शासन के अनुसार नौनिहालों के कंधों पर बस्ते का कम से कम वजन होना चाहिए, लेकिन अधिकतर स्कूलों में पीने का पानी उपलब्ध न होने से एक से किलो की बोतल का अतिरिक्त वजन सहन करना पड़ रहा है।
भीषण गर्मी और उमस के बीच गुरुवार से शासकीय स्कूलों में नियमित कक्षाएं लगाने का क्रम शुरू हो जाएगा। लेकिन हैरानी इस बात की है कि जिले के अधिक शासकीय स्कूलों में बच्चों को प्यास बुझाने के लिए कोई इन्तजाम नहीं है।
एक ओर शासन अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून पारित कर शतप्रतिशत बच्चों को स्कूलों तक लाने के लिए तमाम प्रयास कर रहा है तो दूसरी ओर मानव विकास संसाधन विभाग बच्चों के बस्तों को बोझ कम करने का। लेकिन हो ठीक विपरीत रहा है। स्कूल पहुंचे बच्चे स्कूलों में प्यास बुझाने का इन्तजाम न होने के कारण पानी पीने के बहाने घर भाग लेते है तो जो पढऩा चाहते है, वह एक से डेढ़ किलो बोझ अतिरिक्त ले जाने के लिए मजबूर है।
एक सैकड़ा स्कूलों के पास नहीं पानी का कोई इन्तजामरू शासकीय स्कूलों में पीने के पानी के इन्तजाम की बात करें तो जिले के एक सैकड़ा से अधिक स्कूल ऐसे है, जहां पर पीने के पानी का कोई इन्तजाम नहीं है। यानि ऐसे स्कूलों को आसपास भी पानी की सुविधा नहीं है। ऐसे में इन स्कूलों में शिक्षक भी पानी आस-पड़ोस से मंगवाने के लिए मजबूर होते है।
ग्रामीण क्षेत्र हो या फिर शहरी स्कूलों में शिक्षक अपनी प्यास बुझाने के लिए मटकों का इन्तजाम तो कर लेते हैए लेकिन इन्हें भरने का काम बच्चों को करना होता है। स्कूल के पास लगे हैण्डपंप या फिर कुएं से पानी लाने की जिम्मेदारी बच्चों के कंधों पर होती है। इस पर भी बच्चों की प्यास बुझाने के लिए स्कूलों में कोई इन्तजाम नहीं किए जाते।
Vikas Sharma
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