी सत्य व प्रेम पर स्थापित सर्वसमावेशी संस्कृति के, देश में विभिन्न महापुरुषों के द्वारा समय-समय पर पुरस्कृत व प्रवर्तित, देश काल परिस्थिति के अनुरूप प्रबोधन के सातत्य का परिणाम है कि जिनके जन्म का यह 150वाँ वर्ष है ऐसे महात्मा गाँधी जी ने इस देश के स्वतंत्रता आन्दोलन को सत्य व अहिंसा पर आधारित राजनीतिक अधिष्ठान पर खड़ा किया। ऐसे सभी प्रयासों के कारण देश की सामान्य जनता स्वराज्य के लिए घर के बाहर आकर, मुखर होकर अंग्रेजी दमनचक्र के आगे नैतिक बल लेकर खड़ी हो गयी। एक सौ वर्ष पहले अमृतसर के जलियाँवाला बाग में स्वराज्य के लिये तथा ”रौलेट कानून“ के अन्याय व दमन के विरुद्ध संकल्पबद्ध, चारों ओर से घेरकर जनरल डायर के नेतृत्व में जिन्हें गोलीबारी का शिकार बनाया गया, उन हमारे सैकड़ों निहत्थे देशबांधवों के त्याग, बलिदान व समर्पण का स्मरण भी इस नैतिक बल को हम में जागृत करता है।
इस वर्ष के इन औचित्यपूर्ण संस्मरणों का उल्लेख इसलिए आवश्यक है कि स्वतंत्रता के 71 वर्षों में हमारे देश ने उन्नति के कई आयामों में एक अच्छा स्तर प्राप्त कर लिया है, परन्तु सर्वांगपरिपूर्ण राष्ट्रीय जीवन के और भी कई आयामों में अभी हमें बढ़ना है। हमारे देश के विश्व में सुसंगठित, समर्थ व वैभव-सम्पन्न बन कर आगे आने से जिन शक्तियों के स्वार्थ-साधन का खेल समाप्त या अवरुद्ध हो जाता है, वे शक्तियाँ तरह-तरह के कुचक्र चलाकर देश की राह में रोड़े अटकाने से बाज नहीं आयी हैं। कई चुनौतियों को हमें अभी पार करना है। हमारे पूर्वज महापुरुषों द्वारा स्वयं के जीवन के उदाहरण से, उपदेश से जो सत्यनिष्ठा, प्रेम, त्याग, पवित्रता व तपस् के आदर्श समाज में स्थापित व आचरण में प्रवर्तित किये गये, उन्हीं पर चलकर हम इस कार्य को कर सकेंगे। देश के परिदृश्य पर थोड़ा गौर करने पर वहाँ चले हुए धूप-छाँव के खेल में यही बोध दृष्टिगत होता है।

देश की सुरक्षा
किसी भी देश के लिए उस देश की सीमाओं की सुरक्षा तथा अंतर्गत सुरक्षा की स्थिति विचार का विषय पहला रहता है क्योंकि इनके ठीक रहने से ही देश की समृद्धि व विकास के लिए प्रयास करने हेतु अवकाश व अवसर उपलब्ध होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के तानों-बानों को ठीक से समझकर अपने देश की सुरक्षा-चिन्ताओं से उनको अवगत कराना व उनका सहयोग समर्थन प्राप्त करना यह भी सफल प्रयास हुआ है। पड़ोसी देशों सहित सब देशों से शांतिपूर्ण व सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बनाने बढ़ाने की अपनी इच्छा, वाणी व कृति को कायम रखते हुए, देश के सुरक्षा संदर्भ में जहाँ आवश्यक वहाँ दृढ़ता से खड़े व अड़े रहना तथा साहसपूर्ण पहल करके अपने सामर्थ्य का विवेकी उपयोग करना यह भी अपना रुख सेना, शासन व प्रशासन ने स्पष्ट दिखाया है। इस दृष्टि से अपनी सेना तथा रक्षक बलों का नीति धैर्य बढ़ाना, उनको साधन-सम्पन्न बनाना, नयी तकनीक उपलब्ध कराना आदि बातों का प्रारम्भ होकर उनकी गति बढ़ रही है। दुनिया के देशों में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ने का यह भी एक कारण है।
साथ-साथ ही सुरक्षा बलों, रक्षक बलों तथा उनके परिवारों के योगक्षेम की व्यवस्था पर ध्यान बढ़ाना आवश्यक है। इस दिशा में कुछ अच्छे प्रयास शासन के द्वारा हुए हैं। उन को लागू करने की गति कैसे बढ़ सकती है इस पर विचार करना आवष्यक है। सैनिक अधिकारी व नागरिक प्रशासकीय अधिकारी, गृहमंत्रालय, सुरक्षा मंत्रालय, अर्थ मंत्रालय आदि अनेक विभागों में से इन योजनाओं का विचार व अमल होना प्रषासकीय दृष्टि से अनिवार्य है। इन बलों के कार्य का तथा उस कार्य के लिए प्राणों तक की बाजी लगा देने की तैयारी का इन विभागों के सब व्यक्तियों के मन में समान सम्मान व संवेदना रहे यह स्वाभाविक अपेक्षा चर्चा में सुनाई देती है। यह अपेक्षा जितनी शासन से व प्रशासन से है उतनी ही समाज से भी है, यह प्रत्येक देशवासी को ध्यान में रखना चाहिए। सीमा पार तथा आवश्यकतानुसार देश के अंदर भी समाज की सुरक्षा के लिए जूझनेवाले अपने बंधु अपने परिवार की सुव्यवस्था व सुरक्षा के बारे में निश्चिन्त होकर अपना काम कर सकें यह आवश्यक है। अभी पश्चिम सीमापार के देश में हुए सत्तापरिवर्तन से हमारे सीमा पर तथा पंजाब, जम्मू व कश्मीर जैसे राज्यों में चली उसकी प्रकट अथवा छुपी उकसाऊ गतिविधियों में कोई कमी आने की न अपेक्षा थी, न वैसा हुआ है।
अंतर्राष्ट्रीय घटनाचक्र के परिप्रेक्ष्य में सागरी सीमा की सुरक्षा एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण विषय बना है। मुख्यभूमि से लगे सागरी क्षेत्र में कम अधिक दूरी पर भारत में अंतर्भूत सैकड़ों द्वीप हैं। अन्दमान निकोबार द्वीप समूह सहित ये सभी द्वीप सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थानों पर स्थित हैं। उनकी निगरानी व्यवस्था तथा सुरक्षा की दृष्टि से वहाँ की व्यवस्था का सबलीकरण यह अतिशीघ्रता से ध्यान देकर पूर्ण करने का विषय है। सागरी सीमा व द्वीपों पर ध्यान देनेवाली नौसेना तथा अन्य बल इन में आपसी तालमेल, सहयोग व साधनसंपन्नता पर शीघ्र अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। भू तथा सागरी सीमावर्ती क्षेत्र में रहनेवाले अपने बंधु कई सीमाविशिष्ट परिस्थितियों का सामना करते हुए भी धैर्यपूर्वक डटे रहते आये हैं। उनकी वहाँ व्यवस्था ठीक रहे तो आतंकी घुसपैठ, तस्करी आदि समस्याओं को कम करने में वे सहायक भी हो सकते हैं। उनको समय-समय पर उचित राहत मिले, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि की व्यवस्था उन तक पहुँचती रहे तथा उनमें साहस, संस्कार व देशभक्ति की उत्कटता बनी रहे, इसके लिए शासन व समाज दोनों के प्रयास अधिक बढ़ाने की आवश्यकता है।
सुरक्षा उत्पादों के मामले में देश की संपूर्ण आत्मनिर्भरता को - अन्य देशों के साथ आपसी आदान-प्रदान की उचित मात्रा रखते हुए भी - साधे बिना हम देश की सुरक्षा के प्रति आश्वस्त नहीं हो सकते। इस दिशा में देश में प्रयासों की गति बहुत अधिक होनी पड़ेगी।

आन्तरिक सुरक्षा
देश की सीमाओं की सुरक्षा के साथ ही देश में अंतर्गत सुरक्षा का विषय भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। उसके उपायों का एक पहलू केन्द्र व राज्य शासनों तथा प्रशासन के द्वारा कड़ाई के साथ कानून, संविधान तथा देश की सार्वभौम संप्रभुता को चुनौती देने वाली, हिंसक गतिविधियाँ करने वाली, देश के अन्दर तथा बाहर से प्रेरित अथवा प्रेषित मंडलियों का बंदोबस्त करना है। इसमें केन्द्र व राज्य सरकारों की तथा पुलिस व अर्धसैनिक बलों की कार्यवाई सफलतापूर्वक चली है। निरन्तर सजगता के साथ उन्हें उसको जारी रखना पड़ेगा। परन्तु ऐसी हिंसक तथा सीधे तौर पर गैरकानूनी गतिविधियों में भाग लेनेवाले लोग अपने ही समाज में से मिल जाते हैं यह वस्तुस्थिति है। उसके मूल में अपने समाज में व्याप्त अज्ञान, विकास तथा सुविधाओं का अभाव, बेरोजगारी, अन्याय, शोषण, विषमता का व्यवहार तथा स्वतंत्र देश में आवश्यक विवेक व संवेदना का समाज बड़ी मात्रा में अभाव है। उसे दूर करने में शासन-प्रशासन की भूमिका अवश्य है। परन्तु उससे बड़ी समाज की भूमिका है। समाज में इन सब त्रुटियों को दूर कर उसके शिकार हुए समाज के अपने इन बंधुओं को स्नेह व सम्मान से गले लगाकर समाज में सद्भावपूर्ण व आत्मीय व्यवहार का प्रचलन बढ़ाना पड़ेगा। समाजजीवन के इस परिष्कार का प्रारम्भ पहले स्वयं के मन मस्तिष्क के परिष्कार तथा अपने आचरण से करना होगा। समाज के सब प्रकार के वर्गों से आत्मीय व नित्य संपर्क स्थापित कर उनके सुखःदुख का भागी बनना पड़ेगा।
अनुसूचित जाति व जनजाति वर्गों के लिए बनी हुई योजनाएँ, उपयोजनाएँ ;ैनइचसंदेद्ध व कई प्रकार के प्रावधान समय पर तथा ठीक से लागू करना इस बारे में केन्द्र व राज्य शासनों को अधिक तत्परता व संवेदना का परिचय देने की व अधिक पारदर्शिता बरतने की आवश्यकता है ऐसा प्रतीत होता है। अंतर्गत सुरक्षा व्यवस्था का पहला प्रहरी देश का पुलिस बल है। उनकी व्यवस्था के सुधार की अनुशंसा भी ”पुलिस आयोग“ ने की है। अनेक वर्षों से लंबित उस अनुषंसा पर विचार व सुधार के प्रयास की आवश्यकता है।

चिंताजनक प्रवृत्तियाँ
देश को चलानेवाला व्यवस्थातंत्र तथा देश-समाज के द्वारा समाज के दुर्बल घटकों के साथ, उनके उन्नति के प्रयासों में तत्परता, संवेदनशील आत्मीयता तथा पारदर्शिता व आदरसम्मान का व्यवहार बरतने में त्रुटियाँ रह जाने से अभाव, उपेक्षा व अन्याय की मार से जर्जर ऐसे वर्गों के मन में संशय, अलगाव, अविवेक, विद्रोह व द्वेष तथा हिंसा के बीज बोना व पनपाना आसानी से संभव हो जाता है। इसी का लाभ लेकर उनको अपने स्वार्थप्रेरित उद्देश्य के लिए, देशविरोधी कृत्यों के लिए, आपराधिक गतिविधियों के लिए गोला बारूद ;ब्ंददवद विककमतद्ध के रूप में उपयोग करना चाहनेवाली शक्तियाँ उनमें अपने छल-कपट के खेल खेलती है। गत 4 वर्षों में समाज में घटी कुछ अवांछित घटनाएँ, समाज के विभिन्न वर्गों में व्याप्त नई-पुरानी समस्याएँ, विभिन्न नयी-पुरानी माँगें आदि को लेकर आन्दोलनों को एक विशिष्ट रूप देने का जो लगातार प्रयास हुआ, उससे यह बात सभी के ध्यान में आती है। आनेवाले चुनाव के वोटों पर ध्यान रखकर, सामाजिक एकात्मता, कानून संविधान का अनुशासन आदि की नितांत उपेक्षा करके चलने वाली स्वार्थी, सत्तालोलुप राजनीति तो ऐसे हथकण्डों के पीछे स्पष्ट दिखती रही है। परन्तु इस बार इन सब निमित्तों को लेकर समाज में भटकाव का, अलगाव का, हिंसा का, अत्यंत विषाक्त द्वेष का तथा देश विरोधिता तक का भी वातावरण खड़ा करने का प्रयास हो रहा है। ”भारत तेरे टुकड़े होंगे“ आदि घोषणाएँ जिन समूहों से उठीं उन समूहों के कुछ प्रमुख चेहरे कहीं-कहीं इन घटनाओं में प्रमुखता से अपने भड़काऊ भाषणों के साथ सामने आये। दृढ़ता से वन प्रदेशों में अथवा अन्य सुदूर क्षेत्रों में दबाये गये हिंसात्मक गतिविधियों के कर्ता-धर्ता व पृष्ठपोषण करनेवाले अब शहरी माओवाद ;न्तइंद छंगंसपेउद्ध के पुरोधा बनकर ऐसे आन्दोलनों में अग्रपंक्ति में दिखाई दिये। पहले छोटे-छोटे अनेक संगठनों के जाल फैलाकर तथा छात्रावास आदि में लगातार संपर्क के माध्यम से एक वैचारिक अनुयायी वर्ग खड़ा किया जाता है। फिर उग्र व हिंसक कार्यवाईयों को छोटे-बड़े आन्दोलनों में घुसाकर, अराजकता का अनुभव देकर, उन अनुयायियों में प्रशासन व कानून का डर तथा नागरिक अनुशासन का डर समाप्त किया जाता है। दूसरी ओर समाज में आपस में व स्थापित व्यवस्था व नेतृत्व के बारे में तिरस्कार व द्वेष उत्पन्न किया जाता है। ऐसी अचानक उग्र रूप लेनेवाली घटनाओं के माध्यम से समाज के सब अंगों में प्रस्थापित सभी विचारों का नेतृत्व, जो समाज व्यवस्था व नागरिक व्यवहार की भद्रता के अनुशासन से कम अधिक मात्रा में ही सही बंधा रहता है, अचानक ध्वस्त किया जाता है। नया अपरिचित, अनियंत्रित, केवल नक्सली नेतृत्व से ही बँधा हुआ अंधानुयायी व खुला पक्षपाती नेतृत्व स्थापित करना, यह इन शहरी माओवादियों की ही नव वामपंथी कार्यपद्धति है। ैवबपंस उमकपंए अन्य माध्यम तथा बुद्धिजीवियों व अन्य संस्थाओं में पहले से तथा बाद तक स्थापित इनके हस्तक ऐसी घटनाओं में, इनसे संबद्ध भ्रमपूर्ण प्रचार अभियान में, बौद्धिक व अन्य सभी प्रकार का समर्थन आदि में, सुरक्षित अंतर पर व तथाकथित कृत्रिम प्रतिष्ठा के कवच में रहकर संलग्न रहते हैं। उनके प्रचार का विषैलापन अधिक प्रभावी करने के लिए उन्हें असत्य तथा जहरीली भड़काऊ भाषा का उपयोग स्वछन्दतापूर्वक करना भी आता है। देश के शत्रुपक्ष से सहायता लेकर स्वदेशद्रोह करना तो अतिरिक्त कौशल्य माना जाता है। ैवबपंस डमकपं के इनके आशय (ब्वदजमदजद्ध व कथ्य (छंततंजपवदद्ध का उद्गम कहाँ से है यह जाँच-पड़ताल की जाय तो यह बात सामने आती है। जिहादी व अन्य कट्टरपंथी व्यक्तियों की कहीं न कहीं प्रत्यक्ष उपस्थिति भी इन सभी घटनाओं में समान बात है। इसलिए यह सारा घटनाक्रम केवल प्रतिपक्ष की सत्ताप्राप्ति की राजनीति मात्र न रहकर देशी-विदेशी भारतविरोधी ताकतों की सांठगांठ से धूर्ततापूर्वक चलाया गया कोई बड़ा षड्यंत्र है; जिसमें राजनीतिक महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति अथवा समूह जाने-अनजाने तथा अभाव व उपेक्षा में पिसने वाला समाज का दुर्बल वर्ग अनजाने व अनचाहे गोलाबारूद के रूप में उपयोग में लाये जाने के लिए खींचा जा रहा है, इस निष्कर्ष पर आना पड़ता है। सारा विषाक्त व विद्वेषी वातावरण बनाकर देश की अंतर्गत सुरक्षा का मुख्य आधार समाज के सामरस्य को ही जर्जर बनाकर ढहा देनेवाला मानसशास्त्रीय युद्ध, जिसको अपनी राजनीति-शास्त्र की परम्परा में ”मंत्रयुद्ध“ कहा गया, उसी की सृष्टि की जा रही है।
इसके निरस्तीकरण के लिए शासन-प्रशासन को सजग होकर, समाज में एक ओर ऐसी घटनाएँ न घट पायें जिनका लाभ उपद्रवी शक्तियाँ ले पावें; तथा दूसरी ओर ऐसी उपद्रवी शक्तियों व व्यक्तियों पर चौकस नजर रखकर वे उपद्रवी कार्यवाई न कर पायें यह करना पड़ेगा। धीरे-धीरे समाज का लेशमात्र भी प्रश्रय न मिलने से यह उपद्रवी तत्त्व पूर्ण शमित हो जायेंगे। प्रशासन को अपने सूचना तंत्र को भी व्यापक व सजग बनना पड़ेगा। जनहित की योजनाओं का तत्पर क्रियान्वयन करते हुए समाज के अंतिम पंक्ति तक उन योजनाओं को पहुँचाना पड़ेगा। कानून सुव्यवस्था का पालन करवाने के लिए दक्ष व कुशल होकर काम करना पड़ेगा।
परन्तु इस परिस्थिति का संपूर्ण व अचूक उपाय तभी हो सकता है जब समाज के सभी वर्गों में, बुद्धि व भावना सहित आचरण में, आपस में सद्भावना व अपनेपन का व्यवहार हो। पंथ-सम्प्रदाय, जाति-उपजाति, भाषा, प्रान्त आदि की विविधता को हम एकता की दृष्टि से देखें। वर्गविशेष की समस्या व परिस्थिति को अपना दायित्व मानकर सारा समाज मिल-बैठकर उसका न्याय व सद्भावनापूर्वक हल ढूँढे। इसलिए आपस में निरंतर आत्मीय संवाद हो सके ऐसा वातावरण अपने संपर्क व संबंधों को बढ़ाकर उत्पन्न करें। अपने जीवन व्यवहार में नागरिक अनुशासन व कानून व्यवस्था की मर्यादा का आचरण करें। इस सम्बन्ध में हमारे राजनेताओं सहित समाज के प्रत्येक व्यक्ति को पू. डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर का (25 नवम्बर 1949 का) वह प्रसिद्ध भाषण नित्य स्मरण में रखना चाहिए जिसमें वे परामर्श देते हैं कि न्याय, समता व स्वातंत्र्य की दिशा में देश का बढ़ना, राजनीतिक व आर्थिक प्रजातंत्र के साथ सामाजिक प्रजातंत्र की ओर बढ़ना, समाज में बंधुभाव के व्यापक प्रसार के बिना संभव नहीं। बिना उसके इन प्रजातांत्रिक मूल्यों की व अपनी स्वतंत्रता की भी सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। पारतंत्र्य में हमने अपनी मांगों की आवाज उठाने के लिए जो पद्धतियाँ अपनायीं वे स्वातंत्र्य की स्थिति में छोड़ देनी पडं़ेगी। हमें लोकतंत्र के अनुशासन में बैठ सकने वाली पूर्णतः संवैधानिक पद्धतियों का ही अवलम्बन करना पड़ेगा।
भगिनी निवेदिता ने भी नागरिकता की समझदारी ;बपअपब बवदेबपवनेदमेद्ध को ही स्वतंत्र देश में देशभक्ति की दैनन्दिन जीवन में अभिव्यक्ति माना है।

परिवार में संस्कार आवश्यक :
देश की राजनीति, कार्यपालिका, न्यायपालिका, स्थानीय प्रशासन, संगठन, संस्थाएँ, विशेष व्यक्ति व जनता इन सबकी इसके बारे में एक व पक्की सहमति तथा समाज की आत्मीय एकात्मता की भावना ही देश में स्थिरता, विकास व सुरक्षा की गारण्टी है। यह संस्कार नई पीढ़ी को भी शैशवकाल से ही घर में, शिक्षा में तथा समाज के क्रियाकलापों में से प्राप्त होने चाहिए। घर से नई पीढ़ी में मनुष्य के मनुष्यत्व व सच्चारित्र्य की नींवरूप सुसंस्कारों का मिलना आज के समय में बहुत अधिक महत्त्व का हो गया है। समाज के वातावरण तथा शिक्षा के पाठ्यक्रमों में आजकल इन बातों का अभाव सा हो गया है। शिक्षा की नयी नीति प्रत्यक्ष लागू होने की प्रतीक्षा में समय हाथ से निकलता जा रहा है। यद्यपि इन दोनों परिवर्तनों के लिए अनेक व्यक्ति व संगठनों के प्रयास शासकीय व सामाजिक ऐसे दोनों स्तरों पर बढ़ रहे हैं, तथापि हमारे हाथ में सर्वथा हमारा अपना घर व हमारा अपना परिवार तो है ही। उसमें हमारी स्वाभाविक आत्मीयता, पारिवारिक व सामाजिक दायित्वबोध, स्वविवेक का निर्माण आदि संस्कारों को अंकित करनेवाला अनौपचारिक शुचितामय प्रसन्न वातावरण अपने उदाहरण सहित देते रहने का अपना नई पीढ़ी के प्रति दायित्व ठीक से निभा रहे हैं यह सजगता से देखने की आवश्यकता है। बदला हुआ समय, उसमें बढ़ा हुआ प्रसार माध्यमों का व्यापक प्रसार व प्रभाव, नई तकनीकी के माध्यम से व्यक्ति को अधिक आत्मकेन्द्रित बनानेवाले तथा व्यक्ति के विवेकबुद्धि को समझे बिना विश्व की सारी सही-गलत सूचनाओं व ज्ञान को उससे साक्षात् करानेवाले साधन इसमें बहुत सावधानी बरतने की आवश्यकता विश्व में सभी को प्रतीत हो रही है। ऐसे समय में परिवार की स्वपरंपरा के सुसंस्कार मिलते रहे। नई दुनिया में जो भद्र है उसे खुले मन से आत्मसात करते हुए भी अपने मूल्यबोध के आधार पर अभद्र से बचने-बचाने का नीर-क्षीर विवेक, उदाहरण व आत्मीयता से नयी पीढ़ी में भरना ही होगा।
देष में पारिवारिक क्लेष, ऋणग्रस्तता, निकट के ही व्यक्तियों द्वारा बलात्कार-व्यभिचार, आत्महत्यायें तथा जातीय संघर्ष व भेदभाव की घटनाओं के समाचार निष्चित ही पीड़ादायक व चिंताजनक है। इन समस्याओं का समाधान भी अंततोगत्वा स्नेह व आत्मीयपूर्ण पारिवारिक वातावरण एवं सामाजिक सद्भाव निर्माण करने में ही है। इस दृष्टि से समाज के सुधी वर्ग एवं प्रमुख प्रबुद्धजनों सहित संपूर्ण समाज को इस दिषा में कर्तव्यरत होना पडेगा।

चिन्तन में समग्रता :
हमारी प्रत्येक कृति, उक्ति व मन से भी व्यक्ति, परिवार, समाज, मानवता व सृष्टि, सभी का सुपोषण हो, यह विशेषकर विविध अंगों में समाज का दिग्दर्शन करने वाले सभी को ध्यान में रखना चाहिए। विश्व में कहीं भी समाज का स्वस्थ व शांतिपूर्ण जीवन केवल विधिव्यवस्था व दंड के भय से न चला है न चल सकता है। समाज के द्वारा कानून का पालन समाज के नीतिबोध का परिणाम है न कि कारण। और समाज का नीतिबोध उसके परंपरागत मूल्यबोध से बनता है। मूल्यों के आधार पर पक्का रहकर ही समयानुकूल आचारधर्म अपनाने के लिए नीतिकल्पना व नियम बदलने चाहिए। समाज के आचरण के कारण बननेवाली प्रकृतिगत काम व अर्थ की प्रवृत्ति, उसको मर्यादित कर, उपयोगी व सुख के साथ संतोष व आनंद देने वाली बनाने का काम करनेवाली नीति, नीतिबंधन के अनुशासन से समाज व परिवार एकात्म होकर चलते रहे यह देखनेवाला विधि तथा इन सबका निर्णायक मूल्यबोध यह सब जहाँ परस्परानुकूल सुसंगति से चलते हैं वहाँ वास्तविक व संपूर्ण न्याय होता है। समग्रतापूर्वक विचार तथा धैर्यपूर्वक मन बनाये बिना निर्णयों का समाज के आचरण में स्वीकार तथा उससे देशकाल परिस्थितिनुरुप समाज की नवरचना का निर्माण नहीं होगा। हाल ही में दिये गये शबरीमलै देवस्थान के सम्बंध में निर्णय से उत्पन्न स्थिति भी यही दर्शाति है। सैकड़ों वर्षों से चलती आयी परम्परा, जो समाज में अपनी स्वीकार्यता बना चुकी है, उसके स्वरूप व कारणों के मूल का विचार नहीं किया गया। धार्मिक परम्पराओं के प्रमुख कर्ताधर्ताओं का पक्ष, करोड़ों भक्तों की श्रद्धा को परामर्श में नहीं लिया। महिलाओं में भी बहुत बड़ा वर्ग जो इन नियमों को मानकर चलता है, उनकी बात नहीं सुनी गयी। कानूनी निर्णय से समाज में शांति, सुस्थिरता व समानता के स्थान पर अशांति, अस्थिरता व भेदों का सृजन हुआ। क्यों, हिन्दू समाज की श्रद्धाओं पर ही ऐसे आघात लगातार व बिना संकोच किये जाते हैं, ऐसे प्रष्न समाज मन में उठते हैं व असंतोष की स्थिति बनती चली जाती है। यह स्थिति समाज जीवन की स्वस्थता व शांति के लिये कतई ठीक नहीं है।

स्वतंत्र देश का ”स्व“ आधारित तंत्र
भारत के जीवन के सभी अंगों के नवनिर्माण में भारत के मूल्यबोध के शाश्वत आधार पर पक्का रहकर ही प्रगति करनी पड़ेगी। अपने देश में जो है उसको देश-काल-परिस्थिति-अनुरुप सुधार कर, परिवर्तित कर अथवा आवश्यक है तो कुछ बातों को पूर्णतः त्यागकर भी युगानुकूल बनाना तथा विश्व में जो भद्र है, अच्छा है उसको देशानुकूल बनाना इन दोनों के निर्णय का आधार यही मूल्यबोध है। यही अपने देश का प्रकृतिस्वभाव है। यही हिन्दुत्व है। अपने प्रकृतिस्वभाव पर पक्का व स्थिर रहकर ही कोई देश उन्नत होता है। अंधानुकरण से नहीं।
शासन की अच्छी नीतियों के परिणाम समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति तक अनुभव में आयें, इसलिए प्रशासन के द्वारा उनकी तत्परता, संवेदनशीलता, पारदर्शिता व संपूर्णता के साथ जो कार्यवाही होनी चाहिए, उस प्रमाण में अभी भी नहीं हो रही है। अंग्रेजों का परकीय राज्य व प्रशासन हमारे भूमि व राज्यों पर केवल सत्ता चलाने का काम करता था। अब स्वतंत्र भारत में हमारे अपने शासक हमारे अपने प्रशासन को प्रजापालक प्रशासन बनाएँ यह अपेक्षा है।
केवल राजनैतिक स्वतंत्रता अपने आप में पूर्ण नहीं होती। राष्ट्र के जीवन व्यवहार के सभी पहलुओं की पुनर्रचना उसी ‘स्व’ तथा स्वगौरव के आधार पर खड़ी करनी पड़ती है, जिनसे हमें स्वतंत्रता के संघर्ष के लिए एक जन के नाते प्राणवान बनाकर प्रेरित किया। स्वतंत्र भारत की जनाकांक्षा हमारे संविधान की प्रस्तावना, मूल अधिकार, मार्गदर्शकतत्त्व, व मूलभूत कर्तव्य इन चारों प्रकरणों में परिभाषित हैं। उनके प्रकाश में हमें राष्ट्र के जीवन व्यवहार की, राष्ट्र के विकास की लक्ष्यदृष्टि, दिशा व तद्नुरूप जीवन के अर्थायाम सहित सभी अंगों के विकास का अपना विशिष्ट भारतीय प्रतिमान खड़ा करना पड़ेगा। तब हमारे सारे प्रयास, नीतियाँ पूर्णतः क्रियान्वित व प्रतिफलित होती दिखेंगी।
विश्वभर की अच्छी बातें लेकर भी हम अपने तत्त्वदृष्टि के नींव पर अपना विशिष्ट विकास प्रतिमान व तद्नुरुप व्यवस्था खड़ी करें यह अपने देष के विकास की अनिवार्य आवश्यकता है।

श्रीराम जन्मभूमि
राष्ट्र के ‘स्व’ के गौरव के ही संदर्भ में अपने करोड़ों देशवासियों के साथ श्रीराम जन्मभूमि पर राष्ट्र के प्राणस्वरूप धर्ममर्यादा के विग्रहरूप श्रीरामचन्द्र का भव्य राममंदिर बनाने के प्रयास में संघ सहयोगी है। सब प्रकार के साक्ष्य वहाँ कभी मंदिर था, यह बता रहे हैं; फिर भी मंदिर निर्माण के लिए जन्मभूमि का स्थान उपलब्ध होना बाकी है। न्यायिक प्रक्रिया में तरह-तरह की नई बातें उपस्थित कर निर्णय न होने देने का स्पष्ट खेल कतिपय शक्तियों द्वारा चल रहा है। समाज के धैर्य की बिनाकारण परीक्षा यह किसी के हित में नहीं है। मंदिर का बनना स्वगौरव की दृष्टि से आवश्यक है ही, मंदिर बनने से देश में सद्भावना व एकात्मता का वातावरण बनना प्रारम्भ होगा। देशहित की इस बात में कुछ कट्टरपंथी व सांप्रदायिक राजनीति को उभारकर अपना स्वार्थसाधन करनेवाली शक्तियाँ बाधाएँ खड़ी कर रही हैं। ऐसे छलकपट के बावजूद शीघ्रतापूर्वक उस भूमि के स्वामित्व के संबंध में निर्णय हो तथा शासन के द्वारा उचित व आवष्यक कानून बनाकर भव्य मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रषस्त किया जाना चाहिये।

निर्वाचन
देश का नेतृत्व कौन करें? जो नीतियाँ चली हैं वह सही हैं अथवा गलत? इन सब बातों का निर्णय प्रजातंत्र की अपने देश की व्यवस्था में पाँच वर्षों में एक बार सामान्य मतदाता करें, यह कर्तव्य उसी का माना जाता है। वह पंचवर्षीय निर्वाचन अपने सामने है। एक प्रकार से इस अधिकार से हम भारत के लोग, सामान्य जनता ही भारत की परिस्थिति का निर्णय व नियंत्रण करनेवाले हो जाते हैं। परन्तु हम यह भी जानते हैं कि उस एक दिन के मतदान से हम जो निर्णय करते हैं, उसके अच्छे-बुरे तात्कालिक परिणाम भोगना; व दीर्घकालीन नफा-नुकसान को झेलने का काम आगे बहुत वर्षों तक अथवा जीवनभर करते रहना; बस! उस एक दिन के पश्चात् हमारे हाथ में इस से अधिक कुछ नहीं रह जाता। पछताना न पड़े ऐसा निर्णय मतदाताओं के द्वारा प्राप्त होना है तो, मतदाताओं को राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानकर; स्वार्थ, संकुचित भावनाएँ व अपने भाषा, प्रान्त, जाति आदि छोटे दायरों के अभिनिवेश से ऊपर उठकर विचार करना पड़ेगा। उम्मीदवार की प्रामाणिकता व क्षमता, दल के नीति की राष्ट्रहित व राष्ट्र की एकात्मता के साथ प्रतिबद्धता तथा इन दोनों के पहले के तथा वर्तमान के क्रियाकलापों के अनुभव; इनका स्वतंत्र बुद्धि से मतदाताओं को विचार करना पड़ेगा।
प्रजातंत्र की राजनीति का चरित्र ऐसा रहता आया है कि संपूर्णतया योग्य अथवा संपूर्णतया अयोग्य किसी को नहीं मान सकते। ऐसी स्थिति में मतदान न करना अथवा छव्ज्। के अधिकार का उपयोग करना, मतदाता की दृष्टि में जो सबसे अयोग्य है उसी के पक्ष में जाता है। इसलिए सभी तरफ के प्रचार को सुनकर, उसके जाल में न फंसते हुए राष्ट्रहित सर्वोपरि रखकर 100 प्रतिशत मतदान आवश्यक है। भारत का चुनाव आयोग भी इसी प्रकार से 100 प्रतिशत मतदान व विचारपूर्वक मतदान का आग्रह करता है। इस नागरिक कर्तव्य की अनुपालना संघ के स्वयंसेवक भी करते आये हैं; व सदा की भाँति इस बार भी करेंगे।
दलगत राजनीति, जातिसम्प्रदायों के प्रभाव की राजनीति आदि से संघ अपने जन्म से सोच-समझकर अलग रहता आया है, रहेगा। परन्तु सम्पूर्ण देश में व्याप्त स्वयंसेवकों की संख्या नागरिक के नाते अपने कर्तव्यों को पूर्ण करे तथा समग्र व सम्यक् राष्ट्रहित के पक्ष में अपनी शक्ति को खड़ा करे, यह देशहित के लिए आवश्यक कार्य है।

आवाहन
देशहित की मूलभूत अनिवार्य आवश्यकता है कि भारत के ‘स्व’ की पहचान के सुस्पष्ट अधिष्ठान पर खड़ा हुआ सामर्थ्यसंपन्न व गुणवत्तावाला संगठित समाज इस देश में बने। वह हमारी पहचान हिन्दू पहचान है जो हमें सबका आदर, सबका स्वीकार, सबका मेलमिलाप व सबका भला करना सिखाती है। इसलिए संघ हिन्दू समाज को संगठित व अजेय सामर्थ्यसंपन्न बनाना चाहता है और इस कार्य को सम्पूर्ण संपन्न करके रहेगा। अपने-अपने सम्प्रदाय, परंपरा व रहन-सहन को लेकर अपने आप को अलग माननेवाले अथवा ”हिन्दू“ शब्द से भयभीत होनेवाले समाज के वर्गों को यह समझने की आवश्यकता है कि हिन्दुत्व तो इस देश के सनातन मूल्यबोध को ही कहते हैं। उसके इस सत्य व शाश्वत अंतरंग को कायम रखकर ही उसमें देश-काल-परिस्थति-अनुरुप स्वरूप व व्यवहार के परिवर्तन आये हैं व आगे भी आवश्यकतानुरूप हो सकते है। हिमालय से समुद्रपर्यन्त अखंड भारतभूमि के साथ हिन्दुत्व का तादात्म्य है। उस मूल्यबोध से अनुप्राणित भारत की एक संस्कृति के रंग में सभी भारतीय रंग लें, यह संघ की इच्छा हैं। भारत के सभी पंथ-सम्प्रदायों का आचार धर्म उसी को आधार बनाकर चलता है। इस हिन्दू संस्कृति व समाज की सुरक्षा तथा संवर्धना के लिए प्रखर परिश्रम करनेवाले, प्राणोत्सर्ग करनेवाले महापुरुष हम सबके पूर्वज, हम सबके गौरव हैं। संपूर्ण विश्व को, उसकी विशिष्ट विविधताओं का स्वागत व स्वीकार करते हुए हृदय से अपनाने की क्षमता भारत में इस हिन्दुत्व के कारण है। इसलिए भारत हिन्दुराष्ट्र है। संगठित हिन्दू समाज ही देश की अखण्डता, एकात्मता व निरन्तर उन्नति का आधार है। सारी दुनिया में कट्टरपन, संकुचित स्वार्थ व आत्यंतिक जड़वादिता के कारण मर्यादारहित उपभोग वृत्ति तथा संवेदनहीनता को समाप्त करने का एकमात्र उपाय हिन्दुत्व के शाश्वत मूल्यबोध का स्वीकार यही है। हिन्दू संगठन का कार्य इसीलिए विश्वहितैषी, भारतकल्याणकारी एवं लोकमंगल का कार्य है।
आप सबको आवाहन है कि संघ के स्वयंसेवकों के साथ इस पवित्र ईश्वरीय कार्य में सहयोगी व सहभागी बनते हुए हम सब मिलकर भारतमाता को विश्वगुरु पद पर स्थापन करने के लिए भारत के भाग्यरथ को अग्रसर करें।

नहीं है अब समय कोई, गहन निद्रा में सोने का,
समय है एक होने का, न मतभेदों में खोने का।
बढ़े बल राष्ट्र का जिससे, वो करना मेल है अपना,
स्वयं अब जागकर हमको, जगाना देश है अपना।।
।। भारत माता की जय।।

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बी.एस.पी. द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति-दिनांक 02.10.2018

Posted on 02 October 2018 by admin

(1) देश की राजधानी दिल्ली में उत्तर प्रदेश व अन्य पड़ोसी राज्यों से आये हज़ारों किसानों पर आज हुये पुलिस लाठीचार्ज की तीव्र निन्दा। यह बीजेपी सरकार की निरंकुशता की पराकाष्ठा है जिसका ख़ामियाजा भुगतने के लिये उसे तैयार रहना चाहिये।
(2) बीजेपी की केन्द्र व राज्य सरकारों की ग़रीब व किसान-विरोधी गलत नीतियों से समाज का हर वर्ग काफी ज्यादा दुःखी व पीड़ित है, परन्तु ख़ासकर किसान वर्ग के लोग इस सरकार में कुछ ज़्यादा ही संकट झेल रहे हैं।
(3) बीजेपी सरकारों द्वारा किसानों की कर्ज माफी की घोषणा भी इनकी अन्य वायदों व घोषणाओं की तरह हवा-हवाई ही साबित हुयी हैं : बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व सांसद, सुश्री मायावती जी।

नई दिल्ली, 02 अक्तूबर 2018 : बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व सांसद, सुश्री मायावती जी ने देश की राजधानी दिल्ली में पड़ोसी राज्यों से आये हज़ारों किसानों पर आज हुये पुलिस लाठीचार्ज की तीव्र निन्दा करते हुये कहा कि यह बीजेपी सरकार की निरंकुशता की पराकाष्ठा है जिसका ख़ामियाजा भुगतने के लिये उसे तैयार रहना चाहिये।
सुश्री मायावती जी ने कहा कि किसानों की आय दोगुणा करके उनके अच्छे दिन लाने का वायदा करने वाली बीजेपी सरकार निहत्थे किसानों पर पुलिस से लाठियाँ बरसवा रही है, उनपर आँसू गैस के गोले आदि दगवा कर उनपर पुलिसिया जुल्म कर रही है जबकि किसान समाज के लोग गाँधी जयन्ती के दिन आज गाँधी स्थल पर जाकर केवल अपना विरोध प्रदर्शन करने वाले थे।
वैसे तो बीजेपी की केन्द्र व राज्य सरकारों की गरीब व किसान-विरोधी गलत नीतियों से समाज का हर वर्ग काफी ज्यादा दुःखी व पीड़ित है, परन्तु खासकर किसान वर्ग के लोग इस सरकार में कुछ ज्यादा ही संकट झेल रहे हैं। बीजेपी की सरकारों ने उनकी समस्याओं का अगर सही समाधान किया होता तो खासकर यू.पी., पंजाब व हरियाणा के किसानों को आज दिल्ली में पुलिस की लाठी का शिकार होकर मुसीबत व ज़िल्लत नहीं झेलनी पड़ती। इससे पहले भी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि राज्यों में किसानों पर पुलिस बर्बरता व ज्यादती की घटनायें समाज के उद्वेलित कर चुकी हैं। इतना ही नहीं बल्कि बीजेपी सरकारों द्वारा किसानों की कर्ज माफी की घोषणा भी इनकी अन्य वायदों व घोषणाओं की तरह हवा-हवाई ही साबित हुयी हैं।

जारीकर्ता :
बी.एस.पी. केन्द्रीय कार्यालय
4 गुरूद्वारा रकाबगंज रोड
नई दिल्ली

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संघ की दस्तक सुनें - ललित गर्ग

Posted on 21 September 2018 by admin

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का तीन का ‘भविष्य का भारत’ विषयक विचार अनुष्ठान अनेक दृष्टियों से उपयोगी एवं प्रासंगिक बना। दिल्ली के विज्ञान भवन में देश के प्रमुख बुद्धिजीवियों और लगभग सभी दलों के प्रमुख नेताओं को आमंत्रित कर उन्हें न केवल संघ के दृष्टिकोण से अवगत कराया गया बल्कि एक सशक्त भारत के निर्माण में संघ की सकारात्मक भूमिका को भी प्रभावी ढ़ंग से प्रस्तुत किया। यह एक दस्तक है, एक आह्वान है जिससे न केवल सशक्त भारत का निर्माण होगा, बल्कि इस अनूठे काम में लगे संघ को लेकर बनी भ्रांतियांे एवं गलतफहमियों के निराकरण का वातावरण भी बनेगा। प्रश्न है कि संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत को आखिर क्या जरूरत आ पड़ी कि उन्हें समाज के प्रबुद्ध लोगों के बीच संघ का एजेंडा रखना पड़ा? मोहन भागवत ने इस विचार अनुष्ठान से संघ की छवि सुधारने का साहसपूर्ण प्रयास किया गया है, जिससे राष्ट्रीयता एवं भारतीयता की शुभता की आहत सुनाई दी है।
संघ ने भारत के भविष्य को लेकर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के साथ ही अपनी नीतियों, अपने क्रियाकलापों और उद्देश्यों के बारे में जिस तरह विस्तार से प्रकाश डाला उसके बाद कम से कम उन लोगों की उसके प्रति सोच बदलनी चाहिए जो उसे बिना जाने-समझे एवं तथाकथित पूर्वाग्रहों-दुराग्रहों के चलते एक खास खांचे में फिट करके देखते रहते हैं। एक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन के रूप में संघ किस तरह बदलते समय के साथ खुद को बदल रहा है, इसका एक प्रमाण तो यही है कि उसने औरों और यहां तक कि अपने विरोधियों और आलोचकों को अपने ढंग के इस अनूठे कार्यक्रम में आमंत्रित किया। देश और शायद दुनिया के इस सबसे विशाल संगठन के नेतृत्व ने इन आमंत्रित लोगों के सवालों के जवाब भी दिए, उनकी जिज्ञासाओं का समाधान किया। उन्होंने जो भाषण दिए, वे सचमुच नई लकीर खींचते हैं, एक नई सुबह का अहसास कराते हैं। उन्होंने हिंदुत्व और भारतीयता को एक ही सिक्के के दो पहलू बताया है। उनके इस कथन ने उसे और अधिक स्पष्ट कर दिया कि मुसलमान लोग भी हिंदुत्व के दायरे के बाहर नहीं हैं। संघ के हिंदुत्व का अर्थ है, विविधता में एकता, उदारता, सहनशीलता, सह-जीवन आदि। उन्होंने हिंदुत्व को नए ढंग से परिभाषित करने की कोशिश की है।
यह एक सुखद अनुभूति है कि संघ सबको साथ लेकर आगे बढ़ना चाहता है, पूर्ण समाज को जोड़ना चाहता है, इसलिए संघ के लिए कोई पराया नहीं, जो आज विरोध करते हैं, वे भी नहीं। संघ केवल यह चिंता करता है कि उनके विरोध से कोई क्षति नहीं हो। संघ शोषण और स्वार्थ रहित समाज चाहता है। संघ ऐसा समाज चाहता है जिसमें सभी लोग समान हों। समाज में कोई भेदभाव न हो। दूसरों के अस्तित्व के प्रति संवेदनशीलता आदर्श जीवनशैली का आधार तत्व है और संघ इसे प्रश्रय देता है। इसके बिना अखण्ड राष्ट्रीयता एवं समतामूलक समाज की स्थापना संभव ही नहीं है। जब तक व्यक्ति अपने अस्तित्व की तरह दूसरे के अस्तित्व को अपनी सहमति नहीं देगा, तब तक वह उसके प्रति संवेदनशील नहीं बन पाएगा। जिस देश और संस्कृति में संवेदनशीलता का स्रोत सूख जाता है, वहाँ मानवीय रिश्तों में लिजलिजापन आने लगता है। अपने अंग-प्रत्यंग पर कहीं प्रहार होता है तो आत्मा आहत होती है। किंतु दूसरों के साथ ऐसी घटना घटित होने पर मन का एक कोना भी प्रभावित नहीं होता। यह असंवेदनशीलता की निष्पत्ति है। संघ सबके अस्तित्व को स्वीकारता है, सबका विकास चाहता है। सहअस्तित्व की भावना संघ का दूसरा आधार तत्व है। भगवान महावीर ने वैचारिक और व्यावहारिक भेद में अभेद की स्थापना कर अनेकांत दर्शन का प्रतिपादन किया। अनेकांत के अनुसार अनेक विरोधी युगलों का सहअस्तित्व संभव है। अविरोधी विचारों वाले व्यक्ति एक साथ रहे, यह कोई आश्चर्य का विषय नहीं है। विरोधी विचारों, नीतियों और लक्ष्यों वाले लोग भी साथ-साथ मिलें, बैठें, चिंतन करें और रहें, यह सह-अस्तित्व का फलित है और इसी बात को इस तीन दिन के विचार अनुष्ठान का फलित मान सकते हैं, संघ की सार्थक पहल के रूप में उसे स्वीकृति दे सकते हैं।
संघ को राष्ट्र की चिंता है, उसके अनुरूप उसकी मानसिकता को दर्शाने वाले इस विचार-अनुष्ठान से निश्चित ही भारत के भविष्य की दिशाएं तय होगी। भारतीय जनता आजादी का सुख नहीं भोग सकी, आजाद कहलाने पर भी उसका लाभ नहीं उठा सकी, इसके लिए दोषी किसे ठहराया जाए? लोकतांत्रिक देश की जनता के महान आदर्शों को सीख नहीं पायी और इस बात को पहचान ही नहीं पायी कि राष्ट्रीयता के स्थान पर व्यक्तिवादिता एवं दलगत स्वार्थ उसके मन के किस हिस्से पर हस्ताक्षर कर रही है। जो संगठन आरएसएस को पानी पी-पीकर कोसते हैं, उन्होंने तो कभी यह बताने की जहमत मोल नहीं ली कि देश के विकास को लेकर, संसाधनों के बंटवारे को लेकर, अवसरों की समानता को लेकर उनकी अपनी क्या दृष्टि है? बेहतर होगा कि संघ की इस पहल से प्रेरणा लेकर अन्य दल और संगठन भी अपनी बुनियादी दृष्टि के बारे में आम देशवासियों की समझ साफ करें ताकि उनके समर्थकों और विरोधियों को ऐसी कसौटियां उपलब्ध हों, जिन पर उनके कामकाज को परखा जा सके। संघ ने सामूहिकता यानी संगठन का शंखनाद किया है तो इसका अर्थ संघ की सदस्यता वृद्धि नहीं है बल्कि भारत के निर्माण में रचनात्मक एवं सृजनात्मक शक्तियों को संगठित करना है।
किसी व्यक्ति, वर्ग या संगठन पर दोषारोपण करने से कुछ होने वाला नहीं है। पर यह जरूर विचारणीय है कि एक स्वतंत्र राष्ट्र के नागरिक इतने निस्तेज, इतने निराश और इतने कुंठित क्यों हो गए, जो अपने विश्वास और अपनी आस्थाओं को भी जिन्दा नहीं रख पाते? इस संदर्भ में सबसे पहली बात यह है कि स्वप्न वैसा ही देखना चाहिए जो पूरा हो सके। स्वप्न वैसा ही देखना चाहिए, जिसके अनुरूप पुरुषार्थ किया जा सके। कल्पना और आशा का अतिरंजन आदमी को भटकाने के सिवाय उसे क्या दे सकता है? संघप्रमुख ने राष्ट्रीयता, भारतीयता के साथ समाज एवं राष्ट्र निर्माण की आवश्यकता पर जिस तरह अपने विचार व्यक्त किए उससे यह स्पष्ट है कि इस संगठन की दिलचस्पी राजनीति में कम और राष्ट्रनीति में अधिक है। उन्होंने समाज निर्माण को अपना एक मात्र लक्ष्य बताया। इस क्रम में उन्होंने हिंदू और हिंदुत्व पर जोर देने के कारणों का भी उल्लेख किया। क्योंकि हिंदुत्व सब को जोड़ता है और संघ एक पद्धति है जो व्यक्ति निर्माण का काम करती है। प्रत्येक गांव और गली में ऐसे स्वयंसेवक खड़े करना संघ का काम है, जो सबको समान नजर से देखता हो। उन्होंने कहा कि विविधताओं से डरने की बात नहीं है, बल्कि सबका उत्सव मनाने की जरूरत है। निश्चित ही इससे संघ और हिंदुत्व को लेकर व्याप्त तमाम भ्रांतियां दूर होंगी, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि अभी भी कुछ भ्रांतियां और संदेह बरकरार रहेंगे। यह सही है कि संघ के इस कार्यक्रम का प्रयोजन लोगों को अपनी बातों से सहमत करना नहीं, बल्कि अपने बारे में आग्रह, पूर्वाग्रह एवं दुराग्रह को दूर करना एवं संघ के यथार्थ की जानकारी देना था, लेकिन उचित यही होगा कि वह इस तरह के आयोजन आगे भी करता रहे। निःसंदेह संघ को जानने-समझने का यह मतलब नहीं कि उसका अनुसरण किया जाए, लेकिन इसका भी कोई मतलब नहीं कि उसकी नीतियों को समाज एवं राष्ट्रविरोधी करार देकर उसे अवांछित संगठन की तरह से देखा जाए या फिर उसका हौवा खड़ा किया जाए।
भारत को स्वतंत्र हुए काल का एक बड़ा खंड पूरा हो रहा है। इतने वर्षों बाद भी यह सवाल उसी मुद्रा में उपस्थित है कि एक स्वतंत्र राष्ट्र के नागरिकों के अरमान पूरे क्यों नहीं हुए? इस अनुत्तरित प्रश्न का समाधान न आंदोलनों में है, न नारेबाजी में है और न अपनी-अपनी डफली पर अपना-अपना राग अलापने में है। इसके लिए तो एक सामूहिक प्रयोग की अपेक्षा है, जो जनता के चिंतन को बदल सके, लक्ष्य को बदल सके और कार्यपद्धति को बदल सके। इसी बड़ी सोच एवं दृष्टि को लेकर संघ आगे बढ़ रहा है तो यह स्वागत योग्य है।
आज देश की जो दशा है, भ्रष्टाचार का जो बोलबाला है, महंगाई बढ़ रही है, पडौसी देश सदैव डराने-धमकाने का दुस्साहस करते रहते हैं, कालेधन और राजनीति का गठबंधन अनेक समस्याओं का कारण बन रहा है, इन सब सन्दर्भों में देश के नेतृ-वर्ग से एक प्रश्न है। वह चाणक्य के जीवन से शिक्षा कब लेगा? कब साहस एवं शक्तिशाली होने की हुंकार भरेगा? संघ केवल हिन्दुत्व की बात नहीं करता, बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्रीयता की बात करता है।
संघ शुचिता एवं ईमानदारी की संरचना भी चाहता है। इसी से हमारी स्वतंत्रता सफल और सार्थक बन सकती है। अन्यथा स्वतंत्रता के गीत गाते रहें और उसी पुराने ढर्रे पर चलते रहें, इससे देश की नीतियों में बदलाव कैसे आएगा? मन्त्रिमंडल में जो लोग आते हैं, उनका यह नैतिक दायित्व है कि वे अपने इस्पाती चरित्र से देश को नयी दिशा दें। जनता की चारित्रिक शुचिता बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि नेतृवर्ग का चरित्र उज्ज्वल रहे। संघ ने इन बुनियादी बातों पर बल दिया है। इसके लिए आज से ही, अब से ही नये संकल्प के साथ काम शुरू किये जाने की आवश्यकता व्यक्त की है। उस संकल्प के साथ कृत्रिम प्रलोभन या हवाई कल्पनाएं नहीं होनी चाहिए। यथार्थ के ठोस धरातल पर कदम रखने वाला ही अपनी मंजिल तक पहुंच सकता है। इसके लिए भगवान् बनने की धुन छोड़कर मनुष्य बनने का लक्ष्य सामने रहना चाहिए। मनुष्य, मनुष्य बनें, इसके लिए बहुत बड़े बलिदान की भी अपेक्षा नहीं है।
संघ के विरोधी एवं उससे दूरी रखने वाले इस विचार-अनुष्ठान का जिस तरह बहिष्कार करते हुए उसे सगर्व सार्वजनिक भी किया उससे यही स्पष्ट हुआ कि जब संघ खुद में बदलाव लाने की तैयारी दिखा रहा तब उसके आलोचक और विरोधी जहां के तहां खड़े रहने में ही खुद की भलाई देख रहे हैं। वे ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन समझदारी तो इसी में है जो खुद को देश, काल और परिस्थितियों के हिसाब से बदलता है। सतत संवाद-संपर्क तमाम समस्याओं के समाधान की राह दिखाता है। जब संघ हिंदुत्व को भारतीयता का पर्याय मानकर यह कह रहा है कि वह अन्य मत-पंथ-विचार से जुड़े लोगों को साथ लेकर चलना चाहता है तब फिर कोशिश यही होनी चाहिए कि इस राष्ट्र निर्माण में ऐसे लोगों का एक समवाय बने और उनकी शक्ति भारत को सशक्त बनाने में लगे। जब संघ यह चाह रहा है कि वह राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य की ओर तेजी से बढ़ना चाहता है तो फिर कोशिश होनी चाहिए कि समाज का हर वर्ग उसके साथ जुड़े, क्योंकि सबल और समरस समाज के जरिये राष्ट्र निर्माण का काम कहीं अधिक आसानी से किया जा सकता है। भागवतजी ने स्पष्ट किया कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है और रहेगा। हिंदुत्व समाज को एकजुट रखता है, लेकिन हम समाज में संघ का वर्चस्व नहीं चाहते, बल्कि समाज के हर व्यक्ति का वर्चस्व चाहते हैं। यहां भी उनका संदेश साफ था- सबका साथ- सबका विकास। जब ऐसी ही निर्माण की आवाज उठेगी, पौरुष की मशाल जगेगी, सत्य की आंख खुलेगी तब हम, हमारा वो सब कुछ, जिससे हम जुड़े हैं, हमारे लिये कीमती तौहफा होगा।

प्रेषक
(ललित गर्ग)

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बी.एस.पी. द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति-दिनांक 20.09.2018

Posted on 20 September 2018 by admin

(1) आर.एस.एस. का दिल्ली में तीन दिनों तक चला बहु-प्रचारित संवाद कार्यक्रम राजनीति से ज्यादा प्रेरित था ताकि बीजेपी की केन्द्र व राज्य सरकारों की घोर कमियों व विफलताओं के साथ-साथ देश के करोड़ों लोगों के जीवन से जुड़ी ज्वलन्त समस्याओं जैसे भयावह गरीबी, जानलेवा महंगाई, बेरोजगारी व भ्रष्टाचार आदि से अब चुनाव के समय में लोगों का ध्यान बाँटा जा सके।
(2) बीजेपी के केन्द्र व राज्य सरकारों की ग़रीब, मज़दूर, किसान-विरोधी तथा बड़े-बड़े पूंजीपतियों व धन्नासेठ समर्थक नीतियों से स्वभाविक तौर पर इनकी विफलताओं के कारण देश भर में छाये व्यापक जन आक्रोश से आर.एस.एस. भी चिन्तित क्योंकि धन्नासेठों की तरह इन्होंने भी बीजेपी की जीत के लिये अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया था। लेकिन ’’कथनी’’ से ज्यादा ’’कर्म’’ मायने रखता है। इसलिये लोग अब इनके बहकावे में आने वाले नहीं हैं।
(3) आर.एस.एस. प्रमुख के इस कथन पर कि ’जन्मभूमि पर अगर मुसलमान खुद मन्दिर बनवाते हैं तो बरसों से उन पर उठ रही अंगुलियाँ झुक जायेंगी,’ बी.एस.पी. कतई भी सहमत नहीं है। एक नहीं बल्कि अनेकों मन्दिर बन जायें तब भी संकीर्ण संघी हिन्दुओं व मुसलमानों के बीच रिश्ते सुधरने वाले नहीं हैं
ऽ क्योंकि इनकी बुनियादी सोच व मानसिकता दलित, पिछड़ा, मुस्लिम व अन्य अल्पसंख्यक विरोधी है और इस प्रकार संविधान की मंशा के विरूद्व है जिस कारण ही इन वर्गों के लोग हर प्रकार की जुल्म-ज्यादती से त्रस्त हैं तथा सर्वसमाज के लोगों का जान-माल, मज़हब व स्वतंत्रता के साथ जीने की इच्छा सब ख़तरे में है।
(4) इसके अलावा, केन्द्र सरकार द्वारा ’तीन तलाक’’ पर कल रात अध्यादेश लाना भी पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित कदम। लोगों का ध्यान हिन्दू-मुस्लिम की तरफ भटकाने की कोशिश : बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व सांसद सुश्री मायावती जी।

नई दिल्ली, 20 सितम्बर 2018 : बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व सांसद सुश्री मायावती जी ने कहा कि देश की राजधानी नई दिल्ली में आर.एस.एस. का तीन दिनों का बहु-प्रचारित संवाद कार्यक्रम राजनीति से ज़्यादा प्रेरित था ताकि अब खासकर चुनावों के समय बीजेपी की केन्द्र व राज्य सरकारों की घोर कमियों व विफलताओं के साथ-साथ देश की ज्वलन्त समस्याओं जैसे भयावह गरीबी, जानलेवा महंगाई, बेरोजगारी व बढ़ते भ्रष्टाचार आदि से लोगों का ध्यान बाँटा जा सके।
सुश्री मायावती जी ने कहा कि बीजेपी सरकारों की ख़ासकर ग़रीब, मज़दूर, किसान-विरोधी तथा बड़े-बड़े पूंजीपतियों व धन्नासेठ-समर्थक नीतियों से स्वभाविक तौर पर इनकी विफलताओं के कारण देश भर में छाये व्यापक जन आक्रोश से आर.एस.एस. का चिन्तित होना भी स्वाभाविक ही है क्योंकि धन्नासेठों की तरह इन्होंने भी बीजेपी की जीत के लिये अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया था। लेकिन अब बीजेपी सरकार की हर क्षेत्र में घोर कमियों व विफलताओं के साथ-साथ इनकी चुनावी वादाखिलाफी व भ्रष्टाचार आदि के मामलों में इन्हें भी जनाक्रोश का सामना करना पड़ रहा है। इसीलिए लोगों का ध्यान बांटने के लिये यह सब राजनीतिक मकसद के तहत विभिन्न तरह के ध्यान बांटने वाले प्रयास किये जा रहे हैं, परन्तु वाणी से ज्यादा हमेशा ही कर्म महत्वपूर्ण होता है और वही असली मायने रखता है। अतः जनता इस प्रकार के प्रयासों से अब और ज्यादा भ्रमित होने वाली नहीं हैं क्योंकि अब जनता के खुद अपनी जान के लाले पड़ रहे हैं।
’’जन्मभूमि पर मन्दिर बने और अगर मुसलमान खुद बनवाते हैं तो बरसों से उन पर उठ रही अंगुलियाँ झुक जायेंगी,’’ सम्बन्धी आर.एस.एस. प्रमुख के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये सुश्री मायावती जी ने कहा कि बी.एस.पी. इनके इस तर्क से कतई सहमत नहीं है तथा एक नहीं बल्कि अनेकों मन्दिर बन जायें तब भी संकीर्ण संघी हिन्दु व मुसलमान के बीच रिश्ते सुधरने वाले नहीं हैं क्योंकि इनकी बुनियादी सोच व मानसिकता दलित, मुस्लिम व अन्य अल्पसंख्यक विरोधी है और इसी का ही परिणाम है कि इनकी सोच में परवरिश पायी पार्टी बीजेपी की सरकार में सर्वसमाज में से ख़ासकर दलितों, पिछड़ों, मुस्लिम व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हर प्रकार की जुल्म-ज्यादती, भेदभाव, हिंसा व हत्या का बोलबाला है जिससे देश का लोकतन्त्र कलंकित हो रहा है।
इसलिये आर.एस.एस. को सबसे पहले अपनी नफरत व साम्प्रदायिक सोच को बदल कर संविधान सम्मत मानवीय बनना व बनाना होगा, जो कि आज तक ये लोग नहीं कर पाये हैं और इसी कारण इनकी सर्वसमाज में स्वीकार्यता का घोर अभाव लगातार बना हुआ है।
वास्तव में बीजेपी के केन्द्र व विभिन्न राज्यों में सत्ता में आने के बाद इनका संकीर्ण जातिवादी व साम्प्रदायिक चाल, चरित्र व चेहरा और ज्यादा बेनकाब हुआ है और इसलिए इनकी ’’कथनी’’ का कोई खास असर नहीं है क्योंकि इनकी ’’करनी’’ ने सर्वसमाज के करोड़ों ग़रीबों, मज़दूरों, किसानों, छोटे व मझोले व्यापारियों एवं अन्य मेहनतकश लोगों का जान-माल व मजहब तथा स्वतंत्रता के साथ जीने की स्वभाविक इच्छा सब खतरे में पड़कर इनका जीना हराम किये हुये है और वे लोग इन जंजालों से मुक्ति चाहते हैं जिसके लिये वे आर.एस.एस. के बहकावे में और ज्यादा नहीं आकर अब बीजेपी को सत्ता से हटाने के लिये कमर कसे हुये हैं।
साथ ही, आर.एस.एस. की सोच व मानसिकता अगर इतनी ही सही मानवीय, सच्ची संवैधानिक व जनहित में ईमानदार होती तो फिर आजादी के बाद तीन बार इस संगठन को प्रतिबन्धित होने का कलंक नहीं झेलना पड़ता और ना ही सर्वसमाज में अस्वीकार्यता की गंभीर व बुनियादी समस्या आज तक झेलनी पड़ती।
इसके अलावा केन्द्र सरकार द्वारा ’’तीन तलाक’’ पर कल रात अध्यादेश लाकर इसे अपराध घोषित करके इसमें तीन साल तक की जेल की सजा निर्धारित करने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये सुश्री मायावती जी ने कहा कि बीजेपी इस प्रकार के संवेदनशील मुद्दों पर भी स्वार्थ की राजनीति करके अब चुनाव के समय लोगों का ध्यान अपनी कमियों व विफलताओं पर से हटाना चाहती है और अगर ऐसा नहीं होता तो इस सम्बंध में कानून बनाने से पहले इस पर समूचित विचार-विमर्श के लिये इस विधेयक को संसदीय समिति में भेजने की मांग केन्द्र सरकार ने ज़रूर मान ली होती।
वैसे भी लोगों की राय में नोटबन्दी व जी.एस.टी. आदि की तरह तीन तलाक के मामले में भी केन्द्र सरकार के अपरिपक्व व काफी अड़ियल रवैये से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं की समस्यायें पूरे तौर से व आसानी से हल होने वाली नहीं हैं।

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सम्मान समारोह

Posted on 28 August 2018 by admin

img_20180828_141542भोपाल. बुन्देलखण्ड समाज विज्ञान शोध संस्थान के सृजन संवाद संगोष्ठी के अवसर पर सृजनात्मक उपादान के लिए दैनिक सत्ता सुधार के लखनऊ व्यूरो प्रमुख सुरेन्द्र अग्निहोत्री को पत्रकारिता के क्षेत्र के लिए वरिष्ठ साहित्यकार गोविंद मिश्र, वसंत निरगुणे, डा .श्री राम परिहार तथा पूर्व पुलिस महानिदेशक त्रिपाठी ने शाल श्री फल तथा अंग वस्त्रम् प्रदान कर सम्मानित किया ।संस्था के अध्यक्ष सतीश पुरोहित ने आख्यान उद्बोधन किया ।

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डॉ. प्रवीण डबली ‘राष्ट्रीय आरोग्य रत्न सम्मान’ से सम्मानित

Posted on 13 August 2018 by admin

img_20180730_190248नागपुर| राष्ट्रीय साहित्यिक, समाजिक एवं धार्मिक कार्यों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी के विकास के लिए कार्य करने वाली सुरभी साहित्य संस्कृति अकादमी खंडवा द्वारा आयोजित महा अंलकरण सम्मान समारोह में नागपुर के पत्रकार, साहित्यिक, राष्ट्रीय प्रत्यक्ष कर अकादमी मे योग शिक्षक व नैचरोपैथी व योगा थेरेपिस्ट डॉ. प्रवीण डबली को उनके २७ वर्ष की पत्रकारिता सेवा, साहित्य, सामाजिक कार्य, १७ वर्षो से योग व नियोग पद्धति से लोगो को स्वास्थ्य संबंधी जागृत कर उनका उपचार करने की सेवा हेतु विश्‍व ब्राम्हण समाज इंदौर के राष्ट्रीय अध्यक्ष, राज्यमंत्री प्रभार प. योगेन्द्र जी महंत के हाथों राष्ट्रीय आरोग्यरत्न गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया| उन्हें सम्मान पत्र, सम्मान चिन्ह, शाल व श्रीफल देकर उनका गौरव किया गया| इस अवसर पर प्रमुखता से दिल्ली से यूजीसी अधिकारी व महामानव उपाधि से अलंकृत डॉ. कपिल प्रसाद मिश्रा, दिगम्बर जैन महासमिति इंदौर के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक बड़जात्या, जीरो माइल फाउंनडेशन के अध्यक्ष डॉ. आनंद शर्मा व सुरभी साहित्य संस्कृति अकादमी खंडवा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. जगदीशचन्द्र चौरे विद्यासागर प्रमुखता से उपस्थित थे| यह महा अलंकरण सम्मान का आयोजन खंडवा स्थित हाटेल ऐश्‍वर्या में आयोजित किया गया था| इस अवसर राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन भी किया गया| इस सम्मान समारोह में देश भर के साहित्यिकों ने भाग लिया|

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नेशनल एजेंडा फोरम (NAF) को कई जानी-मानी हस्तियों ने दिया समर्थन

Posted on 07 August 2018 by admin

मैरी कॉम, बबीता फोगाट, पीटी ऊषा और पीयूष मिश्रा जैसी हस्तियों ने किया है समर्थन

महात्मा गांधी के 150वीं जयंती वर्ष के अवसर पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए लॉन्च हुआ है नेशनल एजेंडा फोरम

महात्मा गांधी के 150वीं जयंती वर्ष के अवसर पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए लॉन्च हुए नेशनल एजेंडा फोरम (NAF) को देशभर से अपार समर्थन मिल रहा है। नेशनल एजेंडा फोरम युवाओं द्वारा शुरू की गई एक अनूठी पहल है, जिसका मकसद आम चुनाव 2019 के लिए योग्य एजेंडा तैयार करना है। नेशनल एजेंडा फोरम को अब तक देश के 500 से ज्यादा जिलों के 50,000 युवा एसोसिएट्स, 225 प्रतिष्ठित शख्सियत और 283 सामाजिक संगठनों ने समर्थन दिया है।

नेशनल एजेंडा फोरम को कई गांधीवादी संगठन मसलन- गांधी स्मारक निधि एवं सर्वोदय आश्रम समेत कई जानी-मानी हस्तियों, बॉक्सर एवं गोल्ड मेडलिस्ट मैरीकॉम, कॉमनवेल्थ गेम्स में पदक विजेता बबिता फोगाट, अभिनेता पीयूष मिश्रा के अलावा कई मशहूर शख्सियतों ने समर्थन दिया है। महात्मा गांधी के पड़पोते तुषार गांधी, वागेश्वरी अवॉर्ड से सम्मानित लेखक मनीष वैद्य, गांधी भवन न्यास के अरविंद चतुर्वेदी, वरिष्ठ लेखक विजय बहादूर सिंह, क्रिकेटर इश्वर पांडे, पूर्व हॉकी खिलाड़ी अशोक ध्यानचंद के अलावा गांधीजी द्वारा शुरू की गई पत्रिका ‘वीणा’ के संपादक राकेश शर्मा ने भी नेशनल एजेंडा फोरम को अपना समर्थन दिया है।

नेशनल एजेंडा फोरम का उद्देश्य गांधीजी के 18-सूत्रीय रचनात्मक कार्यक्रम पर चर्चा को पुनर्जीवित करना है, इस चर्चा के माध्यम से देश की प्राथमिकताओं को पुनर्कल्पित और सहनिर्मित कर समकालीन भारत के लिए योग्य एजेंडा तैयार किया जाना भी इस फोरम का मकसद है। महात्मा गांधी के 150वीं जयंती वर्ष के मौके पर लॉन्च किए गए नेशनल एजेंडा फोरम के तहत 14 अगस्त 2018 तक सभी नागरिक www.indianpac.com/naf/ पर लॉग इन कर अपना वोट देकर एजेंडा तय कर सकते हैं, 15 अगस्त 2018 को लोगों द्वारा तय किए गए देश के एजेंडा का ऐलान होगा। इसके बाद सितम्बर से अक्टूबर में चुने गए नेता के साथ युवा वॉलेंटियर्स की मीटिंग करायी जायेगी. जहां चुना गया नेता वालंटियर्स के बीच अधिकारिक तौर पर यह सुनिश्चित करेगा कि तय किये गए एजेंडा को वह जनवरी 2019 में अपनी पार्टी के घोषणापत्र में शामिल करेंगा.

क्या है I-PAC
इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (I-PAC) शिक्षित युवाओं और युवा पेशेवरों का एक ऐसा प्रभावी मंच है, जहां भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में हिस्सा लेने के इच्छुक युवाओं को बिना किसी राजनीतिक दल का हिस्सा बने आने वाली सरकारों के एजेंडा को स्थापित करने के लिए सार्थक रूप से मौका दिया जाता है.
IPAC की शुरुआत 2013 में सिटिजन फॉर एकाउंटेबल गवर्नेंस (CAG) के तौर पर हुई. यह पिछले 5 सालों से सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में काम कर रही है. इस ग्रुप की स्थापना देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों से पढ़े-लिखे युवा प्रोफेशनल्स के द्वारा की गई है. यह भारत की पहली पॉलिटिकल एक्शन कमेटी है. I-PAC ने चुनाव लड़ने और प्रचार करने के तरीकों में प्रोफेशनलिज्म और इनोवेशन के जरिए बदलाव लाने का काम किया है.

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जैसा कि यह सर्वविदित है कि बी.एस.पी. सर्वजन हिताय एवं सर्वजन सुखाय तथा धर्म-निरपेक्ष व सर्व-धर्म सम्मान की सोच एवं नीतियों में विश्वास रखती है

Posted on 17 July 2018 by admin

बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री व
पूर्व सांसद सुश्री मायावती जी की प्रेसवार्ता के मूल व मुख्य अंश

नई दिल्ली, 17 जुलाई, 2018: जैसा कि यह सर्वविदित है कि बी.एस.पी. सर्वजन
हिताय एवं सर्वजन सुखाय तथा धर्म-निरपेक्ष व सर्व-धर्म सम्मान की सोच एवं
नीतियों में विश्वास रखती है तथा उन पर पूरी ईमानदारी व निष्ठा से अमल भी
करती है और यह सब उत्तर प्रदेश में, बी.एस.पी. की व मेरे नेतृत्व में चार
बार चली सरकार में भी देखने के लिये मिला है और यह सब जग-जाहिर है।
लेकिन मुझे कल लखनऊ में बी.एस.पी. के हुये कार्यकर्ता-सम्मेलन में,
पार्टी के खासकर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ‘‘श्री जयप्रकाश सिंह’’ द्वारा दिये
गये भाषण के बारे में यह जानकारी मिली है कि उसने कल बी.एस.पी. की इस
मानवतावादी सोच व नीतियों के विरूद्ध जाकर तथा अपनी विरोधी पार्टियों के
सर्वोच्च राष्ट्रीय नेताओं के बारे में भी काफी कुछ व्यक्तिगत
टीका-टिप्पणी करके उनके बारे में काफी अनर्गल बातें भी कही हैं, जो
बी.एस.पी. के कल्चर के पूरेतौर से विरूद्ध है।
और जिनका बी.एस.पी. से कोई लेना-देना नहीं है अर्थात इनके द्वारा इस
किस्म की कही गई बातें उनकी व्यक्तिगत सोच की उपज हैं तथा बी.एस.पी. की
नहीं और साथ ही उनकी ऐसी सभी बातें बी.एस.पी. की सोच व नीतियों के
विरूद्ध भी हैं। जिसे अति गम्भीरता से लेते हुये तथा पार्टी व मूवमेन्ट
के हित में भी आज हमारी पार्टी ने अभी हाल ही में नये-नये बने बी.एस.पी.
के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री जयप्रकाश सिंह को उनके इस पद से तत्काल
प्रभाव से हटा दिया गया है और साथ ही, इनको आज ही बी.एस.पी. के राष्ट्रीय
कोओडिनेटर के पद से भी हटा दिया गया है।
इसके साथ-साथ, आज मैं मीडिया के माध्यम से पूरे देश में, अपनी पार्टी के
सभी छोटे-बड़े कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों व नेताओं को भी यह चेतावनी देती
हूँ कि वे बी.एस.पी. की हर छोटी-बड़ी मीटिंग व कैडर-कैम्प एवं जनसभा आदि
में भी केवल बी.एस.पी. की विचारधारा, नीतियों व मूवमेन्ट के बारे में तथा
दलित एवं पिछडे़ वर्ग में जन्में अपने महान सन्तों, गुरूओं व महापुरूषों
एवं पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष के बारे में भी, केवल उनके जीवन-संघर्ष
एवं सिद्धान्तों व सोच के सम्बन्ध में ही अपनी बातें रखें।
लेकिन उनकी आड़ में दूसरों के सन्तों गुरूओं व महापुरूषों के बारे में
अभद्र एवं अशोभनीय भाषा का कतई भी इस्तेमाल ना करें। अर्थात दूसरी
पार्टियों के कुछ सिरफिरे नेताओं के पदचिन्हों पर चलकर, अपनी पार्टी के
लोगों को किसी के बारे में भी अनर्गल भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिये।
इसके अलावा उत्तर प्रदेश व देश के अन्य राज्यों में भी किसी भी पार्टी के
साथ जब तक चुनावी गठबन्धन की घोषणा नहीं हो जाती है, तो तब तक, पार्टी के
लोगों को उत्तर प्रदेश व अन्य राज्यों में भी गठबन्धन के बारे मे कुछ भी
बात, किसी भी स्तर पर नहीं करनी चाहिये। अर्थात यह सब पार्टी के लोगों को
अपनी पार्टी की हाईकमान पर ही छोड़ देना चाहिये।
इसके साथ ही, पार्टी के लोगों को अपने हर स्तर के कार्यक्रम में केवल
अपनी पार्टी की विचारधारा, सिद्धान्त एवं मूवमेन्ट के बारे में ही बोलना
चाहिये और दूसरी पार्टियों के सम्बन्ध में केवल उनकी खासकर दलित, पिछड़ा,
मुस्लिम व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक, गरीब मजदूर, किसान, व्यापारी व अन्य
जन-विरोधी गलत नीतियों व गलत कार्यशैली के बारे में ही बोलना चाहिये तथा
उनके किसी भी छोटे-बडे़ राष्ट्रीय नेताओं एवं उच्च पदों पर बैठे लोगों के
व्यक्तिगत मामलों में कतई भी कोई भी टीका-टिप्पणी व अभद्र भाषा का
इस्तेमाल नहीं करनी चाहिये।
इसके साथ-साथ मैं पार्टी के खासकर वरिष्ठ नेताओं व पदाधिकारियों को आज यह
भी सलाह देती हूँ कि उन्हें विशेषकर गम्भीर व महत्वपूर्ण विषयों पर तथा
प्रेसवार्ता में भी ज्यादातर अपनी बातों को लिखकर ही रखना व बोलना
चाहिये। ताकि खासकर जातिवादी मीडिया व हमारी विरोधी पार्टियों को फिर
किसी भी प्रकार से हमारी पार्टी के बारे में उन्हें कोई भी गलत बात को
कहने व प्रचार करने का मौका ना मिल सके। ऐसी मेरी बी.एस.पी. के लोगों को
सलाह है। मुझे पूरी उम्मीद है कि बी.एस.पी. के लोग मेरी इन सब बातों पर
जरूर अमल करेंगे।

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